27-12-20 प्रात:मुरली मधुबन

अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 31-12-86

पास्ट, प्रेजन्ट और फ्यूचर को श्रेष्ठ बनाने की विधि

आज ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर और गॉड-फादर अपने अति मीठे, अति प्यारे बच्चों को दिल से दुआओं की ग्रीटिंग्स दे रहे हैं।

  • बापदादा जानते हैं कि एक-एक सिकीलधा बच्चा कितना श्रेष्ठ, महान आत्मा हैं!
  • हर बच्चे की महानता-पवित्रता बाप के पास नम्बरवार पहुँचती रहती है।
  • आज के दिन सभी विशेष नया वर्ष मनाने के उमंग-उत्साह से आये हुए हैं।
  • दुनिया के लोग मनाने के लिए बुझे हुए दीप वा मोमबत्तियाँ जगाते हैं।
  • वह जगाकर मनाते हैं और बाप-दादा जगे हुए अनगिनत दीपकों से नया वर्ष मना रहे हैं।
  • बुझे हुए को जगाते नहीं और जगाकर फिर बुझाते नहीं।
  • ऐसा लाखों की अन्दाज में जगे हुए रूहानी ज्योति के संगठन का वर्ष मनाना - यह सिवाए बाप और आपके कोई मना नहीं सकता।
  • कितना सुन्दर जगमगाते दीपकों के रूहानी संगठन का दृश्य है!
  • सबकी रूहानी ज्योति एकटिक, एकरस चमक रही है।
  • सबके मन में ‘एक बाबा' - यही लगन रूहानी दीपक को जगमगा रही है।
  • एक संसार है, एक संकल्प है, एकरस स्थिति है - यही मनाना है, यही बनकर बनाना है।
  • इस समय विदाई और बधाई दोनों का संगम है।
  • पुराने की विदाई है और नये को बधाई है।
  • इस संगम समय पर सभी पहुँच गये हैं इसलिए, पुराने संकल्प और संस्कार के विदाई की भी मुबारक है और नये उमंग-उत्साह से उड़ने की भी मुबारक है।
  • जो प्रेजेन्ट है, वह कुछ समय के बाद पास्ट हो जायेगा।
  • जो वर्ष चल रहा है, वह 12.00 बजे के बाद पास्ट हो जाएगा।
  • इस समय को प्रेजन्ट कहेंगे और कल को फ्यूचर (भविष्य) कहते हैं।
  • पास्ट, प्रेजन्ट और फ्यूचर - इन तीनों का ही खेल चलता रहता है।
  • इन तीनों शब्दों को इस नये वर्ष में नई विधि से प्रयोग करना।
  • कैसे?
  • पास्ट को सदा पास विद् ऑनर होकर के पास करना।
  • “पास्ट इज पास्ट'' तो होना ही है लेकिन कैसे पास करना है?
  • कहते हो ना - समय पास हो गया, यह दृश्य पास हो गया।
  • लेकिन पास विद् ऑनर बन पास किया?
  • बीती को बीती किया लेकिन बीती को ऐसी श्रेष्ठ विधि से बीती किया जो बीती को स्मृति में लाते ‘वाह! वाह!' के बोल दिल से निकलें?
  • बीती को ऐसे बीती किया जो अन्य आपकी बीती हुई स्टोरी से पाठ पढ़ें?
  • आपकी बीती यादगार-स्वरूप बन जाये, कीर्तन अर्थात् कीर्ति गाते रहें।
  • जैसे भक्ति-मार्ग में आपके ही कर्म का कीर्तन गाते रहते हैं।
  • आपके कर्म के कीर्तन से अनेक आत्माओं का अब भी शरीर निर्वाह हो रहा है।
  • इस नये वर्ष में हर पास्ट संकल्प वा समय को ऐसी विधि से पास करना।
  • समझा, क्या करना है?
  • अब आओ प्रेजन्ट (वर्तमान), प्रेजन्ट को ऐसे प्रैक्टिकल में लाओ जो हर प्रेजन्ट घड़ी वा संकल्प से आप विशेष आत्माओं द्वारा कोई न कोई प्रेजेन्ट (सौगात) प्राप्त हो।
  • सबसे ज्यादा खुशी किस समय होती है?
