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     12-07-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन 
       
      
"मीठे बच्चे - किसी देहधारी से दैहिक लव न रख, एक बाप से लव रखो, अशरीरी बनने का पूरा-पूरा अभ्यास करो''
 
      
      
    
      
     
  प्रश्नः-
    रहमदिल बच्चों का कर्तव्य क्या है?
    
   उत्तर:-
    जब कोई फालतू बात करे तो उसकी फालतू बात न सुन उनके कल्याण अर्थ बड़ों को सुनाना - यह रहमदिल बच्चों का कर्तव्य है।
   जिनमें कोई पुरानी आदतें हैं उन्हें मिटाने में सहयोगी बनना ही रहम-दिल बनना है।
    
  प्रश्नः-
    कौन सा टाइटिल किसी देहधारी को नहीं दे सकते लेकिन ब्रह्मा बाप को दे सकते हैं?
    
   उत्तर:-
    श्री का टाइटिल क्योंकि श्री अर्थात् श्रेष्ठ पवित्र को कहा जाता है। किसी देहधारी मनुष्य को यह टाइटिल दे नहीं सकते क्योंकि भ्रष्टाचार से जन्म लेते हैं। ब्रह्मा बाप को श्री कहते क्योंकि इनका यह अलौकिक जन्म है।
    
गीत:- इस पाप की दुनिया से.... 
 
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      - ओम् शान्ति। 
 
      - बच्चे अब समझ गये हैं अर्थात् समझदार बन गये हैं, तो जरूर पहले बेसमझ थे।
 
      -  यह भी नहीं समझ में आता है कि यह पतित दुनिया है और इस भारत में ही देवी देवताओं का राज्य था, उसमें पावन सुखी थे। 
 
      - उसमें दु:ख की बात नहीं थी। 
 
      - परन्तु शास्त्रों में कई बातें सुनने के कारण यह भी समझ में नहीं आता है कि स्वर्ग में सदैव सुख था। 
 
      - स्वर्ग का किसको पता नहीं। 
 
      - समझते हैं वहाँ भी दु:ख था, यह है बेसमझी। 
 
      - अब तुम बच्चे समझदार बने हो। 
 
      - बाप ने आकर समझाया है, उनकी श्रीमत पर चल रहे हो। 
 
      - यह पतित दुनिया है, स्वर्ग पावन दुनिया थी। 
 
      - पावन दुनिया में भी दु:ख हो फिर तो दु:ख की दुनिया ही कहेंगे। 
 
      - फिर गीत भी रांग हो जाता है। 
 
      - कहते भी हैं हे बाबा ऐसी जगह ले चलो जहाँ आराम सुख चैन हो। 
 
      - बच्चे यह भी जानते हैं कि स्वर्ग सोने की चिड़िया थी। 
 
      - देवी-देवतायें थे। 
 
      - कभी भी किसको दु:ख नहीं देते थे। 
 
      - गाते भी हैं फिर भी शास्त्रों में ऐसी बातें लिखी हैं जो समझते हैं यह परम्परा से चला आता है। 
 
      - कृष्ण पर भी झूठे कलंक लगा दिये हैं। 
 
      - कहा जाता है जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। 
 
      - समझते हैं सारी सृष्टि ही पतित है। 
 
      - इस समय उन्हों की दृष्टि ही पतित है तो सारी सृष्टि को ही पतित समझते हैं। 
 
      - समझते हैं परम्परा से पतित-पना चला आया है। 
 
      - अभी तुम बच्चों में समझ आती जा रही है, सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। 
 
