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10-01-21 प्रात:मुरली मधुबन "अव्यक्त-बापदादा''
रिवाइज: 09-10-87
- अलौकिक राज्य दरबार का समाचार
- आज बापदादा अपने स्व-राज्य अधिकारी बच्चों की राज्य
दरबार देख रहे हैं।
- यह संगमयुग की निराली, श्रेष्ठ शान
वाली अलौकिक दरबार सारे कल्प में न्यारी और अति
प्यारी है।
- इस राज्य-सभा की रूहानी रौनक, रूहानी
कमल-आसन, रूहानी ताज और तिलक, चेहरे की चमक,
स्थिति के श्रेष्ठ स्मृति के वायुमण्डल में अलौकिक खुशबू
अति रमणीक, अति आकर्षित करने वाली है।
- ऐसी सभा
को देख बापदादा हर एक राज्य-अधिकारी आत्मा को देख
हर्षित हो रहे हैं।
- कितनी बड़ी दरबार है!
- हर एक ब्राह्मण
बच्चा स्वराज्य-अधिकारी है।
- तो कितने ब्राह्मण बच्चे हैं!
- सभी ब्राह्मणों की दरबार इकट्ठी करो तो कितनी बड़ी
राज्य-दरबार हो जायेगी!
- इतनी बड़ी राज्य दरबार किसी भी
युग में नहीं होती।
- यही संगमयुग की विशेषता है जो ऊंचे
ते ऊंचे बाप के सर्व बच्चे स्वराज्य-अधिकारी बनते हैं।
- वैसे
लौकिक परिवार में हर एक बाप बच्चों को कहते हैं कि
यह मेरा बच्चा ‘राजा' बेटा है वा इच्छा रखते हैं कि मेरा
हर एक बच्चा ‘राजा' बने।
- लेकिन सभी बच्चे राजा बन ही
नहीं सकते।
- यह कहावत परमात्म बाप की कापी की है।
- इस समय बाप-दादा के सब बच्चे राजयोगी अर्थात् स्व के
राजे नम्बरवार जरूर हैं लेकिन हैं सभी राजयोगी, प्रजा
योगी कोई नहीं है।
- तो बापदादा बेहद की राज्यसभा देख
रहे थे।
- सभी अपने को स्वराज्य अधिकारी समझते हो ना?
- नये-नये आये हुए बच्चे राज्य-अधिकारी हो वा अभी बनना
है?
- नये-नये हैं तो मिलना-जुलना सीख रहे हैं।
- अव्यक्त
बाप की अव्यक्ति बातें समझने की भी आदत पड़ती
जायेगी।
- फिर भी इस भाग्य को अभी से भी समय पर
ज्यादा समझेंगे कि हम सभी आत्मायें कितनी भाग्यवान
हैं!
- तो बापदादा सुना रहे थे - अलौकिक राज्य दरबार का
समाचार।
- सभी बच्चों के विशेष ताज और चेहरे की चमक
के ऊपर न चाहते भी अटेन्शन जा रहा था।
- ताज ब्राह्मण
जीवन की विशेषता - ‘पवित्रता' का ही सूचक है।
- चेहरे की
चमक रूहानी स्थिति में स्थित रहने की रूहानियत की
चमक है।
- साधारण रीति से भी किसी भी व्यक्ति को
देखेंगे तो सबसे पहले दृष्टि चेहरे तरफ ही जायेगी।
- यह
चेहरा ही वृत्ति और स्थिति का दर्पण है।
- तो बापदादा देख
रहे थे - चमक तो सभी में थी लेकिन एक थे सदा
रूहानियत की स्थिति में स्थित रहने वाले, स्वत: और
सहज स्थिति वाले और दूसरे थे सदा रूहानी स्थिति के
अभ्यास द्वारा स्थित रहने वाले।
- एक थे सहज स्थिति
वाले, दूसरे थे प्रयत्न कर स्थित रहने वाले अर्थात् एक थे
सहज योगी, दूसरे थे पुरूषार्थ से योगी।
- दोनों की चमक में
अन्तर रहा।
- उनकी नैचुरल ब्युटी थी और दूसरों की
पुरूषार्थ द्वारा ब्युटी थी।
- जैसे आजकल भी मेकप कर
ब्युटीफुल बनते हैं ना।
- नैचुरल (स्वाभाविक) ब्युटी की
चमक सदा एकरस रहती है और दूसरी ब्युटी कभी बहुत
अच्छी और कभी परसेन्टेज में रहती है; एक जैसी, एकरस
नहीं रहती।
- तो सदा सहज योगी, स्वत: योगी स्थिति
नम्बरवन स्वराज्य-अधिकारी बनाती है।
- जब सभी बच्चों
का वायदा है - ब्राह्मण जीवन अर्थात् एक बाप ही संसार
है वा एक बाप दूसरा न कोई; जब संसार ही बाप है, दूसरा
कोई है ही नहीं तो स्वत: और सहज योगी स्थिति सदा
रहेगी ना, वा मेहनत करनी पड़ेगी?
