05-01-2021 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - तुम्हारे मुख से कभी भी हे ईश्वर, हे बाबा शब्द नहीं निकलना चाहिए, यह तो भक्ति मार्ग की प्रैक्टिस है

प्रश्नः-

तुम बच्चे सफेद ड्रेस पसन्द क्यों करते हो? यह किस बात का प्रतीक है?

उत्तर:-

अभी तुम इस पुरानी दुनिया से जीते जी मर चुके हो इसलिए तुम्हें सफेद ड्रेस पसन्द है।

यह सफेद ड्रेस मौत को सिद्ध करता है।

जब कोई मरता है तो उस पर भी सफेद कपड़ा डालते हैं, तुम बच्चे भी अभी मरजीवा बने हो।

  • ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, रूहानी अक्षर न कह सिर्फ बाप कहें तो भी ठीक है।
    • बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं।
    • सब अपने को भाई-भाई तो कहते ही हैं।
    • तो बाप बैठ समझाते हैं बच्चों को।
    • सभी को तो नहीं समझाते होंगे।
    • सब अपने को भाई-भाई कहते ही हैं।
  • गीता में लिखा हुआ है - भगवानुवाच।
  • अब भगवानुवाच किसके प्रति?
  • भगवान के हैं सब बच्चे।
  • वह बाप है तो भगवान के बच्चे सब ब्रदर्स हैं।
  • भगवान ने ही समझाया होगा, राजयोग सिखाया होगा।
  • अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला हुआ है।
  • दुनिया में और किसी के भी ऐसे ख्यालात नहीं चल सकते।
  • जिन-जिन को सन्देश मिलता जायेगा वह स्कूल में आते जायेंगे, पढ़ते जायेंगे।
  • समझेंगे प्रदर्शनी तो देखी, अब जाकर कुछ ज्यादा सुने।
  • पहली-पहली मुख्य बात है ज्ञान का सागर, पतित-पावन गीता ज्ञान दाता शिव भगवानुवाच पहले-पहले उनको यह पता पड़े कि इन्हों को सिखलाने वाला अथवा समझाने वाला कौन है!
  • वह सुप्रीम सोल ज्ञान का सागर निराकार है।
  • वह तो है ही सत्य। (ट्रूथ)
  • वह सत्य ही बतायेंगे।
  • फिर उसमें और कोई प्रश्न उठ नहीं सकता।
  • पहले-पहले तो इस पर समझाना है, हमको परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखलाते हैं।
  • यह राजाई पद है।
  • जिसको निश्चय हो जायेगा कि जो सबका बाप है, वह पारलौकिक बाप बैठ समझाते हैं, वही सबसे बड़ी अथॉरिटी है तो फिर दूसरा कोई प्रश्न उठ ही नहीं सकता।
  • वह है पतित-पावन तो जब वह यहाँ आते हैं तो जरूर अपने टाइम पर आते होंगे।
  • तुम देखते भी हो - यह वही महाभारत लड़ाई है।
  • विनाश के बाद फिर वाइसलेस दुनिया होनी है।
  • यह है विशश दुनिया।
  • यह मनुष्य नहीं जानते कि भारत ही वाइसलेस था।
  • कुछ भी बुद्धि चलती नहीं।
  • गाडरेज का ताला लगा हुआ है।
  • उसकी चाबी एक बाप के पास ही है इसलिए उनको ही ज्ञान दाता, दिव्य चक्षु विधाता कहा जाता है।
  • ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं।
  • यह किसको पता नहीं है कि तुमको पढ़ाने वाला कौन है।
  • दादा समझ लेते हैं तब टीका करते हैं।
  • कुछ न कुछ बोलते हैं - इसलिए पहली-पहली बात ही यह समझाओ।
  • इसमें लिखा हुआ भी है - शिव भगवानुवाच।
  • वह तो है ही ट्रूथ।
  • बाप समझते हैं मैं पतित-पावन शिव हूँ।
  • मैं परमधाम से आया हूँ, इन सालिग्रामों को पढ़ाने।
  • बाप है ही नॉलेजफुल।
  • सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं।
  • यह शिक्षा अभी तुमको ही बेहद के बाप से मिल रही है।
  • वही सृष्टि के रचयिता हैं।
  • पतित सृष्टि को पावन बनाने वाले हैं।
  • बुलाते भी हैं हे पतित-पावन आओ तो पहले-पहले उसका ही परिचय देना है।
  • उस परमपिता परमात्मा के साथ आपका क्या सम्बन्ध है?
