26-12-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - बाबा आये हैं तुम्हें बेहद की जागीर देने, ऐसे मीठे बाबा को तुम प्यार से याद करो तो पावन बन जायेंगे

प्रश्नः-

विनाश का समय जितना नजदीक आता जायेगा - उसकी निशानियां क्या होंगी?

उत्तर:-

विनाश का समय नज़दीक होगा तो

1- सबको मालूम पड़ता जायेगा कि हमारा बाबा आया हुआ है।

2- अब नई दुनिया की स्थापना, पुरानी का विनाश होना है।

बहुतों को साक्षात्कार भी होंगे।

3- संन्यासियों, राजाओं आदि को ज्ञान मिलेगा।

4- जब सुनेंगे कि बेहद का बाप आया है, वही सद्गति देने वाला है तो बहुत आयेंगे।

5- अखबारों द्वारा अनेकों को सन्देश मिलेगा।

6- तुम बच्चे आत्म-अभिमानी बनते जायेंगे, एक बाप की ही याद में अतीन्द्रिय सुख में रहेंगे।

गीत:- इस पाप की दुनिया से...


  • ओम् शान्ति। यह कौन कहते हैं और किसको कहते हैं - रूहानी बच्चे! बाबा घड़ी-घड़ी रूहानी क्यों कहते हैं?
    • क्योंकि अब आत्माओं को जाना है।
    • फिर जब इस दुनिया में आयेंगे तो सुख होगा।
      • आत्माओं ने यह शान्ति और सुख का वर्सा कल्प पहले भी पाया था।
      • अब फिर यह वर्सा रिपीट हो रहा है।
        • रिपीट हो तब सृष्टि का चक्र भी फिर से रिपीट हो।
          • रिपीट तो सब होता है ना।
          • जो कुछ पास्ट हुआ है सो रिपीट होगा।
  • यूं तो नाटक भी रिपीट होते हैं परन्तु उनमें चेंज भी कर सकते हैं।
    • कोई अक्षर भूल जाते हैं तो बनाकर डाल देते हैं।
    • इसको फिर बाइसकोप कहा जाता है,
      • इसमें चेंज नहीं हो सकती।
      • यह अनादि बना-बनाया है, उस नाटक को बना-बनाया नहीं कहेंगे।
    • इस ड्रामा को समझने से फिर उनके लिए भी समझ में आ जाता है।
    • बच्चे समझते हैं जो नाटक आदि अभी देखते हैं, वह सब हैं झूठे।
  • कलियुग में जो चीज़ देखी जाती है वह सतयुग में होगी नहीं।
    • सतयुग में जो हुआ था सो फिर सतयुग में होगा।
    • यह हद के नाटक आदि फिर भी भक्ति मार्ग में ही होंगे।
    • जो चीज़ भक्तिमार्ग में होती है वह ज्ञान मार्ग अर्थात् सतयुग में नहीं होती।
  • तो अभी बेहद के बाप से तुम वर्सा पा रहे हो।
    • बाबा ने समझाया है - एक लौकिक बाप से और दूसरा पारलौकिक बाप से वर्सा मिलता है, बाकी जो अलौकिक बाप है उनसे वर्सा नहीं मिलता।
    • यह खुद उनसे वर्सा पाते हैं।
    • यह जो नई दुनिया की प्रापर्टी है,

