- 
            
 
          ओम् शान्ति। 
        -  मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना।
          
        
 
        - आत्मा को परमात्मा नहीं कहा जा सकता।
          
            -  मनुष्य को भगवान नहीं कह सकते।
 
            -  अच्छा अभी तुम हो ब्राह्मण।
 
            -  तुमको अभी देवता नहीं कहा जाता।
 
           
         
        -  ब्रह्मा को भी देवता नहीं कहा जा सकता।
          
            -  भल कहते हैं ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम:.. परन्तु ब्रह्मा और विष्णु में तो बहुत फ़र्क है।
 
            -  विष्णु को देवता कहा जाता है, ब्रह्मा को देवता नहीं कह सकते क्योंकि वह है ब्राह्मणों का बाप। 
 
            - ब्राह्मणों को देवता नहीं कहा जा सकता।
 
            -  अब यह बातें कोई मनुष्य, मनुष्य को नहीं समझा सकते, भगवान ही समझाते हैं।
 
            -  मनुष्य तो अन्धश्रद्धा में जो आता है सो बोल देते हैं। 
 
            - अभी तुम बच्चे समझते हो - रूहानी बाप हम बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
 
           
         
        -  अपने को आत्मा समझना चाहिए। 
          
            - अहम् आत्मा यह शरीर लेती हैं।
 
            -  अहम् आत्मा ने 84 जन्म लिए हैं।
 
            -  जैसे-जैसे कर्म करते हैं वैसे शरीर मिलता है।
 
            -  शरीर से आत्मा अलग हो जाती है तो फिर शरीर से प्यार नहीं रहता।
 
            -  आत्मा से प्यार रहता है।
 
            -  आत्मा में भी प्यार तब है जबकि आत्मा शरीर में है।
 
           
         
        -  पित्रों को मनुष्य बुलाते हैं, शरीर तो उनका खत्म हो गया फिर भी उनकी आत्मा को याद करते हैं इसलिए ब्राह्मण में बुलाते हैं।
          
            -  कहते हैं फलाने की आत्मा आओ, यह भोजन आकर खाओ।
 
            -  गोया आत्मा में मोह रहता है। 
 
            - परन्तु पहले शरीर में मोह था, वह शरीर याद आता था।
 
            -  ऐसे नहीं समझते कि हम आत्मा को बुलाते हैं।
 
           
         
        -  आत्मा ही सब कुछ करती है।
          
            -  आत्मा में अच्छे वा बुरे संस्कार रहते हैं।
 
            -  पहले-पहले है देह-अभिमान फिर उसके बाद और विकार आते हैं।
 
            -  सबको मिलाकर कहा जाता है विकारी।
 
            -  जिसमें यह विकार नहीं हैं उनको कहा जाता है निर्विकारी।
 
            -  यह तो समझते हो बरोबर भारत में जब देवी-देवता थे तो उनमें दैवीगुण थे।
 
           
         
        -  इन लक्ष्मी-नारायण का है ही देवी-देवता धर्म।
          
            -  जैसे क्रिश्चियन धर्म में मेल अथवा फीमेल सब क्रिश्चियन हैं।
 
            - यह भी कहा जाता है देवी-देवता।
 
            -  राजा-रानी, प्रजा सब देवी-देवता धर्म के हैं। 
 
            - यह बहुत ऊंच सुख देने वाला धर्म है।
 
           
         
        -  बच्चों ने गीत भी सुना, यह आत्मा ने कहा कि बाबा ऐसी जगह ले चलो जहाँ मुझे चैन-शान्ति हो। 
          
            - वह तो है सुखधाम और शान्तिधाम। 
 
            - यहाँ बड़े बेचैन हैं। 
 
            - सतयुग में बेचैनी होती नहीं। 
 
            - आत्मा जानती है बाबा बिगर कोई चैन की दुनिया में ले जा नहीं सकते हैं। 
 
            - बाप कहते हैं - मुक्ति और जीवनमुक्ति यह दो सौगातें मैं कल्प-कल्प लाता हूँ।
 
            -  परन्तु तुम भूल जाते हो, ड्रामा में भूलना ही है।
 
            -  सब भूल जाएं तब तो मैं आऊं।
 
            -  अभी तुम ब्राह्मण बने हो, तुमको निश्चय है हमने 84 जन्म लिए हैं।
 
           
         
