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ओम् शान्ति। जब ओम् शान्ति कहा जाता है तो अपना स्वधर्म याद पड़ता है।
- घर की भी याद आती है।
- परन्तु घर
में बैठ तो नहीं जाना है।
- बाप के बच्चे हैं तो जरूर अपना स्वर्ग भी याद करना पड़े।
- तो ओम् शान्ति कहने से यह सारा
ज्ञान बुद्धि में आ जाता है।
- मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शान्ति के सागर बाप का बच्चा हूँ।
- जो बाप स्वर्ग स्थापन करते हैं
वह बाप ही हमको पवित्र शान्त स्वरूप बनाते हैं।
- मुख्य बात है पवित्रता की।
- दुनिया ही पवित्र और अपवित्र बनती है।
- पवित्र दुनिया में एक भी विकारी नहीं है।
- अपवित्र दुनिया में 5 विकार हैं, इसलिए कहा जाता है विकारी दुनिया।
- वह है
निर्विकारी दुनिया।
- निर्विकारी दुनिया से सीढ़ी उतरते-उतरते फिर नीचे विकारी दुनिया में आते हैं।
- वह है पावन दुनिया, यह
है पतित दुनिया।
- वह है दिन, सुख।
- यह है भटकने की रात।
- यूँ तो रात में कोई भटकता नहीं है।
- परन्तु भक्ति को
भटकना कहा जाता है।
- तुम बच्चे अब यहाँ आये हो सद्गति पाने।
- तुम्हारी आत्मा में सब पाप थे, 5 विकार थे।
- उनमें भी मुख्य है काम
विकार, जिससे ही मनुष्य पाप आत्मा बनते हैं।
- यह तो हर एक जानते हैं हम पतित हैं और पाप आत्मा भी हैं।
- एक काम
विकार के कारण सब क्वालिफिकेशन बिगड़ पड़ती हैं इसलिए बाप कहते हैं काम को जीतो तो तुम जगतजीत अर्थात् नये
विश्व के मालिक बनेंगे।
- तो अन्दर में इतनी खुशी रहनी चाहिए।
- मनुष्य पतित बनते हैं तो कुछ भी समझते नहीं।
- बाप
समझाते हैं - कोई भी विकार नहीं होना चाहिए।
- मुख्य है काम विकार, इस पर कितने हंगामें होते हैं।
- घर-घर में कितनी
अशान्ति, हाहाकार हो जाता है।
- इस समय दुनिया में हाहाकार क्यों है? क्योंकि पाप आत्मायें हैं।
- विकारों के कारण ही
असुर कहा जाता है।
- अभी तुम समझते हो इस समय दुनिया में कोई भी काम की चीज़ नहीं, भंभोर को आग लगनी है।
- जो कुछ इन आंखों से देखा जाता है, सबको आग लग जायेगी।
- आत्मा को तो आग लगती नहीं।
- आत्मा तो सदैव जैसे
इन्श्योर है, सदैव जीती रहती।
- आत्मा को कभी इन्श्योर कराते हैं क्या?
- शरीर को इन्श्योर कराया जाता है।
- आत्मा
अविनाशी है।
- बच्चों को समझाया गया है - यह खेल है।
- आत्मा तो ऊपर रहने वाली 5 तत्वों से बिल्कुल अलग है।
- 5
तत्वों से सारी दुनिया की सामग्री बनती है।
- आत्मा तो नहीं बनती है।
- आत्मा सदैव है ही।
- सिर्फ पुण्य आत्मा, पाप आत्मा
बनती है।
- आत्मा पर ही नाम पड़ता है पुण्य आत्मा, पाप आत्मा।
- 5 विकारों से कितने गन्दे बन जाते हैं।
- अब बाप आये
हैं पापों से छुड़ाने।
- विकार ही सारा कैरेक्टर बिगाड़ते हैं।
- कैरेक्टर किसको कहा जाता है, यह भी समझते नहीं।
- यह है ऊंच
ते ऊंच रूहानी गवर्नमेन्ट।
- पाण्डव गवर्नमेन्ट न कह तुमको ईश्वरीय गवर्नमेन्ट कह सकते हैं।
- तुम समझते हो हम ईश्वरीय
गवर्नमेन्ट हैं।
- ईश्वरीय गवर्नमेन्ट क्या करती है?
- आत्माओं को पवित्र बनाकर देवता बनाती है।
- नहीं तो देवता कहाँ से
आये?
- यह कोई भी नहीं जानते, हैं तो यह भी मनुष्य परन्तु देवता कैसे थे, किसने बनाया?
