28-12-2020
प्रात:मुरली
बापदादा
मधुबन
मीठे बच्चे - चैरिटी बिगन्स एट होम अर्थात् पहले खुद आत्म-अभिमानी बनने
की मेहनत करो फिर दूसरों को कहो, आत्मा समझकर आत्मा को ज्ञान दो तो
ज्ञान तलवार में जौहर आ जायेगा
प्रश्नः-
संगमयुग पर किन दो बातों की मेहनत करने से सतयुगी तख्त के
मालिक बन जायेंगे?
उत्तर:-
1. दु:ख-सुख, निंदा-स्तुति में समान स्थिति रहे - यह मेहनत
करो।
कोई भी कुछ उल्टा-सुल्टा बोले, क्रोध करे तो तुम चुप हो जाओ, कभी भी
मुख की ताली नहीं बजाओ।
2. आंखों को सिविल बनाओ, क्रिमिनल आई बिल्कुल
समाप्त हो जाए, हम आत्मा भाई-भाई हैं, आत्मा समझकर ज्ञान दो,
आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करो तो सतयुगी तख्त के मालिक बन जायेंगे।
सम्पूर्ण पवित्र बनने वाले ही गद्दी नशीन बनते हैं।
-
ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहानी बच्चों से बात करते हैं, तुम आत्माओं को यह
तीसरा नेत्र मिला है जिसको ज्ञान का नेत्र भी कहा जाता है, उनसे तुम देखते हो
अपने भाइयों को।
- तो यह बुद्धि से समझते हो ना कि जब हम भाई-भाई को
देखेंगे तो कर्मेन्द्रियाँ चंचल नहीं होंगी।
- और ऐसे करते-करते आंखें जो क्रिमिनल हैं
वह सिविल हो जायेंगी।
- बाप कहते हैं विश्व का मालिक बनने के लिए मेहनत तो
करनी पड़ेगी ना।
- तो अभी यह मेहनत करो।
- मेहनत करने के लिए बाबा नई-नई
गुह्य प्वाइंट्स सुनाते हैं ना।
- तो अभी अपने को भाई-भाई समझकर ज्ञान देने की
आदत डालनी है।
- फिर यह जो गाया जाता है कि “वी आर ऑल ब्रदर्स'' - यह
प्रैक्टिकल हो जायेगा।
- अभी तुम सच्चे-सच्चे ब्रदर्स हो क्योंकि बाप को जानते हो।
- बाप तुम बच्चों के साथ सर्विस कर रहे हैं।
- हिम्मते बच्चे मददे बाप।
- तो बाप
आकरके यह हिम्मत देते हैं सर्विस करने की।
- तो यह सहज हुआ ना।
- तो रोज़ यह
प्रैक्टिस करनी पड़ेगी, सुस्त नहीं होना चाहिए।
- यह नई-नई प्वाइंट्स बच्चों को
मिलती हैं, बच्चे जानते हैं कि हम भाइयों को बाबा पढ़ा रहे हैं।
- आत्मायें पढ़ती हैं,
यह रूहानी नॉलेज है, इसे स्प्रीचुअल नॉलेज कहा जाता है।
- सिर्फ इस समय
रूहानी नॉलेज, रूहानी बाप से मिलती है क्योंकि बाप आते ही हैं संगमयुग पर
जबकि सृष्टि बदलती है, यह रूहानी नॉलेज मिलती भी तब है जब सृष्टि बदलने
वाली है।
- बाप आकर यही तो रूहानी नॉलेज देते हैं कि अपने को आत्मा समझो।
- आत्मा नंगी (अशरीरी) आई थी, यहाँ फिर शरीर धारण करती है।
- शुरू से अब तक
आत्मा ने 84 जन्म लिये हैं।
- परन्तु नम्बरवार जो जैसे आये होंगे, वह वैसे ही
ज्ञान-योग की मेहनत करेंगे।
- फिर देखने में भी आता है कि जैसे जिसने कल्प
पहले जो पुरूषार्थ किया, मेहनत किया वह अभी भी ऐसे ही मेहनत करते रहते हैं।
अपने लिए मेहनत करनी है।
- दूसरे कोई के लिए तो नहीं करनी होती है।