  • वह है ही सत्य।
  • नर से नारायण बनने की सत्य नॉलेज देते हैं।
  • बच्चे जानते हैं बाप सत्य है, बाप ही सचखण्ड बनाते हैं।
  • तुम नर से नारायण बनने यहाँ आते हो।
  • बैरिस्टर पास जायेंगे तो समझेंगे हम बैरिस्टर बनने आये हैं।
  • अभी तुमको निश्चय है कि हमें भगवान पढ़ाते हैं।
  • कई निश्चय करते भी हैं फिर संशयबुद्धि हो जाते हैं तो उनको सब मनुष्य कहते हैं तुम तो कहते थे, भगवान पढ़ाते हैं फिर भगवान को छोड़ क्यों आये हो?
  • संशय आने से ही भागन्ती हो जाते हैं।
  • कोई न कोई विकर्म करते हैं।
  • भगवानुवाच काम महाशत्रु है, इन पर जीत पाने से ही तुम जगतजीत बनेंगे।
  • जो पावन बनेंगे वही पावन दुनिया में चलेंगे।
  • यहाँ है ही राजयोग की बात।
  • तुम जाकर वहाँ राजाई करेंगे।
  • बाकी जो भी आत्मायें हैं वह अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर वापिस अपने घर चली जायेंगी।
  • यह कयामत का समय है।
  • अब यह बुद्धि कहती है सतयुग की स्थापना जरूर होनी है।
  • पावन दुनिया सतयुग को कहा जाता है।
  • बाकी सब मुक्तिधाम में चले जायेंगे।
  • उनको फिर अपना पार्ट रिपीट करना है।
  • तुम भी अपना पुरुषार्थ करते रहते हो।
  • पावन बन और पावन दुनिया का मालिक बनने के लिए।
  • मालिक तो सब अपने को समझेंगे ना।
  • प्रजा भी मालिक है।
  • अभी प्रजा भी कहती है ना - हमारा भारत।
  • बड़े ते बड़े मनुष्य संन्यासी आदि भी कहते हमारा भारत।
  • तुम समझते हो इस समय भारत में सभी नर्कवासी हैं।
  • अभी हम स्वर्गवासी बनने के लिए यह राजयोग सीख रहे हैं।
  • सब तो स्वर्गवासी नहीं बनेंगे।
  • यह अभी ज्ञान आया है।
  • वो लोग जो सुनाते हैं, शास्त्र सुनाते हैं।
  • वह हैं शास्त्रों की अथॉरिटी।
  • बाप कहते हैं यह भक्ति मार्ग के वेद शास्त्र आदि सब पढ़ने से सीढ़ी नीचे उतरते जाते हैं।
  • यह सब है भक्ति मार्ग।
  • बाप कहते हैं जब भक्ति मार्ग पूरा होगा तब ही मैं आऊंगा।
  • मुझे ही आकर सब भक्तों को भक्ति का फल देना है।
  • मैजॉरटी तो भक्तों की है।
  • सब पुकारते रहते हैं ना - हे गाड फादर।
  • भक्तों के मुख से ओ गाड फादर, हे भगवान जरूर निकलेगा।
  • अब भक्ति और ज्ञान में तो फ़र्क है।
  • तुम्हारे मुख से कभी हे ईश्वर, हे भगवान यह अक्षर नहीं निकलेंगे।
  • मनुष्यों को तो यह आधाकल्प की प्रैक्टिस पड़ी हुई है।
  • तुम जानते हो वह तो हमारा बाप है, तुमको हे बाबा थोड़ेही करना है।
  • बाप से तो तुमको वर्सा लेना है।
  • पहले तो यह निश्चय है हम बाप से वर्सा लेते हैं।
  • बाप बच्चों को वर्सा लेने का अधिकारी बनाते हैं।
  • यह तो सच्चा बाप है ना।
