17-12-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - सतगुरू आया है तुम्हारी ऊंची तकदीर बनाने तो तुम्हारी चलन बहुत-बहुत रायॅल होनी चाहिए

प्रश्नः-

ड्रामा का कौन सा प्लैन बना हुआ है इसलिए किसी को दोष नहीं दे सकते हैं?

उत्तर:-

ड्रामा में इस पुरानी दुनिया के विनाश का प्लैन बना हुआ है, इसमें कोई का दोष नहीं है।

इस समय इसके विनाश के लिए प्रकृति को जोर से गुस्सा आया है।

चारों ओर अर्थक्वेक होगी, मकान गिरेंगे, फ्लड आयेगी, अकाल पड़ेगा इसलिए बाप कहते हैं बच्चे अब इस पुरानी दुनिया से तुम अपना बुद्धि-योग निकाल दो, सतगुरू की श्रीमत पर चलो।

जीते जी देह का भान छोड़ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने का पुरुषार्थ करते रहो।

गीत:- हमें उन राहों पर चलना है....


  • ओम् शान्ति। किन राहों पर चलना है?
    • गुरू की राह पर चलना है।
    • यह कौन सा गुरू है?
    • उठते-बैठते मनुष्यों के मुख से निकल जाता है वाह गुरू।
    • गुरू तो अनेक हैं।
    • वाह गुरू किसको कहेंगे?
    • किसकी महिमा गायेंगे?
    • सतगुरू एक ही बाप है।
    • भक्ति मार्ग के ढेर गुरू हैं।
      • कोई किसकी महिमा करते, कोई किसकी महिमा करते हैं।
      • बच्चों की बुद्धि में है सच्चा सतगुरू वो एक है, जिसकी ही वाह-वाह मानी जाती है।
      • सच्चा सतगुरू है तो जरूर झूठे भी होंगे।
        • सच होता है संगम पर।
  • भक्ति मार्ग में भी सच की महिमा गाते हैं।
    • ऊंच ते ऊंच बाप ही सच्चा है, जो ही लिबरेटर, गाइड भी बनता है।
    • आजकल के गुरू लोग तो गंगा स्नान पर वा तीर्थों पर ले जाने के गाइड बनते हैं।
    • यह सतगुरू तो ऐसा नहीं है।
      • जिसको सभी याद करते हैं - हे पतित-पावन आओ।
      • पतित-पावन, सतगुरू को ही कहा जाता है।
        • वही पावन बना सकते हैं।
          • वो गुरू लोग पावन बना न सकें।
          • वह कोई ऐसे नहीं कहते कि मामेकम् याद करो।
  • भल गीता भी पढ़ते हैं परन्तु अर्थ का पता बिल्कुल नहीं है।
      • अगर समझते सतगुरू एक है तो अपने को गुरू नहीं कहलाते।
    • ड्रामानुसार भक्ति मार्ग की डिपार्टमेंट ही अलग है जिसमें अनेक गुरू, अनेक भक्त हैं।
    • यह तो एक ही है।
    • फिर यह देवी-देवतायें पहले नम्बर में आते हैं।
      • अभी लास्ट में हैं।
      • बाप आकर इन्हों को सतयुग की बादशाही देते हैं।
      • तो और सबको ऑटोमेटिकली वापिस जाना है, इसलिए सर्व का सद्गति दाता एक कहा जाता है।
  • तुम समझते हो कल्प-कल्प संगम पर ही देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है।
    • तुम पुरुषोत्तम बनते हो।
      • बाकी और कोई काम नहीं करते।
    • गाया भी जाता है गति-सद्गति दाता एक है।
      • यह बाप की ही महिमा है।
      • गति-सद्गति संगम पर ही मिलती है।
  • सतयुग में तो है एक धर्म।
    • यह भी समझ की बात है ना।
    • परन्तु यह बुद्धि देवे कौन?
    • तुम समझते हो बाप ही आकर युक्ति बताते हैं।
    • श्रीमत देते हैं किसको?
      • आत्माओं को।
    • वह बाप भी है, सतगुरू भी है, टीचर भी है।
      • ज्ञान सिखलाते हैं ना।
    • बाकी सब गुरू भक्ति ही सिखलाते हैं।
    • बाप के ज्ञान से तुम्हारी सद्गति होती है।
      • फिर इस पुरानी दुनिया से चले जाते हैं।
        • तुम्हारा यह बेहद का संन्यास भी है।
  • बाप ने समझाया है अभी 84 जन्मों का चक्र तुम्हारा पूरा हुआ है।
    • अब यह दुनिया खत्म होनी है।
    • जैसे कोई बीमार सीरियस होता है तो कहेंगे अब यह तो जाने वाला है, उसको याद क्या करेंगे।
      • शरीर खत्म हो जायेगा।
      • बाकी आत्मा तो जाकर दूसरा शरीर लेती है।
      • उम्मीद टूट जाती है।
        • बंगाल में तो जब देखते हैं उम्मीद नहीं है तो गंगा पर जाकर डुबोते हैं कि प्राण निकल जायें।
          • मूर्तियों की भी पूजा कर फिर जाकर कहते हैं डूब जा, डूब जा... अभी तुम जानते हो यह सारी पुरानी दुनिया डूब जानी है।
  • फ्लड्स होंगी, आग लगेंगी, भूख में मनुष्य मरेंगे।
    • यह सब हालतें आनी हैं।
    • अर्थक्वेक में मकान आदि गिर पड़ेंगे।
    • इस समय प्रकृति को गुस्सा आता है तो सबको खलास कर देती है।
    • यह सब हालतें सारी दुनिया के लिए आनी हैं।

