| 
     11-06-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन 
       
      मीठे बच्चे - ब्राह्मण बनकर कोई ऐसी चलन नहीं चलना जो बाप का नाम बदनाम हो, धन्धाधोरी करते सिर्फ श्रीमत पर चलते रहो'' 
       
       
     
      
     प्रश्नः- 
    गॉडली स्टूडेन्ट के मुख से कौन से शब्द नहीं निकलने चाहिए?
 
   उत्तर:- 
    हमें पढ़ाई पढ़ने की फुर्सत नहीं है, यह शब्द तुम्हारे मुख से नहीं निकलने चाहिए। 
    बाप कोई बच्चों के सिर पर आपदा (बोझ-समस्या) नहीं डालते सिर्फ कहते हैं सवेरे-सवेरे उठ एक घड़ी, आधी घड़ी मुझे याद करो और पढ़ाई पढ़ो। 
    
  
  प्रश्नः- 
   मनुष्यों का प्लैन क्या है और बाप का प्लैन क्या है? 
   उत्तर:- 
    मनुष्यों का प्लैन है - सब मिलकर एक हो जाएं।  
   नर चाहत कुछ और ..बाप का प्लैन है झूठ खण्ड को सचखण्ड बनाना। 
    तो सचखण्ड में चलने के लिए जरूर सच्चा बनना पड़े। 
    
       
       
    
  
गीत:-आज के इंसान को... 
 
 | 
 
        
         
   
         
     
     
      
      - ओम् शान्ति।
 
      -  बच्चे भी कहते हैं ओम् शान्ति।
 
      -  आत्मायें कह सकती हैं इस शरीर द्वारा ओम् शान्ति।
 
      -  अहम् आत्मा का स्वधर्म है शान्त, यह भूलना नहीं है।
 
      -  बाप भी आकर कहते ओम् शान्ति। 
 
      - जहाँ तुम बच्चे भी शान्त रहते हो, वहाँ बाप भी रहते हैं।
 
      -  वह है हमारा शान्तिधाम वा घर। 
 
      - दुनिया में कोई भी विद्वान, आचार्य इन बातों को नहीं जानते।
 
      -  कह देते हैं आत्मा सो परमात्मा।
 
      -  आत्मा का भी किसको ज्ञान नहीं है कि आत्मा क्या है।
 
      -  इतनी करोड़ आत्मायें स्टार मिसल हैं। 
 
      - हर एक आत्मा में अपना-अपना अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, जो समय पर इमर्ज होता है। 
 
      - यह बाप बैठ समझाते हैं। 
 
      - बाप भी जीव आत्मा बनने बिगर जीव आत्माओं को समझा न सके। 
 
      - मुझे भी जरूर शरीर चाहिए ना।
 
      -  शरीर तब लेना होता है जब रचना रचनी होती है।
 
      -  प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा रचना करते हैं, रचयिता तो है निराकार शिव। 
 
      - प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्रह्माकुमार कुमारियों को समझा रहे हैं, शूद्रों को नहीं। 
 
      - अब हमारा है ब्राह्मण वर्ण। पहले शूद्र वर्ण में थे। 
 
      - उनके आगे वैश्य वर्ण, क्षत्रिय वर्ण। दुनिया इन बातों को नहीं जानती है।
 
      - बरोबर ब्राह्मण सो देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र... ब्राह्मणों की चोटी है।
 
      -  आगे ब्राह्मण गऊ के खुर जितनी चोटी रखाते थे।
 
      -  तुम बाजोली खेलते हो। 
 
      - मैं तो नहीं खेलता हूँ।
 
      -  इन वर्णो के चक्र में तुम आते हो।
 
      -  कितनी सहज बात है। 
 
      - तुम्हारा नाम ही है स्वदर्शन चक्रधारी। 
 
      - बाकी शास्त्रों में तो क्या-क्या बातें लिख दी हैं।
 
      -  तुम समझते हो - हम ब्राह्मण ही स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं।
 