      - परमपिता परमात्मा के बच्चों को डायरेक्शन मिलते हैं। 
 
      - आत्माओं को बैठ बाप समझाते हैं। 
 
      - सभी आत्मायें पतित हैं इसलिए पतित आत्मा, पुण्य आत्मा कहा जाता है। 
 
      - बाप आत्माओं से बैठ बात करते हैं। 
 
      - तुम हमारे अविनाशी बच्चे हो, फिर मम्मा बाबा भी कहते हो।
 
      -  इस दुनिया में किसी को भी पिताश्री नहीं कह सकते। 
 
      - श्री माना श्रेष्ठ। 
 
      - एक भी मनुष्य श्रेष्ठ है नहीं।
 
      -  यह तो एक की ही महिमा हो सकती है।
 
      - यहाँ तो सब भ्रष्टाचार से ही पैदा होते हैं, इसलिए श्री कह नहीं सकते। 
 
      - भल तुम इनको इस समय कहते हो क्योंकि संन्यास किया हुआ है - श्रेष्ठ बनने के लिए। 
 
      - तुम जानते हो कि अभी हम फरिश्ते बनने वाले हैं। 
 
      - भ्रष्ट को श्री कह नहीं सकते। 
 
      - श्री लक्ष्मी, श्री नारायण, श्री राधे, श्री कृष्ण कहते हैं। 
 
      - मन्दिरों में भी उन्हों की महिमा गाते हैं। 
 
      - अपने को श्रेष्ठ कह नहीं सकते। 
 
      - अब तुम बच्चों ने समझा है भारत श्रेष्ठ था, शुद्ध सृष्टि थी। 
 
      - अभी पतित सृष्टि है, पतित को ही भ्रष्टाचारी कहेंगे। 
 
      - वे लोग भ्रष्टाचारियों को श्रेष्ठ बनाने के लिए सभायें करते हैं।
 
      -  परन्तु दुनिया ही भ्रष्टाचारी है तो कोई किसी को श्रेष्टाचारी बना कैसे सकते।
 
      -  बरोबर यह रावण राज्य है। जिस कारण रावण को वर्ष-वर्ष जलाते हैं।
 
      -  जलता ही नहीं, फिर खड़ा हो जाता है। 
 
      - यह भी मनुष्यों को समझ में नहीं आता, जिसे जला दिया उसे फिर हम नया क्यों बनाते हैं। 
 
      - इससे सिद्ध होता है कि रावणराज्य गया नहीं है। 
 
      - स्वर्ग में जब रामराज्य होता है वहाँ तो एफीजी निकालेंगे नहीं। 
 
      - कहते हैं रावण को जलाया फिर लंका को लूटा। 
 
      - रावण की लंका सोनी बताते हैं। 
 
      - परन्तु ऐसा है नहीं। 
 
      - यह तो सारी दुनिया लंका है।
 
      -  रावणराज्य में तो सब हैं, वह श्रीलंका तो आइलैण्ड है ना। 
 
      - दिखलाया भी है - भारत की पुछड़ी है। 
 
      - परन्तु सिर्फ उसमें रावण राज्य तो नहीं है ना। 
 
      - रावणराज्य तो सारे विश्व पर है, यह भी तुम समझते हो। 
 
      - कॉलेज में कोई बेसमझ जाकर बैठे तो क्या समझ सकेंगे! 
 
      - कुछ भी नहीं। 
 
      - वेस्ट ऑफ टाइम करेंगे। 
 
      - यह ईश्वरीय कॉलेज है, इसमें नया आदमी कुछ समझ नहीं सकेंगे। 
 
      - 7 दिन क्वारनटाइन में बिठाना पड़े, जब तक लायक बनें। 
 
      - फिर भी अच्छा आदमी रिलीजस माइन्डेड हो तो उनसे पूछना है - परमपिता परमात्मा तुम्हारा क्या लगता है?
 
      -  वह तो है आत्माओं का पिता और प्रजापिता भी तो बाप है। 
 
      - यह प्वाइंट्स बड़ी अच्छी हैं परन्तु बच्चे अजुन इतना हर्षित नहीं होते हैं।
 
      -  बाप कहते हैं तुमको नई-नई प्वाइंट्स सुनाता हूँ जिससे तुमको नशा चढ़े। 
 
      - किसको समझाने की युक्ति आये। 
 
      - फार्म भराने की कॉपी में पहले यह प्रश्न लिखाना है - कहेंगे परमपिता, तो पिता हुआ ना। 
 