  • अनेक प्रकार का मौत आ जाता है।
  • बॉम्ब्स में भी ज़हर भरा हुआ है।
    • थोड़ी बांस आने से बेहोश हो जाते हैं।
      • यह तुम बच्चे जानते हो कि क्या-क्या होने का है।
  • यह सब कौन कराते हैं?
    • बाप तो नहीं कराते हैं।
      • यह ड्रामा में नूंध है।
      • कोई पर दोष नहीं देंगे।
  • ड्रामा का प्लैन बना हुआ है।
    • पुरानी दुनिया सो फिर नई जरूर होगी।
    • नेचुरल कैलेमिटीज़ आयेंगी।
    • विनाश होने का ही है।
  • इस पुरानी दुनिया से बुद्धि का योग हटा देना, इसको बेहद का संन्यास कहा जाता है।
    • अब तुम कहेंगे वाह सतगुरू वाह! जो हमको यह रास्ता बताया।
    • बच्चों को भी समझाते हैं - ऐसी चलन नहीं चलो जो उनकी निंदा हो।
  • तुम यहाँ जीते जी मरते हो।
    • देह को छोड़ अपने को आत्मा समझते हो।
    • देह से न्यारी आत्मा बन बाप को याद करना है।
  • यह तो बहुत अच्छा कहते हैं वाह सतगुरू वाह! पारलौकिक सतगुरू की ही वाह-वाह होती है।
    • लौकिक गुरू तो ढेर हैं।
    • सतगुरू तो एक ही है सच्चा-सच्चा, जिसका फिर भक्ति मार्ग में भी नाम चला आता है।
    • सारी सृष्टि का बाप तो एक ही है।
    • नई सृष्टि की स्थापना कैसे होती है, यह भी किसको पता नहीं है।
    • शास्त्रों में तो दिखाते हैं प्रलय हो गई फिर पीपल के पत्ते पर श्रीकृष्ण आया।
      • अभी तुम समझते हो पीपल के पत्ते पर कैसे आयेगा।
      • कृष्ण की महिमा करने से कुछ फायदा नहीं होता।
  • तुम्हें अब चढ़ती कला में ले जाने के लिए सतगुरू मिला है।
    • कहते हैं ना चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला।
  • तो रूहानी बाप आत्माओं को बैठ समझाते हैं।
    • 84 जन्म भी आत्मा ने लिए हैं।
    • हर एक जन्म में नाम-रूप दूसरा हो जाता है।
    • ऐसे नहीं कहेंगे फलाने ने 84 जन्म लिये हैं।
    • नहीं, आत्मा ने 84 जन्म लिया।
      • शरीर तो बदलते जाते हैं।
      • तुम्हारी बुद्धि में यह सब बातें हैं।
      • सारी नॉलेज बुद्धि में रहनी चाहिए।
  • कोई भी आये तो उनको समझायें।
    • आदि में था ही देवी-देवताओं का राज्य, फिर मध्य में रावण राज्य हुआ।
      • सीढ़ी उतरते रहे।
    • सतयुग में कहेंगे सतोप्रधान फिर सतो, रजो, तमो में उतरते हैं।
      • चक्र फिरता रहता है।
  • कोई-कोई कहते हैं बाबा को क्या पड़ी थी जो 84 के चक्र में हमको लाया।
    • लेकिन यह तो सृष्टि चक्र अनादि बना हुआ है, इनके आदि-मध्य-अन्त को जानना है।