- तो अपने
को ही आत्मा समझ करके अपने साथ मेहनत करनी है।
- दूसरा क्या करता है,
उसमें हमारा क्या जाता है।
- चैरिटी बिगन्स एट होम माना पहले-पहले खुद मेहनत
करनी है, पीछे दूसरों को (भाइयों को) कहना है।
- जब तुम अपने को आत्मा समझ
करके आत्मा को ज्ञान देंगे तो तुम्हारी ज्ञान तलवार में जौहर रहेगा।
- मेहनत तो है
ना।
- तो जरूर कुछ न कुछ सहन करना पड़ता है।
- इस समय दु:ख-सुख,
निंदा-स्तुति, मान-अपमान यह सब थोड़ा बहुत सहन करना पड़ता है।
- तो जब भी कोई उल्टा-सुल्टा बोलता है तो कहते हैं चुप।
- जब कोई चुप कर देते हैं तो पीछे
कोई गुस्सा क्या करेंगे।
- जब कोई बात करते हैं और दूसरा भी बात करते हैं तो
मुख की ताली बजती है।
- अगर एक ने मुख की ताली बजाई और दूसरे ने शान्त
किया तो चुप।
- बस यह बाप सिखलाते हैं।
- कभी भी देखो कोई क्रोध में आते हैं तो
चुप हो जाओ, आपेही उसका क्रोध शान्त हो जायेगा।
- दूसरी ताली बजेगी नहीं।
- अगर ताली से ताली बजी तो फिर गड़बड़ हो जाती है इसलिए बाप कहते हैं बच्चे
कभी भी इन बातों में ताली नहीं बजाओ।
- न विकार की, न काम की, न क्रोध
की।
- बच्चों को हर एक का कल्याण करना ही है, इतने जो सेन्टर्स बने हुए हैं
किसलिए?
- कल्प पहले भी तो ऐसे सेन्टर्स निकले होंगे।
- देवों का देव बाप देखते
रहते हैं कि बहुत बच्चों को यह शौक रहता है कि बाबा सेन्टर्स खोलूं।
- हम सेन्टर
खोलते हैं, हम खर्चा उठायेंगे।
- तो दिन-प्रतिदिन ऐसे होते जायेंगे क्योंकि जितना
विनाश के दिन नज़दीक होते जायेंगे उतना फिर इस तरफ भी सर्विस का शौक
बढ़ता जायेगा।
- अभी बापदादा दोनों इकट्ठे हैं तो हर एक को देखते हैं कि क्या
पुरूषार्थ करते हैं?
- क्या पद पायेंगे?
- किसका पुरूषार्थ उत्तम, किसका मध्यम,
किसका कनिष्ट है?
- वह तो देख रहे हैं।
- टीचर भी स्कूल में देखते हैं कि स्टूडेन्ट
किस सब्जेक्ट में ऊपर-नीचे होते हैं।
- तो यहाँ भी ऐसे ही है।
- कोई बच्चे अच्छी
तरह से अटेन्शन देते हैं तो अपने को ऊंचा समझते हैं।
- कोई समय फिर भूल
करते हैं, याद में नहीं रहते हैं तो अपने को कम समझते हैं।
- यह स्कूल है ना।
- बच्चे कहते हैं बाबा हम कभी-कभी बहुत खुशी में रहते हैं, कभी-कभी खुशी कम
हो जाती है।
- तो बाबा अभी समझाते रहते हैं कि अगर खुशी में रहना चाहते हो तो
मनमनाभव, अपने को आत्मा समझो और बाप को भी याद करो।
- सामने
परमात्मा को देखो तो वो अकाल तख्त पर बैठा हुआ है।
- ऐसे भाइयों की तरफ भी
देखो, अपने को आत्मा समझ करके फिर भाई से बात करो।
- भाई को हम ज्ञान
देते हैं।
- बहन नहीं, भाई-भाई।
- आत्माओं को ज्ञान देते हैं अगर यह आदत तुम्हारी
पड़ जायेगी तो तुम्हारी जो क्रिमिनल आई है, जो तुमको धोखा देती है वह
आहिस्ते-आहिस्ते बन्द हो जायेगी।
- आत्मा-आत्मा में क्या करेगी?