      -  परन्तु यह अलंकारों की निशानी देवताओं को दी है क्योंकि वे सम्पूर्ण हैं। 
 
      - उन्हों को ही शोभते हैं।
 
      -  इस नॉलेज को धारण करने से तुम फिर चक्रवर्ती राजा बनते हो। 
 
      - अभी सम्मुख बैठे हो।
 
      -  यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ। 
 
      - यज्ञ में ब्राह्मण जरूर चाहिए।
 
      -  शूद्र यज्ञ रच नहीं सकते।
 
      -  रूद्र शिवबाबा ने यज्ञ रचा है तो ब्राह्मण जरूर चाहिए।
 
      -  बाप कहते हैं मैं ब्राह्मण बच्चों से ही बात करता हूँ।
 
      -  कितना बड़ा यज्ञ है जब से बाप आये हैं, आते ही यज्ञ रचा है। 
 
      - इसको कहा जाता है अश्वमेध अर्थात् स्वराज्य स्थापन करने अर्थ।
 
      -  कहाँ? भारत में।
 
      -  सतयुगी स्वराज्य रचते हैं।
 
      -  यह शिव ज्ञान यज्ञ कहो वा रूद्र ज्ञान यज्ञ कहो, सोमनाथ मन्दिर भी उनका ही है।
 
      -  एक के बहुत ही नाम हैं। 
 
      - इनको यज्ञ कहा जाता है, पाठशाला नहीं कहा जाता। 
 
      - बाप ने रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है।
 
      -  यज्ञ को पाठशाला नहीं कहेंगे।
 
      -  ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ रचा जाता है।
 
      -  ब्राह्मणों को दक्षिणा देने वाला दाता भोलानाथ है।
 
      -  उसको कहते ही हैं शिव भोलानाथ भण्डारी। 
 
      - अब तुम सम्मुख बैठे हो।
 
      -  बापदादा ने बच्चों को एडाप्ट किया है। 
 
      - यह है बड़ी मम्मा।
 
      -  फिर माताओं की सम्भाल के लिए मम्मा मुकरर की जाती है, वह सबसे तीखी जाती है।
 
      -  इनका पार्ट है मुख्य।
 
      -  वह है ज्ञान ज्ञानेश्वरी जगत अम्बा। 
 
      - महालक्ष्मी को ज्ञान ज्ञानेश्वरी नहीं कहेगे। 
 
      - लक्ष्मी माना धन देवी।
 
      -  कहते हैं ना - इनके घर लक्ष्मी है अर्थात् सम्पत्ति बहुत है।
 
      -  लक्ष्मी से सम्पत्ति ही मांगते हैं।
 
      -  12 मास पूरा हुआ तो आह्वान करेंगे।
 
      -  जगत अम्बा सबकी मनोकामनायें पूरी करती है। 
 
      - बच्चे जानते हैं जगत अम्बा है - प्रजापिता ब्रह्मा की बेटी, इनका नाम है सरस्वती। 
 
      - एक ही नाम बस है। 
 
      - मम्मा है तो बच्चे भी हैं। तुम शिवबाबा द्वारा नॉलेज सुन रहे हो।
 
      -  इनको बाप ने आकर एडाप्ट किया है, नाम रखा है ब्रह्मा।
 
      -  कहते भी हैं मैं पतित शरीर में आता हूँ।
 
      -  शास्त्रों में भी यह कोई बातें नहीं हैं।
 
      -  तुम जानते हो नई दुनिया के लिए हम पुरूषार्थ कर रहे हैं।
 
      -  कांटे से फूल बन रहे हैं।
 
      -  शूद्र थे तो कांटे थे।
 
      -  अभी ब्राह्मण फूल बने हो। 
 
      - ब्राह्मणों को फूल बनाते हैं बाप।
 
      -  वह है बागवान। 
 
      - तुम नम्बरवार माली हो। 
 
      - जो अच्छे-अच्छे माली हैं वह औरों को भी आपसमान बनाते हैं।
 
      -  सैपलिंग लगाते रहते हैं।
 
      -  नम्बरवार हैं, इसको कहा जाता है स्प्रीचुअल ज्ञान।
 
      -  ईश्वर है ज्ञान देने वाला।
 
      -  शास्त्र आदि तो सब मनुष्य सुनाते हैं।
 
      -  यह रूहानी ज्ञान जो सुप्रीम रूह रूहों को देते हैं और कोई को रचयिता और रचना का ज्ञान मिलता ही नहीं।
 