        -  जो पूरा ज्ञान नहीं उठायेंगे वह पहले नई दुनिया में भी नहीं आयेंगे।
          
            -  त्रेता वा त्रेता के अन्त में आ जाएं। 
 
            - सारा मदार है पुरुषार्थ पर। 
 
            - सतयुग में सुख था, इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
 
            -  अच्छा इसके अगले जन्म में यह कौन थे, किसको पता नहीं है। 
 
            - अगले जन्म में यह ब्राह्मण थे।
 
            -  उससे पहले शूद्र थे।
 
            -  वर्णो पर तुम अच्छी रीति समझा सकते हो।          
 
            - अभी तुम समझते हो हम 21 जन्म के लिए चैन पायेंगे।
 
            -  बाबा हमको वह रास्ता बता रहे हैं।
 
            -  हम अभी पतित हैं इसलिए बेचैन हैं, दु:खी हैं।
 
            -  जहाँ चैन हो उसको सुख-शान्ति कहेंगे।
 
            -  तो अब तुम बच्चों की बुद्धि में आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है।
 
            -  समझते हो बरोबर सतयुग में भारत कितना सुखी था। 
 
            - दु:ख अथवा बेचैनी का नाम नहीं था। 
 
            - अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो स्वर्ग में जाने लिए। 
 
            - अभी तुम बने हो ईश्वरीय सम्प्रदाय के और वह हैं आसुरी सम्प्रदाय के।
 
           
         
        -  कहते हैं ना - पाप आत्मा। 
          
            - आत्मायें अनेक हैं, परमात्मा एक है। 
 
            - सब ब्रदर्स हैं, सब परमात्मा हो नहीं सकते। 
 
            - इतनी थोड़ी सी बात भी मनुष्यों की बुद्धि में नहीं है।
 
            -  बाबा ने समझाया है यह सारी दुनिया बड़ा बेहद का टापू है, वह छोटे-छोटे टापू होते हैं।
 
            -  इस बेहद टापू पर रावण का राज्य है।
 
            -  इन बातों को मनुष्य नहीं समझते हैं।
 
            -  वह तो सिर्फ कहानियां सुनाते रहते हैं।
 
           
         
        -  कहानी को ज्ञान नहीं कहा जाता। 
          
            - उनसे मनुष्य सद्गति को पा नहीं सकते।
 
            -  ज्ञान से सद्गति मिलती है।
 
            -  ज्ञान देने वाला है एक बाप, दूसरा न कोई।
 
            -  भक्तों की भगवान ही आकर रक्षा करते हैं।
 
            -  मनुष्य, मनुष्य की रक्षा नहीं कर सकते।
 
            -  शिवबाबा सभी बच्चों को वर्सा देते हैं।
 
            -  वह बाप भी है, शिक्षक भी है, सतगुरू भी है।
 
            -  वकील, बैरिस्टर भी है क्योंकि जमघटों की सजा से छुड़ाने वाला है।
 
           
         
        -  सतयुग में कोई भी जेल में नहीं जायेंगे।
          
            -  बाप सबको जेल से छुड़ाते हैं।
 
            -  बच्चों की सर्वश्रेष्ठ सब मनोकामनायें पूरी होती हैं। 
 
            - रावण द्वारा अशुद्ध कामनायें पूरी होती है।
 
            -  बाप द्वारा शुद्ध कामनायें पूरी होती हैं।
 
            -  शुद्ध कामनायें पूरी होने से तुम सदा सुखी बन जाते हो। 
 
            - अशुद्ध कामना है - पतित विकारी बनना। 
 
            - पावन रहने वाले को ब्रह्मचारी कहा जाता है।
 
            -  तुमको भी पवित्र रहना है।
 
            -  पवित्र बन और पवित्र दुनिया का मालिक बनना है।
 
            -  पतित से पावन एक बाप ही बनाते हैं।
 
           
         