  • बाप जानते हैं - यह हमारे बच्चे हैं, जिन्हों को हम ज्ञान अमृत पिलाए, ज्ञान चिता पर बिठाए घोर नींद से जगाए स्वर्ग में ले जाता हूँ।
  • बाप ने समझाया है - आत्मायें वहाँ शान्तिधाम और सुखधाम में रहती हैं।
  • सुखधाम को कहा जाता है वाइसलेस वर्ल्ड।
  • सम्पूर्ण निर्विकारी देवतायें हैं ना।
  • और वह है स्वीट होम।
  • तुम जान गये हो कि हमारा होम वह है, हम एक्टर्स उस शान्तिधाम से आते हैं - यहाँ पार्ट बजाने।
  • हम आत्मायें यहाँ के रहवासी नहीं हैं।
  • वह एक्टर्स यहाँ के रहवासी होते हैं।
  • सिर्फ घर से आकर ड्रेस बदलकर पार्ट बजाते हैं।
  • तुम तो समझते हो हमारा घर शान्तिधाम है, वहाँ हम फिर वापिस जाते हैं।
  • जब सभी एक्टर्स स्टेज पर आ जाते हैं तब फिर बाप आकर सभी को ले जायेंगे, इसलिए उनको लिब्रेटर, गाइड भी कहा जाता है।
  • दु:ख हर्ता सुख कर्ता है तो इतने सब मनुष्य कहाँ जायेंगे।
  • विचार करो - पतित-पावन को बुलाते हैं। किसलिए?
  • अपनी मौत के लिए, दु:ख की दुनिया में रहने नहीं चाहते हैं, इसलिए कहते हैं घर चलो।
  • यह सब मुक्ति को ही मानने वाले हैं।
  • भारत का प्राचीन राजयोग भी कितना मशहूर है।
  • विलायत में भी जाते हैं प्राचीन राजयोग सिखलाने।
  • वास्तव में हठयोगी तो राजयोग जानते ही नहीं।
  • उन्हों का योग ही रांग है इसलिए तुम्हें जाकर सच्चा राजयोग सिखाना है।
  • मनुष्य को संन्यासियों की कफनी देख उन्हों को कितना मान देते हैं।
  • बौद्ध धर्म में भी संन्यासियों को, कफनी पहनी हुई देख उनको मानते हैं।
  • संन्यासी तो बाद में होते हैं।
  • बौद्ध धर्म में भी शुरू में कोई संन्यासी नहीं होते हैं।
  • जब पाप बढ़ता है, बौद्ध धर्म में तब संन्यास धर्म स्थापन होता है।
  • शुरू में तो वह आत्मायें ऊपर से आती हैं। उनकी संख्या आती है।
  • शुरू में संन्यास सिखलाकर क्या करेंगे, संन्यास होता है बाद में।
  • यह भी यहाँ से कापी करते हैं।
  • क्रिश्चियन में भी बहुत हैं जो संन्यासियों का मान रखते हैं।
  • कफनी की जो पहरवाइस है, वह हठयोगियों की है।
  • तुमको तो घरबार छोड़ना नहीं है।
  • न कोई सफेद कपड़े का बंधन है परन्तु सफेद अच्छा है।
  • तुम भट्ठी में रहे हो तो ड्रेस भी यह हो गई है।
  • आजकल सफेद बहुत पसन्द करते हैं।
  • मनुष्य मरते हैं तो भी सफेद चादर डालते हैं।
  • तुम भी अभी मरजीवा बने हो तो सफेद ड्रेस अच्छी है।
  • तो पहले कोई को भी बाप का परिचय देना है।
  • दो बाप हैं, यह बातें समझने में टाइम लेते हैं।
  • प्रदर्शनी में इतना समझा नहीं सकेंगे।
  • सतयुग में होता है एक बाप।
  • इस समय तुमको 3 बाप हैं क्योंकि भगवान आते हैं प्रजापिता ब्रह्मा के तन में, वह भी तो बाप है सबका।
  • लौकिक बाप भी है।
  • अच्छा अब तीनों बाप से ऊंच वर्सा किसका?
