मीठे बच्चे - अपनी तकदीर ऊंच बनानी है तो कोई से भी बात करते, देखते बुद्धि
का योग एक बाप से लगाओ
प्रश्नः-
नई दुनिया की स्थापना के निमित्त बनने वाले बच्चों को बाप का
कौन सा डायरेक्शन मिला हुआ है?
उत्तर:-
बच्चे, तुम्हारा इस पुरानी दुनिया से कोई कनेक्शन नहीं है।
अपनी
दिल इस पुरानी दुनिया से मत लगाओ।
जांच करो हम श्रीमत के बरखिलाफ कर्म
तो नहीं करते हैं?
रूहानी सर्विस के निमित्त बनते हैं?
गीत:- भोलेनाथ से निराला...
ओम् शान्ति। अब गीत सुनने की कोई जरूरत नहीं रहती।
गीत अक्सर करके
भक्त ही गाते हैं और सुनते हैं।
तुम तो पढ़ाई पढ़ते हो।
यह गीत भी बच्चों के
लिए ही खास निकले हुए हैं।
बच्चे जानते हैं-बाप हमारी तकदीर ऊंच बना रहे हैं।
अब हमको बाप को ही याद करना है और दैवीगुण धारण करने हैं।
अपना
पोतामेल देखना है।
जमा होता है या ना (घाटा) होता रहता है।
हमारे में कोई
खामी तो नहीं है?
अगर खामी है, जिससे हमारी तकदीर में घाटा पड़ जायेगा तो
उसको निकाल देना चाहिए।
इस समय हर एक को अपनी तकदीर ऊंच बनानी है।
तुम समझाते हो हम यह लक्ष्मी-नारायण बन सकते हैं।
अगर सिवाए एक बाप के
और कोई को याद नहीं करेंगे तो।
कोई से बात करते, देखते हुए बुद्धि का योग
वहाँ एक के साथ लगा रहे।
हम आत्माओं को बाप को ही याद करना है।
बाप का
फरमान मिला हुआ है।
सिवाए मेरे और कोई से दिल नहीं लगाओ और दैवीगुण
धारण करो।
बाप समझाते हैं, तुम्हारे अभी 84 जन्म पूरे हुए हैं।
अब फिर तुम
जाकर पहला नम्बर लो राजाई में।
ऐसा न हो राजाई से गिरकर प्रजा में चले
जाओ, प्रजा में भी नीचे चले जाओ।
नहीं, अपनी जांच करते रहो।
यह समझानी
बाप बिगर तो और कोई दे न सके।
बाप को, टीचर को याद करने से डर रहेगा।
ऐसा न हो हमको कोई सजा मिल जाए।
भक्ति में भी समझते हैं पाप कर्म करने
से हम सजा के भागी बन जायेंगे।
बड़े बाबा के डायरेक्शन तो अभी ही मिलते हैं,
जिसको श्रीमत कहते हैं।
बच्चे जानते हैं कि श्रीमत से हम श्रेष्ठ बनते हैं।
अपनी
जांच करनी है।
कहाँ-कहाँ हम श्रीमत के बरखिलाफ तो कुछ करते नहीं हैं?
जो
बात अच्छी न लगे वह करनी नहीं चाहिए।
अच्छे बुरे को तो अब समझते हो,
आगे नहीं समझते थे।
अभी तुम ऐसे कर्म सीखते हो जो फिर जन्म-जन्मान्तर
कर्म अकर्म बन जाते हैं।
इस समय तो सबमें 5 भूत प्रवेश हैं।
अब अच्छी रीति
पुरुषार्थ कर कर्मातीत बनना है।
दैवीगुण भी धारण करने हैं।
समय नाज़ुक होता
जाता है, दुनिया बिगड़ती जाती है।
दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही रहेगी।
इस दुनिया
से तुम्हारा जैसेकि कनेक्शन ही नहीं।
तुम्हारा कनेक्शन है नई दुनिया से, जो
स्थापन हो रही है।
तुम जानते हो हम निमित्त बनते हैं - नई दुनिया स्थापन
करने।
तो जो एम आब्जेक्ट सामने हैं, उन जैसा बनना है।
कोई भी आसुरी गुण
अन्दर न हो।
रूहानी सर्विस में लगे रहने से उन्नति बहुत होती है।
प्रदर्शनी,
म्यूजियम आदि बनाते हैं।
समझते हैं बहुत लोग आयेंगे, उन्हों को बाप का
परिचय देंगे, फिर वह भी बाप को याद करने लग पड़ेंगे।
सारा दिन यही ख्यालात