- जब
देह-अभिमान आता है तब गिरते हैं।
- बहुत कहते हैं बाबा हमारी क्रिमिनल आई है।
- अच्छा क्रिमिनल आई को अभी सिविल आई बनाओ।
- बाप ने आत्मा को दिया ही
है तीसरा नेत्र।
- तीसरे नेत्र से देखेंगे तो फिर तुम्हारी देह को देखने की आदत मिट
जायेगी।
- बाबा बच्चों को डायरेक्शन तो देते रहते हैं, इनको (ब्रह्मा को) भी ऐसे ही
कहते हैं।
- यह बाबा भी देह में आत्मा को देखेंगे।
- तो इसको ही कहा जाता है
रूहानी नॉलेज। देखो, पद कितना ऊंच पाते हो।
- जबरदस्त पद है।
- तो पुरुषार्थ भी
ऐसा करना चाहिए।
- बाबा भी समझते हैं कल्प पहले मुआफिक सबका पुरुषार्थ
चलेगा।
- कोई राजा-रानी बनेंगे, कोई प्रजा में चले जायेंगे।
- तो यहाँ जब बैठकर
नेष्ठा (योग) भी करवाते हो तो अपने को आत्मा समझ करके दूसरे की भी भ्रकुटी
में आत्मा को देखते रहेंगे तो फिर उनकी सर्विस अच्छी होगी।
- जो देही-अभिमानी
होकर बैठते हैं वो आत्माओं को ही देखते हैं।
- इसकी खूब प्रैक्टिस करो।
- अरे ऊंच
पद पाना है तो कुछ तो मेहनत करेंगे ना।
- तो अभी आत्माओं के लिए यही
मेहनत है।
- यह रूहानी नॉलेज एक ही दफा मिलती है और कभी भी नहीं मिलेगी।
- न कलियुग में, न सतयुग में, सिर्फ संगमयुग में सो भी ब्राह्मणों को।
- यह पक्का
याद कर लो।
- जब ब्राह्मण बनेंगे तब देवता बनेंगे।
- ब्राह्मण नहीं बने तो फिर
देवता कैसे बनेंगे?
- इस संगमयुग में ही यह मेहनत करते हैं।
- और कोई समय में
यह नहीं कहेंगे कि अपने को आत्मा, दूसरे को भी आत्मा समझ उनको ज्ञान दो।
- बाप जो समझाते हैं उस पर विचार सागर मंथन करो।
- जज करो कि क्या यह
ठीक है, हमारे फायदे की बात है?
- हमको आदत पड़ जायेगी कि बाप की जो
शिक्षा है सो भाइयों को देना है, फीमेल को भी देना है तो मेल को भी देना है।
- देना तो आत्माओं को ही है।
- आत्मा ही मेल, फीमेल बनी है।
- बहन-भाई बनी है।
- बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को ज्ञान देता हूँ।
- मैं बच्चों की तरफ, आत्माओं को
देखता हूँ और आत्मायें भी समझती हैं कि हमारा परमात्मा जो बाप है वह ज्ञान
देते हैं तो इसको कहेंगे यह रूहानी अभिमानी बने हैं।
- इसको ही कहा जाता
स्प्रीचुअल ज्ञान की लेन-देन - आत्मा की परमात्मा के साथ।
- तो यह बाप शिक्षा
देते हैं कि जब भी कोई विजीटर आदि आते हैं तो भी अपने को आत्मा समझ,
आत्मा को बाप का परिचय देना है।
- आत्मा में ज्ञान है, शरीर में नहीं है।
- तो
उनको भी आत्मा समझ करके ही ज्ञान देना है।
- इससे उनको भी अच्छा लगेगा।
- जैसेकि यह जौहर है तुम्हारे मुख में।
- इस ज्ञान की तलवार में जौहर भर जायेगा
क्योंकि देही-अभिमानी होते हो ना।
- तो यह भी प्रैक्टिस करके देखो।
- बाबा कहते हैं
जज करो - यह ठीक है?
