15-12-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - अब घर जाना है इसलिए देह सहित देह के सब सम्बन्धों को भूल मामेकम् याद करो और पावन बनो

प्रश्नः-

आत्मा के संबंध में कौन सी एक महीन बात महीन बुद्धि वाले ही समझ सकते हैं?

उत्तर:-

आत्मा पर सुई की तरह धीरे-धीरे जंक (कट) चढ़ती गई है।

वह याद में रहने से उतरती जायेगी।

जब जंक उतरे अर्थात् आत्मा तमोप्रधान से सतोप्रधान बनें तब बाप की खींच हो और वह बाप के साथ वापस जा सके।

2- जितना जंक उतरती जायेगी उतना दूसरों को समझाने में खीचेंगे।

यह बातें बड़ी महीन हैं, जो मोटी बुद्धि वाले समझ नहीं सकते।

 

  • ओम् शान्ति। भगवानुवाच। अब बुद्धि में कौन आया?
      • वह जो गीता पाठशालायें आदि हैं उन्हों को तो भगवानुवाच कहने से श्रीकृष्ण ही बुद्धि में आयेगा।
    • यहाँ तुम बच्चों को तो ऊंच ते ऊंच बाप याद आयेगा।
  • इस समय यह है संगमयुग, पुरुषोत्तम बनने का।
    • बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं कि देह सहित देह के सब सम्बन्ध तोड़ अपने को आत्मा समझो।
    • यह बहुत जरूरी बात है, जो इस संगमयुग पर बाप समझाते हैं।
    • आत्मा ही पतित बनी है।
    • फिर आत्मा को पावन बन घर जाना है।
  • पतित-पावन को याद करते आये हैं, परन्तु जानते कुछ नहीं।
    • भारतवासी बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं।
    • भक्ति है रात, ज्ञान है दिन।
    • रात में अन्धियारा, दिन में रोशनी होती है।
    • दिन है सतयुग, रात है कलियुग।
    • अभी तुम कलियुग में हो, सतयुग में जाना है।
    • पावन दुनिया में पतित का क्वेश्चन ही नहीं।
    • जब पतित होते हैं तो पावन होने का क्वेश्चन उठता है।
    • जब पावन हैं तो पतित दुनिया याद भी नहीं।
    • अभी पतित दुनिया है तो पावन दुनिया याद पड़ती है।
    • पतित दुनिया पिछाड़ी का भाग है, पावन दुनिया है पहला भाग।
    • वहाँ कोई पतित हो न सके।
    • जो पावन थे फिर पतित बने हैं।
    • 84 जन्म भी उन्हों के समझाये जाते हैं।
    • यह बड़ी गुह्य बातें समझने की हैं।
    • आधा-कल्प भक्ति की है, वह इतना जल्दी छूट न सके।
    • मनुष्य बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं, कोटों में कोई ही निकलते हैं, मुश्किल कोई की बुद्धि में बैठेगा।
  • मुख्य बात तो बाप कहते हैं देह के सब सम्बन्ध भूल मामेकम् याद करो।
    • आत्मा ही पतित बनी है, उनको पवित्र बनना है।
    • यह समझानी भी बाप ही देते हैं क्योंकि यह बाप प्रिसिंपल, सोनार, डॉक्टर, बैरिस्टर सब कुछ है।
      • यह नाम वहाँ रहेंगे नहीं।
      • वहाँ यह पढ़ाई भी नहीं रहेगी।
      • यहाँ पढ़ते हैं नौकरी करने के लिए।
      • आगे फीमेल इतना पढ़ती नहीं थी।
        • यह सब बाद में सीखी हैं।
        • पति मर जाए तो सम्भाल कौन करे?
        • इसलिए फीमेल भी सब सीखती रहती हैं।
          • सतयुग में तो ऐसी बातें होती नहीं जो चिंतन करना पड़े।
          • यहाँ मनुष्य धन आदि इकट्ठा करते हैं, ऐसे समय के लिए।
          • वहाँ तो ऐसे ख्यालात ही नहीं जो चिंता करनी पड़े।
  • बाप तुम बच्चों को कितना धनवान बना देते हैं।
    • स्वर्ग में बहुत खज़ाना रहता है।
    • हीरे-जवाहरातों की खानियाँ सब भरपूर हो जाती हैं।
    • यहाँ बंजर जमीन हो जाती है तो वह ताकत नहीं होती।
