14.09.2022

कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा स्व को कन्ट्रोल कर फुलस्टॉप लगाने वाले सदा समर्थ आत्मा भव

बिन्दु स्वरूप बाप और बिन्दु स्वरूप आत्मा - दोनों की स्मृति फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दु लगाने में समर्थ बना देती है। समर्थ आत्मा के पास स्व के ऊपर कन्ट्रोल करने की कन्ट्रोलिंग पावर होती है। वह दूसरों को कन्ट्रोल नहीं करते लेकिन स्व पर कन्ट्रोल रख परिवर्तन शक्ति को कार्य में लगाते हैं। उनमें रांग को राइट करने की शक्ति होती है, वह कभी ऐसे नहीं कहते कि क्या मुझे ही मरना है, मुझे ही सहन करना है। समर्थ आत्मा यही समझती कि यह मरना नहीं लेकिन स्वर्ग में स्वराज्य लेना है।

13.09.2022

पवित्रता के फाउन्डेशन को मजबूत कर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण और सम्पन्न भव

ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन पवित्रता है। ये फाउण्डेशन मजबूत है तो सम्पूर्ण सुख-शान्ति की अनुभूति होती है। यदि अतीन्द्रिय सुख वा स्वीट साइलेन्स का अनुभव कम है तो जरूर पवित्रता का फाउण्डेशन कमजोर है। ये व्रत धारण करना कम बात नहीं है। बापदादा पवित्रता के व्रत को पालन करने वाली आत्माओं को दिल से दुआओं सहित मुबारक देते हैं। इस व्रत में सम्पूर्ण और सम्पन्न भव का वरदान प्राप्त करने के लिए व्यर्थ सोचने, देखने, बोलने और करने में फुलस्टॉप लगाकर परिवर्तन करो।

12.09.2022

मेरे पन के अधिकार को समाप्त कर क्रोध व अभिमान पर विजयी बनने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव

जहाँ मेरेपन का अधिकार रखते हो कि ये क्यों किया, यह मेरी है या मेरा है तो क्रोध, अभिमान या मोह आता है। लेकिन यह सेवा के साथी हैं, न कि मेरे का अधिकार है। जब मेरा नहीं तो क्रोध, मोह का कर्मबन्धन भी नहीं। तो कर्मबन्धनों से मुक्त होने के लिए एक बाप को अपना संसार बना लो। “एक बाप दूसरा न कोई'' एक बाप ही संसार बन गया तो कोई आकर्षण नहीं, कोई कमजोर संस्कारों का भी बंधन नहीं। सब मेरा-मेरा एक मेरे बाप में समा जाता है।

11.09.2022

कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा तूफान को भी तोहफा बनाने वाले यथार्थ योगी भव

यथार्थ वा सच्चा योगी वह है जो अपनी बुद्धि को एक सेकण्ड में जहाँ और जब लगाना चाहे वहाँ लगा सके। परिस्थिति हलचल की हो, वायुमण्डल तमोगुणी हो, माया अपना बनाने का प्रयत्न कर रही हो फिर भी सेकण्ड में एकाग्र हो जाना - यह है याद की शक्ति। कितना भी व्यर्थ संकल्पों का तूफान हो लेकिन सेकण्ड में तूफान आगे बढ़ने का तोहफा बन जाए-ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर हो। ऐसी शक्तिशाली आत्मा कभी ये संकल्प नहीं लायेगी कि चाहते तो नहीं हैं लेकिन हो जाता है।

10.09.2022

सदा खुशी की खुराक खाने वाले और खुशी बांटने वाले, खुशनसीब बेफिक्र भव

ब्राह्मण जीवन की खुराक खुशी है। जो सदा खुशी की खुराक खाने वाले और खुशी बांटने वाले हैं वही खुशनसीब हैं। उनके दिल से यही निकलता कि मेरे जैसा खुशनसीब और कोई नहीं। भले सागर की लहरें भी डुबोने आ जाएं तो भी फिक्र नहीं क्योंकि जो योगयुक्त हैं वह सदा ही सेफ हैं इसलिए सारे कल्प में इस समय ही आप बेफिक्र जीवन का अनुभव करते हो। सतयुग में भी बेफिक्र होंगे लेकिन ज्ञान नहीं होगा।

09.09.2022

अपने मस्तक पर सदा बाप की दुआओं का हाथ अनुभव करने वाले विघ्न-विनाशक भव

विघ्न-विनाशक वही बन सकते जिनमें सर्वशक्तियां हों। तो सदा ये नशा रखो कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ। सर्व शक्तियों को समय पर कार्य में लगाओ। कितने भी रूप से माया आये लेकिन आप नॉलेजफुल बनो। बाप के हाथ और साथ का अनुभव करते हुए कम्बाइन्ड रूप में रहो। रोज़ अमृतवेले विजय का तिलक स्मृति में लाओ। अनुभव करो कि बापदादा की दुआओं का हाथ मेरे मस्तक पर है तो विघ्न-विनाशक बन सदा निश्चिंत रहेंगे।

08.09.2022

पवित्रता की श्रेष्ठता को धारण कर सदा शुभ कार्य करने वाले पुरूषोत्तम व विशेष आत्मा भव

साधारण आत्मायें जब पवित्रता को धारण करती हैं तो महान आत्मा कहलाती हैं। पवित्रता ही श्रेष्ठता है, पवित्रता ही पूज्य है। ब्राह्मणों की पवित्रता का ही गायन है। कोई भी शुभ कार्य होगा तो ब्राह्मणों से ही करायेंगे। वैसे तो नामधारी ब्राह्मण बहुत हैं लेकिन आप जैसा नाम वैसा काम करने वाली विशेष आत्मा हो। साधारण कर्म भी बाप की याद में रहकर करते हो तो विशेष हो जाता है, इसलिए ऐसे विशेष कर्म करने वाली पुरूषोत्तम वा विशेष आत्मायें हो।

07.09.2022

धन कमाते अथवा सम्बन्धों को निभाते हुए दु:खों से मुक्त रहने वाले नष्टोमोहा, ट्रस्टी भव

लौकिक संबंधों के बीच में रहते संबंध निभाना अलग चीज़ है और उनके तरफ आकर्षित होना अलग चीज़ है। ट्रस्टी होकर धन कमाना अलग चीज है, लगाव से कमाना, मोह से कमाना अलग चीज़ है। नष्टोमोहा वा ट्रस्टी की निशानी है - दु:ख और अशान्ति का नाम निशान न हो। कभी कमाने में धन नीचे ऊपर हो जाए वा सम्बन्ध निभाने में कोई बीमार हो जाए, तो भी दु:ख की लहर न आये। सदा बेफिक्र बादशाह।

06.09.2022

एक बल एक भरोसा रख हलचल की परिस्थिति में एकरस रहने वाले सर्वशक्ति सम्पन्न भव

एक बल, एक भरोसे में रहने वाली आत्मा सदा एकरस स्थिति में स्थित होगी। एकरस स्थिति अर्थात् सदा अचल, हलचल नहीं। एक बाप द्वारा सर्वशक्तियां प्राप्त कर सर्व शक्ति सम्पन्न रहने वाली आत्मा कैसी भी हलचल की परिस्थिति में अचल रह सकती है। एकरस स्थिति का अर्थ ही है कि एक द्वारा सर्व सम्बन्ध, सर्व प्राप्तियों के रस का अनुभव करना। उसे और कोई भी संबंध अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकते।

05.09.2022

फ्राकदिल बन दु:खी अशान्त आत्माओं को खुशी का दान देने वाले मास्टर रहमदिल भव

वर्तमान समय लोगों को और सब कुछ मिल सकता है लेकिन सच्ची खुशी नहीं मिल सकती। इसलिए ऐसे समय पर दु:खी अशान्त आत्माओं को खुशी की अनुभूति करा दो तो वे दिल से दुआयें देंगी। आप दाता के बच्चे हो तो फ्राकदिली से खुशी का खजाना बांटो, रहमदिल के गुण को इमर्ज करो। कभी भी यह नहीं सोचो कि यह तो सुनने वाले ही नहीं हैं। भल कोई आपोजीशन भी करे तो भी आपको रहम की भावना नहीं छोड़नी है। रहम भावना, शुभ भावना फल अवश्य देती है।

04.09.2022

लगाव के सूक्ष्म धागों को समाप्त कर उड़ती कला में उड़ने वाले सम्पूर्ण फरिश्ता भव

फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी दुनिया से कोई रिश्ता नहीं। तो सूक्ष्म रीति से चेक करो कि अंश मात्र भी कोई धागा अपनी तरफ आकर्षित तो नहीं करता है? क्योंकि यदि कोई चीज़ अच्छी लगती है तो वह अपनी तरफ आकर्षित जरूर करती है। कई कहते हैं इच्छा नहीं है लेकिन अच्छा लगता है। तो इच्छा है मोटा धागा और अच्छा है सूक्ष्म धागा, अब उसे भी समाप्त कर सम्पूर्ण फरिश्ता बनो।

03.09.2022

अनेक प्रकार के भावों को समाप्त कर आत्मिक भाव को धारण करने वाले सर्व के स्नेही भव

देह-भान में रहने से अनेक प्रकार के भाव उत्पन्न होते हैं। कभी कोई अच्छा लगेगा तो कभी कोई बुरा लगेगा। आत्मा रूप में देखने से रूहानी प्यार पैदा होगा। आत्मिक भाव, आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति में रहने से हर एक के सम्बन्ध में आते हुए अति न्यारे और प्यारे रहेंगे। तो चलते फिरते अभ्यास करो - “मैं आत्मा हूँ'' इससे अनेक प्रकार के भाव-स्वभाव समाप्त हो जायेंगे और सबके स्नेही स्वत: बन जायेंगे।

02.09.2022

रूहानी सोशल वर्कर बन हलचल के समय परिस्थितियों को पार करने की हिम्मत देने वाले सच्चे सेवाधारी भव

अभी समय प्रति समय विश्व में हलचल बढ़नी ही है। अशान्ति वा हिंसा के समाचार सुनते हुए आप रूहानी सोशल सेवाधारी बच्चों को विशेष अलर्ट बनकर अपने पावरफुल वायब्रेशन द्वारा सबमें शान्ति की, सहन शक्ति की हिम्मत भरनी है, लाइट हाउस बन सर्व को शान्ति की लाइट देनी है। यह फर्जअदाई अब तीव्रगति से पालन करो जिससे आत्माओं को रूहानी राहत मिले। जलते हुए दु:ख की अग्नि में शीतल जल भरने का अनुभव करें।

01.09.2022

पूर्वजपन की स्मृति द्वारा सर्व की पालना करने वाले शुभ वृत्ति वा मंसा शक्ति सम्पन्न भव

किसी भी धर्म की आत्माओं को मिलते वा देखते हो तो यह स्मृति रहे कि यह सब आत्मायें हमारे ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर की वंशावली हैं। हम ब्राह्मण आत्मायें पूर्वज हैं। पूर्वज सभी की पालना करते हैं। आपकी अलौकिक पालना का स्वरूप है बाप द्वारा प्राप्त हुई सर्व शक्तियां अन्य आत्माओं में भरना। जिस आत्मा को जिस शक्ति की आवश्यकता है, उसकी उस शक्ति द्वारा पालना करना। इसके लिए अपनी वृत्ति बहुत शुद्ध और मन्सा, शक्ति सम्पन्न होनी चाहिए।

31.08.2022

 

30.08.2022

परवश आत्माओं को रहम के शीतल जल द्वारा वरदान देने वाले वरदानी मूर्त भव

यदि कोई क्रोध अग्नि में जलता हुआ आपके सामने आये, तो उसे परवश समझ अपने रहम के शीतल जल द्वारा वरदान दो। तेल के छींटे नहीं डालो, अगर किसी के प्रति क्रोध की भावना भी रखी तो तेल के छींटें डाले, इसलिए वरदानी मूर्त बन सहनशीलता की शक्ति का वरदान दो। जब अभी चैतन्य में यह संस्कार भरेंगे तब जड़ चित्रों द्वारा भी वरदानी मूर्त बनेंगे।

29.08.2022

ज्ञान, गुण और शक्तियों से सम्पन्न बन दान करने वाले महादानी भव

सारे दिन में जो भी आत्मा सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उसे महादानी बन कोई न कोई शक्ति का, ज्ञान का, गुणों का दान दो। दान शब्द का रूहानी अर्थ है सहयोग देना। आपके पास ज्ञान का खजाना भी है तो शक्तियों और गुणों का खजाना भी है। तीनों में सम्पन्न बनो, एक में नहीं। कैसी भी आत्मा हो, गाली देने वाली, निंदा करने वाली भी हो - उसे भी अपनी वृत्ति वा स्थिति द्वारा गुण दान दो।

28.08.2022

दृढ़ संकल्प रूपी व्रत द्वारा अपनी वृत्तियों को परिवर्तन करने वाले महान आत्मा भव

महान आत्मा बनने का आधार है -“पवित्रता के व्रत को प्रतिज्ञा के रूप में धारण करना'' किसी भी प्रकार का दृढ़ संकल्प रूपी व्रत लेना अर्थात् अपनी वृत्ति को परिवर्तन करना। दृढ़ व्रत वृत्ति को बदल देता है। व्रत का अर्थ है मन में संकल्प लेना और स्थूल रीति से परहेज करना। आप सबने पवित्रता का व्रत लिया और वृत्ति श्रेष्ठ बनाई। सर्व आत्माओं के प्रति आत्मा भाई-भाई की वृत्ति बनने से ही महान आत्मा बन गये।

27.08.2022

सन्तुष्टता के खजाने द्वारा हद की इच्छाओं को समाप्त करने वाले सदा सन्तुष्टमणि भव

जिनके पास सन्तुष्टता का खजाना है उनके पास सब कुछ है, जो थोड़े में सन्तुष्ट रहते हैं उन्हें सर्व प्राप्तियों की अनुभूति होती है। और जिसके पास सन्तुष्टता नहीं तो सब कुछ होते भी कुछ नहीं है, क्योंकि असन्तुष्ट आत्मा सदा इच्छाओं के वश होती है उसकी एक इच्छा पूरी होगी तो और 10 इच्छायें उत्पन्न हो जायेंगी, इसलिए हद के इच्छा मात्रम् अविद्या .... तब कहेंगे सन्तुष्टमणि।

26.08.2022

सर्व प्राप्तियों की खुशी में उड़ते हुए मंजिल पर पहुंचने वाले स्मृति स्वरूप भव

ब्राह्मण जीवन में आदि से अब तक जो भी प्राप्तियां हुई हैं-उनकी लिस्ट स्मृति में लाओ तो सार रूप में यही कहेंगे कि अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मण जीवन में, और यह सब अविनाशी प्राप्तियां हैं। इन प्राप्तियों की स्मृति इमर्ज रूप में रहे अर्थात् स्मृति स्वरूप बनो तो खुशी में उड़ते मंजिल पर सहज ही पहुंच जायेंगे। प्राप्ति की खुशी कभी नीचे हलचल में नहीं लायेगी क्योंकि सम्पन्नता अचल बनाती है।

25.08.2022

अपने भाग्य की स्मृति से सदा खुशी में डांस करने वाले खुशनसीब भव

अमृतवेले से रात तक आप ब्राह्मण बच्चों को जो श्रेष्ठ भाग्य मिला है, उस भाग्य की लिस्ट सदा सामने रखो और यही गीत गाते रहो - वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य, जो भाग्य-विधाता ही अपना हो गया। इसी नशे में सदा खुशी की डांस करते रहो। कुछ भी हो जाए, मरने तक की बात भी आ जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। शरीर चला जाए कोई हर्जा नहीं लेकिन खुशी नहीं जाए।

24.08.2022

कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा सर्व की ब्लैसिंग प्राप्त करने वाले सहज सफलतामूर्त भव

कर्म में योग और योग में कर्म - ऐसा कर्मयोगी अर्थात् श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ स्थिति और श्रेष्ठ वायुमण्डल बनाने वाला सर्व की दुआओं का अधिकारी बन जाता है। कर्म और योग के बैलेन्स से हर कर्म में बाप द्वारा ब्लैसिंग तो मिलती ही है लेकिन जिसके भी संबंध-सम्पर्क में आते हैं उनसे भी दुआयें मिलती हैं, सब उसे अच्छा मानते हैं, यह अच्छा मानना ही दुआयें हैं। तो जहाँ दुआयें हैं वहाँ सहयोग है और यह दुआयें व सहयोग ही सफलता-मूर्त बना देता है।

23.08.2022

सदा उमंग-उत्साह के पंखों द्वारा उड़ने और उड़ाने वाले मजबूत और अथक भव

आप आत्मायें अनेक आत्माओं को उड़ाने के निमित्त हो इसलिए उमंग-उत्साह के पंख मजबूत हों। सदा इसी स्मृति में रहो कि हम ब्राह्मण (बी.के.) विश्व कल्याण के जवाबदार हैं तो आलस्य और अलबेलापन स्वत: समाप्त हो जायेगा। कभी भी थकेंगे नहीं, जिसमें उमंग-उत्साह होता है वह अथक होते हैं। वह अपने चेहरे और चलन से सदा औरों का भी उमंग-उत्साह बढ़ाते हैं।

22.08.2022

एवररेडी बन हर परीक्षा में रूहानी मौज का अनुभव करने वाली विशेष आत्मा भव

संगमयुग रूहानी मौजों में रहने का युग है इसलिए सदा मौज में रहो, कभी भी मूंझना नहीं। कोई भी परिस्थिति या परीक्षा में थोड़े समय के लिए भी मूंझ हुई और उसी घड़ी अन्तिम घड़ी आ जाए तो अन्त मति सो गति क्या होगी! इसलिए सदा एवररेडी रहो। कोई भी समस्या सम्पूर्ण बनने में विघ्न रूप नहीं बनें। सदा यह स्मृति रहे कि मैं दुनिया में सबसे वैल्युबुल, विशेष आत्मा हूँ, मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म विशेष हो, एक सेकण्ड भी व्यर्थ न जाए।

21.08.2022

विशेषता के संस्कारों को अपनी नेचर बनाए साधारणता को समाप्त करने वाले मरजीवा भव

जैसे किसी की कोई भी नेचर होती है तो वह स्वत: ही अपना काम करती है। सोचना वा करना नहीं पड़ता। ऐसे विशेषता के संस्कार भी नेचर बन जाएं और हर एक के मुख से, मन से यही निकले कि इस विशेष आत्मा की नेचर ही विशेषता की है। साधारण कर्म की समाप्ति हो जाए तब कहेंगे मरजीवा। साधारणता से मर गये, विशेषता में जी रहे हैं। संकल्प में भी साधारणता न हो।

20.08.2022

साधनों को सहारा बनाने के बजाए निमित्त मात्र कार्य में लगाने वाले सदा साक्षीदृष्टा भव

कई बच्चे चलते-चलते बीज को छोड़ टाल-टालियों में आकर्षित हो जाते हैं, कोई आत्मा को आधार बना लेते और कोई साधनों को, क्योंकि बीज का रूप-रंग शोभनिक नहीं होता और टाल-टालियों का रूप-रंग बड़ा शोभनिक होता है। माया बुद्धि को ऐसा परिवर्तन कर देती है जो झूठा सहारा ही सच्चा अनुभव होता है इसलिए अब साकार स्वरूप में बाप के साथ का और साक्षी-दृष्टा स्थिति का अनुभव बढ़ाओ, साधनों को सहारा नहीं बनाओ, उन्हें निमित्त-मात्र कार्य में लगाओ।

19.08.2022

सदा एक बाप के स्नेह में समाये हुए सर्व प्राप्तियों में सम्पन्न और सन्तुष्ट भव

जो बच्चे सदा एक बाप के स्नेह में समाये हुए हैं -बाप उनसे जुदा नहीं और वे बाप से जुदा नहीं। हर समय बाप के स्नेह के रिटर्न में सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न और सन्तुष्ट रहते हैं इसलिए उन्हें और किसी भी प्रकार का सहारा आकर्षित नहीं कर सकता। स्नेह में समाई हुई आत्मायें सदा सर्व प्राप्ति सम्पन्न होने के कारण सहज ही “एक बाप दूसरा न कोई'' इस अनुभूति में रहती हैं। समाई हुई आत्माओं के लिए एक बाप ही संसार है।

18.08.2022

बेफिक्र बादशाह की स्थिति में रह वायुमण्डल पर अपना प्रभाव डालने वाले मास्टर रचयिता भव

जैसे बाप को इतना बड़ा परिवार है फिर भी बेफिक्र बादशाह है, सब कुछ जानते हुए, देखते हुए बेफिक्र। ऐसे फालो फादर करो। वायुमण्डल पर अपना प्रभाव डालो, वायुमण्डल का प्रभाव आपके ऊपर नहीं पड़े क्योंकि वायुमण्डल रचना है और आप मास्टर रचयिता हो। रचता का रचना के ऊपर प्रभाव हो। कोई भी बात आये तो याद करो कि मैं विजयी आत्मा हूँ, इससे सदा बेफिक्र रहेंगे, घबरायेंगे नहीं।

17.08.2022

अटूट निश्चय के आधार पर विजय का अनुभव करने वाले सदा हर्षित और निश्चिंत भव

निश्चय की निशानी है-मन्सा-वाचा-कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क हर बात में सहज विजयी। जहाँ निश्चय अटूट है वहाँ विजय की भावी टल नहीं सकती। ऐसे निश्चयबुद्धि ही सदा हर्षित और निश्चिंत रहेंगे। किसी भी बात में यह क्या, क्यों, कैसे कहना भी चिंता की निशानी है। निश्चयबुद्धि निश्चिंत आत्मा का स्लोगन है “जो हुआ अच्छा हुआ, अच्छा है और अच्छा ही होना है।'' वह बुराई में भी अच्छाई का अनुभव करेंगे। चिंता शब्द की भी अविद्या होगी।

16.08.2022

भाग्य और भाग्य विधाता की स्मृति से सदा खुश रहने और खुशियां बांटने वाले सहजयोगी भव

संगमयुग खुशियों का युग, मौजों का युग है तो सदा खुशी में रहो और खुशियां बांटते रहो। भाग्य और भाग्य विधाता सदा याद रहे। बाप मिला सब कुछ मिला-यह स्मृति ही सहजयोगी बना देगी। दुनिया वाले कहते हैं कि कष्ट के बिना परमात्मा नहीं मिल सकता और आप कहते घर बैठे बाप मिल गया, जो सोचा नहीं था वह मिल गया। खुशियों का सागर मिल गया...इसी खुशी में रहो-यह भी सहजयोग है।

15.08.2022

मेरे-मेरे को तेरे में परिवर्तन कर श्रेष्ठ मंजिल को प्राप्त करने वाले नष्टोमोहा भव

जहाँ मेरापन होता है वहाँ हलचल होती है। मेरी रचना, मेरी दुकान, मेरा पैसा, मेरा घर...यह मेरा पन थोड़ा भी किनारे रखा है तो मंजिल का किनारा नहीं मिलेगा। श्रेष्ठ मंजिल को प्राप्त करने के लिए मेरे को तेरे में परिवर्तन करो। हद का मेरा नहीं, बेहद का मेरा। वह है मेरा बाबा। बाबा की स्मृति और ड्रामा के ज्ञान से नथिंगन्यु की अचल स्थिति रहेगी और नष्टोमोहा बन जायेंगे।

14.08.2022

स्मृति के महत्व को जान अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले अविनाशी तिलकधारी भव

भक्ति मार्ग में तिलक का बहुत महत्व है। जब राज्य देते हैं तो तिलक लगाते हैं, सुहाग और भाग्य की निशानी भी तिलक है। ज्ञान मार्ग में फिर स्मृति के तिलक का बहुत महत्व है। जैसी स्मृति वैसी स्थिति होती है। अगर स्मृति श्रेष्ठ है तो स्थिति भी श्रेष्ठ होगी। इसलिए बापदादा ने बच्चों को तीन स्मृतियों का तिलक दिया है। स्व की स्मृति, बाप की स्मृति और श्रेष्ठ कर्म के लिए ड्रामा की स्मृति-अमृतवेले इन तीनों स्मृतियों का तिलक लगाने वाले अविनाशी तिलकधारी बच्चों की स्थिति सदा श्रेष्ठ रहती है।

13.08.2022

फ्राकदिल बन अखुट खजानों से सबको भरपूर करने वाले मास्टर दाता भव

आप दाता के बच्चे मास्टर दाता हो, किसी से कुछ लेकर फिर देना-वह देना नहीं है। लिया और दिया तो यह बिजनेस हो गया। दाता के बच्चे फ्राक दिल बन देते जाओ। अखुट खजाना है, जिसको जो चाहिए वह देते भरपूर करते जाओ। किसी को खुशी चाहिए, स्नेह चाहिए, शान्ति चाहिए, देते चलो। यह खुला खाता है, हिसाब-किताब का खाता नहीं है। दाता की दरबार में इस समय सब खुला है इसलिए जिसको जितना चाहिए उतना दो, इसमें कंजूसी नहीं करो।

12.08.2022

मास्टर स्नेह के सागर बन घृणा भाव को समाप्त करने वाले नॉलेजफुल भव

नॉलेजफुल अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा बच्चे हर एक के प्रति मास्टर स्नेह के सागर होते हैं। उनके पास स्नेह के बिना और कुछ है ही नहीं। आजकल सम्पत्ति से भी ज्यादा स्नेह की आवश्यकता है। तो मास्टर स्नेह के सागर बन अपकारी पर भी उपकार करो। जैसे बाप सभी बच्चों के प्रति रहम और कल्याण की भावना रखते हैं, ऐसे बाप समान क्षमा के सागर और रहमदिल बच्चों में भी किसी के प्रति घृणा भाव नहीं हो सकता।

11.08.2022

स्वयं को विश्व कल्याण के निमित्त समझ व्यर्थ से मुक्त रहने वाले बाप समान भव

जैसे बाप विश्व कल्याणकारी है, ऐसे बच्चे भी विश्व कल्याण के निमित्त हैं। आप निमित्त आत्माओं की वृत्ति से वायुमण्डल परिवर्तन होना है। जैसा संकल्प वैसी वृत्ति होती है इसलिए विश्व कल्याण की जिम्मेवार आत्मायें एक सेकण्ड भी संकल्प वा वृत्ति को व्यर्थ नहीं बना सकती। कैसी भी परिस्थिति हो, व्यक्ति हो लेकिन स्व की भावना, स्व की वृत्ति कल्याण की हो, ग्लानि करने वाले के प्रति भी शुभ भावना हो तब कहेंगे व्यर्थ से मुक्त बाप समान।

10.08.2022

हद की इच्छाओं का त्याग कर अच्छा बनने की विधि द्वारा सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव

जो हद की इच्छायें रखते हैं, उनकी इच्छायें कभी पूरी नहीं होती। अच्छा बनने वालों की सभी शुभ इच्छायें स्वत: पूरी हो जाती हैं। दाता के बच्चों को कुछ भी मांगने की आवश्यकता नहीं है। मांगने से कुछ भी मिलता नहीं है। मांगना अर्थात् इच्छा। बेहद की सेवा का संकल्प बिना हद की इच्छा के होगा तो अवश्य पूरा होगा इसलिए हद की इच्छा के बजाए अच्छा बनने की विधि अपना लो तो सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न हो जायेंगे।

09.08.2022

अपनी निश्चिंत स्थिति द्वारा श्रेष्ठ टचिंग के आधार पर कार्य करने वाले सफलतामूर्त भव

कोई भी कार्य करते सदा स्मृति रहे कि “बड़ा बाबा बैठा है'' तो स्थिति सदा निश्चिंत रहेगी। इस निश्चिंत स्थिति में रहना भी सबसे बड़ी बादशाही है। आजकल सब फिक्र के बादशाह हैं और आप बेफिक्र बादशाह हो। जो फिक्र करने वाले होते हैं उन्हें कभी भी सफलता नहीं मिलती क्योंकि वह फिक्र में ही समय और शक्ति को व्यर्थ गंवा देते हैं। जिस काम के लिए फिक्र करते वह काम बिगाड़ देते। लेकिन आप निश्चिंत रहते हो इसलिए समय पर श्रेष्ठ टचिंग होती है और सेवाओं में सफलता मिल जाती है।

08.08.2022

माया की बड़ी बात को भी छोटी बनाकर पार करने वाले निश्चयबुद्धि विजयी भव

कोई भी बड़ी बात को छोटा बनाना या छोटी बात को बड़ा बनाना अपने हाथ में हैं। किसी-किसी का स्वभाव होता है छोटी बात को बड़ी बनाना और कोई बड़ी बात को भी छोटा बना देते हैं। तो माया की कितनी भी बड़ी बात सामने आ जाए लेकिन आप उससे बड़े बन जाओ तो वह छोटी हो जायेगी। स्व-स्थिति में रहने से बड़ी परिस्थिति भी छोटी लगेगी और उस पर विजय पाना सहज हो जायेगा। समय पर याद आये कि मैं कल्प-कल्प का विजयी हूँ तो इस निश्चय से विजयी बन जायेंगे।

07.08.2022

समर्पण भाव से सेवा करते सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी भव

सच्चे सेवाधारी वह हैं जो समर्पण भाव से सेवा करते हैं। सेवा में जरा भी मेरे पन का भाव न हो। जहाँ मेरा पन है वहाँ सफलता नहीं। जब कोई यह समझ लेते हैं कि यह मेरा काम है, मेरा विचार है, यह मेरी फर्ज-अदाई है-तो यह मेरापन आना अर्थात् मोह उत्पन्न होना। लेकिन कहाँ भी रहते सदा स्मृति रहे कि मैं निमित्त हूँ, यह मेरा घर नहीं लेकिन सेवा-स्थान है तो समर्पण भाव से निर्मान और नष्टोमोहा बन सफलता को प्राप्त कर लेंगे।

06.08.2022

श्रेष्ठ और शुभ वृत्ति द्वारा वाणी और कर्म को श्रेष्ठ बनाने वाले विश्व परिवर्तक भव

जो बच्चे अपनी कमजोर वृत्तियों को मिटाकर शुभ और श्रेष्ठ वृत्ति धारण करने का व्रत लेते हैं, उन्हें यह सृष्टि भी श्रेष्ठ नज़र आती है।

वृत्ति से दृष्टि और कृत्ति का भी कनेक्शन है।

कोई भी अच्छी वा बुरी बात पहले वृत्ति में धारण होती है फिर वाणी और कर्म में आती है।

वृत्ति श्रेष्ठ होना माना वाणी और कर्म स्वत: श्रेष्ठ होना।

वृत्ति से ही वायब्रेशन, वायुमण्डल बनता है।

श्रेष्ठ वृत्ति का व्रत धारण करने वाले विश्व परिवर्तक स्वत: बन जाते हैं।

05.08.2022

देह-अभिमान के अंशमात्र की भी बलि चढ़ाने वाले महाबलवान भव

सबसे बड़ी कमजोरी है देह-अभिमान।

देह-अभिमान का सूक्ष्म वंश बहुत बड़ा है।

देह-अभिमान की बलि चढ़ाना अर्थात् अंश और वंश सहित समर्पित होना।

ऐसे बलि चढ़ाने वाले ही महाबलवान बनते हैं।

यदि देह अभिमान का कोई भी अंश छिपाकर रख लिया, अभिमान को ही स्वमान समझ लिया तो उसमें अल्पकाल की विजय भल दिखाई देगी लेकिन बहुतकाल की हार समाई हुई है।

04.08.2022

हर कर्म में बाप का साथ साथी रूप में अनुभव करने वाले सिद्धि स्वरूप भव

सबसे सहज और निरन्तर याद का साधन है-सदा बाप के साथ का अनुभव हो।

साथ की अनुभूति याद करने की मेहनत से छुड़ा देती है।

जब साथ है तो याद रहेगी ही लेकिन ऐसा साथ नहीं कि सिर्फ साथ में बैठा है लेकिन साथी अर्थात् मददगार है।

साथ वाला कभी भूल भी सकता है लेकिन साथी नहीं भूलता।

तो हर कर्म में बाप ऐसा साथी है जो मुश्किल को भी सहज करने वाला है।

ऐसे साथी के साथ का सदा अनुभव होता रहे तो सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे।

03.08.2022

निमित्त भाव के अभ्यास द्वारा स्व की और सर्व की प्रगति करने वाले न्यारे और प्यारे भव

निमित्त बनने का पार्ट सदा न्यारा और प्यारा बनाता है।

अगर निमित्त भाव का अभ्यास स्वत: और सहज है तो सदा स्व की प्रगति और सर्व की प्रगति हर कदम में समाई हुई है।

उन आत्माओं का कदम धरनी पर नहीं लेकिन स्टेज पर है।

निमित्त बनी हुई आत्माओं को सदा यह स्मृति स्वरूप में रहता कि विश्व के आगे बाप समान का एक्जैम्पल हैं।

02.08.2022

बाप की मदद द्वारा उमंग-उत्साह और अथकपन का अनुभव करने वाले कर्मयोगी भव

कर्मयोगी बच्चों को कर्म में बाप का साथ होने के कारण एकस्ट्रा मदद मिलती है।

कोई भी काम भल कितना भी मुश्किल हो लेकिन बाप की मदद - उमंग-उत्साह, हिम्मत और अथकपन की शक्ति देने वाली है।

जिस कार्य में उमंग-उत्साह होता है वह सफल अवश्य होता है।

बाप अपने हाथ से काम नहीं करते लेकिन मदद देने का काम जरूर करते हैं।

तो आप और बाप - ऐसी कर्मयोगी स्थिति है तो कभी भी थकावट फील नहीं होगी।

01.08.2022

सर्व कर्मेन्द्रियों को लॉ और आर्डर प्रमाण चलाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव

मास्टर सर्वशक्तिमान् राजयोगी वह है जो राजा बनकर अपनी कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा को लॉ और आर्डर प्रमाण चलाये।

जैसे राजा राज्य-दरबार लगाते हैं ऐसे आप अपने राज्य कारोबारी कर्मेन्द्रियों की रोज़ दरबार लगाओ और हालचाल पूछो कि कोई भी कर्मचारी आपोजीशन तो नहीं करते हैं, सब कन्ट्रोल में हैं।

जो मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं, उन्हें एक भी कर्मेन्द्रिय कभी धोखा नहीं दे सकती। स्टॉप कहा तो स्टॉप।

31.07.2022

अपनी सर्व जिम्मेवारियों का बोझ बाप को दे स्वयं हल्का रहने वाले निमित्त और निर्माण भव

जब अपनी जिम्मेवारी समझ लेते हो तब माथा भारी होता है।

जिम्मेवार बाप है, मैं निमित्त मात्र हूँ - यह स्मृति हल्का बना देती है इसलिए अपने पुरूषार्थ का बोझ, सेवाओं का बोझ, सम्पर्क-सम्बन्ध निभाने का बोझ...सब छोटे-मोटे बोझ बाप को देकर हल्के हो जाओ।

अगर थोड़ा भी संकल्प आया कि मुझे करना पड़ता है, मैं ही कर सकता हूँ, तो यह मैं-पन भारी बना देगा और निर्माणता भी नहीं रहेगी।

निमित्त समझने से निर्मानता का गुण भी स्वत: आ जाता है।

30.07.2022

समस्याओं के पहाड़ को उड़ती कला से पार करने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव

जैसे समय की रफ्तार तीव्रगति से सदा आगे बढ़ती रहती है।

समय कभी रूकता नहीं, यदि उसे कोई रोकना भी चाहे तो भी रूकता नहीं।

समय तो रचना है, आप रचयिता हो इसलिए कैसी भी परिस्थिति अथवा समस्याओं के पहाड़ भी आ जायें तो भी उड़ने वाले कभी रुकेंगे नहीं।

अगर उड़ने वाली चीज़ बिना मंजिल के रुक जाए तो एक्सीडेंट हो जायेगा।

तो आप बच्चे भी तीव्र पुरूषार्थी बन उड़ती कला में उड़ते रहो, कभी भी थकना और रुकना नहीं।

29.07.2022

श्रेष्ठ स्मृति द्वारा सुखमय स्थिति बनाने वाले सुख स्वरूप भव

स्थिति का आधार स्मृति है।

आप सिर्फ स्मृति स्वरूप बनो, तो स्मृति आने से जैसी स्मृति वैसी स्थिति स्वत: हो जायेगी।

खुशी की स्मृति में रहो तो स्थिति भी खुशी की बन जायेगी और दु:ख की स्मृति करो तो दु:ख की स्थिति हो जायेगी।

संसार में तो दु:ख बढ़ने ही हैं, सब अति में जाना है लेकिन आप सुख के सागर के बच्चे सदा खुश रहने वाले दु:खों से न्यारे सुख-स्वरूप हो, इसलिए क्या भी होता रहे लेकिन आप सदा मौज में रहो।

28.07.2022

स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के निमित्त बनने वाले सर्व खजानों के मालिक भव

आपका स्लोगन है “बदला न लो बदलकर दिखाओ''।

स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन।

कई बच्चे सोचते हैं यह ठीक हो तो मैं ठीक हो जाऊं, यह सिस्टम ठीक हो तो मैं ठीक रहूँ।

क्रोध करने वाले को शीतल कर दो तो मैं शीतल हो जाऊं, इस खिटखिट करने वाले को किनारे कर दो तो सेन्टर ठीक हो जाए, यह सोचना ही रांग है।

पहले स्व को बदलो तो विश्व बदल जायेगा।

इसके लिए सर्व खजानों के मालिक बन समय प्रमाण खजानों को कार्य में लगाओ।

27.07.2022

शिक्षक बनने के साथ रहमदिल की भावना द्वारा क्षमा करने वाले मास्टर मर्सीफुल भव

सर्व की दुआये लेनी हैं तो शिक्षक बनने के साथ-साथ मास्टर मर्सीफुल बनो।

रहमदिल बन क्षमा करो तो यह क्षमा करना ही शिक्षा देना हो जायेगा।

सिर्फ शिक्षक नहीं बनना है, क्षमा करना है - इन संस्कारों से ही सबको दुआयें दे सकेंगे।

अभी से दुआयें देने के संस्कार पक्के करो तो आपके जड़ चित्रों से भी दुआयें लेते रहेंगे, इसके लिए हर कदम श्रीमत प्रमाण चलते हुए दुआओं का खजाना भरपूर करो।

 

26.07.2022

परमात्म प्यार की शक्ति से असम्भव को सम्भव करने वाले पदमापदम भाग्यवान भव

पदमापदम भाग्यवान बच्चे सदा परमात्म प्यार में लवलीन रहते हैं।

परमात्म प्यार की शक्ति किसी भी परिस्थिति को श्रेष्ठ स्थिति में बदल देती है।

असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं।

मुश्किल सहज हो जाता है क्योंकि बापदादा का वायदा है कि हर समस्या को पार करने में प्रीति की रीति निभाते रहेंगे।

लेकिन कभी-कभी प्रीत करने वाले नहीं बनना।

सदा प्रीत निभाने वाले बनना।

 

25.07.2022

नॉलेज की शक्ति द्वारा कर्मेन्द्रियों पर शासन करने वाले सफल स्वराज्य अधिकारी भव

रोज़ अपने सहयोगी सर्व कर्मचारियों की राज्य दरबार लगाओ और चेक करो कि कोई भी कर्मेन्द्रिय वा कर्मचारी से बार-बार गलती तो नहीं होती है!

क्योंकि गलत कार्य करते-करते संस्कार पक्के हो जाते हैं, इसलिए नॉलेज की शक्ति से चेक करने के साथ-साथ चेंज कर दो तब कहेंगे सफल स्वराज्य अधिकारी।

ऐसे स्वराज्य चलाने में जो सफल रहते हैं, उनसे सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्मायें सन्तुष्ट रहती हैं, वे सर्व की शुक्रिया के पात्र बन जाते हैं।

24.07.2022

मेरे-मेरे को समाप्त कर पुरानी दुनिया से मरने वाले निर्भय व ट्रस्ट्री भव

लोग मरने से ड़रते हैं और आप तो हो ही मरे हुए।

नई दुनिया में जीते हो, पुरानी दुनिया से मरे हुए हो तो मरे हुए को मरने से क्या डर, वे तो स्वत: निर्भय होंगे ही।

लेकिन यदि कोई भी मेरा-मेरा होगा तो माया बिल्ली म्याऊं-म्याऊं करेगी।

लोगों को मरने का, चीज़ों का या परिवार का फिक्र होता है, आप ट्रस्टी हो, यह शरीर भी मेरा नहीं, इसलिए न्यारे हो, जरा भी किसी में लगाव नहीं।

23.07.2022

अपने क्षमा स्वरूप द्वारा शिक्षा देने वाले मास्टर क्षमा के सागर भव

यदि कोई आत्मा आपकी स्थिति को हिलाने की कोशिश करे, अकल्याण की वृत्ति रखे, उसे भी आप अपने कल्याण की वृत्ति से परिवर्तन करो या क्षमा करो।

परिवर्तन नहीं कर सकते हो तो मास्टर क्षमा के सागर बन क्षमा करो।

आपकी क्षमा उस आत्मा के लिए शिक्षा हो जायेगी।

आजकल शिक्षा देने से कोई समझता, कोई नहीं।

लेकिन क्षमा करना अर्थात् शुभ भावना की दुआयें देना, सहयोग देना।

22.07.2022

तपस्या द्वारा सर्व कमजोरियों को भस्म करने वाले फर्स्ट नम्बर के राज्य अधिकारी भव

फर्स्ट जन्म में फर्स्ट नम्बर की आत्माओं के साथ राज्य अधिकार प्राप्त करना है तो जो भी कमजोरियां हैं उन्हें तपस्या की योग अग्नि में भस्म करो।

मन-बुद्धि को एकाग्र करना अर्थात् एक ही संकल्प में रह फुल पास होना।

अगर मन-बुद्धि जरा भी विचलित हो तो दृढ़ता से एकाग्र करो।

व्यर्थ संकल्पों की समाप्ति ही सम्पूर्णता को समीप लायेगी।

21.07.2022

एक पास शब्द की स्मृति द्वारा किसी भी पेपर में फुल पास होने वाले पास विद आनर भव

किसी भी पेपर में फुल पास होने के लिए उस पेपर के क्वेश्चन के विस्तार में नहीं जाओ, ऐसा नहीं सोचो कि यह क्यों आया, कैसे आया, किसने किया?

इसके बजाए पास होने का सोचकर पेपर को पेपर समझकर पास कर लो।

सिर्फ एक पास शब्द स्मृति में रखो कि हमें पास होना है, पास करना है और बाप के पास रहना है तो पास विद आनर बन जायेंगे।

20.07.2022

कल्प-कल्प के विजय की नूंध को स्मृति में रख सदा निश्चिंत रहने वाले निश्चयबुद्धि विजयी भव

निश्चयबुद्धि बच्चे व्यवहार वा परमार्थ के हर कार्य में सदा विजय की अनुभूति करते हैं।

भल कैसा भी साधारण कर्म हो, लेकिन उन्हें विजय का अधिकार अवश्य प्राप्त होता है।

वे कोई भी कार्य में स्वयं से दिलशिकस्त नहीं होते क्योंकि निश्चय है कि कल्प-कल्प के हम विजयी हैं।

जिसका मददगार स्वयं भगवान है उसकी विजय नहीं होगी तो किसकी होगी, इस भावी को कोई टाल नहीं सकता!

यह निश्चय और नशा निश्चिंत बना देता है।

19.07.2022

“एक बाप दूसरा न कोई'' - इस स्थिति द्वारा सदा एकरस और लवलीन रहने वाले सहजयोगी भव

“एक बाप दूसरा न कोई'' - जो बच्चे ऐसी स्थिति में सदा रहते हैं उनकी बुद्धि सार स्वरूप में सहज स्थित हो जाती है।

जहाँ एक बाप है वहाँ स्थिति एकरस और लवलीन है।

अगर एक के बजाए कोई दूसरा-तीसरा आया तो खिटखिट होगी, इसलिए अनेक विस्तारों को छोड़ सार स्वरूप का अनुभव करो, एक की याद में एकरस रहो तो सहजयोगी बन जायेंगे।

18.07.2022

सर्व शक्तियों से सम्पन्न बन हर शक्ति को कार्य में लगाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव

जो बच्चे सर्व शक्तियों से सदा सम्पन्न हैं वही मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं।

कोई भी शक्ति अगर समय पर काम नहीं आती तो मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कह सकते।

एक भी शक्ति कम होगी तो समय पर धोखा दे देगी, फेल हो जायेंगे।

ऐसे नहीं सोचना कि हमारे पास सर्व शक्तियां तो हैं, एक कम हुई तो क्या हर्जा है।

एक में ही हर्जा है, एक ही फेल कर देगी इसलिए एक भी शक्ति कम न हो और समय पर वह शक्ति काम में आये तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिमान्।

17.07.2022

मेरे पन की खोट को समाप्त कर भरपूरता का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण ट्रस्टी भव

यदि बाप की श्रीमत प्रमाण निमित्त बनकर रहो तो न मेरी प्रवृत्ति है, न मेरा सेन्टर है।

प्रवृत्ति में हो तो भी ट्रस्टी हो, सेन्टर पर हो तो भी बाप के सेन्टर हैं न कि मेरे, इसलिए सदा शिव बाप की भण्डारी है, ब्रह्मा बाप का भण्डारा है - इस स्मृति से भरपूरता का अनुभव करेंगे।

मेरा पन लाया तो भण्डारा व भण्डारी में बरक्कत नहीं होगी।

किसी भी कार्य में अगर कोई खोट अर्थात् कमी है तो इसका कारण बाप की बजाए मेरेपन की खोट अर्थात् अशुद्धि मिक्स है।

16.07.2022

कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा निर्णय शक्ति को बढ़ाने वाले सदा निश्चिंत भव

सदा निश्चिंत वही रह सकते हैं जिनकी बुद्धि समय पर यथार्थ जजमेंट देती है क्योंकि दिन-प्रतिदिन समस्यायें, सरकमस्टांश और टाइट होने हैं, ऐसे समय पर कर्म और योग का बैलेन्स होगा तो निर्णय शक्ति द्वारा सहज पार कर लेंगे।

बैलेन्स के कारण बापदादा की जो ब्लैसिंग प्राप्त होगी उससे कभी संकल्प में भी आश्चर्यजनक प्रश्न उत्पन्न नहीं होंगे।

ऐसा क्यों हुआ, यह क्या हुआ..यह क्वेश्चन नहीं उठेगा।

सदैव यह निश्चय पक्का होगा कि जो हो रहा है उसमें कल्याण छिपा हुआ है।

15.07.2022

मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाले कर्मयोगी भव

दुनिया वाले समझते हैं कि कर्म ही सब कुछ हैं लेकिन बापदादा कहते हैं कि कर्म अलग नहीं, कर्म और योग दोनों साथ-साथ हैं।

ऐसा कर्मयोगी कैसा भी कर्म होगा उसमें सहज सफलता प्राप्त कर लेगा।

चाहे स्थूल कर्म करते हो, चाहे अलौकिक करते हो।

लेकिन कर्म के साथ योग है माना मन और बुद्धि की एकाग्रता है तो सफलता बंधी हुई है।

कर्मयोगी आत्मा को बाप की मदद भी स्वत: मिलती है।

14.07.2022

बाप द्वारा प्राप्त हुए सर्व खजानों को कार्य में लगाकर बढ़ाने वाले ज्ञानी-योगी तू आत्मा भव

बापदादा ने बच्चों को सर्व खजानों से सम्पन्न बनाया है लेकिन जो समय पर हर खजाने को काम में लगाते हैं उनका खजाना सदा बढ़ता जाता है।

वे कभी ऐसे नहीं कह सकते कि चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया।

खजानों से सम्पन्न ज्ञानी-योगी तू आत्मायें पहले सोचती हैं फिर करती हैं।

उन्हें समय प्रमाण टच होता है वे फिर कैच करके प्रैक्टिकल में लाती हैं।

एक सेकण्ड भी करने के बाद सोचा तो ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहेंगे।

13.07.2022

स्मृति स्वरूप के वरदान द्वारा सदा शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करने वाले सहज पुरुषार्थी भव

सदा शक्तिशाली, विजयी वही रह सकते हैं जो स्मृति स्वरूप हैं, उन्हें ही सहज पुरुषार्थी कहा जाता है।

वे हर परिस्थिति में सदा अचल रहते हैं, भल कुछ भी हो जाए, परिस्थिति रूपी बड़े से बड़ा पहाड़ भी आ जाए, संस्कार टक्कर खाने के बादल भी आ जाएं, प्रकृति भी पेपर ले लेकिन अंगद समान मन-बुद्धि रूपी पांव को हिलने नहीं देते।

बीती की हलचल को भी स्मृति में लाने के बजाए फुलस्टॉप लगा देते हैं।

उनके पास कभी अलबेलापन नहीं आ सकता।

12.07.2022

शुद्धि की विधि द्वारा किले को मजबूत बनाने वाले सदा विजयी वा निर्विघ्न भव

जैसे कोई भी कार्य शुरू करते हो तो शुद्धि की विधि अपनाते हो, ऐसे जब किसी स्थान पर कोई विशेष सेवा शुरू करते हो वा चलते-चलते सेवा में कोई विघ्न आते हैं तो पहले संगठित रूप में चारों ओर विशेष टाइम पर एक साथ योग का दान दो।

सर्व आत्माओं का एक ही शुद्ध संकल्प हो - विजयी।

यह है शुद्धि की विधि, इससे सभी विजयी वा निर्विघ्न बन जायेंगे और किला मजबूत हो जायेगा।

11.07.2022

यथार्थ चार्ट द्वारा हर सबजेक्ट में सम्पूर्ण पास मार्क्स लेने वाले आज्ञाकारी भव

यथार्थ चार्ट का अर्थ है हर सबजेक्ट में प्रगति और परिवर्तन का अनुभव करना।

ब्राह्मण जीवन में प्रकृति, व्यक्ति अथवा माया द्वारा परिस्थितियां तो आनी ही हैं लेकिन स्व-स्थिति की शक्ति परिस्थिति के प्रभाव को समाप्त कर दे, परिस्थितियां मनोरंजन की सीन अनुभव हो।

संकल्प में भी हलचल न हो।

ऐसे विधि-पूर्वक चार्ट द्वारा वृद्धि का अनुभव करने वाले आज्ञाकारी बच्चों को सम्पूर्ण पास मार्क्स मिलती हैं।

10.07.2022

सदा उत्साह में रह निराशावादी को आशावादी बनाने वाले सच्चे सेवाधारी भव

ब्राह्मण अर्थात् हर समय उत्साह भरे जीवन में उड़ने और उड़ाने वाले, उनके पास कभी निराशा आ नहीं सकती क्योंकि उनका आक्यूपेशन है “निराशावादी को आशावादी बनाना,'' यही सच्ची सेवा है।

सच्चे सेवाधारियों का उत्साह कभी कम नहीं हो सकता।

उत्साह है तो जीवन जीने का मजा है।

जैसे शरीर में श्वांस की गति यथार्थ चलती है तो अच्छी तन्दरूस्ती मानी जाती है।

ऐसे ब्राह्मण जीवन अर्थात् उत्साह, निराशा नहीं।

09.07.2022

समय के ज्ञान को स्मृति में रख सब प्रश्नों को समाप्त करने वाले स्वदर्शन चक्रधारी भव

जो स्वदर्शन चक्रधारी बच्चे स्व का दर्शन कर लेते हैं उन्हें सृष्टि चक्र का दर्शन स्वत: हो जाता है।

ड्रामा के राज़ को जानने वाले सदा खुशी में रहते हैं, कभी क्यों, क्या का प्रश्न नहीं उठ सकता क्योंकि ड्रामा में स्वयं भी कल्याणकारी हैं और समय भी कल्याणकारी है।

जो स्व को देखते, स्वदर्शन चक्रधारी बनते वह सहज ही आगे बढ़ते रहते हैं।

08.07.2022

सर्व शक्तियों रूपी बर्थ राइट को हर समय कार्य में लगाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव

सर्व शक्तियां बाप का खजाना हैं और उस खजाने पर बच्चों का अधिकार है।

अधिकार वाले को जैसे भी चलाओ वैसे वह चलेगा।

ऐसे ही सर्वशक्तियां जब अधिकार में होंगी तब नम्बरवन विजयी बन सकेंगे।

तो चेक करो कि हर शक्ति समय पर काम में आती है!