- और बच्चों के लिए भी यह कोई नई बात नहीं है
क्योंकि बाप समझाते ही सहज करके हैं।
- चक्र लगाया, अब नाटक पूरा होता है,
अभी बाबा की याद में रहते हैं।
- तमोप्रधान से सतोप्रधान बन, सतोप्रधान दुनिया
का मालिक बनते हैं फिर ऐसे ही सीढ़ी उतरते हैं, देखो कितना सहज बताते हैं।
- हर
5 हज़ार वर्ष के बाद मेरे को आना होता है।
- ड्रामा के प्लैन अनुसार मैं बंधायमान
हूँ।
- आकरके बच्चों को बहुत सहज याद की यात्रा सिखलाता हूँ।
- बाप की याद में
अन्त मती सो गति हो जायेगी, यह इस समय के लिए है।
- यह अन्तकाल है।
- अभी इस समय बाप बैठ करके युक्ति बतलाते हैं कि मामेकम् याद करो तो
सद्गति हो जायेगी।
- बच्चे भी समझते हैं कि पढ़ाई से यह बनूँगा, फलाना बनूँगा।
- इसमें भी यही है कि मैं जाकरके नई दुनिया में देवी-देवता बनूँगा।
- कोई नई बात
नहीं है, बाप तो घड़ी-घड़ी कहते हैं नथिंगन्यु।
- यह तो सीढ़ी उतरनी-चढ़नी है,
जिन्न की कहानी है ना।
- उसको सीढ़ी उतरने और चढ़ने का काम दिया गया।
- यह
नाटक ही है चढ़ना और उतरना।
- याद की यात्रा से बहुत मजबूत हो जायेंगे
इसलिए भिन्न-भिन्न प्रकार से बाप बच्चों को बैठ सिखलाते हैं कि बच्चे अभी
देही-अभिमानी बनो।
- अभी सबको वापिस जाना है।
- तुम आत्मा पूरे 84 जन्म
लेकर तमोप्रधान बन गई हो।
- भारतवासी ही सतो-रजो-तमो बनते हैं।
- दूसरी कोई
नेशनल्टी को नहीं कहेंगे कि पूरे 84 जन्म लिए हैं।
- बाप ने आकरके बताया है
नाटक में हर एक का पार्ट अपना-अपना होता है।
- आत्मा कितनी छोटी है।
- साइंसदानों को यह समझ में ही नहीं आयेगा कि इतनी छोटी आत्मा में यह
अविनाशी पार्ट भरा हुआ है।
- यह है सबसे वण्डरफुल बात।
- यह छोटी सी आत्मा
और पार्ट कितना बजाती है!