    • वहाँ के फूलों और यहाँ के फूलों आदि में रात-दिन का फर्क है।
    • यहाँ तो सब चीज़ों से ताकत ही निकल गई है।
    • भल कितना भी अमेरिका आदि से बीज ले आते हैं परन्तु ताकत निकलती जाती है।
      • धरनी ही ऐसी है, जिसमें जास्ती मेहनत करनी पड़ती है।
    • वहाँ तो हर चीज़ सतोप्रधान होती है।
    • प्रकृति भी सतोप्रधान तो सब कुछ सतोप्रधान होता है।
    • यहाँ तो सब चीजें तमोप्रधान हैं।
    • कोई चीज़ में ताकत नहीं रही है।
      • यह फर्क भी तुम समझते हो।
  • जब सतोप्रधान चीज़ें देखते हो, वह तो ध्यान में ही देखते हो।
    • वहाँ के फूल आदि कितने अच्छे होते हैं।
    • हो सकता है - वहाँ का अनाज आदि सब तुमको देखने में आये।
      • बुद्धि से समझ सकते हैं।
    • वहाँ की हर चीज़ में कितनी ताकत रहती है।
      • नई दुनिया किसकी बुद्धि में आती ही नहीं।
  • इस पुरानी दुनिया की तो बात मत पूछो।
    • गपोड़ा भी बहुत लम्बा-चौड़ा लगाते हैं तो मनुष्य बिल्कुल अन्धियारे में सो गये हैं।
      • तुम बताते हो बाकी थोड़ा समय है तो तुम्हारे पर कोई हंसी भी करते हैं।
    • रीयल्टी में तो वह समझते हैं जो अपने को ब्राह्मण समझते हैं।
  • यह नई भाषा, रूहानी पढ़ाई है ना।
    • जब तक स्प्रीचुअल फादर न आये, कोई समझ न सके।
    • स्प्रीचुअल फादर को तुम बच्चे जानते हो।
  • वो लोग जाकर योग आदि सिखाते हैं, परन्तु उन्हों को सिखलाया किसने?
    • ऐसे तो नहीं कहेंगे स्प्रीचुअल फादर ने सिखाया।
    • बाप तो सिखलाते ही रूहानी बच्चों को हैं।
    • तुम संगमयुगी ब्राह्मण ही समझते हो।
  • ब्राह्मण बनेंगे भी वह जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म के होंगे।
    • ब्राह्मण तुम कितने थोड़े हो।
    • दुनिया में तो किस्म-किस्म की अथाह जातियाँ हैं।
      • एक किताब जरूर होगा जिससे पता लगेगा कि दुनिया में कितने धर्म, कितनी भाषायें हैं।
    • तुम जानते हो यह सब नहीं रहेंगे।
  • सतयुग में तो एक धर्म, एक भाषा ही थी।
    • सृष्टि चक्र को तुमने जाना है।
    • तो भाषाओं को भी जान सकते हो कि यह सब रहेंगे नहीं।
    • इतने सब शान्तिधाम चले जायेंगे।
    • यह सृष्टि का ज्ञान अभी तुम बच्चों को मिला है।
      • तुम मनुष्यों को समझाते हो फिर भी समझते थोड़ेही हैं।
  • कोई बड़े आदमियों से ओपनिंग भी इसलिए कराते हैं क्योंकि नामीग्रामी हैं।
    • आवाज़ फैलेगा वाह! प्रेजीडेंट, प्राइम मिनिस्टर ने ओपनिंग की।
    • यह बाबा जाये तो मनुष्य थोड़ेही समझेंगे परमपिता परमात्मा ने ओपनिंग की, मानेंगे नहीं।
      • कोई बड़ा आदमी कमिश्नर आदि आयेगा तो उनके पीछे और भी भागेंगे।
      • इनके पीछे तो कोई नहीं भागेगा।
  • अभी तुम ब्राह्मण बच्चे तो बहुत थोड़े हो।
    • जब मैजारिटी होंगे तब समझेंगे।
    • अभी अगर समझ जायें तो बाप के पास भागें।
    • एक ने बच्ची को कहा था कि जिसने तुमको यह सिखाया हम डायरेक्ट क्यों न उनके पास जायें।
    • परन्तु सुई पर कट लगी हुई है तो चुम्बक की कशिश कैसे हो?
    • कट जब पूरी निकले तब चुम्बक को पकड़ सके।
    • सुई का एक कोना भी कट चढ़ी हुई होगी तो उतना खीचेंगी नहीं।
    • सारी कट उतर जाये वह तो पिछाड़ी में जब ऐसे बनेंगे फिर तो बाप के साथ वापिस जायेंगे।
    • अभी तो फुरना (फा) है कि हम तमोप्रधान हैं, कट चढ़ी हुई है।