  • जब किससे प्रेजेन्ट (सौगात) मिलती है।
  • कैसा भी अशान्त हो, दु:खी हो या परेशान हो लेकिन जब कोई प्यार से प्रेजेन्ट देता है तो उस घड़ी खुशी की लहर आ जाती है।
  • दिखावे की प्रेजेन्ट नहीं, दिल से।
  • सभी प्रेजेन्ट (सौगात) को सदा स्नेह की सूचक मानते हैं।
  • प्रेजेन्ट दी हुई चीज़ में वैल्यू ‘स्नेह' की होती है, ‘चीज़' की नहीं।
  • तो प्रेजन्ट देने की विधि से वृद्धि को पाते रहना। समझा?
  • सहज है या मुश्किल है?
  • भण्डारे भरपूर हैं ना या प्रेजेन्ट देते-देते भण्डारा कम हो जायेगा?
  • स्टॉक जमा है ना?
  • सिर्फ एक सेकण्ड के स्नेह की दृष्टि, स्नेह का सहयोग, स्नेह की भावना, मीठे बोल, दिल के श्रेष्ठ संकल्प का साथ - यही प्रेजेन्ट्स बहुत हैं।
  • आजकल चाहे आपस में ब्राह्मण आत्मायें हैं, चाहे आपकी भक्त आत्मायें हैं, चाहे आपके सम्बन्ध-सम्पर्क वाली आत्मायें हैं, चाहे परेशान आत्मायें हैं-सभी को इन प्रेजेन्ट्स की आवश्यकता है, दूसरी प्रेजेन्ट की नहीं। इसका स्टॉक तो है ना?
  • तो हर प्रेजन्ट घड़ी को दाता बन प्रेजन्ट को पास्ट में बदलना, तो सर्व प्रकार की आत्मायें दिल से आपका कीर्तन गाती रहेंगी। अच्छा।
  • फ्यूचर क्या करेंगे?
  • सभी आप लोगों से पूछते हैं न कि आखिर भी फ्यूचर क्या है?
  • फ्यूचर को अपने फीचर्स से प्रत्यक्ष करो।
  • आपके फीचर्स फ्यूचर को प्रकट करें।
  • फ्यूचर क्या होगा, फ्यूचर के नैन क्या होंगे, फ्यूचर की मुस्कान क्या होगी, फ्यूचर के सम्बन्ध क्या होंगे, फ्यूचर की जीवन क्या होगी - आपके फीचर्स इन सब बातों का साक्षात्कार करायें।
  • दृष्टि फ्यूचर की सृष्टि को स्पष्ट करे।
  • ‘क्या होगा' - यह क्वेश्चन समाप्त हो ‘ऐसा होगा', इसमें बदल जाये।
  • ‘कैसा' बदल ‘ऐसा' हो जाये। फ्यूचर है ही देवता।
  • देवतापन के संस्कार अर्थात् दातापन के संस्कार, देवतापन के संस्कार अर्थात् ताज, तख्तधारी बनने के संस्कार।
  • जो भी देखे, उनको आपका ताज और तख्त अनुभव हो।
  • कौनसा ताज?
  • सदा लाइट (हल्का) रहने का लाइट (प्रकाश) का ताज।
  • और सदा आपके कर्म से, बोल से रूहानी नशा और निश्चिन्तपन के चिन्ह अनुभव हों।
  • तख्तधारी की निशानी है ही ‘निश्चिन्त' और ‘नशा'।
  • निश्चित विजयी का नशा और निश्चिन्त स्थिति - यह है बाप के दिलतख्तनशीन आत्मा की निशानी।
  • जो भी आये, वह यह तख्तनशीन और ताजधारी स्थिति का अनुभव करे - यह है फ्यूचर को फीचर्स द्वारा प्रत्यक्ष करना।
  • ऐसा नया वर्ष मनाना अर्थात् बनकर बनाना।
  • समझा, नये वर्ष में क्या करना है?
