10-12-2020
प्रात:मुरली
बापदादा मधुबन
मीठे बच्चे - अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान ही महादान है, इस दान से ही राजाई प्राप्त होती है इसलिए महादानी बनो
प्रश्नः-
जिन बच्चों को सर्विस का शौक होगा उनकी मुख्य निशानियाँ क्या होगी?
उत्तर:-
1. उन्हें पुरानी दुनिया का वातावरण बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा,
2. उन्हें बहुतों की सेवा कर आप-समान बनाने में ही खुशी होगी,
3. उन्हें पढ़ने और पढ़ाने में ही आराम आयेगा,
4. समझाते-समझाते गला भी खराब हो जाए तो भी खुशी में रहेंगे,
5. उन्हें किसी की मिलकियत नहीं चाहिए।
वह किसी की प्रापर्टी के पीछे अपना समय नहीं गंवायेंगे।
6. उनकी रगें सब तरफ से टूटी हुई होंगी.
7. वह बाप समान उदारचित होंगे।
उन्हें सेवा के सिवाए और कुछ भी मीठा नहीं लगेगा।
-
ओम् शान्ति। रूहानी बाप जिसकी महिमा सुनी वह बैठ बच्चों को पाठ पढ़ाते हैं, यह पाठशाला है ना।
- तुम सब यहाँ पाठ पढ़ रहे हो टीचर से।
- यह है सुप्रीम टीचर, जिसको परमपिता भी कहा जाता है।
- परमपिता रूहानी बाप को ही कहा जाता है।
- लौकिक बाप को कभी परमपिता नहीं कहेंगे।
- तुम कहेंगे अभी हम पारलौकिक बाप के पास बैठे हैं।
- कोई बैठे हैं, कोई मेहमान बन आते हैं।
- तुम समझते हो हम बेहद के बाप पास बैठे हैं, वर्सा लेने के लिए।
- तो अन्दर में कितनी खुशी होनी चाहिए।
- मनुष्य तो बिचारे चिल्लाते रहते हैं।
- इस समय दुनिया में सब कहते हैं दुनिया में शान्ति हो।
- यह तो बिचारों को पता नहीं, शान्ति क्या वस्तु है।
- ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर बाप ही शान्ति स्थापन करने वाला है।
- निराकारी दुनिया में तो शान्ति ही है।
- यहाँ चिल्लाते हैं कि दुनिया में शान्ति कैसे हो?
- अब नई दुनिया सतयुग में तो शान्ति थी जबकि एक धर्म था।
- नई दुनिया को कहते हैं पैराडाइज़, देवताओं की दुनिया।
- शास्त्रों में जहाँ-तहाँ अशान्ति की बातें लिख दी हैं।
- दिखाते हैं द्वापर में कंस था, फिर हिरण्यकश्यप को सतयुग में दिखाते हैं, त्रेता में रावण का हंगामा.....।
- सब जगह अशान्ति दिखा दी है।
- मनुष्य बिचारे कितना घोर अन्धियारे में हैं।
- पुकारते भी हैं बेहद के बाप को।
- जब गॉड फादर आये तब वही आकर शान्ति स्थापन करे।
- गॉड को बिचारे जानते ही नहीं।
- शान्ति होती ही है नई दुनिया में।
- पुरानी दुनिया में होती नहीं।
- नई दुनिया स्थापन करने वाला तो बाप ही है।
- उनको ही बुलाते हैं कि आकर पीस स्थापन करो।
- आर्य समाजी भी गाते हैं शान्ति देवा।
- बाप कहते हैं पहले है पवित्रता।
- अभी तुम पवित्र बन रहे हो।
- वहाँ पवित्रता भी है, पीस भी है, हेल्थ-वेल्थ सब है।
- धन बिगर तो मनुष्य उदास हो जाते हैं।
- तुम यहाँ आते हो इन लक्ष्मी-नारायण जैसा धनवान बनने।
- यह विश्व के मालिक थे ना।
- तुम आये हो विश्व का मालिक बनने।
- परन्तु वह दिमाग सबका नम्बरवार है।
- बाबा ने कहा था - जब प्रभातफेरी निकालते हो तो साथ में लक्ष्मी-नारायण का चित्र जरूर उठाओ।
- ऐसी युक्ति रचो।
- अभी बच्चों की बुद्धि पारसबुद्धि बनने की है।
- इस समय अजुन तमोप्रधान से रजो तक गये हैं।
- अभी सतो, सतोप्रधान तक जाना है।
- वह ताकत अभी नहीं है।
- याद में रहते नहीं हैं।
- योगबल की बहुत कमी है।
- फट से सतोप्रधान नहीं बन सकते हैं।