    • जितना याद करेंगे उतना कट साफ होती जायेगी।
    • आहिस्ते-आहिस्ते कट निकलती जायेगी।
    • कट चढ़ी भी आहिस्ते-आहिस्ते है ना, फिर उतरेगी भी ऐसे।
    • जैसे कट चढ़ी है वैसे साफ होनी है तो उसके लिए बाप को याद भी करना है।
    • याद से कोई की जास्ती कट उतरी है, कोई की कम।
    • जितना जास्ती कट उतरी हुई होगी उतना वह दूसरे को समझाने में खीचेंगे।
  • यह बड़ी महीन बातें हैं।
    • मोटी बुद्धि वाले समझ न सकें।
    • तुम जानते हो राजाई स्थापन हो रही है।
    • समझाने के लिए भी दिन-प्रतिदिन युक्तियाँ निकलती रहती हैं।
      • आगे थोड़ेही पता था कि प्रदर्शनियाँ, म्यूज़ियम आदि बनायेंगे।
      • आगे चल हो सकता है और कुछ निकले।
    • अभी टाइम तो पड़ा है, स्थापना होनी है।
    • हार्टफेल भी नहीं होना है।
  • कर्मेन्द्रियों को वश नहीं कर सकते हैं तो गिर पड़ते हैं।
    • विकार में गये तो फिर सुई पर बहुत कट लग जायेगी।
    • विकार से जास्ती कट चढ़ती जाती है।
    • सतयुग-त्रेता में बिल्कुल थोड़ी फिर आधाकल्प में जल्दी-जल्दी कट चढ़ती है।
    • नीचे गिर पड़ते हैं इसलिए निर्विकारी और विकारी गाया जाता है।
  • वाइसलेस देवताओं की निशानी है ना।
    • बाप कहते हैं देवी-देवता धर्म प्राय: लोप हो गया है।
    • निशानियाँ तो हैं ना।
    • सबसे अच्छी निशानी यह चित्र हैं।
    • तुम यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र उठाए परिक्रमा दे सकते हो क्योंकि तुम यह बनते हो ना।
  • रावण राज्य का विनाश, राम राज्य की स्थापना होती है।
    • यह राम राज्य, यह रावण राज्य, यह है संगम।
  • ढेर की ढेर प्वाइंट्स हैं।
    • डॉक्टर लोगों की बुद्धि में कितनी दवाइयाँ याद रहती हैं।
    • बैरिस्टर की बुद्धि में भी अनेक प्रकार की प्वाइंट्स हैं।
    • ढेर टॉपिक्स का तो बहुत अच्छा किताब बन सकता है।
  • फिर जब भाषण पर जाओ तो प्वाइंट्स नज़र से निकालो।
      • शुरूड बुद्धि वाले झट देख लेंगे।
    • पहले तो लिखना चाहिए हम ऐसे-ऐसे समझायेंगे।
    • भाषण करने के बाद भी याद आता है ना।
      • ऐसे समझाते थे तो अच्छा था।
    • यह प्वाइंट्स औरों को समझाने से बुद्धि में बैठेगी।
    • टॉपिक्स की लिस्ट बनी हुई हो।
      • फिर एक टॉपिक उठाए अन्दर में भाषण करना चाहिए या लिखना चाहिए।
      • फिर देखना चाहिए सब प्वाइंट्स लिखी हैं?
      • जितना माथा मारेंगे उतना अच्छा है।
  • बाप तो समझते हैं ना यह अच्छा सर्जन है, इनकी बुद्धि में बहुत प्वाइंट्स हैं।
    • भरपूर हो जायेंगे तो सर्विस बिगर मज़ा नहीं आयेगा।
    • तुम प्रदर्शनी करते हो कहाँ से 2-4, कहाँ से 6-8 निकलते हैं।
    • कहाँ तो एक भी नहीं निकलता है।
    • हज़ारों ने देखा, निकले कितने थोड़े इसलिए अभी बड़े-बड़े चित्र भी बनाते रहते हैं।
    • तुम होशियार होते जाते हो।
    • बड़े-बड़े आदमियों का क्या हाल है, वह भी तुम देखते हो।
    • बाबा ने समझाया हैं जाँच करनी है किसको यह नॉलेज देनी चाहिए।
    • रग देखनी चाहिए जो मेरे भक्त हों।
  • गीता वालों को मुख्य बात एक ही समझाओ - भगवान ऊंच ते ऊंच को ही कहा जाता है।
    • वह है निराकार।
    • कोई भी देहधारी मनुष्यों को भगवान नहीं कह सकते।
    • तुम बच्चों को अभी सारी समझ आई है।
  • संन्यासी भी घर का संन्यास कर भागते हैं।