- देवतायें तो होते ही हैं स्वर्ग
में।
- तो उन्हों को स्वर्गवासी किसने बनाया?
- स्वर्गवासी फिर जरूर नर्कवासी बनते हैं फिर स्वर्गवासी।
- यह भी तुम नहीं
जानते थे तो और फिर कैसे जानेंगे!
- अब तुम समझते हो कि ड्रामा बना हुआ है, इतने सब एक्टर्स हैं।
- यह सब बातें बुद्धि
में होनी चाहिए।
- पढ़ाई तो बुद्धि में होनी चाहिए ना और पवित्र भी जरूर बनना है।
- पतित बनना बहुत खराब बात है।
- आत्मा ही पतित बनती है।
- एक-दो में पतित बनते हैं।
- पतितों को पावन बनाना यह तुम्हारा धन्धा है।
- पावन बनो तो
पावन दुनिया में चलेंगे।
- यह आत्मा समझती है।
- आत्मा न हो तो शरीर भी ठहर न सके, रेसपान्ड मिल न सके।
- आत्मा
जानती है हम असुल पावन दुनिया के रहवासी हैं।
- अभी बाप ने समझाया है तुम बिल्कुल ही बेसमझ थे, इसलिए पतित
दुनिया के लायक बन पड़े हो।
- अब जब तक पावन नहीं बनेंगे तब तक स्वर्ग के लायक नहीं बन सकेंगे।
- स्वर्ग की भेंट भी
संगम पर की जाती है।
- वहाँ थोड़ेही भेंट कर सकेंगे।
- इस संगमयुग पर ही तुमको सारा ज्ञान मिलता है।
- पवित्र बनने का
हथियार मिलता है।
- एक को ही कहा जाता है पतित-पावन बाबा, हमको ऐसा पावन बनाओ।
- यह स्वर्ग के मालिक हैं ना।
- तुम जानते हो हम ही स्वर्ग के मालिक थे फिर 84 जन्म लेकर पतित बने हैं।
- श्याम और सुन्दर, इनका नाम भी ऐसा
रखा है।
- कृष्ण का चित्र श्याम बना देते हैं परन्तु अर्थ थोड़ेही समझते हैं।
- कृष्ण की भी तुमको कितनी क्लीयर समझानी
मिलती है।
- इनमें दो दुनियायें कर दी हैं।
- वास्तव में दो दुनियायें तो हैं नहीं।
- दुनिया एक ही है।
- वह नई और पुरानी होती
है।
- पहले छोटे बच्चे नये होते हैं फिर बड़े बन बूढ़े होते हैं।
- तो तुम कितना माथा मारते हो समझाने के लिए, अपनी
राजधानी स्थापन कर रहे हो ना।
- लक्ष्मी-नारायण ने समझा है ना।
- समझ से कितने मीठे बने हैं।
- किसने समझाया?
- भगवान ने।
- लड़ाई आदि की तो बात ही नहीं।
- भगवान कितना समझदार, नॉलेजफुल है।
- कितना पवित्र है।
- शिव के चित्र
आगे सब मनुष्य जाकर नमन करते हैं परन्तु वह कौन है, क्या करते हैं, यह कोई नहीं जानते।
- शिव काशी विश्वनाथ
गंगा.... बस सिर्फ कहते रहते हैं।
- अर्थ ज़रा भी नहीं समझते।
- समझाओ तो कहेंगे तुम क्या हमको समझायेंगे।
- हम तो
वेद-शास्त्र आदि सब पढ़े हैं।
- परन्तु राम राज्य किसको कहा जाता है, यह भी कोई जानते नहीं।
- राम राज्य सतयुग नई
दुनिया को कहा जाता है।
- तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं, जिनको धारणा होती है।
- कई तो भूल भी जाते हैं क्योंकि बिल्कुल ही
पत्थरबुद्धि बन गये हैं।
- तो अब पारसबुद्धि जो बने हैं उनका काम है औरों को पारसबुद्धि बनाना।
- पत्थरबुद्धि की एक्टिविटी
वही चलती रहेगी क्योंकि हंस और बगुले हो गये ना।
- हंस कभी किसको दु:ख नहीं देते।
- बगुले दु:ख देते हैं।
- कई हैं जिनकी
चाल ही बगुले मिसल होती है, उनमें सब विकार होते हैं।
- यहाँ भी ऐसे बहुत विकारी आ जाते हैं, जिनको असुर कहा जाता
है।
- पहचान नहीं रहती।
- बहुत सेन्टर्स पर भी विकारी आते हैं, बहाना बनाते हैं, हम ब्राह्मण हैं, परन्तु है झूठ।
- इसको कहा
ही जाता है झूठी दुनिया।
- वह नई दुनिया सच्ची दुनिया है।
- अभी है संगम।
- कितना फ़र्क रहता है।
- जो झूठ बोलने वाले,
झूठा काम करने वाले हैं, वह थर्ड ग्रेड बनते हैं।
- फर्स्ट ग्रेड, सेकेण्ड ग्रेड तो होते हैं ना।
- बाप कहते हैं पवित्रता का भी पूरा सबूत देना है।
- कई कहते हैं यह दोनों इकट्ठे रहकर पवित्र रहते, यह तो इम्पासिबुल
है।
- तो बच्चों को समझाना चाहिए।
- योगबल न होने कारण इतनी सहज बात भी पूरी रीति समझा नहीं सकते हैं।
- उनको
यह बात कोई नहीं समझाते कि यहाँ हमको भगवान पढ़ाते हैं।
- वह कहते पवित्र बनने से तुम 21 जन्म स्वर्ग के मालिक
बनेंगे।
- वह है पवित्र दुनिया।
- पवित्र दुनिया में पतित कोई हो न सके।
- 5 विकार ही नहीं हैं।
- वह है वाइसलेस वर्ल्ड।
- यह है
विशश वर्ल्ड।
- हमको सतयुग की बादशाही मिलती है तो हम एक जन्म के लिए क्यों नहीं पावन बनेंगे!
