11-12-2020 प्रात:मुरली मधुबन

मीठे बच्चे - मधुबन होलीएस्ट ऑफ दी होली बाप का घर है, यहाँ तुम किसी भी पतित को नहीं ला सकते

प्रश्नः-

इस ईश्वरीय मिशन में जो पक्के निश्चय बुद्धि हैं उनकी निशानियां क्या होंगी?

उत्तर:-

1- वे स्तुति-निंदा ... सबमें धीरज से काम लेंगे,

2. क्रोध नहीं करेंगे,

3. किसी को भी दैहिक दृष्टि से नहीं देखेंगे। आत्मा को ही देखेंगे, आत्मा होकर बात करेंगे,

4. स्त्री-पुरुष साथ में रहते कमल फूल समान रहेंगे,

5. किसी भी प्रकार की तमन्ना (इच्छा) नहीं रखेंगे।

गीत:- जले न क्यों परवाना...


  • ओम् शान्ति। रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं अर्थात् भगवान पढ़ा रहे हैं रूहानी स्टूडेन्ट को।
    • उन स्कूलों में जो बच्चे पढ़ते हैं, उन्हें कोई रूहानी स्टूडेन्ट नहीं कहेंगे।
      • वे तो हैं ही आसुरी विकारी सम्प्रदाय के।
        • आगे तुम भी आसुरी अथवा रावण सम्प्रदाय के थे।
  • अब राम राज्य में चलने के लिए 5 विकारों रूपी रावण पर जीत पाने का पुरुषार्थ कर रहे हो।
    • यह जो नॉलेज प्राप्त नहीं करते उन्हों को समझाना पड़ता है - तुम रावण राज्य में हो।
      • खुद समझते नहीं हैं।
      • तुम अपने मित्र-सम्बन्धियों आदि को कहते हो हम बेहद के बाप से पढ़ते हैं तो ऐसे नहीं कि वह निश्चय करते हैं।
      • कितना भी बाप कहे या भगवान कहे तो भी निश्चय नहीं करते।
  • नये को तो यहाँ आने का हुक्म नहीं है।
  • बिगर चिट्ठी वा बिगर पूछे तो कोई आ भी नहीं सकते।
    • परन्तु कहाँ-कहाँ कोई आ जाते हैं, यह भी कायदे का उल्लंघन है।
      • एक-एक का पूरा समाचार, नाम आदि लिख पूछना होता है।
        • इनको भेज देवें?
        • फिर बाबा कहते हैं भले भेज दो।
  • अगर आसुरी पतित दुनिया के स्टूडेण्ट होंगे तो बाप समझायेंगे, वह पढ़ाई तो विकारी पतित पढ़ाते हैं।
    • यह ईश्वर पढ़ाते हैं।
  • उस पढ़ाई से पाई-पैसे का दर्जा मिलता है। भल कोई बहुत बड़ा इम्तहान पास करते हैं, फिर कहाँ तक कमाते रहेंगे।
    • विनाश तो सामने खड़ा है।
      • नैचुरल कैलेमिटीज भी सब आने वाली हैं।
    • यह भी तुम समझते हो, जो नहीं समझते हैं उन्हों को बाहर विजिटिंग रूम में बिठाए समझाना होता है।
    • यह है ईश्वरीय पढ़ाई, इसमें निश्चयबुद्धि ही विजयन्ती होंगे अर्थात् विश्व पर राज्य करेंगे।
    • रावण सम्प्रदाय वाले तो यह जानते नहीं।
    • इसमें बड़ी खबरदारी चाहिए।
    • परमीशन बिगर कोई भी अन्दर आ नहीं सकता।
    • यह कोई घूमने-फिरने की जगह नहीं है।
    • थोड़े समय में कायदे कड़े हो जायेंगे क्योंकि यह है होलीएस्ट ऑफ दी होली।
      • शिवबाबा को इन्द्र भी कहते हैं ना।
        • यह इन्द्र सभा है।
  • 9 रत्न अंगूठी में भी पहनते हैं ना।
    • उन रत्नों में नीलम भी होता है, पन्ना, माणिक भी होता है।
    • यह सब नाम रखे हुए हैं।
    • परियों के भी नाम हैं ना।
  • तुम परियाँ उड़ने वाली आत्मायें हो।