      • मनुष्य होकर अगर नहीं जानते तो वह नास्तिक हैं।
      • जानने से तुमको कितना ऊंच पद मिलता है।
      • यह पढ़ाई कितनी ऊंच है।
      • बड़ा इम्तहान पास करने वाले की दिल में खुशी होती है ना, हम बड़े ते बड़ा पद पायेंगे।
    • तुम जानते हो यह लक्ष्मी-नारायण अपने पूर्व जन्म में सीखकर फिर मनुष्य से देवता बनें।
  • इस पढ़ाई से यह राजधानी स्थापन हो रही है।
    • पढ़ाई से कितना ऊंच पद मिलता है।
      • वन्डर है ना।
    • इतने बड़े-बड़े मन्दिर जो बनाते हैं अथवा जो बड़े-बड़े विद्वान आदि हैं उनसे पूछो सतयुग आदि में इन्होंने जन्म कैसे लिया तो बता नहीं सकेंगे।
    • तुम जानते हो यह तो गीता वाला ही राजयोग है।
      • गीता पढ़ते आये हैं परन्तु उससे फायदा कुछ नहीं है।
    • अब तुमको बाप बैठ सुनाते हैं।
    • तुम कहते हो बाबा हम आपसे 5 हज़ार वर्ष पहले भी मिले थे।
      • क्यों मिले थे?
      • स्वर्ग का वर्सा लेने।
      • लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए।
    • कोई भी छोटे, बड़े, बूढ़े आदि आते हैं, यह जरूर सीखकर आते हैं।
      • एम ऑब्जेक्ट ही यह है।
      • सत्य नारायण की सच्ची कथा है ना।
    • यह भी तुम समझते हो, राजाई स्थापन हो रही है।
    • जो अच्छी रीति समझ लेते हैं उनको आन्तरिक खुशी रहती है।
    • बाबा पूछेंगे हिम्मत है ना राजाई लेने की?
    • कहते हैं बाबा क्यों नहीं, हम पढ़ते ही हैं नर से नारायण बनने।
  • इतना समय हम अपने को देह समझ बैठे थे अब बाप ने हमको राइटियस रास्ता बताया है।
    • देही-अभिमानी बनने में मेहनत लगती है।
    • घड़ी-घड़ी अपने नाम-रूप में फंस पड़ते हैं।
    • बाप कहते हैं इस नाम-रूप से न्यारा होना है।
    • अब आत्मा भी नाम तो है ना।
    • बाप है सुप्रीम परमपिता, लौकिक बाप को परमपिता नहीं कहेंगे।
      • परम अक्षर एक ही बाप को दिया है।
  • वाह गुरू भी इनको कहते हैं।
    • तुम सिक्ख लोगों को भी समझा सकते हो।
      • ग्रंथ साहेब में तो पूरा वर्णन है।
      • और कोई शास्त्र में इतना वर्णन नहीं है जितना ग्रंथ में, जप साहेब सुखमनी में है।
    • यह बड़े अक्षर ही दो हैं।
    • बाप कहते हैं - साहेब को याद करो तो तुमको 21 जन्म लिए सुख मिलेगा।
      • इसमें मूंझने की तो बात ही नहीं।
      • बाप बहुत सहज करके समझाते हैं।
    • कितने हिन्दू ट्रांसफर हो जाकर सिक्ख बने हैं।
  • तुम मनुष्यों को रास्ता बताने के लिए कितने चित्र आदि बनाते हो।
    • कितना सहज समझा सकते हो।
    • तुम आत्मा हो, फिर भिन्न-भिन्न धर्मों में आये हो।
    • यह वैरायटी धर्मों का झाड़ है और कोई को यह पता नहीं है कि क्राइस्ट कैसे आता है।
    • बाप ने समझाया था - नई आत्मा को कर्मभोग नहीं हो सकता।
      • क्राइस्ट की आत्मा ने कोई विकर्म थोड़ेही किया जो सजा मिले।
      • वह तो सतोप्रधान आत्मा आती है, जिसमें आकर प्रवेश करती है उनको क्रास आदि पर चढ़ाते हैं, क्राइस्ट को नहीं।
      • वह तो जाकर दूसरा जन्म ले बड़ा पद पाती है।
      • पोप के भी चित्र हैं।
  • इस समय यह सारी दुनिया बिल्कुल ही वर्थ नाट ए पेनी है।
    • तुम भी थे।
    • अब तुम वर्थ पाउण्ड बन रहे हो।
    • ऐसे नहीं कि उन्हों के वारिस पिछाड़ी में खायेंगे, कुछ भी नहीं।
      • तुम अपने हाथ भरपूर कर जाते हो, बाकी सब हाथ खाली जायेंगे।
      • तुम भरपूर होने के लिए ही पढ़ते हो।
      • यह भी जानते हो जो कल्प पहले आये हैं वही आयेंगे।
      • थोड़ा भी सुनेंगे तो आ जायेंगे।
  • सब इकट्ठे तो देख भी नहीं सकेंगे।
    • तुम ढेर प्रजा बनाते हो, बाबा सबको थोड़ेही देख सकते हैं।
    • थोड़ा बहुत सुनने से भी प्रजा बनते जाते हैं।
    • तुम गिनती भी नहीं कर सकेंगे।
    • तुम बच्चे सर्विस पर हो, बाबा भी सर्विस पर है।
      • बाबा सर्विस बिगर रह नहीं सकते।
      • रोज़ सुबह को सर्विस करने आते हैं।
  • सतसंग आदि भी सुबह को करते हैं।
      • उस समय सबको फुर्सत होती है।
    • बाबा तो कहते हैं तुम बच्चों को घर से बहुत सवेरे भी नहीं आना है और रात को भी नहीं आना चाहिए क्योंकि दिन-प्रतिदिन दुनिया बहुत खराब होती जाती है इसलिए गली-गली में सेन्टर ऐसा नज़दीक होना चाहिए, जो घर से निकले सेन्टर पर आये, सहज हो जाए।
    • तुम्हारी वृद्धि हो जायेगी तब राजधानी स्थापन होगी।
    • बाप समझाते तो बहुत सहज हैं।
    • यह राजयोग द्वारा स्थापना कर रहे हैं।
    • बाकी यह सारी दुनिया होगी ही नहीं।
    • प्रजा तो कितनी ढेर बनती है।
  • माला भी बननी है।
    • मुख्य तो जो बहुतों की सर्विस कर आपसमान बनाते हैं, वही माला के दाने बनते हैं।
    • लोग माला फेरते हैं परन्तु अर्थ थोड़ेही समझते हैं।
    • बहुत गुरू लोग माला फेरने के लिए देते हैं कि बुद्धि इसमें लगी रहे।
  • काम महाशत्रु है, दिन-प्रतिदिन बहुत कड़ा होता जायेगा।
    • तमोप्रधान बनते जाते हैं।
    • यह दुनिया बहुत गन्दी है।
    • बाबा को बहुत कहते हैं हम तो बहुत तंग हो गये हैं, जल्दी सतयुग में ले चलो।
    • बाप कहते हैं धीरज धरो, स्थापना होनी ही है - यह खातिरी है।
      • यह खातिरी ही तुमको ले जायेगी।
    • बच्चों को यह भी बताया है तुम आत्मायें परमधाम से आई हो फिर वहाँ जाना है, फिर आयेंगे पार्ट बजाने।