चलते रहें।
सेन्टर खोल सर्विस को बढायें, यह रत्न सब तुम्हारे पास हैं।
बाप
दैवीगुण भी धारण कराते हैं और खजाना देते हैं।
तुम यहाँ बैठे हो बुद्धि में है
सृष्टि के आदि मध्य अन्त को जानते हैं।
पवित्र भी रहते हैं।
मन्सा-वाचा-कर्मणा
कोई बुरा कर्म न हो, उसकी पूरी जांच करनी होती है।
बाप आये ही हैं पतितों को
पावन बनाने।
उसके लिए युक्तियाँ भी बतलाते रहते हैं।
उसमें ही रमण करते
रहना है।
सेन्टर खोल बहुतों को निमंत्रण देना है।
प्रेम से बैठ समझाना है।
यह
पुरानी दुनिया खत्म होनी है।
पहले तो नई दुनिया की स्थापना बहुत जरूरी है।
स्थापना होती है संगम पर।
यह भी मनुष्यों को पता नही है कि अब संगमयुग
है।
यह भी समझाना है नई दुनिया की स्थापना, पुरानी दुनिया का विनाश उसका
अब संगम है।
नई दुनिया की स्थापना श्रीमत पर हो रही है।
सिवाए बाप के और
कोई नई दुनिया के स्थापना की मत देंगे नहीं।
बाप ही आकर तुम बच्चों से नई
दुनिया का उद्घाटन कराते हैं।
अकेले तो नहीं करेंगे।
सब बच्चों की मदद लेते हैं।
वो लोग उद्घाटन करने लिए मदद नहीं लेंगे।
आकर कैंची से रिबन काटेंगे।
यहाँ
तो वह बात नहीं।
इसमें तुम ब्राहमण कुल भूषण मददगार बनते हो।
सब मनुष्य
मात्र रास्ता बिल्कुल मूंझे हुए हैं।
पतित दुनिया को पावन बनाना यह बाप का ही
काम है।
बाप ही नई दुनिया की स्थापना करते हैं, जिसके लिए रूहानी नॉलेज देते
हैं।
तुम जानते हो बाप के पास नई दुनिया के स्थापना करने की युक्ति है।
भक्ति
मार्ग में उनको पुकारते हैं ना - हे पतित-पावन आओ।
भल शिव की पूजा भी
करते रहते हैं।
परन्तु यह जानते नहीं हैं कि पतित-पावन कौन है।
दु:ख में याद
तो करते हैं हे भगवान, हे राम।
राम भी निराकार को ही कहते हैं।
निराकार को ही
ऊंच भगवान कहते हैं।
परन्तु मनुष्य बहुत मूंझे हुए हैं।
बाप ने आकर निकाला
है।
जैसे फागी में मनुष्य मूंझ जाते हैं ना।
यह तो है बेहद की बात।
बहुत बड़े
जंगल में आकर पड़े हैं।
तुमको भी बाप ने फील कराया है हम किस जंगल में पड़े
थे।
यह भी अब पता पड़ा है-यह पुरानी दुनिया है।
इनका भी अन्त है।
मनुष्य तो
बिल्कुल रास्ता जानते ही नहीं।
बाप को पुकारते रहते हैं।
तुम अभी पुकारते नहीं
हो।
अभी तुम बच्चे ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो।
सो भी नम्बरवार।
जो जानते हैं वह बहुत खुशी में रहते हैं।
औरों को भी रास्ता बताने में तत्पर रहते
हैं।
बाप तो कहते रहते हैं बड़े-बडे सेन्टर खोलो।
चित्र बड़े-बड़े होंगे तो मनुष्य
सहज समझ सकेंगे।
बच्चों के लिए मैप्स(चित्र) जरूर चाहिए।
बताना चाहिए - यह
भी स्कूल है।
यहाँ के यह वन्डरफुल मैप्स हैं, उन स्कूलों के नक्शे में तो होती हैं
हद की बातें।
यह हैं बेहद की बातें।
यह भी पाठशाला है, जिसमें बाप हमको सृष्टि
के आदि मध्य अन्त का राज़ बताए और लायक बनाते हैं।
मनुष्य से देवता बनने
की यह ईश्वरीय पाठशाला है।
लिखा हुआ ही है ईश्वरीय विश्व विद्यालय।
यह है
रूहानी पाठशाला।
सिर्फ ईश्वरीय विश्व विद्यालय से भी मनुष्य समझ नहीं सकते
हैं।