हर परिस्थिति में अधिकार से शक्ति को यूज़ करो।

बहुतकाल से शक्तियों रूपी रचना को कार्य में लगाने का अभ्यास हो तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिमान्।

07.07.2022

सत्यता की हिम्मत से विश्वास का पात्र बनने वाले बाप वा परिवार के स्नेही भव

विश्वास की नांव सत्यता है।

दिल और दिमाग की ऑनेस्टी है तो उसके ऊपर बाप का, परिवार का स्वत: ही दिल से प्यार और विश्वास होता है।

विश्वास के कारण फुल अधिकार उसको दे देते हैं।

वे स्वत: ही सबके स्नेही बन जाते हैं इसलिए सत्यता की हिम्मत से विश्वासपात्र बनो।

सत्य को सिद्ध नहीं करो लेकिन सिद्धि स्वरूप बन जाओ तो तीव्रगति से आगे बढ़ते रहेंगे।

06.07.2022

सर्व खजानों को कार्य में लगाकर बढ़ाने वाले योगी सो प्रयोगी आत्मा भव

बापदादा ने बच्चों को सर्व खजाने प्रयोग के लिए दिये हैं।

जो जितना प्रयोगी बनते हैं, प्रयोगी की निशानी है प्रगति।

अगर प्रगति नहीं होती है तो प्रयोगी नहीं।

योग का अर्थ ही है प्रयोग में लाना।

तो तन-मन-धन या वस्तु जो भी बाप द्वारा मिली हुई अमानत है, उसे अलबेलेपन के कारण व्यर्थ नहीं गंवाना, ब्लकि उसे कार्य में लगाकर एक से दस गुना बढ़ाना, कम खर्च बाला नशीन बनना - यही योगी सो प्रयोगी आत्मा की निशानी है।

05.07.2022

हर सेकण्ड, हर कदम श्रीमत पर एक्यूरेट चलने वाले ईमानदार, वफादार भव

हर कर्म में, श्रीमत के इशारे प्रमाण चलने वाली आत्मा को ही ऑनेस्ट अर्थात् ईमानदार और वफादार कहा जाता है।

ब्राह्मण जन्म मिलते ही दिव्य बुद्धि में बापदादा ने जो श्रीमत भर दी है, ऑनेस्ट आत्मा हर सेकण्ड हर कदम उसी प्रमाण एक्यूरेट चलती रहती है।

जैसे साइन्स की शक्ति द्वारा कई चीजें इशारे से ऑटोमेटिक चलती हैं, चलाना नहीं पड़ता, चाहे लाइट द्वारा, चाहे वायब्रेशन द्वारा स्विच आन किया और चलता रहता है।

ऐसे ही ऑनेस्ट आत्मा साइलेन्स की शक्ति द्वारा सदा और स्वत: चलते रहते हैं।

04.07.2022

ब्राह्मण जीवन में सदा सुख देने और लेने वाले अतीन्द्रिय सुख के अधिकारी भव

जो अतीन्द्रिय सुख के अधिकारी हैं वे सदा बाप के साथ सुखों के झूलों में झूलते हैं।

उन्हें कभी यह संकल्प नहीं आ सकता कि फलाने ने मुझे बहुत दु:ख दिया।

उनका वायदा है - न दु:ख देंगे, न दु:ख लेंगे।

अगर कोई जबरदस्ती भी दे तो भी उसे धारण नहीं करते।

ब्राह्मण आत्मा अर्थात् सदा सुखी।

ब्राह्मणों का काम ही है सुख देना और सुख लेना।

वे सदा सुखमय संसार में रहने वाली सुख स्वरूप आत्मा होंगी।

03.07.2022

आत्मिक वृत्ति, दृष्टि से दु:ख के नाम-निशान को समाप्त करने वाले सदा सुखदायी भव

ब्राह्मणों का संसार भी न्यारा है तो दृष्टि-वृत्ति सब न्यारी है।

जो चलते-फिरते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति में रहते हैं उनके पास दु:ख का नाम-निशान नहीं रह सकता क्योंकि दु:ख होता है शरीर भान से।

अगर शरीर भान को भूलकर आत्मिक स्वरूप में रहते हैं तो सदा सुख ही सुख है।

उनका सुख-मय जीवन सुखदायी बन जाता है।

वे सदा सुख की शैया पर सोते हैं और सुख स्वरूप रहते हैं।

02.07.2022

सदा सर्व प्राप्तियों की स्मृति द्वारा मांगने के संस्कारों से मुक्त रहने वाले सम्पन्न व भरपूर भव

एक भरपूरता बाहर की होती है, स्थूल वस्तुओं से, स्थूल साधनों से भरपूर, लेकिन दूसरी होती है मन की भरपूरता।

जो मन से भरपूर रहता है उसके पास स्थूल वस्तु या साधन नहीं भी हो फिर भी मन भरपूर होने के कारण वे कभी अपने में कमी महसूस नहीं करेंगे।

वे सदा यही गीत गाते रहेंगे कि सब कुछ पा लिया, उनमें मांगने के संस्कार अंश मात्र भी नहीं होंगे।

01.07.2022

अपने चेहरे और चलन से सत्यता की सभ्यता का अनुभव कराने वाले महान आत्मा भव

महान आत्मायें वह हैं जिनमें सत्यता की शक्ति है।

लेकिन सत्यता के साथ सभ्यता भी जरूर चाहिए।

ऐसे सत्यता की सभ्यता वाली महान आत्माओं का बोलना, देखना, चलना, खाना-पीना, उठना-बैठना हर कर्म में सभ्यता स्वत: दिखाई देगी।

अगर सभ्यता नहीं तो सत्यता नहीं।

सत्यता कभी सिद्ध करने से सिद्ध नहीं होती।

उसे तो सिद्ध होने की सिद्धि प्राप्त है।

सत्यता के सूर्य को कोई छिपा नहीं सकता।

30.06.2022

सर्व खजानों के अधिकारी बन स्वयं को भरपूर अनुभव करने वाले मास्टर दाता भव

कहा जाता है - एक दो हजार पाओ, विनाशी खजाना देने से कम होता है, अविनाशी खजाना देने से बढ़ता है।

लेकिन दे वही सकता है जो स्वयं भरपूर है।

तो मास्टर दाता अर्थात् स्वयं भरपूर व सम्पन्न रहने वाले।

उन्हें नशा रहता कि बाप का खजाना मेरा खजाना है।

जिनकी याद सच्ची है उन्हें सर्व प्राप्तियां स्वत: होती हैं, मांगने वा फरियाद करने की दरकार नहीं।

29.06.2022

यथार्थ याद और सेवा के डबल लाक द्वारा निर्विघ्न रहने वाले फीलिंगप्रूफ भव

माया के आने के जो भी दरवाजे हैं उन्हें याद और सेवा का डबल लॉक लगाओ।

यदि याद में रहते और सेवा करते भी माया आती है तो जरूर याद अथवा सेवा में कोई कमी है।

यथार्थ सेवा वह है जिसमें कोई भी स्वार्थ न हो।

अगर नि:स्वार्थ सेवा नहीं तो लॉक ढीला है और याद भी शक्तिशाली चाहिए।

ऐसा डबल लाक हो तो निर्विघ्न बन जायेंगे। फिर क्यों, क्या की व्यर्थ फीलिंग से परे फीलिंग प्रूफ आत्मा रहेंगे।

28.06.2022

 

27.06.2022

परमात्म श्रीमत के आधार पर हर कदम उठाने वाले अविनाशी वर्से के अधिकारी भव

संगमयुग पर आप श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं को जो परमात्म श्रीमत मिल रही है - यह श्रीमत ही श्रेष्ठ पालना है।

बिना श्रीमत अर्थात् परमात्म पालना के एक कदम भी उठा नहीं सकते।

ऐसी पालना सतयुग में भी नहीं मिलेगी।

अभी प्रत्यक्ष अनुभव से कहते हो कि हमारा पालनहार स्वयं भगवान है।

यह नशा सदा इमर्ज रहे तो बेहद के खजानों से भरपूर स्वयं को अविनाशी वर्से के अधिकारी अनुभव करेंगे।

26.06.2022

अपने चलन और चेहरे द्वारा भाग्य की लकीर दिखाने वाले श्रेष्ठ भाग्यवान भव

आप ब्राह्मण बच्चों को डायरेक्ट अनादि पिता और आदि पिता द्वारा यह अलौकिक जन्म प्राप्त हुआ है।

जिसका जन्म ही भाग्यविधाता द्वारा हुआ हो, वह कितना भाग्यवान हुआ।

अपने इस श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रखते हुए हर्षित रहो।

हर चलन और चेहरे में यह स्मृति स्वरूप प्रत्यक्ष रूप में स्वयं को भी अनुभव हो और दूसरों को भी दिखाई दे।

आपके मस्तक बीच यह भाग्य की लकीर चमकती हुई दिखाई दे - तब कहेंगे श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा।

25.06.2022

संगठन में न्यारे और प्यारे बनने के बैलेन्स द्वारा अचल रहने वाले निर्विघ्न भव

जैसे बाप बड़े से बड़े परिवार वाला है लेकिन जितना बड़ा परिवार है, उतना ही न्यारा और सर्व का प्यारा है, ऐसे फालो फादर करो।

संगठन में रहते सदा निर्विघ्न और सन्तुष्ट रहने के लिए जितनी सेवा उतना ही न्यारा पन हो।

कितना भी कोई हिलावे, एक तरफ एक डिस्टर्ब करे, दूसरे तरफ दूसरा।

कोई सैलवेशन नहीं मिले, कोई इनसल्ट कर दे, लेकिन संकल्प में भी अचल रहें तब कहेंगे निर्विघ्न आत्मा।

24.06.2022

अपने पूज्य स्वरूप की स्मृति से सदा रूहानी नशे में रहने वाले जीवनमुक्त भव

ब्राह्मण जीवन का मजा जीवनमुक्त स्थिति में है।

जिन्हें अपने पूज्य स्वरूप की सदा स्मृति रहती है उनकी आंख सिवाए बाप के और कहाँ भी डूब नहीं सकती।

पूज्य आत्माओं के आगे स्वयं सब व्यक्ति और वैभव झुकते हैं।

पूज्य किसी के पीछे आकर्षित नहीं हो सकते।

देह, सम्बन्ध, पदार्थ वा संस्कारों में भी उनके मन-बुद्धि का झुकाव नहीं रहता। वे कभी किसी बंधन में बंध नहीं सकते। सदा जीवन-मुक्त स्थिति का अनुभव करते हैं।

23.06.2022

श्रेष्ठ मत प्रमाण हर कर्म कर्मयोगी बन करने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव

जो बच्चे श्रेष्ठ मत प्रमाण हर कर्म करते हुए बेहद के रूहानी नशे में रहते हैं, वह कर्म करते कर्म के बंधन में नहीं आते, न्यारे और प्यारे रहते हैं।

कर्मयोगी बनकर कर्म करने से उनके पास दु:ख की लहर नहीं आ सकती, वे सदा न्यारे और प्यारे रहते हैं।

कोई भी कर्म का बन्धन उन्हें अपनी ओर खींच नहीं सकता।

सदा मालिक होकर कर्म कराते हैं इसलिए बन्धनमुक्त स्थिति का अनुभव होता है।

ऐसी आत्मा स्वयं भी सदा खुश रहती है और दूसरों को भी खुशी देती है।

22.06.2022

बुराई में भी बुराई को न देख अच्छाई का पाठ पढ़ने वाले अनुभवी मूर्त भव

चाहे सारी बात बुरी हो लेकिन उसमें भी एक दो अच्छाई जरूर होती हैं।

पाठ पढ़ाने की अच्छाई तो हर बात में समाई हुई है ही क्योंकि हर बात अनुभवी बनाने के निमित्त बनती है।

धीरज का पाठ पढ़ा देती है। दूसरा आवेश कर रहा है और आप उस समय धीरज वा सहनशीलता का पाठ पढ़ रहे हो, इसलिए कहते हैं जो हो रहा है वह अच्छा और जो होना है वह और अच्छा।

अच्छाई उठाने की सिर्फ बुद्धि चाहिए।

बुराई को न देख अच्छाई उठा लो तो नम्बरवन बन जायेंगे।

21.06.2022

रंग और रूप के साथ-साथ सम्पूर्ण पवित्रता की खुशबू को धारण करने वाले आकर्षणमूर्त भव

ब्राह्मण बनने से सभी में रंग भी आ गया है और रूप भी परिवर्तन हो गया है लेकिन खुशबू नम्बरवार है।

आकर्षण मूर्त बनने के लिए रंग और रूप के साथ सम्पूर्ण पवित्रता की खुशबू चाहिए।

पवित्रता अर्थात् सिर्फ ब्रह्मचारी नहीं लेकिन देह के लगाव से भी न्यारा।

मन बाप के सिवाए और किसी भी प्रकार के लगाव में नहीं जाये।

तन से भी ब्रह्मचारी, सम्बन्ध में भी ब्रह्मचारी और संस्कारों में भी ब्रह्मचारी - ऐसी खुशबू वाले रूहानी गुलाब ही आकर्षणमूर्त बनते हैं।

20.06.2022

निर्मानता द्वारा नव निर्माण करने वाले निराशा और अभिमान से मुक्त भव

कभी भी पुरूषार्थ में निराश नहीं बनो।

करना ही है, होना ही है, विजय माला मेरा ही यादगार है, इस स्मृति से विजयी बनो।

एक सेकण्ड वा मिनट के लिए भी निराशा को अपने अन्दर स्थान न दो।

अभिमान और निराशा - यह दोनों महाबलवान बनने नहीं देते हैं।

अभिमान वालों को अपमान की फीलिंग बहुत आती है, इसलिए इन दोनों बातों से मुक्त बन निर्मान बनो तो नव निर्माण का कार्य करते रहेंगे।

19.06.2022

अच्छे संकल्प रूपी बीज द्वारा अच्छा फल प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप आत्मा भव

सिद्धि स्वरूप आत्माओं के हर संकल्प अपने प्रति वा दूसरों के प्रति सिद्ध होने वाले होते हैं।

उन्हें हर कर्म में सिद्धि प्राप्त होती है।

वे जो बोल बोलते हैं वह सिद्ध हो जाते हैं इसलिए सत वचन कहा जाता है।

सिद्धि स्वरूप आत्माओं का हर संकल्प, बोल और कर्म सिद्धि प्राप्त होने वाला होता है, व्यर्थ नहीं।

यदि संकल्प रूपी बीज बहुत अच्छा है लेकिन फल अच्छा नहीं निकलता तो दृढ़ धारणा की धरनी ठीक नहीं है या अटेन्शन की परहेज में कमी है।

18.06.2022

पवित्रता की रायॅल्टी द्वारा सदा हर्षित रहने वाले हर्षितचित, हर्षितमुख भव

पवित्रता की रॉयल्टी अर्थात् रीयल्टी वाली आत्मायें सदा खुशी में नाचती हैं।

उनकी खुशी कभी कम, कभी ज्यादा नहीं होती।

दिनप्रतिदिन हर समय और खुशी बढ़ती रहेगी, उनके अन्दर एक बाहर दूसरा नहीं होगा।

वृत्ति, दृष्टि, बोल और चलन सब सत्य होगा।

ऐसी रीयल रायल आत्मायें चित से भी और नैन-चैन से भी सदा हर्षित होंगी।

हर्षितचित, हर्षितमुख अविनाशी होगा।

17.06.2022

अचल स्थिति द्वारा मास्टर दाता बनने वाले विश्व कल्याणकारी भव

जो अचल स्थिति वाले हैं उनके अन्दर यही शुभ भावना, शुभ कामना उत्पन्न होती है कि यह भी अचल हो जाएं।

अचल स्थिति वालों का विशेष गुण होगा - रहमदिल।

हर आत्मा के प्रति सदा दाता-पन की भावना होगी।

उनका विशेष टाइटल ही है विश्व कल्याणकारी।

उनके अन्दर किसी भी आत्मा के प्रति घृणा भाव, द्वेष भाव, ईर्ष्या भाव या ग्लानी का भाव उत्पन्न नहीं हो सकता।

सदा ही कल्याण का भाव होगा।

16.06.2022

सदा सत के संग द्वारा कमजोरियों को समाप्त करने वाले सहज योगी, सहज ज्ञानी भव

कोई भी कमजोरी तब आती है जब सत के संग से किनारा हो जाता है और दूसरा संग लग जाता है।

इसलिए भक्ति में कहते हैं सदा सतसंग में रहो।

सतसंग अर्थात् सदा सत बाप के संग में रहना।

आप सबके लिए सत बाप का संग अति सहज है क्योंकि समीप का संबंध है।

तो सदा सतसंग में रह कमजोरियों को समाप्त करने वाले सहज योगी, सहज ज्ञानी बनो।

15.06.2022

साक्षी बन माया के खेल को मनोरंजन समझकर देखने वाले मास्टर रचयिता भव

माया कितने भी रंग दिखाये, मैं मायापति हूँ, माया रचना है, मैं मास्टर रचयिता हूँ - इस स्मृति से माया का खेल देखो, खेल में हार नहीं खाओ।

साक्षी बनकर मनोरंजन समझकर देखते चलो तो फर्स्ट नम्बर में आ जायेंगे।

उनके लिए माया की कोई समस्या, समस्या नहीं लगेगी।

कोई क्वेश्चन नहीं होगा।

सदा साक्षी और सदा बाप के साथ की स्मृति से विजयी बन जायेंगे।

14.06.2022

एक बाप दूसरा न कोई इस स्मृति से निमित्त बनकर सेवा करने वाले सर्व लगावमुक्त भव

जो बच्चे सदा एक बाप दूसरा न कोई - इसी स्मृति में रहते हैं उनका मन-बुद्धि सहज एकाग्र हो जाता है।

वह सेवा भी निमित्त बनकर करते हैं इसलिए उसमें उनका लगाव नहीं रहता।

लगाव की निशानी है - जहाँ लगाव होगा वहाँ बुद्धि जायेगी, मन भागेगा इसलिए सब जिम्मेवारियां बाप को अर्पण कर ट्रस्टी वा निमित्त बनकर सम्भालो तो लगावमुक्त बन जायेंगे।

13.06.2022

मन-बुद्धि से किसी भी बुराई को टच न करने वाले सम्पूर्ण वैष्णव व सफल तपस्वी भव

पवित्रता की पर्सनैलिटी व रायॅल्टी वाले मन-बुद्धि से किसी भी बुराई को टच नहीं कर सकते।

जैसे ब्राह्मण जीवन में शारीरिक आकर्षण व शारीरिक टचिंग अपवित्रता है, ऐसे मन-बुद्धि में किसी विकार के संकल्प मात्र की आकर्षण व टचिंग अपवित्रता है।

तो किसी भी बुराई को संकल्प में भी टच न करना - यही सम्पूर्ण वैष्णव व सफल तपस्वी की निशानी है।

12.06.2022

श्रेष्ठ कर्म द्वारा दुआओं का स्टॉक जमा करने वाले चैतन्य दर्शनीय मूर्त भव

जो भी कर्म करो उसमें दुआयें लो और दुआयें दो।

श्रेष्ठ कर्म करने से सबकी दुआयें स्वत: मिलती हैं।

सबके मुख से निकलता है कि यह तो बहुत अच्छे हैं।

वाह! उनके कर्म ही यादगार बन जाते हैं।

भल कोई भी काम करो लेकिन खुशी लो और खुशी दो, दुआयें लो, दुआयें दो।

जब अभी संगम पर दुआयें लेंगे और देंगे तब आपके जड़ चित्रों द्वारा भी दुआ मिलती रहेगी और वर्तमान में भी चैतन्य दर्शनीय मूर्त बन जायेंगे।

11.06.2022

शुभ भावना से व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाले होलीहंस भव

होलीहंस उसे कहा जाता - जो निगेटिव को छोड़ पाजिटिव को धारण करे।

देखते हुए, सुनते हुए न देखे न सुने।

निगेटिव अर्थात् व्यर्थ बातें, व्यर्थ कर्म न सुने, न करे और न बोले।

व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दे। इसके लिए हर आत्मा के प्रति शुभ भावना चाहिए।

शुभ भावना से उल्टी बात भी सुल्टी हो जाती है इसलिए कोई कैसा भी हो आप शुभ भावना दो।

शुभ भावना पत्थर को भी पानी कर देगी।

व्यर्थ समर्थ में बदल जायेगा।

10.06.2022

रूहानी सम्पेथी द्वारा सर्व को सन्तुष्ट करने वाले सदा सम्पत्तिवान भव

आज के विश्व में सम्पत्ति वाले तो बहुत हैं लेकिन सबसे बड़े से बड़ी आवश्यक सम्पत्ति है सम्पेथी।

चाहे गरीब हो, चाहे धनवान हो लेकिन आज सिम्पेथी नहीं है।

आपके पास सिम्पेथी की सम्पत्ति है इसलिए किसी को और भले कुछ भी नहीं दो लेकिन सिम्पेथी से सबको सन्तुष्ट कर सकते हो।

आपकी सिम्पेथी ईश्वरीय परिवार के नाते से है, इस रूहानी सिम्पेथी से तन मन और धन की पूर्ति कर सकते हो।

09.06.2022

नथिंगन्यु की स्मृति से विघ्नों को खेल समझकर पार करने वाले अनुभवी मूर्त भव

विघ्नों का आना - यह भी ड्रामा में आदि से अन्त तक नूंध है लेकिन वह विघ्न असम्भव से सम्भव की अनुभूति कराते हैं।

अनुभवी आत्माओं के लिए विघ्न भी खेल लगते हैं।

जैसे फुटबाल के खेल में बाल आता है, ठोकर लगाते हैं, खेल खेलने में मजा आता है।

ऐसे यह विघ्नों का खेल भी होता रहेगा, नथिंगन्यु।

ड्रामा खेल भी दिखाता है और सम्पन्न सफलता भी दिखाता है।

08.06.2022

योग के प्रयोग द्वारा हर खजाने को बढ़ाने वाले सफल तपस्वी भव

बाप द्वारा प्राप्त हुए सभी खजानों पर योग का प्रयोग करो। खजानों का खर्च कम हो और प्राप्ति अधिक हो - यही है प्रयोग। जैसे समय और संकल्प श्रेष्ठ खजाने हैं। तो संकल्प का खर्च कम हो लेकिन प्राप्ति ज्यादा हो। जो साधारण व्यक्ति दो चार मिनट सोचने के बाद सफलता प्राप्त करते हैं वह आप एक दो सेकण्ड में कर लो। कम समय, कम संकल्प में रिजल्ट ज्यादा हो तब कहेंगे - योग का प्रयोग करने वाले सफल तपस्वी।

 

07.06.2022

बाप को अपनी सर्व जिम्मेवारियां देकर सेवा का खेल करने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव

कोई भी कार्य करते सदा स्मृति रहे कि सर्वशक्तिमान् बाप हमारा साथी है, हम मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं तो किसी भी प्रकार का भारीपन नहीं रहेगा। जब मेरी जिम्मेवारी समझते हो तो माथा भारी होता है इसलिए ब्राह्मण जीवन में अपनी सर्व जिम्मेवारियां बाप को दे दो तो सेवा भी एक खेल अनुभव होगी। चाहे कितना भी बड़ा सोचने का काम हो, अटेन्शन देने का काम हो लेकिन मास्टर सर्वशक्तिमान के वरदान की स्मृति से अथक रहेंगे।

06.06.2022

अपने हल्केपन की स्थिति द्वारा हर कार्य को लाइट बनाने वाले बाप समान न्यारे-प्यारे भव

मन-बुद्धि और संस्कार - आत्मा की जो सूक्ष्म शक्तियां हैं, तीनों में लाइट अनुभव करना, यही बाप समान न्यारे-प्यारे बनना है क्योंकि समय प्रमाण बाहर का तमोप्रधान वातावारण, मनुष्यात्माओं की वृत्तियों में भारी पन होगा। जितना बाहर का वातावरण भारी होगा उतना आप बच्चों के संकल्प, कर्म, संबंध लाइट होते जायेंगे और लाइटनेस के कारण सारा कार्य लाइट चलता रहेगा। कारोबार का प्रभाव आप पर नहीं पड़ेगा, यही स्थिति बाप समान स्थिति है।

05.06.2022

हर संकल्प, बोल और कर्म द्वारा पुण्य कर्म करने वाले दुआओं के अधिकारी भव

अपने आपसे यह दृढ़ संकल्प करो कि सारे दिन में संकल्प द्वारा, बोल द्वारा, कर्म द्वारा पुण्य आत्मा बन पुण्य ही करेंगे। पुण्य का प्रत्यक्षफल है हर आत्मा की दुआयें। तो हर संकल्प में, बोल में दुआयें जमा हों। सम्बन्ध-सम्पर्क से दिल से सहयोग की शुक्रिया निकले। ऐसे दुआओं के अधिकारी ही विश्व परिवर्तन के निमित्त बनते हैं। उन्हें ही प्राइज़ मिलती है।

04.06.2022

दु:ख को सुख, ग्लानि को प्रशंसा में परिवर्तन करने वाले पुण्य आत्मा भव

पुण्य आत्मा वह है जो कभी किसी को न दु:ख दे और न दुख ले, ब्लकि दु:ख को भी सुख के रूप में स्वीकार करे। ग्लानि को प्रशंसा समझे तब कहेंगे पुण्य आत्मा। यह पाठ सदा पक्के रहे कि गाली देने वाली व दुख देने वाली आत्मा को भी अपने रहमदिल स्वरूप से, रहम की दृष्टि से देखना है। ग्लानि की दृष्टि से नहीं। वह गाली दे और आप फूल चढ़ाओ तब कहेंगे पुण्य आत्मा।

03.06.2022

ब्राह्मण जीवन में सदा खुशी की खुराक खाने और खिलाने वाले श्रेष्ठ नसीबवान भव

विश्व के मालिक के हम बालक सो मालिक हैं - इसी ईश्वरीय नशे और खुशी में रहो। वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य अर्थात् नसीब। इसी खुशी के झूले में सदा झूलते रहो। सदा खुशनसीब भी हो और सदा खुशी की खुराक खाते और खिलाते भी हो। औरों को भी खुशी का महादान दे खुशनसीब बनाते हो। आपकी जीवन ही खुशी है। खुश रहना ही जीना है। यही ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ वरदान है।

02.06.2022

ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगाकर सफल करने वाले सफलता मूर्त भव

जो बच्चे अपने ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगाते हैं उनके व्यर्थ संकल्प स्वत: खत्म हो जाते हैं। सफल करना माना बचाना या बढ़ाना। ऐसे नहीं पुराने संस्कार ही यूज करते रहो और ईश्वरीय संस्कारों को बुद्धि के लॉकर में रख दो, जैसे कईयों की आदत होती है अच्छी चीजें वा पैसे बैंक अथवा अलमारियों में रखने की, पुरानी वस्तुओं से प्यार होता है, वही यूज करते रहते। यहाँ ऐसे नहीं करना, यहाँ तो मन्सा से, वाणी से, शक्तिशाली वृत्ति से अपना सब कुछ सफल करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे।

01.06.2022

बाबा शब्द की स्मृति से हद के मेरेपन को अर्पण करने वाले बेहद के वैरागी भव

कई बच्चे कहते हैं मेरा यह गुण है, मेरी शक्ति है, यह भी गलती है, परमात्म देन को मेरा मानना यह महापाप है।

कई बच्चे साधारण भाषा में बोल देते हैं मेरे इस गुण को, मेरी बुद्धि को यूज़ नहीं किया जाता, लेकिन मेरी कहना माना मैला होना - यह भी ठगी है, इसलिए इस हद के मेरे-पन को अर्पण कर सदा बाबा शब्द याद रहे, तब कहेगे बेहद की वैरागी आत्मा।

31.05.2022

 

30.05.2022

मन्सा द्वारा तीव्रगति की सेवा करने वाले बाप समान मर्सीफुल भव

संगमयुग पर बाप द्वारा जो वरदानों का खजाना मिला है उसे जितना बढ़ाना चाहो उतना दूसरों को देते जाओ।

जैसे बाप मर्सीफुल है ऐसे बाप समान मर्सीफुल बनो, सिर्फ वाणी से नहीं, लेकिन अपनी मन्सा वृत्ति से वायुमण्डल द्वारा भी आत्माओं को अपनी मिली हुई शक्तियां दो।

जब थोड़े समय में सारे विश्व की सेवा सम्पन्न करनी है तो तीव्रगति से सेवा करो।

जितना स्वयं को सेवा में बिजी करेंगे उतना सहज मायाजीत भी बन जायेंगे।

29.05.2022

सम्पूर्णता की स्थिति द्वारा प्रकृति को आर्डर करने वाले विश्व परिवर्तक भव

जब आप विश्व परिवर्तक आत्मायें संगठित रूप में सम्पन्न, सम्पूर्ण स्थिति से विश्व परिवर्तन का संकल्प करेंगी तब यह प्रकृति सम्पूर्ण हलचल की डांस शुरू करेगी।

वायु, धरती, समुद्र, जल...इनकी हलचल ही सफाई करेगी।

परन्तु यह प्रकृति आपका आर्डर तब मानेगी जब पहले आपके स्वयं के सहयोगी कर्मेन्द्रियां, मन-बुद्धि-संस्कार आपका आर्डर मानेंगे।

साथ-साथ इतनी पावरफुल तपस्या की ऊंची स्थिति हो जो सबका एक साथ संकल्प हो “परिवर्तन'' और प्रकृति हाजिर हो जाए।

28.05.2022

चित की प्रसन्नता द्वारा दुआओं के विमान में उड़ने वाले सन्तुष्टमणी भव

सन्तुष्टमणि उन्हें कहा जाता जो स्वयं से, सेवा से और सर्व से सन्तुष्ट हो।

तपस्या द्वारा सन्तुष्टता रूपी फल प्राप्त कर लेना - यही तपस्या की सिद्धि है।

सन्तुष्टमणि वह है जिसका चित सदा प्रसन्न हो।

प्रसन्नता अर्थात् दिल-दिमाग सदा आराम में हो, सुख चैन की स्थिति में हो।

ऐसी सन्तुष्टमणियां स्वयं को सर्व की दुआओं के विमान में उड़ता हुआ अनुभव करेंगी।

27.05.2022

ब्राह्मण जीवन में बधाईयों की पालना द्वारा सदा वृद्धि को प्राप्त करने वाले पदमापदम भाग्यवान भव

संगमयुग पर विशेष खुशियों भरी बधाईयों से ही सर्व ब्राह्मण वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं।

ब्राह्मण जीवन की पालना का आधार बधाईयां हैं।

बाप के स्वरूप में हर समय बधाईयां हैं, शिक्षक के स्वरूप में हर समय शाबास-शाबास का बोल पास विद् आनर बना रहा है, सद्गुरू के रूप में हर श्रेष्ठ कर्म की दुआयें सहज और मौज वाली जीवन अनुभव करा रही हैं, इसलिए पदमापदम भाग्यवान हो जो भाग्यविधाता भगवान के बच्चे, सम्पूर्ण भाग्य के अधिकारी बन गये।

26.05.2022

सदा ऊंची स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रहने वाली मायाजीत महान आत्मा भव

जो महान आत्मायें हैं वह सदैव ऊंची स्थिति में रहती हैं।

ऊंची स्थिति ही ऊंचा आसन है।

जब ऊंची स्थिति के आसन पर रहते हो तो माया आ नहीं सकती।

वो आपको महान समझकर आपके आगे झुकेगी, वार नहीं करेंगी, हार मानेंगी।

जब ऊंचे आसन से नीचे आते हो तब माया वार करती है।

आप सदा ऊंचे आसन पर रहो तो माया के आने की ताकत नहीं।

वह ऊंचे चढ़ नहीं सकती।

25.05.2022

सर्व आत्माओं को शुभ भावना, शुभ कामना की अंचली देने वाले सच्चे सेवाधारी भव

सिर्फ वाणी की सेवा ही सेवा नहीं है, शुभ भावना, शुभ कामना रखना भी सेवा है।

ब्राह्मणों का आक्यूपेशन ही है ईश्वरीय सेवा।

कहाँ भी रहते सेवा करते रहो।

कोई कैसा भी हो, चाहे पक्का रावण ही क्यों न हो, कोई आपको गाली भी दे तो भी आप उन्हें अपने खजाने से, शुभ-भावना, शुभ-कामना की अंचली जरूर दो, तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी।

24.05.2022

  • एक के पाठ को स्मृति में रख तपस्या में सफलता प्राप्त करने वाले निरन्तर योगी भव
  • तपस्या की सफलता का विशेष आधार वा सहज साधन है - एक शब्द का पाठ पक्का करो।
  • तपस्या अर्थात् एक का बनना, तपस्या अर्थात् मन-बुद्धि को एकाग्र करना, तपस्या अर्थात् एकान्तप्रिय रहना, तपस्या अर्थात् स्थिति को एकरस रखना, तपस्या अर्थात् सर्व प्राप्त खजानों को व्यर्थ से बचाना अर्थात् इकॉनामी करना।
  • इस एक के पाठ को स्मृति में रखो तो निरन्तर योगी, सहजयोगी बन जायेंगे।
  • मेहनत से छूट जायेंगे।

 

23.05.2022

बापदादा के स्नेह के रिटर्न में समान बनने वाले तपस्वीमूर्त भव

समय की परिस्थितियों के प्रमाण, स्व की उन्नति वा तीव्रगति से सेवा करने तथा बापदादा के स्नेह का रिटर्न देने के लिए वर्तमान समय तपस्या की अति आवश्यकता है।

बाप से बच्चों का प्यार है लेकिन बापदादा प्यार के रिटर्न स्वरूप में बच्चों को अपने समान देखना चाहते हैं।

समान बनने के लिए तपस्वीमूर्त बनो।

इसके लिए चारों ओर के किनारे छोड़ बेहद के वैरागी बनो।

किनारों को सहारा नहीं बनाओ।

22.05.2022

समय और परिस्थिति प्रमाण अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले अष्ट शक्ति सम्पन्न भव

जो बच्चे अष्ट शक्तियों से सम्पन्न हैं वो हर कर्म में समय प्रमाण, परिस्थिति प्रमाण, हर शक्ति को कार्य में लगाते हैं।

उन्हें अष्ट शक्तियां इष्ट और अष्ट रत्न बना देती हैं।

ऐसे अष्ट शक्ति सम्पन्न आत्मायें जैसा समय, जैसी परिस्थिति वैसी स्थिति सहज बना लेती हैं।

उनके हर कदम में सफलता समाई रहती है।

कोई भी परिस्थिति उन्हें श्रेष्ठ स्थिति से नीचे नहीं उतार सकती।

21.05.2022

ड्रामा के हर राज़ को जान सदा खुश-राज़ी रहने वाले नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी भव

जो बच्चे नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी हैं वे कभी नाराज़ नहीं हो सकते।

भल कोई गाली भी दे, इनसल्ट कर दे तो भी राज़ी, क्योंकि ड्रामा के हर राज़ को जानने वाले नाराज़ नहीं होते।

नाराज़ वो होता है जो राज़ को नहीं जानता है, इसलिए सदैव यह स्मृति रखो कि भगवान बाप के बच्चे बनकर भी राज़ी नहीं होंगे तो कब होंगे!

तो अभी जो खुश भी हैं, राज़ी भी हैं वही बाप के समीप और समान हैं।

20.05.2022

अकालतख्त सो दिलतख्तनशीन बन स्वराज्य के नशे में रहने वाले प्रकृतिजीत, मायाजीत भव

अकालतख्त नशीन आत्मा सदा रूहानी नशे में रहती है।

जैसे राजा बिना नशे के राज्य नहीं चला सकता, ऐसे आत्मा यदि स्वराज्य के नशे में नहीं तो कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा पर राज्य नहीं कर सकती इसलिए अकालतख्त नशीन सो दिलतख्तनशीन बनो और इसी रूहानी नशे में रहो तो कोई भी विघ्न वा समस्या आपके सामने आ नहीं सकती।

प्रकृति और माया भी वार नहीं कर सकती।

तो तख्तनशीन बनना अर्थात् सहज प्रकृतिजीत और मायाजीत बनना।

19.05.2022

देह, देह के सम्बन्ध और पदार्थो के बन्धन से मुक्त रहने वाले जीवनमुक्त फरिश्ता भव

फरिश्ता अर्थात् पुरानी दुनिया और पुरानी देह से लगाव का रिश्ता नहीं।

देह से आत्मा का रिश्ता तो है लेकिन लगाव का संबंध नहीं।

कर्मेन्द्रियों से कर्म के सबंध में आना अलग बात है लेकिन कर्मबन्धन में नहीं आना।

फरिश्ता अर्थात् कर्म करते भी कर्म के बन्धन से मुक्त।

न देह का बन्धन, न देह के संबंध का बन्धन, न देह के पदार्थो का बन्धन - ऐसे बन्धन मुक्त रहने वाले ही जीवनमुक्त फरिश्ता हैं।

18.05.2022

महावीर बन हर समस्या का समाधान करने वाले सदा निर्भय और विजयी भव

जो महावीर हैं वह कभी यह बहाना नहीं बना सकते कि सरकमस्टांश ऐसे थे, समस्या ऐसी थी इसलिए हार हो गई।

समस्या का काम है आना और महावीर का काम है समस्या का समाधान करना न कि हार खाना।

महावीर वह है जो सदा निर्भय होकर विजयी बनें, छोटी-मोटी बातों में कमजोर न हो।

महावीर विजयी आत्मायें हर कदम में तन से, मन से खुश रहते हैं वे कभी उदास नहीं होते, उनके पास दु:ख की लहर स्वप्न में भी नहीं आ सकती।

17.05.2022

यथार्थ विधि द्वारा व्यर्थ को समाप्त कर नम्बरवन लेने वाले परमात्म सिद्धि स्वरूप भव

जैसे रोशनी से अंधकार स्वत: खत्म हो जाता है।

ऐसे समय, संकल्प, श्वांस को सफल करने से व्यर्थ स्वत: समाप्त हो जाता है, क्योंकि सफल करने का अर्थ है श्रेष्ठ तरफ लगाना।

तो श्रेष्ठ तरफ लगाने वाले व्यर्थ पर विन कर नम्बरवन ले लेते हैं।

उन्हें व्यर्थ को स्टॉप करने की सिद्धि प्राप्त हो जाती है।

यही परमात्म सिद्धि है।

वह रिद्धि सिद्धि वाले अल्पकाल का चमत्कार दिखाते हैं और आप यथार्थ विधि द्वारा परमात्म सिद्धि को प्राप्त करते हो।

16.05.2022

संगमयुग के महत्व को जान श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव

संगमयुग छोटा सा युग है, इस युग में ही बाप के साथ का अनुभव होता है।

संगम का समय और यह जीवन दोनों ही हीरे तुल्य हैं।

तो इतना महत्व जानते हुए एक सेकण्ड भी साथ को नहीं छोड़ना।

सेकण्ड गया तो सेकण्ड नहीं लेकिन बहुत कुछ गया।

सारे कल्प की श्रेष्ठ प्रालब्ध जमा करने का यह युग है, अगर इस युग के महत्व को भी याद रखो तो तीव्र पुरूषार्थ द्वारा राज्य अधिकार प्राप्त कर लेंगे।

15.05.2022

सर्व खजानों से सम्पन्न बन हर समय सेवा में बिजी रहने वाले विश्व कल्याणकारी भव

विश्व कल्याण के निमित्त बनी हुई आत्मा पहले स्वयं सर्व खजानों से सम्पन्न होगी।

अगर ज्ञान का खजाना है तो फुल ज्ञान हो, कोई भी कमी नहीं हो तब कहेंगे भरपूर।

किसी-किसी के पास खजाना फुल होते हुए भी समय पर कार्य में नहीं लगा सकते, समय बीत जाने के बाद सोचते हैं, तो उन्हें भी फुल नहीं कहेंगे।

विश्व कल्याणकारी आत्मायें मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क में हर समय सेवा में बिजी रहती हैं।

14.05.2022

ज्ञान के राज़ों को समझ सदा अचल रहने वाले निश्चयबुद्धि, विघ्न-विनाशक भव

विघ्न-विनाशक स्थिति में स्थित रहने से कितना भी बड़ा विघ्न खेल अनुभव होगा।

खेल समझने के कारण विघ्नों से कभी घबरायेंगे नहीं लेकिन खुशी-खुशी से विजयी बनेंगे और डबल लाइट रहेंगे।

ड्रामा के ज्ञान की स्मृति से हर विघ्न नथिंगन्यु लगता है।

नई बात नहीं लगेगी, बहुत पुरानी बात है।

अनेक बार विजयी बनें हैं - ऐसे निश्चयबुद्धि, ज्ञान के राज़ को समझने वाले बच्चों का ही यादगार अचलघर है।

13.05.2022

भाग्यविधाता बाप द्वारा मिले हुए भाग्य को बांटने और बढ़ाने वाले खुशनसीब भव

सबसे बड़ी खुशनसीबी यह है - जो भाग्यविधाता बाप ने अपना बना लिया!