    • तुम्हारा ही वर्णन है।
      • परन्तु मनुष्य इन बातों को कुछ भी समझते नहीं हैं।
    • अंगूठी में भी रत्न जब डालते हैं, तो उनमें कोई पुखराज, नीलम, पेरूज़ भी होते हैं।
      • कोई का दाम हज़ार रूपया तो कोई का दाम 10-20 रूपया।
      • बच्चों में भी नम्बरवार हैं।
    • कोई तो पढ़कर मालिक बन जाते हैं।
    • कोई फिर पढ़कर दास-दासियाँ बन जाते हैं।
      • राजधानी स्थापन होती है ना।
    • तो बाप बैठ पढ़ाते हैं।
    • इन्द्र भी उनको ही कहा जाता है।
  • यह ज्ञान वर्षा है।
      • ज्ञान तो सिवाए बाप के कोई दे न सके।
      • तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही यह है।
      • अगर निश्चय हो जाए कि ईश्वर पढ़ाते हैं फिर वह पढ़ाई को छोड़ेंगे नहीं।
        • जो होंगे ही पत्थरबुद्धि, उनको कभी तीर नहीं लगेगा।
      • आकर चलते-चलते फिर गिर पड़ते हैं।
  • 5 विकार आधाकल्प के शत्रु हैं।
    • माया देह-अभिमान में लाकर थप्पड़ मार देती है फिर आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती हो जाते हैं।
    • यह माया बड़ी दुश्तर है, एक ही थप्पड़ से गिरा देती है।
    • समझते हैं हम कभी नहीं गिरेंगे फिर भी माया थप्पड़ लगा देती है।
  • यहाँ स्त्री-पुरुष दोनों को पवित्र बनाया जाता है।
    • सो तो ईश्वर के सिवाए कोई बना न सके।
      • यह है ईश्वरीय मिशन।
  • बाप को खिवैया भी कहा जाता है, तुम हो नईया।
    • खिवैया आते हैं, सभी की नईया को पार लगाने।
    • कहते भी हैं सच की नईया डोलेगी परन्तु डूबेगी नहीं।
    • कितने ढेर के ढेर मठ पंथ हैं।
    • ज्ञान और भक्ति की जैसे लड़ाई होती है।
    • कभी भक्ति की भी विजय होगी, आखिर तो ज्ञान की ही विजय होगी।
    • भक्ति के तरफ देखो कितने बड़े-बड़े योद्धे हैं।
    • ज्ञान मार्ग की तरफ भी कितने बड़े-बडे योद्धे हैं।
    • अर्जुन भीम आदि नाम रखे हैं।
      • यह तो सब कहानियाँ बैठ बनाई हैं।
      • गायन तो तुम्हारा ही है।
      • हीरो-हीरोइन का पार्ट तुम्हारा अभी बज रहा है।
    • इस समय ही युद्ध चलती है।
    • तुम्हारे में भी बहुत हैं जो इन बातों को बिल्कुल समझते नहीं हैं।
    • जो अच्छे-अच्छे होंगे उनको ही तीर लगेगा।
    • थर्ड-क्लास तो बैठ न सकें।
  • दिन-प्रतिदिन बहुत कड़े कायदे होते जायेंगे।
    • पत्थरबुद्धि जो कुछ नहीं समझते उनको तो यहाँ बैठना भी बेकायदे है।
  • यह हाल होलीएस्ट ऑफ होली है।
    • पोप को होली कहते हैं।
    • यह तो बाप है होलीएस्ट ऑफ होली।
    • बाप कहते हैं इन सभी का मुझे कल्याण करना है।
    • यह सब विनाश हो जाने वाले हैं।
    • यह भी कोई सब थोड़ेही समझते हैं।
      • भल सुनते हैं परन्तु एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल देते हैं।
      • न कुछ धारण करते हैं, न कराते हैं।
      • ऐसे गूंगे-बहरे भी बहुत हैं।