- अगर दूसरा कोई है तो
मेहनत करनी पड़ती है - यहाँ बुद्धि न जाए, वहाँ जाए।
- लेकिन एक बाप ही सब कुछ है - फिर बुद्धि कहाँ जायेगी?
- जब जा ही नहीं सकती तो अभ्यास क्या करेंगे?
- अभ्यास
में भी अन्तर होता है।
- एक है स्वत: अभ्यास, है ही है
और दूसरा होता है मेहनत वाला अभ्यास।
- तो
स्वराज्य-अधिकारी बच्चों का सहज अभ्यासी बनना - यही
निशानी है सहज योगी, स्वत: योगी की।
- उन्हों के चेहरे
की चमक अलौकिक होती है जो चेहरा देखते ही अन्य
आत्मायें अनुभव करती कि यह श्रेष्ठ प्राप्ति स्वरूप
सहजयोगी हैं।
- जैसे स्थूल धन वा स्थूल पद के प्राप्ति की
चमक चेहरे से मालूम होती है कि यह साहूकार कुल का
वा ऊंच पद अधिकारी है, ऐसे यह श्रेष्ठ प्राप्ति, श्रेष्ठ
राज्य अधिकार अर्थात् श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का नशा वा
चमक चेहरे से दिखाई देती है।
- दूर से ही अनुभव करते
कि इन्होंने कुछ पाया है।
- प्राप्ति स्वरूप आत्मायें हैं।
- ऐसे
ही सभी राज्य अधिकारी बच्चों के चमकते हुए चेहरे
दिखाई दें।
- मेहनत के चिन्ह नहीं दिखाई दें, प्राप्ति के
चिन्ह दिखाई दें।
- अभी भी देखो, कोई-कोई बच्चों के चेहरे
को देख यही कहते हैं - इन्होंने कुछ पाया है और
कोई-कोई बच्चों के चेहरे को देख यह भी कहते कि ऊंची
मंजिल है लेकिन त्याग भी बहुत ऊंचा किया है।
- त्याग
दिखाई देता है, भाग्य नहीं दिखाई देगा चेहरे से।
- या यह
कहेंगे कि मेहनत बहुत अच्छी कर रहे हैं।
- बापदादा यही देखने चाहते हैं कि हर एक बच्चे के चेहरे से
सहजयोगी की चमक दिखाई दे, श्रेष्ठ प्राप्ति के नशे की
चमक दिखाई दे क्योंकि प्राप्तियों के भण्डार बाप के बच्चे
हो।
- संगमयुग की प्राप्तियों के वरदानी समय के अधिकारी
हो।
- निरन्तर योग कैसे लगावें वा निरन्तर अनुभव कर
भण्डार की अनुभूति कैसे करें - अब तक भी इसी मेहनत
में ही समय नहीं गँवाओ लेकिन प्राप्तिस्वरूप के भाग्य को
सहज अनुभव करो।
- समाप्ति का समय समीप आ रहा है।
- अब तक किसी न किसी बात की मेहनत में लगे रहेंगे तो
प्राप्ति का समय तो समाप्त हो जायेगा।
- फिर प्राप्तिस्वरूप
का अनुभव कब करेंगे?
- संगमयुग को, ब्राह्मण आत्माओं
को वरदान है "सर्व प्राप्ति भव''।
- ‘सदा पुरूषार्थी भव' का
वरदान नहीं है, ‘प्राप्ति भव' का वरदान है।
- ‘प्राप्ति भव'
की वरदानी आत्मा कभी भी अलबेलेपन में आ नहीं सकती
इसलिए उनको मेहनत नहीं करनी पड़ती।
- तो समझा, क्या
बनना है?
