मीठे बच्चे - पापों से हल्का होने के लिए व़फादार, ऑनेस्ट बन अपनी कर्म
कहानी बाप को लिखकर दो तो क्षमा हो जायेगी
प्रश्नः-
संगमयुग पर तुम बच्चे कौन-सा बीज नहीं बो सकते हो?
उत्तर:-
देह-अभिमान का।
इस बीज से सब विकारों के झाड़ निकल पड़ते
हैं।
इस समय सारी दुनिया में 5 विकारों के झाड़ निकले हुए हैं।
सब काम-क्रोध
के बीज बोते रहते हैं।
तुम्हें बाप का डायरेक्शन है बच्चे योगबल से पावन बनो।
यह बीज बोना बन्द करो।
गीत:- तुम्हें पा के हमने जहाँ पा लिया है ...
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना!
अभी तो थोड़े हैं, अनेकानेक
बच्चे हो जायेंगे।
इस समय थोड़े प्रैक्टिकल में बने हो फिर भी इस प्रजापिता
ब्रह्मा को जानते तो सब हैं ना।
नाम ही है प्रजापिता ब्रह्मा।
कितनी ढेर प्रजा है।
सब धर्म वाले इनको मानेंगे जरूर।
उन द्वारा ही मनुष्य मात्र की रचना हुई है
ना।
बाबा ने समझाया है लौकिक बाप भी हद के ब्रह्मा हैं क्योंकि उनका भी
सिजरा बनता है ना।
सरनेम से सिजरा चलता है।
वह होते हैं हद के, यह है बेहद
का बाप।
इनका नाम ही है प्रजापिता।
वो लौकिक बाप तो लिमिटेड प्रजा रचते हैं।
कोई नहीं भी रचते।
यह तो जरूर रचेंगे।
ऐसे कोई कहेंगे कि प्रजापिता ब्रह्मा को
सन्तान नहीं है?
इनकी सन्तान तो सारी दुनिया है।
पहले-पहले है ही प्रजापिता
ब्रह्मा। मुसलमान भी आदम बीबी जो कहते हैं सो जरूर किसको तो कहते होंगे
ना।
एडम ईव, आदि देव, आदि देवी यह प्रजापिता ब्रह्मा के लिए ही कहेंगे।
जो
भी धर्म वाले हैं सब इनको मानेंगे।
बरोबर एक है हद का बाप, दूसरा है बेहद का।
यह बेहद का बाप है बेहद का सुख देने वाला।
तुम पुरूषार्थ भी करते हो बेहद
स्वर्ग के सुख के लिए।
यहाँ बेहद के बाप से बेहद के सुख का वर्सा पाने आये हो।
स्वर्ग में बेहद का सुख, नर्क में बेहद का दु:ख भी कह सकते हैं।
दु:ख भी बहुत
आने वाले हैं।
हाय-हाय करते रहेंगे।
बाप ने तुमको सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त
का राज़ समझाया है।
तुम बच्चे सामने बैठे हो और पुरूषार्थ भी करते हो।
यह तो
मात-पिता दोनों हुए ना।
इतने ढेर बच्चे हैं।
बेहद के मात-पिता से कभी कोई
दुश्मनी रखेंगे नहीं।
मात-पिता से कितना सुख मिलता है।
गाते भी हैं तुम
मात-पिता.... यह तो बच्चे ही समझते हैं।
दूसरे धर्म वाले सब फादर को ही बुलाते
हैं।
मात-पिता नहीं कहेंगे।
सिर्फ यहाँ ही गाते हैं तुम मात-पिता हम...... तुम बच्चे
जानते हो हम पढ़कर मनुष्य से देवता, कांटे से फूल बन रहे हैं।
बाप खिवैया भी
है, बागवान भी है।
बाकी तुम ब्राह्मण सब अनेक प्रकार के माली हो।
मुगल
गार्डन का भी माली होता है ना।
उनकी पगार भी कितनी अच्छी होती है।
माली
भी नम्बरवार हैं ना।