      - फिर उस समय सर्वव्यापी का ज्ञान उड़ जायेगा।
 
      -  तुम जब प्रश्न पूछेंगे तो कहेंगे वह तो बाप है। 
 
      - हम सब बच्चे हैं। इतना मान जायें तो झट लिखा लेना चाहिए।
 
      -  प्रजापिता के भी बच्चे ठहरे।
 
      -  शिव हो गया दादा और वह बाप। 
 
      - शिवबाबा तो स्वर्ग की स्थापना करने वाला है तो जरूर उनसे ही वर्सा मिलेगा। 
 
      - सहज से सहज बातें निकालनी पड़ती हैं। 
 
      - बहुत सहज है। 
 
      - मित्र सम्बन्धियों के पास भी जाओ उनको भी यह समझाओ। 
 
      - यह तो नशा है ना - हम बाबा द्वारा दादे से वर्सा पाते हैं।
 
      - बापदादा से वर्सा पाते हैं, माता से वर्सा नहीं मिलेगा।
 
      -  बाप को ही स्वर्ग की स्थापना करनी है ना।
 
      -  वही मालिक है। 
 
      - जैसे उनको दादे से वर्से का हक है, वैसे पोत्रे पोत्रियों को भी हक है। 
 
      - बाप कहते हैं मुझे याद करो। 
 
      - मैं तो कहता नहीं हूँ कि इस देहधारी को याद करो। 
 
      - बाप सम्मुख बात कर रहे हैं। 
 
      - कल्प पहले भी ऐसे ही समझाया था। 
 
      - वर्सा भी तुमको बापदादा द्वारा मिलता है। 
 
      - ऐसे नहीं कि मम्मा से मिलता है। 
 
      - तुमको देह-अभिमान बहुत आ जाता है।
 
      -  देहधारियों से लव हो जाता है। 
 
      - हे आत्मायें तुम नंगी आई थी फिर पार्ट बजाते-बजाते अब 84 जन्म पूरे किये हैं। 
 
      - अभी मैं कहता हूँ तुमको वापिस चलना है।
 
      -  मामे-कम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
 
      -  देहधारी को याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे। 
 
      - तुम अन्जाम करते हो बाबा हम आपको ही याद करेंगे। 
 
      - तुमको इस पुरानी दुनिया में अब रहना ही नहीं है, इसमें कोई चैन नहीं इसलिए कहते हो - ऐसी जगह ले चलो जहाँ सुख चैन मिले। 
 
      - तुम कहते हो हम पहले जायेंगे शान्तिधाम, जहाँ शान्ति ही शान्ति होगी।
 
      -  फिर जायेंगे वहाँ से सुखधाम में, जहाँ शान्ति-सुख दोनों हैं। 
 
      - जब दु:ख है तो अशान्ति है। 
 
      - सुख में तो शान्ति है ही। 
 
      - परन्तु वह शान्ति नहीं। 
 
      - शान्तिधाम है आत्माओं का स्वीट होम। 
 
      - बाप सारे आदि-मध्य-अन्त को जानने वाला है। 
 
      - अब तुम बच्चों का धन्धा ही है पढ़ना और पढ़ाना और अपने शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी करना है। 
 