  • बाप कहते हैं हियर नो ईविल.... वह तो बन्दर का चित्र दिखाते हैं।
    • परन्तु यह तो मनुष्य के लिए कहा जाता है।
    • मनुष्य इस समय बन्दर से भी बदतर हैं।
  • नारद की भी कहानी बैठ बनाई है।
    • उनको बोला तुम अपनी शक्ल तो देखो - 5 विकार तो अन्दर में नहीं हैं?
    • जैसे साक्षात्कार होता है।
    • हनुमान का भी साक्षात्कार होता है ना।
    • बाप कहते हैं कल्प-कल्प यह होता है।
    • सतयुग में यह कुछ भी बातें होती नहीं।
  • यह पुरानी दुनिया ही खत्म हो जायेगी।
    • जो पक्के निश्चयबुद्धि हैं, वह समझते हैं कल्प पहले भी हमने यह राज्य किया था।
  • बाप कहते हैं - बच्चे, अब दैवी गुण धारण करो।
    • कोई बेकायदे काम नहीं करो।
    • स्तुति-निंदा सबमें धीरज धारण करना है।
    • क्रोध नहीं होना चाहिए।
  • तुम कितने ऊंच स्टूडेण्ट हो, भगवान बाप पढ़ाते हैं।
    • वह डायरेक्ट पढ़ा रहे हैं फिर भी कितने बच्चे भूल जाते हैं क्योंकि साधारण तन है ना।
    • बाप कहते हैं देहधारी को देखने से तुम इतना उठ नहीं सकेंगे।
    • आत्मा को देखो।
      • आत्मा यहाँ भ्रकुटी के बीच रहती है।
      • आत्मा सुनकर कांध हिलाती है।
      • हमेशा आत्मा से बात करो।
      • तुम आत्मा इस शरीर रूपी तख्त पर बैठी हो।
    • तुम तमोप्रधान थी अब सतोप्रधान बनो।
    • अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने से देह का भान छूट जायेगा।
  • आधाकल्प का देह-अभिमान रहा हुआ है।
    • इस समय सब देह-अभिमानी हैं।
    • अब बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो।
    • आत्मा ही सब कुछ धारण करती है।
    • खाती-पीती सब कुछ आत्मा करती है।
  • बाप को तो अभोक्ता कहा जाता है।
    • वह है निराकार।
    • यह शरीरधारी सब कुछ करते हैं।
    • वह खाता-पीता कुछ नहीं, अभोक्ता है।
    • तो इसकी फिर वो लोग कॉपी बैठ करते हैं।
      • कितना मनुष्यों को ठगते हैं।
  • तुम्हारी बुद्धि में अभी सारा ज्ञान है, कल्प पहले जिन्होंने समझा था वही समझेंगे।
    • बाप कहते हैं मैं ही कल्प-कल्प आकर तुमको पढ़ाता हूँ और साक्षी हो देखता हूँ।
    • नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जो पढ़ा था वही पढ़ेंगे।
      • टाइम लगता है।
  • कहते हैं कलियुग अभी 40 हज़ार वर्ष शेष है।
  • तो घोर अन्धियारे में हैं ना।
  • इसको अज्ञान अंधियारा कहा जाता है।
  • भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग में रात-दिन का फ़र्क है।
    • यह भी समझने की बातें हैं।
  • बच्चे बड़ी खुशी में डूबे हुए रहने चाहिए।
    • सब कुछ है, कोई तमन्ना नहीं।
    • जानते हैं कल्प पहले मिसल हमारी सब कामनायें पूरी होती हैं इसलिए पेट भरा रहता है।
    • जिनको ज्ञान नहीं, उनका थोड़ेही पेट भरा रहेगा।
    • कहा जाता है - खुशी जैसी खुराक नहीं।
    • जन्म-जन्मान्तर की राजाई मिलती है।
      • दास-दासी बनने वालों को इतनी खुशी नहीं रहेगी।