कोई-कोई माली कितने अच्छे-अच्छे फूल बनाते हैं।
फूलों में
एक किंग ऑफ फ्लावर भी होता है।
सतयुग में किंग क्वीन फ्लावर भी हैं ना।
यहाँ भल महाराजा-महारानी हैं परन्तु फ्लावर्स नहीं हैं।
पतित बनने से कांटे बन जाते हैं।
रास्ते चलते-चलते कांटा लगाकर भाग जाते हैं।
अजामिल भी उनको कहा
जाता है।
सबसे जास्ती भक्ति भी तुम करते हो।
वाम मार्ग में गिरने वाले चित्र
देखो कैसे-कैसे गन्दे बनाये हुए हैं।
देवताओं के ही चित्र दिये हैं।
अब वह हैं वाम
मार्ग के चित्र।
अभी तुम बच्चों ने यह बातें समझ ली हैं।
तुम अभी ब्राह्मण बने
हो।
हम विकारों से बहुत दूर-दूर जाते हैं।
ब्राह्मणों में भाई-बहिन के साथ विकार
में जाना - यह तो बहुत बड़ा क्रिमिनल एसाल्ट हो जाए।
नाम ही खराब हो जाता
है, इसलिए छोटेपन से ही कुछ खराब काम किया है तो वह भी बाबा को सुनाते हैं
तो आधा माफ हो जाता है।
याद तो रहता है ना।
फलाने समय यह हमने गंदा
काम किया।
बाबा को लिखकर देते हैं।
जो बहुत व़फादार ऑनेस्ट होते हैं वह बाबा
को लिखते हैं - बाबा हमने यह-यह गंदा काम किया।
क्षमा करो।
बाप कहते हैं
क्षमा तो होती नहीं, बाकी सच बताते हो तो वह हल्का हो जायेगा।
ऐसे नहीं, भूल
जाता है।
भूल नहीं सकता।
आगे फिर ऐसा कोई काम न हो उसके लिए खबरदार
करता हूँ।
बाकी दिल खाती जरूर है।
कहते हैं बाबा हम तो अजामिल थे।
इस
जन्म की ही बात है।
यह भी अभी तुम जानते हो।
कब से वाम मार्ग में आकर
पाप आत्मा बने हो?
अब बाप फिर हमको पुण्य आत्मा बनाते हैं।
पुण्य आत्माओं
की दुनिया ही अलग है।
भल दुनिया एक ही है परन्तु समझ गये हो कि दो भाग
में है।
एक है पुण्य आत्माओं की दुनिया जिसको स्वर्ग कहा जाता है।
दूसरी है
पाप आत्माओं की दुनिया जिसको नर्क दु:खधाम कहा जाता है।
सुख की दुनिया
और दु:ख की दुनिया।
दु:ख की दुनिया में सब चिल्लाते रहते हैं हमको लिबरेट
करो, अपने घर ले जाओ।
यह भी बच्चे समझते हैं कि घर में जाकर बैठना नहीं
है, फिर पार्ट बजाने आना है।
इस समय सारी दुनिया पतित है।
अभी बाप द्वारा
तुम पावन बन रहे हो।
एम ऑब्जेक्ट सामने खड़ी है।
और कोई भी यह एम
ऑब्जेक्ट नहीं दिखायेंगे कि हम यह बन रहे हैं।
बाप कहते हैं बच्चे तुम यह थे,
अब नहीं हो।
पूज्य थे अब पुजारी बन गये हो फिर पूज्य बनने के लिए पुरूषार्थ
चाहिए।
बाप कितना अच्छा पुरूषार्थ कराते हैं।
यह बाबा समझते हैं ना हम प्रिन्स
बनूँगा।
नम्बरवन में है यह, फिर भी हर वक्त याद नहीं ठहरती है।
भूल जाते हैं।
कितना भी कोई मेहनत करे परन्तु अभी वह अवस्था होगी नहीं।
कर्मातीत
अवस्था तब होगी जब लड़ाई का समय होगा।
पुरूषार्थ तो सबको करना है ना।
इनको भी करना है।
तुम समझाते भी हो चित्र में देखो बाबा का चित्र कहाँ है?