  • निराकार बाप वर्सा कैसे दे।
  • वह फिर देते हैं ब्रह्मा द्वारा।
  • इस चित्र पर तुम बहुत अच्छी रीति समझा सकते हो।
  • शिवबाबा निराकार है और यह है प्रजापिता ब्रह्मा आदि देव, ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर।
  • बाप कहते हैं मुझ शिव को तुम ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर नहीं कहेंगे।
  • मैं सभी का बाप हूँ।
  • यह है प्रजापिता ब्रह्मा।
  • तुम हो गये सब बहन भाई।
  • भल स्त्री पुरुष हैं परन्तु बुद्धि से जानते हैं हम भाई-बहिन हैं।
  • बाप से वर्सा लेते हैं।
  • भाई-बहन आपस में क्रिमिनल एसाल्ट कर न सकें।
  • अगर दोनों की आपस में विकारी दृष्टि खींचती है तो फिर गिर पड़ते हैं।
  • बाप को भूल जाते हैं।
  • बाप कहते हैं तुम हमारा बच्चा बन फिर मुँह काला करते हो।
  • बेहद का बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं।
  • तुमको यह नशा चढ़ा हुआ है।
  • जानते हो गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है।
  • लौकिक सम्बन्धियों को भी मुँह देना है, तोड़ निभाना है।
  • लौकिक बाप को तो तुम बाप कहेंगे ना।
  • उनको तो तुम भाई नहीं कह सकते हो।
  • आर्डनरी वे में बाप को बाप ही कहेंगे।
  • बुद्धि में है यह हमारा लौकिक बाप है।
  • ज्ञान तो है ना।
  • यह ज्ञान बड़ा विचित्र है।
  • आजकल करके नाम भी ले लेते हैं परन्तु कोई विजीटर आदि बाहर के आदमी के सामने भाई कह दो तो वह समझेंगे इनका माथा खराब हुआ है।
  • इसमें बड़ी युक्ति चाहिए।
  • तुम्हारा गुप्त ज्ञान है, गुप्त संबंध है।
  • इसमें बड़ा युक्ति से चलना है।
  • लेकिन एक दो को रिगार्ड देना अच्छा है।
  • लौकिक से भी तोड़ निभाना है।
  • बुद्धि चली जानी चाहिए ऊपर।
  • हम बाबा से वर्सा ले रहे हैं।
  • बाकी चाचे को चाचा, बाप को बाप कहना पड़ेगा।
  • जो बी.के. नहीं बने हैं तो वह भाई-बहन नहीं समझेंगे।
  • जो ब्रह्माकुमार कुमारियां बने हैं वही इन बातों को समझेंगे।
  • बाहर वाले तो पहले सुनकर चमकेंगे।
  • इसमें समझने की बड़ी अच्छी बुद्धि चाहिए।
  • बाप तुम बच्चों की विशालबुद्धि बनाते हैं।
  • तुम पहले हद की बुद्धि में थे।
  • अब बुद्धि चली जाती है बेहद में।
  • हमारा वह बेहद का बाप है।
  • यह सब हमारे भाई बहन हैं।
  • बाकी संबंध में तो बहू को बहू, सासू को सासू ही कहेंगे, बहन थोड़ेही कहेंगे।
  • आते तो दोनों हैं।
  • घर में रहते भी बड़ी युक्ति से चलना होगा।
  • लोक संग्रह को भी देखना पड़ता है।
  • नहीं तो वह लोग कहेंगे यह पति को भाई, सासू को बहन कह देते, यह क्या सीखते हैं।
  • यह ज्ञान की बातें तो तुम ही जानो और न जाने कोई।
  • कहते हैं ना - तुम्हारी गति मति तुम ही जानो।
  • अब तुम उसके बच्चे बने हो तो तुम्हारी गति मत तुम ही जानो।
  • बड़ा सम्भलकर चलना पड़ता है।
  • कहाँ कोई मूँझे नहीं।
  • तो प्रदर्शनी में भी तुम बच्चों को पहले-पहले यह समझाना है कि हमको पढ़ाने वाला भगवान है।
  • अब बताओ वह कौन है?