दुनिया वाले तड़फते हैं कि भगवान की एक सेकण्ड भी नजर पड़ जाए और आप सदा नयनों में समाये हुए हो।

इसको कहा जाता है खुशनसीब।

भाग्य आपका वर्सा है।

सारे कल्प में ऐसा भाग्य अभी ही मिलता है।

तो भाग्य को बढ़ाते चलो।

बढ़ाने का साधन है बांटना।

जितना औरों को बांटेंगे अर्थात् भाग्यवान बनायेंगे उतना भाग्य बढ़ता जायेगा।

12.05.2022

खुशी की खुराक द्वारा मन और बुद्धि को शक्तिशाली बनाने वाले अचल-अडोल भव

“वाह बाबा वाह और वाह मेरा भाग्य वाह!'' सदा यही खुशी के गीत गाते रहो।

‘खुशी' सबसे बड़ी खुराक है, खुशी जैसी और कोई खुराक नहीं।

जो रोज़ खुशी की खुराक खाते हैं वे सदा तन्दरूस्त रहते हैं।

कभी कमजोर नहीं होते, इसलिए खुशी की खुराक द्वारा मन और बुद्धि को शक्तिशाली बनाओ तो स्थिति शक्तिशाली रहेगी।

ऐसी शक्तिशाली स्थिति वाले सदा ही अचल-अडोल रहेंगे।

11.05.2022

निश्चिंत स्थिति द्वारा यथार्थ जजमेंट देने वाले निश्चयबुद्धि विजयी-रत्न भव

सदा विजयी बनने का सहज साधन है - एक बल, एक भरोसा। एक में भरोसा है तो बल मिलता है। निश्चय सदा निश्चिंत बनाता है और जिसकी स्थिति निश्चिंत है, वह हर कार्य में सफल होता है क्योंकि निश्चिंत रहने से बुद्धि जजमेंट यथार्थ करती है। तो यथार्थ निर्णय का आधार है-निश्चयबुद्धि, निश्चिंत। सोचने की भी आवश्यकता नहीं क्योंकि फालो फादर करना है, कदम पर कदम रखना है, जो श्रीमत मिलती है उसी प्रमाण चलना है। सिर्फ श्रीमत के कदम पर कदम रखते चलो तो विजयी रत्न बन जायेंगे।

10.05.2022

“मैं और मेरा बाबा'' इस विधि द्वारा जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सहजयोगी भव

ब्राह्मण बनना अर्थात् देह, सम्बन्ध और साधनों के बन्धन से मुक्त होना। देह के सम्बन्धियों का देह के नाते से सम्बन्ध नहीं लेकिन आत्मिक सम्बन्ध है। यदि कोई किसी के वश, परवश हो जाते हैं तो बन्धन है, लेकिन ब्राह्मण अर्थात् जीवनमुक्त। जब तक कर्मेन्द्रियों का आधार है तब तक कर्म तो करना ही है लेकिन कर्मबन्धन नहीं, कर्म-सम्बन्ध है। ऐसा जो मुक्त है वो सदा सफलतामूर्त है। इसका सहज साधन है - मैं और मेरा बाबा। यही याद सहजयोगी, सफलतामूर्त और बन्धनमुक्त बना देती है।

09.05.2022

अमृतवेले तीन बिन्दियों का तिलक लगाने वाले क्यूं, क्या की हलचल से मुक्त अचल-अडोल भव

बापदादा सदा कहते हैं कि रोज़ अमृतवेले तीन बिन्दियों का तिलक लगाओ।

आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और जो हो गया, जो हो रहा है नथिंगन्यु, तो फुलस्टॉप भी बिन्दी।

यह तीन बिन्दी का तिलक लगाना अर्थात् स्मृति में रहना।

फिर सारा दिन अचल-अडोल रहेंगे।

क्यूं, क्या की हलचल समाप्त हो जायेगी।

जिस समय कोई बात होती है उसी समय फुलस्टॉप लगाओ।

नथिंगन्यु, होना था, हो रहा है... साक्षी बन देखो और आगे बढ़ते चलो।

08.05.2022

शुद्ध संकल्प और श्रेष्ठ संग द्वारा हल्के बन खुशी की डांस करने वाले अलौकिक फरिश्ते भव

आप ब्राह्मण बच्चों के लिए रोज़ की मुरली ही शुद्ध संकल्प हैं।

कितने शुद्ध संकल्प बाप द्वारा रोज़ सवेरे-सवेरे मिलते हैं, इन्हीं शुद्ध संकल्पों में बुद्धि को बिजी रखो और सदा बाप के संग में रहो तो हल्के बन खुशी में डांस करते रहेंगे।

खुश रहने का सहज साधन है - सदा हल्के रहो।

शुद्ध संकल्प हल्के हैं और व्यर्थ संकल्प भारी हैं इसलिए सदा शुद्ध संकल्पों में बिजी रह हल्के बनों और खुशी की डांस करते रहो तब कहेंगे अलौकिक फरिश्ते।

07.05.2022

शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव द्वारा सर्व के प्रिय बन विजय माला में पिरोने वाले विजयी भव

  • कोई किसी भी भाव से बोले वा चले लेकिन आप सदा हर एक के प्रति शुभ भाव, श्रेष्ठ भाव धारण करो, इसमें विजयी बनो तो माला में पिरोने के अधिकारी बन जायेंगे, क्योंकि सर्व के प्रिय बनने का साधन ही है सम्बन्ध-सम्पर्क में हर एक के प्रति श्रेष्ठ भाव धारण करना।
  • ऐसे श्रेष्ठ भाव वाला सदा सभी को सुख देगा, सुख लेगा।
  • यह भी सेवा है तथा शुभ भावना मन्सा सेवा का श्रेष्ठ साधन है।
  • तो ऐसी सेवा करने वाले विजयी माला के मणके बन जाते हैं।

    06.05.2022

    अपनी शक्तियों वा गुणों द्वारा निर्बल को शक्तिवान बनाने वाले श्रेष्ठ दानी वा सहयोगी भव

    श्रेष्ठ स्थिति वाले सपूत बच्चों की सर्व शक्तियाँ और सर्व गुण समय प्रमाण सदा सहयोगी रहते हैं।

    उनकी सेवा का विशेष स्वरूप है-बाप द्वारा प्राप्त गुणों और शक्तियों का अज्ञानी आत्माओं को दान और ब्राह्मण आत्माओं को सहयोग देना।

    निर्बल को शक्तिवान बनाना - यही श्रेष्ठ दान वा सहयोग है।

    जैसे वाणी द्वारा वा मन्सा द्वारा सेवा करते हो ऐसे प्राप्त हुए गुणों और शक्तियों का सहयोग अन्य आत्माओं को दो, प्राप्ति कराओ।

    05.05.2022

    बुद्धि को बिजी रखने की विधि द्वारा व्यर्थ को समाप्त करने वाले सदा समर्थ भव

    सदा समर्थ अर्थात् शक्तिशाली वही बनता है जो बुद्धि को बिजी रखने की विधि को अपनाता है।

    व्यर्थ को समाप्त कर समर्थ बनने का सहज साधन ही है - सदा बिजी रहना इसलिए रोज़ सवेरे जैसे स्थूल दिनचर्या बनाते हो ऐसे अपनी बुद्धि को बिजी रखने का टाइम-टेबल बनाओ कि इस समय बुद्धि में इस समर्थ संकल्प से व्यर्थ को खत्म करेंगे।

    बिजी रहेंगे तो माया दूर से ही वापस चली जायेगी।

    04.05.2022

    मन-बुद्धि की स्वच्छता द्वारा यथार्थ निर्णय करने वाले सफलता सम्पन्न भव

    किसी भी कार्य में सफलता तब प्राप्त होती है जब समय पर बुद्धि यथार्थ निर्णय देती है।

    लेकिन निर्णय शक्ति काम तब करती है जब मन-बुद्धि स्वच्छ हो, कोई भी किचड़ा न हो।

    इसलिए योग अग्नि द्वारा किचड़े को खत्म कर बुद्धि को स्वच्छ बनाओ।

    किसी भी प्रकार की कमजोरी - यह गन्दगी है।

    जरा सा व्यर्थ संकल्प भी किचड़ा है, जब यह किचड़ा समाप्त हो तब बेफिक्र रहेंगे और स्वच्छ बुद्धि होने से हर कार्य में सफलता प्राप्त होगी।

    03.05.2022

    साधारण कर्म करते भी श्रेष्ठ स्मृति वा स्थिति की झलक दिखाने वाले पुरूषोत्तम सेवाधारी भव

    जैसे असली हीरा कितना भी धूल में छिपा हुआ हो लेकिन अपनी चमक जरूर दिखायेगा, ऐसे आपकी जीवन हीरे तुल्य है।

    तो कैसे भी वातावरण में, कैसे भी संगठन में आपकी चमक अर्थात् वह झलक और फलक सबको दिखाई दे।

    भल काम साधारण करते हो लेकिन स्मृति और स्थिति ऐसी श्रेष्ठ हो जो देखते ही महसूस करें कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं, यह सेवाधारी होते भी पुरूषोत्तम हैं।

    02.05.2022

    निर्माणता की विशेषता द्वारा सहज सफलता प्राप्त करने वाले सर्व के माननीय भव

    सर्व द्वारा मान प्राप्त करने का सहज साधन है - निर्मान बनना।

    जो आत्मायें स्वयं को सदा निर्माणचित की विशेषता से चलाती रहती हैं वह सहज सफलता को पाती हैं।

    निर्मान बनना ही स्वमान है।

    निर्मान बनना झुकना नहीं है लेकिन सर्व को अपनी विशेषता और प्यार से झुकाना है।

    वर्तमान समय के प्रमाण सदा और सहज सफलता प्राप्त करने का यही मूल आधार है।

    हर कर्म, सम्बन्ध और सम्पर्क में निर्मान बनने वाले ही विजयी-रत्न बनते हैं।

    01.05.2022

    यथार्थ याद द्वारा सर्व शक्ति सम्पन्न बनने वाले सदा शस्त्रधारी, कर्मयोगी भव

    यथार्थ याद का अर्थ है सर्व शक्तियों से सदा सम्पन्न रहना।

    परिस्थिति रूपी दुश्मन आये और शस्त्र काम में नहीं आये तो शस्त्रधारी नहीं कहा जायेगा।

    हर कर्म में याद हो तब सफलता होगी।

    जैसे कर्म के बिना एक सेकण्ड भी नहीं रह सकते, वैसे कोई भी कर्म योग के बिना नहीं कर सकते, इसलिए कर्म-योगी, शस्त्रधारी बनो और समय पर सर्व शक्तियों को आर्डर प्रमाण यूज़ करो - तब कहेंगे यथार्थ योगी।

    30.04.2022

    हर सेकण्ड, हर खजाने को सफल कर सफलता की खुशी अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव

    सफलता मूर्त बनने का विशेष साधन है - हर सेकण्ड को, हर श्वांस को, हर खजाने को सफल करना।

    यदि संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में सर्व प्रकार की सफलता का अनुभव करना चाहते हो तो सफल करते जाओ, व्यर्थ नहीं जाये।

    चाहे स्व के प्रति सफल करो, चाहे और आत्माओं के प्रति सफल करो तो आटोमेटिकली सफलता की खुशी अनुभव करते रहेंगे क्योंकि सफल करना अर्थात् वर्तमान में सफलता प्राप्त करना और भविष्य के लिए जमा करना।

    29.04.2022

    अपने देवताई संस्कारों को इमर्ज कर दिव्यता का अनुभव करने वाले व्यर्थ से इनोसेंट, अविद्या स्वरूप भव

    जब आप बच्चे अपने सतयुगी राज्य में थे तो व्यर्थ वा माया से इनोसेंट थे इसलिए देवताओं को सेंट वा महान आत्मा कहते हैं।

    तो अपने वही संस्कार इमर्ज कर, व्यर्थ के अविद्या स्वरूप बनो।

    समय, श्वास, बोल, कर्म, सबमें व्यर्थ की अविद्या अर्थात् इनोसेंट।

    जब व्यर्थ की अविद्या होगी तब दिव्यता स्वत: और सहज अनुभव होगी इसलिए यह नहीं सोचो कि पुरूषार्थ तो कर रहे हैं - लेकिन पुरूष बन इस रथ द्वारा कार्य कराओ।

    एक बार की गलती दुबारा रिपीट न हो।

    28.04.2022

    स्नेह की उड़ान द्वारा समीपता का अनुभव करने वाले पास विद आनर भव

    स्नेह की शक्ति से सभी बच्चे आगे बढ़ते जा रहे हैं।

    स्नेह की उड़ान तन से, मन से वा दिल से बाप के समीप लाती है।

    ज्ञान, योग, धारणा में यथाशक्ति नम्बरवार हैं लेकिन स्नेह में हर एक नम्बरवन हैं।

    स्नेह में सभी पास हैं।

    स्नेह का अर्थ ही है पास रहना और पास होना वा हर परिस्थिति को सहज ही पास कर लेना।

    ऐसे पास रहने वाले ही पास विद आनर बनते हैं।

    27.04.2022

    बाप द्वारा मिले हुए वरदानों को समय पर कार्य में लगाकर फलीभूत बनाने वाले वरदानी मूर्त भव

    बापदादा द्वारा जो भी वरदान मिलते हैं उन्हें समय पर कार्य में लगाओ तो वरदान कायम रहेंगे।

    वरदान के बीज को फलदायक बनाने के लिए उसे बार-बार स्मृति का पानी दो, वरदान के स्वरूप में स्थित होने की धूप दो।

    तो एक वरदान अनेक वरदानों को साथ में लायेगा और फल स्वरूप वरदानी मूर्त बन जायेंगे।

    जितना वरदानों को समय पर कार्य में लगायेंगे उतना वरदान और श्रेष्ठ स्वरूप दिखाता रहेगा।

    26.04.2022

    बेहद के सम्पूर्ण अधिकार के निश्चय और रूहानी नशे में रहने वाले सर्वश्रेष्ठ, सम्पत्तिवान भव

    वर्तमान समय आप बच्चे ऐसे श्रेष्ठ सम्पूर्ण अधिकारी बनते हो जो स्वयं आलमाइटी अथॉरिटी के ऊपर आपका अधिकार है। परमात्म अधिकारी बच्चे सर्व संबंधों का और सर्व सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। इस समय ही बाप द्वारा सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति भव का वरदान मिलता है। आपके पास सर्व गुणों की, सर्व शक्तियों की और श्रेष्ठ ज्ञान की अविनाशी सम्पत्ति है, इसलिए आप जैसा सम्पत्तिवान और कोई नहीं।

    25.04.2022

    माया वा प्रकृति के भिन्न-भिन्न कार्टून शो को साक्षी बन देखने वाले सन्तोषी आत्मा भव

    संगमयुग पर बापदादा की विशेष देन सन्तुष्टता है। सन्तोषी आत्मा के आगे कैसी भी हिलाने वाली परिस्थिति ऐसे अनुभव होगी जैसे पपेट शो (कठपुतली का खेल)। आजकल कार्टून शो का फैशन है। तो कभी कोई भी परिस्थिति आए उसे ऐसा ही समझो कि बेहद के स्क्रीन पर कार्टून शो वा पपेट शो चल रहा है। माया वा प्रकृति का यह एक शो है, जिसको साक्षी स्थिति में स्थिति हो, अपनी शान में रहते हुए, सन्तुष्टता के स्वरूप में देखते रहो - तब कहेंगे सन्तोषी आत्मा।

    24.04.2022

    प्राप्तियों को इमर्ज कर सदा खुशी की अनुभूति करने वाले सहजयोगी भव

    सहजयोग का आधार है - स्नेह और स्नेह का आधार है संबंध। संबंध से याद करना सहज होता है। संबंध से ही सर्व प्राप्तियां होती हैं। जहाँ से प्राप्ति होती है मन-बुद्धि वहाँ सहज ही चली जाती है, इसलिए बाप ने जो शक्तियों का, ज्ञान का, गुणों का, सुख-शान्ति, आनंद, प्रेम का खजाना दिया है, जो भी भिन्न-भिन्न प्राप्तियां हुई हैं, उन प्राप्तियों को बुद्धि में इमर्ज करो तो खुशी की अनुभूति होगी और सहज योगी बन जायेंगे।

    23.04.2022

    प्योरिटी की रॉयल्टी द्वारा ब्राह्मण जीवन की विशेषता को प्रत्यक्ष करने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव

    प्योरिटी की रॉयल्टी ही ब्राह्मण जीवन की विशेषता है। जैसे कोई रॉयल फैमिली का बच्चा होता है तो उसके चेहरे से, चलन से मालूम पड़ता है कि यह कोई रॉयल कुल का है। ऐसे ब्राह्मण जीवन की परख प्योरिटी की झलक से होती है। चलन और चेहरे से प्योरिटी की झलक तब दिखाई देगी, जब संकल्प में भी अपवित्रता का नाम-निशान न हो। प्योरिटी अर्थात् किसी भी विकार वा अशुद्धि का प्रभाव न हो तब कहेंगे सम्पूर्ण पवित्र।

    22.04.2022

    अपने आक्यूपेशन की स्मृति द्वारा मन को कन्ट्रोल करने वाले राजयोगी भव

    अमृतवेले तथा सारे दिन में बीच-बीच में अपने आक्यूपेशन को स्मृति में लाओ कि मैं राजयोगी हूँ।

    राजयोगी की सीट पर सेट होकर रहो।

    राजयोगी माना राजा, उसमें कन्ट्रोलिंग और रूलिंग पावर होती है।

    वह एक सेकण्ड में मन को कन्ट्रोल कर सकते हैं।

    वह कभी अपने संकल्प, बोल और कर्म को व्यर्थ नहीं गंवा सकते।

    अगर चाहते हुए भी व्यर्थ चला जाता है तो उसे नॉलेजफुल वा राजा नहीं कहेंगे।

    21.04.2022

    सर्व शक्तियों द्वारा हर कम्पलेन को समाप्त कर कम्पलीट बनने वाले शक्तिशाली आत्मा भव

    अन्दर में अगर कोई भी कमी है तो उसके कारण को समझकर निवारण करो क्योंकि माया का नियम है कि जो कमजोरी आपमें होगी, उसी कमजोरी के द्वारा वह आपको मायाजीत बनने नहीं देगी।

    माया उसी कमजोरी का लाभ लेगी और अन्त समय में भी वही कमजोरी धोखा देगी।

    इसलिए सर्व शक्तियों का स्टॉक जमा कर, शक्तिशाली आत्मा बनो और योग के प्रयोग द्वारा हर कम्पलेन को समाप्त कर कम्पलीट बन जाओ।

    यही स्लोगन याद रहे -“अब नहीं तो कब नहीं''।

    20.04.2022

    पुरूषार्थ के साथ योग के प्रयोग की विधि द्वारा वृत्तियों को परिवर्तन करने वाले सदा विजयी भव

    पुरूषार्थ धरनी बनाता है, वह भी जरूरी है लेकिन पुरूषार्थ के साथ-साथ योग के प्रयोग से सबकी वृत्तियों को परिवर्तन करो तो सफलता समीप दिखाई देगी।

    दृढ़ निश्चय और योग के प्रयोग द्वारा किसी की भी बुद्धि को परिवर्तन कर सकते हो।

    सेवाओं में जब भी कोई हलचल हुई है तो उसमें विजय योग के प्रयोग से ही मिली है, इसलिए पुरूषार्थ से धरनी बनाओ लेकिन बीज को प्रत्यक्ष करने के लिए योग का प्रयोग करो तब विजयी भव का वरदान प्राप्त होगा।

    19.04.2022

    हर समय अपने दिल में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव

    जैसे स्नेह के कारण हर एक के दिल में आता है कि हमें बाप को प्रत्यक्ष करना ही है।

    ऐसे अपने संकल्प, बोल और कर्म द्वारा दिल में प्रत्यक्षता का झण्डा लहराओ, सदा खुश रहने की डांस करो, कभी खुश, कभी उदास - यह नहीं।

    ऐसा दृढ़ संकल्प अर्थात् व्रत धारण करो कि जब तक जीना है तब तक खुश रहना है।

    मीठा बाबा, प्यारा बाबा, मेरा बाबा-यही गीत ऑटोमेटिक बजता रहे तो प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने लगेगा।

    18.04.2022

    सब फिकरातें बाप को देकर बेफिक्र स्थिति का अनुभव करने वाले परमात्म प्यारे भव

    जो बच्चे परमात्म प्यारे हैं वह सदा दिलतख्त पर रहते हैं।

    कोई की हिम्मत नहीं जो दिलाराम के दिल से उन्हें अलग कर सके, इसलिए आप दुनिया के आगे फखुर से कहते हो कि हम परमात्म प्यारे बन गये।

    इसी फखुर में रहने के कारण सब फिकरातों से फारिग हो।

    आप कभी गलती से भी नहीं कह सकते कि आज मेरा मन थोड़ा सा उदास है, मेरा मन नहीं लगता ....., यह बोल ही व्यर्थ बोल हैं। मेरा कहना माना मुश्किल में पड़ना।

    17.04.2022

    फालो फादर करते हुए सपूत बन हर कर्म में सबूत देने वाले सफलता स्वरूप भव

    जो फालो फादर करने वाले बच्चे हैं वही समान हैं, क्योंकि जो बाप के कदम वो आपके कदम।

    बापदादा सपूत उन्हें कहता - जो हर कर्म में सबूत दे।

    सपूत अर्थात् सदा बाप के श्रीमत का हाथ और साथ अनुभव करने वाले।

    जहाँ बाप की श्रीमत व वरदान का हाथ है वहाँ सफलता है ही, इसलिए कोई भी कार्य करते ये स्मृति में लाओ कि बाप के वरदान का हाथ हमारे ऊपर है।

    16.04.2022

    सर्व शक्तियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले शक्ति स्वरूप मास्टर रचयिता भव

    जो बच्चे मास्टर सर्वशक्तिमान् की अथॉरिटी से शक्तियों को आर्डर प्रमाण चलाते हैं, तो हर शक्ति रचना के रूप में मास्टर रचयिता के सामने आती है।

    ऑर्डर किया और हाजिर हो जाती है।

    तो जो हजूर अर्थात् बाप के हर कदम की श्रीमत पर हर समय “जी-हाजिर'' वा हर आज्ञा में “जी-हाजिर'' करते हैं।

    तो जी-हाजिर करने वालों के आगे हर शक्ति भी जी-हाज़िर वा जी मास्टर हज़ूर करती है।

    ऐसे आर्डर प्रमाण शक्तियों को कार्य में लगाने वालों को ही मास्टर रचयिता कहेंगे।

    15.04.2022

    स्व और सेवा के बैलेन्स द्वारा दुआयें लेने और देने वाले सदा सफलतामूर्त भव

    जैसे सेवा में बहुत आगे बढ़ रहे हो ऐसे स्वउन्नति पर भी पूरा अटेन्शन रहे।

    जिनको यह बैलेन्स रखना आता है वे सदा दुआयें लेते और दुआयें देते हैं।

    बैलेन्स की प्राप्ति ही है ब्लैसिंग।

    बैलेन्स वाले को ब्लैसिंग नहीं मिले - यह हो नहीं सकता।

    मात-पिता और परिवार की दुआओं से सदा आगे बढ़ते चलो।

    यह दुआयें ही पालना हैं।

    सिर्फ दुआयें लेते चलो और सबको दुआयें देते चलो तो सहज सफलतामूर्त बन जायेंगे।

    14.04.2022

    डबल नशे की स्थिति द्वारा सदा निर्विघ्न बनने और बनाने वाले विश्व परिवर्तक भव

    “मालिक सो बालक हैं'' - जब चाहो मालिकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो बालकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ, यह डबल नशा सदा निर्विघ्न बनाने वाला है।

    ऐसी आत्माओं का टाइटल है विघ्न-विनाशक।

    लेकिन सिर्फ अपने लिए विघ्न-विनाशक नहीं, सारे विश्व के विघ्न-विनाशक, विश्व परिवर्तक हो।

    जो स्वयं शक्तिशाली रहते हैं उनके सामने विघ्न स्वत: कमजोर बन जाता है।

    13.04.2022

    अपनी आकर्षणमय स्थिति द्वारा सर्व को आकर्षित करने वाले रूहानी सेवाधारी भव

    रूहानी सेवाधारी कभी यह नहीं सोच सकते कि सेवा में वृद्धि नहीं होती या सुनने वाले नहीं मिलते।

    सुनने वाले बहुत हैं सिर्फ आप अपनी स्थिति रूहानी आकर्षणमय बनाओ।

    जब चुम्बक अपनी तरफ खींच सकता है तो क्या आपकी रूहानी शक्ति आत्माओं को नहीं खींच सकती!

    तो रूहानी आकर्षण करने वाले चुम्बक बनो जिससे आत्मायें स्वत: आकर्षित होकर आपके सामने आ जायें, यही आप रूहानी सेवाधारी बच्चों की सेवा है।

    12.04.2022

    माया और प्रकृति की हलचल से सदा सेफ रहने वाले दिलाराम के दिलतख्तनशीन भव

    सदा सेफ रहने का स्थान-दिलाराम बाप का दिलतख्त है।

    सदा इसी स्मृति में रहो कि हमारा ही यह श्रेष्ठ भाग्य है जो भगवान के दिलतख्त-नशीन बन गये।

    जो परमात्म दिल में समाया हुआ अथवा दिलतख्तनशीन है वह सदा सेफ है।

    माया वा प्रकृति के तूफान उसे हिला नहीं सकते।

    ऐसे अचल रहने वालों का यादगार अचलघर है, चंचल घर नहीं, इसलिए स्मृति रहे कि हम अनेक बार अचल बने हैं और अभी भी अचल हैं।

    11.04.2022

    “नेचुरल अटेन्शन'' को अपनी नेचर (आदत) बनाने वाले स्मृति स्वरूप भव

    सेना में जो सैनिक होते हैं वह कभी भी अलबेले नहीं रहते, सदा अटेन्शन में अलर्ट रहते हैं।

    आप भी पाण्डव सेना हो इसमें जरा भी अबेलापन न हो।

    अटेन्शन एक नेचुरल विधि बन जाए।

    कई अटेन्शन का भी टेन्शन रखते हैं।

    लेकिन टेन्शन की लाइफ सदा नहीं चल सकती, इसलिए नेचुरल अटेन्शन अपनी नेचर बनाओ।

    अटेन्शन रखने से स्वत: स्मृति स्वरूप बन जायेंगे, विस्मृति की आदत छूट जायेगी।

    10.04.2022

    ब्राह्मण जीवन में अलौकिक मौजों का अनुभव करने वाले कर्मो की गुह्य गति के ज्ञाता भव

    ब्राह्मण जीवन मौज की जीवन है लेकिन मौज में रहने का अर्थ यह नहीं कि जो आया वह किया, मस्त रहा।

    यह अल्पकाल के सुख की मौज वा अल्पकाल के सम्बन्ध-सम्पर्क की मौज सदाकाल की प्रसन्नचित स्थिति से भिन्न है।

    जो आया वह बोला, जो आया वह किया - हम तो मौज में रहते हैं, ऐसे अल्पकाल के मनमौजी नहीं बनो।

    सदाकाल की रूहानी अलौकिक मौज में रहो - यही यथार्थ ब्राह्मण जीवन है।

    मौज के साथ कर्मो की गुह्य गति के ज्ञाता भी बनो।

    09.04.2022

    सूक्ष्म पापों से मुक्त बन सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
    कई बच्चे वर्तमान समय कर्मो की गति के ज्ञान में बहुत इजी हो गये हैं इसलिए छोटे-छोंटे पाप होते रहते हैं।

    कर्म फिलासाफी का सिद्धान्त है - यदि आप किसी की ग्लानी करते हो, किसी की गलती (बुराई) को फैलाते हो या किसी के साथ हाँ में हाँ भी मिलाते हो तो यह भी पाप के भागी बनते हो।

    आज आप किसी की ग्लानी करते हो तो कल वह आपकी दुगुनी ग्लानी करेगा।

    यह छोटे-छोटे पाप सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने में विघ्न रूप बनते हैं इसलिए कर्मो की गति को जानकर पापों से मुक्त बन सिद्धि स्वरूप बनो।

    08.04.2022

    साइलेन्स की शक्ति से बुराई को अच्छाई में बदलने वाले शुभ भावना सम्पन्न भव

    जैसे साइन्स के साधन से खराब माल को भी परिवर्तन कर अच्छी चीज़ बना देते हैं।

    ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से बुरी बात वा बुरे संबंध को बुराई से अच्छाई में परिवर्तन कर दो।

    ऐसे शुभ भावना सम्पन्न बन जाओ जो आपके श्रेष्ठ संकल्प से अन्य आत्मायें भी बुराई को बदल अच्छाई धारण कर लें।

    नॉलेजफुल के हिसाब से राइट रांग को जानना अलग बात है लेकिन स्वयं में बुराई को बुराई के रूप में धारण करना गलत है, इसलिए बुराई को देखते, जानते भी उसे अच्छाई में बदल दो।

    07.04.2022

    क्या, क्यों, ऐसे और वैसे के सभी प्रश्नों से पार रहने वाले सदा प्रसन्नचित्त भव

    जो प्रसन्नचित आत्मायें हैं वे स्व के संबंध में वा सर्व के संबंध में, प्रकृति के संबंध में, किसी भी समय, किसी भी बात में संकल्प-मात्र भी क्वेश्चन नहीं उठायेंगी।

    यह ऐसा क्यों वा यह क्या हो रहा है, ऐसा भी होता है क्या?

    प्रसन्नचित आत्मा के संकल्प में हर कर्म को करते, देखते, सुनते, सोचते यही रहता है कि जो हो रहा है वह मेरे लिए अच्छा है और सदा अच्छा ही होना है।

    वे कभी क्या, क्यों, ऐसा-वैसा इन प्रश्नों की उलझन में नहीं जाते।

     

    06.04.2022

    सर्व खजाने जमा कर रूहानी फखुर (नशे) में रहने वाले बेफिकर बादशाह भव

    बापदादा द्वारा सब बच्चों को अखुट खजाने मिले हैं।

    जिसने अपने पास जितने खजाने जमा किये हैं उतना उनकी चलन और चेहरे में वह रूहानी नशा दिखाई देता है, जमा करने का रूहानी फखुर अनुभव होता है।

    जिसे जितना रूहानी फखुर रहता है उतना उनके हर कर्म में वह बेफिक्र बादशाह की झलक दिखाई देती है क्योंकि जहाँ फखुर है वहाँ फिक्र नहीं रह सकता।

    जो ऐसे बेफिक्र बादशाह हैं वह सदा प्रसन्नचित हैं।

     

    05.04.2022

    सदा हर कर्म में रूहानी नशे का अनुभव करने और कराने वाले खुशनसीब भव

    संगमयुग पर आप बच्चे सबसे अधिक खुशनसीब हो, क्योंकि स्वयं भगवान ने आपको पसन्द कर लिया।

    बेहद के मालिक बन गये।

    भगवान की डिक्शनरी में “हू इज हू'' में आपका नाम है।

    बेहद का बाप मिला, बेहद का राज्य भाग्य मिला, बेहद का खजाना मिला ... यही नशा सदा रहे तो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव होता रहेगा।

    यह है बेहद का रूहानी नशा, इसका अनुभव करते और कराते रहो तब कहेंगे खुशनसीब।

    04.04.2022

    होलीहंस बन व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाले फीलिंग प्रूफ भव

    सारे दिन में जो व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ सम्बन्ध-सम्पर्क होता है उस व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो।

    व्यर्थ को अपनी बुद्धि में स्वीकार नहीं करो।

    अगर एक व्यर्थ को भी स्वीकार किया तो वह एक अनेक व्यर्थ का अनुभव करायेगा, जिसे ही कहते हैं फीलिंग आ गई इसलिए होलीहंस बन व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो तो फीलिंग प्रूफ बन जायेंगे।

    कोई गाली दे, गुस्सा करे, आप उसको शान्ति का शीतल जल दो, यह है होली-हंस का कर्तव्य।

    03.04.2022

    दूसरों के परिवर्तन की चिंता छोड़ स्वयं का परिवर्तन करने वाले शुभ चिंतक भव

    स्व परिवर्तन करना ही शुभ चिंतक बनना है।

    यदि स्व को भूल दूसरे के परिवर्तन की चिंता करते हो तो यह शुभचिंतन नहीं है।

    पहले स्व और स्व के साथ सर्व।

    यदि स्व का परिवर्तन नहीं करते और दूसरों के शुभ चिंतक बनते हो तो सफलता नहीं मिल सकती, इसलिए स्वयं को कायदे प्रमाण चलाते हुए स्व का परिवर्तन करो, इसी में ही फायदा है।

    बाहर से कोई फायदा भल दिखाई न दे लेकिन अन्दर से हल्कापन और खुशी की अनुभूति होती रहेगी।

    02.04.2022

    अपनी सूक्ष्म चेकिंग द्वारा पापों के बोझ को समाप्त करने वाले समान वा सम्पन्न भव

    यदि कोई भी असत्य वा व्यर्थ बात देखी, सुनी और उसे वायुमण्डल में फैलाई।

    सुनकर दिल में समाया नहीं तो यह व्यर्थ बातों का फैलाव करना-यह भी पाप का अंश है।

    यह छोटे-छोटे पाप उड़ती कला के अनुभव को समाप्त कर देते हैं।

    ऐसे समाचार सुनने वालों पर भी पाप और सुनाने वालों पर उससे ज्यादा पाप चढ़ता है इसलिए अपनी सूक्ष्म चेकिंग कर ऐसे पापों के बोझ को समाप्त करो तब बाप समान वा सम्पन्न बन सकेंगे।

    01.04.2022

    सत्यता के साथ सभ्यता पूर्वक बोल और चलन से आगे बढ़ने वाले सफलतामूर्त भव

    सदैव याद रहे कि सत्यता की निशानी है सभ्यता।

    यदि आप में सत्यता की शक्ति है तो सभ्यता को कभी नहीं छोड़ो।

    सत्यता को सिद्ध करो लेकिन सभ्यतापूर्वक।

    सभ्यता की निशानी है निर्माण और असभ्यता की निशानी है जिद।

    तो जब सभ्यता पूर्वक बोल और चलन हो तब सफलता मिलेगी।

    यही आगे बढ़ने का साधन है।

    अगर सत्यता है और सभ्यता नहीं तो सफलता मिल नहीं सकती।

    31.03.2022

    नॉलेजफुल बन हर कर्म के परिणाम को जान कर्म करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव

    त्रिकालदर्शी बच्चे हर कर्म के परिणाम को जानकर फिर कर्म करते हैं।

    वे कभी ऐसे नहीं कहते कि होना तो नहीं चाहिए था, लेकिन हो गया, बोलना नहीं चाहिए था, लेकिन बोल लिया।

    इससे सिद्ध है कि कर्म के परिणाम को न जान भोलेपन में कर्म कर लेते हो।

    भोला बनना अच्छा है लेकिन दिल से भोले बनो, बातों में और कर्म में भोले नहीं बनो।

    उसमें त्रिकालदर्शी बनकर हर बात सुनो और बोलो तब कहेंगे सेंट अर्थात् महान आत्मा।

    30.03.2022

    भिन्न-भिन्न स्थितियों के आसन पर एकाग्र हो बैठने वाले राजयोगी, स्वराज्य अधिकारी भव

    राजयोगी बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न स्थितियां ही आसन हैं, कभी स्वमान की स्थिति में स्थित हो जाओ तो कभी फरिश्ते स्थिति में, कभी लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति में, कभी प्यार स्वरूप लवलीन स्थिति में।

    जैसे आसन पर एकाग्र होकर बैठते हैं ऐसे आप भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित हो वैराइटी स्थितियों का अनुभव करो।

    जब चाहो तब मन-बुद्धि को आर्डर करो और संकल्प करते ही उस स्थिति में स्थित हो जाओ तब कहेंगे राजयोगी स्वराज्य अधिकारी।

    29.03.2022

    दिल की तपस्या द्वारा सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले सर्व की दुआओं के अधिकारी भव

    तपस्या के चार्ट में अपने को सर्टीफिकेट देने वाले तो बहुत हैं लेकिन सर्व की सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट तभी प्राप्त होता है जब दिल की तपस्या हो, सर्व के प्रति दिल का प्यार हो, निमित्त भाव और शुभ भाव हो।

    ऐसे बच्चे सर्व की दुआओं के अधिकारी बन जाते हैं।

    कम से कम 95 परसेन्ट आत्मायें सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट दें, सबके मुख से निकले कि हाँ यह नम्बरवन है, ऐसा सबके दिल से दुआओं का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले ही बाप समान बनते हैं।

    28.03.2022

    ब्राह्मण सो फरिश्ता सो जीवन-मुक्त देवता बनने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव

    संगमयुग पर ब्राह्मणों को ब्राह्मण से फरिश्ता बनना है, फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी दुनिया, पुराने संस्कार, पुरानी देह के प्रति कोई भी आकर्षण का रिश्ता नहीं।

    तीनों से मुक्त, इसलिए ड्रामा में पहले मुक्ति का वर्सा है फिर जीवनमुक्ति का।

    तो फरिश्ता अर्थात् मुक्त और मुक्त फरिश्ता ही जीवनमुक्त देवता बनेंगे।

    जब ऐसे ब्राह्मण सो सर्व आकर्षण मुक्त फरिश्ता सो देवता बनों तब प्रकृति भी दिल व जान, सिक व प्रेम से आप सबकी सेवा करेगी।

    27.03.2022

    प्लेन बुद्धि बन सेवा के प्लैन बनाने वाले यथार्थ सेवाधारी भव

    यथार्थ सेवाधारी उन्हें कहा जाता है जो स्व की और सर्व की सेवा साथ-साथ करते हैं।

    स्व की सेवा में सर्व की सेवा समाई हुई हो।

    ऐसे नहीं दूसरों की सेवा करो और अपनी सेवा में अलबेले हो जाओ।

    सेवा में सेवा और योग दोनों ही साथ-साथ हो।

    इसके लिए प्लेन बुद्धि बनकर सेवा के प्लैन बनाओ।

    प्लेन बुद्धि अर्थात् कोई भी बात बुद्धि को टच नहीं करे, सिवाए निमित्त और निर्माण भाव के।

    हद का नाम, हद का मान नहीं लेकिन निर्मान।

    यही शुभ भावना और शुभ कामना का बीज है।

    26.03.2022

    ज्ञान युक्त भावना और स्नेह सम्पन्न योग द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले बाप समान भव

    जो ज्ञान स्वरूप योगी तू आत्मायें हैं वे सदा सर्वशक्तियों की अनुभूति करते हुए विजयी बनती हैं।

    जो सिर्फ स्नेही वा भावना स्वरूप हैं उनके मन और मुख में सदा बाबा-बाबा है इसलिए समय प्रति समय सहयोग प्राप्त होता है।

    लेकिन समान बनने में ज्ञानी-योगी तू आत्मायें समीप हैं, इसलिए जितनी भावना हो उतना ही ज्ञान स्वरूप हो।

    ज्ञानयुक्त भावना और स्नेह सम्पन्न योग - इन दोनों का बैलेन्स उड़ती कला का अनुभव कराते हुए बाप समान बना देता है।

    25.03.2022

    अपने भरपूर स्टॉक द्वारा खुशियों का खजाना बांटने वाले हीरो हीरोइन पार्टधारी भव

    संगमयुगी ब्राह्मण आत्माओं का कर्तव्य है सदा खुश रहना और खुशी बांटना लेकिन इसके लिए खजाना भरपूर चाहिए।

    अभी जैसा नाज़ुक समय नजदीक आता जायेगा वैसे अनेक आत्मायें आपसे थोड़े समय की खुशी की मांगनी करने के लिए आयेंगी।

    तो इतनी सेवा करनी है जो कोई भी खाली हाथ नहीं जाये।

    इसके लिए चेहरे पर सदा खुशी के चिन्ह हों, कभी मूड आफ वाला, माया से हार खाने वाला, दिलशिकस्त वाला चेहरा न हो।

    सदा खुश रहो और खुशी बांटते चलो - तब कहेंगे हीरो हीरोइन पार्टधारी।

    24.03.2022

    त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा मूंझने की परिस्थितियों को मौज में परिवर्तन करने वाले कर्मयोगी भव

    जो बच्चे त्रिकालदर्शी हैं वे कभी किसी बात में मूंझ नहीं सकते क्योंकि उनके सामने तीनों काल क्लीयर हैं।

    जब मंजिल और रास्ता क्लीयर होता है तो कोई मूंझता नहीं।

    त्रिकालदर्शी आत्मायें कभी कोई बात में सिवाए मौज के और कोई अनुभव नहीं करती।

    चाहे परिस्थिति मुंझाने की हो लेकिन ब्राह्मण आत्मा उसे भी मौज में बदल देगी क्योंकि अनगिनत बार वह पार्ट बजाया है।

    यह स्मृति कर्म-योगी बना देती है। वह हर काम मौज से करते हैं।

    23.03.2022

    न्यारेपन की अवस्था द्वारा पास विद आनर का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले अशरीरी भव

    पास विद आनर का सर्टीफिकेट प्राप्त करने के लिए मुख और मन दोनों की आवाज से परे शान्त स्वरूप की स्थिति में स्थित होने का अभ्यास चाहिए।

    आत्मा शान्ति के सागर में समा जाये।

    यह स्वीट साइलेन्स की अनुभूति बहुत प्रिय लगती है।

    तन और मन को आराम मिल जाता है।

    अन्त में यह अशरीरी बनने का अभ्यास ही काम में आता है।

    शरीर का कोई भी खेल चल रहा है, अशरीरी बन आत्मा साक्षी (न्यारा) हो अपने शरीर का पार्ट देखे तो यही अवस्था अन्त में विजयी बना देगी।

    22.03.2022

    कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा कम्बाइन्ड सेवा करने वाले सफलता मूर्त भव

    जैसे शरीर और आत्मा कम्बाइन्ड है, भविष्य विष्णु स्वरूप कम्बाइन्ड है, ऐसे बाप और हम आत्मा कम्बाइन्ड हैं इस स्वरूप की स्मृति में रहकर स्व सेवा और सर्व आत्माओं की सेवा साथ-साथ करो तो सफलता मूर्त बन जायेंगे।

    ऐसे कभी नहीं कहो कि सेवा में बहुत बिजी थे इसलिए स्व की स्थिति का चार्ट ढीला हो गया।

    ऐसे नहीं जाओ सेवा करने और लौटो तो कहो माया आ गई, मूड आफ हो गया, डिस्टर्ब हो गये।

    सेवा में वृद्धि का साधन ही है स्व और सर्व की सेवा कम्बाइन्ड हो।

    21.03.2022

    ज्ञान जल में तैरने और ऊंची स्थिति में उड़ने वाले होलीहंस भव

    जैसे हंस सदा पानी में तैरते भी हैं और उड़ने वाले भी होते हैं, ऐसे आप सच्चे होलीहंस बच्चे उड़ना और तैरना जानते हो।

    ज्ञान मनन करना अर्थात् ज्ञान अमृत वा ज्ञान जल में तैरना और उड़ना अर्थात् ऊंची स्थिति में रहना।

    ऐसे ज्ञान मनन करने वा ऊंची स्थिति में रहने वाले होलीहंस कभी भी दिलशिकस्त वा नाउम्मींद नहीं हो सकते।

    वह बीती को बिन्दी लगाए, क्या क्यों की जाल से मुक्त हो उड़ते और उड़ाते रहते हैं।

    20.03.2022

    साक्षीपन के अचल आसन पर विराजमान रहने वाले अचल-अडोल, प्रकृतिजीत भव

    प्रकृति चाहे हलचल करे या अपना सुन्दर खेल दिखाये - दोनों में प्रकृतिपति आत्मायें साक्षी होकर खेल देखती हैं।

    खेल देखने में मजा आता है, घबराते नहीं।

    जो तपस्या द्वारा साक्षीपन की स्थिति के अचल आसन पर विराजमान रहने का अभ्यास करते हैं, उन्हें प्रकृति की वा व्यक्तियों की कोई भी बातें हिला नहीं सकती।

    प्रकृति और माया के 5-5 खिलाड़ी अपना खेल कर रहे हैं आप उसे साक्षी होकर देखो तब कहेंगे अचल अडोल, प्रकृतिजीत आत्मा।

    19.03.2022

    बेहद के अधिकार को स्मृति में रख सम्पूर्णता की बधाईयां मनाने वाले मास्टर रचयिता भव

    संगमयुग पर आप बच्चों को वर्सा भी प्राप्त है, पढ़ाई के आधार पर सोर्स आफ इनकम भी है और वरदान भी मिले हुए हैं।

    तीनों ही संबंध से इस अधिकार को स्मृति में इमर्ज रखकर हर कदम उठाओ।

    अभी समय, प्रकृति और माया विदाई के लिए इन्तजार कर रही है सिर्फ आप मास्टर रचयिता बच्चे, सम्पूर्णता की बंधाईयां मनाओ तो वो विदाई ले लेगी।

    नॉलेज के आइने में देखो कि अगर इसी घड़ी विनाश हो जाए तो मैं क्या बनूंगा?

    18.03.2022

    सर्वशक्तियों को अपने अधिकार में रख सहज सफलता प्राप्त करने वाले मा. सर्वशक्तिमान् भव

    जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिमान् की सीट पर सेट होंगे उतना ये सर्व शक्तियां आर्डर में रहेंगी।

    जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियां जिस समय जैसा आर्डर करते हो वैसे आर्डर से चलती हैं, ऐसे सूक्ष्म शक्तियां भी आर्डर पर चलने वाली हों।

    जब यह सर्व शक्तियाँ अभी से आर्डर पर होंगी तब अन्त में सफलता प्राप्त कर सकेंगे क्योंकि जहाँ सर्व शक्तियाँ हैं, वहाँ सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है।

    17.03.2022

    नथिंगन्यु की युक्ति द्वारा हर परिस्थिति में मौज की स्थिति का अनुभव करने वाले सदा अचल-अडोल भव

    ब्राह्मण अर्थात् सदा मौज की स्थिति में रहने वाले।

    दिल में सदा स्वत: यही गीत बजता रहे - वाह बाबा और वाह मेरा भाग्य!

    दुनिया की किसी भी हलचल वाली परिस्थिति में आश्चर्य नहीं, फुलस्टाप।

    कुछ भी हो जाए - लेकिन आपके लिए नथिंगन्यु।

    कोई नई बात नहीं है।

    इतनी अन्दर से अचल स्थिति हो, क्या, क्यों में मन मूंझे नहीं तब कहेंगे अचल-अडोल आत्मायें।

    16.03.2022

    हदों से न्यारे रह परमात्म प्यार का अनुभव करने वाले रूहानियत की खुशबू से सम्पन्न भव

    जैसे गुलाब का पुष्प कांटों के बीच में रहते भी न्यारा और खुशबूदार रहता है, कांटों के कारण बिगड़ नहीं जाता।

    ऐसे रूहे गुलाब जो सर्व हदों से वा देह से न्यारे हैं, किसी भी प्रभाव में नहीं आते वे रूहानियत की खुशबू से सम्पन्न रहते हैं।

    ऐसी खुशबूदार आत्मायें बाप के वा ब्राह्मण परिवार के प्यारे बन जाते हैं।

    परमात्म प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सभी को प्राप्त हो सकता है, लेकिन उसे प्राप्त करने की विधि है - न्यारा बनना।

    15.03.2022

    अमृतवेले अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगाने वाले स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी भव

    रोज़ अमृतवेले अपने मस्तक पर विजय का तिलक अर्थात् स्मृति का तिलक लगाओ।

    भक्ति की निशानी तिलक है और सुहाग की निशानी भी तिलक है, राज्य प्राप्त करने की निशानी भी राजतिलक है।

    कभी कोई शुभ कार्य में सफलता प्राप्त करने जाते हैं तो जाने के पहले तिलक देते हैं।

    आप सबको भी बाप के साथ का सुहाग है इसलिए अविनाशी तिलक है।

    अभी स्वराज्य के तिलकधारी बनो तो भविष्य में विश्व के राज्य का तिलक मिल जायेगा।

    14.03.2022

    दिव्य बुद्धि द्वारा सदा दिव्यता को ग्रहण करने वाले सफलतामूर्त भव

    बापदादा द्वारा जन्म से ही हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान प्राप्त होता है, जो इस दिव्य बुद्धि के वरदान को जितना कार्य में लगाते हैं उतना सफलतामूर्त बनते हैं क्योंकि हर कार्य में दिव्यता ही सफलता का आधार है।

    दिव्य बुद्धि को प्राप्त करने वाली आत्मायें अदिव्य को भी दिव्य बना देती हैं।

    वह हर बात में दिव्यता को ही ग्रहण करती हैं। अदिव्य कार्य का प्रभाव दिव्य बुद्धि वालों पर पड़ नहीं सकता।

    13.03.2022

    सर्व शक्तियों की सम्पन्नता द्वारा विश्व के विघ्नों को समाप्त करने वाले विघ्न-विनाशक भव

    जो सर्व शक्तियों से सम्पन्न है वही विघ्न-विनाशक बन सकता है।

    विघ्न-विनाशक के आगे कोई भी विघ्न आ नहीं सकता।

    लेकिन यदि कोई भी शक्ति की कमी होगी तो विघ्न-विनाशक बन नहीं सकते इसलिए चेक करो कि सर्व शक्तियों का स्टॉक भरपूर है?

    इसी स्मृति वा नशे में रहो कि सर्व शक्तियां मेरा वर्सा हैं, मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ तो कोई विघ्न ठहर नहीं सकता।

    12.03.2022

    बिजी रहने के सहज पुरूषार्थ द्वारा निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी भव

    ब्राह्मण जन्म है ही सदा सेवा के लिए।

    जितना सेवा में बिजी रहेंगे उतना सहज ही मायाजीत बनेंगे।

    इसलिए जरा भी बुद्धि को फुर्सत मिले तो सेवा में जुट जाओ।

    सेवा के सिवाए समय नहीं गॅवाओ।

    चाहे संकल्प से सेवा करो, चाहे वाणी से, चाहे कर्म से।

    अपने सम्पर्क और चलन द्वारा भी सेवा कर सकते हो।

    सेवा में बिजी रहना ही सहज पुरूषार्थ है।

    बिजी रहेंगे तो युद्ध से छूट निरन्तर योगी निरन्तर सेवाधारी बन जायेंगे।

    11.03.2022

    पुराने संसार और संस्कारों की आकर्षण से जीते जी मरने वाले यथार्थ मरजीवा भव

    यथार्थ जीते जी मरना अर्थात् सदा के लिए पुराने संसार वा पुराने संस्कारों से संकल्प और स्वप्न में भी मरना।

    मरना माना परिवर्तन होना।

    उन्हें कोई भी आकर्षण अपनी ओर आकर्षित कर नहीं सकती।

    वह कभी नहीं कह सकते कि क्या करें, चाहते नहीं थे लेकिन हो गया...कई बच्चे जीते जी मरकर फिर जिंदा हो जाते हैं।

    रावण का एक सिर खत्म करते तो दूसरा आ जाता, लेकिन फाउन्डेशन को ही खत्म कर दो तो रूप बदल करके माया वार नहीं करेगी।

    10.03.2022

    सम्पन्नता के आधार पर सन्तुष्टता का अनुभव करने वाले सदा तृप्त आत्मा भव
    जो सदा भरपूर वा सम्पन्न रहते हैं, वे तृप्त होते हैं।

    चाहे कोई कितना भी असन्तुष्ट करने की परिस्थितियां उनके आगे लाये लेकिन सम्पन्न, तृप्त आत्मा असन्तुष्ट करने वाले को भी सन्तुष्टता का गुण सहयोग के रूप में देगी।

    ऐसी आत्मा ही रहमदिल बन शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा उनको भी परिवर्तन करने का प्रयत्न करेगी।

    रूहानी रॉयल आत्मा का यही श्रेष्ठ कर्म है।

    09.03.2022

    अपने चेहरे और चलन से रूहानी रॉयल्टी का अनुभव कराने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव
    रूहानी रॉयल्टी का फाउण्डेशन सम्पूर्ण पवित्रता है।

    सम्पूर्ण प्योरिटी ही रॉयल्टी है।

    इस रूहानी रॉयल्टी की झलक पवित्र आत्मा के स्वरूप से दिखाई देगी।

    यह चमक कभी छिप नहीं सकती।

    कोई कितना भी स्वयं को गुप्त रखे लेकिन उनके बोल, उनका संबंध-सम्पर्क, रूहानी व्यवहार का प्रभाव उनको प्रत्यक्ष करेगा।

    तो हर एक नालेज के दर्पण में देखो कि मेरे चेहरे पर, चलन में वह रॉयल्टी दिखाई देती है वा साधारण चेहरा, साधारण चलन है?