- राज्यसभा में राज्य अधिकारी बनने की विशेषता क्या है,
यह स्पष्ट हुआ ना?
- राज्य अधिकारी हो ना, वा अभी सोच
रहे हो कि हैं वा नहीं हैं?
- जब विधाता के बच्चे, वरदाता
के बच्चे बन गये; राजा अर्थात् विधाता, देने वाला।
- अप्राप्ति कुछ नहीं तो लेंगे क्या?
- तो समझा, नये-नये
बच्चों को इस अनुभव में रहना है।
- युद्ध में ही समय नहीं
गँवाना है।
- अगर युद्ध में ही समय गँवाया तो अन्त मति
भी युद्ध में रहेंगे।
- फिर क्या बनना पड़ेगा?
- चन्द्रवंश में
जायेंगे वा सूर्यवंशी में?
- युद्ध वाला तो चन्द्रवंश में जायेगा।
- चल रहे हैं, कर रहे हैं, हो ही जायेंगे, पहुँच जायेंगे - अभी
तक ऐसा लक्ष्य नहीं रखो।
- अब नहीं तो कब नहीं।
- बनना
है तो अब, पाना है तो अब - ऐसे उमंग-उत्साह वाले ही
समय पर अपनी सम्पूर्ण मंजिल को पा सकेंगे।
- त्रेता में
राम सीता बनने के लिए तो कोई भी तैयार नहीं है।
- जब
सतयुग सूर्यवंश में आना है, तो सूर्यवंश अर्थात् सदा
मास्टर विधाता और वरदाता, लेने की इच्छा वाला नहीं।
- मदद मिल जाए, यह हो जाए तो बहुत अच्छा, पुरूषार्थ में
अच्छा नम्बर ले लेंगे - नहीं।
- मदद मिल रही है, सब हो
रहा है - इसको कहते हैं स्वराज्य अधिकारी बच्चे।
- आगे
बढ़ना है या पीछे आये है तो पीछे ही रहना है?
- आगे जाने
का सहज रास्ता है - सहजयोगी, स्वत:योगी बनो।
- बहुत
सहज है। जब है ही एक बाप, दूसरा कोई नहीं तो जायेंगे
कहाँ?
- प्राप्ति ही प्राप्ति है फिर मेहनत क्यों लगेगी?
- तो
प्राप्ति के समय का लाभ उठाओ।
- सर्व प्राप्ति स्वरूप बनो।
- समझा?
- बापदादा तो यही चाहते हैं कि एक-एक बच्चा -
चाहे लास्ट आने वाला, चाहे स्थापना के आदि में आने
वाला, हर एक बच्चा नम्बरवन बने।
- राजा बनना, न कि
प्रजा। अच्छा।
- महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश का ग्रुप आया है।
- देखो, महा
शब्द कितना अच्छा है।
- महाराष्ट्र स्थान भी महा शब्द का
है और बनना भी महान् है।
- महान् तो बन गये ना क्योंकि
बाप के बने माना महान् बने।
- महान् आत्मायें हो। ब्राह्मण
अर्थात् महान्।
- हर कर्म महान्, हर बोल महान्, हर संकल्प
महान् है।
- अलौकिक हो गये ना।
- तो महाराष्ट्र वाले सदा
ही स्मृति स्वरूप बनो कि महान् हैं।
- ब्राह्मण अर्थात् महान्
चोटी हैं ना।
- मध्य प्रदेश - सदा ‘मध्याजी भव' के नशे में रहने वाले।
- ‘मन्मनाभव' के साथ ‘मध्याजी भव' का भी वरदान है।
- तो
अपना स्वर्ग का स्वरूप-इसको कहते हैं ‘मध्याजी भव' तो
अपने श्रेष्ठ प्राप्ति के नशे में रहने वाले अर्थात् ‘मध्याजी
भव' के मन्त्र के स्वरूप में स्थित रहने वाले।
- वह भी
महान् हो गये।
- ‘मध्याजी भव' हैं तो ‘मन्मनाभव' भी
जरूर होंगे।
- तो मध्य प्रदेश अर्थात् महामन्त्र का स्वरूप
बनने वाले।
- तो दोनों ही अपनी-अपनी विशेषता से महान्
हैं। समझा, कौन हो?
- जब से पहला पाठ शुरू किया, वह भी यही किया कि मैं
कौन?