      वह बेहद का बाप ही देते हैं सिर्फ इन द्वारा।
    • इनसे एडाप्ट करते हैं इसलिए इनको बाप कहते हैं।
    • भक्तिमार्ग में भी लौकिक और पारलौकिक दोनों याद आते हैं।
    • यह (अलौकिक) नहीं याद आता क्योंकि इनसे कोई वर्सा मिलता ही नहीं है।
    • बाप अक्षर तो बरोबर है परन्तु यह ब्रह्मा भी रचना है ना।
  • रचना को रचता से वर्सा मिलता है।
    • तुमको भी शिवबाबा ने क्रियेट किया है।
    • ब्रह्मा को भी उसने क्रियेट किया है।
    • वर्सा क्रियेटर से मिलता है, वह है बेहद का बाप।
    • ब्रह्मा के पास बेहद का वर्सा है क्या?
    • बाप इन द्वारा बैठ समझाते हैं इनको भी वर्सा मिलता है।
    • ऐसे नहीं कि वर्सा लेकर तुमको देते हैं।
    • बाप कहते हैं तुम इनको भी याद न करो।
    • यह बेहद के बाप से तुमको प्रापर्टी मिलती है।
    • लौकिक बाप से हद का, पारलौकिक बाप से बेहद का वर्सा, दोनों रिजर्व हो गये।
    • शिवबाबा से वर्सा मिलता है - बुद्धि में आता है!
    • बाकी ब्रह्मा बाबा का वर्सा क्या कहेंगे!
    • बुद्धि में जागीर आती है ना।
    • यह बेहद की बादशाही तुमको उनसे मिलती है।
    • वह है बड़ा बाबा।
    • यह तो कहते हैं मुझे याद नहीं करो, मेरी तो कोई प्रापर्टी है नहीं, जो तुमको मिले।
    • जिससे प्रापर्टी मिलनी है उनको याद करो।
    • वही कहते हैं मामेकम् याद करो।
  • लौकिक बाप की प्रापर्टी पर कितना झगड़ा चलता है।
    • यहाँ तो झगड़े की बात नहीं।
    • बाप को याद नहीं करेंगे तो ऑटोमेटिकली बेहद का वर्सा भी नहीं मिलेगा।
  • बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो।
    • इस रथ को भी कहते हैं