      -  ऐसे ही गपोड़े मारते रहते हैं।
 
      -  यह है ही झूठी दुनिया।
 
      -  सब झूठ ही झूठ है।
 
      -  असल में पहले झूठे जवाहरात थे नहीं। 
 
      - अभी तो झूठे कितने हो गये हैं।
 
      -  सच्चे रखने नहीं देते। 
 
      - झूठ खण्ड में है रावण राज्य, सचखण्ड में है राम का स्थापन किया हुआ राज्य।
 
      -  यह है शिवबाबा का स्थापन किया हुआ यज्ञ। 
 
      - पाठशाला भी है, यज्ञ भी है, घर भी है।
 
      -  तुम जानते हो हम पारलौकिक बाप और फिर प्रजापिता ब्रह्मा के सम्मुख बैठे हैं। 
 
      - जब तक ब्राह्मण न बनें तो वर्सा कैसे मिल सके।
 
      -  यज्ञ को सम्भालने वाले सच्चे ब्राह्मण चाहिए।
 
      -  विकारों में जाने वाले को ब्राह्मण नहीं कहेंगे।
 
      -  एक टांग रावण की बोट में, दूसरी टांग राम की बोट में है तो नतीजा क्या होता है?
 
      -  चीर जायेंगे। 
 
      - ऐसी चलन से फिर नाम बदनाम कर देते हैं। 
 
      - कहलाते हैं प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान और कर्तव्य शूद्रों के।
 
      -  बाप कहते हैं धन्धाधोरी तो भल करो परन्तु श्रीमत पर चलने से फिर रेसपान्सिबिल्टी उन पर हो जाती है।
 
      -  तुम यहाँ आये ही हो ईश्वरीय मत लेने के लिए। 
 
      - वह है आसुरी मत। 
 
      - तुम श्रीमत लेते हो श्रेष्ठ बनने के लिए।
 
      -  ऊंच ते ऊंच बाप ऊंची मत देते हैं।
 
      -  तुम जानते हो हमको ऊंची मत मिलती है मनुष्य से देवता बनने की।
 
      -  कहते भी हैं हम तो सूर्यवंशी राजा बनेंगे।
 
      -  यह है ही राजस्व, प्रजा स्व नहीं।
 
      -  तुम राजा-रानी बनते हो तो प्रजा भी जरूर बननी है।
 
      - जैसे यह मम्मा बाबा पुरूषार्थ से बनते हैं तो बच्चों को भी बनना है।
 
      -  तुम बच्चों को भी खुशी होनी चाहिए।
 
      -  हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियाँ हैं।
 
      -  शिव को प्रजापिता नहीं कहेंगे।
 
      -  वह है रचयिता।
 
      -  स्वर्ग में रहने वाले हैं देवी-देवतायें।
 
      -  बाप ही मनुष्य को देवता बनाते हैं।
 
      -  तुम्हारी काया कल्प वृक्ष समान बनती है, रिज्युवनेट होते हैं।
 
      -  तुम्हारी आत्मा जो काली हो गई है, उनको प्योर गोरा बनाते हैं।
 
      -  जब सम्पूर्ण पवित्र बन जाते हैं तो फिर शरीर नहीं रहता है इसलिए ही भंभोर को आग लगती है, जिसमें सबका विनाश हो जायेगा।
 
      -  यह हैं बेहद की बातें। 
 
      - यह बेहद का आइलैण्ड है, वह हैं हद के।
 
      -  जितनी भाषायें उतने नाम रख दिये हैं। 
 
      - अनेक टापू हैं।
 
      -  परन्तु यह सारी सृष्टि ही टापू है।
 
      -  सारी सृष्टि में रावण का राज्य है।
 
      -  गीत में भी सुना ना कि क्या हालत हो गई है।
 
      -  वहाँ एक दो को मारते नहीं हैं।
 
      -  वहाँ तो राम राजा, राम प्रजा... कहते हैं दु:ख की बात ही नहीं।
 
      -  किसको दु:ख देना भी पाप है। 
 
      - वहाँ फिर यह रावण हनूमान आदि कहाँ से आये? 
 