- जबरदस्त लॉटरी
मिलती है हमको।
- तो खुशी होती है।
- देवी-देवता पवित्र हैं ना।
- अपवित्र से पवित्र भी बाप ही बनायेंगे।
- तो बताना चाहिए
हमको यह टैम्पटेशन है।
- बाप ही ऐसा बनाते हैं।
- बाप बिगर तो नई दुनिया कोई बना न सके।
- मनुष्य से देवता बनाने
भगवान ही आते हैं, जिसकी रात्रि गाई जाती है।
- यह भी समझाया है ज्ञान, भक्ति, वैराग्य।
- ज्ञान और भक्ति आधा-आधा
है।
- भक्ति के बाद है वैराग्य।
- अब घर जाना है, यह शरीर रूपी कपड़े उतार देने हैं।
- इस छी-छी दुनिया में नहीं रहना है।
- 84 का चक्र अब पूरा हुआ।
- अब वाया शान्तिधाम जाना है।
- पहले-पहले अल्फ की बात नहीं भूलनी है।
- यह भी बच्चे
समझते हैं यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है।
- बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं।
- बाप अनेक बार आये हैं स्वर्ग की स्थापना
करने।
- नर्क का विनाश हो जाना है।
- नर्क कितना बड़ा है, स्वर्ग कितना छोटा है।
- नई दुनिया में एक ही धर्म होता है।
- यहाँ
हैं अनेक धर्म।
- एक धर्म किसने स्थापन किया?
- ब्रह्मा ने तो नहीं किया।
- ब्रह्मा ही पतित सो फिर पावन बनता है।
- मेरे
लिए तो नहीं कहेंगे पतित सो पावन।
- पावन हैं तो लक्ष्मी-नारायण नाम है।
- ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात।
- यह प्रजापिता
है ना।
- शिवबाबा को अनादि क्रियेटर कहा जाता है।
- अनादि अक्षर बाप के लिए है।
- बाप अनादि तो आत्मायें भी अनादि हैं।
- खेल भी अनादि है।
- बना बनाया ड्रामा है।
- स्व आत्मा को सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त, ड्यूरेशन का ज्ञान मिलता है।
- यह किसने दिया?