      • तो परमधाम को याद करना पड़े।
    • बाप भी कहते हैं मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
    • यही पैगाम सभी को देना है और कोई पैगम्बर मैसेन्जर आदि हैं नहीं।
    • वे तो मुक्तिधाम से नीचे ले आते हैं।
    • फिर उनको सीढ़ी नीचे उतरना है।
    • जब पूरे तमोप्रधान बन जाते हैं तब फिर बाप आकर सबको सतोप्रधान बनाते हैं।
    • तुम्हारे कारण सबको वापिस जाना पड़ता है क्योंकि तुमको नई दुनिया चाहिए ना - यह भी ड्रामा बना हुआ है।
    • बच्चों को बहुत नशा रहना चाहिए।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) इस देह के नाम-रूप से न्यारा होकर देही-अभिमानी बनना है।
    • ऐसी चलन नहीं चलनी है जो सतगुरू की निंदा हो।
  • 2) माला का दाना बनने के लिए बहुतों को आप समान बनाने की सेवा करनी है।
    • आन्तरिक खुशी में रहना है कि हम राजाई लेने के लिए पढ़ रहे हैं।
    • यह पढ़ाई है ही नर से नारायण बनने की।
  • वरदान:-
  • कल्याणकारी वृत्ति द्वारा सेवा करने वाले सर्व आत्माओं की दुआओं के अधिकारी भव
    • कल्याणकारी वृत्ति द्वारा सेवा करना - यही सर्व आत्माओं की दुआयें प्राप्त करने का साधन है।
    • जब लक्ष्य रहता है कि हम विश्व कल्याणकारी हैं, तो अकल्याण का कर्तव्य हो नहीं सकता।
    • जैसा कार्य होता है वैसी अपनी धारणायें होती हैं, अगर कार्य याद रहे तो सदा रहमदिल, सदा महादानी रहेंगे।
    • हर कदम में कल्याणकारी वृत्ति से चलेंगे, मैं पन नहीं आयेगा, निमित्त पन याद रहेगा।
    • ऐसे सेवाधारी को सेवा के रिटर्न में सर्व आत्माओं की दुआओं का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
  • स्लोगन:-
    • साधनों की आकर्षण साधना को खण्डित कर देती है।