      - तुम कह सकते हो पहली मुख्य बात - गॉड फादर कहते हो तो वह सर्वव्यापी कैसे हो सकता है। 
 
      - फिर तो फादरहुड हो जाता है।
 
      -  सब फादर ही फादर तो हो न सकें।
 
      - अब तुम बच्चों को यह समझाना है - आधाकल्प तुमने झूठी कमाई की है। 
 
      - अब सचखण्ड के लिए सच्ची कमाई करनी है।
 
      -  वह भी शास्त्र आदि जो सुनाते हैं कमाई के लिए।
 
      -  शिवबाबा तो यह शास्त्र आदि कुछ भी पढ़ा हुआ नहीं है। 
 
      - वह है ही नॉलेजफुल, ज्ञान का सागर।
 
      -  वह सत् है, चैतन्य है।
 
      -  अभी तुम बच्चे जानते हो बाबा से हम सच्ची कमाई सचखण्ड के लिए कर रहे हैं। 
 
      - झूठ खण्ड विनाश होता है।
 
      -  देह सहित यह सब विनाश होना है।
 
      -  तुम सब देखेंगे कि कैसे लड़ाई लगती है।
 
      -  वह समझते हैं सब मिल जावें, परन्तु फूट पड़ती जाती है।
 
      -  नर चाहत कुछ और... उनका प्लैन है सब विनाश के लिए।
 
      -  ईश्वर का प्लैन क्या है?
 
      -  सो अब तुम जानते हो। 
 
      - बाप आये ही हैं झूठ खण्ड को सच खण्ड बनाने के लिए, मनुष्य को देवता बनाने। 
 
      - सत्य बाप द्वारा तुम सच्चे बनते हो और रावण द्वारा झूठे बनते हो।
 
      -  बाप ही सत्य ज्ञान देते हैं।
 
      -  तुम ब्राह्मणों का हाथ भरतू होगा।
 
      -  बाकी शूद्रों का हाथ खाली रहेगा।
 
      -  तुम जानते हो हम सो देवी-देवता बनेंगे।
 
      -  अब बाप सिर्फ कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनो और मुझे याद करो। 
 
      - याद क्यों भूलनी चाहिए!
 
      -  जो बाप स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, उनको तुम भूल जाते हो.. यह है नई बात, इसमें आत्म-अभिमानी बनना पड़े।
 
      -  आत्मा तो अविनाशी है, एक शरीर छोड़कर दूसरा लेती है। 
 
      - बाप कहते हैं - देही-अभिमानी बनो क्योंकि वापस जाना है।
 
      -  देह का भान छोड़ो। 
 
      - यह 84 जन्मों की सड़ी हुई जुत्ती है।
 
      - कपड़ा पहनते-पहनते सड़ जाता है ना।
 
      -  तुमको भी यह पुराना शरीर छोड़ना है। 
 
      - अब काम चिता से उतरकर ज्ञान चिता पर बैठो।
 
      -  बहुत हैं जो विकारों बिगर रह नहीं सकते।
 
      -  बाप कहते हैं - द्वापर से लेकर तुम इन विकारों के कारण ही महान रोगी बन पड़े हो।
 
      -  अब इन विकारों को जीतो।
 
      -  काम विकार में मत जाओ। 
 
      - यह शरीर तो अपवित्र, पतित है ना। 
 
      - पावन बनो। 
 
      - यहाँ सभी विकार से पैदा होते हैं।
 
      -  सतयुग-त्रेता में यह विकार होते नहीं। 
 
      - वहाँ भी यह हो तो बाकी उनको स्वर्ग, इनको नर्क क्यों कहा जाए! 
 
      - बाप कहते हैं शास्त्रों में तो कोई एम आब्जेक्ट ही नहीं है।
 
      -  यहाँ तो एम आब्जेक्ट है। 
 
      - हम अभी मनुष्य से देवता बन रहे हैं।
 
      -  बाप कहते हैं तुमने जो कुछ पढ़ा है उसे भूलो।
 
      -  उसमें कोई सार नहीं है।
 
      -  तुम्हारी चढ़ती कला एक ही बार होती है।
 
      -  फिर है उतरती कला।
 
      -  कितना भी माथा मारो, नीचे उतरना ही है।
 
      -  पतित बनना ही है।
 
      -  यह छी-छी दुनिया है।
 
      -  तुम बच्चे जानते हो हमारा भारत स्वर्ग था।
 
      -  अभी नर्क है। 
 
      - पहले आदि सनातन एक ही धर्म था, जो अब नहीं है।
 
      -  फिर उस धर्म की स्थापना होती है।
 
      -  बाबा फिर से ब्रह्मा द्वारा आकर स्थापना करते हैं।
 
      -  तुम भी कहेंगे हम फिर से राज्य लेते हैं।
 
      -  राज्य लेने के बाद फिर यह नॉलेज गुम हो जायेगी। 
 
      - यह नॉलेज पतितों को ही मिलती है - पावन होने के लिए, फिर पावन दुनिया की नॉलेज क्यों रहेगी?
 