      तुम अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो तो विश्व की बादशाही मिलेगी।
    • इसको कहा जाता है याद की यात्रा।
  • देह के सब सम्बन्ध छोड़ अपने को अशरीरी आत्मा समझना है।
    • इसमें ही मेहनत है।
    • पढ़ाई के लिए कोई तो मेहनत चाहिए ना।
    • इस याद की यात्रा से तुम पतित से पावन बनते हो।
    • वह यात्रा करते हैं शरीर से।
    • यह तो है आत्मा की यात्रा।
    • यह तुम्हारी यात्रा है परमधाम जाने के लिए।
    • परमधाम अथवा मुक्तिधाम कोई जा नहीं सकते हैं, सिवाए इस पुरुषार्थ के।
    • जो अच्छी रीति याद करते हैं वही जा सकते हैं और फिर ऊंच पद भी वह पा सकते हैं।
    • जायेंगे तो सब।
  • परन्तु वह तो पतित हैं ना इसलिए पुकारते हैं।
    • आत्मा याद करती है।
      • खाती-पीती सब आत्मा करती है ना।
    • इस समय तुमको देही-अभिमानी बनना है, यही मेहनत है।
    • बिगर मेहनत तो कुछ मिलता नहीं।
      • है भी बहुत सहज।
      • परन्तु माया का आपोजीशन होता है।
    • किसकी तकदीर अच्छी है तो झट इसमें लग जाते हैं।
    • कोई देरी से भी आयेंगे।
    • अगर बुद्धि में ठीक रीति बैठ गया तो कहेंगे बस हम इस रूहानी यात्रा में लग जाता हूँ।
    • ऐसे तीव्र वेग से लग जाएं तो अच्छी दौड़ी पहन सकते हैं।
  • घर में रहते भी बुद्धि में आ जायेगा यह तो बहुत अच्छी राइट बात है।
    • हम अपने को आत्मा समझ पतित-पावन बाप को याद करता हूँ।
    • बाप के फरमान पर चलें तो पावन बन सकते हैं।
    • बनेंगे भी जरूर।
    • पुरुषार्थ की बात है।
    • है बहुत सहज।
    • भक्ति मार्ग में तो बहुत डिफीकल्टी होती है।
    • यहाँ तुम्हारी बुद्धि में है अब हमको वापिस जाना है बाबा के पास।
  • फिर यहाँ आकर विष्णु की माला में पिरोना है।
    • माला का हिसाब करें।
      • माला तो ब्रह्मा की भी है, विष्णु की भी है, रूद्र की भी है।
  • पहले-पहले नई सृष्टि के यह हैं ना।
    • बाकी सब पीछे आते हैं।
    • गोया पिछाड़ी में पिरोते हैं।
  • कहेंगे तुम्हारा ऊंच कुल क्या है?
  • तुम कहेंगे विष्णु कुल।
  • हम असल विष्णु कुल के थे, फिर क्षत्रिय कुल के बने।
    • फिर उनसे बिरादरियाँ निकलती हैं।
  • इस नॉलेज से तुम समझते हो बिरादरियाँ कैसे बनती हैं।
  • पहले-पहले रूद्र की माला बनती है।
    • ऊंच ते ऊंच बिरादरी है।
  • बाबा ने समझाया है - यह तुम्हारा बहुत ऊंच कुल है।
  • यह भी समझते हैं सारी दुनिया को पैगाम जरूर मिलेगा।
    • जैसे कई कहते हैं भगवान जरूर कहाँ आया हुआ है परन्तु पता नहीं पड़ता है।
    • आखरीन पता तो लगेगा सबको।
    • अखबारों में पड़ता जायेगा।
      • अभी तो थोड़ा डालते हैं।
      • ऐसे नहीं कि एक अखबार सब पढ़ते हैं।
        • लाइब्रेरी में पढ़ सकते हैं।
          • कोई 2-4 अखबार भी पढ़ते हैं।
          • कोई बिल्कुल नहीं पढ़ते।
    • यह सबको मालूम पड़ना ही है कि बाबा आया हुआ है, विनाश का समय नज़दीक होगा तो मालूम पड़ेगा।
    • नई दुनिया की स्थापना, पुरानी का विनाश होता है।
    • हो सकता है बहुतों को साक्षात्कार भी हो।
    • तुम्हें संन्यासियों, राजाओं आदि को ज्ञान देना है।
    • बहुतों को पैगाम मिलना है।
    • जब सुनेंगे बेहद का बाप आया है, वही सद्गति देने वाला है तो बहुत आयेंगे।
    • अभी अखबार में इतना दिलपसन्द कायदेमुज़ीब निकला नहीं है।
    • कोई निकल पड़ेंगे, पूछताछ करेंगे।
  • बच्चे समझते हैं हम श्रीमत पर सतयुग की स्थापना कर रहे हैं।
    • तुम्हारी यह नई मिशन है।
    • तुम हो ईश्वरीय मिशन के ईश्वरीय भाती।
    • जैसे क्रिश्चियन मिशन के क्रिश्चियन भाती बन जाते हैं।
    • तुम हो ईश्वरीय भाती इसलिए गायन है अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों से पूछो, जो आत्म-अभिमानी बने हैं।
  • एक बाप को याद करना है, दूसरा न कोई।
    • यह राजयोग एक बाप ही सिखलाते हैं, वही गीता का भगवान है।
    • सबको यही बाप का निमंत्रण वा पैगाम देना है, बाकी सब बातें हैं ज्ञान श्रृंगार।
  • यह चित्र सब हैं ज्ञान का श्रृंगार, न कि भक्ति का।
    • यह बाप ने बैठ बनवाये हैं - मनुष्यों को समझाने के लिए।