    • कोई ब्रह्मचारी ही चले जाते हैं।
    • फिर दूसरे जन्म में भी ऐसे होता है।
    • जन्म तो जरूर माता के गर्भ से ही लेते हैं।
  • जब तक शादी नहीं की है तो बंधनमुक्त हैं, इतने कोई सम्बन्धी आदि याद नहीं आयेंगे।
    • शादी की तो फिर सम्बन्ध याद आयेंगे।
    • टाइम लगता है, जल्दी बन्धनमुक्त नहीं होते।
    • अपनी जीवन कहानी का मालूम तो सबको रहता है।
    • संन्यासी समझते होंगे पहले हम गृहस्थी थे फिर संन्यास किया।
  • तुम्हारा है बड़ा संन्यास इसलिए मेहनत होती है।
    • वह संन्यासी भभूत लगाते, बाल उतारते, वेष बदलते।
    • तुम्हें तो ऐसा करने की दरकार नहीं।
    • यहाँ तो ड्रेस बदलने की भी बात नहीं।
    • तुम सफेद साड़ी नहीं पहनो तो भी हर्जा नहीं।
    • यह तो बुद्धि का ज्ञान है।
    • हम आत्मा हैं, बाप को याद करना है इससे ही कट निकलेगी और हम सतोप्रधान बन जायेंगे।
  • वापिस तो सबको जाना है।
    • कोई योगबल से पावन बन जायेंगे, कोई सज़ा खाकर जायेंगे।
    • तुम बच्चों को जंक उतारने की ही मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए इनको योग अग्नि भी कहते हैं।
      • अग्नि से पाप भस्म होते हैं।
      • तुम पवित्र हो जायेंगे।
    • काम चिता को भी अग्नि कहते हैं।
    • काम अग्नि में जलकर काले बन गये हैं।
    • अब बाप कहते हैं गोरा बनो।
  • यह बातें तुम ब्राह्मणों के सिवाए कोई की बुद्धि में बैठ नहीं सकती।
    • यह बातें ही न्यारी हैं।
    • तुमको कहते हैं यह तो शास्त्रों को भी नहीं मानते।
      • नास्तिक बन पड़े हैं।
    • बोलो, शास्त्र तो हम पढ़ते थे फिर बाप ने ज्ञान दिया है।
    • ज्ञान से सद्गति होती है।
    • भगवानुवाच, वेद-उपनिषद आदि पढ़ने, दान-पुण्य आदि करने से कोई भी मेरे को प्राप्त नहीं करते।
    • मेरे द्वारा ही मेरे को प्राप्त कर सकते हैं।
    • बाप ही आकर लायक बनाते हैं।
  • आत्मा पर जंक चढ़ जाती है तब बाप को बुलाते हैं कि आकर पावन बनाओ।
    • आत्मा जो तमोप्रधान बनी है उसे सतोप्रधान बनना है, तमोप्रधान से तमो रजो सतो फिर सतोप्रधान बनना है।
    • अगर बीच में गड़बड़ हुई तो कट चढ़ जायेगी।
  • बाप हमको इतना ऊंच बनाते हैं तो वह खुशी रहनी चाहिए ना।
    • विलायत में पढ़ने के लिए खुशी से जाते हैं ना।
  • अभी तुम कितना समझदार बनते हो।
    • कलियुग में कितना तमोप्रधान बेसमझ बन पड़ते हैं।
  • जितना प्यार करो उतना और ही सामना करते।
    • तुम बच्चे समझते हो कि हमारी राजधानी स्थापन होती है।
    • जो अच्छी रीति पढ़ेंगे, याद में रहेंगे वह अच्छा पद पायेंगे।
    • सैपलिंग भारत से ही लगता है।
    • दिन-प्रतिदिन अखबार आदि से तुम्हारा नाम बाला होता जायेगा।
    • अखबारें तो सब तरफ जाती हैं।
    • वही अखबार वाला कभी देखो तो अच्छा डालेगा, कभी खराब क्योंकि वह भी सुनी-सुनाई पर चलते हैं ना।
      • जिसने जो सुनाया वह लिख देंगे।
  • सुनी-सुनाई पर बहुत चलते हैं, उसको परमत कहा जाता है।
    • परमत आसुरी मत हो गई।
    • बाप की है श्रीमत।
    • कोई ने उल्टी बात बताई तो बस आना ही छोड़ देते हैं।
    • जो सर्विस पर रहते हैं, उन्हों को सब मालूम रहता है।
  • यहाँ तुम जो भी सेवा करते हो, यह है तुम्हारी नम्बरवन सेवा।