- बाप ने।
- तुम 21 जन्मों के लिए धनके बन जाते हो फिर रावण के राज्य में निधनके बन जाते हो।
- यहाँ से ही कैरेक्टर बिगड़ते हैं, विकार हैं ना।
- बाकी दो दुनियायें नहीं हैं।
- मनुष्य तो फिर समझते हैं नर्क-स्वर्ग सब इकट्ठे
ही चलते हैं।
- अभी तुम बच्चों को कितना क्लीयर समझाया जाता है।
- अभी तुम गुप्त हो।
- शास्त्रों में तो क्या-क्या लिख
दिया है।
- सूत कितना मूँझा हुआ है।
- सिवाए बाप के कोई सुलझा न सके।
- उन्हें ही पुकारते हैं - हम कोई काम के नहीं रहे
हैं, आकर पावन बनाए हमारे कैरेक्टर सुधारो।
- तुम्हारे कितने कैरेक्टर सुधरते हैं।
- कोई-कोई के तो सुधरने बदले और ही
बिगड़ते हैं।
- चलन से भी मालूम पड़ जाता है।
- आज महारथी हंस कहलाते हैं, कल बगुला बन पड़ते।
- देरी नहीं लगती है।
- माया भी गुप्त है ना।
- क्रोध कोई देखने में थोड़ेही आता है।
- भौं-भौं करते हैं तो फिर वह बाहर निकलने से दिखाई पड़ता है।
- फिर आश्चर्यवत् सुनन्ती.... कथन्ती भागन्ती हो जाते हैं।
- कितना गिरते हैं।
- एकदम पत्थर बन जाते हैं।
- इन्द्रप्रस्थ की भी
बात है ना।
- मालूम तो पड़ ही जाता है।
- ऐसा फिर सभा में नहीं आना चाहिए।
- थोड़ा-बहुत ज्ञान सुना है तो स्वर्ग में आ ही
जाते हैं।
- ज्ञान का विनाश नहीं हो सकता।
- अब बाप कहते हैं - तुमको पुरुषार्थ कर ऊंच पद पाना है।
- अगर विकार में गये तो पद भ्रष्ट कर देंगे।
- सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनेंगे फिर वैश्य वंशी, शूद्र वंशी।
- अभी तुम समझते हो यह चक्र कैसे फिरता है।
- वह तो कलियुग की आयु ही
40 हज़ार वर्ष कह देते हैं।
- सीढ़ी तो नीचे उतरनी होती है ना।
- 40 हज़ार वर्ष हों तो मनुष्य ढेर हो जाएं।
- 5 हज़ार वर्ष में
ही इतने मनुष्य हैं, जो खाने को नहीं मिलता।
- तो इतने हज़ार वर्षों में कितनी वृद्धि हो जाए।
- तो बाप आकर धीरज देते हैं।
- पतित मनुष्यों को तो लड़ना ही है।
- उन्हों की बुद्धि इस तरफ आ न सके।
- अब तुम्हारी बुद्धि देखो कितनी बदलती है फिर
भी माया धोखा जरूर देती है।
- इच्छा मात्रम् अविद्या।
- कोई इच्छा की तो गया।
- वर्थ नाट ए पेनी बन जाते हैं।
- अच्छे-अच्छे
महारथियों को भी माया कोई न कोई प्रकार से कभी धोखा देती रहती हैं।
- फिर वह दिल पर चढ़ नहीं सकते।
- जैसे लौकिक
माँ-बाप के दिल पर नहीं चढ़ते हैं।
- कोई तो बच्चे ऐसे होते हैं जो बाप को भी खत्म कर देते हैं।
- परिवार को खत्म कर देते
हैं।
- महान पाप आत्मायें हैं।
- रावण क्या कर देते, बहुत डर्टी दुनिया है।
- इनसे कभी दिल नहीं लगानी चाहिए।
- पवित्र बनने
की बड़ी हिम्मत चाहिए।
- विश्व के बादशाही की प्राइज़ लेने के लिए पवित्रता मुख्य है इसलिए बाप को कहते हैं कि आकर
पावन बनाओ।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को
नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) माया के धोखों से बचने के लिए इच्छा मात्रम् अविद्या बनना है।
- इस डर्टी दुनिया से दिल नहीं लगानी है।
- 2) पवित्रता का पूरा-पूरा सबूत देना है।
- सबसे ऊंचा कैरेक्टर ही पवित्रता है।
- अपने आपको सुधारने के लिए पवित्र जरूर
बनना है।
- वरदान:-
- अपने एकाग्र स्वरूप द्वारा सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव करने वाले अन्तर्मुखी भव
- एकाग्रता का आधार अन्तर्मुखता है।
- जो अन्तर्मुखी हैं वे अन्दर ही अन्दर सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव करते
हैं।
- आत्माओं का आह्वान करना, आत्माओं से रूहरिहान करना, आत्माओं के संस्कार स्वभाव को परिवर्तन करना, बाप से
कनेक्शन जुड़वाना - ऐसे रूहों की दुनिया में रूहानी सेवा करने के लिए एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ, इससे सर्व प्रकार
के विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे।
- स्लोगन:-
- सर्व प्राप्तियों को स्वयं में धारण कर विश्व की स्टेज पर प्रत्यक्ष होना ही प्रत्यक्षता का आधार है।
- विशेष नोट:-
- यह जनवरी मास मीठे साकार बाबा की स्मृतियों का मास है, स्वयं को समर्थ बनाने के लिए विशेष
अन्तर्मुखी बन सूक्ष्म शक्तियों की लीलाओं का अनुभव करना है। पूरा ही मास अपनी अव्यक्त स्थिति में रहना है। मन
और मुख का मौन रखना है।
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