        -  साधू-सन्त आदि तो विकार से पैदा होते हैं, देवताओं के लिए ऐसे थोड़ेही कहेंगे। 
          
            - वहाँ विकार होते ही नहीं। 
 
            - वह है ही पावन दुनिया।
 
            -  लक्ष्मी-नारायण सम्पूर्ण निर्विकारी थे, भारत पवित्र था।
 
            -  यह अभी तुम समझते हो।
 
            -  सतयुग में प्योरिटी थी तो पीस प्रासपर्टी थी, सब सुखी थे, रावण राज्य जब से हुआ है तो गिरते आये हैं।
 
            -  अभी तो कोई काम के नहीं रहे हैं।
 
            -  एकदम कौड़ी मिसल बन गये हैं। 
 
            - अब फिर हीरे मिसल बाप द्वारा बनते हो।
 
            -  भारत जब सतयुग था तो हीरे जैसा था।
 
            -  अब तो कौड़ी मिसल भी नहीं है।
 
            -  अपने धर्म का ही किसको पता नहीं पड़ता है।
 
            -  पाप करते रहते हैं। 
 
            - वहाँ तो पाप का नाम नहीं।
 
           
         
        -  तुम देवी-देवता धर्म के नामीग्रामी हो, देवताओं के ढेर चित्र हैं।
          
            -  और धर्मो में देखेंगे एक ही चित्र रहता है, क्रिश्चियन पास एक ही क्राइस्ट का चित्र होगा। 
 
            - बौद्धियों के पास एक ही बुद्ध का।
 
            -  क्रिश्चियन, क्राइस्ट को ही याद करते हैं, उनको नन्स कहा जाता है।
 
            -  नन्स माना सिवाए एक क्राइस्ट के और कोई नहीं इसलिए कहते हैं नन बट क्राइस्ट, ब्रह्मचारी रहते हैं।
 
           
         
        -  तुम भी नन्स हो।
          
            -  तुम अपने गृहस्थ व्यवहार में रहते नन्स बनती हो।
 
            -  एक ही बाप को याद करती हो।
 
            -  नन बट वन, एक शिवबाबा दूसरा न कोई। 
 
            - उन्हों की बुद्धि में फिर भी दो आ जाते हैं।
 
            -  क्राइस्ट के लिए भी समझेंगे वह गॉड का बच्चा था। 
 
            - परन्तु उनको गॉड की नॉलेज नहीं। 
 
            - तुम बच्चों को नॉलेज है, सारी दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसको परमात्मा की नॉलेज हो।
 
            -  परमात्मा कहाँ रहते हैं, कब आते हैं, उनका क्या पार्ट चलता है, यह कोई नहीं जानते।
 
           
         
        -  भगवान को जानी जाननहार कहते हैं। 
          
            - समझते हैं वह हमारे दिल की बात को जानते हैं।
 
            -  बाप कहते हैं - मैं नहीं जानता, हमको क्या पड़ी है - जो हर एक की दिल को बैठ रीड करुँगा, हम आये ही हैं पतितों को पावन बनाने।
 
           
         
        -  अगर कोई पवित्र नहीं रहते हैं, झूठ बोलते हैं तो नुकसान अपने को पहुँचायेंगे।
          
            - गाया हुआ है - देवताओं की सभा में असुर जाकर बैठते थे।
 
            -  वहाँ अमृत बांटा जाता था, कोई विकार में जाकर फिर छिपकर आए बैठते तो वह असुर हुए ना। 
 
            - आपेही अपना पद भ्रष्ट कर देंगे।
 
            -  हर एक को अपना पुरुषार्थ करना है।
 
            -  नहीं तो अपनी ही सत्यानाश करते हैं। 
 
            - बहुत ऐसे हैं जो छिपकर बैठ जाते हैं।
 
            -  कहते हैं हम विकार में थोड़ेही जाते, परन्तु विकार में जाते रहते हैं।
 
            -  यह गोया अपने को ठगते हैं।
 
            -  अपनी ही सत्यानाश करते हैं। 
 
            - परमपिता परमात्मा, जिसका राइट हैण्ड धर्मराज है उनके आगे झूठ बोलते हैं तो खुद ही दण्ड के भागी बन पड़ते हैं।
 
            -  बहुत सेन्टर्स में भी ऐसे होते हैं। 
 
            - बाबा जब पहली बार देहली में गया था तो रोज एक आता था और विकार में जाता रहता था।
 
            -  पूछा जाता था जबकि पवित्र नहीं रहते हो तो आते क्यों हो? 
 