      -  लक्ष्मी-नारायण के राज्य को कितने वर्ष हुए, यह भी तुम जानते हो। 
 
      - कहते हो बाबा हम 5 हजार वर्ष बाद फिर से आये हैं राज्य लेने। 
 
      - हम आत्मा बाप के बच्चे हैं।
 
      -  मिसाल देते हैं एक आदमी कहने लगा मैं भैंस हूँ... तो वह निश्चय बैठ गया।
 
      -  कहने लगा इस खिड़की से कैसे निकलूँ... यह बात है तुम्हारे लिए।
 
      -  तुम निश्चय करते हो हम बाबा के बच्चे हैं, ऐसे तो नहीं मैं चतुर्भुज हूँ, यह कहने से बन जायेंगे।
 
      -  बनाने वाला जरूर चाहिए।
 
      -  यह है नर से नारायण बनाने की नॉलेज, जो अच्छी रीति धारण कर और करायेंगे वही ऊंच पद पायेंगे। 
 
      - स्टूडेन्ट्स ऐसे कह न सकें कि हमको फुर्सत नहीं है पढ़ने की।
 
      -  फिर तो जाकर घर बैठो।
 
      -  पढ़ाई बिगर वर्सा मिल न सके।
 
      -  गॉड फादरली स्टूडेन्टस फिर कहते हैं - फुर्सत नहीं। 
 
      - बाप का बनकर फिर फारकती दे देते हैं तो बाप कहेंगे तुम तो महान मूर्ख हो। 
 
      -  घड़ी आधी घड़ी.... तुमको फुर्सत नहीं है, अच्छा सुबह को सवेरे बैठ बाबा को याद करो। 
 
      - कोई आपदा सिर पर नहीं डालते हैं।
 
      -  सिर्फ सवेरे उठ बाप को याद करो और स्वदर्शन चक्र फिराओ। 
 
      - औरों का नहीं तो अपना कल्याण करो।
 
      -  रहमदिल बन जितना औरों का कल्याण करेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। 
 
      - बड़ी जबरदस्त कमाई है।
 
      -  जिसके पास बहुत धन है वह कहते हैं फुर्सत नहीं।
 
      -  साहूकारों को वहाँ गरीब बनना है और गरीबों को साहूकार बनना है।
 
      -  सबसे जास्ती मातायें रोती हैं, उनको हँसाने वाला बनना है।
 
      -  निरन्तर याद की यात्रा पर रहना है। 
 
      - मधुबन में शान्ति है तो बहुत कमाई कर सकते हो। 
 
       
       
     
          
        
      
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
       
     अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
        
     धारणा के लिए मुख्य सार:-
      1)   सच खण्ड के लिए सच्ची कमाई करनी है।
      आत्म-अभिमानी होकर रहना है। 
      इस सड़ी हुई जुत्ती (शरीर) का अभिमान छोड़ देना है। 
      
          
        
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
        
      
       2) रहमदिल बन अपना और दूसरों का कल्याण करना है।
       सवेरे-सवेरे उठ बाप को याद करते, स्वदर्शन चक्र फिराना है।
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      वरदान:-
      ( All Blessings of 2021-22)
      
      
        
          - शुभ भावना से व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाले होलीहंस भव
 
          - होलीहंस उसे कहा जाता - जो निगेटिव को छोड़ पाजिटिव को धारण करे।
 
          -  देखते हुए, सुनते हुए न देखे न सुने। 
 
          - निगेटिव अर्थात् व्यर्थ बातें, व्यर्थ कर्म न सुने, न करे और न बोले।
 
          -  व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दे। 
 
          - इसके लिए हर आत्मा के प्रति शुभ भावना चाहिए। 
 
          - शुभ भावना से उल्टी बात भी सुल्टी हो जाती है इसलिए कोई कैसा भी हो आप शुभ भावना दो। 
 
          - शुभ भावना पत्थर को भी पानी कर देगी। व्यर्थ समर्थ में बदल जायेगा।
 
          
         
      
      स्लोगन:-        
      (All Slogans of 2021-22)
      
        
          - अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करनी है तो शान्त स्वरूप स्थिति में स्थित रहो।
 
          
          
          
         
      
      
      
      
      
           
 |