      - तुम जानते हो हम इस मृत्युलोक से अमरलोक में चले जायेंगे वाया शान्तिधाम।
 
      -  यह बुद्धि में याद रखना है। 
 
      - जब तक मृत्यु नहीं हुआ है, पढ़ना ही है।
 
      -  यह तो याद कर सकते हो ना। 
 
      - अब हमको जाना है अपने घर। 
 
      - यह दुनिया, यह सब कुछ छोड़ना है, खुशी होनी चाहिए।
 
      -  यह बेहद के नाटक का राज़ भी समझ गये हो।
 
      -  हद का नाटक पूरा होता है तो कपड़े बदली कर घर चले जाते हैं।
 
      -  वैसे अब हमको भी जाना है। 
 
      - 84 जन्मों का चक्र पूरा होता है।
 
      - याद भी करते हैं हे पतित-पावन आओ। 
 
      - याद शिवबाबा को ही करेंगे। 
 
      - एक तरफ कहते पतित-पावन आओ, दूसरे तरफ कह देते परमात्मा सर्वव्यापी है।
 
      - कोई अर्थ ही नहीं निकलता। 
 
      - बच्चों को कितनी अच्छी रीति समझाते हैं कि शान्तिधाम को याद करो यह दु:खधाम है। 
 
      - और गुरू गोसाई को यह कहना आयेगा नहीं, सिवाए तुम ब्राह्मण ब्राह्मणियों के। 
 
      - इस दु:खधाम का विनाश भी सामने खड़ा है। 
 
      - यह वही महाभारत की लड़ाई है। 
 
      - यूरोपवासी यादव भी हैं और कौरव पाण्डव भाई-भाई भी हैं। 
 
      - एक ही घर के हैं ना। 
 
      - भाई-भाई में युद्ध हो नहीं सकती। 
 
      - यहाँ युद्ध की बात ही नहीं। 
 
      - यह भी वन्डर है ना।
 
      -  मनुष्य क्या नहीं कर सकता है।
 
      -  जो बातें हुई ही नहीं, वह भी बना-बना कर एक दो की दिल को खराब कर देते हैं। 
 
      - व्यास भगवान का धन्धा भी देखो कैसा है। 
 
      - मनुष्यों का धन्धा है एक दो को लड़ाना।
 
      -  यह तो एक रसम है। 
 
      - सब एक दो के दुश्मन बनते हैं।
 
      -  बच्चे भी बाप का दुश्मन बन पड़ते हैं। 
 
      - अब तुम्हारी बुद्धि में देखो क्या है और शास्त्रों में देखो क्या-क्या लिख दिया है।
 
      -  उनका फिर मान कितना रखते हैं।
 
      -  बड़ी परिक्रमा दिलाते हैं। 
 
      - देवताओं की मूर्तियों को भी रथ पर बिठाए बड़ी परिक्रमा दिलाते हैं।
 
      -  फिर सबको समुद्र में डाल देते हैं।
 
      -  मृत्युलोक की रसम-रिवाज सबकी अपनी-अपनी है। 
 
      - बाप का प्लैन देखो कितना बड़ा है। 
 
      - सबके प्लैन खत्म कर देते और सुखधाम की स्थापना करते हैं। 
 
      - बाकी सबको शान्तिधाम में भेज देते हैं।
 
      -  तुम बच्चे देखो किसके सामने बैठे हो। 
 
      - निश्चय है - परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है। 
 
      - इन आरगन्स द्वारा हमको नॉलेज दे रहे हैं।
 
      -  और कोई ऐसा सतसंग होगा क्या? 
 
      - अभी बाप सामने बैठ समझाते हैं।
 
      -  जानते हो बाप हम आत्माओं से बात करते हैं, हम कानों से सुनते हैं।
 
      -  बाबा इस दादा के मुख द्वारा बोलते हैं। 
 
      - जो रत्न बाबा के मुख से निकलते हैं, वही तुम बच्चों के मुख से निकलने चाहिए।
 
      -  फालतू बातें सुनते भी नहीं सुननी हैं।
 
      -  कोई तो बैठ खुशी से सुनते हैं।
 
      -  बाबा कहते ऐसी बातें सुनो मत। 
 
      - रहमदिल बन किसमें कोई पुरानी आदत है तो मिटानी चाहिए।
 
      -  हाँ जी कर सुनना नहीं चाहिए। 
 
      - जो बाबा सुखधाम का मालिक बनाते हैं, ऐसे बाबा की ग्लानी तो हम सुनेंगे नहीं।
 
      -  हमको तो शिवबाबा से वर्सा लेना चाहिए।
 
      -  और बातों से हमारा क्या तैलुक। 
 
      - कोई सुने या न सुने हम तो ज्ञान का शुर्मा पहन लेवें। 
 
      - कोई ज्ञान अंजन लगाते, कोई धूल अंजन लगा लेते हैं। 
 
      - उससे तीसरा नेत्र खुलता नहीं। 
 
      - बाबा कितना सहज कर समझाते हैं।
 
      -  जो कैसे भी रोगी, अन्धा कुब्जा है वह भी समझ जाये। 
 
      - अल्फ और बे दो अक्षर हैं।
 
      -  सिर्फ पूछो परमपिता और प्रजापिता ब्रह्मा से आपका क्या सम्बन्ध है?
 