    • यह चित्र आदि तो प्राय:लोप हो जायेंगे।
    • बाकी यह ज्ञान आत्मा में रह जाता है।
    • बाप को भी यह ज्ञान है, ड्रामा में नूंध है।
  • तुम अभी भक्ति मार्ग पास कर ज्ञान मार्ग में आये हो।
    • तुम जानते हो हमारी आत्मा में यह पार्ट है जो चल रहा है।
    • नूंध थी जो फिर से हम राजयोग सीख रहे हैं बाप से।
    • बाप को ही आकर यह नॉलेज देनी थी।
    • आत्मा में नूंध है।
    • वहाँ जाए पहुँचेंगे फिर नई दुनिया का पार्ट रिपीट होगा।
    • आत्मा के सारे रिकार्ड को इस समय तुम समझ गये हो शुरू से लेकर।
    • फिर यह सब बंद हो जायेंगे।
    • भक्तिमार्ग का पार्ट भी बन्द हो जायेगा।
    • फिर जो तुम्हारी एक्ट सतयुग में चली होगी, वही चलेगी।
      • क्या होगा, यह बाप नहीं बताते हैं।
      • जो कुछ हुआ होगा वही होगा।
      • समझा जाता है सतयुग है नई दुनिया।
      • जरूर वहाँ सब कुछ नया सतोप्रधान और सस्ता होगा, जो कुछ कल्प पहले हुआ था वही होगा।
    • देखते भी हैं - इन लक्ष्मी-नारायण को कितने सुख हैं।
    • हीरे-जवाहरात धन बहुत रहता है।
    • धन है तो सुख भी है।
  • यहाँ तुम भेंट कर सकते हो।
    • वहाँ नहीं कर सकेंगे।
    • यहाँ की बातें वहाँ सब भूल जायेंगे।
    • यह हैं नई बातें, जो बाप ही बच्चों को समझाते हैं।
    • आत्माओं को वहाँ जाना है, जहाँ कारोबार सारी बंद हो जाती है।
    • हिसाब-किताब चुक्तू होता है।
    • रिकार्ड पूरा होता है।
    • एक ही रिकार्ड बहुत बड़ा है।
  • कहेंगे फिर आत्मा भी इतनी बड़ी होनी चाहिए।
    • परन्तु नहीं।
    • इतनी छोटी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है।
    • आत्मा भी अविनाशी है।
    • इनको सिर्फ वण्डर ही कहेंगे।
    • ऐसे आश्चर्यवत चीज़ और कोई हो न सके।
  • बाबा के लिए तो कहते हैं सतयुग-त्रेता के समय विश्राम में रहते हैं।
  • हम तो आलराउण्ड पार्ट बजाते हैं।
  • सबसे जास्ती हमारा पार्ट है।
  • तो बाप वर्सा भी ऊंच देते हैं।
  • कहते हैं 84 जन्म भी तुम ही लेते हो।
  • हमारा तो पार्ट फिर ऐसा है जो और कोई बजा न सके।
  • वण्डरफुल बातें हैं ना।
  • यह भी वण्डर है जो आत्माओं को बाप बैठ समझाते हैं।
  • आत्मा मेल-फीमेल नहीं है।
    • जब शरीर धारण करती है तो मेल-फीमेल कहा जाता है।
    • आत्मायें सब बच्चे हैं तो भाई-भाई हो जाती हैं।
    • भाई-भाई हैं जरूर वर्सा पाने के लिए।
    • आत्मा बाप का बच्चा है ना।
    • वर्सा लेते हैं बाप से इसलिए मेल ही कहेंगे।
    • सब आत्माओं का हक है, बाप से वर्सा लेने का।
      • उसके लिए बाप को याद करना है।
      • अपने को आत्मा समझना है।
      • हम सब ब्रदर्स हैं।
      • आत्मा, आत्मा ही है।
      • वह कभी बदलती नहीं।
    • बाकी शरीर कभी मेल का, कभी फीमेल का लेती है।
    • यह बड़ी अटपटी बातें समझने की हैं, और कोई भी सुना न सके।
    • बाप से या तुम बच्चों से ही सुन सकते हैं।
    • बाप तो तुम बच्चों से ही बात करते हैं।
    • आगे तो सबसे मिलते थे, सबसे बात करते थे।
    • अभी करते-करते आखरीन तो कोई से बात ही नहीं करेंगे।
  • सन शोज़ फादर है ना।
    • बच्चों को ही पढ़ाना है।
    • तुम बच्चे ही बहुतों की सर्विस कर ले आते हो।
    • बाबा समझते हैं यह बहुतों को आपसमान बनाकर ले आते हैं।
    • यह बड़ा राजा बनेंगे, यह छोटा राजा बनेंगे।
  • तुम रूहानी सेना भी हो, जो सबको रावण की जंजीरों से छुड़ाए अपनी मिशन में ले आते हो।
    • जितनी जो सर्विस करते हैं उतना फल मिलता है।
    • जिसने जास्ती भक्ति की है वही जास्ती होशियार हो जाते हैं और वर्सा ले लेते हैं।
  • यह पढ़ाई है, अच्छी रीति पढ़ाई नहीं की तो फेल हो जायेंगे।
    • पढ़ाई बहुत सहज है।
    • समझना और समझाना भी है सहज।
    • डिफीकल्टी की बात नहीं, परन्तु राजधानी स्थापन होनी है, उसमें तो सब चाहिए ना।
    • पुरुषार्थ करना है।
    • उसमें हम ऊंच पद पायें।
    • मृत्युलोक से ट्रांसफर होकर अमरलोक में जाना है।
    • जितना पढ़ेंगे उतना अमरपुरी में ऊंच पद पायेंगे।
  • बाप को प्यार भी करना होता है क्योंकि यह है बहुत प्यारे ते प्यारी वस्तु।