  • तीन शब्दों से मास्टर त्रिमूर्ति, मास्टर त्रिकालदर्शी और त्रिलोकीनाथ बन जाना।
  • सब यही सोचते हैं कि अब क्या करना है?
  • हर कदम से - चाहे याद से, चाहे सेवा के हर कदम से इन तीनों ही विधि से सिद्धि प्राप्त करते रहना।
  • नये वर्ष का उमंग-उत्साह तो बहुत है ना।
  • डबल विदेशियों को डबल उमंग है ना।
  • न्यू इयर मनाने में कितने साधन अपनायेंगे?
  • वे लोग साधन भी विनाशी अपनाते और मनोरंजन भी अल्पकाल का करते।
  • अभी-अभी जलायेंगे, अभी-अभी बुझायेंगे।
  • लेकिन बापदादा अविनाशी विधि से अविनाशी सिद्धि प्राप्त करने वाले बच्चों से मना रहे हैं।
  • आप लोग भी क्या करेंगे?
  • केक काटेंगे, मोमबत्ती जलायेंगे, गीत गायेंगे, ताली बजायेंगे।
  • यह भी खूब करो, भले करो।
  • लेकिन बापदादा सदा अविनाशी बच्चों को अविनाशी मुबारक देते हैं और अविनाशी बनाने की विधि बताते हैं।
  • साकार दुनिया में साकारी सुहेज मनाते देख बापदादा भी खुश होते हैं क्योंकि ऐसा सुन्दर परिवार जो पूरा ही परिवार ताजधारी, तख्तधारी है और इतनी लाखों की संख्या में एक परिवार है, ऐसा परिवार सारे कल्प में एक ही बार मिलता है इसलिए खूब नाचो, गाओ, मिठाई खाओ।
  • बाप तो बच्चों को देख करके, भासना लेकर के ही खुश होते हैं।
  • सभी के मन के गीत कौनसे बजते हैं?
  • खुशी के गीत बज रहे हैं।
  • सदा ‘वाह! वाह!' के गीत गाओ।
  • वाह बाबा! वाह तकदीर!
  • वाह मीठा परिवार!
  • वाह श्रेष्ठ संगम का सुहावना समय!
  • हर कर्म ‘वाह-वाह!' है।
  • ‘वाह! वाह! के गीत गाते रहो।
  • बापदादा आज मुस्करा रहे थे - कई बच्चे ‘वाह! के गीत के बजाय और भी गीत गा लेते हैं।
  • वह भी दो शब्द का गीत है, वह जानते हो?
  • इस वर्ष वह दो शब्दों का गीत नहीं गाना।
  • वह दो शब्द हैं - ‘व्हाई' और ‘आई' (क्यों और मैं) बहुत करके बापदादा जब बच्चों की टी.वी. देखते हैं तो बच्चे ‘वाह-वाह!' के बजाये ‘व्हाई-व्हाई' बहुत करते हैं।
  • तो ‘व्हाई' के बजाय ‘वाह-वाह! कहना और ‘आई' के बजाये ‘बाबा-बाबा' कहना। समझा?