- बाप भी वही बात याद दिलाते हैं।
- इसी पर मनन
करना।
- शब्द एक ही है कि ‘मैं कौन' लेकिन इसके उत्तर
कितने हैं?
- लिस्ट निकालना - ‘मैं कौन?' अच्छा।
- चारों ओर के सर्व प्राप्तिस्वरूप, श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व
अलौकिक राज्य सभा अधिकारी महान् आत्माओं को, सदा
रूहानियत की चमक धारण करने वाली विशेष आत्माओं
को, सदा स्वत: योगी, सहजयोगी, ऊंचे ते ऊंची आत्माओं
को ऊंचे ते ऊंचे बापदादा का स्नेह सम्पन्न यादप्यार
स्वीकार हो।
- अव्यक्त बापदादा से डबल विदेशी भाई-बहनों की
मुलाकात:-
- डबल विदेशी अर्थात् सदा अपने स्व-स्वरूप, स्वदेश,
स्वराज्य की स्मृति में रहने वाले।
- डबल विदेशियों को
विशेष कौन-सी सेवा करनी है?
- अभी साइलेन्स की शक्ति
का अनुभव विशेष रूप से आत्माओं को कराना।
- यह भी
विशेष सेवा है।
- जैसे साइंस की पावर नामीग्रामी है ना।
- बच्चे-बच्चे को मालूम है कि साइंस क्या है। ऐसे साइलेन्स
पावर, साइंस से भी ऊंची है।
- वह दिन भी आना है।
- साइलेन्स के पावर की प्रत्यक्षता अर्थात् बाप की प्रत्यक्षता।
- जैसे साइंस प्रत्यक्ष प्रूफ दिखा रही है - वैसे साइलेन्स
पावर का प्रैक्टिकल प्रूफ है - आप सबका जीवन।
- जब
इतने सब प्रैक्टिकल प्रूफ दिखाई देंगे, तो ना चाहते हुए
सभी की नज़र में सहज आ जायेंगे।
- जैसे यह (पिछले वर्ष)
पीस का कार्य किया ना, इसको स्टेज पर प्रैक्टिकल में
दिखाया।
- ऐसे ही चलते-फिरते पीस के मॉडल दिखाई दें तो
साइंस वालों की भी नज़र साइलेन्स वालों के ऊपर अवश्य
जायेगी। समझा?
- साइंस की इन्वेन्शन विदेश में ज्यादा
होती हैं।
- तो साइलेन्स की पावर का आवाज भी वहाँ से
सहज फैलेगा।
- सेवा का लक्ष्य तो है ही, सभी को
उमंग-उत्साह भी है।
- सेवा के बिना रह नहीं सकते।
- जैसे
भोजन के बिना रह नहीं सकते, ऐसे सेवा के बिना भी रह
नहीं सकते इसलिए बापदादा खुश है। अच्छा!
- पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
स्वदर्शन चक्रधारी श्रेष्ठ आत्मायें बन गये, ऐसे अनुभव
करते हो?
- स्व का दर्शन हो गया ना?
- अपने आपको
जानना अर्थात् स्व का दर्शन होना और चक्र का ज्ञान
जानना अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी बनना।
- जब स्वदर्शन
चक्रधारी बनते हैं तो और सब चक्र समाप्त हो जाते हैं।
- देहभान का चक्र, सम्बन्ध का चक्र, समस्याओं का चक्र -
माया के कितने चक्र हैं!
- लेकिन स्वदर्शन चक्रधारी बनने
से यह सब चक्र समाप्त हो जाते हैं, सब चक्रों से निकल
जाते हैं।
- नहीं तो जाल में फंस जाते हैं।
- तो पहले फंसे हुए
थे, अब निकल गये।
- 63 जन्म तो अनेक चक्रों में फंसते
रहे और इस समय इन चक्रों से निकल आये, तो फिर
फंसना नहीं है।
- अनुभव करके देख लिया ना?
- अनेक चक्रों
में फंसने से सब कुछ गंवा दिया और स्वदर्शन चक्रधारी
बनने से बाप मिला तो सब कुछ मिला।
- तो सदा स्वदर्शन
चक्रधारी बन, मायाजीत बन आगे बढ़ते चलो, इससे सदा
हल्के रहेंगे, किसी भी प्रकार का बोझ अनुभव नहीं होगा।
- बोझ ही नीचे ले आता है और हल्का होने से ऊंचे उड़ते
रहेंगे।
- तो उड़ने वाले हो ना?