- यह जो गायन है सेकण्ड में जीवनमुक्ति, वह तो ठीक है।
- तुम ब्राह्मण बने हो तो जीवनमुक्त बन ही गये, फिर जीवन-मुक्ति में भी सर्वोत्तम, मध्यम, कनिष्ट होते हैं।
- जो बाप का बनते हैं तो जीवनमुक्ति मिलती जरूर है।
- भल बाप का बन फिर बाप को छोड़ देते हैं तो भी जीवनमुक्ति जरूर मिलेगी।
- स्वर्ग में झाडू लगाने वाला बन जायेंगे।
- स्वर्ग में तो जायेंगे।
- बाकी पद कम मिल जाता।
- बाप अविनाशी ज्ञान देते हैं, उसका कभी विनाश नहीं होता है।
- बच्चों के अन्दर में खुशी के ढोल बजने चाहिए।
- यह हाय-हाय होने के बाद फिर वाह-वाह होनी है।
- तुम अभी ईश्वरीय सन्तान हो।
- फिर बनेंगे दैवी सन्तान।
- इस समय तुम्हारी यह जीवन हीरे तुल्य है।
- तुम भारत की सर्विस कर भारत को पीसफुल बनाते हो।
- वहाँ पवित्रता, सुख, शान्ति सब रहती है।
- यह जीवन तुम्हारा देवताओं से भी ऊंच है।
- अभी तुम रचता बाप को और सृष्टि चक्र को जानते हो।
- कहते हैं यह त्योहार आदि जो भी हैं परम्परा से चले आते हैं।
- परन्तु कब से?
- यह कोई नहीं जानते।
- समझते हैं जबसे सृष्टि शुरू हुई, रावण को जलाना आदि भी परम्परा से चला आता है।
- अब सतयुग में तो रावण होता नहीं।
- वहाँ कोई भी दु:खी नहीं है इसलिए गॉड को भी याद नहीं करते।
- यहाँ सब गॉड को याद करते रहते।
- समझते हैं गॉड ही विश्व में शान्ति करेंगे, इसलिए कहते हैं आकर रहम करो।
- हमको दु:ख से लिबरेट करो।
- बच्चे ही बाप को बुलाते हैं क्योंकि बच्चों ने ही सुख देखा है।
- बाप कहते हैं - तुमको पवित्र बनाकर साथ ले चलेंगे।
- जो पवित्र नहीं बनेंगे वह तो सज़ा खायेंगे।
- इसमें मन्सा, वाचा, कर्मणा पवित्र रहना है।
- मन्सा भी बड़ी अच्छी चाहिए।
- इतनी मेहनत करनी है जो पिछाड़ी में मन्सा में कोई व्यर्थ ख्याल न आये।
- एक बाप के सिवाए कोई भी याद न आये।
- बाप समझाते हैं अभी मन्सा तक तो आयेंगे जब तक कर्मातीत अवस्था हो।
- हनुमान मिसल अडोल बनो, उसमें ही तो बड़ी मेहनत चाहिए।
- जो आज्ञाकारी, वफादार, सपूत बच्चे होते हैं बाप का प्यार भी उन पर जास्ती रहता है।
- 5 विकारों पर जीत न पाने वाले इतने प्यारे लग न सकें।
- तुम बच्चे जानते हो हम कल्प-कल्प बाप से यह वर्सा लेते हैं तो कितना खुशी का पारा चढ़ना चाहिए।
- यह भी जानते हो स्थापना तो जरूर होनी है।
- यह पुरानी दुनिया कब्रदाखिल होनी है जरूर।
- हम परिस्तान में जाने लिए कल्प पहले मिसल पुरूषार्थ करते रहते हैं।
- यह तो कब्रिस्तान है ना।
- पुरानी दुनिया और नई दुनिया की समझानी सीढ़ी में है।
- यह सीढ़ी कितनी अच्छी है तो भी मनुष्य समझते नहीं हैं।
- यहाँ सागर के कण्ठे पर रहने वाले भी पूरा समझते नहीं।
- तुम्हें ज्ञान धन का दान तो जरूर करना चाहिए।
- धन दिये धन ना खुटे।
- दानी, महादानी कहते हैं ना।
- जो हॉस्पिटल, धर्मशाला आदि बनाते हैं, उनको महादानी कहते हैं।
- उसका फल फिर दूसरे जन्म में अल्पकाल के लिए मिलता है।
- समझो धर्मशाला बनाते हैं तो दूसरे जन्म में मकान का सुख मिलेगा।
- कोई बहुत-बहुत धन दान करते हैं तो राजा के घर में वा साहूकार के घर में जन्म लेते हैं।
- तुम पढ़ाई से राजाई पद पाते हो।
- पढ़ाई भी है, दान भी है।
- यहाँ है डायरेक्ट, भक्ति मार्ग में है इनडायरेक्ट।
- शिवबाबा तुमको पढ़ाई से ऐसा बनाते हैं।
- शिव-बाबा के पास तो हैं ही अविनाशी ज्ञान रत्न।
- एक-एक रत्न लाखों रूपयों के हैं।