  • जो भी हो, जैसे भी हो फिर भी बापदादा के प्यारे हो, तब तो सभी प्यार से मिलने के लिए भागते हो।
  • अमृतवेले सभी बच्चे सदा यही गीत गाते हैं - ‘प्यारा बाबा, मीठा बाबा' और बापदादा रिटर्न में सदा ‘प्यारे बच्चे, प्यारे बच्चे' का गीत गाते हैं। अच्छा।
  • वैसे तो इस वर्ष न्यारे और प्यारे का पाठ है, फिर भी बच्चों के स्नेह का आह्वान बाप को भी न्यारी दुनिया से प्यारी दुनिया में ले आता है।
  • आकारी विधि में यह सब देखने की आवश्यकता नहीं है।
  • आकारी मिलन की विधि में एक ही समय पर अनेक बेहद बच्चों को बेहद मिलन की अनुभूति कराते हैं।
  • साकारी विधि में फिर भी हद में आना पड़ता।
  • बच्चों को चाहिए भी क्या - मुरली और दृष्टि।
  • मुरली में भी मिलना ही तो है।
  • चाहे अलग में बोलें, चाहे साथ में बोलें, बोलेंगे तो वही बात।
  • जो संगठन में बोलते हैं वही अलग में बोलेंगे।
  • फिर भी देखो पहला चान्स डबल विदशियों को मिला है।
  • भारत के बच्चे 18 ता. (18 जनवरी) का इन्तजार कर रहे हैं और आप लोग पहला चान्स ले रहे हो। अच्छा।
  • 35-36 देशों के आये हुये हैं। यह भी 36 प्रकार का भोग हो गया।
  • 36 का गायन है ना।
  • 36 वैराइटी हो गई है।
  • बापदादा सभी बच्चों का सेवा की उमंग-उत्साह को देख खुश होते हैं।
  • जो सभी ने तन, मन, धन समय-स्नेह और हिम्मत से सेवा में लगाया, उसकी बापदादा पदमगुणा बधाई दे रहे हैं।
  • चाहे इस समय सम्मुख हैं, चाहे आकार रूप में सम्मुख हैं लेकिन बापदादा सभी बच्चों को सेवा में लग्न से मग्न रहने की मुबारक दे रहे हैं।
  • सहयोगी बने, सहयोगी बनाया।
  • तो सहयोगी बनने की भी और सहयोगी बनाने की भी डबल मुबारक।
  • कई बच्चों के सेवा के उमंग-उत्साह के समाचार और साथ-साथ नये वर्ष के उमंग-उत्साह के कार्ड की माला बापदादा के गले में पिरो गई।
  • जिन्होंने भी कार्ड भेजे हैं, बापदादा कार्ड के रिटर्न में रिगार्ड और लव दोनों देते हैं।
  • समाचार सुन-सुन हर्षित होते हैं।
  • चाहे गुप्त रूप में सेवा की, चाहे प्रत्यक्ष रूप में की लेकिन बाप को प्रत्यक्ष करने की सेवा में सदा सफलता ही है।
  • स्नेह से सेवा की रिजल्ट - सहयोगी आत्मायें बनना और बाप के कार्य में समीप आना - यही सफलता की निशानी है।
  • सहयोगी आज सहयोगी हैं, कल योगी भी बन जायेंगे।
  • तो सहयोगी बनाने की विशेष सेवा जो सभी ने चारों ओर की, उसके लिए बापदादा ‘अविनाशी सफलता स्वरूप भव' का वरदान दे रहे हैं। अच्छा।
  • जब आपकी प्रजा, सहयोगी, सम्बन्धी वृद्धि को प्राप्त होंगे तो वृद्धि के प्रमाण विधि को भी बदलना तो पड़ता है ना।
  • खुश होते हो ना, भले बढ़ें।
  • अच्छा। सर्व सदा स्नेही, सदा सहयोगी बन सहयोगी बनाने वाले, सदा बधाई प्राप्त करने वाले, सदा हर सेकण्ड, हर संकल्प को श्रेष्ठ से श्रेष्ठ, गायन-योग्य बनाने वाले, सदा दाता बन सर्व को स्नेह और सहयोग देने वाले - ऐसे श्रेष्ठ, महान् भाग्यवान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और संगम की गुडनाइट और गुडमार्निंग।
  • विदेश सेवा पर उपस्थित टीचर्स प्रति - अव्यक्त महावाक्य निमित्त सेवाधारी बच्चों को बापदादा सदा ‘समान भव' के वरदान से आगे बढ़ाते रहते हैं।
  • बापदादा सभी पाण्डव चाहे शक्तियां, जो भी सेवा के लिए निमित्त हैं, उन सबको विशेष पदमापदम भागयवान श्रेष्ठ आत्मायें समझते हैं।
  • सेवा का प्रत्यक्ष फल खुशी और शक्ति, यह विशेष अनुभव तो करते ही हैं।
  • अभी जितना स्वयं शक्तिशाली लाइट हाउस, माइट हाउस बन सेवा करेंगे उतना जल्दी चारों ओर प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे।
  • हर एक निमित्त सेवाधारी को विशेष सेवा की सफलता के लिए दो बातें ध्यान रखनी हैं - एक बात सदा संस्कारों को मिलाने की युनिटी का, हर स्थान से यह विशेषता दिखाई दे।
  • दूसरा सदा हर निमित्त सेवाधारियों को पहले स्वयं को यह दो सर्टीफिकेट देने हैं।
  • एक ‘एकता' दूसरा ‘सन्तुष्टता'।
  • संस्कार भिन्न-भिन्न होते ही हैं और होंगे भी लेकिन संस्कारों को टकराना या किनारा करके स्वयं को सेफ रखना - यह अपने ऊपर है।
  • कुछ भी हो जाता है तो अगर कोई का संस्कार ऐसा है तो दूसरा ताली नहीं बजावे।
  • चाहे वह बदलते हैं या नहीं बदलते हैं, लेकिन आप तो बदल सकते हो ना!