      -  यह प्रश्न सबसे अच्छा है।
 
      -  तो सर्वव्यापी का ज्ञान एकदम बाहर निकल जाए।
 
      -  मित्र सम्बन्धियों से दोस्ती कर उन्हें समझाओ।
 
      -  बहुत मीठा बनो।
 
      -  तुम्हारा काम है परिचय देना। 
 
      - भल दुश्मन हो परन्तु उनसे भी मित्रता रखनी है।
 
      -  बाप कहते हैं तुमने आसुरी मत पर चल मुझे गाली दी है।
 
      -  तुमने ईश्वर पर अपकार किया है फिर भी ईश्वर तुम पर कितना उपकार करते हैं।
 
      -  ईश्वर का अपकार होना भी ड्रामा में नूँध है, तब तो कहते हैं यदा यदाहि धर्मस्य... आया भी भारत में है।
 
      -  समझा भी रहे हैं बच्चों को।
 
      -  हर एक बात अच्छी रीति समझने की है। 
 
      - किसकी तकदीर में नहीं है फिर भी वही धन्धा करते हैं।
 
      -  यहाँ से बाहर गये तो यह बातें भी भूल जायेंगी।
 
      -  निंदा करते-करते तो यह हाल हो गया है।
 
      -  अब निंदा करना बन्द करो, सिर्फ पण्डित भी नहीं बनना है।
 
      -  तुम पक्के राजयोगी हो। 
 
      - ऐसे-ऐसे समझाओ तो तीर भी लगे।
 
      -  खुद में खामी होगी तो दूसरे को बोल नहीं सकेंगे।
 
      -  पाप अन्दर खाता रहेगा। 
 
      - बाबा हर बात बहुत अच्छी रीति समझाते हैं।
 
      -  कल्प पहले भी ऐसे ही समझाया था, भूलो मत।
 
      -  सिमरण करते-करते अन्त मती सो गति हो जायेगी। 
 
      - सवेरे उठ बाप को याद करो जो अन्त में देह भी याद न पड़े।
 
      -  हम आत्मा हैं। 
 
      - वह सारा साक्षात्कार होता रहेगा।
 
      
      
       
        अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
       
  
         
  
    
      
   1) जो रत्न बाप के मुख से निकलते हैं वही अपने मुख से निकालने हैं।  
  व्यर्थ बातें नहीं बोलनी हैं, न सुननी है। 
   ज्ञान का ही शुर्मा पहनना है। 
   2) सभी से सच्ची मित्रता रखनी है। 
   बहुत मीठे रूप में, हर्षितमुख हो बाप का परिचय देना है।  
  अपकारी पर भी बाप समान उपकारी बनना है।  
   
       
  
       
       शुद्धि की विधि द्वारा किले को मजबूत बनाने वाले सदा विजयी वा निर्विघ्न भव 
       
         
         
         
         जैसे कोई भी कार्य शुरू करते हो तो शुद्धि की विधि अपनाते हो, ऐसे जब किसी स्थान पर कोई विशेष सेवा शुरू करते हो वा चलते-चलते सेवा में कोई विघ्न आते हैं तो पहले संगठित रूप में चारों ओर विशेष टाइम पर एक साथ योग का दान दो।  
        सर्व आत्माओं का एक ही शुद्ध संकल्प हो - विजयी।  
        यह है शुद्धि की विधि, इससे सभी विजयी वा निर्विघ्न बन जायेंगे और किला मजबूत हो जायेगा। 
        
        
      
       
       
  
      
      (All Slogans of 2021-22)
     
        
          - यथार्थ कर्म का प्रत्यक्षफल है - खुशी और शक्ति की प्राप्ति।
 
        
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