युनिवर्सिटी भी लिखना चाहिए।
ऐसा ईश्वरीय विश्व विद्यालय कोई है नहीं।
बाबा ने कार्डस देखे थे।
कुछ अक्षर भूले हुए थे।
बाबा ने कितना बार कहा है
प्रजापिता अक्षर जरूर डालो फिर भी बच्चे भूल जाते हैं।
लिखत पूरी होनी चाहिए।
जो मनुष्यों को मालूम पड़े कि यह ईश्वरीय बड़ा कॉलेज है।
बच्चे जो सर्विस पर
उपस्थित हैं, जो अच्छे सर्विसएबुल हैं, उन्हों को भी दिल में रहता है हम फलाने
सेन्टर को जाकर उठायें, ठण्डा पड़ गया है, उनको जगायें क्योंकि माया ऐसी है
जो घड़ी-घड़ी सुला देती है।
मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ, यह भी भूल जाते हैं।
माया
बहुत आपोजीशन करती है।
तुम युद्ध के मैदान में हो।
माया माथा मूड कर उल्टे
तरफ न ले जाए, उसकी बड़ी सम्भाल करनी है।
माया के तूफान तो बहुत सभी
को लगते हैं।
छोटे अथवा बड़े सब युद्ध के मैदान में हो।
पहलवान को माया के
तूफान हिला न सकें।
वह अवस्था भी आने वाली है।
बाप समझाते हैं - समय बड़ा खराब है, हालतें बिगड़ी हुई हैं।
राजाई तो सब खत्म
हो जानी है।
सबको उतार देंगे।
फिर प्रजा का प्रजा पर राज्य सारी दुनिया में हो
जायेगा।
तुम अपनी नई राजाई स्थापन करते हो तो यहाँ राजाई का नाम भी
खत्म हो जायेगा।
पंचायती राज्य होता जाता है।
जब प्रजा का राज्य हो तब तो
आपस में लड़े झगड़ें।
स्वराज्य अथवा रामराज्य तो वास्तव में है नहीं इसलिए
सारी दुनिया में झगड़े ही होते रहते हैं।
आजकल तो हंगामा सब जगह है।
तुम
जानते हो - हम अपनी राजाई स्थापन कर रहे हैं।
तुम सबको रास्ता बताते हो।
बाप कहते हैं - मामेकम् याद करो।
बाप की याद में रह औरों को भी यह
समझाना है - देही-अभिमानी बनो।
देह अभिमान छोड़ो।
ऐसे नहीं कि तुम्हारे में
सब देही-अभिमानी बने हैं।
नहीं, बनने का है।
तुम पुरुषार्थ करते हो औरों को भी
कराते हो।
याद करने की कोशिश करते हैं फिर भूल जाते हैं।
पुरुषार्थ यही करना
है।
मूल बात है बाप को याद करना।
बच्चों को कितना समझाते हैं।
नॉलेज बहुत
अच्छी मिलती है।
मूल बात है पवित्र रहना।
बाप पावन बनाने आये हैं तो फिर
पतित नहीं बनना है, याद से ही तुम सतोप्रधान बन जायेंगे।
यह भूलना नहीं है।
माया इसमें ही विघ्न डाल भुला देती है।
रात-दिन यह तात रहे हम बाप को याद
कर सतोप्रधान बनें।
याद ऐसी पक्की होनी चाहिए जो पिछाड़ी में सिवाए एक बाप
के और कोई भी याद न पड़े।
प्रदर्शनी में भी पहले-पहले यह समझाना चाहिए यह
है सबका बाप ऊंच ते ऊंच भगवान।
सबका बाप पतित-पावन सद्गति दाता यह
है।
यही स्वर्ग का रचयिता है।
अभी तुम बच्चे जानते हो बाप आते ही हैं संगमयुग पर।
बाप ही राजयोग
सिखलाते हैं।
पतित-पावन एक के सिवाए दूसरा कोई हो नही सकता।
पहले-पहले
तो बाप का परिचय देना पड़ता है।
अब एक-एक को ऐसे एक चित्र पर बैठ
समझाओ तो इतनी भीड़ को कैसे समझा सकेंगे।
परन्तु पहले-पहले बाप के चित्र
पर समझाना मुख्य है।
समझाना पड़ता है - भक्ति है अथाह, ज्ञान तो है एक।
बाप कितनी युक्तियाँ बच्चों को बतलाते रहते हैं।
पतित-पावन एक बाप है।
रास्ता
भी बताते हैं।
गीता कब सुनाई?