  • निराकार शिव या श्रीकृष्ण।
  • शिव जयन्ती के बाद फिर आती है कृष्ण जयन्ती क्योंकि बाप राजयोग सिखलाते हैं।
  • बच्चों की बुद्धि में आया ना।
  • जब तक शिव परमात्मा न आये, शिव जयन्ती मना न सकें।
  • जब तक शिव आकर कृष्णपुरी स्थापन न करे तो कृष्ण जयन्ती भी कैसे मनाई जाए।
  • कृष्ण का जन्म तो मनाते हैं परन्तु समझते थोड़ेही हैं।
  • कृष्ण प्रिन्स था तो जरूर सतयुग में प्रिन्स होगा ना।
  • देवी देवताओं की राजधानी होगी।
  • सिर्फ एक कृष्ण को तो बादशाही नहीं मिली होगी।
  • जरूर कृष्णपुरी होगी ना।
  • कहते भी हैं कृष्णपुरी और यह है कंसपुरी।
  • कंसपुरी खत्म हुई फिर कृष्णपुरी स्थापन हुई ना।
  • होती भारत में ही है।
  • नई दुनिया में थोड़ेही यह कंस आदि हो सकते हैं।
  • कंसपुरी कहा जाता है कलियुग को।
  • यहाँ तो देखो कितने मनुष्य हैं।
  • सतयुग में थोड़े होते हैं।
  • देवताओं ने कोई लड़ाई नहीं की।
  • कृष्णपुरी कहो अथवा विष्णुपुरी कहो, दैवी सम्प्रदाय कहो, आसुरी सम्प्रदाय यहाँ है।
  • बाकी न देवताओं और असुरों की लड़ाई हुई, न कौरवों पाण्डवों की हुई है।
  • तुम रावण पर जीत पाते हो।
  • बाप कहते हैं इन 5 विकारों पर जीत पहनो तो तुम जगतजीत बन जायेंगे, इसमें कोई लड़ना नहीं है।
  • लड़ने का नाम ले तो हिंसा हो जाए।
  • रावण पर जीत पानी है,परन्तु नानवायोलेंस से।
  • सिर्फ बाप को याद करने से हमारे विकर्म विनाश होते हैं।
  • लड़ाई आदि की कोई बात नहीं।
  • बाप कहते हैं तुम तमोप्रधान बन गये हो अब फिर तुमको सतोप्रधान बनना है।
  • भारत का प्राचीन राजयोग मशहूर है।
  • बाप कहते हैं - मेरे साथ बुद्धि का योग लगाओ तो तुम्हारे पाप भस्म होंगे।
  • बाप पतित-पावन है तो उनसे बुद्धियोग लगाना है तब तुम पतित से पावन बन जायेंगे।
  • अब प्रैक्टिकल में तुम उनके साथ योग लगा रहे हो, इसमें लड़ाई की कोई बात नहीं है।
  • जो अच्छी रीति पढ़ेंगे और बाप के साथ योग लगायेंगे वही बाप से वर्सा पायेंगे।
  • अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) भाई-भाई की दृष्टि का अभ्यास करते हुए लौकिक बन्धनों से तोड़ निभाना है। बड़ी युक्ति से चलना है। विकारी दृष्टि बिल्कुल नहीं जानी चाहिए। कयामत के समय सम्पूर्ण पावन बनना है।
  • 2) बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए अच्छी रीति पढ़ाई करनी है और पतित-पावन बाप से योग लगाकर पावन बनना है।
  • वरदान:-
  • कमजोरियों को फुलस्टाप देकर अपने सम्पन्न स्वरूप को प्रख्यात करने वाले साक्षात्कारमूर्त भव
  • विश्व आपके कल्प पहले वाले सम्पन्न स्वरूप, पूज्य स्वरूप का सिमरण कर रही है इसलिए अब अपने सम्पन्न स्वरूप को प्रैक्टिकल में प्रख्यात करो। बीती हुई कमजोरियों को फुलस्टाप लगाओ, दृढ़ संकल्प द्वारा पुराने संस्कार-स्वभाव को समाप्त करो, दूसरों की कमजोरी की नकल मत करो, अवगुण धारण करने वाली बुद्धि का नाश करो, दिव्य गुण धारण करने वाली सतोप्रधान बुद्धि धारण करो तब साक्षात्कार मूर्त बनेंगे।
  • स्लोगन:-
  • अपने अनादि और आदि गुणों को स्मृति में रख उन्हें स्वरूप में लाओ।