  • अगर हरेक अपने को चेन्ज करे, समाने की शक्ति धारण करे तो दूसरे का संस्कार भी अवश्य शीतल हो जायेगा।
  • तो सदा एक दो में स्नेह की भावना से, श्रेष्ठता की भावना से सम्पर्क में आओ, क्योंकि निमित्त सेवाधारी - बाप के सूरत का दर्पण हैं।
  • तो जो आपकी प्रैक्टिकल जीवन है वही बाप के सूरत का दर्पण हो जाता है इसलिए सदा ऐसे जीवन रूपी दर्पण हो - जिसमें बाप जो है जैसा है वैसा दिखाई दे।
  • बाकी मेहनत बहुत अच्छी करते हो, हिम्मत भी अच्छी है।
  • सेवा की वृद्धि उमंग भी बहुत अच्छा है इसलिए विस्तार को प्राप्त कर रहे हो।
  • सेवा तो अच्छी है, अभी सिर्फ बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए प्रत्यक्ष जीवन का प्रमाण सदा दिखाओ।
  • जो सभी एक ही आवाज से बोलें कि यह ज्ञान की धारणाओं में तो एक हैं लेकिन संस्कार मिलाने में भी नम्बरवन हैं।
  • ऐसे भी नहीं कि इण्डिया की टीचर अलग हैं, फॉरेन की टीचर अलग हैं।
  • सभी एक हैं।
  • यह तो सिर्फ सेवा के निमित्त बने हुए हैं, स्थापना में सहयोगी बने हैं और अभी भी सहयोग दे रहे हैं, इसलिए स्वत: ही सबमें विशेष पार्ट बजाना पड़ता है।
  • वैसे बापदादा व निमित्त आत्माओं के पास विदेशी व देशी में कोई अन्तर नहीं है।
  • जहाँ जिसकी सेवा की विशेषता है, फिर चाहे कोई भी हो, वहाँ उसकी विशेषता से लाभ लेना होता है।
  • बाकी एक दो को रिगार्ड देना यह ब्राह्मण कुल की मर्यादा है, स्नेह लेना और रिगार्ड देना।
  • विशेषता को महत्व दिया जाता है ना कि व्यक्ति को। अच्छा।

वरदान:-

  • हर सेकण्ड और संकल्प को अमूल्य रीति से व्यतीत करने वाले अमूल्य रत्न भव
  • संगमयुग के एक सेकण्ड की भी बहुत बड़ी वैल्यु है।
  • जैसे एक का लाख गुणा बनता है वैसे यदि एक सेकण्ड भी व्यर्थ जाता है तो लाख गुणा व्यर्थ जाता है - इसलिए इतना अटेन्शन रखो तो अलबेलापन समाप्त हो जायेगा।
  • अभी तो कोई हिसाब लेने वाला नहीं है लेकिन थोड़े समय के बाद पश्चाताप होगा क्योंकि इस समय की बहुत वैल्यु है।
  • जो अपने हर सेकण्ड, हर संकल्प को अमूल्य रीति से व्यतीत करते हैं वही अमूल्य रत्न बनते हैं।

स्लोगन:-

  • जो सदा योगयुक्त हैं वो सहयोग का अनुभव करते विजयी बन जाते हैं।