    • यहाँ तुम सेवा करते हो, वहाँ फल मिलता है।
    • कर्तव्य तो यहाँ बाप के साथ करते हो ना।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) आत्मा रूपी सुई पर जंक चढ़ी है, उसे योगबल से उतार सतोप्रधान बनने की मेहनत करनी है।
    • कभी भी सुनी-सुनाई बातों पर चलकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है।
  • 2) बुद्धि को ज्ञान की प्वाइंट्स से भरपूर रख सर्विस करनी है।
    • रग देखकर ज्ञान देना है।
    • बहुत शुरूड (तीक्ष्ण) बुद्धि बनना है।
  • वरदान:-
  • आदि और अनादि स्वरूप की स्मृति द्वारा अपने निजी स्वधर्म को अपनाने वाले पवित्र और योगी भव
  • ब्राह्मणों का निजी स्वधर्म पवित्रता है, अपवित्रता परधर्म है। जिस पवित्रता को अपनाना लोग मुश्किल समझते हैं वह आप बच्चों के लिए अति सहज है क्योंकि स्मृति आई कि हमारा वास्तविक आत्म स्वरूप सदा पवित्र है। अनादि स्वरूप पवित्र आत्मा है और आदि स्वरूप पवित्र देवता है। अभी का अन्तिम जन्म भी पवित्र ब्राह्मण जीवन है इसलिए पवित्रता ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनालिटी है। जो पवित्र है वही योगी है।
  • स्लोगन:-
  • सहजयोगी कहकर अलबेलापन नहीं लाओ, शक्ति रूप बनो।