- भक्ति के लिए ऐसे नहीं कहा जाता।
- ज्ञान इसको कहा जाता है।
- शास्त्रों में भक्ति का ज्ञान है, भक्ति कैसे की जाए उसके लिए शिक्षा मिलती है।
- तुम बच्चों को है ज्ञान का कापारी नशा।
- तुम्हें भक्ति के बाद ज्ञान मिलता है।
- ज्ञान से विश्व की बादशाही का कापारी नशा चढ़ता है।
- जो जास्ती सर्विस करेंगे, उनको नशा चढ़ेगा।
- प्रदर्शनी अथवा म्युज़ियम में भी अच्छा भाषण करने वालों को बुलाते हैं ना।
- वहाँ भी जरूर नम्बरवार होंगे।
- महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे होते हैं।
- देलवाड़ा मन्दिर में भी यादगार बना हुआ है।
- तुम कहेंगे यह है चैतन्य देलवाड़ा, वह है जड़।
- तुम हो गुप्त इसलिए तुमको जानते नहीं।
- तुम हो राजऋषि, वह हैं हठयोग ऋषि।
- अभी तुम ज्ञान ज्ञानेश्वरी हो।
- ज्ञान सागर तुमको ज्ञान देते हैं।
- तुम अविनाशी सर्जन के बच्चे हो।
- सर्जन ही नब्ज देखेगा।
- जो अपनी नब्ज को ही नहीं जानते तो दूसरे को फिर कैसे जानेंगे।
- तुम अविनाशी सर्जन के बच्चे हो ना।
- ज्ञान अंजन सतगुरू दिया... यह ज्ञान इन्जेक्शन है ना।
- आत्मा को इन्जेक्शन लगता है ना।
- यह महिमा भी अभी की है।
- सतगुरू की ही महिमा है।
- गुरूओं को भी ज्ञान इन्जेक्शन सतगुरू ही देंगे।
- तुम अविनाशी सर्जन के बच्चे हो तो तुम्हारा धन्धा ही है ज्ञान इन्जेक्शन लगाना।
- डॉक्टरों में भी कोई मास में लाख, कोई 500 भी मुश्किल कमायेंगे।
- नम्बरवार एक-दो के पास जाते हैं ना।
- हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट में जजमेंट मिलती है - फाँसी पर चढ़ना है।
- फिर प्रेजीडेंट पास अपील करते हैं तो वह माफ भी कर देते हैं।
- तुम बच्चों को तो नशा रहना चाहिए, उदारचित होना चाहिए।
- इस भागीरथ में बाप प्रवेश हुआ तो इनको बाप ने उदारचित बनाया ना।
- खुद तो कुछ भी कर सकते हैं ना।
- वह इसमें आकर मालिक बन बैठा।
- चलो यह सब भारत के कल्याण के लिए लगाना है।
- तुम धन लगाते हो, भारत के ही कल्याण के लिए।
- कोई पूछे खर्चा कहाँ से लाते हो?
- बोलो, हम अपने ही तन-मन-धन से सर्विस करते हैं।
- हम राज्य करेंगे तो पैसा भी हम लगायेंगे।
- हम अपना ही खर्चा करते हैं।
- हम ब्राह्मण श्रीमत पर राज्य स्थापन करते हैं।
- जो ब्राह्मण बनेंगे वही खर्चा करेंगे।
- शुद्र से ब्राह्मण बनें फिर देवता बनना है।
- बाबा तो कहते हैं सब चित्र ऐसे ट्रांसलाइट के बनाओ जो मनुष्यों को कशिश हो।
- कोई को झट से तीर लग जाए।
- कोई जादू के डर से आयेंगे नहीं।
- मनुष्य से देवता बनाना - यह जादू है ना।
- भगवानुवाच, मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ।
- हठयोगी कभी राजयोग सिखला न सके।
- यह बातें अभी तुम समझते हो।
- तुम मन्दिर लायक बन रहे हो।
- इस समय यह सारी विश्व बेहद की लंका है।
- सारे विश्व में रावण का राज्य है।
- बाकी सतयुग-त्रेता में यह रावण आदि हो कैसे सकते।
- बाप कहते हैं अभी मैं जो सुनाता हूँ, वह सुनो।
- इन आंखों से कुछ देखो नहीं।
- यह पुरानी दुनिया ही विनाश होनी है,
- इसलिए हम अपने शान्तिधाम-सुखधाम को ही याद करते हैं।
- अभी तुम पुजारी से पूज्य बन रहे हो।
- यह नम्बरवन पुजारी थे, नारायण की बहुत पूजा करते थे।
- अब फिर पूज्य नारायण बन रहे हैं।
- तुम भी पुरुषार्थ कर बन सकते हो।
- राजधानी तो चलती है ना।