एकदम झाड़ के पिछाड़ी में खड़ा है, पतित दुनिया में और नीचे में फिर तपस्या
कर रहे हैं।
कितना सहज समझाया जाता है।
यह सब बातें बाप ने ही समझाई हैं।
यह भी नहीं जानते थे।
बाप ही नॉलेजफुल है, उसको ही सब याद करते हैं - हे
परमपिता परमात्मा आकर हमारे दु:ख हरो।
ब्रह्मा-विष्णु-शंकर तो देवतायें हैं।
मूलवतन में रहने वाली आत्माओं को देवता थोड़ेही कहा जाता है।
ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का भी राज़ बाप ने समझाया है।
ब्रह्मा, लक्ष्मी-नारायण यह
तो सब यहाँ ही हैं ना।
सूक्ष्मवतन का सिर्फ तुम बच्चों को अभी साक्षात्कार होता
है।
यह बाबा भी फरिश्ता बन जाते हैं।
यह तो बच्चे जानते हैं जो सीढ़ी के ऊपर
में खड़ा है वही फिर नीचे तपस्या कर रहे हैं।
चित्र में बिल्कुल क्लीयर दिखाया है।
वह अपने को भगवान कहाँ कहलाते हैं।
यह तो कहते हैं हम वर्थ नाट ए पेनी थे,
ततत्वम्।
अभी वर्थ पाउण्ड बन रहे हो ततत्वम्।
कितनी सहज समझने की बातें
हैं।
कभी कोई बोले तो कहो देखो यह तो कलियुग के अन्त में खड़ा है ना।
बाप
कहते हैं जब जड़जड़ीभूत अवस्था, वानप्रस्थ होती है तब मैं इनमें प्रवेश करता हूँ।
अभी राजयोग की तपस्या कर रहे हैं।
तपस्या करने वाले को देवता कैसे कहेंगे?
राजयोग सीखकर यह बनेंगे।
तुम बच्चों को भी ऐसा ताज वाला बनाते हैं ना।
यह
सो देवता बनते हैं।
ऐसे तो 10-20 बच्चों के चित्र भी रख सकते हैं।
दिखलाने के
लिए कि यह बनते हैं।
आगे सबके ऐसे फोटो निकले हुए हैं।
यह समझाने की
बात है ना।
एक तरफ साधारण, दूसरे तरफ डबल सिरताज।
तुम समझते हो हम
यह बन रहे हैं।
बनेंगे वह जिनकी लाइन क्लीयर होगी और बहुत मीठा भी बनना
है।
इस समय मनुष्यों में काम-क्रोध आदि का बीज कितना हो गया है।
सबमें 5
विकार रूपी बीज के झाड़ निकल पड़े हैं।
अभी बाप कहते हैं ऐसा बीज नहीं बोना
है।
संगमयुग पर तुमको देह-अभिमान का बीज नहीं बोना है।
काम का बीज नहीं
बोना है।
आधाकल्प के लिए फिर रावण ही नहीं रहेगा।
हर एक बात बाप बैठ
बच्चों को समझाते हैं।
मुख्य तो एक ही बात है मनमनाभव।
बाप कहते हैं मुझे
याद करो।
सबसे पिछाड़ी में यह है, फिर सबसे पहले भी यह है।
योगबल से
कितना पावन बनते हैं।
शुरू में तो बच्चों को बहुत साक्षात्कार होते थे।
भक्ति
मार्ग में जब नौधा भक्ति करते हैं तब साक्षात्कार होता है।
यहाँ तो यह बैठे-बैठे
ध्यान में चले जाते थे, इसको जादू समझते थे।
यह तो फर्स्टक्लास जादू है।
मीरा
ने तो बहुत तपस्या की, साधू-सन्त आदि का संग किया।
यहाँ साधू आदि कहाँ हैं।
यह तो बाप है ना।
सबका बाप है शिवबाबा।
कहते हैं गुरू जी से मिलें।
यहाँ तो
गुरू है नहीं।
शिवबाबा तो है निराकार फिर किससे मिलना चाहते हो?
उन गुरूओं
के पास तो जाकर भेंटा रखते हैं।
यह तो बाप बेहद का मालिक है।
यहाँ भेंटा
आदि चढ़ाने की बात नहीं।
यह पैसा क्या करेंगे?