    08.03.2022

    कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा रांग को राइट में परिवर्तन करने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव


    श्रेष्ठ पुरूषार्थी वह हैं जो सेकण्ड में कन्ट्रोंलिंग पावर द्वारा रांग को राइट में परिवर्तन कर दे।

    ऐसे नहीं व्यर्थ को कन्ट्रोल तो करना चाहते हैं, समझते भी हैं यह रांग हैं लेकिन आधा घण्टे तक वही चलता रहे।

    इसे कहेंगे थोड़ा-थोड़ा अधीन और थोड़ा-थोड़ा अधिकारी।

    जब समझते हो कि यह सत्य नहीं है, अयथार्थ वा व्यर्थ है, तो उसी समय ब्रेक लगा देना - यही श्रेष्ठ पुरूषार्थ है।

    कन्ट्रोलिंग पावर का अर्थ यह नहीं कि ब्रेक लगाओ यहाँ और लगे वहाँ।

    07.03.2022

    सर्व प्राप्तियों को सामने रख श्रेष्ठ शान में रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव

    हम सर्व श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऊंचे ते ऊंचे भगवान के बच्चे हैं - यह शान सर्वश्रेष्ठ शान है, जो इस श्रेष्ठ शान की सीट पर रहते हैं वह कभी भी परेशान नहीं हो सकते।

    देवताई शान से भी ऊंचा ये ब्राह्मणों का शान है।

    सर्व प्राप्तियों की लिस्ट सामने रखो तो अपना श्रेष्ठ शान सदा स्मृति में रहेगा और यही गीत गाते रहेंगे कि पाना था वो पा लिया...सर्व प्राप्तियों की स्मृति से मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्थिति सहज बन जायेगी।

    06.03.2022

    अकल्याण की सीन में भी कल्याण का अनुभव कर सदा अचल-अटल रहने वाले निश्चय-बुद्धि भव

    ड्रामा में जो भी होता है - वह कल्याणकारी युग के कारण सब कल्याणकारी है, अकल्याण में भी कल्याण दिखाई दे तब कहेंगे निश्चयबुद्धि।

    परिस्थिति के समय ही निश्चय के स्थिति की परख होती है।

    निश्चय का अर्थ है - संशय का नाम-निशान न हो।

    कुछ भी हो जाए लेकिन निश्चयबुद्धि को कोई भी परिस्थिति हलचल में ला नहीं सकती।

    हलचल में आना माना कमजोर होना।

    05.03.2022

    बाप की समीपता के अनुभव द्वारा स्वप्न में भी विजयी बनने वाले समान साथी भव

    भक्ति मार्ग में समीप रहने के लिए सतसंग का महत्व बताते हैं।

    संग अर्थात् समीप वही रह सकता है जो समान है।

    जो संकल्प में भी सदा साथ रहते हैं वह इतने विजयी होते हैं जो संकल्प में तो क्या लेकिन स्वप्न मात्र भी माया वार नहीं कर सकती।

    सदा मायाजीत अर्थात् सदा बाप के समीप संग में रहने वाले।

    कोई की ताकत नहीं जो बाप के संग से अलग कर सके।

    04.3.2022

    चारों ही सबजेक्ट को अपने स्वरूप में लाने वाले विश्व कल्याणकारी भव

    पढ़ाई की जो चार सबजेक्ट हैं, उन सबका एक दो के साथ सम्बन्ध है।

    जो ज्ञानी तू आत्मा है, वह योगी तू आत्मा भी अवश्य होगा और जिसने ज्ञान-योग को अपनी नेचर बना लिया उसके कर्म नेचुरल युक्तियुक्त वा श्रेष्ठ होंगे।

    स्वभाव - संस्कार धारणा स्वरूप होंगे।

    जिनके पास इन तीनों सबजेक्ट की अनुभूतियों का खजाना है वह मास्टर दाता अर्थात् सेवाधारी स्वत: बन जाते हैं।

    जो इन चारों सबजेक्ट में नम्बरवन लेते हैं उन्हें ही कहा जाता है विश्व कल्याणकारी।

    03.03.2022

    परमात्म प्यार में धरती की आकर्षण से ऊपर उड़ने वाले मायाप्रूफ भव

    परमात्म प्यार धरनी की आकर्षण से ऊपर उड़ने का साधन है।

    जो धरनी अर्थात् देह-अभिमान की आकर्षण से ऊपर रहते हैं उन्हें माया अपनी ओर खींच नहीं सकती।

    कितना भी कोई आकर्षित रूप हो लेकिन माया की आकर्षण आप उड़ती कला वालों के पास पहुंच नहीं सकती।

    जैसे राकेट धरनी की आकर्षण से परे हो जाता है।

    ऐसे आप भी परे हो जाओ, इसकी विधि है न्यारा बनना वा एक बाप के प्यार में समाये रहना - इससे मायाप्रूफ बन जायेंगे।

    02.03.2022

    मन-बुद्धि-संस्कार वा सर्व कर्मेन्द्रियों को नीति प्रमाण चलाने वाले स्वराज्य अधिकारी भव

    स्वराज्य अधिकारी आत्मायें अपने योग की शक्ति द्वारा हर कर्मेन्द्रिय को ऑर्डर के अन्दर चलाती हैं।

    न सिर्फ यह स्थूल कर्मेन्द्रियां लेकिन मन-बुद्धि-संस्कार भी राज्य अधिकारी के डायरेक्शन अथवा नीति प्रमाण चलते हैं।

     

    वे कभी संस्कारों के वश नहीं होते लेकिन संस्कारों को अपने वश में कर श्रेष्ठ नीति से कार्य में लगाते हैं, श्रेष्ठ संस्कार प्रमाण सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं।

    स्वराज्य अधिकारी आत्मा को स्वप्न में भी धोखा नहीं मिल सकता।

    01.03.2022

    निमित्त पन की स्मृति से हर पेपर में पास होने वाले एवररेडी, नष्टोमोहा भव

    एवररेडी का अर्थ ही है - नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप।

    उस समय कोई भी संबंधी अथवा वस्तु याद न आये।

    किसी में भी लगाव न हो, सबसे न्यारा और सबका प्यारा।

    इसका सहज पुरुषार्थ है निमित्त भाव।

    निमित्त समझने से “निमित्त बनाने वाला'' याद आता है।

    मेरा परिवार है, मेरा काम है - नहीं। मैं निमित्त हूँ।

    इस निमित्त पन की स्मृति से हर पेपर में पास हो जायेंगे।

    28.02.2022

    हर बोल द्वारा जमा का खाता बढ़ाने वाले आत्मिक भाव और शुभ भावना सम्पन्न भव

    बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती हैं।

    अगर हर बोल में शुभ वा श्रेष्ठ भावना, आत्मिक भाव है तो उस बोल से जमा का खाता बढ़ता है।

    यदि बोल में ईर्ष्या, हषद, घृणा की भावना किसी भी परसेन्ट में समाई हुई है तो बोल द्वारा गंवाने का खाता ज्यादा होता है।

    समर्थ बोल का अर्थ है - जिस बोल में प्राप्ति का भाव वा सार हो।

    अगर बोल में सार नहीं है तो बोल व्यर्थ के खाते में चला जाता है।

    27.02.2022

    दूसरों के लिए रिमार्क देने के बजाए स्व को परिवर्तन करने वाले स्वचिंतक भव

    कई बच्चे चलते-चलते यह बहुत बड़ी गलती करते हैं - जो दूसरों के जज बन जाते हैं और अपने वकील बन जाते हैं।

    कहेंगे इसको यह नहीं करना चाहिए, इनको बदलना चाहिए और अपने लिए कहेंगे - यह बात बिल्कुल सही है, मैं जो कहता हूँ वही राइट है..।

    अब दूसरों के लिए ऐसी रिमार्क देने के बजाए स्वयं के जज बनो।

    स्वचिंतक बन स्वयं को देखो और स्वयं को परिवर्तन करो तब विश्व परिवर्तन होगा।

    26.02.2022

    बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा मेरे-पन के रॉयल रूप को समाप्त करने वाले न्यारे-प्यारे भव

    समय की समीपता प्रमाण वर्तमान समय के वायुमण्डल में बेहद का वैराग्य प्रत्यक्ष रूप में होना आवश्यक है।

    यथार्थ वैराग्य वृत्ति का अर्थ है - सर्व के सम्बन्ध-सम्पर्क में जितना न्यारा, उतना प्यारा।

    जो न्यारा-प्यारा है वह निमित्त और निर्मान है, उसमें मेरेपन का भान आ नहीं सकता।

    वर्तमान समय मेरापन रॉयल रूप से बढ़ गया है - कहेंगे ये मेरा ही काम है, मेरा ही स्थान है, मुझे यह सब साधन भाग्य अनुसार मिले हैं... तो अब ऐसे रायॅल रूप के मेरे पन को समाप्त करो।

    25.02.2022

    समय और वायुमण्डल को परखकर स्वयं को परिवर्तन करने वाले सर्व के स्नेही भव

    जिसमें परिवर्तन शक्ति है वो सबका प्यारा बनता है, वह विचारों में भी सहज होगा।

    उसमें मोल्ड होने की शक्ति होगी।

    वह कभी ऐसे नहीं कहेगा कि मेरा विचार, मेरा प्लैन, मेरी सेवा इतनी अच्छी होते हुए भी मेरा क्यों नहीं माना गया।

    यह मेरापन आया माना अलाए मिक्स हुआ।

    इसलिए समय और वायुमण्डल को परखकर स्वयं को परिवर्तन कर लो - तो सर्व के स्नेही, नम्बरवन विजयी बन जायेंगे।

    24.02.2022

    परिवर्तन शक्ति द्वारा बीती को बिन्दी लगाने वाले निर्मल और निर्मान भव

    परिवर्तन शक्ति द्वारा पहले अपने स्वरूप का परिवर्तन करो, मैं शरीर नहीं, आत्मा हूँ।

    फिर स्वभाव का परिवर्तन करो, पुराना स्वभाव ही पुरूषार्थी जीवन में धोखा देता है, तो पुराने स्वभाव अर्थात् नेचर का परिवर्तन करो।

    फिर है संकल्पों का परिवर्तन।

    व्यर्थ संकल्पों को समर्थ में परिवर्तन कर दो।

    इस प्रकार परिवर्तन शक्ति द्वारा हर बीती को बिन्दी लगा दो तो निर्मल और निर्मान स्वत: बन जायेंगे।

    23.02.2022

    व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को सेकण्ड में स्टॉप कर निर्विकल्प स्थिति बनाने वाले श्रेष्ठ भाग्यवान भव

    यदि कोई भी गलती हो जाती है तो गलती होने के बाद क्यों, क्या, कैसे, ऐसे नहीं वैसे...यह सोचने में समय नहीं गंवाओ।

    जितना समय सोचने स्वरूप बनते हो उतना दाग के ऊपर दाग लगाते हो, पेपर का टाइम कम होता है लेकिन व्यर्थ सोचने का संस्कार पेपर के टाइम को बढ़ा देता है इसलिए व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को परिवर्तन शक्ति द्वारा सेकण्ड में स्टॉप कर दो तो निर्विकल्प स्थिति बन जायेगी।

    जब यह संस्कार इमर्ज हो तब कहेंगे भाग्यवान आत्मा।

    22.02.2022

    बाप के प्यार की पालना द्वारा सहज योगी जीवन बनाने वाले स्मृति सो समर्थी स्वरूप भव

    सारे विश्व की आत्मायें परमात्मा को बाप कहती हैं लेकिन पालना और पढ़ाई के पात्र नहीं बनती हैं।

    सारे कल्प में आप थोड़ी सी आत्मायें अभी ही इस भाग्य के पात्र बनती हो।

    तो इस पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप है - सहजयोगी जीवन।

    बाप बच्चों की कोई भी मुश्किल बात देख नहीं सकते।

    बच्चे खुद ही सोच-सोच कर मुश्किल बना देते हैं।

    लेकिन स्मृति स्वरूप के संस्कारों को इमर्ज करो तो समर्थी आ जायेगी।

    21.02.2022

    श्रेष्ठ पुरूषार्थ द्वारा हर शक्ति वा गुण का अनुभव करने वाले अनुभवी मूर्त भव

    सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की है।

    जैसे सोचते और कहते हो कि आत्मा शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप है - ऐसे एक-एक गुण वा शक्ति की अनुभूति करो और उन अनुभवों में खो जाओ।

    जब कहते हो शान्त स्वरूप तो स्वरूप में स्वयं को, दूसरे को शान्ति की अनुभूति हो।

    शक्तियों का वर्णन करते हो लेकिन शक्ति वा गुण समय पर अनुभव में आये।

    अनुभवी मूर्त बनना ही श्रेष्ठ पुरूषार्थ की निशानी है।

    तो अनुभवों को बढ़ाओ।

    20.02.2022

    दृढ़ निश्चय द्वारा फर्स्ट डिवीजन के भाग्य को निश्चित करने वाले मास्टर नालेजफुल भव

    दृढ़ निश्चय भाग्य को निश्चित कर देता है।

    जैसे ब्रह्मा बाप फर्स्ट नम्बर में निश्चित हो गये, ऐसे हमें फर्स्ट डिवीजन में आना ही है - यह दृढ़ निश्चय हो।

    ड्रामा में हर एक बच्चे को यह गोल्डन चांस है।

    सिर्फ अभ्यास पर अटेन्शन हो तो नम्बर आगे ले सकते हैं, इसलिए मास्टर नॉलेजफुल बन हर कर्म करते चलो।

    साथ के अनुभव को बढ़ाओ तो सब सहज हो जायेगा, जिसके साथ स्वयं सर्वशक्तिमान् बाप है उसके आगे माया पेपर टाइगर है।

    19.02.2022

    परमात्म प्यार के आधार पर दु:ख की दुनिया को भूलने वाले सुख-शान्ति सम्पन्न भव

    परमात्म प्यार ऐसा सुखदाई है जो उसमें यदि खो जाओ तो यह दुख की दुनिया भूल जायेगी।

    इस जीवन में जो चाहिए वो सर्व कामनायें पूर्ण कर देना - यही तो परमात्म प्यार की निशानी है।

    बाप सुख-शान्ति क्या देता लेकिन उसका भण्डार बना देता है।

    जैसे बाप सुख का सागर है, नदी, तलाव नहीं ऐसे बच्चों को भी सुख के भण्डार का मालिक बना देता है, इसलिए मांगने की आवश्यकता नहीं, सिर्फ मिले हुए खजाने को विधि पूर्वक समय प्रति समय कार्य में लगाओ।

    18.02.2022

    साधारण जीवन में भावना के आधार पर श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले पदमापदम भाग्यवान भव

    बापदादा को साधारण आत्मायें ही पसन्द हैं।

    बाप स्वयं भी साधारण तन में आते हैं।

    आज का करोड़पति भी साधारण है।

    साधारण बच्चों में भावना होती है और बाप को भावना वाले बच्चे चाहिए, देह-भान वाले नहीं।

    ड्रामानुसार संगमयुग पर साधारण बनना भी भाग्य की निशानी है।

    साधारण बच्चे ही भाग्य विधाता बाप को अपना बना लेते हैं, इसलिए अनुभव करते हैं कि “भाग्य पर मेरा अधिकार है।''

    ऐसे अधिकारी ही पदमापदम भाग्यवान बन जाते हैं।

    17.02.2022

    स्नेह के रिटर्न में स्वयं को टर्न करने वाले सच्चे स्नेही सो समान भव

    बाप का बच्चों से अति स्नेह है इसलिए स्नेही की कमी देख नहीं सकते।

    बाप, बच्चों को अपने समान सम्पन्न और सम्पूर्ण देखना चाहते हैं।

    ऐसे आप बच्चे भी कहते हो कि बाबा को हम स्नेह का रिटर्न क्या दें?

    तो बाप बच्चों से यही रिटर्न चाहते हैं कि स्वयं को टर्न कर लो।

    स्नेह में कमजोरियों का त्याग कर दो।

    भक्त तो सिर उतारकर रखने के लिए तैयार हो जाते हैं।

    आप शरीर का सिर नहीं उतारो लेकिन रावण का सिर उतार दो, थोड़ा भी कमजोरी का सिर नहीं रखो।

    16.02.2022

    शुद्ध संकल्पों के घेराव द्वारा सदा छत्रछाया की अनुभूति करने, कराने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव

    आपका एक शुद्ध वा श्रेष्ठ शक्तिशाली संकल्प बहुत कमाल कर सकता है।

    शुद्ध संकल्पों का बंधन वा घेराव कमजोर आत्माओं के लिए छत्रछाया बन, सेफ्टी का साधन वा किला बन जाता है।

    सिर्फ इसके अभ्यास में पहले युद्ध चलती है, व्यर्थ संकल्प शुद्ध संकल्पों को कट करते हैं लेकिन यदि दृढ़ संकल्प करो तो आपका साथी स्वयं बाप है, विजय का तिलक सदा है ही सिर्फ इसको इमर्ज करो तो व्यर्थ स्वत: मर्ज हो जायेगा।

    15.02.2022

    एक बाप की याद द्वारा एकरस स्थिति का अनुभव करने वाले सार स्वरूप भव

    एकरस स्थिति में रहने की सहज विधि है एक की याद।

    एक बाबा दूसरा न कोई।

    जैसे बीज में सब कुछ समाया हुआ होता है।

    ऐसे बाप भी बीज है, जिसमें सर्व सम्बन्धों का, सर्व प्राप्तियों का सार समाया हुआ है।

    एक बाप को याद करना अर्थात् सार स्वरूप बनना।

    तो एक बाप, दूसरा न कोई - यह एक की याद एकरस स्थिति बनाती है।

    जो एक सुखदाता बाप की याद में रहते हैं उनके पास दु:ख की लहर कभी आ नहीं सकती।

    उन्हें स्वप्न भी सुख के, खुशी के, सेवा के और मिलन मनाने के आते हैं।

    14.02.2022

    अल्पकाल के सहारे के किनारों को छोड़ बाप को सहारा बनाने वाले यथार्थ पुरूषार्थी भव

    अल्पकाल के आधारों का सहारा, जिसको किनारा बनाकर रखा है।

    यह अल्पकाल के सहारे के किनारे अभी छोड़ दो।

    जब तक ये किनारे हैं तो सदा बाप का सहारा अनुभव नहीं हो सकता और बाप का सहारा नहीं है इसलिए हद के किनारों को सहारा बना लेते हो।

    अल्पकाल की बातें धोखेबाज हैं, इसलिए समय की तीव्रगति को देख अब इन किनारों से तीव्र उड़ान कर सेकण्ड में क्रॉस करो - तब कहेंगे यथार्थ पुरूषार्थी।

    13.02.2022

    शान्ति की शक्ति से, संस्कार मिलन द्वारा सर्व कार्य सफल करने वाले सदा निर्विघ्न भव

    सदा निर्विघ्न वही रह सकता है जो सी फादर, फालो फादर करता है।

    सी सिस्टर, सी ब्रदर करने से ही हलचल होती है इसलिए अब बाप को फालो करते हुए बाप समान संस्कार बनाओ तो संस्कार मिलन की रास करते हुए सदा निर्विघ्न रहेंगे।

    शान्ति की शक्ति से अथवा शान्त रहने से कितना भी बड़ा विघ्न सहज समाप्त हो जाता है और सर्व कार्य स्वत: सम्पन्न हो जाते हैं।

    12.02.2022

    सर्व प्राप्तियों की स्मृति से उदासी को तलाक देने वाले खुशियों के खजाने से सम्पन्न भव

    संगमयुग पर सभी ब्राह्मण बच्चों को बाप द्वारा खुशी का खजाना मिलता है, इसलिए कुछ भी हो जाए - भल यह शरीर भी चला जाए लेकिन खुशी के खजाने को नहीं छोड़ना।

    सदा सर्व प्राप्तियों की स्मृति में रहना तो उदासी को तलाक मिल जायेगी।

    धन्धेधोरी में भल नुकसान भी हो जाए तो भी मन में उदासी की लहर न आये क्योंकि अखुट प्राप्तियों के आगे यह क्या बड़ी बात है!

    अगर खुशी है तो सब कुछ है, खुशी नहीं तो कुछ भी नहीं।

    11.02.2022

    सन्तुष्टता के आधार पर दुआयें देने और लेने वाले सहज पुरूषार्थी भव

    सर्व की दुआयें उन्हें मिलती हैं जो स्वयं सन्तुष्ट रहकर सबको सन्तुष्ट करते हैं।

    जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ दुआयें हैं।

    यदि सर्व गुण धारण करने वा सर्व शक्तियों को कन्ट्रोल करने में मेहनत लगती हो, तो उसे भी छोड़ दो, सिर्फ अमृतवेले से लेकर रात तक दुआयें देने और दुआयें लेने का एक ही कार्य करो तो इसमें सब कुछ आ जायेगा।

    कोई दु:ख भी दे तो भी आप दुआयें दो तो सहज पुरूषार्थी बन जायेंगे।

    10.02.2022

    बाप की छत्रछाया के नीचे सदा सेफ्टी का अनुभव करने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव

    जैसे स्थूल दुनिया में धूप वा बारिश से बचने के लिए छत्रछाया का आधार लेते हैं, वह है स्थूल छत्रछाया और यह है बाप की छत्रछाया, जो आत्मा को हर समय सेफ रखती है।

    उसे कोई भी आकर्षण अपनी ओर आकर्षित कर नहीं सकती।

    दिल से बाबा कहा और सेफ।

    चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाए-छत्रछाया के अन्दर रहने वाले सदा सेफ्टी का अनुभव करते हैं।

    माया के प्रभाव का सेक-मात्र भी नहीं आ सकता।

    09.02.2022

    स्व-स्थिति द्वारा हर परिस्थिति को पार करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव

    जो बच्चे त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहते हैं वह अपनी स्व स्थिति द्वारा हर परिस्थिति को ऐसे पार कर लेते हैं जैसेकि कुछ था ही नहीं।

    नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी आत्मायें समय प्रमाण हर शक्ति को, हर प्वाइंट को, हर गुण को ऑर्डर से चलाते हैं।

    ऐसे नहीं कि समय आने पर आर्डर करें सहनशक्ति को और कार्य पूरा हो जाए फिर सहनशक्ति आये।

    जिस समय जो शक्ति, जिस विधि से चाहिए - उस समय अपना कार्य करे तब कहेंगे खजाने के मालिक, मास्टर त्रिकालदर्शी।

    08.02.2022

    हर खजाने को स्व प्रति और सर्व प्रति कार्य में लगाने वाले अनुभवी मूर्त भव

    समाने की शक्ति को धारण कर सर्व खजानों से सम्पन्न बन उन्हें स्व के कार्य में अथवा अन्य की सेवा के कार्य में यूज करो।

    खजानों को यूज करने से अनुभवी मूर्त बनते जायेंगे।

    सुनना, समाना और समय पर कार्य में लगाना - इसी विधि से अनुभव की अथॉरिटी बन सकते हो।

    जैसे सुनना अच्छा लगता है, प्वाइंट बड़ी अच्छी शक्तिशाली है, ऐसे उसे यूज़ करके शक्तिशाली विजयी बन जाओ तब कहेंगे अनुभवी मूर्त।

     

    07.02.2022

    दुआओं के राकेट द्वारा तीव्रगति से उड़ने वाले विघ्न प्रूफ भव

    मात-पिता और सर्व के संबंध में आते हुए दुआओं के खजाने से स्वयं को सम्पन्न करो तो कभी भी पुरूषार्थ में मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

    जैसे साइन्स में सबसे तीव्रगति राकेट की होती है ऐसे संगमयुग पर सबसे तीव्रगति से आगे उड़ने का यन्त्र अथवा उससे भी श्रेष्ठ राकेट “सबकी दुआयें'' हैं, जिसे कोई भी विघ्न जरा भी स्पर्श नहीं कर सकता, इससे विघ्न प्रूफ बन जायेंगे, युद्ध नहीं करनी पड़ेगी।

     

    06.02.2022

    ज्ञान खजाने द्वारा मुक्ति-जीवनमुक्ति का अनुभव करने वाले सर्व बंधनमुक्त भव

    ज्ञान रत्नों का खजाना सबसे श्रेष्ठ खजाना है, इस खजाने द्वारा इस समय ही मुक्ति-जीवनमुक्ति की अनुभूति कर सकते हो।

    ज्ञानी तू आत्मा वह है जो दु:ख और अशान्ति के सब कारण समाप्त कर, अनेकानेक बन्धनों की रस्सियों को काटकर मुक्ति वा जीवनमुक्ति का अनुभव करे।

    अनेक व्यर्थ संकल्पों से, विकल्पों से और विकर्मो से सदा मुक्त रहना - यही मुक्त और जीवनमुक्त अवस्था है।

     

    05.02.2022

    सदा विजय की स्मृति से हर्षित रहने और सर्व को खुशी दिलाने वाले आकर्षण मूर्त भव

    हम कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हैं, विजय का तिलक मस्तक पर सदा चमकता रहे तो यह विजय का तिलक औरों को भी खुशी दिलायेगा क्योंकि विजयी आत्मा का चेहरा सदा ही हर्षित रहता है।

    हर्षित चेहरे को देखकर खुशी के पीछे स्वत: ही सब आकर्षित होते हैं।

    जब अन्त में किसी के पास सुनने का समय नहीं होगा तब आपका आकर्षण मूर्त हर्षित चेहरा ही अनेक आत्माओं की सेवा करेगा।

     

    04.02.2022

    देह-अंहकार वा अभिमान के सूक्ष्म अंश का भी त्याग करने वाले आकारी सो निराकारी भव

    कईयों का मोटे रूप से देह के आकार में लगाव वा अभिमान नहीं है लेकिन देह के संबंध से अपने संस्कार विशेष हैं, बुद्धि विशेष है, गुण विशेष हैं, कलायें विशेष हैं, कोई शक्ति विशेष है - उसका अभिमान अर्थात् अंहकार, नशा, रोब - ये सूक्ष्म देह-अभिमान है।

    तो यह अभिमान कभी भी आकारी फरिश्ता वा निराकारी बनने नहीं देगा, इसलिए इसके अंश मात्र का भी त्याग करो तो सहज ही आकारी सो निराकारी बन सकेंगे।

     

    03.02.2022

    स्वयं को विशेष पार्टधारी समझ साधारणता को समाप्त करने वाले परम व श्रेष्ठ भव

    जैसे बाप परम आत्मा है, वैसे विशेष पार्ट बजाने वाले बच्चे भी हर बात में परम यानी श्रेष्ठ हैं।

    सिर्फ चलते-फिरते, खाते-पीते विशेष पार्टधारी समझकर ड्रामा की स्टेज पर पार्ट बजाओ।

    हर समय अपने कर्म अर्थात् पार्ट पर अटेन्शन रहे।

    विशेष पार्टधारी कभी अलबेले नहीं बन सकते।

    यदि हीरो एक्टर साधारण एक्ट करें तो सब हंसेंगे इसलिए हर कदम, हर संकल्प हर समय विशेष हो, साधारण नहीं।

    02.02.2022

    नॉलेज की लाइट और माइट द्वारा सोलकान्सेस रहने वाले स्मृति स्वरूप भव

    आपका अनादि रूप निराकार ज्योति स्वरूप आत्मा है और आदि स्वरूप है देव आत्मा।

    दोनों स्वरूप सदा स्मृति में तब रहेंगे जब नॉलेज की लाइट-माइट के आधार से सोलकान्सेस स्थिति में रहने का अभ्यास होगा।

    ब्राह्मण बनना अर्थात् नॉलेज की लाइट-माइट के स्मृति स्वरूप बनना।

    जो स्मृति स्वरूप हैं, वह स्वयं भी सन्तुष्ट रहते और दूसरों को भी सन्तुष्ट करते हैं।

    01.02.2022

    पावरफुल ब्रेक द्वारा सेकण्ड में व्यक्त भाव से परे होने वाले अव्यक्त फरिश्ता व अशरीरी भव

    चारों ओर आवाज का वायुमण्डल हो लेकिन आप एक सेकण्ड में फुलस्टॉप लगाकर व्यक्त भाव से परे हो जाओ, एकदम ब्रेक लग जाए तब कहेंगे अव्यक्त फरिश्ता वा अशरीरी।

    अभी इस अभ्यास की बहुत आवश्यकता है क्योंकि अचानक प्रकृति की आपदायें आनी हैं, उस समय बुद्धि और कहाँ भी नहीं जाये, बस बाप और मैं, बुद्धि को जहाँ लगाने चाहें वहाँ लग जाए।

    इसके लिए समाने और समेटने की शक्ति चाहिए, तब उड़ती कला में जा सकेंगे।

    31.01.2022

    संकल्प रूपी बीज द्वारा वाणी और कर्म में सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव

    बुद्धि में जो संकल्प आते हैं, वह संकल्प हैं बीज।

    वाचा और कर्मणा बीज का विस्तार है।

    अगर संकल्प अर्थात् बीज को त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर चेक करो, शक्तिशाली बनाओ तो वाणी और कर्म में स्वत: ही सहज सफलता है ही।

    यदि बीज शक्तिशाली नहीं होता तो वाणी और कर्म में भी सिद्धि की शक्ति नहीं रहती।

    जरूर चैतन्य में सिद्धि स्वरूप बने हो तब तो जड़ चित्रों द्वारा भी और आत्मायें सिद्धि प्राप्त करती हैं।

    30.01.2022

    पुरूषार्थ की यथार्थ विधि द्वारा सदा आगे बढ़ने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव

    पुरूषार्थ की यथार्थ विधि है - अनेक मेरे को परिवर्तन कर एक “मेरा बाबा'' - इस स्मृति में रहना और कुछ भी भूल जाए लेकिन यह बात कभी नहीं भूले कि “मेरा बाबा''।

    मेरे को याद नहीं करना पड़ता, उसकी याद स्वत: आती है।

    “मेरा बाबा'' दिल से कहते हो तो योग शक्तिशाली हो जाता है।

    तो इस सहज विधि से सदा आगे बढ़ते हुए सिद्धि स्वरूप बनो।

    29.01.2022

    शक्तिशाली याद द्वारा परिवर्तन, खुशी और हल्के पन की अनुभूति करने वाले स्मृति सो समर्थ स्वरूप भव

    शक्तिशाली याद एक समय पर डबल अनुभव कराती है।

    एक तरफ याद अग्नि बन भस्म करने का काम करती है, परिवर्तन करने का काम करती है और दूसरे तरफ खुशी व हल्के पन का अनुभव कराती है।

    ऐसे विधिपूर्वक शक्तिशाली याद को ही यथार्थ याद कहा जाता है।

    ऐसी यथार्थ याद में रहने वाले स्मृति स्वरूप बच्चे ही समर्थ हैं।

    यह स्मृति सो समर्थी ही नम्बरवन प्राइज का अधिकारी बना देती है।

    28.01.2022

    27.01.2022

    अपने स्नेह के शीतल स्वरूप द्वारा विकराल ज्वाला रूप को भी परिवर्तन करने वाले स्नेहीमूर्त भव

    स्नेह के रिटर्न में वरदाता बाप बच्चों को यही वरदान देते हैं कि “सदा हर समय, हर एक आत्मा से, हर परिस्थिति में स्नेही मूर्त भव।''

    कभी भी अपनी स्नेही मूर्त, स्नेह की सीरत, स्नेही व्यवहार, स्नेह के सम्पर्क-सम्बन्ध को छोड़ना, भूलना मत।

    चाहे कोई व्यक्ति, चाहे प्रकृति, चाहे माया कैसा भी विकराल रूप, ज्वाला रूप धारण कर सामने आये लेकिन उसे सदा स्नेह की शीतलता द्वारा परिवर्तन करते रहना।

    स्नेह की दृष्टि, वृत्ति और कृति द्वारा स्नेही सृष्टि बनाना।

    26.01.2022

    मेरे को तेरे में परिवर्तन कर सर्व आकर्षण मुक्त बनने वाले डबल लाइट भव

    लौकिक सम्बन्धों में सेवा करते हुए सदा यही स्मृति रहे कि ये मेरे नहीं हैं, सभी बाप के बच्चे हैं।

    बाप ने इनकी सेवा अर्थ हमें निमित्त बनाया है।

    घर में नहीं रहते लेकिन सेवा-स्थान पर रहते हैं।

    मेरा सब तेरा हो गया।

    शरीर भी मेरा नहीं।

    मेरे में ही आकर्षण होती है।

    जब मेरा समाप्त हो जाता है तब मन बुद्धि को कोई भी अपनी तरफ खींच नहीं सकता।

    ब्राह्मण जीवन में मेरे को तेरे में बदलने वाले ही डबल लाइट रह सकते हैं।

    25.01.2022

    बालक सो मालिक की सीढ़ी चढ़ने और उतरने वाले बेफिक्र, डबल लाइट भव

    सदा यह स्मृति रहे कि मालिक के साथ बालक भी हैं और बालक के साथ मालिक भी हैं।

    बालक बनने से सदा बेफिक्र, डबल लाइट रहेंगे और मालिक अनुभव करने से मालिकपन का रूहानी नशा रहेगा।

    राय देने के समय मालिक और जब मैजारिटी फाइनल करते हैं तो उस समय बालक, यह बालक और मालिक बनने की भी एक सीढ़ी है। यह सीढ़ी कभी चढ़ो, कभी उतरो, कभी बालक बन जाओ, कभी मालिक बन जाओ तो किसी भी प्रकार का बोझ नहीं रहेगा।

    24.01.2022

    कर्म करते हुए न्यारी और प्यारी अवस्था में रह, हल्के पन की अनुभूति करने वाले कर्मातीत भव

    कर्मातीत अर्थात् न्यारा और प्यारा।

    कर्म किया और करने के बाद ऐसा अनुभव हो जैसे कुछ किया ही नहीं, कराने वाले ने करा लिया।

    ऐसी स्थिति का अनुभव करने से सदा हल्कापन रहेगा।

    कर्म करते तन का भी हल्कापन, मन की स्थिति में भी हल्कापन, जितना ही कार्य बढ़ता जाए उतना हल्कापन भी बढ़ता जाए।

    कर्म अपनी तरफ आकर्षित न करे, मालिक होकर कर्मेन्द्रियों से कर्म कराना और संकल्प में भी हल्के-पन का अनु-भव करना - यही कर्मातीत बनना है।

     

    23.01.2022

    अव्यक्त पालना द्वारा शक्तिशाली बन लास्ट सो फास्ट जाने वाले फर्स्ट नम्बर के अधिकारी भव

    अव्यक्त पार्ट में आने वाली आत्माओं को पुरूषार्थ में तीव्रगति का भाग्य सहज मिला हुआ है।

    यह अव्यक्त पालना सहज ही शक्तिशाली बनाने वाली है इसलिए जो जितना आगे बढ़ना चाहे बढ़ सकते हैं।

    इस समय लास्ट सो फास्ट और फास्ट सो फर्स्ट का वरदान प्राप्त है।

    तो इस वरदान को कार्य में लगाओ अर्थात् समय प्रमाण वरदान को स्वरूप में लाओ।

    जो मिला है उसे यूज़ करो तो फर्स्ट नम्बर में आने का अधिकार प्राप्त हो जायेगा।

    22.01.2022

    चारों ओर की हलचल के समय अव्यक्त स्थिति वा अशरीरी बनने के अभ्यास द्वारा विजयी भव

    लास्ट समय में चारों ओर व्यक्तियों का, प्रकृति का हलचल और आवाज होगा।

    चिल्लाने का, हिलाने का वायुमण्डल होगा। ऐसे समय पर सेकण्ड में अव्यक्त फरिश्ता सो निराकारी अशरीरी आत्मा हूँ - यह अभ्यास ही विजयी बनायेगा इसलिए बहुत समय का अभ्यास हो कि मालिक बन जब चाहें मुख द्वारा साज़ बजायें, चाहें तो कानों द्वारा सुनें, अगर नहीं चाहें तो सेकण्ड में स्टॉप - यही अभ्यास सिमरणी अर्थात् विजय माला में ले आयेगा।

    21.01.2022

    सर्व आत्माओं के अशुभ भाव और भावना का परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक भव

    जैसे गुलाब का पुष्प बदबू की खाद से खुशबू धारण कर खुशबूदार गुलाब बन जाता है।

    ऐसे आप विश्व परिवर्तक श्रेष्ठ आत्मायें अशुभ, व्यर्थ, साधारण भावना और भाव को श्रेष्ठता में, अशुभ भाव आर भावना को शुभ भाव और भावना में परिवर्तन करो, तब ब्रह्मा बाप समान अव्यक्त फरिश्ता बनने के लक्षण सहज और स्वत: आयेंगे।

    इसी से माला का दाना, दाने के समीप आयेगा।

    20.01.2022

    विपरीत भावनाओं को समाप्त कर अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सद्भावना सम्पन्न भव

    जीवन में उड़ती कला वा गिरती कला का आधार दो बातें हैं - भावना और भाव।

    सर्व के प्रति कल्याण की भावना, स्नेह-सहयोग देने की भावना, हिम्मत-उल्लास बढ़ाने की भावना, आत्मिक स्वरूप की भावना वा अपने पन की भावना ही सद्भावना है, ऐसी भावना वाले ही अव्यक्त स्थिति में स्थित हो सकते हैं।

    अगर इनके विपरीत भावना है तो व्यक्त भाव अपनी तरफ आकर्षित करता है।

    किसी भी विघ्न का मूल कारण यह विपरीत भावनायें हैं।

    19.01.2022

    व्यक्त भाव की आकर्षण से परे अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सर्व बन्धनमुक्त भव

    प्रवृत्ति में रहते बन्धनमुक्त बनने के लिए संकल्प से भी किसी सम्बन्ध में, अपनी देह में और पदार्थो में फंसना नहीं।

    संकल्प में भी कोई बंधन आकर्षित न करे क्योंकि संकल्प में आयेगा तो संकल्प के बाद फिर कर्म में भी आ जायेगा इसलिए व्यक्त भाव में आते भी, व्यक्त भाव की आकर्षण में नहीं आना, तब ही न्यारी और प्यारी अव्यक्त स्थिति का अनुभव कर सकेंगे।

    18.01.2022

    भुजाओं में समाने और भुजायें बन सेवा करने वाले ब्रह्मा बाप के स्नेही भव

    जो बच्चे बाप स्नेही हैं वह सदा ब्रह्मा बाप की भुजाओं में समाये रहते हैं।

    यह ब्रह्मा बाप की भुजायें ही आप बच्चों की सेफ्टी का साधन हैं।

    जो प्यारे, स्नेही होते हैं वो सदा भुजाओं में होते हैं।

    तो सेवा में बापदादा की भुजायें हो और रहते हो बाप की भुजाओं में।

    इन दोनों दृश्यों का अनुभव करो - कभी भुजाओं में समा जाओ और कभी भुजायें बनकर सेवा करो।

    नशा रहे कि हम भगवान के राइट हैण्ड हैं।

    17.01.2022

    ब्रह्मा बाप के संस्कारों को स्वयं में धारण करने वाले स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक भव

    जैसे ब्रह्मा बाप ने जो अपने संस्कार बनाये, वह सभी बच्चों को अन्त समय में याद दिलाये - निराकारी, निर्विकारी और निरंहकारी - तो यह ब्रह्मा बाप के संस्कार ही ब्राह्मणों के संस्कार नेचुरल हों।

    सदा इन्हीं श्रेष्ठ संस्कारों को सामने रखो।

    सारे दिन में हर कर्म के समय चेक करो कि तीनों ही संस्कार इमर्ज रूप में हैं।

    इन्हीं संस्कारों को धारण करने से स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक बन जायेंगे।

    16.01.2022

    ज्ञान के साथ-साथ गुणों को इमर्ज कर नम्बरवन बनने वाले सर्वगुण सम्पन्न भव


    वर्तमान समय आपस में विशेष कर्म द्वारा गुण दाता बनने की आवश्यकता है, इसलिए ज्ञान के साथ-साथ गुणों को इमर्ज करो।

    यही संकल्प करो कि मुझे सदा गुण मूर्त बन सबको गुण मूर्त बनाने का विशेष कर्तव्य करना ही है तो व्यर्थ देखने, सुनने वा करने की फुर्सत ही नहीं रहेगी।

    दूसरों को देखने के बजाए ब्रह्मा बाप को फालो करते हुए हर सेकण्ड गुणों का दान करते चलो तो सर्वगुण सम्पन्न बनने और बनाने का एक्जैम्पल बन नम्बरवन हो जायेंगे।

    15.01.2022

    दिव्य गुणों रूपी प्रभू प्रसाद खाने और खिलाने वाले संगमयुगी फरिश्ता सो देवता भव

    दिव्य गुण सबसे श्रेष्ठ प्रभू प्रसाद है।

    इस प्रसाद को खूब बांटों, जैसे एक दो में स्नेह की निशानी स्थूल टोली खिलाते हो, ऐसे ये गुणों की टोली खिलाओ।

    जिस आत्मा को जिस शक्ति की आवश्यकता है उसे अपनी मन्सा अर्थात् शुद्ध वृत्ति, वायब्रेशन द्वारा शक्तियों का दान दो और कर्म द्वारा गुण मूर्त बन, गुण धारण करने में सहयोग दो।

    तो इसी विधि से संगमयुग का जो लक्ष्य है “फरिश्ता सो देवता'' यह सहज सर्व में प्रत्यक्ष दिखाई देगा।

     

    14.01.2022

    आकारी और निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा हलचल में भी अचल रहने वाले बाप समान भव

    जैसे साकार में रहना नेचुरल हो गया है, ऐसे ही मैं आकारी फरिश्ता हूँ और निराकारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ - यह दोनों स्मृतियां नेचुरल हो क्योंकि शिव बाप है निराकारी और ब्रह्मा बाप है आकारी।

    अगर दोनों से प्यार है तो समान बनो।

    साकार में रहते अभ्यास करो - अभी-अभी आकारी और अभी-अभी निराकारी।

    तो यह अभ्यास ही हलचल में अचल बना देगा।

    13.01.2022

    अपने श्रेष्ठ कर्म रूपी दर्पण द्वारा ब्रह्मा बाप के कर्म दिखलाने वाले बाप समान भव

    एक-एक ब्राह्मण आत्मा, श्रेष्ठ आत्मा हर कर्म में ब्रह्मा बाप के कर्म का दर्पण हो।

    ब्रह्मा बाप के कर्म आपके कर्म के दर्पण में दिखाई दें।

    जो बच्चे इतना अटेन्शन रखकर हर कर्म करते हैं उनका बोलना, चलना, उठना, बैठना सब ब्रह्मा बाप के समान होगा।

    हर कर्म वरदान योग्य होगा, मुख से सदैव वरदान निकलते रहेंगे।

    फिर साधारण कर्म में भी विशेषता दिखाई देगी।

    तो यह सर्टीफिकेट लो तब कहेंगे बाप समान।

    12.01.2022

    मंजिल को सामने रख ब्रह्मा बाप को फालो करते हुए फर्स्ट नम्बर लेने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव

    तीव्र पुरुषार्थी के सामने सदा मंजिल होती है।

    वे कभी यहाँ वहाँ नहीं देखते।

    फर्स्ट नम्बर में आने वाली आत्मायें व्यर्थ को देखते हुए भी नहीं देखती, व्यर्थ बातें सुनते हुए भी नहीं सुनती।

    वे मंजिल को सामने रख ब्रह्मा बाप को फालो करती हैं।

    जैसे ब्रह्मा बाप ने अपने को करनहार समझकर कर्म किया, कभी करावनहार नहीं समझा, इसलिए जिम्मेवारी सम्भालते भी सदा हल्के रहे।

    ऐसे फालो फादर करो।

    11.01.2022

    सदा हर संकल्प और कर्म में ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले समीप और समान भव

    जैसे ब्रह्मा बाप ने दृढ़ संकल्प से हर कार्य में सफलता प्राप्त की, एक बाप दूसरा न कोई - यह प्रैक्टिकल में कर्म करके दिखाया।

    कभी दिलशिकस्त नहीं बनें, सदा नथिंगन्यु के पाठ से विजयी रहे, हिमालय जैसी बड़ी बात को भी पहाड़ से रूई बनाए रास्ता निकाला, कभी घबराये नहीं, ऐसे सदा बड़ी दिल रखो, दिलखुश रहो।

    हर कदम में ब्रह्मा बाप को फालो करो तो समीप और समान बन जायेंगे।

    10.01.2022

    ब्रह्मा बाप के प्यार का प्रैक्टिकल सबूत देने वाले सपूत और समान भव

    यदि कहते हो कि ब्रह्मा बाप से हमारा बहुत प्यार है तो प्यार की निशानी है जिससे बाप का प्यार रहा उससे प्यार हो।

    जो भी कर्म करो, कर्म के पहले, बोल के पहले, संकल्प के पहले चेक करो कि यह ब्रह्मा बाप को प्रिय है?

    ब्रह्मा बाप की विशेषता विशेष यही रही - जो सोचा वह किया, जो कहा वह किया।

    आपोजीशन होते भी सदा अपनी पोजीशन पर सेट रहे, तो प्यार का प्रैक्टिकल सबूत देना अर्थात् फालो फादर कर सपूत और समान बनना।

    09.01.2022

    चलन और चेहरे द्वारा पुरूषोत्तम स्थिति का साक्षात्कार कराने वाले ब्रह्मा बाप समान भव

    जैसे ब्रह्मा बाप साधारण तन में होते भी सदा पुरूषोत्तम अनुभव होते थे।

    साधारण में पुरूषोत्तम की झलक देखी, ऐसे फालो फादर करो।

    कर्म भल साधारण हो लेकिन स्थिति महान हो।

    चेहरे पर श्रेष्ठ जीवन का प्रभाव हो।

    जैसे लौकिक रीति में कई बच्चों की चलन और चेहरा बाप समान होता है, यहाँ चेहरे की बात नहीं लेकिन चलन ही चित्र है।

    हर चलन से बाप का अनुभव हो, ब्रह्मा बाप समान पुरूषोत्तम स्थिति हो - तब कहेंगे बाप समान।

    08.01.2022

    रूहानियत द्वारा वृत्ति, दृष्टि, बोल और कर्म को रॉयल बनाने वाले ब्रह्मा बाप समान भव

    ब्रह्मा बाप के बोल, चाल, चेहरे और चलन में जो रायॅल्टी देखी - उसमें फालो करो।

    जैसे ब्रह्मा बाप ने कभी छोटी-छोटी बातों में अपनी बुद्धि वा समय नहीं दिया।

    उनके मुख से कभी साधारण बोल नहीं निकले, हर बोल युक्तियुक्त अर्थात् व्यर्थ भाव से परे अव्यक्त भाव और भावना वाले रहे।

    उनकी वृत्ति हर आत्मा प्रति सदा शुभ भावना, शुभ कामना वाली रही, दृष्टि से सबको फरिश्ते रूप में देखा।

    कर्म से सदा सुख दिया और सुख लिया।

    ऐसे फालो करो तब कहेंगे ब्रह्मा बाप समान।

    07.01.2022

    लाइट बन ज्ञान योग की शक्तियों को प्रयोग में लाने वाले प्रयोगी आत्मा भव

    ज्ञानी-योगी आत्मा तो बने हो अभी ज्ञान, योग की शक्ति को प्रयोग में लाने वाले प्रयोगी आत्मा बनो।

    जैसे साइन्स के साधनों का प्रयोग लाइट द्वारा होता है।

    ऐसे साइलेन्स की शक्ति का आधार भी लाइट है।

    अविनाशी परमात्म लाइट, आत्मिक लाइट और साथ-साथ प्रैक्टिकल स्थिति भी लाइट।

    तो जब कोई प्रयोग करना चाहते हो तो चेक करो लाइट हैं या नहीं?