- कमज़ोर तो नहीं?
- अगर एक
भी पंख कमज़ोर होगा तो नीचे ले आयेगा, उड़ने नहीं देगा
इसलिए, दोनों ही पंख मजबूत हों तो स्वत: उड़ते रहेंगे।
- स्वदर्शन चक्रधारी बनना अर्थात् उड़ती कला में जाना।
अच्छा।
- राजयोगी, श्रेष्ठ योगी आत्माये हो ना?
- साधारण जीवन से
सहजयोगी, राजयोगी बन गये।
- ऐसी श्रेष्ठ योगी आत्मायें
सदा ही अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती हैं।
- हठयोगी
योग द्वारा शरीर को ऊंचा उठाते हैं और उड़ने का अभ्यास
करते हैं।
- वास्तव में आप राजयोगी ऊंची स्थिति का
अनुभव करते हो।
- इसको ही कापी करके वो शरीर को ऊंचा
उठाते हैं।
- लेकिन आप कहाँ भी रहते ऊंची स्थिति में रहते
हो, इसलिए कहते हैं - योगी ऊंचा रहते हैं।
- तो मन की
स्थिति का स्थान ऊंचा है क्योंकि डबल लाइट बन गये
हो।
- वैसे भी फरिश्तों के लिए कहा जाता कि फरिश्तों के
पांव धरती पर नहीं होते।
- फरिश्ता अर्थात् जिसका बुद्धि
रूपी पांव धरती पर न हो, देहभान में न हो।
- देहभान से
सदा ऊंचे - ऐसे फरिश्ते अर्थात् राजयोगी बन गये।
- अभी
इस पुरानी दुनिया से कोई लगाव नहीं।
- सेवा करना अलग
चीज है लेकिन लगाव न हो।
- योगी बनना अर्थात् बाप और
मैं, तीसरा न कोई।
- तो सदा इसी स्मृति में रहो कि हम
राजयोगी, सदा फरिश्ता हैं।
- इस स्मृति से सदा आगे बढ़ते
रहेंगे।
- राजयोगी सदा बेहद के मालिक हैं, हद के मालिक
नहीं।
- हद से निकल गये। बेहद का अधिकार मिल गया -
इसी खुशी में रहो।
- जैसे बेहद का बाप है, वैसे बेहद की
खुशी में रहो, नशे में रहो। अच्छा। विदाई के समय
- सभी अमृतवेले के वरदानी बच्चों को वरदाता बाप की
सुनहरी यादप्यार स्वीकार हो।
- साथ-साथ सुनहरी दुनिया
बनाने की सेवा के सदा प्लान मनन करने वाले और सदा
सेवा में दिल व जान, सिक व प्रेम से, तन-मन-धन से
सहयोगी आत्मायें, सभी को बापदादा गुडमार्निंग, डायमण्ड
मार्निंग कर रहे हैं और सदा डायमण्ड बन इस डायमण्ड
युग की विशेषता को वरदान और वर्से में लेकर स्वयं भी
सुनहरी स्थिति में स्थित रहेंगे और औरों को भी ऐसे ही
अनुभव कराते रहेंगे।
- तो चारों ओर के डबल हीरो बच्चों को
डायमण्ड मार्निंग। अच्छा।
- वरदान:-
- रहमदिल की भावना द्वारा अपकारी पर भी उपकार करने
वाले शुभचिंतक भव
- कैसी भी कोई आत्मा, चाहे सतोगुणी, चाहे तमोगुणी
सम्पर्क में आये लेकिन सभी के प्रति शुभचिंतक अर्थात्
अपकारी पर भी उपकार करने वाले।
- कभी किसी आत्मा के
प्रति घृणा दृष्टि न हो क्योंकि जानते हो यह अज्ञान के
वशीभूत है, बेसमझ है।
- उनके ऊपर रहम वा स्नेह आये,
घृणा नहीं।
- शुभचिंतक आत्मा ऐसा नहीं सोचेगी कि इसने
ऐसा क्यों किया लेकिन इस आत्मा का कल्याण कैसे हो -
यही है शुभचिंतक स्टेज।
- स्लोगन:-
- तपस्या के बल से असम्भव को सम्भव कर सफलता मूर्त
बनो।
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