- यह ड्रामा भी अविनाशी है और
बना-बनाया है।
- ऐसे नहीं कोई कहेंगे कि कब बना? नहीं।
- यह कुदरत है।
- यह ज्ञान
बड़ा वण्डरफुल है, कभी कोई यह ज्ञान बता ही नहीं सकते हैं।
- ऐसे कोई की ताकत
नहीं है जो यह ज्ञान बताये।
- तो अभी बच्चों को बाप दिन-प्रतिदिन समझाते रहते हैं।
- अभी प्रैक्टिस करो कि
हम अपने भाई आत्मा को ज्ञान देते हैं, आपसमान बनाने के लिए।
- बाप से वर्सा
लेने के लिए क्योंकि सब आत्माओं का हक है।
- बाबा आते हैं सभी आत्माओं को
अपना-अपना शान्ति वा सुख का वर्सा देने।
- हम जब राजधानी में होंगे तो बाकी
सब शान्तिधाम में होंगे।
- पीछे जय जयकार होगी, यहाँ सुख ही सुख होगा इसलिए
बाप कहते हैं पावन बनना है।
- जितना-जितना तुम पवित्र बनते हो उतना कशिश
होती है।
- जब तुम बिल्कुल पवित्र हो जाते हो तो गद्दी नशीन हो जाते हो।
- तो
प्रैक्टिस यह करो। ऐसे मत समझना कि बस यह सुना और कान से निकाला।
- नहीं, इस प्रैक्टिस बिगर तुम चल नहीं सकेंगे।
- अपने को आत्मा समझो, वह भी
आत्मा भाई-भाई को बैठकर समझाओ।
- रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं
इसको कहा जाता है रूहानी स्प्रीचुअल नॉलेज।
- प्रीचुल फादर देने वाला है।
- जब
चिल्ड्रेन पूरा स्प्रीचुअल बन जाते हैं, एकदम प्योर बन जाते हैं तो जाकर सतयुगी
तख्त के मालिक बनते हैं।
- जो प्योर नहीं बनेंगे वो माला में भी नहीं आयेंगे।
- माला का भी कोई अर्थ तो होगा ना। माला का राज़ दूसरा कोई भी नहीं जानते
हैं।
- माला को क्यों सिमरते हैं?
- क्योंकि बाप की बहुत ही मदद की है, तो क्यों
नहीं सिमरे जायेंगे।
- तुम सिमरे भी जाते हो, तुम्हारी पूजा भी होती है और तुम्हारे
शरीर को भी पूजा जाता है।
- और मेरी तो सिर्फ आत्मा को पूजा जाता है।
- देखो
तुम तो डबल पूजे जाते हो, मेरे से भी जास्ती।
- तुम जब देवता बनते हो तो
देवताओं की भी पूजा करते हैं इसलिए पूजा में भी तुम तीखे, यादगार में भी तुम
तीखे और बादशाही में भी तुम तीखे।
- देखो, तुमको कितना ऊंचा बनाता हूँ।
- तो
जैसे प्यारे बच्चे होते हैं, बहुत लव होता है तो बच्चों को कुल्हे पर, माथे पर भी
रखते हैं। बाबा एकदम सिर पर रख देते हैं।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) गायन और पूजन योग्य बनने के लिए स्प्रीचुअल बनना है, आत्मा को प्योर
बनाना है।
- आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है।
- 2) मनमनाभव के अभ्यास द्वारा अपार खुशी में रहना है।
- स्वयं को आत्मा
समझकर आत्मा से बात करनी है, आंखों को सिविल बनाना है।
- वरदान:-
- सदाकाल के अटेन्शन द्वारा विजय माला में पिरोने वाले बहुत
समय के विजयी भव
- बहुत समय के विजयी, विजय माला के मणके बनते हैं।
- विजयी बनने के लिए
सदा बाप को सामने रखो - जो बाप ने किया वही हमें करना है।
- हर कदम पर
जो बाप का संकल्प वही बच्चों का संकल्प, जो बाप के बोल वही बच्चों के बोल -
तब विजयी बनेंगे।
- यह अटेन्शन सदाकाल का चाहिए तब सदाकाल का
राज्य-भाग्य प्राप्त होगा क्योंकि जैसा पुरूषार्थ वैसी प्रालब्ध है।
- सदा का पुरूषार्थ है
तो सदा का राज्य-भाग्य है।
- स्लोगन:-
- सेवा में सदा जी हाजिर करना - यही प्यार का सच्चा सबूत है।
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