            - कहता था - आऊंगा नहीं तो निर्विकारी कैसे बनूँगा। 
 
            - पवित्रता अच्छी लगती है परन्तु रह भी नहीं सकता हूँ।
 
            -  आखरीन तो सुधर जाऊंगा। 
 
            - नहीं आऊंगा तो बेड़ा गर्क हो जायेगा।
 
            -  और कोई रास्ता ही नहीं है इसलिए हमको यहाँ आना पड़ता है।
 
            -  बाप समझाते हैं तुम वायुमण्डल खराब करते हो, कहाँ तक ऐसे आते रहेंगे। 
 
           
         
        - पावन जो बनते हैं उनको पतित से जैसे घृणा आती है।
          
            -  कहते हैं बाबा इनके हाथ का खाना भी अच्छा नहीं लगता। 
 
            - बाप ने युक्ति भी बताई है, खान-पान की खिटपिट होती है, ऐसे तो नहीं नौकरी छोड़ देंगे, फिर युक्ति से चलाना होता है।
 
           
         
        -  कोई को समझाओ तो बिगड़ पड़ते हैं, पवित्र कैसे रहेंगे।
          
            -  यह तो कब सुना नहीं।
 
            -  संन्यासी भी रह नहीं सकते। 
 
            - जब घरबार छोड़ जाते हैं तब पवित्र रह सकते हैं। 
 
            - परन्तु यह किसको पता नहीं कि यहाँ पतित-पावन परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं।
 
            -  नहीं मानते इसलिए विरोध करते हैं।
 
            -  शिवबाबा ब्रह्मा तन में आते हैं, कोई शास्त्र दिखाओ।
 
            -  यह तो गीता में लिखा हुआ है मैं साधारण बूढ़े तन में आता हूँ।
 
            -  वह अपने जन्मों को नहीं जानते।
 
            -  यह तो लिखा हुआ है फिर तुम कैसे कहते हो कि परमात्मा कैसे मनुष्य तन में आयेंगे। 
 
            - पतित तन में ही आकर रास्ता बतायेंगे ना।
 
            -  आगे भी आये थे और कहा था - मामेकम् याद करो।
 
            -  वही परमधाम में रहते हैं और कहते हैं मामेकम् याद करो। 
 
            - कृष्ण का शरीर तो मूलवतन में नहीं होगा - जो कहे मामेकम् याद करो।
 
            -  एक परमपिता परमात्मा ही साधारण तन में प्रवेश कर तुम बच्चों को कहते हैं मामेकम् याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे पाप कट जायेंगे इसलिए ही मुझे पतित-पावन कहते हैं।
 
           
         
        -  पतित-पावन जरूर आत्माओं का होगा ना।
          
            -  पतित भी आत्मा ही बनती है।
 
            -  बाप कहते हैं - तुम पवित्र आत्मा 16 कला सम्पूर्ण थी।
 
            -  अभी नो कला, बिल्कुल ही पतित बन गये हो।
 
            -  मैं कल्प-कल्प आकर तुमको समझाता हूँ। 
 
            - तुम जो काम चिता पर बैठ पतित बन जाते हो फिर ज्ञान चिता पर बिठाकर तुमको पावन बनाता हूँ। 
 
            - भारत में पवित्र प्रवृत्तिमार्ग था, अभी अपवित्र प्रवृत्तिमार्ग है।
 
            -  किसको भी चैन नहीं।
 
            -  अब बाप कहते हैं दोनों ज्ञान चिता पर बैठो।
 
           
         
        -  हर आत्मा को अपने-अपने कर्मो अनुसार शरीर मिलता है।
          
            -  ऐसे नहीं कि दूसरे जन्म में वही पति-पत्नी आपस में मिलेंगे।
 
            -  नहीं, इतनी रेस कर न सके।
 
            -  यह तो पढ़ाई की बात है ना।
 
            -  अज्ञान काल में हो सकता है, आपस में बहुत प्रेम है - तो उनकी मनोकामनायें पूरी हो सकती हैं, वह तो है पतित विकारी मार्ग।
 