    अगर स्थिति और स्वरूप डबल लाइट है तो प्रयोग की सफलता सहज होगी।

     

    06.01.2022

    बिन्दू रूप में स्थित रह उड़ती कला में उड़ने वाले डबल लाइट भव

    सदा स्मृति में रखो कि हम बाप के नयनों के सितारे हैं, नयनों में सितारा अर्थात् बिन्दू ही समा सकता है।

    आंखों में देखने की विशेषता भी बिन्दू की है।

    तो बिन्दू रूप में रहना - यही उड़ती कला में उड़ने का साधन है।

    बिन्दू बन हर कर्म करो तो लाइट रहेंगे।

    कोई भी बोझ उठाने की आदत न हो।

    मेरा के बजाए तेरा कहो तो डबल लाइट बन जायेंगे।

    स्व उन्नति वा विश्व सेवा के कार्य का भी बोझ अनुभव नहीं होगा।

    05.01.2022

    ट्रस्टी पन की स्मृति से निमित्त समझ हर कार्य करने वाले डबल लाइट भव

    निमित्तपन का भाव बोझ को सहज खत्म कर देता है।

    मेरी जिम्मेवारी है, मेरे को ही सम्भालना है, मेरे को ही सोचना है....तो बोझ होता है।

    जिम्मेवारी बाप की है और बाप ने ट्रस्टी अर्थात् निमित्त बनाया है इस स्मृति से डबल लाइट बन उड़ती कला का अनुभव करते रहो।

    जहाँ मेरा है वहाँ बोझ है इसलिए कभी किसी भी कार्य में जब बोझ महसूस हो तो चेक करो कि कहीं गलती से तेरे के बजाए मेरा तो नहीं कहते।

    04.01.2022

    डबल लाइट स्थिति द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव

    अभी चढ़ती कला का समय समाप्त हुआ, अभी उड़ती कला का समय है।

    उड़ती कला की निशानी है डबल लाइट।

    थोड़ा भी बोझ होगा तो नीचे ले आयेगा।

    चाहे अपने संस्कारों का बोझ हो, वायुमण्डल का हो, किसी आत्मा के सम्बन्ध-सम्पर्क का हो, कोई भी बोझ हलचल में लायेगा इसलिए कहीं भी लगाव न हो, जरा भी कोई आकर्षण आकर्षित न करे।

    जब ऐसे आकर्षण मुक्त, डबल लाइट बनो तब सम्पूर्ण बन सकेंगे।

    03.01.2022

    सब कुछ बाप हवाले कर डबल लाइट रहने वाले बाप समान न्यारे-प्यारे भव
    डबल लाइट का अर्थ है सब कुछ बाप हवाले करना।

    तन भी मेरा नहीं।

    ये तन सेवा अर्थ बाप ने दिया है।

    आपका तो वायदा है कि तन-मन-धन सब तेरा।

    जब तन ही अपना नहीं तो बाकी क्या रहा।

    तो सदा कमल पुष्प का दृष्टान्त स्मृति में रहे कि मैं कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा हूँ।

    ऐसे न्यारे रहने वालों को परमात्म प्यार का अधिकार मिल जाता है।

    02.01.2022

    कम समय में सम्पूर्णता की श्रेष्ठ मंजिल को प्राप्त करने वाले डबल लाइट भव

    डबल लाइट स्थिति तीव्रगति के पुरूषार्थ की निशानी है, उसे किसी भी प्रकार का बोझ अनुभव होगा।

    चाहे प्रकृति द्वारा या व्यक्तियों द्वारा कोई भी परिस्थिति आये लेकिन हर परिस्थिति स्व-स्थिति के आगे कुछ भी अनुभव नहीं होगी।

     

    डबल लाइट अर्थात् ऊंचा रहने से किसी भी प्रकार का प्रभाव, प्रभावित नहीं कर सकता।

    नीचे की बातों से, नीचे के वायुमण्डल से ऊपर रहने से कम समय में सम्पूर्ण बनने की श्रेष्ठ मंजिल को प्राप्त कर लेंगे।

    01.01.2022

    एक बाप में सारे संसार की अनुभूति करते हुए निरन्तर एक की याद में रहने वाले सहज योगी भव

    सहजयोग का अर्थ ही है - एक को याद करना। एक बाप दूसरा न कोई।

    तन-मन-धन सब तेरा, मेरा नहीं।

    ऐसे ट्रस्टी बन डबल लाइट रहने वाले ही सहजयोगी हैं।

    सहजयोगी बनने की सहज विधि है - एक को याद करना, एक में सब कुछ अनुभव करना।

    बाप ही संसार है तो याद सहज हो गई।

    आधाकल्प मेहनत की अभी बाप मेहनत से छुड़ाते हैं।

    लेकिन यदि फिर भी मेहनत करनी पड़ती है तो उसका कारण है अपनी कमजोरी।

    31.12.2021

    श्रेष्ठ मत के आधार पर मायावी संगदोष से परे रहने वाले शक्ति स्वरूप भव

    बच्चों की एक कम्पलेन रहती है कि सम्बन्धी नहीं सुनते, संग अच्छा नहीं है, इस कारण शक्तिशाली नहीं बन सकते।

    लेकिन श्रेष्ठ मत के आधार पर ज्ञान स्वरूप, शक्ति स्वरूप के वरदानी बन अपनी स्थिति को अचल बनाओ।

    साक्षी होकर हर एक का पार्ट देखो।

    अपने सतोगुणी पार्ट में स्थित रहो।

    सदा बाप के संग में रहो तो तमोगुणी आत्मा के संग के रंग का प्रभाव पड़ नहीं सकता।

    30.12.2021

    स्व-स्थिति द्वारा सर्व परिस्थितियों का सामना करने वाले अव्यक्त स्थिति के अभ्यासी भव

    जब अव्यक्त स्थिति के अभ्यास की आदत बन जायेगी तब स्व स्थिति द्वारा हर परिस्थिति का सामना कर सकेंगे।

    और यह आदत अदालत में जाने से बचा देगी इसलिए इस अभ्यास को जब नेचरल और नेचर बनाओ तब नेचरल कैलेमिटीज हो क्योंकि जब सामना करने वाले स्व स्थिति से हर परिस्थिति को पार करने की शक्ति धारण कर लेंगे तब पर्दा खुलेगा।

    इसके लिए पुरानी आदतों से, पुराने संस्कारों से, पुरानी बातों से...पूरा वैराग्य चाहिए।

    29.12.2021

    रूहाब और रहम के गुण द्वारा विश्व नव निर्माण करने वाले विश्व कल्याणकारी भव

     

    विश्व कल्याणकारी बनने के लिए मुख्य दो धारणायें आवश्यक हैं एक ईश्वरीय रूहाब और दूसरा रहम।

    अगर रूहाब और रहम दोनों साथ-साथ और समान हैं तो रूहानियत की स्टेज बन जाती है।

    तो जब भी कोई कर्तव्य करते हो वा मुख से शब्द वर्णन करते हो तो चेक करो कि रहम और रूहाब दोनों समान रूप में हैं?

    शक्तियों के चित्रों में इन दोनों गुणों की समानता दिखाते हैं, इसी के आधार पर विश्व नव-निर्माण के निमित्त बन सकते हो।

     

    28.12.2021

    साइलेन्स की शक्ति द्वारा अपने रजिस्टर को साफ करने वाले लोकप्रिय, प्रभू प्रिय भव

    जैसे साइन्स ने ऐसी इन्वेन्शन की है जो लिखा हुआ सब मिट जाए, मालूम न पड़े। ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से अपने रजिस्टर को रोज़ साफ करो तो प्रभू प्रिय वा दैवी लोक प्रिय बन जायेंगे।

    सच्चाई सफाई को सभी पसन्द करते हैं।

    इसलिए एक दिन के किये हुए व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ कर्म की दूसरे दिन लीक भी न रहे, बीती को बीती कर फुलस्टाप लगा दो तो रजिस्टर साफ रहेगा और साहेब राज़ी हो जायेगा।

    27.12.2021

    साधारणता द्वारा महानता को प्रसिद्ध करने वाले सिम्पल और सैम्पुल भव

    जैसे कोई सिम्पल चीज़ अगर स्वच्छ होती है तो अपने तरफ आकर्षित जरूर करती है।

    ऐसे मन्सा के संकल्पों में, सम्बन्ध में, व्यवहार में, रहन सहन में जो सिम्पल और स्वच्छ रहते हैं वह सैम्पल बन सर्व को अपनी तरफ स्वत: आकर्षित करते हैं।

    सिम्पल अर्थात् साधारण।

    साधारणता से ही महानता प्रसिद्ध होती है।

    जो साधारण अर्थात् सिम्पल नहीं वह प्राब्लम रूप बन जाते हैं।

    26.12.2021

    स्थूल और सूक्ष्म दोनों रीति से स्वयं को बिजी रखने वाले मायाजीत, विजयी भव

    स्वयं को सेवाधारी समझ अपनी रुची, उमंग से सेवा में बिजी रहो तो माया को चांस नहीं मिलेगा।

    जब संकल्प से, बुद्धि से, चाहे स्थूल कर्मणा से फ्री रहते हो तो माया चांस ले लेती है।

    लेकिन स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही रीति से खुशी-खुशी से सेवा में बिजी रहो तो खुशी के कारण माया सामना करने का साहस नहीं रख सकती, इसलिए स्वयं ही टीचर बन बुद्धि को बिजी रखने का डेली प्रोग्राम बनाओ तो मायाजीत, विजयी बन जायेंगे।

    25.12.2021

    इस पुरानी दुनिया को विदेश समझ इससे उपराम रहने वाले स्वदेशी भव

    जैसे कई लोग विदेश की चीज़ों को टच भी नहीं करते हैं, समझते हैं अपने देश की चीज़ का प्रयोग करें।

    ऐसे आप लोगों के लिए यह पुरानी दुनिया ही विदेश है, इससे उपराम रहो अर्थात् पुरानी दुनिया की जो चीज़े हैं, स्वभाव-संस्कार हैं उनकी तरफ जरा भी आकर्षित न हो।

    स्वदेशी बनो अर्थात् आत्मिक रूप में अपने ऊंचे देश परमधाम और इस ईश्वरीय परिवार के हिसाब से मधुबन देश के निवासी समझ, इसके नशे में रहो।

    24.12.2021

    श्रेष्ठ कर्म द्वारा सिमरण योग्य बनने वाले योगयुक्त, युक्तियुक्त भव

    आपका एक-एक कर्म जितना श्रेष्ठ होगा उतना ही श्रेष्ठ आत्माओं में सिमरण किये जायेंगे।

    भक्ति में नाम का सिमरण करते हैं, लेकिन यहाँ जो श्रेष्ठ आत्मायें हैं उनके गुणों और कर्मो को मिसाल बनाने के लिए सिमरण करते हैं।

    तो आप श्रेष्ठ कर्मो के आधार पर सिमरण योग्य बनते जायेंगे, इसके लिए योगयुक्त बनो।

    योगयुक्त बनने से हर संकल्प, शब्द वा कर्म युक्तियुक्त अवश्य होगा, उनसे अयुक्त कर्म वा संकल्प हो ही नहीं सकता - यह भी कनेक्शन है।

    23.12.2021

    मरजीवा स्थिति द्वारा हिम्मत और हुल्लास की अविनाशी स्टैम्प लगाने वाले प्राप्ति सम्पन्न भव

    जो प्राप्तियों से सम्पन्न होते हैं उनके हर चलन, नैन चैन से उमंग-उत्साह दिखाई देता है।

    लेकिन हिम्मत और हुल्लास की अविनाशी स्टैम्प लगाने के लिए अपने पास्ट के वा ईश्वरीय मर्यादाओं के विपरीत जो संस्कार, स्वभाव, संकल्प वा कर्म होते हैं उनसे मरजीवा बनो।

    प्रतिज्ञा रूपी स्वीच को सेट कर प्रैक्टिकल में प्रतिज्ञा प्रमाण चलते रहो।

    हिम्मत के साथ हुल्लास हो तो प्राप्ति की झलक दूर से ही दिखाई देगी।

    22.12.2021

    मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी की सीट पर सेट रहने वाले सहज और सदा के कर्म-योगी भव जैसे किसी मशीनरी को सेट किया जाता है तो एक बार सेट करने से फिर आटोमेटिकली चलती रहती है, इसी रीति से मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी की स्टेज पर स्वयं को एक बार सेट कर दो तो कभी कमजोरी के शब्द नहीं निकलेंगे।

    हर संकल्प, शब्द वा कर्म उसी सेटिंग प्रमाण आटोमेटिक चलते रहेंगे।

    यही सेटिंग सहज और सदा के लिए कर्मयोगी, निरन्तर निर्विकल्प समाधि में रहने वाला सहजयोगी बना देगी।

    21.12.2021

    संगमयुग पर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने वाले डबल प्राप्ति के अधिकारी भव

    जो बच्चे संगमयुग पर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर लेते हैं उन्हें सदा शान्ति और खुशी की डबल प्राप्ति का नशा रहता है क्योंकि अतीन्द्रिय सुख में यह दोनों प्राप्तियां समाई हुई हैं।

    अभी आप बच्चों को जो बाप और वर्से की प्राप्ति है यह सारे कल्प में नहीं हो सकती।

    इस समय की प्राप्ति अतीन्द्रिय सुख और नॉलेज भी फिर कभी नहीं मिल सकती।

    तो इस डबल प्राप्ति के अधिकारी बनो।

    20.12.2021

    निर्विकारी वा फरिश्ते स्वरूप की स्थिति का अनुभव करने वाले आत्म-अभिमानी भव

    जो बच्चे आत्म-अभिमानी बनते हैं वह सहज ही निर्विकारी बन जाते हैं।

    आत्म-अभिमानी स्थिति द्वारा मन्सा में भी निर्विकारीपन की स्टेज का अनुभव होता है।

    ऐसे निर्विकारी, जिन्हें किसी भी प्रकार की इम्प्युरिटी वा 5 तत्वों की आकर्षण आकर्षित नहीं करती - वही फरिश्ता कहलाते हैं।

    इसके लिए साकार में रहते हुए अपनी निराकारी आत्म-अभिमानी स्थिति में स्थित रहो।

    19.12.2021

    समय और संकल्प सहित अपने सर्व खजानों को विल करने वाले मोहजीत भव

    जैसे बच्चे को सब कुछ विल किया जाता है, ऐसे आप लोग भी बाप को अपना वारिस बनाकर सब कुछ विल कर दो तो विल पावर आ जायेगी।

    इस विल पावर से मोह स्वत: नष्ट हो जायेगा।

    जैसे साकार बाप ने पूरा ही अपने को विल किया वैसे आप लोगों की जो स्मृति है, समय और संकल्पों का खजाना है उसे विल करो अर्थात् श्रीमत प्रमाण सेवाओं में लगाओ तो मोहजीत, बन्धनमुक्त बन जायेंगे।

    18.12.2021

    तपस्या द्वारा अपने विकर्मो वा तमोगुण के संस्कारों को भस्म करने वाले तपस्वीमूर्त भव

    जैसे अभी ईश्वरीय पालना का कर्तव्य चल रहा है ऐसे लास्ट में तपस्या द्वारा अपने विकर्मो और हर आत्मा के तमोगुणी संस्कार वा प्रकृति के तमोगुण को भस्म करने का कर्तव्य चलना है।

    इसके लिए सदा एकरस स्थिति के आसन पर स्थित हो अपने तपस्वी रूप को प्रत्यक्ष करो।

    आपकी हर कर्मेन्द्रिय से देह-अभिमान का त्याग और आत्म-अभिमानी बनने की तपस्या प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे।

    17.12.2021

    त्याग, तपस्या द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सर्व के कल्याणकारी भव

    जैसे स्थूल अग्नि दूर से ही अपना अनुभव कराती है, ऐसे आपकी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही सर्व को आकर्षित करे।

    सेवाधारी के साथ-साथ त्यागी, तपस्वीमूर्त बनो तब सेवा का प्रत्यक्षफल दिखाई देगा।

    त्यागी अर्थात् कोई भी पुराने संकल्प वा संस्कार दिखाई न दें।

    तपस्वी अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे।

    जो भी संकल्प उठे उसमें हर आत्मा का कल्याण समाया हुआ हो तब कहेंगे सर्व के कल्याणकारी।

    16.12.2021

    साकार बाप समान अपने हर कर्म को यादगार बनाने वाले आधारमूर्त और उद्धारमूर्त भव

    जैसे साकार बाप ने अपना हर कर्म यादगार बनाया ऐसे आप सभी का हर कर्म यादगार तब बनेगा जब स्वयं को आधारमूर्त और उद्धारमूर्त समझकर चलेंगे।

    जो अपने को विश्व परिवर्तन के आधारमूर्त समझते हो, उनका हर कर्म ऊंचा होता है और वृत्ति-दृष्टि में जब सर्व के कल्याण की भावना रहती है तो हर कर्म श्रेष्ठ हो जाता है।

    ऐसे श्रेष्ठ कर्म ही यादगार बनते हैं।

    15.12.2021

    पुराने संस्कार रूपी अस्थियों को सम्पूर्ण स्थिति के सागर में सामने वाले समान और सम्पूर्ण भव

    बाप समान वा सम्पूर्ण बनने के लिए सृष्टि की कयामत के पहले अपनी कमजोरियों और कमियों की कयामत करो।

    कोई भी उलझन का नाम निशान न रहे ऐसा अपने को उज्जवल बनाओ।

    जैसे जन्म परिवर्तन के बाद पुराने जन्म की बातें भूल जाती हैं ऐसे पुरानी बातों को, पुराने संस्कारों को भस्म करो, अस्थियों को भी सम्पूर्ण स्थिति के सागर में समा दो तब कहेंगे समान और सम्पूर्ण।

    14.12.2021

    कम्बाइन्ड रूप की सेवा द्वारा आत्माओं को समीप सम्बन्ध में लाने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव

    सिर्फ आवाज द्वारा सेवा करने से प्रजा बनती जा रही है लेकिन आवाज से परे स्थिति में स्थित हो फिर आवाज में आओ, अव्यक्त स्थिति और फिर आवाज - ऐसे कम्बाइन्ड रूप की सेवा वारिस बनायेगी।

    आवाज द्वारा प्रभावित हुई आत्मायें अनेक आवाज सुनने से आवागमन में आ जाती हैं लेकिन कम्बाइन्ड रूपधारी बन कम्बाइन्ड रूप की सेवा करो तो उन पर किसी भी रूप का प्रभाव पड़ नहीं सकता।

    13.12.2021

    बाप-दादा के साथ द्वारा माया को दूर से ही मूर्छित करने वाले मायाजीत, जगतजीत भव

    जैसे बाप के स्नेही बने हो ऐसे बाप को साथी बनाओ तो माया दूर से ही मूर्छित हो जायेगी।

    शुरू-शुरू का जो वायदा है तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूं, तुम्हीं से रूह को रिझाऊं...इसी वायदे प्रमाण सारी दिनचर्या में हर कार्य बाप के साथ करो तो माया डिस्टर्ब कर नहीं सकती, उसका डिस्ट्रक्शन हो जायेगा।

    तो साथी को सदा साथ रखो, साथ की शक्ति से वा मिलन में मगन रहने से मायाजीत, जगतजीत बन जायेंगे।

    12.12.2021

    अपने मस्तक द्वारा तीसरे नेत्र का साक्षात्कार कराने वाले सच्चे योगी भव

    यादगार में योगी के मस्तक पर तीसरा नेत्र दिखाते हैं।

    आप सच्चे योगी बच्चे भी अपने मस्तक द्वारा तीसरे नेत्र का साक्षात्कार कराने के लिए सदा बुद्धि द्वारा एक बाप के संग में रहो।

    एक बाप दूसरे हम, तीसरा न कोई, जब ऐसी स्थिति होगी तब तीसरे नेत्र का साक्षात्कार होगा।

    अगर बुद्धि में कोई तीसरा आ गया तो फिर तीसरा नेत्र बन्द हो जायेगा, इसलिए सदैव तीसरा नेत्र खुला रहे - इसके लिए याद रखना कि तीसरा न कोई।

    11.12.2021

    अन्तर स्वरूप में स्थित रह अपने वा बाप के गुप्त रूप को प्रत्यक्ष करने वाले सच्चे स्नेही भव

    जो बच्चे सदा अन्तर की स्थिति में अथवा अन्तर स्वरूप में स्थित रह अन्तर्मुखी रहते हैं, वे कभी किसी बात में लिप्त नहीं हो सकते।

    पुरानी दुनिया, सम्बन्ध, सम्पत्ति, पदार्थ जो अल्पकाल और दिखावा मात्र हैं उनसे धोखा नहीं खा सकते।

    अन्तर स्वरूप की स्थिति में रहने से स्वयं का शक्ति स्वरूप जो गुप्त है वह प्रत्यक्ष हो जाता है और इसी स्वरूप से बाप की प्रत्यक्षता होती है।

    तो ऐसा श्रेष्ठ कर्तव्य करने वाले ही सच्चे स्नेही हैं।

    10.12.2021

    सम्पूर्ण समर्पण की विधि द्वारा अपने पन का अधिकार समाप्त करने वाले समान साथी भव

    जो वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और साथ में राज्य करेंगे - इस वायदे को तभी निभा सकेंगे जब साथी के समान बनेंगे।

    समानता आयेगी समर्पणता से। जब सब कुछ समर्पण कर दिया तो अपना वा अन्य का अधिकार समाप्त हो जाता है।

    जब तक किसी का भी अधिकार है तो सर्व समर्पण में कमी है इसलिए समान नहीं बन सकते।

    तो साथ रहने, साथ उड़ने के लिए जल्दी-जल्दी समान बनो।

    09.12.2021

    सदा बिज़ी रहने की विधि द्वारा व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन को समाप्त करने वाले सम्पूर्ण कर्मातीत भव

    सम्पूर्ण कर्मातीत बनने में व्यर्थ संकल्पों के तूफान ही विघ्न डालते हैं।

    इस व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन को समाप्त करने के लिए अपने मन को हर समय बिज़ी रखो, समय की बुकिंग करने का तरीका सीखो।

    सारे दिन में मन को कहाँ-कहाँ बिजी रखना है - यह प्रोग्राम बनाओ।

    रोज़ अपने मन को 4 बातों में बिज़ी कर दो: 1-मिलन (रूहरिहान) 2-वर्णन (सर्विस) 3-मगन और 4-लगन।

    इससे समय सफल हो जायेगा और व्यर्थ की कम्पलेन खत्म हो जायेगी।

    08.12.2021

    प्रालब्ध की इच्छा को त्याग अच्छा पुरुषार्थ करने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव

    श्रेष्ठ पुरुषार्थी उन्हें कहा जाता है जो पुरुषार्थ की प्रालब्ध को भोगने की इच्छा नहीं रखते।

    जहाँ इच्छा है वहाँ स्वच्छता खत्म हो जाती है और सोचता (सोचने वाले) बन जाते हैं।

    जो यहाँ ही प्रालब्ध भोगने की इच्छा रखते हैं वह अपनी भविष्य कमाई जमा होने में कमी कर देते हैं इसलिए इच्छा के बजाए अच्छा शब्द याद रखो।

    श्रेष्ठ पुरुषार्थी सदा फ्लोलेस बनने का पुरुषार्थ करते हैं, किसी भी बात में फेल नहीं होते।

    07.12.2021

    स्व-स्थिति द्वारा सर्व परिस्थितियों को पार करने वाले निराकारी, अलंकारी भव

    जो अलंकारी हैं वे कभी देह-अहंकारी नहीं बन सकते।

    निराकारी और अलंकारी रहना - यही है मन्मनाभव, मध्याजीभव।

    जब ऐसी स्व-स्थिति में सदा स्थित रहते तो सर्व परिस्थितियों को सहज ही पार कर लेते, इससे अनेक पुराने स्वभाव समाप्त हो जाते हैं।

    स्व में आत्मा का भाव देखने से भाव-स्वभाव की बातें समाप्त हो जाती हैं और सामना करने की सर्व शक्तियां स्वयं में आ जाती हैं।

    06.12.2021

    बार-बार हार खाने के बजाए बलिहार जाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् विजयी भव

    स्वयं को सदा विजयी रत्न समझकर हर संकल्प और कर्म करो तो कभी भी हार हो नहीं सकती।

    मास्टर सर्वशक्तिमान् कभी हार नहीं खा सकते।

    यदि बार-बार हार होती है तो धर्मराज की मार खानी पड़ेगी और हार खाने वालों को भविष्य में हार बनाने पड़ेंगे, द्वापर से अनेक मूर्तियों को हार पहनाने पड़ेंगे इसलिए हार खाने के बजाए बलिहार हो जाओ, अपने सम्पूर्ण स्वरूप को धारण करने की प्रतिज्ञा करो तो विजयी बन जायेंगे।

    05.12.2021

    समाने और सामना करने की शक्ति द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले रूहानी सेवाधारी भव

    रूहानी सेवाधारियों को सेवा के सिवाए कुछ भी सूक्षता नहीं, वे मन्सा-वाचा-कर्मणा सर्विस से एक सेकण्ड भी रेस्ट नहीं लेते इसलिए बेस्ट बन जाते हैं।

    वे सेवाओं में सफलता प्राप्त करने के लिए सदा यही स्लोगन याद रखते कि समाना और सामना करना- यही हमारा निशाना है।

    वे अपने पुराने संस्कारों को समाते हैं और सामना माया से करते न कि दैवी परिवार से।

    ऐसे बच्चे जो नॉलेजफुल के साथ-साथ पावरफुल भी हैं उन्हें ही कहा जाता है रूहानी सेवाधारी।

    04.12.2021

    आत्मिक उन्नति के साधन द्वारा सर्व परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने वाले अकाल-मूर्त भव

    जैसे शरीर निर्वाह के लिए अनेक साधन अपनाते हो ऐसे आत्मिक उन्नति के भी साधन अपनाओ, इसके लिए सदा अकालमूर्त स्थिति में स्थित होने का अभ्यास करो।

    जो स्वयं को अकालमूर्त (आत्मा) समझकर चलते हैं वह अकाले मृत्यु से, अकाल से, सर्व समस्याओं से बच जाते हैं।

    मानसिक चिंतायें, मानसिक परिस्थितियों को हटाने के लिए सिर्फ अपने पुराने शरीर के भान को मिटाते जाओ।

    03.12.2021

    तड़फती हुई भिखारी, प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने वाले सर्व खजाने से सम्पन्न भव

    जैसे लहरों में लहराती व डूबती हुई आत्मा एक तिनके का सहारा ढूंढती है।

    ऐसे दु:ख की एक लहर आने दो फिर देखना अनेक सुख-शान्ति की भिखारी आत्मायें तड़फते हुए आपके सामने आयेंगी।

    ऐसी प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने के लिए अपने को अतीन्द्रिय सुख वा सर्व शक्तियों से, सर्व खजानों से भरपूर करो।

    सर्व खजाने इतने जमा हो जो अपनी स्थिति भी कायम रहे और अन्य आत्माओं को भी सम्पन्न बना सको।

    02.12.2021

    बालक और मालिकपन के बैलेन्स द्वारा युक्तियुक्त चलने वाले सफलतामूर्त भव

    जितना हो सके सर्विस के संबंध में बालकपन, अपने पुरुषार्थ की स्थिति में मालिकपन, सम्पर्क और सर्विस में बालकपन, याद की यात्रा और मंथन करने में मालिकपन, साथियों और संगठन में बालकपन और व्यक्तिगत में मालिकपन - इस बैलेन्स से चलना ही युक्तियुक्त चलना है।

    इससे सहज ही हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है, स्थिति एकरस रहती है और सहज ही सर्व के स्नेही बन जाते हैं।

    01.12.2021

    सर्व के गुण देखने वा सन्तुष्ट करने की उत्कण्ठा द्वारा सदा एकरस उत्साह में रहने वाले गुणमूर्त भव

    सदा एकरस उमंग-उत्साह में रहने के लिए जो भी संबंध में आते हैं उन्हें सन्तुष्ट करने की उत्कण्ठा हो।

    जिसको भी देखो उससे हर समय गुण उठाते रहो।

    सर्व के गुणों का बल मिलने से उत्साह सदाकाल के लिए रहेगा।

    उत्साह कम तब होता है जब औरों के भिन्न-भिन्न स्वरूप, भिन्न-भिन्न बातें देखते, सुनते हो।

    लेकिन गुण देखने की उत्कण्ठा हो तो एकरस उत्साह रहेगा और सर्व के गुण देखने से स्वयं भी गुणमूर्त बन जायेंगे।

    30.11.2021

    अपनी मूर्त से बाप और शिक्षक की सूरत को प्रत्यक्ष करने वाले अनुभवी मूर्त भव

    अपने असली पोजीशन में ठहरना - यही याद की यात्रा है, जो हूँ, जिसका हूँ - उसमें स्थित रहो, इसी असली स्वरूप के निश्चय और अनेक बार के विजय की स्मृति से सदा नशे की स्थिति के सागर में लहराते रहेंगे।

    जब सुख दाता के बच्चे हैं तो दु:ख की लहर आ कैसे सकती, सर्वशक्तिवान के बच्चे शक्तिहीन हो कैसे सकते!

    इसी पोजीशन के अनुभवों में रहो तो आपकी मूर्त से बाप वा शिक्षक की सूरत स्वत: प्रत्यक्ष होगी।

    29.11.2021

    याद के मंत्र द्वारा संकल्प और कर्म में अविनाशी सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव

    आप बच्चे आलमाइटी गवर्मेन्ट के मैसेन्जर हो इसलिए कोई से भी डिस्कस करने में अपना माइन्ड डिस्टर्व नहीं करना।

    याद का मन्त्र यूज़ करना।

    जैसे कोई वाणी से या अन्य किसी तरीके से वश नहीं होते हैं तो मन्त्र-जन्त्र करते हैं, आपके पास आत्मिक दृष्टि का नेत्र और मनमनाभव का मन्त्र है जिससे अपने संकल्पों को सिद्ध कर सिद्धि स्वरूप बन सकते हो।

    28.11.2021

    संगदोष से दूर रह सदा बाप की समीपता का भाग्य प्राप्त करने वाले पास विद आनर भव

    यदि बाप के समीप रहना पसन्द है तो कभी कोई भी संगदोष से दूर रहना।

    कई प्रकार के आकर्षण पेपर के रूप में आयेंगे लेकिन आकर्षित नहीं होना।

    संगदोष कई प्रकार का होता है, व्यर्थ संकल्पों वा माया की आकर्षण के संकल्पों का संग, सम्बन्धियों का संग, वाणी का संग, अन्नदोष का संग, कर्म का संग...इन सब संगदोषों से अपने को बचाने वाले ही पास विद आनर बनते हैं।

    27.11.2021

    सदा अपने पवित्र स्वरूप में स्थित रह गुण रूपी मोती चुगने वाले होलीहंस भव

    आप होली हसों का स्वरूप है पवित्र और कर्तव्य है सदैव गुणों रूपी मोती चुगना।

    अवगुण रूपी कंकड कभी भी बुद्धि में स्वीकार न हो।

    लेकिन इस कर्तव्य को पालन करने के लिए सदैव एक आज्ञा याद रहे कि न बुरा सोचना है, न बुरा सुनना है, न बुरा देखना है, न बुरा बोलना है.... जो इस आज्ञा को सदा स्मृति में रखते हैं वह सदा सागर के किनारे पर रहते हैं। हंसों का ठिकाना है ही सागर।

    26.11.2021

    कोमलता को कमाल में परिवर्तन कर माया जीत बनने वाले शक्ति स्वरूप भव

    शक्ति स्वरूप बनने के लिए कोमलता को कमाल में परिवर्तन करो।

    सिर्फ स्वयं के संस्कारों को परिवर्तन करने में कोमल बनो, कर्म में कभी कोमल नहीं बनना, इसमें शक्ति रूप बनना है।

    जो शक्ति रूप का कवच धारण कर लेते हैं उन्हें माया का कोई भी तीर लग नहीं सकता इसलिए आपके चेहरे, नयन-चैन से कोमलता के बजाए शक्ति रूप दिखाई दे तब मायाजीत बन पास विद आनर का सर्टीफिकेट ले सकेंगे।

    25.11.2021

    ईश्वरीय अथॉरिटी द्वारा संकल्प वा बुद्धि को आर्डर प्रमाण चलाने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान भव

    जैसे स्थूल हाथ पांव को बिल्कुल सहज रीति जहाँ चाहो वहाँ चलाते हो वा कर्म में लगाते हो वैसे संकल्प वा बुद्धि को जहाँ लगाने चाहो वहाँ लगा सको - इसे ही कहते हैं ईश्वरीय अथॉरिटी।

    जैसे वाणी में आना सहज है वैसे वाणी से परे जाना भी इतना ही सहज हो, इसी अभ्यास से साक्षात्कार मूर्त बनेंगे।

    तो अब इस अभ्यास को सहज और निरन्तर बनाओ तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिवान।

    24.11.2021

    सच्ची लगन के आधार पर और संग तोड़ एक संग जोड़ने वाले सम्पूर्ण वफादार भव

    सम्पूर्ण वफादार उन्हें कहा जाता है जिनके संकल्प वा स्वप्न में भी सिवाए बाप के और बाप के कर्तव्य वा बाप की महिमा के, बाप के ज्ञान के और कुछ भी दिखाई न दे।

    एक बाप दूसरा न कोई... बुद्धि की लगन सदा एक संग रहे तो अनेक संग का रंग लग नहीं सकता इसलिए पहला वायदा है और संग तोड़ एक संग जोड़ - इस वायदे को निभाना अर्थात् सम्पूर्ण वफादार बनना।

    23.11.2021

    स्थूल वा सूक्ष्म में हर फरमान को पालन करने वाले सम्पूर्ण फरमानबरदार भव

    स्थूल फरमान पालन करने की शक्ति उन्हीं बच्चों में आ सकती है जो सूक्ष्म फरमान पालन करते हैं।

    सूक्ष्म और मुख्य फरमान है निरन्तर याद में रहो वा मन-वचन-कर्म से पवित्र बनो।

    संकल्प में भी अपवित्रता व अशुद्धता न हो।

    यदि संकल्प में भी पुराने अशुद्ध संस्कार टच करते हैं तो सम्पूर्ण वैष्णव वा सम्पूर्ण पवित्र नहीं कहेंगे इसलिए कोई एक संकल्प भी फरमान के सिवाए न चले तब कहेंगे सम्पूर्ण फरमानबरदार।

    22.11.2021

    सदा फरमान के तिलक को धारण कर फर्स्ट प्राइज़ लेने वाले फरमानवरदार भव

    जिन बच्चों के मस्तक पर फरमानबरदारी की स्मृति का तिलक लगा हुआ है, एक संकल्प भी फरमान के बिना नहीं करते उन्हें फर्स्ट प्राइज़ प्राप्त होती है।

    जैसे सीता को लकीर के अन्दर बैठने का फरमान था, ऐसे हर कदम उठाते हुए, हर संकल्प करते हुए बाप के फरमान की लकीर के अन्दर रहो तो सदा सेफ रहेंगे।

    कोई भी प्रकार के रावण के संस्कार वार नहीं करेंगे और समय भी व्यर्थ नहीं जायेगा।

    21.11.2021

    अपने परिवर्तन द्वारा निरन्तर विजय की अनुभूति करने वाले सच्चे सेवाधारी भव

    जैसे निरन्तर योगी बने हो ऐसे निरन्तर विजयी बनो तो सच्चे सेवाधारी बन जायेंगे क्योंकि विजयी आत्मा, जब हर संकल्प, हर कदम में विजय का अनुभव करती है तो उनका यह परिवर्तन देख अनेक आत्माओं की सेवा स्वत: होती है।

    उनके नैन रूहानियत का अनुभव कराते हैं, चलन बाप के चरित्रों का साक्षात्कार कराती है, मस्तक से मस्तकमणि का साक्षात्कार होता है।

    ऐसे अपनी अव्यक्त सूरत से सेवा करने वाली विशेष आत्मा को ही सच्चा सेवाधारी कहा जाता है।

    20.11.2021

    अनुभव की विल पावर द्वारा माया की पावर का सामना करने वाले अनुभवीमूर्त भव

    सबसे पावरफुल स्टेज है अपना अनुभव।

    अनुभवी आत्मा अपने अनुभव की विल-पावर से माया की कोई भी पावर का, सभी बातों का, सर्व समस्याओं का सहज ही सामना कर सकती है और सभी आत्माओं को सन्तुष्ट भी कर सकती है।

    सामना करने की शक्ति से सर्व को सन्तुष्ट करने की शक्ति अनुभव के विल पावर से सहज प्राप्त होती है, इसलिए हर खजाने को अनुभव में लाकर अनुभवीमूर्त बनो।

    19.11.2021

    सर्व शक्तियों की सम्पत्ति से सम्पन्न बन दाता बनने वाले विधाता, वरदाता भव

    जो बच्चे सर्व शक्तियों के सम्पत्तिवान हैं - वही सम्पन्न और सम्पूर्ण स्थिति के समीपता का अनुभव करते हैं।

    उनमें कोई भी भक्तपन के वा भिखारीपन के संस्कार इमर्ज नहीं होते, बाप की मदद चाहिए, आशीर्वाद चाहिए, सहयोग चाहिए, शक्ति चाहिए - यह चाहिए शब्द दाता विधाता, वरदाता बच्चों के आगे शोभता ही नहीं।

    वे तो विश्व की हर आत्मा को कुछ न कुछ दान वा वरदान देने वाले होते हैं।

    18.11.2021

    त्याग और स्नेह की शक्ति द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले स्नेही सहयोगी भव

    जैसे शुरू में नॉलेज की शक्ति कम थी लेकिन त्याग और स्नेह के आधार पर सफलता मिली।

    बुद्धि में दिन रात बाबा और यज्ञ तरफ लगन रही, जिगर से निकलता था बाबा और यज्ञ।

    इसी स्नेह ने सभी को सहयोग में लाया।

    इसी शक्ति से केन्द्र बनें। साकार स्नेह से ही मन्मनाभव बनें, साकार स्नेह ने ही सहयोगी बनाया।

    अभी भी त्याग और स्नेह की शक्ति से घेराव डालो तो सफलता मिल जायेगी।

    17.11.2021

    नॉलेज की लाइट द्वारा पुरूषार्थ के मार्ग को सहज और स्पष्ट करने वाले फरिश्ता स्वरूप भव

    फरिश्तेपन की लाइफ में लाइट और माइट दोनों ही स्पष्ट दिखाई देते हैं।

    लेकिन लाइट और माइट रूप बनने के लिए मनन करने और सहन करने की शक्ति चाहिए।

    मन्सा के लिए मननशक्ति और वाचा, कर्मणा के लिए सहनशक्ति धारण करो फिर जो भी शब्द बोलेंगे, कर्म करेंगे वह उसी के प्रमाण होंगे।

    अगर यह दोनों शक्तियां हैं तो हर एक के लिए पुरूषार्थ का मार्ग सहज और स्पष्ट हो जायेगा।

    16.11.2021

    नम्बरवन बिजनेसमैन बन एक एक सेकण्ड वा संकल्प में कमाई जमा करने वाले पदमपति भव

    नम्बरवन बिजनेसमैन वह है जो स्वयं को बिजी रखने का तरीका जानता है।

    बिजनेसमैन अर्थात् जिसका एक संकल्प भी व्यर्थ न जाये, हर संकल्प में कमाई हो।

    जैसे वह बिजनेसमैन एक एक पैसे को कार्य में लगाकर पदमगुणा बना देते हैं, ऐसे आप भी एक एक सेकण्ड वा संकल्प कमाई करके दिखाओ तब पदमपति बनेंगे।

    इससे बुद्धि का भटकना बंद हो जायेगा और व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन भी समाप्त हो जायेगी।

    15.11.2021

    बापदादा के कर्तव्य को अपना निशाना बनाने वाले मास्टर मर्यादा पुरुषोत्तम भव

    कहा जाता है “अपनी घोट तो नशा चढ़े'' दूसरे की कमाई में कभी भी आंख नहीं जानी चाहिए।

    दूसरे के नशे को निशाना बनाने के बजाए बापदादा के गुण और कर्तव्य को निशाना बनाओ।

    बापदादा के साथ अधर्म विनाश और सतधर्म की स्थापना के कर्तव्य में मददगार बनो।

    अधर्म विनाश करने वाले अधर्म का कार्य वा दैवी मर्यादा को तोड़ने का कार्य कर नहीं सकते, वे मास्टर मर्यादा पुरुषोत्तम होते हैं।

    14.11.2021

    कैचिंग पावर द्वारा अपने असली संस्कारों को कैच कर उनका स्वरूप बनने वाले शक्तिशाली भव
    पुरुषार्थ का मुख्य आधार कैचिंग पावर है।

    जैसे साइंसदान बहुत पहले के साउण्ड को कैच करते हैं ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से अपने आदि दैवी संस्कार कैच करो, इसके लिए सदैव यही स्मृति रहे कि मैं यही था और फिर बन रहा हूँ।

    जितना उन संस्कारों को कैच करेंगे उतना उसका स्वरूप बनेंगे।

    5 हजार वर्ष की बात इतनी स्पष्ट अनुभव में आये जैसे कल की बात है।

    अपनी स्मृति को इतना श्रेष्ठ और स्पष्ट बनाओ तब शक्तिशाली बनेंगे।

    13.11.2021

    मरजीवे जन्म की स्मृति द्वारा कर्मबन्धन को सम्बन्ध में परिवर्तन करने वाले परोपकारी भव
    लौकिक कर्मबन्धन का सम्बन्ध अब मरजीवे जन्म के कारण श्रीमत के आधार पर सेवा के सम्बन्ध का आधार है।

    कर्मबन्धन नहीं सेवा का सम्बन्ध है।

    सेवा के सम्बन्ध में वैराइटी प्रकार की आत्माओं का ज्ञान धारण कर चलेंगे तो बंधन में तंग नहीं होंगे।

    लेकिन अति पाप आत्मा, अपकारी आत्मा से भी नफरत वा घृणा के बजाए, रहमदिल बन तरस की भावना रखते हुए, सेवा का सम्बन्ध समझकर सेवा करेंगे तो नामीग्रामी विश्व कल्याणी वा परोपकारी गाये जायेंगे।

    12.11.2021

    करावनहार की स्मृति से सेवा में सदा निर्माण का कार्य करने वाले कर्मयोगी भव

    कोई भी कर्म, कर्मयोगी की स्टेज में परिवर्तन करो, सिर्फ कर्म करने वाले नहीं लेकिन कर्मयोगी हैं।

    कर्म अर्थात् व्यवहार और योग अर्थात् परमार्थ दोनों का बैलेन्स हो।

    शरीर निर्वाह के पीछे आत्मा का निर्वाह भूल न जाए।

    जो भी कर्म करो वह ईश्वरीय सेवा अर्थ हो।

    इसके लिए सेवाओं में निमित्त मात्र का मंत्र वा करनहार की स्मृति का संकल्प सदा याद रहे।

    करावनहार भूले नहीं तो सेवा में निर्माण ही निर्माण करते रहेंगे।

    11.11.2021

    साधनों को यूज़ करते हुए साधना को अपना आधार बनाने वाले सिद्धि स्वरूप भव

    कोई भी पुरानी दुनिया के आकर्षणमय दृश्य, अल्पकाल के सुख के साधन यूज़ करते वा देखते हो तो उन साधनों के वशीभूत हो जाते हो।

    साधनों के आधार पर साधना ऐसे है जैसे रेत के फाउण्डेशन पर बिल्डिंग, इसलिए किसी भी विनाशी साधन के आधार पर अविनाशी साधना न हो।

    साधन निमित्तमात्र हैं और साधना निर्माण का आधार है, इसलिए साधना को महत्व दो तो साधना सिद्धि को प्राप्त करायेगी।

    10.11.2021

    सर्व के दिलों के राज़ को जान सर्व को राज़ी करने वाले सदा विजयी भव

    विजयी बनने के लिए हर एक के दिल के राज़ को जानना है।

    किसी के मुख द्वारा निकलने वाले आवाज से उसके दिल के राज़ को जान लो तो विजयी बन सकते हो लेकिन दिल के राज़ को जानने के लिए अन्तर्मुखता चाहिए।

    जितना अन्तर्मुखी रहेंगे उतना हर एक के दिल के राज़ को जानकर उसे राज़ी कर सकेंगे।

    राज़ी करने वाले ही विजयी बनते हैं।

    09.11.2021

    हर बात में सार को ग्रहण कर आलराउण्ड बनने वाले सरल पुरूषार्थी भव

    जो भी बात देखते हो, सुनते हो, उसके सार को समझ लो और जो बोल बोलो, जो कर्म करो उसमें सार भरा हुआ हो तो पुरूषार्थ सरल हो जायेगा।

    ऐसा सरल पुरूषार्थी सब बातों में आलराउण्ड होता है।

    उसमें कोई भी कमी दिखाई नहीं देती।

    कोई भी बात में हिम्मत कम नहीं होती, मुख से ऐसे बोल नहीं निकलते कि हम यह नहीं कर सकते।

    ऐसे सरल पुरूषार्थी स्वयं भी सरलचित रहते हैं और दूसरों को सरलचित बना देते हैं।

    08.11.2021

    सबको रिगार्ड देते हुए अपना रिकार्ड ठीक रखने वाले सर्व के स्नेही भव

    जितना जो सभी को रिगार्ड देता है उतना ही अपने रिकार्ड को ठीक रख सकता है।

    दूसरों का रिगार्ड रखना अपना रिकार्ड बनाना है।

    जैसे यज्ञ के मददगार बनना ही मदद लेना है, वैसे रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है।

    एक बार देना और अनेक बार लेने के हकदार बन जाना।

    वैसे कहते हैं छोटों को प्यार और बड़ों को रिगार्ड दो लेकिन जो सभी को बड़ा समझकर रिगार्ड देते हैं वह सबके स्नेही बन जाते हैं।

    इसके लिए हर बात में “पहले आप'' का पाठ पक्का करो।

    07.11.2021

    समाने की शक्ति द्वारा एकमत का वातावरण बनाने वाले दृष्टान्त रूप भव

    जो एक जैसे मणके हैं, एक की ही लगन और एकरस स्थिति में स्थित, एक की मत पर चलने वाले हैं, आपस में संकल्पों में भी एकमत हैं, वही माला में पिरोये जाते हैं।

    लेकिन एकमत का वातावरण तब बनेगा जब समाने की शक्ति होगी।

    यदि कोई बात में भिन्नता हो जाती है तो उस भिन्नता को समाओ तब आपस में एकता से समीप आयेंगे और सबके आगे दृष्टान्त रूप बनेंगे।

    06.11.2021

    एकरस स्थिति द्वारा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त भव

    जब इन्द्रियों की आकर्षण और सम्बन्धों की आकर्षण से मुक्त बनो तब अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति कर सकेंगे।

    कोई भी कर्मन्द्रिय के वश होने से जो भिन्न-भिन्न आकर्षण होते हैं वह अतीन्द्रिय सुख वा हर्ष दिलाने में बंधन डालते हैं।

    लेकिन जब बुद्धि सर्व आकर्षणों से मुक्त हो एक ठिकाने पर टिक जाती है, हलचल समाप्त हो जाती है तब एकरस अवस्था बनने से अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होती है।

    05.11.2021

    नॉलेज की लाइट माइट द्वारा विघ्न-विनाशक बनने वाले मास्टर नॉलेजफुल भव

    भक्ति मार्ग में गणेश को विघ्न-विनाशक कहकर पूजते हैं, साथ-साथ उन्हें मास्टर नॉलेजफुल अर्थात् विद्यापति भी मानते हैं।

    तो जो बच्चे मास्टर नॉलेजफुल बनते हैं वे कभी विघ्नों से हार नहीं खा सकते क्योंकि नॉलेज को लाइट-माइट कहा जाता है, जिससे मंजिल पर पहुंचना सहज हो जाता है।

    ऐसे जो विघ्न-विनाशक हैं, बाप के साथ सदा कम्बाइन्ड रहते हुए नॉलेज का सिमरण करते रहते हैं वे कभी विघ्न हार नहीं बन सकते।

    04.11.2021

    दिव्य गुणों के आह्वान द्वारा अवगुणों को समाप्त करने वाले दिव्यगुणधारी भव

    जैसे दीपावली पर श्रीलक्ष्मी का आह्वान करते हैं, ऐसे आप बच्चे स्वयं में दिव्यगुणों का आह्वान करो तो अवगुण आहुति रूप में खत्म होते जायेंगे।