    • प्यार का सागर भी है, एकरस प्यार हो न सके।
    • कोई याद करते हैं, कोई नहीं करते हैं।
  • किसको समझाने का भी नशा रहता है ना।
    • यह बड़ा टैम्पटेशन है।
    • कोई को भी बताना है - यह युनिवर्सिटी है।
    • यह स्प्रीचुअल पढ़ाई है।
    • ऐसे चित्र और कोई स्कूल में नहीं दिखाये जाते।
    • दिन-प्रतिदिन और ही चित्र निकलते रहेंगे।
    • जो मनुष्य देखने से ही समझ जाएं।
  • सीढ़ी है बहुत अच्छी।

    • परन्तु देवता धर्म का नहीं होगा तो उनको समझ में नहीं आयेगा।
    • जो इस कुल का होगा उनको तीर लगेगा।
    • जो हमारे देवता धर्म के पत्ते होंगे वही आयेंगे।
    • तुमको फील होगा यह तो बहुत रूचि से सुन रहे हैं।
    • कोई तो ऐसे ही चले जायेंगे।
    • दिन-प्रतिदिन नई-नई बातें भी बच्चों को समझाते रहते हैं।
  • सर्विस का बड़ा शौक चाहिए।
    • जो सर्विस पर तत्पर होंगे वही दिल पर चढ़ेंगे और तख्त पर भी चढ़ेंगे।
    • आगे चल तुमको सब साक्षात्कार होते रहेंगे।
    • उस खुशी में तुम रहेंगे।
  • दुनिया में तो हाहाकार बहुत होना है।
    • रक्त की नदियाँ भी बहनी हैं।
  • बहादुर सर्विस वाले कभी भूख नहीं मरेंगे।
    • परन्तु यहाँ तो तुमको वनवास में रहना है।
    • सुख भी वहाँ मिलेगा।
    • कन्या को तो वनवाह में बिठाते हैं ना।
    • ससुरघर जाकर खूब पहनना।
    • तुम भी ससुरघर जाते हो तो वह नशा रहता है।
    • वह है ही सुखधाम।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) माला में पिरोने के लिए देही-अभिमानी बन तीव्र वेग से याद की यात्रा करनी है।
    • बाप के फरमान पर चलकर पावन बनना है।
  • 2) बाप का परिचय दे बहुतों को आप समान बनाने की सर्विस करनी है।
    • यहाँ वनवाह में रहना है।
    • अन्तिम हाहाकार की सीन देखने के लिए महावीर बनना है।
  • वरदान:-
  • हर कर्म में फालो फादर कर स्नेह का रेसपान्ड देने वाले तीव्र-पुरूषार्थी भव
  • जिससे स्नेह होता है उसको आटोमेटिकली फालो करना होता है।
  • सदा याद रहे कि यह कर्म जो कर रहे हैं यह फालो फादर है?
  • अगर नहीं है तो स्टॉप कर दो।
  • बाप को कॉपी करते बाप समान बनो।
  • कॉपी करने के लिए जैसे कार्बन पेपर डालते हैं वैसे अटेन्शन का पेपर डालो तो कॉपी हो जायेगा क्योंकि अभी ही तीव्र पुरूषार्थी बन स्वयं को हर शक्ति से सम्पन्न बनाने का समय है।
  • अगर स्वयं, स्वयं को सम्पन्न नहीं कर सकते हो तो सहयोग लो।
  • नहीं तो आगे चल टू लेट हो जायेंगे।
  • स्लोगन:-
    • सन्तुष्टता का फल प्रसन्नता है, प्रसन्नचित बनने से प्रश्न समाप्त हो जाते हैं।