            -  पति के पीछे पत्नी चिता पर बैठती है।
 
            -  दूसरे जन्म में भी जाकर उनसे मिलती है।
 
            - परन्तु दूसरे जन्म में उनको थोड़ेही मालूम पड़ेगा।
 
            -  तुम भी बाबा के साथ ज्ञान चिता पर चढ़ते हो। 
 
            - यह छी-छी शरीर छोड़ चले जायेंगे।
 
            -  तुमको यह अभी मालूम है, उनको तो नहीं रहता कि हम आगे जन्म में ऐसे साथी थे।
 
            -  तुमको भी बाद में वहाँ यह बातें याद नहीं रहेंगी।
 
           
         
        -  अभी तुम्हारी बुद्धि में एम आब्जेक्ट है।
          
            - मम्मा बाबा, लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।
 
            -  विष्णु है देवता।
 
            -  प्रजापिता ब्रह्मा को देवता नहीं कह सकते।
 
            -  ब्रह्मा सो देवता बनते हैं।
 
            -  ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं - यह अभी तुमने समझ लिया है। 
 
            - अभी तुम जानते हो - चैन सिर्फ स्वर्ग में ही होता है।
 
           
         
        -  कोई मरते हैं तो कहते हैं स्वर्ग गया अर्थात् चैन में गया।
          
            -  बेचैनी में पतित रहते हैं।
 
            -  बाप फिर भी कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। 
 
            - बाकी हैं डीटेल में समझने की बातें। 
 
            - बाप नॉलेजफुल है तो तुमको भी अपने जैसा नॉलेजफुल बनायेंगे।
 
           
         
        -  बाप की याद से तुम सतोप्रधान बनेंगे, यह आत्माओं की रेस है।
          
            -  जो जास्ती याद करेंगे वह जल्दी बनेंगे।
 
            - यह है योग और पढ़ाई की रेस। 
 
            - स्कूल में भी रेस होती है ना।
 
            -  ढेर स्टूडेन्ट्स होते हैं, उनमें से जो नम्बरवन निकलते हैं उनको स्कालरशिप मिलती है।
 
            -  एक ही पढ़ाई लाखों, करोड़ों आत्माओं के लिए होती है, तो इतने स्कूल भी होंगे ना।
 
            -  अब तुमको यह पढ़ाई पढ़नी है।
 
           
         
        -  सबको रास्ता बताओ, अंधों की लाठी बनो। 
          
            - घर-घर में पैगाम पहुँचाना है। 
 
           
         
        - अच्छा!
          
          मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।          
 
        - धारणा के लिए मुख्य सार:- 
 
        - 1) अब अशुद्ध कामनाओं का त्याग कर शुद्ध कामनायें रखनी हैं।
          
            -  सबसे शुद्ध कामना है पवित्र बनकर पवित्र दुनिया का मालिक बनें...। 
 
            - कोई भी भूल को छिपाकर अपने आपको ठगना नहीं है। 
 
            - धर्मराज बाप से सदा सच्चा रहना है। 
 
           
         
        - 2) ज्ञान चिता पर बैठ इस पढ़ाई में रेस कर भविष्य नई दुनिया में ऊंच पद पाना है। 
          
            - योग अग्नि से विकर्मो के खाते को दग्ध करना है। 
 
           
         
        - वरदान:-
 
        
        -  सत्यता की महानता द्वारा सदा खुशी के झूले में झूलने वाले अथॉरिटी स्वरूप भव        
 
        - सत्यता की अथॉरिटी स्वरूप बच्चों का गायन है - सच तो बिठो नच। 
 
        - सत्य की नांव हिलेगी लेकिन डूब नहीं सकती।
 
        -  आपको भी कोई कितना भी हिलाने की कोशिश करे लेकिन आप सत्यता की महानता से और ही खुशी के झूले में झूलते हो। 
 
        - वह आपको नहीं हिलाते लेकिन झूले को हिलाते हैं। 
 
        - यह हिलाना नहीं लेकिन झुलाना है इसलिए आप उन्हें धन्यवाद दो कि आप झुलाओ और हम बाप के साथ झूलें। 
 
        - स्लोगन:-
 
        
        -  सर्व शक्तियों की लाइट सदा साथ रहे तो माया समीप नहीं आ सकती।
 
           
        
           
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