- जैसे किंग एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड चलता है।
- बाप कहते हैं तुम सर्वव्यापी कहकर हमारा तिरस्कार करते आये हो।
- फिर भी हम तुम्हारा उपकार करता हूँ।
- यह खेल ही ऐसा वन्डरफुल बना हुआ है।
- पुरुषार्थ जरूर करना है।
- कल्प पहले जो पुरुषार्थ किया है, वही ड्रामा अनुसार करेंगे।
- जिस बच्चे को सर्विस का शौक रहता है, उसको रात-दिन यही चिंतन रहता है।
- तुम बच्चों को बाप से रास्ता मिला है, तो तुम बच्चों को सर्विस बिगर और कुछ अच्छा नहीं लगता है।
- दुनियावी वातावरण अच्छा नहीं लगता है।
- सर्विस वालों को तो सर्विस बिगर आराम नहीं।
- टीचर को पढ़ाने में मजा आता है।
- अब तुम बने हो बहुत ऊंच टीचर।
- तुम्हारा धंधा ही यह है, जितना अच्छा टीचर बहुतों को आपसमान बनायेंगे, उनको इतना इज़ाफा मिलता है।
- उनको पढ़ाने बिगर आराम नहीं आयेगा।
- प्रदर्शनी आदि में रात को 12 भी बज जाते हैं तो भी खुशी होती है।
- थकावट होती है, गला खराब हो जाता है तो भी खुशी में रहते हैं।
- ईश्वरीय सर्विस है ना।
- यह बहुत ऊंच सर्विस है, उनको फिर कुछ भी मीठा नहीं लगता है।
- कहेंगे हम यह मकान आदि लेकर भी क्या करेंगे, हमको तो पढ़ाना है।
- यही सर्विस करनी है।
- मिलकियत आदि में खिटपिट देखेंगे तो कहेंगे यह सोना ही किस काम का जो कान कटें।
- सर्विस से तो बेड़ा पार होना है।
- बाबा कह देते हैं, मकान भी भल उनके नाम पर हो।
- बी0 के0 को तो सर्विस करनी है।
- इस सर्विस में कोई बाहर का बंधन अच्छा नहीं लगता है।
- कोई की तो रग जाती है।
- कोई की रग टूटी हुई रहती है।
- बाबा कहते हैं मनमनाभव तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
- बहुत मदद मिल जाती है।
- इस सर्विस में तो लग जाना चाहिए।
- इसमें आमदनी है बहुत।
- मकान आदि की बात नहीं।
- मकान दे और बन्धन डाले तो ऐसे लेंगे नहीं।
- जो सर्विस नहीं जानते वह तो अपने काम के नहीं।
- टीचर आपसमान बनायेंगे।
- नहीं बनते तो वह क्या काम के।
- हैण्ड्स की बहुत जरूरत रहती है ना।
- इसमें भी कन्याओं, माताओं की जास्ती जरूरत रहती है।
- बच्चे समझते हैं - बाप टीचर है, बच्चे भी टीचर चाहिए।
- ऐसे नहीं कि टीचर और कोई काम नहीं कर सकते हैं।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) दिन-रात सर्विस के चिंतन में रहना है और सब रगें तोड़ देनी हैं।
- सर्विस के बिगर आराम नहीं, सर्विस कर आपसमान बनाना है।
- 2) बाप समान उदारचित बनना है।
- सबकी नब्ज देख सेवा करनी है।
- अपना तन-मन-धन भारत के कल्याण में लगाना है।
- अचल-अडोल बनने के लिए आज्ञाकारी व़फादार बनना है।
- वरदान:-
- अन्तर्मुखता की ग़ुफा में रहने वाले देह से न्यारे देही भव
- जो पाण्डवों की गुफायें दिखाते हैं - वह यही अन्तर्मुखता की गुफायें हैं, जितना देह से न्यारे, देही रूप में स्थित होने की गुफा में रहते हो उतना दुनिया के वातावरण से परे हो जाते हो, वातावरण के प्रभाव में नहीं आते।
- जैसे ग़ुफा के अन्दर रहने से बाहर के वातावरण से परे हो जाते हैं ऐसे यह अन्तर्मुखता की गुफा भी सबसे न्यारा बना और बाप का प्यारा बना देती है।
- और जो बाप का प्यारा है वह स्वत: सबसे न्यारा हो जाता है।
- स्लोगन:-
- साधना बीज है और साधन उसका विस्तार है। विस्तार में साधना को छिपा नहीं देना।
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