    फिर नये संस्कारों रूपी नये वस्त्र धारण करेंगे।

    अब पुराने वस्त्रों से जरा भी प्रीत न हो।

    जो भी कमजोरियां, कमियां, निर्बलता, कोमलता रही हुई है - वो सब पुराने खाते आज से सदाकाल के लिए समाप्त करो तब दिव्यगुणधारी बनेंगे और भविष्य में ताजपोशी होगी।

    उसी का ही यादगार यह दीपावली है।

    03.11.2021

    स्वयं के संकल्पों की उलझन अथवा सजाओं से भी परे रहने वाले पास विद आनर भव

    पास विद आनर अर्थात् मन में भी संकल्पों से सजा न खायें।

    धर्मराज के सजाओं की बात तो पीछे है परन्तु अपने संकल्पों की भी उलझन अथवा सजाओं से परे रहना - यह पास विद आनर होने वालों की निशानी है।

    वाणी, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क की बात तो मोटी है लेकिन संकल्पों में भी उलझन पैदा न हो, ऐसी प्रतिज्ञा करो तब पास विद आनर बनेंगे।

    02.11.2021

    पावरफुल स्थिति द्वारा रचना की सर्व आकर्षणों से दूर रहने वाले मास्टर रचयिता भव

    जब मास्टर रचयिता, मास्टर नॉलेजफुल की पावरफुल स्थिति वा नशे में स्थित रहेंगे तब रचना की सर्व आकर्षणों से परे रह सकेंगे क्योंकि अभी रचना और भी भिन्न-भिन्न रंग-ढंग, रूप रचेगी इसलिए अभी बचपन की भूलें, अलबेलेपन की भूलें, आलस्य की भूलें, बेपरवाही की भूलें जो रही हुई हैं - उन्हें भूल कर अपने पावरफुल, शक्ति-स्वरूप, शस्त्रधारी स्वरूप, सदा जागती ज्योति स्वरूप को प्रत्यक्ष करो तब कहेंगे मास्टर रचयिता।

    01.11.2021

    सर्वशक्तिमान् के साथ की स्मृति द्वारा समस्याओं को दूर भगाने वाले परमात्म स्नेही भव

    जो बच्चे परमात्म स्नेही हैं वे स्नेही को सदा साथ रखते हैं इसलिए कोई भी समस्या सामने नहीं आती।

    जिनके साथ स्वयं सर्वशक्तिमान् बाप है उनके सामने समस्या ठहर नहीं सकती।

    समस्या पैदा हो और वहाँ ही खत्म कर दो तो वृद्धि नहीं होगी।

    अब समस्याओं का बर्थ कन्ट्रोल करो।

    सदा याद रखो कि सम्पूर्णता को समीप लाना है और समस्याओं को दूर भगाना है।

    31.10.2021

    सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले अटल अखण्ड स्वराज्य अधिकारी भव

    जो बच्चे संगमयुग पर अतीन्द्रिय सुख का वर्सा सदाकाल के लिए प्राप्त कर लेते हैं अर्थात् जिनका बाप के विल पर पूरा अधिकार होता है वे विल पावर वाले होते हैं।

    उन्हें अटूट अटल अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होती है।

    ऐसे वारिस अर्थात् सम्पूर्ण वर्से के अधिकारी ही भविष्य में अटल-अखण्ड स्वराज्य का अधिकार प्राप्त करते हैं।

    30.10.2021

    ईश्वरीय कुल की स्मृति द्वारा माया का सामना करने वाले सदा समर्थ स्वरूप भव

    किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करनी है तो पहले स्मृति द्वारा समर्थी स्वरूप बनो।

    समर्थी आने से माया का सामना करना सहज हो जायेगा।

    जैसी स्मृति होती है वैसा स्वरूप बन जाता है इसलिए सदा पावरफुल स्मृति रहे - कि जब तक यह ईश्वरीय जन्म है तब तक हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर कार्य ईश्वरीय सेवा पर हूँ।

    हमारा यह ईश्वरीय कुल है, यह स्मृति की सीट सर्व कमजोरियों को समाप्त कर देगी।

    29.10.2021

    मनन द्वारा बाप की प्रापर्टी को अपनी प्रापर्टी बनाने वाले दिव्य बुद्धिवान भव

    बाप द्वारा जो भी खजाना मिलता है, उसे मनन करो तो अन्दर समाता जायेगा।

    प्रापर्टी तो सबको एक जैसी मिली हुई है लेकिन जो मनन करके उसे अपना बनाते हैं, उन्हें उसका नशा और खुशी रहती है इसलिए कहा जाता है - अपनी घोट तो नशा चढ़े।

    जो मनन की मस्ती में सदा मस्त रहते हैं उन्हें दुनिया की कोई भी चीज़, उलझन आकर्षित नहीं कर सकती।

    उन्हें दिव्य बुद्धि का वरदान स्वत: मिल जाता है।

    28.10.2021

    हर कर्म करते हुए कमल आसन पर विराजमान रहने वाले सहज वा निरन्तर योगी भव

    निरन्तर योगयुक्त रहने के लिए कमल पुष्प के आसन पर सदा विराजमान रहो लेकिन कमल आसन पर वही स्थित रह सकते हैं जो लाइट हैं।

    किसी भी प्रकार का बोझ अर्थात् बंधन न हो।

    मन के संकल्पों का बोझ, संस्कारों का बोझ, दुनिया के विनाशी चीज़ों की आकर्षण का बोझ, लौकिक सम्बन्धियों की ममता का बोझ - जब यह सब बोझ खत्म हों तब कमल आसन पर विराजमान निरन्तर योगी बन सकेंगे।

    27.10.2021

    शक्तियों को करामत के बजाए कर्तव्य समझकर प्रयोग करने वाले पूजन वा गायन योग्य भव

    याद द्वारा जो शक्तियों की प्राप्ति होती है उन्हें करामत समझकर प्रयोग नहीं करना लेकिन कर्तव्य समझकर कार्य में लगाना।

    उन मनुष्यों के पास रिद्धि सिद्धि की करामत होती है लेकिन आपके पास है श्रीमत।

    श्रीमत से शक्तियां जरूर आती हैं इसीलिए संकल्प से कर्तव्य सिद्ध होते हैं।

    संकल्प से किसको कार्य की प्रेरणा दे सकते हो, यह भी शक्ति है लेकिन श्रीमत में जब अपनी मनमत मिक्स न हो तब गायन और पूजन योग्य बनेंगे।

    26.10.2021

    सहनशीलता के गुण द्वारा कठोर संस्कार को भी शीतल बनाने वाले सन्तुष्टमणी भव

    जिसमें सहनशीलता का गुण होता है वह सूरत से सदैव सन्तुष्ट दिखाई देता है, जो स्वयं सन्तुष्ट मूर्त रहते हैं वह औरों को भी सन्तुष्ट बना देते हैं।

    सन्तुष्ट होना माना सफलता पाना।

    जो सहनशील होते हैं वह अपनी सहनशीलता की शक्ति से कठोर संस्कार वा कठिन कार्य को शीतल और सहज बना देते हैं।

    उनका चेहरा ही गुणमूर्त दिखाई देता है।

    वही ड्रामा की ढाल पर ठहर सकते हैं।

    25.10.2021

    ईश्वरीय शान में स्थित रह हर कर्म शानदार बनाने वाले सर्व परेशानियों से मुक्त भव

    सदा इसी ईश्वरीय शान में रहो कि मैं बापदादा का नूरे रत्न हूँ, हमारे नयनों वा नज़रों में कोई भी चीज़ समा नहीं सकती।

    इस शान में रहने से भिन्न-भिन्न प्रकार की परेशानियां स्वत: समाप्त हो जायेंगी।

    कोई भी प्रकार की कम्पलेन नहीं रह सकती।

    जितना जो अपनी ऊंची शान में स्थित रहते हैं उन्हें मान भी स्वत: प्राप्त होता है और उनके हर कर्म शानदार होते हैं।

     

    24.10.2021

    सदा एकरस स्थिति के तख्त पर विराजमान रहने वाले बापदादा के दिलतख्त नशीन भव

    सभी से श्रेष्ठ तख्त बापदादा के दिलतख्त नशीन बनना है।

    लेकिन इस तख्त पर बैठने के लिए अचल, अडोल, एकरस स्थिति का तख्त चाहिए।

    अगर इस स्थिति के तख्त पर स्थित नहीं हो पाते तो बापदादा के दिल रूपी तख्त पर स्थित नहीं हो सकते।

    इसके लिए अपने भृकुटी के तख्त पर अकालमूर्त बन स्थित हो जाओ, इस तख्त से बार-बार डगमग न हो तो बापदादा के दिल तख्त पर विराजमान हो सकेंगे।

    23.10.2021

    सर्विस वा पुरूषार्थ में सफलता प्राप्त करने वाले डबल ताजधारी भव

    संगमयुग पर सदा स्वयं को डबल ताजधारी समझकर चलो - एक लाइट अर्थात् प्युरिटी का ताज और दूसरा - जिम्मेवारियों का ताज।

    प्युरिटी और पावर - लाइट और माइट का क्राउन धारण करने वालों में डबल फोर्स सदा कायम रहता है।

    ऐसी डबल फोर्स वाली आत्मायें सदा शक्तिशाली रहती हैं।

    उन्हें सर्विस वा पुरूषार्थ में सदा सफलता प्राप्त होती है।

    22.10.2021

    योगयुक्त स्थिति द्वारा सूक्ष्म व कड़े बंधनों को क्रास करने वाले बन्धनमुक्त भव

    योगयुक्त की निशानी है - बन्धनमुक्त। योगयुक्त बनने में सबसे बड़ा अन्तिम बंधन है - स्वयं को समझदार समझकर श्रीमत को अपने बुद्धि की कमाल समझना अर्थात् श्रीमत में अपनी बुद्धि मिक्स करना, जिसे बुद्धि का अभिमान कहा जाता है। 2-जब कभी कोई कमजोरी का इशारा देता है अथवा बुराई करता है - यदि उस समय जरा भी व्यर्थ संकल्प चला तो भी बंधन है। जब इन बंधनों को क्रास कर हार-जीत, निंदा-स्तुति में समान स्थिति बनाओ तब कहेंगे सम्पूर्ण बन्धनमुक्त।

    21.10.2021

    सतोप्रधान स्थिति में स्थित रह सदा सुख शान्ति की अनुभूति करने वाले डबल अहिंसक भव

    सदा अपने सतोप्रधान संस्कारों में स्थित रह सुख-शान्ति की अनुभूति करना - यह सच्ची अहिंसा है। हिंसा अर्थात् जिससे दु:ख-अशान्ति की प्राप्ति हो। तो चेक करो कि सारे दिन में किसी भी प्रकार की हिंसा तो नहीं करते! यदि कोई शब्द द्वारा किसकी स्थिति को डगमग कर देते हो तो यह भी हिंसा है। 2-यदि अपने सतोप्रधान संस्कारों को दबाकर दूसरे संस्कारों को प्रैक्टिकल में लाते हो तो यह भी हिंसा है इसलिए महीनता में जाकर महान आत्मा की स्मृति से डबल अहिंसक बनो।

    20.10.2021

    अपने श्रेष्ठ व्यवहार द्वारा सर्व आत्माओं को सुख देने वाली महान आत्मा भव

    जो महान आत्मायें होती हैं उनके हर व्यवहार से सर्व आत्माओं को सुख का दान मिलता है।

    वह सुख देते और सुख लेते हैं।

    तो चेक करो कि महान आत्मा के हिसाब से सारे दिन में सबको सुख दिया, पुण्य का काम किया।

    पुण्य अर्थात् किसको ऐसी चीज़ देना जिससे उस आत्मा से आशीर्वाद निकले।

    तो चेक करो कि हर आत्मा से आशीर्वाद मिल रही है।

    किसी को भी दु:ख दिया वा लिया तो नहीं!

    तब कहेंगे महान आत्मा।

    19.10.2021

    विधाता के साथ - साथ वरदाता बन सर्व आत्माओं में बल भरने वाले रहमदिल भव

    यदि कोई आत्मा इच्छुक है लेकिन हिम्मत न होने के कारण चाहना होते भी प्राप्ति नहीं कर सकती तो ऐसी आत्माओं के लिए विधाता अर्थात् ज्ञान दाता बनने के साथ-साथ रहमदिल बन वरदाता बनो, उन्हें अपनी शुभ भावना का एक्स्ट्रा बल दो।

    लेकिन ऐसे वरदानी मूर्त तभी बन सकते, जब आपका हर संकल्प बाप के प्रति कुर्बान हो।

    हर समय, हर संकल्प, हर कर्म में वारी जाऊं का जो वचन लिया है, उसे पालन करो।

    18.10.2021

    सर्व खजानों से भरपूर बन अपने चेहरे द्वारा सेवा करने वाले सच्चे सेवाधारी भव

    जो बच्चे सर्व खजानों से सदा सम्पन्न वा भरपूर रहते हैं उनके नयनों वा मस्तक द्वारा ईश्वरीय नशा दिखाई देता है।

    उनका चेहरा ही सेवा करता है।

    जिसके पास जास्ती अथवा कम जमा होता है तो वह भी उनके चेहरे से दिखाई देता है।

    जैसे कोई ऊंच कुल का होता है तो उनके चेहरे से वह झलक और फलक दिखाई देती है।

    ऐसे आपकी सूरत हर संकल्प हर कर्म को स्पष्ट करे तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी।

    17.10.2021

    अपनी सतोगुणी दृष्टि द्वारा अन्य आत्माओं की दृष्टि, वृत्ति का परिवर्तन करने वाले साक्षात्कार मूर्त भव

    कहावत है दृष्टि से सृष्टि बदलती है। तो आपकी दृष्टि ऐसी सतोगुणी हो जो कैसी भी तमोगुणी वा रजोगुणी आत्मा की दृष्टि, वृत्ति और उनकी स्थिति बदल जाये। जो भी आपके सामने आये उन्हें दृष्टि द्वारा तीनों लोकों का, अपनी पूरी जीवन कहानी का मालूम पड़ जाये - यही है नज़र से निहाल करना। अन्त में जब ज्ञान की सर्विस नहीं होगी तब यह सर्विस चलेगी।

    16.10.2021

    अपने सर्वश्रेष्ठ पोजीशन की खुमारी द्वारा अनेक आत्माओं का कल्याण करने वाले अथॉरिटी स्वरूप भव

    हम आलमाइटी अथॉरिटी के बच्चे हैं - यह है सर्वश्रेष्ठ पोजीशन, इस पोजीशन की खुमारी में रहो तो माया की अधीनता समाप्त हो जायेगी।

    इसी अथॉरिटी का स्वरूप बनने से किसी भी आत्मा का कल्याण कर सकते हो।

    जो सदा इस खुमारी में रहते हैं वो सदाकाल का राज्य भाग्य प्राप्त करते हैं।

    यही अथॉरिटी सदा कायम रखो तो विश्व आपके आगे झुकेगी, आप किसी के आगे झुक नहीं सकते।

    15.10.2021

    करन-करावनहार की स्मृति द्वारा सहजयोग का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव

    कोई भी कार्य करते यही स्मृति रहे कि इस कार्य के निमित्त बनाने वाला बैकबोन कौन है।

    बिना बैकबोन के कोई भी कर्म में सफलता नहीं मिल सकती, इसलिए कोई भी कार्य करते सिर्फ यह सोचो मैं निमित्त हूँ, कराने वाला स्वयं सर्व समर्थ बाप है।

    यह स्मृति में रख कर्म करो तो सहज योग की अनुभूति होती रहेगी।

    फिर यह सहजयोग वहाँ सहज राज्य करायेगा।

    यहाँ के संस्कार वहाँ ले जायेंगे।

    14.10.2021

    सेवा की लगन द्वारा लौकिक को अलौकिक प्रवृत्ति में परिवर्तन करने वाले निरन्तर सेवाधारी भव

    सेवाधारी का कर्तव्य है निरन्तर सेवा में रहना - चाहे मंसा सेवा हो, चाहे वाचा वा कर्मणा सेवा हो।

    सेवाधारी कभी भी सेवा को अपने से अलग नहीं समझते।

    जिनकी बुद्धि में सदा सेवा की लगन रहती है उनकी लौकिक प्रवृत्ति बदलकर ईश्वरीय प्रवृत्ति हो जाती है।

    सेवाधारी घर को घर नहीं समझते लेकिन सेवास्थान समझकर चलते हैं।

    सेवाधारी का मुख्य गुण है त्याग।

    त्याग वृत्ति वाले प्रवृत्ति में तपस्वीमूर्त होकर रहते हैं जिससे सेवा स्वत: होती है।

    13.10.2021

    संगठन में सहयोग की शक्ति द्वारा विजयी बनने वाले सर्व के शुभचिंतक भव

    यदि संगठन में हर एक, एक दो के मददगार, शुभचिंतक बनकर रहें तो सहयोग की शक्ति का घेराव बहुत कमाल कर सकता है।

    आपस में एक दो के शुभचिंतक सहयोगी बनकर रहो तो माया की हिम्मत नहीं जो इस घेराव के अन्दर आ सके।

    लेकिन संगठन में सहयोग की शक्ति तब आयेगी जब यह दृढ़ संकल्प करेंगे कि चाहे कितनी भी बातें सहन करना पड़े लेकिन सामना करके दिखायेंगे, विजयी बनकर दिखायेंगे।

    12.10.2021

    शरीर को ईश्वरीय सेवा के लिए अमानत समझकर कार्य में लगाने वाले नष्टोमोहा भव

    जैसे कोई की अमानत होती है तो अमानत में अपनापन नहीं होता, ममता भी नहीं होती है।

    तो यह शरीर भी ईश्वरीय सेवा के लिए एक अमानत है।

    यह अमानत रूहानी बाप ने दी है तो जरूर रूहानी बाप की याद रहेगी।

    अमानत समझने से रुहानियत आयेगी, अपने पन की ममता नहीं रहेगी। यही सहज उपाय है निरन्तर योगी, नष्टोमोहा बनने का।

    तो अब रूहानयित की स्थिति को प्रत्यक्ष करो।

    11.10.2021

    अपने बुद्धि रूपी नेत्र को क्लीयर और केयरफुल रखने वाले मास्टर नॉलेजफुल, पावरफुल भव

    जैसे ज्योतिषी अपने ज्योतिष की नॉलेज से, ग्रहों की नॉलेज से आने वाली आपदाओं को जान लेते हैं, ऐसे आप बच्चे इनएडवांस माया द्वारा आने वाले पेपर्स को परखकर पास विद आनर बनने के लिए अपने बुद्धि रूपी नेत्र को क्लीयर बनाओ और केयरफुल रहो।

    दिन प्रतिदिन याद की वा साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाओ तो पहले से ही मालूम पड़ेगा कि आज कुछ होने वाला है।

    मास्टर नॉलेजफुल, पावरफुल बनो तो कभी हार नहीं हो सकती।

    10.10.2021

    विकारों के वंश के अंश को भी समाप्त करने वाले सर्व समर्पण वा ट्रस्टी भव

    जो आईवेल के लिए पुराने संस्कारों की प्रापर्टी किनारे कर रख लेते हैं।

    तो माया किसी न किसी रीति से पकड़ लेती है।

    पुराने रजिस्टर की छोटी सी टुकड़ी से भी पकड़ जायेंगे, माया बड़ी तेज है, उनकी कैचिंग पावर कोई कम नहीं है इसलिए विकारों के वंश के अंश को भी समाप्त करो।

    जरा भी किसी कोने में पुराने खजाने की निशानी न हो - इसको कहा जाता है सर्व समर्पण, ट्रस्टी वा यज्ञ के स्नेही सहयोगी।

    09.10.2021

    नये जीवन की स्मृति से कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले मरजीवा भव

    जो बच्चे पूरा मरजीवा बन गये उन्हें कर्मेन्द्रियों की आकर्षण हो नहीं सकती।

    मरजीवा बने अर्थात् सब तरफ से मर चुके, पुरानी आयु समाप्त हुई।

    जब नया जन्म हुआ, तो नये जन्म, नई जीवन में कर्मेन्द्रियों के वश हो कैसे सकते।

    ब्रह्माकुमार-कुमारी के नये जीवन में कर्मेन्द्रियों के वश होना क्या चीज़ होती है - इस नॉलेज से भी परे।

    शूद्र पन का जरा भी सांस अर्थात् संस्कार कहाँ अटका हुआ न हो।

    08.10.2021

    दाता बन हर सेकण्ड, हर संकल्प में दान देने वाले उदारचित, महादानी भव

    आप दाता के बच्चे लेने वाले नहीं लेकिन देने वाले हो।

    हर सेकण्ड हर संकल्प में देना है, जब ऐसे दाता बन जायेंगे तब कहेंगे उदारचित, महादानी।

    ऐसे महादानी बनने से महान् शक्ति की प्राप्ति स्वत: होती है।

    लेकिन देने के लिए स्वयं का भण्डारा भरपूर चाहिए।

    जो लेना था वह सब कुछ ले लिया, बाकी रह गया देना।

    तो देते जाओ देने से और भी भण्डारा भरता जायेगा।

    07.10.2021

    बाप के हाथ और साथ की स्मृति से मुश्किल को सहज बनाने वाले बेफिक्र वा निश्चिंत भव

    जैसे किसी बड़े के हाथ में हाथ होता है तो स्थिति बेफिक्र वा निश्चिंत रहती है।

    ऐसे हर कर्म में यही समझना चाहिए कि बापदादा मेरे साथ भी हैं और हमारे इस अलौकिक जीवन का हाथ उनके हाथ में है अर्थात् जीवन उनके हवाले है, तो जिम्मेवारी भी उनकी हो जाती है।

    सभी बोझ बाप के ऊपर रख अपने को हल्का कर दो।

    बोझ उतारने वा मुश्किल को सहज करने का साधन ही है - बाप का हाथ और साथ।

    06.10.2021

    एक ही रास्ता और एक से रिश्ता रखने वाले सम्पूर्ण फरिश्ता भव

    निराकार वा साकार रूप से बुद्धि का संग वा रिश्ता एक बाप से पक्का हो तो फरिश्ता बन जायेंगे।

    जिनके सर्व सम्बन्ध वा सर्व रिश्ते एक के साथ हैं वही सदा फरिश्ते हैं।

     

    जैसे गवर्मेन्ट रास्ते में बोर्ड लगा देती है कि यह रास्ता ब्लाक है, ऐसे सब रास्ते ब्लाक (बन्द) कर दो तो बुद्धि का भटकना छूट जायेगा।

    बापदादा का यही फरमान है - कि पहले सब रास्ते बन्द करो।

    इससे सहज फरिश्ता बन जायेंगे।

    05.10.2021

    बापदादा को अपना साथी समझकर डबल फोर्स से कार्य करने वाले सहजयोगी भव

    कोई भी कार्य करते बापदादा को अपना साथी बना लो तो डबल फोर्स से कार्य होगा और स्मृति भी बहुत सहज रहेगी क्योंकि जो सदा साथ रहता है उसकी याद स्वत: बनी रहती है।

    तो ऐसे साथी रहने से वा बुद्धि द्वारा निरन्तर सत का संग करने से सहजयोगी बन जायेंगे और पावरफुल संग होने के कारण हर कर्तव्य में आपका डबल फोर्स रहेगा, जिससे हर कार्य में सफलता की अनुभूति होगी।

    04.10.2021

    स्वयं को सेवाधारी समझकर झुकने और सर्व को झुकाने वाले निमित्त और नम्रचित भव

    निमित्त उसे कहा जाता - जो अपने हर संकल्प वा हर कर्म को बाप के आगे अर्पण कर देता है।

    निमित्त बनना अर्थात् अर्पण होना और नम्रचित वह है जो झुकता है, जितना संस्कारों में, संकल्पों में झुकेंगे उतना विश्व आपके आगे झुकेगी।

    झुकना अर्थात् झुकाना।

    यह संकल्प भी न हो कि दूसरे भी हमारे आगे कुछ तो झुकें।

    जो सच्चे सेवाधारी होते हैं - वह सदैव झुकते हैं। कभी अपना रोब नहीं दिखाते।

    03.10.2021

    कल्याण की भावना द्वारा हर आत्मा के संस्कारों को परिवर्तन करने वाले निश्चयबुद्धि भव

    जैसे बाप में 100 प्रतिशत निश्चयबुद्धि हो, कोई कितना भी डगमग करने की कोशिश करे लेकिन हो नहीं सकते, ऐसे दैवी परिवार वा संसारी आत्माओं द्वारा भल कोई कैसा भी पेपर ले, क्रोधी बन सामना करे वा कोई इनसल्ट कर दे, गाली दे - उसमें भी डगमग हो नहीं सकते, इसमें सिर्फ हर आत्मा प्रति कल्याण की भावना हो, यह भावना उनके संस्कारों को परिवर्तन कर देगी।

    इसमें सिर्फ अधीर्य नहीं होना है, समय प्रमाण फल अवश्य निकलेगा - यह ड्रामा की नूंध है।

    02.10.2021

    निमित्तपन की स्मृति द्वारा अपने हर संकल्प पर अटेन्शन रखने वाले निवारण स्वरूप भव

    निमित्त बनी हुई आत्माओं पर सभी की नज़र होती है इसलिए निमित्त बनने वालों को विशेष अपने हर संकल्प पर अटेन्शन रखना पड़े।

    अगर निमित्त बने हुए बच्चे भी कोई कारण सुनाते हैं तो उनको फालो करने वाले भी अनेक कारण सुना देते हैं।

    अगर निमित्त बनने वालों में कोई कमी है तो वह छिप नहीं सकती इसलिए विशेष अपने संकल्प, वाणी और कर्म पर अटेन्शन दे निवारण स्वरूप बनो।

    01.10.2021

    अपनी दृष्टि और वृत्ति के परिवर्तन द्वारा सृष्टि को बदलने वाले साक्षात्कारमूर्त भव

    अपनी वृत्ति के परिवर्तन से दृष्टि को दिव्य बनाओ तो दृष्टि द्वारा अनेक आत्मायें अपने यथार्थ रूप, यथार्थ घर तथा यथार्थ राजधानी देखेंगी।

    ऐसा यथार्थ साक्षात्कार कराने के लिए वृत्ति में जरा भी देह-अभिमान की चंचलता न हो।

    तो वृत्ति के सुधार से दृष्टि दिव्य बनाओ तब यह सृष्टि परिवर्तन होगी।

    देखने वाले अनुभव करेंगे कि यह नैन नहीं लेकिन यह एक जादू की डिब्बिया हैं।

    यह नैन साक्षात्कार के साधन बन जायेंगे।

    30.09.2021

    ताज और तिलक को धारण कर बापदादा के मददगार बनने वाले दिलतख्तनशीन भव

    जब कोई तख्त पर बैठते हैं तो तिलक और ताज उनकी निशानी होती है।

    ऐसे जो दिल तख्तनशीन हैं उनके मस्तक पर सदैव अविनाशी आत्मा की स्थिति का तिलक दूर से ही चमकता हुआ नज़र आता है।

    सर्व आत्माओं के कल्याण की शुभ भावना उनके नयनों से वा मुखड़े से दिखाई देती है।

    उनका हर संकल्प, वचन और कर्म बाप के समान होता है।

     

    29.09.2021

    विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य में अपनी अंगुली देने वाले महान सो निर्माण भव

    जैसे कोई स्थूल चीज़ बनाते हैं तो उसमें सब चीजें डालते हैं, कोई साधारण मीठा या नमक भी कम हो तो बढ़िया चीज़ भी खाने योग्य नहीं बन सकती।

    ऐसे ही विश्व परिवर्तन के इस श्रेष्ठ कार्य के लिए हर एक रत्न की आवश्यकता है।

    सबकी अंगुली चाहिए।

    सब अपनी-अपनी रीति से बहुत-बहुत आवश्यक, श्रेष्ठ महारथी हैं इसलिए अपने कार्य की श्रेष्ठता के मूल्य को जानो, सब महान आत्मायें हो। लेकिन जितने महान हो उतने निर्माण भी बनो।

    28.09.2021

    बालक सो मालिकपन की स्मृति से सर्व खजानों के अधिकारी, प्राप्ति सम्पन्न भव

    हम बाप के सर्व खजानों के बालक सो मालिक हैं, नेचरल योगी, नेचरल स्वराज्य अधिकारी हैं।

    इस स्मृति से सर्व प्राप्ति सम्पन्न बनो।

    यही गीत सदा गाते रहो कि “पाना था सो पा लिया।''

    खोया-पाया, खोया-पाया यह खेल नहीं करो।

    पा रहा हूँ, पा रहा हूँ - यह अधिकारी के बोल नहीं।

    जो सम्पन्न बाप के बालक, सागर के बच्चे हैं वह नौकर के समान मेहनत कर नहीं सकते।

    27.09.2021

    मैं पन के बोझ को समाप्त कर प्रत्यक्षफल का अनुभव करने वाले बालक सो मालिक भव

    जब किसी भी प्रकार का मैं पन आता है तो बोझ सिर पर आ जाता है।

    लेकिन जब बाप आफर कर रहे हैं कि सब बोझ मुझे दे दो आप सिर्फ नाचों, उड़ो...फिर यह क्वेश्चन क्यों - कि सर्विस कैसे होगी, भाषण कैसे करेंगे - आप सिर्फ निमित्त समझकर कनेक्शन पावर हाउस से जोड़कर बैठ जाओ, दिलशिकस्त नहीं बनो तो बापदादा सब कुछ स्वत: करा देंगे।

    बालक सो मालिक समझकर श्रेष्ठ स्टेज पर स्थित रहो तो प्रत्यक्ष फल की अनुभूति करते रहेंगे।

    26.09.2021

    सदा एकरस सम्पन्न मूड में रहने वाले पुरूषार्थी सो प्रालब्धी स्वरूप भव

    बापदादा वतन से देखते हैं कि कई बच्चों के मूड बहुत बदलते हैं, कभी आश्चर्यवत की मूड, कभी क्वेश्चन मार्क की मूड, कभी कनफ्यूज़ की मूड, कभी टेन्शन, कभी अटेन्शन का झूला....लेकिन संगमयुग प्रालब्धी युग है न कि पुरूषार्थी इसलिए जो बाप के गुण वही बच्चों के, जो बाप की स्टेज वही बच्चों की - यही है संगमयुग की प्रालब्ध।

    तो सदा एकरस एक ही सम्पन्न मूड में रहो तब कहेंगे बाप समान अर्थात् प्रालब्धी स्वरूप वाले।

     

    25.09.2021

    रिगार्ड देने का रिकार्ड ठीक रख, खुशी का महादान करने वाले पुण्य आत्मा भव

    वर्तमान समय चारों ओर रिगार्ड देने का रिकार्ड ठीक करने की आवश्यकता है।

    यही रिकार्ड फिर चारों ओर बजेगा।

    रिगार्ड देना और रिगार्ड लेना, छोटे को भी रिगार्ड दो, बड़े को भी रिगार्ड दो।

    यह रिगार्ड का रिकार्ड अभी निकलना चाहिए, तब खुशी का दान करने वाले महादानी पुण्य आत्मा बनेंगे।

    किसी को रिगार्ड देकर खुश कर देना - यह बड़े से बड़ा पुण्य का काम है, सेवा है।

     

    24.09.2021

    पुराने संस्कारों वा विघ्नों से मुक्ति प्राप्त करने वाले सदा शक्ति सम्पन्न भव

    किसी भी प्रकार के विघ्नों से, कमजोरियों से या पुराने संस्कारों से मुक्ति चाहते हो तो शक्ति धारण करो अर्थात् अंलकारी रूप होकर रहो।

    जो अलंकारों से सदा सजे सजाये रहते हैं वह भविष्य में विष्णुवंशी बनते हैं लेकिन अभी वैष्णव बन जाते हैं। उन्हें कोई भी तमोगुणी संकल्प वा संस्कार टच नहीं कर सकता।

    वे पुरानी दुनिया अथवा दुनिया की कोई भी वस्तु और व्यक्तियों से सहज ही किनारा कर लेते हैं, उन्हें कारणे अकारणे भी कोई टच नहीं कर सकता।

     

    23.09.2021

    विस्तार को सार में समाकर अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले बाप समान लाइट माइट हाउस भव

    बाप समान लाइट, माइट हाउस बनने के लिए कोई भी बात देखते वा सुनते हो तो उसके सार को जानकर एक सेकण्ड में समा देने वा परिवर्तन करने का अभ्यास करो।

    क्यों, क्या के विस्तार में नहीं जाओ क्योंकि किसी भी बात के विस्तार में जाने से समय और शक्तियां व्यर्थ जाती हैं।

    तो विस्तार को समाकर सार में स्थित होने का अभ्यास करो - इससे अन्य आत्माओं को भी एक सेकण्ड में सारे ज्ञान का सार अनुभव करा सकेंगे।

    22.09.2021

    मास्टर त्रिकालदर्शी बन हर कर्म युक्तियुक्त करने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव

    जो भी संकल्प, बोल वा कर्म करते हो - वह मास्टर त्रिकालदर्शी बनकर करो तो कोई भी कर्म व्यर्थ वा अनर्थ नहीं हो सकता।

    त्रिकालदर्शी अर्थात् साक्षीपन की स्थिति में स्थित होकर, कर्मों की गुह्य गति को जानकर इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराओ तो कभी भी कर्म के बन्धन में नहीं बंधेंगे।

    हर कर्म करते कर्मबन्धन मुक्त, कर्मातीत स्थिति का अनुभव करते रहेंगे।

     

    21.09.2021

    एक सेकण्ड के दृढ़ संकल्प से स्वयं का वा विश्व का परिवर्तन करने वाले रूहानी जादूगर भव

    जैसे जादूगर थोड़े समय में बहुत विचित्र खेल दिखाते हैं, वैसे आप रूहानी जादूगर अपनी रूहानियत की शक्ति से सारे विश्व को परिवर्तन में लाने वाले हो, कंगाल को डबल ताजधारी बनाने वाले हो।

    स्वयं को बदलने के लिए सिर्फ एक सेकण्ड का दृढ़ संकल्प धारण करते हो कि मैं आत्मा हूँ और विश्व को बदलने के लिए स्वयं को विश्व के आधार मूर्त, उद्धार मूर्त समझकर विश्व परिवर्तन के कार्य में सदा तत्पर रहते हो इसलिए सबसे बड़े रूहानी जादूगर आप हो।

    20.09.2021

    नॉलेजफुल, पावरफुल और लवफुल स्वरूप द्वारा हर कर्म में सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव

    जब वाणी द्वारा सर्विस करते हो तो मन्सा पावरफुल हो।

    मन्सा द्वारा दूसरों की मन्सा को चेंज करो, अर्थात् मन्सा द्वारा मन्सा को कन्ट्रोल करो और वाणी द्वारा लाइट-माइट देकर नॉलेजफुल बनाओ और कर्मणा अर्थात् सम्पर्क वा अपनी रमणीक एक्टिविटी से उन्हें असली फैमली का अनुभव कराओ।

    ऐसे जब तीनों स्वरूप में रहकर हर कर्म करेंगे तो सिद्धि स्वरूप स्वत: बन जायेंगे।

     

    19.09.2021

    रूहानियत की खुशबू के आधार पर सर्व को परमात्म सन्देश देने वाले विश्व कल्याणकारी भव

    रूहानियत की सर्वशक्तियां स्वयं में धारण कर लो तो रूहानियत की खुशबू सहज ही अनेक आत्माओं को अपने तरफ आकर्षित करेगी।

    जैसे मन्सा शक्ति से प्रकृति को तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हो वैसे अन्य विश्व की आत्मायें जो आप लोगों के आगे नहीं आ सकेंगी उनको दूर रहते हुए भी आप रूहानियत की शक्ति से बाप का परिचय वा मुख्य सन्देश दे सकेंगे।

    यह सूक्ष्म मशीनरी जब तेज करो तब अनेक तड़फती हुई आत्माओं को अंचली मिलेगी और आप विश्व कल्याणकारी कहलायेंगे।

     

    18.09.2021

    तीनों कालों को सामने रख हर कार्य में सफल होने वाले सदा विजयी भव

    लौकिक रीति में भी जो समझदार होते हैं वह आगे पीछे सोच-समझकर फिर कदम उठाते हैं।

    ऐसे यहाँ भी आप बच्चे जब कोई कार्य करते हो तो पहले तीनों कालों को सामने रखकर फिर करो, सिर्फ वर्तमान को नहीं देखो, बेहद की समझ धारण करो और विजयीपन के निश्चय के आधार पर वा त्रिकालदर्शी पन के आधार पर हर कर्म करो वा हर बोल बोलो तब कहेंगे अलौकिक वा असाधारण।

     

    17.09.2021

    अपनी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा शुद्ध वायुमण्डल बनाने वाले सदा शक्तिशाली आत्मा भव

    जो सदा अपनी श्रेष्ठ वृत्ति में स्थित रहते हैं वे किसी भी वायुमण्डल, वायब्रेशन में डगमग नहीं हो सकते।

    वृत्ति से ही वायुमण्डल बनता है, यदि आपकी वृत्ति श्रेष्ठ है तो वायुमण्डल शुद्ध बन जायेगा।

    कई वर्णन करते हैं कि क्या करें वायुमण्डल ही ऐसा है, वायुमण्डल के कारण मेरी वृत्ति चंचल हुई - तो उस समय शक्तिशाली आत्मा के बजाए कमजोर आत्मा बन जाते हैं।

    लेकिन व्रत (प्रतिज्ञा) की स्मृति से वृत्ति को श्रेष्ठ बना दो तो शक्तिशाली बन जायेंगे।

     

    16.09.2021

    अपनी श्रेष्ठता द्वारा नवीनता का झण्डा लहराने वाले शक्ति स्वरूप भव

    अभी समय प्रमाण, समीपता के प्रमाण शक्ति रूप का प्रभाव जब दूसरों पर डालेंगे तब अन्तिम प्रत्यक्षता समीप ला सकेंगे।

    जैसे स्नेह और सहयोग को प्रत्यक्ष किया है ऐसे सर्विस के आइने में शक्ति रूप का अनुभव कराओ।

    जब अपनी श्रेष्ठता द्वारा शक्ति रूप की नवीनता का झण्डा लहरायेंगे तब प्रत्यक्षता होगी।

    अपने शक्ति स्वरूप से सर्वशक्तिमान् बाप का साक्षात्कार कराओ।

    15.09.2021

    विनाश के समय पेपर में पास होने वाले आकारी लाइट रूपधारी भव

    विनाश के समय पेपर में पास होने वा सर्व परिस्थितियों का सामना करने के लिए आकारी लाइट रूपधारी बनो।

    जब चलते फिरते लाइट हाउस हो जायेंगे तो आपका यह रूप (शरीर) दिखाई नहीं देगा।

    जैसे पार्ट बजाने समय चोला धारण करते हो, कार्य समाप्त हुआ चोला उतारा।

    एक सेकण्ड में धारण करो और एक सेकण्ड में न्यारे हो जाओ - जब यह अभ्यास होगा तो देखने वाले अनुभव करेंगे कि यह लाइट के वस्त्रधारी हैं, लाइट ही इन्हों का श्रंगार है।

     

    14.09.2021

    संकल्प के इशारों से सारी कारोबार चलाने वाले सदा लाइट के ताजधारी भव

    जो बच्चे सदा लाइट रहते हैं उनका संकल्प वा समय कभी व्यर्थ नहीं जाता। वही संकल्प उठता है जो होने वाला है।

    जैसे बोलने से बात को स्पष्ट करते हैं वैसे ही संकल्प से सारी कारोबार चलती है।

    जब ऐसी विधि अपनाओ तब यह साकार वतन सूक्ष्मवतन बनें।

    इसके लिए साइलेन्स की शक्ति जमा करो और लाइट के ताजधारी रहो।

    13.09.2021

    समस्याओं को चढ़ती कला का साधन अनुभव कर सदा सन्तुष्ट रहने वाले शक्तिशाली भव

    जो शक्तिशाली आत्मायें हैं वह समस्याओं को ऐसे पार कर लेती हैं जैसे कोई सीधा रास्ता सहज ही पार कर लेते हैं।

    समस्यायें उनके लिए चढ़ती कला का साधन बन जाती हैं।

    हर समस्या जानी पहचानी अनुभव होती है।

    वे कभी भी आश्चर्यवत नहीं होते बल्कि सदा सन्तुष्ट रहते हैं।

    मुख से कभी कारण शब्द नहीं निकलता लेकिन उसी समय कारण को निवारण में बदल देते हैं।

    12.09.2021

    सेकण्ड में देह रूपी चोले से न्यारा बन कर्मभोग पर विजय प्राप्त करने वाले सर्व शक्ति सम्पन्न भव

    जब कर्मभोग का जोर होता है, कर्मेन्द्रियां कर्मभोग के वश अपनी तरफ आकर्षित करती हैं अर्थात् जिस समय बहुत दर्द हो रहा हो, ऐसे समय पर कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन करने वाले, साक्षी हो कर्मेन्द्रियों से भोगवाने वाले ही सर्व शक्ति सम्पन्न अष्ट रत्न विजयी कहलाते हैं।

    इसके लिए बहुत समय का देह रूपी चोले से न्यारा बनने का अभ्यास हो।

    यह वस्त्र, दुनिया की वा माया की आकर्षण में टाइट अर्थात् खींचा हुआ न हो तब सहज उतरेगा।

    11.09.2021

    मनमत, परमत को समाप्त कर श्रीमत पर पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव

    श्रीमत पर चलने वाले एक संकल्प भी मनमत वा परमत पर नहीं कर सकते।

    स्थिति की स्पीड यदि तेज नहीं होती है तो जरूर कुछ न कुछ श्रीमत में मनमत वा परमत मिक्स है।

    मनमत अर्थात् अल्पज्ञ आत्मा के संस्कार अनुसार जो संकल्प उत्पन्न होता है वह स्थिति को डगमग करता है इसलिए चेक करो और कराओ, एक कदम भी श्रीमत के बिना न हो तब पदमों की कमाई जमा कर पदमापदम भाग्यशाली बन सकेंगे।

    10.09.2021

    कर्म करते हुए कर्म के बन्धन से मुक्त रहने वाले सहजयोगी स्वत: योगी भव

    जो महावीर बच्चे हैं उन्हें साकारी दुनिया की कोई भी आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सकती।

    वे स्वयं को एक सेकण्ड में न्यारा और बाप का प्यारा बना सकते हैं।

    डायरेक्शन मिलते ही शरीर से परे अशरीरी, आत्म-अभिमानी, बन्धन-मुक्त, योगयुक्त स्थिति का अनुभव करने वाले ही सहजयोगी, स्वत: योगी, सदा योगी, कर्मयोगी और श्रेष्ठ योगी हैं।

    वह जब चाहें, जितना समय चाहें अपने संकल्प, श्वांस को एक प्राणेश्वर बाप की याद में स्थित कर सकते हैं।

     

    09.09.2021

    बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनने वाले अचल-अडोल भव

    जो सदा बेहद की वैराग्य वृत्ति में रहते हैं वह कभी किसी भी दृश्य को देख घबराते वा हिलते नहीं, सदा अचल-अडोल रहते हैं क्योंकि बेहद की वैराग्य वृत्ति से नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बन जाते हैं।

    अगर थोड़ा बहुत कुछ देखकर अंश मात्र भी हलचल होती है या मोह उत्पन्न होता है तो अंगद के समान अचल-अडोल नहीं कहेंगे।

    बेहद की वैराग्य वृत्ति में गम्भीरता के साथ रमणीकता भी समाई हुई है।

    08.09.2021

    एक बाप की याद में सदा मगन रह एकरस अवस्था बनाने वाले साक्षी दृष्टा भव

    अभी ऐसे पेपर आने हैं जो संकल्प, स्वप्न में भी नहीं होंगे।

    परन्तु आपकी प्रैक्टिस ऐसी होनी चाहिए जैसे हद का ड्रामा साक्षी होकर देखा जाता है फिर चाहे दर्दनाक हो या हंसी का हो, अन्तर नहीं होता।

    ऐसे चाहे कोई का रमणीक पार्ट हो, चाहे स्नेही आत्मा का गम्भीर पार्ट हो.....हर पार्ट साक्षी दृष्टा होकर देखो, एकरस अवस्था हो।

    परन्तु ऐसी अवस्था तब रहेगी जब सदा एक बाप की याद में मगन होंगे।

     

    07.09.2021

    पावरफुल दर्पण द्वारा सभी को स्वयं का साक्षात्कार कराने वाले साक्षात्कारमूर्त भव

    जैसे दर्पण के आगे जो भी जाता है, उसे स्वयं का स्पष्ट साक्षात्कार हो जाता है।

    लेकिन अगर दर्पण पावरफुल नहीं तो रीयल रूप के बजाए और रूप दिखाई देता है।

    होगा पतला दिखाई देगा मोटा, इसलिए आप ऐसे पावरफुल दर्पण बन जाओ, जो सभी को स्वयं का साक्षात्कार करा सको अर्थात् आपके सामने आते ही देह को भूल अपने देही रूप में स्थित हो जायें - वास्तविक सर्विस यह है, इसी से जय-जयकार होगी।

     

    06.09.2021

    सदा पुण्य का खाता जमा करने और कराने वाले मास्टर शिक्षक भव

    हम मास्टर शिक्षक हैं, मास्टर कहने से बाप स्वत: याद आता है।

    बनाने वाले की याद आने से स्वयं निमित्त हूँ - यह स्वत: स्मृति में आ जाता है।

    विशेष स्मृति रहे कि हम पुण्य आत्मा हैं, पुण्य का खाता जमा करना और कराना - यही विशेष सेवा है।

    पुण्य आत्मा कभी पाप का एक परसेन्ट संकल्प मात्र भी नहीं कर सकती।

    मास्टर शिक्षक माना सदा पुण्य का खाता जमा करने और कराने वाले, बाप समान।

    05.09.2021

    एक बाप के लव में लवलीन रह सदा चढ़ती कला का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव

    सेवा में वा स्वयं की चढ़ती कला में सफलता का मुख्य आधार है - एक बाप से अटूट प्यार।

    बाप के सिवाए और कुछ दिखाई न दे।

    संकल्प में भी बाबा, बोल में भी बाबा, कर्म में भी बाप का साथ।

    ऐसी लवलीन आत्मा एक शब्द भी बोलती है तो उसके स्नेह के बोल दूसरी आत्मा को भी स्नेह में बांध देते हैं।

    ऐसी लवलीन आत्मा का एक बाबा शब्द ही जादू का काम करता है।

    वह रूहानी जादूगर बन जाती है।

     

    04.09.2021

    सूक्ष्म संकल्पों के बंधन से भी मुक्त बन ऊंची स्टेज का अनुभव करने वाले निर्बन्धन भव

    जो बच्चे जितना निर्बन्धन हैं उतना ऊंची स्टेज पर स्थित रह सकते हैं, इसलिए चेक करो कि मन्सा-वाचा व कर्मणा में कोई सूक्ष्म में भी धागा जुटा हुआ तो नहीं है!

    एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये।

    अपनी देह भी याद आई तो देह के साथ देह के संबंध, पदार्थ, दुनिया सब एक के पीछे आ जायेंगे।

    मैं निर्बन्धन हूँ - इस वरदान को स्मृति में रख सारी दुनिया को माया की जाल से मुक्त करने की सेवा करो।

     

    03.09.2021

    साक्षीपन की सीट द्वारा परेशानी शब्द को समाप्त करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव

    इस ड्रामा में जो कुछ भी होता है उसमें कल्याण भरा हुआ है, क्यों, क्या का क्वेश्चन समझदार के अन्दर उठ नहीं सकता।

    नुकसान में भी कल्याण समाया हुआ है, बाप का साथ और हाथ है तो अकल्याण हो नहीं सकता।

    ऐसे शान की शीट पर रहो तो कभी परेशान नहीं हो सकते।

    साक्षीपन की शीट परेशानी शब्द को खत्म कर देती है, इसलिए त्रिकालदर्शी बन प्रतिज्ञा करो कि न परेशान होंगे, न परेशान करेंगे।

    02.09.2021

    लाइट हाउस की स्थिति द्वारा पाप कर्मो को समाप्त करने वाले पुण्य आत्मा भव

    जहाँ लाइट होती है वहाँ कोई भी पाप का कर्म नहीं होता है।

    तो सदा लाइट हाउस स्थिति में रहने से माया कोई पाप कर्म नहीं करा सकती, सदा पुण्य आत्मा बन जायेंगे।

    पुण्य आत्मा संकल्प में भी कोई पाप कर्म नहीं कर सकती।

    जहाँ पाप होता है वहाँ बाप की याद नहीं होती।

    तो दृढ़ संकल्प करो कि मैं पुण्य आत्मा हूँ, पाप मेरे सामने आ नहीं सकता।

    स्वप्न वा संकल्प में भी पाप को आने न दो।

     

    01.09.2021

    सदा कम्बाइण्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा मुश्किल कार्य को सहज बनाने वाले डबल लाइट भव

    जो बच्चे निरन्तर याद में रहते हैं वे सदा साथ का अनुभव करते हैं।

    उनके सामने कोई भी समस्या आयेगी तो अपने को कम्बाइंड अनुभव करेंगे, घबरायेंगे नहीं।

    ये कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति कोई भी मुश्किल कार्य को सहज बना देती है।

    कभी कोई बड़ी बात सामने आये तो अपना बोझ बाप के ऊपर रख स्वयं डबल लाइट हो जाओ।

    तो फरिश्ते समान दिन-रात खुशी में मन से डांस करते रहेंगे।

     

    31.08.2021

    अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाने वाले सदा प्रसन्नचित भव

    सभी ब्राह्मण बच्चों को जन्म से ही ताज, तख्त, तिलक जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त होता है।

    तो इस भाग्य के चमकते हुए सितारे को देखते हुए अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाते रहो तो गुण सम्पन्न बन जायेंगे।

    अपनी कमजोरियों के गुण नहीं गाओ, भाग्य के गुण गाते रहो, प्रश्नों से पार रहो तब सदा प्रसन्नचित रहने का वरदान प्राप्त होगा।

    फिर दूसरों को भी सहज ही प्रसन्न कर सकेंगे।

     

    30.08.2021

    नॉलेज द्वारा रावण के बहु रूपों को जानकर उसकी अट्रैक्शन से मुक्त रहने वाले हिम्मतवान भव

    जो बच्चे नॉलेज द्वारा रावण के बहु रूपों को अच्छी तरह से जान गये हैं, उनके आगे वह नजदीक भी नहीं आ सकता।

    चाहे सोने का, चाहे हीरे का रूप धारण करे लेकिन उसकी अट्रैक्शन में नहीं आयेंगे।

    ऐसी सच्ची सीतायें बन लकीर के अन्दर रहने का लक्ष्य रख, हिम्मतवान बनो।

    फिर यह रावण की बहु सेना वार करने के बजाए आपकी सहयोगी बन जायेगी।

    प्रकृति के 5 तत्व और 5 विकार ट्रांसफर होकर आपकी सेवा के लिए आयेंगे।

     

    29.08.2021

    मनन शक्ति द्वारा वेस्ट के वेट को समाप्त करने वाले सदा शक्तिशाली भव

    आत्मा पर वेस्ट का ही वेट है। वेस्ट संकल्प, वेस्ट वाणी, वेस्ट कर्म इससे आत्मा भारी हो जाती है।

    अब इस वेट को खत्म करो।

    इस वेट को समाप्त करने के लिए सदा सेवा में बिजी रहो, मनन शक्ति को बढ़ाओ।

    मनन शक्ति से आत्मा शक्तिशाली बन जायेगी।

    जैसे भोजन हज़म करने से खून बनता है फिर वह शक्ति का काम करता, ऐसे मनन करने से आत्मा की शक्ति बढ़ती है।

    28.08.2021

    निंदा-स्तुति, जय-पराजय में समान स्थिति रखने वाले बाप समान सम्पन्न व सम्पूर्ण भव

    जब आत्मा की सम्पूर्ण व सम्पन्न स्थिति बन जाती है तो निंदा-स्तुति, जय-पराजय, सुख-दु:ख सभी में समानता रहती है।

    दु:ख में भी सूरत व मस्तक पर दु:ख की लहर के बजाए सुख वा हर्ष की लहर दिखाई दे, निंदा सुनते भी अनुभव हो कि यह निंदा नहीं, सम्पूर्ण स्थिति को परिपक्व करने के लिए यह महिमा योग्य शब्द हैं - ऐसी समानता रहे तब कहेंगे बाप समान।

    जरा भी वृत्ति में यह न आये कि यह दुश्मन है, गाली देने वाला है और यह महिमा करने वाला है।

     

    27.08.2021

    सर्व आत्माओं के प्रति स्नेह और शुभचिंतक की भावना रखने वाले देही-अभिमानी भव

    जैसे महिमा करने वाली आत्मा के प्रति स्नेह की भावना रहती है, ऐसे ही जब कोई शिक्षा का इशारा देता है तो उसमें भी उस आत्मा के प्रति ऐसे ही स्नेह की, शुभचिंतन की भावना रहे - कि यह मेरे लिए बड़े से बड़े शुभचिंतक हैं - ऐसी स्थिति को कहा जाता है देही-अभिमानी।

    अगर देही-अभिमानी नहीं हैं तो जरूर अभिमान है।

    अभिमान वाला कभी अपना अपमान सहन नहीं कर सकता।

     

    26.08.2021

    अपने शिक्षा स्वरूप द्वारा शिक्षा देने वाले शिक्षा सम्पन्न योग्य शिक्षक भव

    योग्य शिक्षक उसे कहा जाता है जो अपने शिक्षा स्वरूप द्वारा शिक्षा दे। उनका स्वरूप ही शिक्षा सम्पन्न होगा।

    उनका देखना-चलना भी किसको शिक्षा देगा।

    जैसे साकार रूप में कदम-कदम हर कर्म शिक्षक के रूप में प्रैक्टिकल में देखा, जिसको दूसरे शब्दों में चरित्र कहते हैं।

    किसी को वाणी द्वारा शिक्षा देना तो कामन बात है लेकिन सभी अनुभव चाहते हैं।

    तो अपने श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति से अनुभव कराओ।

     

    25.08.2021

    साकार और निराकार बाप के साथ द्वारा हर संकल्प में विजयी बनने वाले सदा सफलमूर्त भव

    जैसे निराकार आत्मा और साकार शरीर दोनों के सम्बन्ध से हर कार्य कर सकते हो, ऐसे ही निराकार और साकार बाप दोनों को साथ वा सामने रखते हुए हर कर्म वा संकल्प करो तो सफलमूर्त बन जायेंगे क्योंकि जब बापदादा सम्मुख हैं तो जरूर उनसे वेरीफाय करा करके निश्चय और निर्भयता से करेंगे।

    इससे समय और संकल्प की बचत होगी।

    कुछ भी व्यर्थ नहीं जायेगा, हर कर्म स्वत: सफल होगा।

     

    24.08.2021

    अपने असली संस्कारों को इमर्ज कर सदा हर्षित रहने वाले ज्ञान स्वरूप भव

    जो बच्चे ज्ञान का सिमरण कर उसका स्वरूप बनते हैं वह सदा हर्षित रहते हैं।

    सदा हर्षित रहना - यह ब्राह्मण जीवन का असली संस्कार है।

    दिव्य गुण अपनी चीज़ है, अवगुण माया की चीज़ है जो संगदोष से आ गये हैं।

    अब उसे पीठ दे दो और अपने आलमाइटी अथॉरिटी की पोजीशन पर रहो तो सदा हर्षित रहेंगे।

    कोई भी आसुरी वा व्यर्थ संस्कार सामने आने की हिम्मत भी नहीं रख सकेंगे।

     

    23.08.2021

    अमृतवेले की मदद वा श्रीमत की पालना द्वारा स्मृति को समर्थवान बनाने वाले स्मृति स्वरूप भव

    अपनी स्मृति को समर्थवान बनाना है वा स्वत: स्मृति स्वरूप बनना है तो अमृतवेले के समय की वैल्यु को जानो।

    जैसी श्रीमत है उसी प्रमाण समय को पहचान कर समय प्रमाण चलो तो सहज सर्व प्राप्ति कर सकेंगे और मेहनत से छूट जायेंगे।

    अमृतवेले के महत्व को समझकर चलने से हर कर्म महत्व प्रमाण होंगे।

    उस समय विशेष साइलेन्स रहती है इसलिए सहज स्मृति को समर्थवान बना सकते हो।

     

    22.08.2021

    तमोगुणी वायुमण्डल में अपनी स्थिति एकरस, अचल-अडोल रखने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव

    दिन-प्रतिदिन परिस्थितियां अति तमोप्रधान बननी हैं, वायुमण्डल और भी बिगड़ने वाला है।

    ऐसे वायुमण्डल में कमल पुष्प समान न्यारे रहना, अपनी स्थिति सतोप्रधान बनाना - इसके लिए इतनी हिम्मत वा शक्ति की आवश्यकता है।

    जब यह वरदान स्मृति में रहता कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ तो चाहे प्रकृति द्वारा, चाहे लौकिक सम्बन्ध द्वारा, चाहे दैवी परिवार द्वारा कोई भी परीक्षा आ जाए - उसमें सदा एकरस, अचल-अडोल रहेंगे।

     

    21.08.2021

    सन्तुष्टता के त्रिमूर्ति सर्टीफिकेट द्वारा सदा सफलता प्राप्त करने वाले ऊंच पद के अधिकारी भव

    सदा सफल होने के लिए बाप और परिवार से ठीक कनेक्शन चाहिए।

    हर एक को तीन सर्टीफिकेट लेने हैं - बाप, आप और परिवार।

    परिवार को सन्तुष्ट करने के लिए छोटी सी बात याद रखो - कि रिगार्ड देने का रिकार्ड निरन्तर चलता रहे, इसमें निष्काम बनो।

    बाप को सन्तुष्ट करने के लिए सच्चे बनो।

    और स्वयं से सन्तुष्ट रहने के लिए सदा श्रीमत की लकीर के अन्दर रहो। ये तीन सर्टीफिकेट ऊंच पद का अधिकारी बना देंगे।

     

    20.08.2021

    फरियाद को याद में परिवर्तन करने वाले स्वत: और निरन्तर योगी भव

    संगमयुग की विशेषता है - अभी-अभी पुरूषार्थ, अभी-अभी प्रत्यक्षफल।

    अभी स्मृति स्वरूप अभी प्राप्ति का अनुभव।

    भविष्य की गॉरन्टी तो है ही लेकिन भविष्य से श्रेष्ठ भाग्य अभी का है।

    इस भाग्य के नशे में रहो तो स्वत: याद रहेगी।

    जहाँ याद है वहाँ फरियाद नहीं।

    क्या करें, कैसे करें, यह होता नहीं है, थोड़ी मदद दे दो - यह है फ़रियाद।

    तो फरियाद को छोड़कर स्वत: योगी निरन्तर योगी बनो।

     

    19.08.2021

    “पहले आप'' के पाठ द्वारा ताजधारी बनने वाले चतुरसुजान भव

    जैसे बापदादा अपने को ओबीडियन्ट सर्वेन्ट कहते हैं, सर्वेन्ट कहने से ताजधारी स्वत: बन जाते हैं, ऐसे आप बच्चे भी स्वयं नम्रचित बन दूसरे को श्रेष्ठ सीट दे दो, उनको सीट पर बिठायेंगे तो वह उतरकर आपको स्वत: ही बिठा देगा।

    अगर आप बैठने की कोशिश करेंगे तो वह बैठने नहीं देगा इसलिए बिठाना ही बैठना है।

    तो “पहले आप'' का पाठ पक्का करो, फिर संस्कार भी सहज ही मिल जायेंगे, ताजधारी भी बन जायेंगे - यही चतुरसुजान बनने का तरीका है, इसमें मेहनत भी नहीं प्राप्ति भी ज्यादा है।

     

    18.08.2021

    मेहमानपन की वृत्ति द्वारा प्रवृत्ति को श्रेष्ठ, स्टेज को ऊंचा बनाने वाले सदा उपराम भव

    जो स्वयं को मेहमान समझकर चलते हैं वे अपने देह रूपी मकान से भी निर्मोही हो जाते हैं।

    मेहमान का अपना कुछ नहीं होता, कार्य में सब वस्तुएं लगायेंगे लेकिन अपनेपन का भाव नहीं होगा।

    वे सब साधनों को अपनाते हुए भी जितना न्यारे उतना बाप के प्यारे रहते हैं।

    देह, देह के संबंध और वैभवों से सहज उपराम हो जाते हैं।

    जितना मेहमानपन की वृत्ति रहती उतनी प्रवृत्ति श्रेष्ठ और स्टेज ऊंची रहती है।

     

    17.08.2021

    विस्तार की रंग-बिरंगी बातों से किनारा कर मुश्किल को सहज बनाने वाले सहजयोगी भव

    जब बाप को देखने के बजाए बातों को देखने लग जाते हो तो कई क्वेश्चन उत्पन्न होते हैं और सहज बात भी मुश्किल अनुभव होने लगती है क्योंकि बातें हैं वृक्ष और बाप है बीज।

    जो विस्तार वाले वृक्ष को हाथ में उठाते हैं वह बाप को किनारे कर देते हैं, फिर विस्तार एक जाल बन जाता है जिसमें फंसते जाते हैं।

    बातों के विस्तार में रंग-बिरंगी बातें होती हैं जो अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं, इसलिए बीजरूप बाप की याद से बिन्दी लगाकर उससे किनारा कर लो तो सहज योगी बन जायेंगे।

    16.08.2021

    कर्मातीत स्टेज पर स्थित हो चारों ओर की सेवाओं को हैण्डल करने वाले सिद्धि स्वरूप भव

    आगे चलकर चारों ओर की सेवाओं के विस्तार को हैण्डल करने के लिए भिन्न-भिन्न साधन अपनाने पड़ेंगे क्योंकि उस समय पत्र व्यवहार या टेलीग्राम, टेलीफोन आदि काम नहीं करेंगे।

    ऐसे समय पर वायरलेस सेट चाहिए, इसके लिए अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी कर्मातीत स्टेज में स्थित रहने का अभ्यास करो तब चारों ओर संकल्प की सिद्धि द्वारा सेवा में सहयोगी बन सकेंगे।

    15.08.2021

    अपनी अलौकिक रूहानी वृत्ति द्वारा सर्व आत्माओं पर अपना प्रभाव डालने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव

    जैसे कोई आकर्षण करने वाली चीज़ आस-पास वालों को अपनी तरफ आकर्षित करती है, सभी का अटेन्शन जाता है।

    वैसे जब आपकी वृत्ति अलौकिक, रूहानियत वाली होगी तो आपका प्रभाव अनेक आत्माओं पर स्वत: पड़ेगा।

    अलौकिक वृत्ति अर्थात् न्यारे और प्यारे पन की स्थिति स्वत: अनेक आत्माओं को आकर्षित करती है।

    ऐसी अलौकिक शक्तिशाली आत्मायें मास्टर ज्ञान सूर्य बन अपना प्रकाश चारों ओर फैलाती हैं।

     

    14.08.2021

    एवररेडी बन हर परिस्थिति रूपी पेपर में फुल पास होने वाले एवरहैपी भव

    जो एवररेडी हैं उन्हों का प्रैक्टिकल स्वरूप एवर हैपी होगा।

    कोई भी परिस्थिति रूपी पेपर वा प्राकृतिक आपदा द्वारा आया हुआ पेपर वा कोई भी शारीरिक कर्मभोग रूपी पेपर आ जाये - इन सब प्रकार के पेपर्स में फुल पास होने वाले को ही एवररेडी कहेंगे।

    जैसे समय किसके लिए रूकता नहीं, ऐसे कभी कोई भी रूकावट रोक न सके, माया के सूक्ष्म वा स्थूल विघ्न एक सेकण्ड में समाप्त हो जाएं तब एवरहैपी रह सकेंगे।

    13.08.2021

    कल्याण की वृत्ति और शुभचिंतक भाव द्वारा विश्व कल्याण के निमित्त बनने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव

    तीव्र पुरूषार्थी वह हैं जो सभी के प्रति कल्याण की वृत्ति और शुभचिंतक भाव रखे।

    भल कोई बार-बार गिराने की कोशिश करे, मन को डगमग करे, विघ्न रूप बने फिर भी आपका उसके प्रति सदा शुभचिंतक का अडोल भाव हो, बात के कारण भाव न बदले।

    हर परिस्थिति में वृत्ति और भाव यथार्थ हो तो आपके ऊपर उसका प्रभाव नहीं पड़ेगा।

    फिर कोई भी व्यर्थ बातें देखने में ही नहीं आयेंगी, टाइम बच जायेगा।

    यही है विश्व कल्याणकारी स्टेज।

     

    12.08.2021

    आपस में एक दो की विशेषता देखने और वर्णन करने वाले श्रेष्ठता सम्पन्न होलीहंस भव

    संगमयुग पर हर बच्चे को नॉलेज द्वारा कोई न कोई विशेष गुण अवश्य प्राप्त है, इसलिए होलीहंस बन हर एक की विशेषता को देखो और वर्णन करो।

    जिस समय किसी की कमजोरी देखते या सुनते हो तो समझना चाहिए कि यह कमजोरी इनकी नहीं, मेरी है क्योंकि हम सब एक ही बाप के, एक ही परिवार के, एक ही माला के मणके हैं।

    जैसे अपनी कमजोरी को प्रसिद्ध नहीं करना चाहते ऐसे दूसरे की कमजोरी का भी वर्णन नहीं करो।

    होलीहंस माना विशेषताओं को ग्रहण करना और कमजोरियों को मिटाना।

     

    11.08.2021

    हर एक की राय को रिगार्ड दे विश्व द्वारा रिगार्ड प्राप्त करने वाले बालक सो मालिक भव

    चाहे कोई छोटा हो या बड़ा - आप हर एक की राय को रिगार्ड जरूर दो क्योंकि कोई की भी राय को ठुकराना गोया अपने आपको ठुकराना है इसलिए यदि किसी के व्यर्थ को कट भी करना है तो पहले उसे रिगार्ड दो, स्वमान दे फिर शिक्षा दो।

    यह भी तरीका है।

    जब ऐसे रिगार्ड देने के संस्कार भर जायेंगे तो विश्व से आपको रिगार्ड मिलेगा, इसके लिए बालक सो मालिक, मालिक सो बालक बनो।

    बुद्धि बेहद में शुभ कल्याण की भावना से सम्पन्न हो।

     

    10.08.2021

    सत्यता की महानता द्वारा सदा खुशी के झूले में झूलने वाले अथॉरिटी स्वरूप भव

    सत्यता की अथॉरिटी स्वरूप बच्चों का गायन है - सच तो बिठो नच। सत्य की नांव हिलेगी लेकिन डूब नहीं सकती।

    आपको भी कोई कितना भी हिलाने की कोशिश करे लेकिन आप सत्यता की महानता से और ही खुशी के झूले में झूलते हो।

    वह आपको नहीं हिलाते लेकिन झूले को हिलाते हैं।

    यह हिलाना नहीं लेकिन झुलाना है इसलिए आप उन्हें धन्यवाद दो कि आप झुलाओ और हम बाप के साथ झूलें।

     

    09.08.2021

    दिल में सदा एक राम को बसाकर सच्ची सेवा करने वाले मायाजीत, विजयी भव

    हनूमान की विशेषता दिखाते हैं कि वह सदा सेवाधारी, महावीर था, इसलिए खुद नहीं जला लेकिन पूंछ द्वारा लंका जला दी।

    तो यहाँ भी जो सदा सेवाधारी हैं वही माया के अधिकार को खत्म कर सकते हैं, जो सेवाधारी नहीं वह माया के राज्य को जला नहीं सकते।

    हनूमान के दिल में सदा एक राम बसता था, तो बाप के सिवाए और कोई दिल में न हो, अपने देह की स्मृति भी न हो तब माया-जीत, विजयी बनेंगे।

     

    08.08.2021

    मनन शक्ति द्वारा हर प्वाइंट के अनुभवी बनने वाले सदा शक्तिशाली मायाप्रूफ, विघ्नप्रूफ भव

    जैसे शरीर की शक्ति के लिए पाचन शक्ति वा हजम करने की शक्ति आवश्यक है ऐसे आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए मनन शक्ति चाहिए।

    मनन शक्ति द्वारा अनुभव स्वरूप हो जाना - यही सबसे बड़े से बड़ी शक्ति है।

    ऐसे अनुभवी कभी धोखा नहीं खा सकते, सुनी सुनाई बातों में विचलित नहीं हो सकते।

    अनुभवी सदा सम्पन्न रहते हैं।

    वह सदा शक्तिशाली, मायाप्रूफ, विघ्न प्रूफ बन जाते हैं।

     

    07.08.2021

    डबल लाइट बन कर्मातीत अवस्था का अनुभव करने वाले कर्मयोगी भव

    जैसे कर्म में आना स्वाभाविक हो गया है वैसे कर्मातीत होना भी स्वाभाविक हो जाए, इसके लिए डबल लाइट रहो।

    डबल लाइट रहने के लिए कर्म करते हुए स्वयं को ट्रस्टी समझो और आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, इन्हीं दो बातों का अटेन्शन रखने से सेकण्ड में कर्मातीत, सेकेण्ड में कर्मयोगी बन जायेंगे।

    निमित्त मात्र कर्म करने के लिए कर्मयोगी बनो फिर कर्मातीत अवस्था का अनुभव करो।

     

    06.08.2021

    सहन शक्ति की विशेषता द्वारा दूसरे के संस्कारों को परिवर्तन करने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव

    जैसे ब्रह्मा बाप ने ज्ञानी और अज्ञानी आत्माओं द्वारा इनसल्ट सहन कर उसे परिवर्तन किया तो फालो फादर करो, इसके लिए अपने संकल्पों में सिर्फ दृढ़ता को धारण करो।

    यह नहीं सोचो कि कहाँ तक होगा।

    सिर्फ थोड़ा पहले लगता है कैसे होगा, कहाँ तक सहन करेंगे।

    लेकिन अगर आपके लिए कोई कुछ बोलता भी है तो आप चुप रहो, सहन कर लो तो वह भी बदल जायेगा।

    सिर्फ दिलशिकस्त नहीं बनो।

     

    05.08.2021

    रहम की दृष्टि द्वारा घृणा दृष्टि को समाप्त करने वाले नॉलेजफुल भव

    जो बच्चे एक दो के संस्कारों को जानकर संस्कार परिवर्तन की लगन में रहते हैं, कभी यह नहीं सोचते कि यह तो हैं ही ऐसे, उन्हें कहेंगे नॉलेजफुल।

    वे स्वयं को देखते और निर्विघ्न रहते हैं। उनके संस्कार बाप के समान रहमदिल के होते हैं।

    रहम की दृष्टि, घृणा दृष्टि को समाप्त कर देती है।

    ऐसे रहमदिल बच्चे कभी आपस में खिट-खिट नहीं करते।

    वे सपूत बनकर सबूत देते हैं।

     

    04.08.2021

    पवित्रता के आधार पर सुख-शान्ति का अनुभव करने वाले नम्बरवन अधिकारी भव

    जो बच्चे “पवित्रता'' की प्रतिज्ञा को सदा स्मृति में रखते हैं, उन्हें सुख-शान्ति की अनुभूति स्वत: होती है।

    पवित्रता का अधिकार लेने में नम्बरवन रहना अर्थात् सर्व प्राप्तियों में नम्बरवन बनना इसलिए पवित्रता के फाउण्डेशन को कभी कमजोर नहीं करना तब ही लास्ट सो फास्ट जायेंगे।

    इसी धर्म में सदा स्थित रहना-कुछ भी हो जाए - चाहे व्यक्ति, चाहे प्रकृति, चाहे परिस्थिति कितना भी हिलाये, लेकिन धरत परिये धर्म न छोड़िये।

     

    03.08.2021

    बाप के संस्कारों को अपना निजी संस्कार बनाने वाले व्यर्थ वा पुराने संस्कारों से मुक्त भव

    कोई भी व्यर्थ संकल्प वा पुराने संस्कार देह-अभिमान के संबंध से हैं, आत्मिक स्वरूप के संस्कार बाप समान होंगे।

    जैसे बाप सदा विश्व कल्याणकारी, परोपकारी, रहमदिल, वरदाता....है, ऐसे स्वयं के संस्कार नेचुरल बन जाएं।

    संस्कार बनना अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म स्वत: उसी प्रमाण चलना।

    जीवन में संस्कार एक चाबी हैं जिससे स्वत: चलते रहते हैं।

    फिर मेहनत करने की जरूरत नहीं रहती।

     

    02.08.2021

    “मैं पन'' का त्याग कर सेवा में सदा खोये रहने वाले त्यागमूर्त, सेवाधारी भव

    सेवाधारी सेवा में सफलता की अनुभूति तभी कर सकते हैं जब “मैं पन'' का त्याग हो। मैं सेवा कर रही हूँ, मैंने सेवा की - इस सेवा भाव का त्याग। मैंने नहीं की लेकिन मैं करनहार हूँ, करावनहार बाप है। “मैं पन'' बाबा के लव में लीन हो जाए - इसको कहा जाता है सेवा में सदा खोये रहने वाले त्याग-मूर्त सच्चे सेवाधारी। कराने वाला करा रहा है, हम निमित्त हैं। सेवा में “मैं पन'' मिक्स होना अर्थात् मोहताज बनना। सच्चे सेवाधारी में यह संस्कार हो नहीं सकते।

     

    01.08.2021

    हद की जिम्मेवारियों को बेहद में परिवर्तन करने वाले स्मृति स्वरूप नष्टोमोहा भव

    नष्टोमोहा बनने के लिए सिर्फ अपने स्मृति स्वरूप को परिवर्तन करो। मोह तब आता है जब यह स्मृति रहती है कि हम गृहस्थी हैं, हमारा घर, हमारा सम्बन्ध है। अब इस हद की जिम्मेवारी को बेहद की जिम्मेवारी में परिवर्तन कर दो। बेहद की जिम्मेवारी निभायेंगे तो हद की स्वत: पूरी हो जायेगी। लेकिन यदि बेहद की जिम्मेवारी को भूल सिर्फ हद की जिम्मेवारी निभाते हो तो उसे और ही बिगाड़ते हो क्योंकि वह फर्ज, मोह का मर्ज हो जाता है इसलिए अपने स्मृति स्वरूप को परिवर्तन कर नष्टोमोहा बनो।

     

    31.07.2021

    अपने शान्त स्वरूप स्टेज द्वारा शान्ति की किरणें फैलाने वाले मास्टर शान्ति सागर भव

    वर्तमान समय विश्व के मैजारिटी आत्माओं को सबसे ज्यादा आवश्यकता है - सच्चे शान्ति की। अशान्ति के अनेक कारण दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं और बढ़ते जायेंगे। अगर स्वयं अशान्त नहीं भी होंगे तो औरों के अशान्ति का वायुमण्डल, वातावरण शान्त अवस्था में बैठने नहीं देगा। अशान्ति के तनाव का अनुभव बढ़ेगा। ऐसे समय पर आप मास्टर शान्ति के सागर बच्चे अशान्ति के संकल्पों को मर्ज कर विशेष शान्ति के वायब्रेशन फैलाओ।

     

    30.07.2021

    निरन्तर बाप के साथ की अनुभूति द्वारा हर सेकण्ड, हर संकल्प में सहयोगी बनने वाले सहजयोगी भव

    जैसे शरीर और आत्मा का जब तक पार्ट है तब तक अलग नहीं हो पाती है, ऐसे बाप की याद बुद्धि से अलग न हो, सदा बाप का साथ हो, दूसरी कोई भी स्मृति अपने तरफ आकर्षित न करे - इसको ही सहज और स्वत: योगी कहा जाता है।

    ऐसा योगी हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर वचन, हर कर्म में सहयोगी होता है।

    सहयोगी अर्थात् जिसका एक संकल्प भी सहयोग के बिना न हो।

    ऐसे योगी और सहयोगी शक्तिशाली बन जाते हैं।

     

    29.07.2021

    उपराम और एवररेडी बन बुद्धि द्वारा अशरीरी पन का अभ्यास करने वाले सर्व कलाओं में सम्पन्न भव

    जैसे सर्कस में कला दिखाने वाले कलाबाज का हर कर्म कला बन जाता है।

    वे कलाबाज शरीर के कोई भी अंग को जैसे चाहें, जहाँ चाहें, जितना समय चाहें मोल्ड कर सकते हैं, यही कला है।

    आप बच्चे बुद्धि को जब चाहो जितना समय, जहाँ स्थित करने चाहो वहाँ स्थित कर लो - यही सबसे बड़ी कला है।

    इस एक कला से 16 कला सम्पन्न बन जायेंगे।

    इसके लिए ऐसे उपराम और एवररेडी बनो जो आर्डर प्रमाण एक सेकण्ड में अशरीरी बन जाओ।

    युद्ध में समय न जाये।

     

    28.07.2021

    आलमाइटी बाप की अथॉरिटी से हर कार्य को सहज करने वाले सदा अटल निश्चयबुद्धि भव

    हम सबसे श्रेष्ठ आलमाइटी बाप की अथॉरिटी से सब कार्य करने वाले हैं, यह इतना अटल निश्चय हो जो कोई टाल ना सके, इससे कितना भी कोई बड़ा कार्य करते अति सहज अनुभव करेंगे।

    जैसे आजकल साइंस ने ऐसी मशीनरी तैयार की है जो कोई भी प्रश्न का उत्तर सहज ही मिल जाता है, दिमाग चलाने से छूट जाते हैं।

    ऐसे आलमाइटी अथॉरिटी को सामने रखेंगे तो सब प्रश्नों का उत्तर सहज मिल जायेगा और सहज मार्ग की अनुभूति होगी।

     

    27.07.2021

    अपनी सम्पूर्णता के आधार पर समय को समीप लाने वाले मास्टर रचयिता भव

    समय आपकी रचना है, आप मास्टर रचयिता हो।

    रचयिता रचना के आधार पर नहीं होते। रचयिता रचना को अधीन करते हैं इसलिए यह कभी नहीं सोचो कि समय आपेही सम्पूर्ण बना देगा।

    आपको सम्पूर्ण बन समय को समीप लाना है।

    वैसे कोई भी विघ्न आता है तो समय प्रमाण जायेगा जरूर लेकिन समय से पहले परिवर्तन शक्ति द्वारा उसे परिवर्तन कर दो - तो उसकी प्राप्ति आपको हो जायेगी।

    समय के आधार पर परिवर्तन किया तो उसकी प्राप्ति आपको नहीं होगी।

     

    26.07.2021

    परिवर्तन शक्ति द्वारा सर्व की शुक्रिया के पात्र बनने वाले विघ्न जीत भव

    यदि आपका कोई अपकार करे तो आप एक सेकण्ड में अपकार को उपकार में परिवर्तित कर दो, कोई अपने संस्कार-स्वभाव के रूप में परीक्षा बनकर सामने आये तो आप एक की स्मृति से ऐसी आत्मा के प्रति भी रहमदिल के श्रेष्ठ संस्कार-स्वभाव धारण कर लो, कोई देहधारी दृष्टि से सामने आये तो उनकी दृष्टि को आत्मिक दृष्टि में परिवर्तित कर लो, ऐसे परिवर्तन करने की युक्ति आ जाए तो विघ्न जीत बन जायेंगे। फिर सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्मायें आपका शुक्रिया मानेंगी।

     

    25.07.2021

    श्रेष्ठ तकदीर की स्मृति द्वारा अपने समर्थ स्वरूप में रहने वाले सूर्यवंशी पद के अधिकारी भव

    जो अपनी श्रेष्ठ तकदीर को सदा स्मृति में रखते हैं वह समर्थ स्वरूप में रहते हैं। उन्हें सदा अपना अनादि असली स्वरूप स्मृति में रहता है।

    कभी नकली फेस धारण नहीं करते।

    कई बार माया नकली गुण और कर्तव्य का स्वरूप बना देती है।

    किसको क्रोधी, किसको लोभी, किसको दु:खी, किसको अशान्त बना देती है - लेकिन असली स्वरूप इन सब बातों से परे है।

    जो बच्चे अपने असली स्वरूप में स्थित रहते हैं वह सूर्यवंशी पद के अधिकारी बन जाते हैं।

     

    24.07.2021

    त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रह सदा अचल और साक्षी रहने वाले नम्बरवन तकदीरवान भव

    त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर हर संकल्प, हर कर्म करो और हर बात को देखो, यह क्यों, यह क्या - यह क्वेश्चन मार्क न हो, सदा फुलस्टॉप।

    नथिंगन्यु। हर आत्मा के पार्ट को अच्छी तरह से जानकर पार्ट में आओ।

    आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में आते न्यारे और प्यारे पन की समानता रहे तो हलचल समाप्त हो जायेगी।

    ऐसे सदा अचल और साक्षी रहना - यही है नम्बरवन तकदीरवान आत्मा की निशानी।

     

    23.07.2021

    कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति और पोजीशन के नशे द्वारा कल्प-कल्प के अधिकारी भव

    “मैं और मेरा बाबा'' - इस स्मृति में कम्बाइन्ड रहो तथा यह श्रेष्ठ पोजीशन सदा स्मृति में रहे कि हम आज ब्राह्मण हैं कल देवता बनेंगे।

    हम सो, सो हम का मन्त्र सदा याद रहे तो इस नशे और खुशी में पुरानी दुनिया सहज भूल जायेगी।

    सदा यही खुमारी रहेगी कि हम ही कल्प-कल्प की अधिकारी आत्मा हैं।

    हम ही थे, हम ही हैं और हम ही कल्प-कल्प होंगे।

     

    22.07.2021

    पहली श्रीमत पर विशेष अटेन्शन दे फाउण्डेशन को मजबूत बनाने वाले सहजयोगी भव

     

    बापदादा की नम्बरवन श्रीमत है कि अपने को आत्मा समझकर बाप को याद करो।

    यदि आत्मा के बजाए अपने को साधारण शरीरधारी समझते हो तो याद टिक नहीं सकती।

    वैसे भी कोई दो चीजों को जब जोड़ा जाता है तो पहले समान बनाते हैं, ऐसे ही आत्मा समझकर याद करो तो याद सहज हो जायेगी।

    यह श्रीमत ही मुख्य फाउण्डेशन है।

    इस बात पर बार-बार अटेन्शन दो तो सहजयोगी बन जायेंगे।

     

    21.07.2021

    सत्यता की शक्ति द्वारा प्रकृति वा विश्व को सतोप्रधान बनाने वाले मास्टर विधि-विधाता भव

    जब आप बच्चे सत्यता की शक्ति को धारण कर मास्टर विधि विधाता बनते हो तो प्रकृति सतोप्रधान बन जाती है, युग सतयुग बन जाता है।

    सर्व आत्मायें सद्गति की तकदीर बना लेती है।

    आपकी सत्यता पारस के समान है।

    जैसे पारस लोहे को पारस बना देता है, ऐसे सत्यता की शक्ति आत्मा को, प्रकृति को, समय को, सर्व सामग्री को, सर्व सम्बन्ध को, संस्कारों को, आहार-व्यवहार को सतोप्रधान बना देती है।

    20.07.2021

    सदा मनन द्वारा मगन अवस्था के सागर में समाने का अनुभव करने वाले अनुभवी मूर्त भव

    अनुभवों को बढ़ाने का आधार है मनन शक्ति।

    मनन वाला स्वत: मगन रहता है। मगन अवस्था में योग लगाना नहीं पड़ता लेकिन निरन्तर लगा रहता है, मेहनत नहीं करनी पड़ती।

    मगन अर्थात् मुहब्बत के सागर में समाया हुआ, ऐसा समाया हुआ जो कोई अलग कर नहीं सकता।

    तो मेहनत से छूटो, सागर के बच्चे हो तो अनुभवों के तलाब में नहीं नहाओ लेकिन सागर में समा जाओ तब कहेंगे अनुभवी मूर्त।

     

    19.07.2021

    अपने अनादि आदि स्वरूप की स्मृति से निर्बन्धन बनने और बनाने वाले मरजीवा भव

    जैसे बाप लोन लेता है, बंधन में नहीं आता, ऐसे आप मरजीवा जन्म वाले बच्चे शरीर के, संस्कारों के, स्वभाव के बंधनों से मुक्त बनो, जब चाहें जैसे चाहें वैसे संस्कार अपने बना लो।

    जैसे बाप निर्बन्धन है ऐसे निर्बन्धन बनो। मूलवतन की स्थिति में स्थित होकर फिर नीचे आओ।

    अपने अनादि आदि स्वरूप की स्मृति में रहो, अवतरित हुई आत्मा समझकर कर्म करो तो और भी आपको फालो करेंगे।

     

    18.07.2021

    किसी की कमी, कमजोरी को न देख अपने गुण व शक्तियों का सहयोग देने वाले मास्टर दाता भव

    मास्टर दाता वह है जो सदा इसी रूहानी भावना में रहते कि सर्व रूहें हमारे समान वर्से के अधिकारी बन जायें।

    किसी की भी कमी कमजोरी को न देख, वे अपने धारण किये हुए गुणों का, शक्तियों का सहयोग देते हैं।

    यह ऐसा है ही - इस भावना के बजाए मैं इसको भी बाप समान बनाऊं, यह शुभ भावना हो।

    साथ-साथ यही श्रेष्ठ कामना हो कि यह सर्व आत्मायें कंगाल, दु:खी, अशान्त से सदा शान्त, सुख-रूप माला-माल बन जाएं - तब कहेंगे मास्टर दाता।

     

    17.07.2021

    रूहे गुलाब बन दूर-दूर तक रूहानी खुशबू फैलाने वाले रूहानी सेवाधारी भव

    रूहानी रूहे गुलाब अपनी रूहानी वृत्ति द्वारा रूहानियत की खुशबू दूर-दूर तक फैलाते हैं।

    उनकी दृष्टि में सदा सुप्रीम रूह समाया हुआ रहता है।

    वे सदा रूह को देखते, रूह से बोलते।

    मैं रूह हूँ, सदा सुप्रीम रूह की छत्रछाया में चल रहा हूँ, मुझ रूह का करावनहार सुप्रीम रूह है, ऐसे हर सेकेण्ड हजूर को हाजिर अनुभव करने वाले सदा रूहानी खुशबू में अविनाशी और एकरस रहते हैं।

    यही है रूहानी सेवाधारी की नम्बरवन विशेषता।

     

      16.07.2021

    फालो फादर और सी फादर के महामन्त्र द्वारा एकरस स्थिति बनाने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव “सी फादर-फालो फादर'' इस मंत्र को सदा सामने रखते हुए चढ़ती कला में चलते चलो, उड़ते चलो।

    कभी भी आत्माओं को नहीं देखना क्योंकि आत्मायें सब पुरूषार्थी हैं, पुरूषार्थी में अच्छाई भी होती और कुछ कमी भी होती है, सम्पन्न नहीं, इसलिए फालो फादर न कि ब्रदर सिस्टर।

    तो जैसे फादर एकरस है ऐसे फालो करने वाले एकरस स्वत: हो जायेंगे।

     

    15.07.2021

    संगठन में एकमत और एकरस स्थिति द्वारा सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे स्नेही भव

    संगठन में एक ने कहा दूसरे ने माना - यह है सच्चे स्नेह का रेसपान्ड।

    ऐसे स्नेही बच्चों का एग्जाम्पल देख और भी सम्पर्क में आने के लिए हिम्मत रखते हैं।

    संगठन भी सेवा का साधन बन जाता है।

    जहाँ माया देखती है कि इनकी युनिटी अच्छी है, घेराव है तो वहाँ आने की हिम्मत नहीं रखती।

    एकमत और एक-रस स्थिति के संस्कार ही सतयुग में एक राज्य की स्थापना करते हैं।

     

    14.07.2021

    याद के आधार द्वारा माया की कीचड़ से परे रहने वाले सदा चियरफुल भव

    कोई कैसी भी बात सामने आये सिर्फ बाप के ऊपर छोड़ दो। जिगर से कहो - “बाबा''।

    तो बात खत्म हो जायेगी।

    यह बाबा शब्द दिल से कहना ही जादू है। माया पहले-पहले बाप को ही भुलाती है इसलिए सिर्फ इस बात पर अटेन्शन दो तो कमल पुष्प के समान अपने को अनुभव करेंगे।

    याद के आधार पर माया के समस्याओं की कीचड़ से सदा परे रहेंगे।

    कभी किसी भी बात में हलचल में नहीं आयेंगे, सदा एक ही मूड होगी चियरफुल।

     

    13.07.2021

    ज्ञान की प्वाइन्ट्स को हर रोज़ रिवाइज कर समाधान स्वरूप बनने वाले बेगमपुर के बादशाह भव

    ज्ञान की प्वॉइन्ट्स जो डायरियों में अथवा बुद्धि में रहती हैं उन्हें हर रोज़ रिवाइज़ करो और उन्हें अनुभव में लाओ तो किसी भी प्रकार की समस्या का सहज ही समाधान कर सकेंगे।

    कभी भी व्यर्थ संकल्पों के हेमर से समस्या के पत्थर को तोड़ने में समय नहीं गंवाओ।

    “ड्रामा'' शब्द की स्मृति से हाई जम्प दे आगे बढ़ो।

    फिर ये पुराने संस्कार आपके दास बन जायेंगे, लेकिन पहले बादशाह बनो, तख्तनशीन बनो।

     

    12.07.2021

    व्यक्त में रहते अव्यक्त फरिश्ते रूप का साक्षात्कार कराने वाले सफेद वस्त्रधारी और सफेद लाइटधारी भव

    जैसे अभी चारों ओर यह आवाज फैल रहा है कि यह सफेद वस्त्रधारी कौन हैं और कहाँ से आये हैं!

    ऐसे अब चारों ओर फरिश्ते रूप का साक्षात्कार कराओ - इसको कहा जाता है डबल सेवा का रूप।

    जैसे बादल चारों ओर छा जाते हैं, ऐसे चारों ओर फरिश्ते रूप से प्रगट हो जाओ, जहाँ भी देखें तो फरिश्ते ही नज़र आयें।

    लेकिन यह तब होगा जब शरीर से डिटैच होकर अन्त:वाहक शरीर से चक्र लगाने के अभ्यासी होंगे। मन्सा पावरफुल होगी।

     

    11.07.2021

    ड्रामा की प्वाइंट के अनुभव द्वारा सदा साक्षीपन की स्टेज पर रहने वाले अचल अडोल भव

    ड्रामा की प्वाइंट के जो अनुभवी हैं वे सदा साक्षीपन की स्टेज पर स्थित रह एकरस, अचल-अडोल स्थिति का अनुभव करते हैं।

    ड्रामा के प्वाइंट की अनुभवी आत्मा कभी भी बुरे में बुराई को न देख अच्छाई ही देखेगी अर्थात् स्व-कल्याण का रास्ता दिखाई देगा।

    अकल्याण का खाता खत्म हुआ।

    कल्याणकारी बाप के बच्चे हैं, कल्याणकारी युग है - इस नॉलेज और अनुभव की अथॉरिटी से अचल-अडोल बनो।

     

    10.07.2021

    स्वयं को जिम्मेवार समझकर हर कर्म यथार्थ विधि से करने वाले सम्पूर्ण

    सिद्धि स्वरूप भव

    इस समय आप संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं का हर श्रेष्ठ कर्म सारे कल्प के

    लिए विधान बन रहा है।

    तो स्वयं को विधान के रचयिता समझकर हर कर्म

    करो, इससे अलबेलापन स्वत: समाप्त हो जायेगा।

    संगमयुग पर हम विधान

    के रचयिता, जिम्मेवार आत्मा हैं - इस निश्चय से हर कर्म करो तो यथार्थ

    विधि से किये हुए कर्म की सम्पूर्ण सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी।

     

    09.07.2021

    सदा साथीपन की स्मृति और साक्षी स्टेज का अनुभव करने वाले शिवमई शक्ति स्वरूप कम्बाइन्ड भव

    जैसे आत्मा और शरीर दोनों का साथ है, जब तक इस सृष्टि पर पार्ट है तब तक अलग नहीं हो सकते, ऐसे ही शिव और शक्ति दोनों का इतना ही गहरा सम्बन्ध है।

    जो सदा शिव मई शक्ति स्वरूप में स्थित होकर चलते हैं तो उनकी लगन में माया विघ्न डाल नहीं सकती।

    वे सदा साथीपन का और साक्षी स्टेज का अनुभव करते हैं।

    ऐसे अनुभव होता है जैसे कोई साकार में साथ हो।

     

    08.07.2021

    गम की दुनिया सामने होते हुए भी बेगमपुर की बादशाही का अनुभव करने वाले अष्ट शक्ति स्वरूप भव

    गम और बेगम की अभी ही नॉलेज है, गम की दुनिया सामने होते भी सदा बेगमपुर के बादशाही का अनुभव करना - यही अष्ट शक्ति स्वरूप, कर्मेन्द्रिय जीत बच्चों की निशानी है।

    अभी ही बाप द्वारा सर्वशक्तियों की प्राप्ति होती है लेकिन अगर कोई न कोई संगदोष वा कोई कर्मेन्द्रिय के वशीभूत हो अपनी शक्ति खो लेते हो तो जो बेगमपुर का नशा वा खुशी प्राप्त है वह स्वत: ही खो जाती है।

    बेगमपुर के बादशाह भी कंगाल बन जाते हैं।

     

    07.07.2021

    धर्म और कर्म दोनों का ठीक बैलेन्स रखने वाले दिव्य वा श्रेष्ठ बुद्धिवान भव

    कर्म करते समय धर्म अर्थात् धारणा भी सम्पूर्ण हो तो धर्म और कर्म दोनों का बैलेन्स ठीक होने से प्रभाव बढ़ेगा।

    ऐसे नहीं जब कर्म समाप्त हो तब धारणा स्मृति में आये।

    बुद्धि में दोनों बातों का बैलेन्स ठीक हो तब कहेंगे श्रेष्ठ वा दिव्य बुद्धिवान।

    नहीं तो साधारण बुद्धि, कर्म भी साधारण, धारणायें भी साधारण होती हैं।

    तो साधारणता में समानता नहीं लानी है लेकिन श्रेष्ठता में समानता हो।

    जैसे कर्म श्रेष्ठ वैसे धारणा भी श्रेष्ठ हो।

     

    06.07.2021

    साकार रूप में बापदादा को सम्मुख अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव

    जैसे शिवशक्ति कम्बाइन्ड है, ऐसे पाण्डवपति और पाण्डव कम्बाइन्ड हैं।

    जो ऐसे कम्बाइन्ड रूप में रहते हैं उनके आगे बापदादा साकार में सर्व सम्बन्धों से सामने होते हैं।

    अभी दिनप्रतिदिन और भी अनुभव करेंगे कि जैसे बापदादा सामने आये, हाथ पकड़ा, बुद्धि से नहीं आंखों से देखेंगे, अनुभव होगा।

    लेकिन सिर्फ एक बाप दूसरा न कोई, यह पाठ पक्का हो फिर तो जैसे परछाई घूमती है ऐसे बापदादा आंखों से हट नहीं सकते, सदा सम्मुख की अनुभूति होगी।

     

    05.07.2021

    घबराने की डांस छोड़ सदा खुशी की डांस करने वाले मास्टर नॉलेजफुल भव

    जो बच्चे मास्टर नॉलेजफुल हैं वह कभी घबराने की डांस नहीं कर सकते।

    सेकण्ड में सीढ़ी नीचे, सेकण्ड में ऊपर अब यह संस्कार चेंज करो तो बहुत फास्ट जायेंगे।

    सिर्फ मिली हुई अथॉरिटी को, नॉलेज को, परिवार के सहयोग को यूज़ करो, बाप के हाथ में हाथ देकर चलते रहो तो खुशी की डांस करते रहेंगे, घबराने की डांस हो नहीं सकती।

    लेकिन जब माया का हाथ पकड़ लेते हो तो वह डांस होती है।

     

    04.07.2021

    कनफ्यूज़ होने के बजाए लूज़ कनेक्शन को ठीक करने वाले समस्या मुक्त भव

    सभी समस्याओं का मूल कारण कनेक्शन लूज़ होना है।

    सिर्फ कनेक्शन को ठीक कर दो तो सर्व शक्तियां आपके आगे घूमेंगी।

    यदि कनेक्शन जोड़ने में एक दो मिनट लग भी जाते हैं तो हिम्मत हारकर कनफ्यूज न हो जाओ। निश्चय के फाउन्डेशन को हिलाओ नहीं।

    मैं बाबा का, बाबा मेरा - इस आधार से फाउण्डेशन को पक्का करो तो समस्या मुक्त बन जायेंगे।

     

    03.07.2021

    “एक बाप दूसरा न कोई'' इस पाठ की स्मृति से एकरस स्थिति बनाने वाली श्रेष्ठ

    आत्मा भव

    “एक बाप दूसरा न कोई'' यह पाठ निरन्तर याद हो तो स्थिति एकरस बन जायेगी

    क्योंकि नॉलेज तो सब मिल गई है, अनेक प्वाइंट्स हैं, लेकिन प्वाइंट्स होते हुए

    प्वाइंट रूप में रहें - यह है उस समय की कमाल जिस समय कोई नीचे खींच रहा हो।


    कभी बात नीचे खीचेंगी, कभी कोई व्यक्ति, कभी कोई चीज़, कभी वायुमण्डल.....यह तो

    होगा ही।

    लेकिन सेकण्ड में यह सब विस्तार समाप्त हो एकरस स्थिति रहे - तब

    कहेंगे श्रेष्ठ आत्मा भव के वरदानी।

     

    02.07.2021

    चेकिंग करने की विशेषता को अपना निजी संस्कार बनाने वाले महान आत्मा भव

    जो भी संकल्प करो, बोल बोलो, कर्म करो, सम्बन्ध वा सम्पर्क में आओ सिर्फ यह चेकिंग करो कि यह बाप समान है!