यह ब्रह्मा भी समझते हैं हम
विश्व का मालिक बनते हैं।
बच्चे जो कुछ पैसा आदि देते हैं तो उन्हों के लिए ही
मकान आदि बना देते हैं।
पैसे तो न शिवबाबा के काम के हैं, न ब्रह्मा बाबा के
काम के हैं।
यह मकान आदि बनाया ही है बच्चों के लिए, बच्चे ही आकर रहते
हैं।
कोई गरीब हैं, कोई साहूकार हैं, कोई तो दो रूपये भी भेज देते हैं - बाबा
हमारी एक ईट लगा दो।
कोई हजार भेज देते हैं।
भावना तो दोनों की एक है ना।
तो दोनों का इक्वल बन जाता है।
फिर बच्चे आते हैं जहाँ चाहें रहें।
जिसने
मकान बनवाया है वह अगर आते हैं तो उनको जरूर सुख से रहायेंगे।
कई फिर
कह देते बाबा के पास भी खातिरी होती है।
अरे वह तो जरूर करनी पड़ेगी ना।
कोई कैसे हैं, कोई तो कहाँ भी बैठ जाते हैं।
कोई बहुत नाज़ुक होते हैं, विलायत
में रहने वाले, बड़े-बड़े महलों में रहने वाले होते हैं, हर एक नेशन में बड़े-बड़े
साहूकार निकलते हैं तो मकान आदि ऐसे बनाते हैं।
यहाँ तो देखो कितने ढेर बच्चे
आते हैं।
और किसी बाप को ऐसे ख्यालात थोड़ेही होंगे।
करके 10-12-20
पोत्रे-पोत्रियाँ हों।
अच्छा, किसको 200-500 भी हों इनसे जास्ती तो नहीं होंगे।
इस
बाबा की फैमिली तो कितनी बड़ी है, और ही वृद्धि को पानी है।
यह तो राजधानी
स्थापन हो रही है।
बाप की फैमिली कितनी बनेंगी।
फिर प्रजापिता ब्रह्मा की
फैमिली कितनी हो गई।
कल्प-कल्प जब आते हैं तब ही वन्डरफुल बातें तुम्हारे
कानों में पड़ती है।
बाप के लिए ही कहते हो ना - हे प्रभु तुम्हारी गति-मत सबसे
न्यारी शुरू होती है।
भक्ति और ज्ञान में फ़र्क देखो कितना है।
बाप तुमको समझाते हैं - स्वर्ग में जाना है तो दैवीगुण भी धारण करने चाहिए।
अभी तो कांटे हैं ना।
गाते रहते हैं मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाही।
बाकी 5
विकारों के अवगुण हैं, रावण राज्य है।
अभी तुमको कितनी अच्छी नॉलेज मिलती
है।
वह नॉलेज इतनी खुशी नहीं देती है, जितनी यह।
तुम जानते हो हम आत्मायें
ऊपर मूलवतन में रहने वाली हैं।
सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा-विष्णु-शंकर, वह भी सिर्फ
साक्षात्कार होता है।
ब्रह्मा भी यहाँ, लक्ष्मी-नारायण भी यहाँ के हैं।
यह सिर्फ
साक्षात्कार होता है।
व्यक्त ब्रह्मा सो फिर सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा फरिश्ता कैसे बन
जाते हैं, वह निशानी है।
बाकी है कुछ नहीं।
अभी तुम बच्चे सब बातें समझते
जाते हो, धारणा करते जाते हो।
नई बात नहीं है।
तुम अनेक बार देवता बने हो,
डीटी राज्य था ना।
यह चक्र फिरता रहता है।
वह विनाशी ड्रामा होता है, यह है
अनादि अविनाशी ड्रामा।
यह तुम्हारे सिवाए और कोई की बुद्धि में नहीं है।
यह
सब बाप बैठ समझाते हैं।
ऐसे नहीं कि परम्परा से चला आया है।
बाप कहते हैं
यह ज्ञान अभी तुमको सुनाते हैं।
फिर यह प्राय: लोप हो जाता है।
तुम राजाई पद
प्राप्त कर लेते हो फिर सतयुग में यह नॉलेज होती नहीं।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा स्मृति रहे कि हम अभी ब्राह्मण हैं इसलिए विकारों से बहुत-बहुत दूर
रहना है।
कभी भी क्रिमिनल एसाल्ट न हो। बाप से बहुत-बहुत ऑनेस्ट, वफादार
रहना है।
2) डबल सिरताज देवता बनने के लिए बहुत मीठा बनना है, लाइन क्लीयर
रखनी है। राजयोग की तपस्या करनी है।
वरदान:-
ईश्वरीय नशे द्वारा पुरानी दुनिया को भूलने वाले सर्व प्राप्ति
सम्पन्न भव
जैसे वह नशा सब कुछ भुला देता है, ऐसे यह ईश्वरीय नशा दुखों की दुनिया को
सहज ही भुला देता है।
उस नशे में तो बहुत नुकसान होता है, अधिक पीने से
खत्म हो जाते हैं लेकिन यह नशा अविनाशी बना देता है।
जो सदा ईश्वरीय नशे
में मस्त रहते हैं वह सर्व प्राप्ति सम्पन्न बन जाते हैं।