  • पूरा महावीर बनना है।
    • माया हिला न सके।
    • बाप कहते हैं आंखों की बड़ी सम्भाल रखनी है।
    • क्रिमिनल दृष्टि न जाए।
      • स्त्री को देखने से चलायमान हो जाते हैं।
      • अरे तुम तो भाई-बहन, कुमार-कुमारी हो ना।
    • फिर कर्मेन्द्रियाँ चंचलता क्यों करती!
    • बड़े-बड़े लखपति, करोड़पति को भी माया खलास कर देती है।
    • गरीबों को भी माया एकदम मार डालती है।
      • फिर कहते बाबा हमने धक्का खाया।
      • अरे 10 वर्ष के बाद भी हार खा ली।
      • अब तो पाताल में गिर पड़े।
  • अन्दर में समझते हैं इनकी अवस्था कैसी है।
    • कोई-कोई तो बड़ी अच्छी सर्विस करते हैं।
    • कन्याओं ने भी भीष्म पितामह आदि को बाण मारे हैं ना।
    • गीता में थोड़ा बहुत है।
  • यह तो है ही भगवानुवाच।
    • अगर कृष्ण भगवान ने गीता सुनाई तो फिर ऐसा क्यों कहते मैं जो हूँ जैसा हूँ, कोई विरला जानते।
    • कृष्ण यहाँ होता तो पता नहीं क्या कर देते।
    • कृष्ण का शरीर तो होता ही है सतयुग में।
    • यह नहीं जानते कि कृष्ण के बहुत जन्मों के अन्त के शरीर में मैं प्रवेश करता हूँ।
    • कृष्ण के आगे तो झट सब भाग आयें।
      • पोप आदि आते हैं तो कितना झुण्ड जाकर इकट्ठा होता है।
  • मनुष्य यह थोड़ेही समझते कि इस समय सब पतित तमोप्रधान हैं।
    • कहते भी हैं हे पतित-पावन आओ परन्तु समझते नहीं कि हम पतित हैं।
    • बच्चों को बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं।
  • बाबा की बुद्धि तो सब सेन्टर्स के अनन्य बच्चों तरफ चली जाती है।
    • जब जास्ती अनन्य बच्चे यहाँ आते हैं तो फिर यहाँ देखता हूँ, नहीं तो बाहर में बच्चों को याद करना पड़ता है।
      • उनके आगे ज्ञान डांस करता हूँ।
    • मैजारिटी ज्ञानी तू आत्मा होते हैं तो मजा भी आता है।
  • नहीं तो बच्चियों पर कितना अत्याचार होते हैं।
      • कल्प-कल्प सहन करना पड़ता है।
    • ज्ञान में आने से फिर भक्ति भी छूट जाती है।
    • घर में समझो मन्दिर है, स्त्री-पुरुष दोनों भक्ति करते हैं, स्त्री को ज्ञान की चटक लग जाती है और भक्ति छोड़ देती तो कितना हंगामा हो जायेगा।
    • विकार में भी न जाये, शास्त्र आदि भी न पढ़े तो झगड़ा होगा ना।
      • इसमें विघ्न बहुत पड़ते हैं, और सतसंग में जाने के लिए रोकते नहीं हैं।
    • यहाँ है पवित्रता की बात।
    • पुरुष तो नहीं रह सकते तो जंगल में चले जाते, स्त्रियाँ कहाँ जायें।
      • स्त्रियों के लिए वह समझते हैं नर्क का द्वार है।
      • बाप कहते हैं यह तो स्वर्ग का द्वार हैं।
      • तुम बच्चियाँ अभी स्वर्ग स्थापन करती हो।
      • इनसे पहले नर्क का द्वार थी।
  • अभी स्वर्ग की स्थापना होती है।
    • सतयुग है स्वर्ग का द्वार, कलियुग है नर्क का द्वार।
    • यह समझ की बात है।
    • तुम बच्चे भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार समझते हो।
    • भल पवित्र तो रहते हैं।