यह भी किसको पता नहीं।
द्वापर युग को कोई
संगमयुग नहीं कहा जाता।
युगे-युगे तो बाप नहीं आते हैं।
मनुष्य तो बिल्कुल
मूंझ पड़े हैं।
सारा दिन यही ख्यालात चलते हैं, कैसे-कैसे समझाया जाए।
बाप को
डायरेक्शन देने पड़ते हैं।
टेप पर भी मुरली पूरी सुन सकते हैं।
कोई-कोई कहते हैं
टेप द्वारा हम सुन रहे हैं, क्यों न डायरेक्ट जाकर सुनें, इसलिए सम्मुख आते हैं।
बच्चों को बहुत सर्विस करनी है।
रास्ता बताना है।
प्रदर्शनी में आते हैं।
अच्छा-अच्छा भी कहते हैं फिर बाहर जाने से माया के वायुमण्डल में सब उड़
जाता है।
सिमरण नहीं करते हैं।
उनकी फिर पीठ करनी चाहिए।
बाहर जाने से
माया खींच लेती है।
गोरखधन्धों में लग जाते हैं इसलिए मधुबन का गायन है।
तुमको तो अभी समझ मिली है।
तुम वहाँ भी जाकर समझायेंगे।
गीता का
भगवान कौन है?
आगे तो तुम भी ऐसे ही जाकर माथा झुकाते थे।
अभी तो तुम
बिल्कुल बदल गये हो।
भक्ति छोड़ दी है।
तुम अभी मनुष्य से देवता बन रहे हो।
बुद्धि में सारी नॉलेज है।
और क्या जाने प्रजापिता ब्रह्माकुमार, कुमारियाँ कौन हैं।
तुम समझाते हो, वास्तव में तुम भी प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारी हो।
इस समय
ही ब्रह्मा द्वारा स्थापना हो रही है।
ब्राह्मण कुल भी जरूर चाहिए ना।
संगम पर
ही ब्राह्मण कुल होता है।
आगे ब्राह्मणों की चोटी मशहूर थी।
चोटी से या जनेऊ
से पहचानते थे कि यह हिन्दू है।
अब तो वह निशानियाँ भी चली गई हैं।
अभी
तुम जानते हो हम ब्राह्मण हैं।
ब्राह्मण बनने के बाद फिर देवता बन सकते हैं।
ब्राह्मणों ने ही नई दुनिया स्थापन की है।
योगबल से सतोप्रधान बन रहे हैं।
अपनी जाँच रखनी है।
कोई भी आसुरी गुण न हो।
लूनपानी नहीं बनना है।
यह
तो यज्ञ है ना।
यज्ञ से सबकी सम्भाल होती रहती है।
यज्ञ में सम्भालने वाले
ट्रस्टी भी रहते हैं।
यज्ञ का मालिक तो है शिवबाबा।
यह ब्रह्मा भी ट्रस्टी है।
यज्ञ
की सम्भाल करनी पड़ती है।
तुम बच्चों को जो चाहिए यज्ञ से लेना है।
और कोई
से लेकर पहनेंगे तो वह याद आता रहेगा।
इसमें बुद्धि की लाइन बड़ी क्लीयर
चाहिए।
अब तो वापिस जाना है।
समय बहुत थोड़ा है इसलिए याद की यात्रा
पक्की रहे।
यही पुरुषार्थ करना है।
अच्छा!
मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी उन्नति के लिए रूहानी सर्विस में तत्पर रहना है।
जो भी ज्ञान रत्न
मिले हैं उन्हें धारण करके दूसरों को कराना है।
2) अपनी जांच करनी है - हमारे में कोई आसुरी गुण तो नहीं हैं?
हम ट्रस्टी
बनकर रहते हैं?
कभी लून-पानी तो नहीं बनते हैं?
बुद्धि की लाइन क्लीयर है?
वरदान:-
कहना, सोचना और करना - इन तीनों को समान बनाने वाले
ज्ञानी तू आत्मा भव
अभी वानप्रस्थ अवस्था में जाने का समय समीप आ रहा है - इसलिए
कमजोरियों के मेरे पन को वा व्यर्थ के खेल को समाप्त कर कहना, सोचना और
करना समान बनाओ तब कहेंगे ज्ञान स्वरूप।
जो ऐसे ज्ञान स्वरूप ज्ञानी तू
आत्मायें हैं उनका हर कर्म, संस्कार, गुण और कर्तव्य समर्थ बाप के समान
होगा।
वे कभी व्यर्थ के विचित्र खेल नहीं खेल सकते।
सदा परमात्म मिलन के
खेल में बिजी रहेंगे।
एक बाप से मिलन मनायेंगे और औरों को बाप समान
बनायेंगे।
स्लोगन:-
सेवाओं का उमंग छोटी-छोटी बीमारियों को मर्ज कर देता है,
इसलिए सेवा में सदा बिजी रहो।