    • बाकी ज्ञान की धारणा नम्बरवार होती है।
    • तुम तो वहाँ से निकलकर यहाँ आकर बैठे हो, परन्तु अब तो समझाया जाता है गृहस्थ व्यवहार में रहना है।
  • उन्हों को तकलीफ होती है।
    • यहाँ रहने वालों के लिए तो कोई तकलीफ नहीं है।
    • तो बाप समझाते हैं कमल फूल समान गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहो।
    • सो भी इस अन्तिम जन्म की बात है।
  • गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए अपने को आत्मा समझो।
    • आत्मा ही सुनती है, आत्मा ही यह बनी है।
    • आत्मा ही जन्म-जन्मान्तर भिन्न-भिन्न ड्रेस पहनती आई है।
    • अब हम आत्माओं को वापिस जाना है।
    • बाप से योग लगाना है।
      • मूल बात है यह।
    • बाप कहते हैं मैं आत्माओं से बात करता हूँ।
    • आत्मा भ्रकुटी के बीच रहती है।
    • इन आरगन्स द्वारा सुनती है।
    • आत्मा इनमें नहीं होती तो शरीर मुर्दा बन जाता।
    • बाप कितना वण्डरफुल ज्ञान आकर देते हैं।
    • परमात्मा बिगर तो यह बातें कोई समझा न सके।
      • संन्यासी आदि कोई आत्मा को थोड़ेही देखते हैं।
  • वह तो आत्मा को परमात्मा समझते हैं।
    • दूसरा फिर कहते आत्मा में लेप-छेप नहीं लगता है।
    • शरीर को धोने गंगा में जाते हैं।
    • यह नहीं समझते आत्मा ही पतित बनती है।
    • आत्मा ही सब कुछ करती है।
    • बाप समझाते रहते हैं, यह मत समझो हम फलाना हूँ, यह फलाना है...।
      • नहीं, सब आत्मायें हैं।
    • जाति-पाति का कोई भेद नहीं रहना चाहिए।
    • अपने को आत्मा समझो।
      • गवर्मेन्ट कोई धर्म को नहीं मानती।
        • यह सब धर्म तो देह के हैं।
    • परन्तु सब आत्माओं का बाप तो एक ही है।
      • देखना भी आत्मा को है।
      • सभी आत्माओं का स्वधर्म शान्त है।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) जो बात काम की नहीं है, उसे एक कान से सुन दूसरे से निकाल देना है, हियर नो ईविल...... बाप जो शिक्षायें देता है उसे धारण करना है।
  • 2) कोई भी हद की तमन्नायें नहीं रखनी है। आंखों की बड़ी सम्भाल रखनी है।
    • क्रिमिनल दृष्टि न जाए।
    • कोई भी कर्मेन्द्रिय चलायमान न हो। खुशी से भरपूर रहना है।
  • वरदान:-
  • अटेन्शन रूपी घृत द्वारा आत्मिक स्वरूप के सितारे की चमक को बढ़ाने वाले आकर्षण मूर्त भव
  • जब बाप द्वारा, नॉलेज द्वारा आत्मिक स्वरूप का सितारा चमक गया तो बुझ नहीं सकता, लेकिन चमक की परसेन्टेज कम और ज्यादा हो सकती है।
  • यह सितारा सदा चमकता हुआ सबको आकर्षित तब करेगा जब रोज़ अमृतवेले अटेन्शन रूपी घृत डालते रहेंगे।
  • जैसे दीपक में घृत डालते हैं तो वह एकरस जलता है।
  • ऐसे सम्पूर्ण अटेन्शन देना अर्थात् बाप के सर्व गुण वा शक्तियों को स्वयं में धारण करना।
  • इसी अटेन्शन से आकर्षण मूर्त बन जायेंगे।
  • स्लोगन:-
  • बेहद की वैराग्यवृत्ति द्वारा साधना के बीज को प्रत्यक्ष करो।