    पहले मिलाओ फिर प्रैक्टिकल में लाओ।

    जैसे स्थूल में भी कई आत्माओं के संस्कार होते हैं, पहले चेक करेंगे फिर स्वीकार करेंगे।

    ऐसे आप महान पवित्र आत्मायें हो, तो चेकिंग की मशीनरी तेज करो।

    इसे अपना निजी संस्कार बना दो - यही सबसे बड़ी महानता है।

     

    01.07.2021

    अपने अनादि-आदि रीयल रूप को रियलाइज करने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव

    आत्मा के अनादि और आदि दोनों काल का ओरीज्नल स्वरूप पवित्र है।

    अपवित्रता आर्टीफिशल, शूद्रों की देन है।

    शूद्रों की चीज़ ब्राह्मण यूज़ नहीं कर सकते इसलिए सिर्फ

    यही संकल्प करो कि अनादि-आदि रीयल रूप में मैं पवित्र आत्मा हूँ, किसी को भी

    देखो तो उसके रीयल रूप को देखो, रीयल को रियलाइज करो, तो सम्पूर्ण पवित्र बन

    फर्स्टक्लास वा एयरकन्डीशन की टिकेट के अधिकारी बन जायेंगे।

     

    30.06.2021

    सम्पूर्ण स्टेज और स्टेटस की स्मृति से सदा ऊंच कर्तव्य करने वाले बाप समान भव

    सदैव यह स्मृति में रहे कि मैं हर समय, हर सेकण्ड, हर कर्म करते हुए स्टेज पर हूँ तो हर कर्म पर अटेन्शन रहने से सम्पूर्ण स्टेज के नजदीक आ जायेंगे।

    साथ-साथ वर्तमान और भविष्य स्टेटस की स्मृति रहने से हर कर्म श्रेष्ठ होगा।

    यही दो स्मृतियां बाप समान बना देंगी।

    समानता में आने से एक दो के मन के संकल्पों को सहज ही कैच कर लेंगे।

    इसके लिए सिर्फ संकल्पों पर कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए।

    अपने संकल्पों की मिक्सचर्टी न हो।

     

    29.06.2021

    न्यारे और प्यारे पन की योग्यता द्वारा लगावमुक्त बनने वाले सहजयोगी भव

    सहजयोगी जीवन का अनुभव करने के लिए ज्ञान सहित न्यारे बनो, सिर्फ बाहर से न्यारा नहीं बनना लेकिन मन का लगाव न हो।

    जितना जो न्यारा बनता उतना प्यारा अवश्य बन जाता है।

    न्यारी अवस्था प्यारी लगती है।

    जो बाहर के लगाव से न्यारे नहीं वह प्यारे बनने के बजाए परेशान होते हैं इसलिए सहजयोगी अर्थात् न्यारे और प्यारे पन की योग्यता वाले, सर्व लगावों से मुक्त।

     

    28.06.2021

    माया की नॉलेज से इनोसेंट और ज्ञान में सेंट बनने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव

    जैसे सतयुगी आत्मायें विकारों की बातों की नॉलेज से इनोसेंट होती हैं, वही संस्कार स्पष्ट स्मृति में रहें तो माया की नॉलेज से इनोसेंट बन जायेंगे।

    लेकिन भविष्य संस्कार स्मृति में स्पष्ट तभी रहेंगे जब आत्मिक स्वरूप की स्मृति सदाकाल और स्पष्ट होगी।

    जैसे देह स्पष्ट दिखाई देती है वैसे अपनी आत्मा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई दे अर्थात् अनुभव में आये तब कहेंगे माया से इनोसेंट और ज्ञान में सेंट अर्थात् सम्पूर्ण पवित्र।

     

    27.06.2021

    साथी और साक्षीपन की स्मृति द्वारा सब बन्धनों से मुक्त होने वाले सर्व शक्ति सम्पन्न भव

    सर्व शक्तियों से सम्पन्न बन अधीनता से परे होने के लिए दो शब्द सदा याद रहें - एक साक्षी दूसरा-साथी।

    इससे बन्धनमुक्त अवस्था जल्दी बन जायेगी।

    सर्वशक्तिवान बाप का साथ है तो सर्व शक्तियां स्वत: प्राप्त हो जाती हैं और साक्षी बनकर चलने से कोई भी बन्धन में फंसेंगे नहीं।

    निमित्त मात्र इस शरीर में रहकर कर्तव्य किया और साक्षी हो गये - इसका विशेष अभ्यास बढ़ाओ।

     

    26.06.2021

    एक बाप से योग रख सर्व का सहयोग प्राप्त करने वाले सच्चे योगी व सहयोगी भव

    जो जितना योगी है उतना उसे सर्व का सहयोग अवश्य प्राप्त होता है।

    योगी का कनेक्शन अथवा स्नेह बीज से होने के कारण स्नेह का रिटर्न सबका सहयोग प्राप्त हो जाता है।

    तो बीज से योग लगाने वाला, बीज को स्नेह का पानी देने वाला सर्व आत्माओं द्वारा सहयोग रूपी फल प्राप्त कर लेता है क्योंकि बीज से योग होने के कारण पूरे वृक्ष के साथ कनेक्शन हो जाता है।

     

    25.06.2021

    देह के भान को अर्पण कर समर्पण होने वाले योगयुक्त, बंधनमुक्त भव

    जो देह-अभिमान को अर्पण करता है उनका हर कर्म दर्पण बन जाता है।

    जैसे कोई

    चीज़ अर्पण की जाती है तो वह अर्पण की हुई चीज़ अपनी नहीं समझी जाती है।

    तो

    देह के भान को भी अर्पण करने से जब अपनापन मिट जाता है तो लगाव भी मिट

    जाता है।

    उन्हें ही सम्पूर्ण समर्पण कहा जाता है। ऐसे समर्पण होने वाले सदा योगयुक्त

    और बन्धनमुक्त होते हैं।

    उनका हर संकल्प, हर कर्म युक्तियुक्त होता है।

     

    24.06.2021

    अपने श्रेष्ठ स्वरूप वा श्रेष्ठ नशे में स्थित रह अलौकिकता का अनुभव कराने वाले अन्तर्मुखी भव

    जैसे सितारों के संगठन में विशेष सितारों की चमक दूर से ही न्यारी प्यारी लगती है, ऐसे आप सितारे साधारण आत्माओं के बीच में एक विशेष आत्मा दिखाई दो, साधारण रूप में होते असाधारण वा अलौकिक स्थिति हो तो संगठन के बीच में अल्लाह लोग दिखाई पड़ेंगे, इसके लिए अन्तर्मुखी बनकर फिर बाहरमुखता में आने का अभ्यास हो।

    सदैव अपने श्रेष्ठ स्वरूप वा नशे में स्थित होकर, नॉलेजफुल के साथ पावरफुल बनकर नॉलेज दो तब अनेक आत्माओं को अनुभवी बना सकेंगे।

     

    23.06.2021

    सोचना, बोलना और करना तीनों को समान बनाने वाले सर्वोत्तम पुरूषार्थी भव

    सभी शिक्षाओं का सार है - कि कोई भी कर्म से देखने, उठने, बैठने-चलने सोने से फरिश्ता-पन दिखाई दे, हर कर्म में अलौकिकता हो।

    कोई भी लौकिकता कर्म वा संस्कारों में न हो।

    सोचना, करना, बोलना सब समान हो।

    ऐसे नहीं कि सोचते तो थे कि यह न करें लेकिन कर लिया।

    जब तीनों ही एक समान और बाप समान हो तब कहेंगे श्रेष्ठ वा सर्वोत्तम पुरूषार्थी।

     

    22.06.2021

    त्रिकालदर्शी बन व्यर्थ संकल्प व संस्कारों का परिवर्तन करने वाले विश्व कल्याण-कारी भव

    जब मास्टर त्रिकालदर्शी बन संकल्प को कर्म में लायेंगे, तो कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं होगा।

    इस व्यर्थ को बदलकर समर्थ संकल्प और समर्थ कार्य करना - इसको कहते हैं सम्पूर्ण स्टेज।

    सिर्फ अपने व्यर्थ संकल्पों वा विकर्मो को भस्म नहीं करना है लेकिन शक्ति रूप बन सारे विश्व के विकर्मो का बोझ हल्का करने व अनेक आत्माओं के व्यर्थ संकल्पों को मिटाने की मशीनरी तेज करो तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी।

     

    21.06.2021

    वाचा द्वारा ज्ञान रत्नों का दान करने वाले मास्टर नॉलेजफुल भव

    जो वाचा द्वारा ज्ञान रत्नों का दान करते हैं उन्हें मास्टर नॉलेजफुल का वरदान प्राप्त होता है।

    उनके एक-एक शब्द की बहुत वैल्यु होती है।

    उनका एक-एक वचन सुनने के लिए अनेक आत्मायें प्यासी होती हैं।

    उनके हर शब्द में सेन्स (सार) भरा होता है।

    उन्हें विशेष खुशी की प्राप्ति होती है।

    उनके पास खजाना भरपूर रहता है इसलिए वे सदा सन्तुष्ट और हर्षित रहते हैं।

    उनके बोल प्रभावशाली होते जाते हैं।

    वाणी का दान करने से वाणी में बहुत गुण आ जाते हैं।

     

    20.06.2021

    सर्व रूपों से, सर्व सम्बन्धों से अपना सब कुछ बाप के आगे अर्पण करने वाले सच्चे स्नेही भव

     

    जिससे अति स्नेह होता है, तो उस स्नेह के लिए सभी को किनारे कर सब कुछ उनके आगे अर्पण कर देते हैं, जैसे बाप का बच्चों से स्नेह है इसलिए सदाकाल के सुखों की प्राप्ति स्नेही बच्चों को कराते हैं, बाकी सबको मुक्तिधाम में बिठा देते हैं, ऐसे बच्चों के स्नेह का सबूत है सर्व रूपों, सर्व संबंधों से अपना सब कुछ बाप के आगे अर्पण करना।

    जहाँ स्नेह है वहाँ योग है और योग है तो सहयोग है।

    एक भी खजाने को मनमत से व्यर्थ नहीं गंवा सकते।

     

    19.06.2021

    सर्व आत्माओं पर स्नेह का राज्य करने वाले विश्व राज्य अधिकारी भव

    जो बच्चे वर्तमान समय सर्व आत्माओं के दिल पर स्नेह का राज्य करते हैं वही

    भविष्य में विश्व के राज्य का अधिकार प्राप्त करते हैं।

    अभी किसी पर आर्डर नहीं

    चलाना है।

    अभी से विश्व महाराजन नहीं बनना है, अभी विश्व सेवाधारी बनना है,

    स्नेह देना है।

    देखना है कि अपने भविष्य के खाते में स्नेह कितना जमा किया है।

    विश्व महाराजन बनने के लिए सिर्फ ज्ञान दाता नहीं बनना है इसके लिए सबको स्नेह

    अर्थात् सहयोग दो।

     

    18.06.2021

    हर शिक्षा को स्वरूप में लाकर सबूत देने वाले सपूत वा साक्षात्कार मूर्त भव

    जो बच्चे शिक्षाओं को सिर्फ शिक्षा की रीति से बुद्धि में नहीं रखते, लेकिन उन्हें स्वरूप में लाते हैं वह ज्ञान स्वरूप, प्रेम स्वरूप, आनंद स्वरूप स्थिति में स्थित रहते हैं।

    जो हर प्वाइंट को स्वरूप में लायेंगे वही प्वाइंट रूप में स्थित हो सकेंगे।

    प्वाइंट का मनन अथवा वर्णन करना सहज है लेकिन स्वरूप बन अन्य आत्माओं को भी स्वरूप का अनुभव कराना - यही है सबूत देना अर्थात् सपूत वा साक्षात्कार मूर्त बनना।

     

    17.06.2021

    अन्तर्मुखी बन अपने समय और संकल्पों की बचत करने वाले विघ्न जीत भव

    कोई भी नई पावरफुल इन्वेन्शन करते हैं तो अन्डरग्राउण्ड करते हैं।

    आप भी जितना अन्तर्मुखी अर्थात् अन्डरग्राउण्ड रहेंगे उतना वायुमण्डल से बचाव हो जायेगा, मनन शक्ति बढ़ेगी और माया के विघ्नों से भी सेफ हो जायेंगे।

    बाहरमुखता में आते भी अन्तर्मुख, हर्षितमुख, आकर्षणमूर्त रहो, कर्म करते भी यह प्रैक्टिस करो तो समय की बचत होगी और सफलता भी अधिक अनुभव करेंगे।

     

    16.06.2021

    सारे वृक्ष की नॉलेज को स्मृति में रख तपस्या करने वाले सच्चे तपस्वी व सेवाधारी भव

    भक्ति मार्ग में दिखाते हैं कि तपस्वी वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करते हैं।

    इसका भी रहस्य है।

    आप बच्चों का निवास इस सृष्टि रूपी कल्प वृक्ष की जड़ में है।

    वृक्ष के नीचे बैठने से सारे वृक्ष की नॉलेज बुद्धि में स्वत: रहती है।

    तो सारे वृक्ष की नॉलेज स्मृति में रख साक्षी होकर इस वृक्ष को देखो।

    तो यह नशा, खुशी दिलायेगा और इससे बैटरी चार्ज हो जायेगी।

    फिर सेवा करते भी तपस्या साथ-साथ रहेगी।

     

    15.06.2021

    नॉलेज की लाइट माइट द्वारा कमजोर संस्कारों को समाप्त करने वाले शक्ति सम्पन्न भव

    नॉलेज से अपने कमजोर संस्कारों का मालूम तो पड़ जाता है और जब उस बात की समझानी मिलती है तो वे संस्कार थोड़े समय के लिए अन्दर दब जाते हैं लेकिन कमजोर संस्कार समाप्त करने के लिए लाइट और माइट के एकस्ट्रा फोर्स की आवश्यकता है।

    इसके लिए मास्टर सर्वशक्तिवान, मास्टर नॉलेजफुल के साथ-साथ चेकिंग मास्टर बनो।

    नॉलेज द्वारा स्वयं में शक्ति भरो, मनन शक्ति को बढ़ाओ तो शक्ति सम्पन्न बन जायेंगे।

     

    14.06.2021

    स्वमान में स्थित रह देह-अभिमान को समाप्त करने वाले सफलतामूर्त भव

    जो बच्चे स्वमान में स्थित रहते हैं वही बाप के हर फरमान का सहज ही पालन कर सकते हैं।

    स्वमान भिन्न-भिन्न प्रकार के देह-अभिमान को समाप्त कर देता है।

    लेकिन जब स्वमान से स्व शब्द भूल जाता है और मान-शान में आ जाते हो तो एक शब्द की गलती से अनेक गलतियां होने लगती हैं इसलिए मेहनत ज्यादा और प्रत्यक्षफल कम मिलता है।

    लेकिन सदा स्वमान में स्थित रहो तो पुरूषार्थ वा सेवा में सहज ही सफलता-मूर्त बन जायेंगे।

     

    13.06.2021

    स्नेही बनने के गुह्य रहस्य को समझ सर्व को राज़ी करने वाले राज़युक्त, योगयुक्त भव

    जो बच्चे एक सर्वशक्तिमान् बाप के स्नेही बनकर रहते हैं वे सर्व आत्माओं के स्नेही स्वत: बन जाते हैं। इस गुह्य रहस्य को जो समझ लेते वह राजयुक्त, योगयुक्त वा दिव्यगुणों से युक्तियुक्त बन जाते हैं।

    ऐसी राज़युक्त आत्मा सर्व आत्माओं को सहज ही राज़ी कर लेती है।

    जो इस राज़ को नहीं जानते वे कभी अन्य को नाराज़ करते और कभी स्वयं नाराज रहते हैं इसलिए सदा स्नेही के राज़ को जान राजयुक्त बनो।

     

    12.06.2021

    सेकण्ड में सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त कर मर्यादा पुरूषोत्तम बनने वाले सदा स्नेही भव

    जैसे स्नेही स्नेह में आकर अपना सब कुछ न्यौछावर वा अर्पण कर देते हैं।

    स्नेही को कुछ भी समर्पण करने के लिए सोचना नहीं पड़ता।

    तो जो भी मर्यादायें वा नियम सुनते हो उन्हें प्रैक्टिकल में लाने अथवा सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त करने की सहज युक्ति है - सदा एक बाप के स्नेही बनो।

    जिसके स्नेही हो, निरन्तर उसके संग में रहो तो रूहानियत का रंग लग जायेगा और एक सेकण्ड में मर्यादा पुरूषोत्तम बन जायेंगे क्योंकि स्नेही को बाप का सहयोग स्वत: मिल जाता है।

     

    11.06.2021

    हर संकल्प, समय, शब्द और कर्म द्वारा ईश्वरीय सेवा करने वाले सम्पूर्ण वफादार भव

    सम्पूर्ण वफादार उन्हें कहा जाता है जो हर वस्तु की पूरी-पूरी सम्भाल करते हैं।

    कोई भी चीज़ व्यर्थ नहीं जाने देते।

    जब से जन्म हुआ तब से संकल्प, समय और कर्म सब ईश्वरीय सेवा अर्थ हो।

    यदि ईश्वरीय सेवा के बजाए कहाँ भी संकल्प वा समय जाता है, व्यर्थ बोल निकलते हैं या तन द्वारा व्यर्थ कार्य होता है तो उनको सम्पूर्ण वफादार नहीं कहेंगे।

    ऐसे नहीं कि एक सेकण्ड वा एक पैसा व्यर्थ गया - तो क्या बड़ी बात है। नहीं।

    सम्पूर्ण वफादार अर्थात् सब कुछ सफल करने वाले।

     

    10.06.2021

    मनमनाभव की विधि द्वारा मनरस की स्थिति का अनुभव करने और कराने वाले सर्व बन्धनमुक्त भव

    जो बच्चे लोहे की जंजीरे और महीन धागों के बंधन को तोड़ बन्धनमुक्त स्थिति में रहते हैं वे कलियुगी स्थूल वस्तुओं की रसना वा मन के लगाव से मुक्त हो जाते हैं।

    उन्हें देह-अभिमान वा देह के पुरानी दुनिया की कोई भी वस्तु जरा भी आकर्षित नहीं करती।

    जब कोई भी इन्द्रियों के रस अर्थात् विनाशी रस के तरफ आकर्षण न हो तब अलौकिक अतीन्द्रिय सुख वा मनरस स्थिति का अनुभव होता है।

    इसके लिए निरन्तर मनमनाभव की स्थिति चाहिए।

     

    09.06.2021

    सर्व आत्माओं के पतित संकल्प वा वृत्तियों को भस्म करने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव

    जैसे सूर्य अपनी किरणों से किचड़ा, गंदगी के कीटाणु भस्म कर देता है।

    ऐसे जब आप मास्टर ज्ञान सूर्य बनकर कोई भी पतित आत्मा को देखेंगे तो उनका पतित संकल्प, पतित वृत्ति वा दृष्टि भस्म हो जायेगी।

    पतित-पावनी आत्मा पर पतित संकल्प वार नहीं कर सकता।

    पतित आत्मायें पतित-पावनियों पर बलिहार जायेंगी।

    इसके लिए माइट हाउस अर्थात् मास्टर ज्ञान सूर्य स्थिति में सदा स्थित रहो।

     

    08.06.2021

    फरमान की पालना द्वारा सर्व अरमानों को खत्म करने वाले माया प्रूफ भव

    अमृतवेले से लेकर रात तक दिनचर्या में जो भी फरमान मिले हुए हैं, उसी प्रमाण अपनी वृत्ति, दृष्टि, संकल्प, स्मृति, सर्विस और सम्बन्ध को चेक करो।

    जो हर संकल्प हर कदम फरमान को पालन करते हैं उनके सब अरमान खत्म हो जाते हैं।

    अगर अन्दर में पुरूषार्थ का वा सफलता का अरमान भी रह जाता है तो जरूर कहाँ न कहाँ कोई न कोई फरमान पालन नहीं हो रहा है।

    तो जब भी कोई उलझन आये तो चारों ओर से चेक करो - इससे मायाप्रूफ स्वत: बन जायेंगे।

     

    07.06.2021

    निष्काम सेवा द्वारा विश्व का राज्य प्राप्त करने वाले विश्व कल्याणी, रहमदिल भव

    जो निष्काम सेवाधारी हैं उन्हें कभी यह संकल्प नहीं आ सकता कि मैंने इतना किया, मुझे इससे कुछ शान-मान वा महिमा मिलनी चाहिए...यह भी लेना हुआ।

    दाता के बच्चे अगर लेने का संकल्प भी करते हैं तो दाता नहीं हुए।

    यह लेना भी देने वाले के आगे शोभता नहीं। जब यह संकल्प समाप्त हो तब विश्व महाराज़न का स्टेटस प्राप्त हो।

    ऐसा निष्काम सेवाधारी, बेहद का वैरागी ही विश्व कल्याणी, रहमदिल बनता है।

     

    06.06.2021

    थकी वा तड़पती हुई आत्माओं को सिद्धि देने वाले खुदाई खिदमतगार भव

    आत्माओं की बहुत समय से इच्छा वा आशा है - निर्वाण वा मुक्तिधाम में जाने की।

    इसके लिए ही अनेक जन्मों से अनेक प्रकार की साधना करते-करते थक चुकी हैं।

    अभी हर एक सिद्धि चाहते हैं न कि साधना।

    सिद्धि अर्थात् सद्गति - तो ऐसी तड़फती हुई, थकी हुई प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने के लिए आप श्रेष्ठ आत्मायें अपने साइलेन्स की शक्ति वा सर्व शक्तियों से एक सेकण्ड में सिद्धि दो तब कहेंगे खुदाई खिदमतगार।

     

    05.06.2021

    श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा प्रवृत्ति को प्रगति का साधन बनाने वाले सदा समर्थवान भव

    प्रवृत्ति में पहले वृत्ति से पवित्र वा अपवित्र बनते हो।

    यदि वृत्ति को सदा एक बाप के साथ लगा दो, एक बाप दूसरा न कोई - ऐसी ऊंची वृत्ति रहे तो प्रवृत्ति प्रगति का साधन बन जायेगी।

    वृत्ति ऊंची और श्रेष्ठ है तो चंचल नहीं हो सकती।

    ऐसी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा प्रगति करते हुए गति-सद्गति को सहज ही पा लेंगे। फिर सब कम्पलेन कम्पलीट हो जायेंगी।

     

    04.06.2021

    कम शब्दों द्वारा ज्ञान के सर्व राज़ों को स्पष्ट करने वाले यथार्थ और शक्तिशाली भव

    कोई भी चीज़ जितनी अधिक शक्तिशाली होती है उतनी उसकी क्वान्टिटी कम होती है।

    ऐसे ही जब आप अपनी निर्वाण स्थिति में स्थित हो वाणी में आयेंगे तो शब्द कम लेकिन यथार्थ और शक्तिशाली होंगे।

    एक शब्द में हजारों शब्दों का रहस्य समाया हुआ होगा, जिससे व्यर्थ वाणी आटोमेटिक समाप्त हो जायेगी।

    एक शब्द से ज्ञान के सर्व राज़ों को स्पष्ट कर सकेंगे, विस्तार समाप्त हो जायेगा।

     

    03.06.2021

    अपनी चंचल वृत्ति को परिवर्तन कर सतोप्रधान वायुमण्डल बनाने के जवाबदार श्रेष्ठ आत्मा भव

     

    जो बच्चे अपनी चंचल वृत्तियों को परिवर्तन कर लेते हैं वही सतोप्रधान वायुमण्डल बना सकते हैं क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनता है।

    वृत्ति चंचल तब होती है जब वृत्ति में इतने बड़े कार्य की स्मृति नहीं रहती।

    अगर कोई अति चंचल बच्चा बिजी होते भी चंचलता नहीं छोड़ता है तो उसे बांध देते हैं। ऐसे ही यदि ज्ञान-योग में बिजी होते भी वृत्ति चंचल हो तो एक बाप के साथ सर्व सम्बन्धों के बंधन में वृत्ति को बांध दो तो चंचलता सहज समाप्त हो जायेगी।

     

    02.06.2021

    ज्ञान-योग की पावरफुल किरणों द्वारा पुराने संस्कार रूपी कीटाणुओं को भस्म करने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव

    कैसे भी पतित वातावरण को बदलने के लिए अथवा पुराने संस्कारों रूपी कीटाणुओं को भस्म करने के लिए यही स्मृति रहे कि मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ। सूर्य का कर्तव्य है रोशनी देना और किचड़े को खत्म करना।

    तो ज्ञान-योग की शक्ति वा श्रेष्ठ चलन द्वारा यही कर्तव्य करते रहो।

    यदि पावर कम है तो ज्ञान सिर्फ रोशनी देगा परन्तु पुराने संस्कार रूपी कीटाणु खत्म नहीं होंगे इसलिए पहले योग तपस्या द्वारा पावरफुल बनो।

     

    01.06.2021

    निमित्त बनी हुई आत्माओं द्वारा कर्मयोगी बनने का वरदान प्राप्त करने वाले मास्टर वरदाता भव

    जब कोई भी चीज साकार में देखी जाती है तो उसे जल्दी ग्रहण किया जा सकता है इसलिए निमित्त बनी हुई जो श्रेष्ठ आत्मायें हैं उन्हों की सर्विस, त्याग, स्नेह, सर्व के सहयोगीपन का प्रैक्टिकल कर्म देखकर जो प्रेरणा मिलती है वही वरदान बन जाता है।

    जब निमित्त बनी हुई आत्माओं को कर्म करते हुए इन गुणों की धारणा में देखते हो तो सहज कर्मयोगी बनने का जैसे वरदान मिल जाता है।

    जो ऐसे वरदान प्राप्त करते रहते वह स्वयं भी मास्टर वरदाता बन जाते हैं।

     

    31.05.2021

    नशे और निशाने की स्मृति से सर्व कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले ताज व तख्तनशीन भव

    संगमयुग पर बापदादा द्वारा सभी बच्चों को ताज और तख्त प्राप्त होता है।

    प्योरिटी का भी ताज है तो जिम्मेवारियों का भी ताज है, अकाल तख्त भी है तो दिलतख्तनशीन भी हो।

    जब ऐसे डबल ताज और तख्तनशीन बनते हो तो नशा और निशाना स्वत: याद रहता है। फिर यह कर्मेन्द्रियां जी हजूर करती हैं।

    जो ताज व तख्त छोड़ देते हैं उनका आर्डर कोई भी कारोबारी नहीं मानते।

     

    30.05.2021

    तोड़ना, मोड़ना और जोड़ना - इन तीन शब्दों की स्मृति द्वारा सदा विजयी भव

    सारी पढ़ाई और शिक्षाओं का सार यह तीन शब्द हैं:-

    1-कर्मबन्धन तोड़ने हैं।

    2-अपने संस्कार-स्वभाव को मोड़ना है और

    3- एक बाप से सर्व सम्बन्ध जोड़ने हैं -

    यही तीन शब्द सम्पूर्ण विजयी बना देंगे, इसके लिए सदा यही स्मृति रहे कि जो भी इन नयनों से विनाशी चीज़े देखते हैं वह सब विनाश हुई पड़ी हैं।

    उन्हें देखते भी अपने नये सम्बन्ध, नई सृष्टि को देखते रहो तो कभी हार हो नहीं सकती।

     

    29.05.2021

    हर संकल्प और कर्म में सिद्धि अर्थात् सफलता प्राप्त करने वाले सम्पूर्ण मूर्त भव

    संकल्पों की सिद्धि तब प्राप्त होगी जब समर्थ संकल्पों की रचना करेंगे।

    जो अधिक संकल्पों की रचना करते हैं वह उनकी पालना नहीं कर पाते इसलिए जितनी रचना ज्यादा उतनी शक्तिहीन होती है।

    तो पहले व्यर्थ रचना बन्द करो तब सफलता प्राप्त होगी और कर्मों में सफलता प्राप्त करने की युक्ति है - कर्म करने से पहले आदि-मध्य और अन्त को जानकर फिर कर्म करो।

    इससे ही सम्पूर्ण मूर्त बन जायेंगे।

     

    28.05.2021

    अपने सम्पूर्ण स्वरूप के आह्वान द्वारा आवागमन के चक्र से छूटने वाले लक्की सितारे भव

    अब अपनी सम्पूर्ण स्थिति व सम्पूर्ण स्वरूप का आह्वान करो तो वही स्वरूप सदा स्मृति में रहेगा फिर जो कभी ऊंची स्थिति, कभी नीची स्थिति में आने-जाने का (आवागमन का) चक्र चलता है, बार-बार स्मृति और विस्मृति के चक्र में आते हो, इस चक्र से मुक्त हो जायेंगे।

    वे लोग जन्म-मरण के चक्र से छूटने चाहते हैं और आप लोग व्यर्थ बातों से छूट चमकते हुए लक्की सितारे बन जाते हो।

     

    27.05.2021

    स्वार्थ शब्द के अर्थ को जान सदा एकरस स्थिति में स्थित होने वाले सहज पुरुषार्थी भव

    आजकल एक दो में जो लगाव है वह स्नेह से नहीं लेकिन स्वार्थ से है।

    स्वार्थ के कारण लगाव है और लगाव के कारण न्यारे नहीं बन सकते इसलिए स्वार्थ शब्द के अर्थ में स्थित हो जाओ अर्थात् पहले स्व के रथ को स्वाहा करो।

    यह स्वार्थ गया तो न्यारे बन ही जायेंगे। इस एक शब्द के अर्थ को जानने से सदा एक के और एकरस बन जायेंगे, यही सहज पुरूषार्थ है।

     

    26.05.2021

    सदा मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहने की केयर करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भव

    जो बच्चे अपने आपको एक ही बाप अर्थात् राम की सच्ची सीता समझकर सदा मर्यादाओं
    की लकीर के अन्दर रहते हैं अर्थात् यह केयर करते हैं, वह केयरफुल सो चियरफुल
    (हर्षित) स्वत: रहते हैं।

    तो सवेरे से रात तक के लिए जो भी मर्यादायें मिली हुई हैं उनकी स्पष्ट नॉलेज बुद्धि में रख, स्वयं को सच्ची सीता समझकर मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहो तब कहेंगे मर्यादा पुरुषोत्तम।

     

    25.05.2021

    निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा मैं पन को समाप्त करने वाले निरहंकारी भव

    वर्तमान समय सबसे महीन और सुन्दर धागा - यह मैं पन है।

    यह मैं शब्द ही देह-अभिमान से पार ले जाने वाला भी है तो देह-अभिमान में

    लाने वाला भी है।

    जब मैं पन उल्टे रूप में आता है तो बाप का प्यारा बनाने के बजाए कोई न कोई आत्मा का,

    नाम-मान-शान का प्यारा बना देता है।

    इस बंधन से मुक्त बनने के लिए निरन्तर

    निराकारी स्थिति में स्थित होकर साकार में आओ - इस अभ्यास को नेचुरल नेचर बना दो

    तो निरहंकारी बन जायेंगे।

     

    24.05.2021

     

    करना और कहना - इन दो को समान बनाकर क्वालिटी की सेवा करने वाले सच्चे सेवाधारी भव

    सदा अटेन्शन रहे कि पहले करना है फिर कहना है।

    कहना सहज होता है, करने में मेहनत है, मेहनत का फल अच्छा होता है।

    लेकिन यदि दूसरों को कहते हो स्वयं करते नहीं, तो सर्विस के साथ-साथ डिससर्विस भी प्रत्यक्ष होती है।

    जैसे अमृत के बीच विष की एक बूंद भी पड़ने से सारा अमृत विष बन जाता है, ऐसे कितनी भी सर्विस करो लेकिन एक छोटी सी गलती सर्विस को समाप्त कर देती है।

    इसलिए पहले अपने ऊपर अटेन्शन दो तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी।

     

    23.05.2021

    संकल्प, वृत्ति और स्मृति से व्यर्थ को समाप्त करने वाले सच्चे ब्राह्मण सम्पूर्ण पवित्र भव

    अपने संकल्प, वृत्ति और स्मृति को चेक करो - ऐसे नहीं कुछ गलत हो गया, पश्चाताप कर लिया, माफी मांग ली, छुट्टी हो गई।

    कितना भी कोई माफी ले लेकिन जो पाप वा व्यर्थ कर्म हुआ उसका निशान नहीं मिटता।

    रजिस्टर साफ स्वच्छ नहीं होता।

    सिर्फ इस रीति-रसम को नहीं अपनाओ, लेकिन स्मृति रहे कि मैं सम्पूर्ण पवित्र ब्राह्मण हूँ - अपवित्रता - संकल्प, वृत्ति वा स्मृति को भी टच नहीं कर सकती, इसके लिए कदम-कदम पर सावधान रहो।

     

    22.05.2021

    मनन शक्ति द्वारा शक्तिशाली बन विघ्नों के फोर्स को समाप्त करने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव

    वर्तमान समय मनन शक्ति द्वारा आत्मा में सर्व शक्तियां भरने की आवश्यकता है।

    इसके लिए अन्तर्मुखी बन हर प्वाइंट पर मनन करो तो मक्खन निकलेगा और शक्तिशाली बन जायेंगे।

    ऐसी शक्तिशाली आत्मायें अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति का अनुभव करती हैं, उन्हें अल्पकाल की कोई भी वस्तु अपने तरफ आकर्षित नहीं कर सकती।

    उनकी मगन अवस्था द्वारा जो रूहानियत की शक्तिशाली स्थिति बनती है उससे विघ्नों का फोर्स समाप्त हो जाता है।

     

    21.05.2021

    न्यारे पन के अभ्यास द्वारा फरिश्ते रूप का साक्षात्कार कराने वाले निरन्तर सहजयोगी

    भव

    जैसे कोई भी वस्त्र धारण करना वा न करना अपने हाथ में होता है, ऐसा अनुभव इस

    शरीर रूपी वस्त्र में हो।

    जैसे वस्त्र को धारण करके कार्य किया और कार्य पूरा होते ही वस्त्र से न्यारे हुए।

    शरीर और आत्मा दोनों का न्यारापन चलते-फिरते अनुभव हो - तब कहेंगे

    निरन्तर सहजयोगी।

    ऐसे डिटैच रहने वाले बच्चों द्वारा अनेक आत्माओं को फरिश्ते रूप

    और भविष्य राज्य पद के साक्षात्कार होंगे। अन्त में इस सर्विस से ही प्रभाव निकलेगा।

     

    20.05.2021

    सदा ज्ञान सूर्य के सम्मुख रहने वाले अन्तर्मुखी, स्वमानधारी भव

    जैसे सूर्य के सामने देखने से सूर्य की किरणें अवश्य आती हैं, ऐसे जो बच्चे ज्ञान सूर्य बाप के सदा सम्मुख रहते हैं वो ज्ञान सूर्य के सर्व गुणों की किरणें स्वयं में अनुभव करते हैं।

    उनकी सूरत पर अन्तर्मुखता की झलक और संगमयुग के वा भविष्य के सर्व स्वमान की फलक दिखाई देती है।

    इसके लिए सदा स्मृति में रहे कि यह अन्तिम घड़ी है।

    किसी भी घड़ी इस तन का विनाश हो सकता है इसलिए सदा प्रीत बुद्धि बन ज्ञान सूर्य के सम्मुख रह अन्तर्मुखता वा स्वमान की अनुभूति में रहना है।

     

    19.05.2021

    बुद्धि की प्रीत एक प्रीतम से लगाकर सदा सम्मुख की अनुभूति करने वाले विजयी रत्न भव

    प्रीत बुद्धि अर्थात् बुद्धि की लगन एक प्रीतम के साथ लगी हुई हो।

    जिसकी एक के साथ प्रीत है उनकी अन्य किसी भी व्यक्ति वा वैभव के साथ प्रीत जुट नहीं सकती।

    वे सदा बापदादा को अपने सम्मुख अनुभव करेंगे।

    उन्हें मन्सा में भी श्रीमत के विपरीत व्यर्थ संकल्प वा विकल्प नहीं आ सकते।

    उनके मुख से वा दिल से यही बोल निकलते - तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूँ....तुम्हीं से सर्व संबंध निभाऊं..ऐसे सदा प्रीत बुद्धि रहने वाले ही विजयी रत्न बनते हैं।

     

    18.05.2021

    आवाज से परे की स्थिति में स्थित हो सर्व गुणों का अनुभव करने वाले मा. बीजरूप भव

    जैसे बीज में सारा वृक्ष समाया हुआ होता है वैसे ही आवाज से परे की स्थिति में संगमयुग के सर्व विशेष गुण अनुभव में आते हैं।

    मास्टर बीजरूप बनना अर्थात् सिर्फ शान्ति नहीं लेकिन शान्ति के साथ ज्ञान, अतीन्द्रिय सुख, प्रेम, आनंद, शक्ति आदि-आदि सर्व गुख्य गुणों का अनुभव करना।

    यह अनुभव सिर्फ स्वयं को नहीं होता लेकिन अन्य आत्मायें भी उनके चेहरे से सर्वगुणों का अनुभव करती हैं।

    एक गुण में सर्वगुण समाये हुए रहते हैं।

     

    17.05.2021

    आसक्ति को अनासक्ति में परिवर्तन करने वाले शक्ति स्वरूप भव

    शक्ति स्वरूप बनने के लिए आसक्ति को अनासक्ति में बदली करो।

    अपनी देह में,

    सम्बन्धों में, कोई भी पदार्थ में यदि कहाँ भी आसक्ति है तो माया भी आ सकती है और

    शक्ति रूप नहीं बन सकते इसलिए पहले अनासक्त बनो तब माया के विघ्नों का सामना

    कर सकेंगे।

    विघ्नों के आने पर चिल्लाने वा घबराने के बजाए शक्ति रूप धारण कर लो

    तो विघ्न-विनाशक बन जायेंगे

     

    16.05.2021

    संशय के संकल्पों को समाप्त कर मायाजीत बनने वाले विजयी रत्न भव

    कभी भी पहले से यह संशय का संकल्प उत्पन्न न हो कि ना मालूम हम फेल हो जायें, संशयबुद्धि होने से ही हार होती है इसलिए सदा यही संकल्प हो कि हम विजय प्राप्त करके ही दिखायेंगे।

    विजय तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, ऐसे अधिकारी बनकर कर्म करने से विजय अर्थात् सफलता का अधिकार अवश्य प्राप्त होता है, इसी से विजयी रत्न बन जायेंगे इसलिए मास्टर नॉलेजफुल के मुख से नामालूम शब्द कभी नहीं निकलना चाहिए।

     

    15.05.2021

    मन्सा के महादान द्वारा हर संकल्प की सिद्धि प्राप्त करने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव

     

    जो बच्चे मन्सा द्वारा शक्तियों का दान करते हैं उन्हें मास्टर सर्वशक्तिमान् का वरदान प्राप्त हो जाता है क्योंकि मन्सा द्वारा शक्तियों का दान करने से संकल्प में इतनी शक्ति जमा हो जाती है जो हर संकल्प की सिद्धि प्राप्त होती है।

    वे अपने संकल्पों को जहाँ चाहें वहाँ एक सेकण्ड में टिका सकते हैं, संकल्प उनके वश होते हैं।

    वे अपने संकल्पों पर विजयी होने के कारण चंचल संकल्प वाले को भी थोड़े समय के लिए अचल वा शान्त बना सकते हैं।

     

    14.05.2021

    अपनी सम्पूर्ण स्टेज द्वारा सर्व प्रकार की अधीनता समाप्त करने वाले प्रकृति जीत भव

     

    जब आप अपनी सम्पूर्ण स्टेज पर स्थित होंगे तो प्रकृति पर भी विजय अर्थात् अधिकार

    का अनुभव होगा। सम्पूर्ण स्टेज में किसी भी प्रकार की अधीनता नहीं रहती है।

     

    लेकिन

    ऐसी सम्पूर्ण स्टेज बनाने के लिए तीन बातें साथ-साथ चाहिए:-

    1-रूहानियत,

    2-रूहाब और

    3-रहमदिल का गुण।

    जब यह तीनों बातें प्रत्यक्ष रूप में, स्थिति में, चेहरे वा कर्म में

    दिखाई दें तब कहेंगे अधिकारी वा प्रकृति जीत आत्मा।

     

    13.05.2021

    सम्पूर्ण समर्पण की विधि द्वारा सर्वगुण सम्पन्न बनने के पुरुषार्थ में सदा विजयी भव

    सम्पूर्ण समर्पण उसे कहा जाता है जिसके संकल्प में भी बॉडी कानसेस न हो।

    अपने देह का भान भी अर्पण कर देना, मैं फलानी हूँ - यह संकल्प भी अर्पण कर सम्पूर्ण समर्पण होने वाले सर्वगुणों में सम्पन्न बनते हैं।

    उनमें कोई भी गुण की कमी नहीं रहती।

    जो सर्व समर्पण कर सर्वगुण सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनने का लक्ष्य रखते हैं तो ऐसे पुरुषार्थियों को बापदादा सदा विजयी भव का वरदान देते हैं।

     

    12.05.2021

    आलस्य के भिन्न-भिन्न रूपों को समाप्त कर सदा हुल्लास में रहने वाले

    तीव्र पुरूषार्थी भव

    वर्तमान समय माया का वार आलस्य के रूप में भिन्न-भिन्न तरीके से होता है।

     

    ये आलस्य भी विशेष विकार है, इसे खत्म करने के लिए सदा हुल्लास में रहो।

    जब कमाई

    करने का हुल्लास होता है तो आलस्य खत्म हो जाता है इसलिए कभी भी हुल्लास को

    कम नहीं करना।

    सोचेंगे, करेंगे, कर ही लेंगे, हो जायेगा...यह सब आलस्य की निशानी है।

    ऐसे आलस्य वाले निर्बल संकल्पों को समाप्त कर यही सोचो कि जो करना है, जितना

    करना है अभी करना है - तब कहेंगे तीव्र पुरुषार्थी।

     

    11.05.2021

    अपनी स्मृति, वृत्ति और दृष्टि को अलौकिक बनाने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त भव

    कहा जाता है -"जैसे संकल्प वैसी सृष्टि'' जो नई सृष्टि रचने के निमित्त विशेष आत्मायें हैं उनका एक-एक संकल्प श्रेष्ठ अर्थात् अलौकिक होना चाहिए।

    जब स्मृति-वृत्ति और दृष्टि सब अलौकिक हो जाती है तो इस लोक का कोई भी व्यक्ति वा कोई भी वस्तु अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती।

    अगर आकर्षित करती है तो जरूर अलौकिकता में कमी है। अलौकिक आत्मायें सर्व आकर्षणों से मुक्त होंगी।

     

    10.05.2021

    अधिकारीपन की स्मृति द्वारा सर्व शक्तियों का अनुभव करने वाले प्राप्ति स्वरूप भव

    यदि बुद्धि का संबंध सदा एक बाप से लगा हुआ रहे तो सर्व शक्तियों का वर्सा अधिकार के रूप में प्राप्त होता है।

    जो अधिकारी समझकर हर कर्म करते हैं उन्हें कहने वा संकल्प में भी मांगने की आवश्यकता नहीं रहती।

    यह अधिकारी पन की स्मृति ही सर्व शक्तियों के प्राप्ति का अनुभव कराती है।

    तो नशा रहे कि सर्व शक्तियां हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार हैं।

    अधिकारी बन करके चलो तो अधीनता समाप्त हो जायेगी।

     

    09.05.2021

    व्यर्थ की लीकेज को समाप्त कर समर्थ बनने वाले कम खर्च बालानशीन भव

    संगमयुग पर बापदादा द्वारा जो भी खजाने मिले हैं उन सर्व खजानों को व्यर्थ जाने से बचाओ तो कम खर्च बालानशीन बन जायेंगे।

     

     

    व्यर्थ से बचाव करना अर्थात् समर्थ बनना।

     

     

    जहाँ समर्थी है वहाँ व्यर्थ जाये - यह हो नहीं सकता। अगर व्यर्थ की लीकेज है तो कितना भी पुरुषार्थ करो, मेहनत करो लेकिन शक्तिशाली बन नहीं सकते इसलिए लीकेज़ को चेक कर समाप्त करो तो व्यर्थ से समर्थ हो जायेंगे।

     

    08.05.2021

    देह-अभिमान के त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव

    देह-अभिमान का त्याग करने अर्थात् देही-अभिमानी बनने से बाप के सर्व संबंध का, सर्व शक्तियों का अनुभव होता है, यह अनुभव ही संगमयुग का सर्वश्रेष्ठ भाग्य है।

     

    विधाता द्वारा मिली हुई इस विधि को अपनाने से वृद्धि भी होगी और सर्व सिद्धियां भी प्राप्त होंगी। देहधारी के संबंध वा स्नेह में तो अपना ताज, तख्त और अपना असली स्वरूप सब छोड़ दिया तो क्या बाप के स्नेह में देह-अभिमान का त्याग नहीं कर सकते!

     

    इसी एक त्याग से सर्व भाग्य प्राप्त हो जायेंगे।

     

    07.05.2021

    सहयोग की शक्ति से, असहयोगियों को सहयोगी बनाने वाले बाप समान परोपकारी भव

    सहयोगियों के साथ सहयोगी बनना - यह कोई महावीरता नहीं है लेकिन जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं ऐसे आप बच्चे भी बाप समान बनो।

    कोई कितना भी असहयोगी बने, आप अपने सहयोग की शक्ति से असहयोगी को सहयोगी बना दो, ऐसे नहीं सोचो कि इस कारण से यह आगे नहीं बढ़ता है।

    कमजोर को कमजोर समझकर छोड़ न दो लेकिन उसे बल देकर बलवान बनाओ।

    इस बात पर अटेन्शन दो तो सर्विस के प्लैन्स रूपी जेवरों पर हीरे चमक जायेंगे अर्थात् सहज प्रत्यक्षता हो जायेगी।

     

    06.05.2021

    मनमनाभव की स्थिति द्वारा मन के भावों को जानने वाले सफलता स्वरूप भव

     

    जो बच्चे मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहते हैं वह औरों के मन के भाव को जान सकते हैं।

     

    बोल भल क्या भी हो लेकिन उसका भाव क्या है, उसे जानने का अभ्यास करते जाओ।

     

    हर एक के मन के भाव को समझने से उनकी जो चाहना वा प्राप्ति की इच्छा है, वह पूरी कर सकेंगे।

     

    इससे वे अविनाशी पुरूषार्थी बन जायेंगे फिर सर्विस की सफलता थोड़े समय में बहुत दिखाई देगी और आप पुरूषार्थी स्वरूप के बजाए सफलता स्वरूप बन जायेंगे।

     

    05.05.2021

    स्वयं की स्मृति में रह अपने हर कर्म को संयम (नियम) बनाने वाले अथॉरिटी स्वरूप भव

     

    जैसे साकार में स्वयं की स्मृति में रहने से जो कर्म किया वही ब्राह्मण परिवार का संयम बन गया।

     

    स्वयं के नशे में रहने के कारण अथॉरिटी से कह सकते थे कि अगर साकार द्वारा कोई उल्टा कर्म भी हो गया तो सुल्टा कर देंगे।

     

    स्वयं के स्वरूप की स्मृति में रहने से यह नशा रहता है कि कोई कर्म उल्टा हो ही नहीं सकता।

     

    आप बच्चे भी जब स्वयं की स्थिति में स्थित रहो तो जो संकल्प चलेगा, जो बोल बोलेंगे वा कर्म करेंगे, वही संयम (नियम) बन जायेगा।

     

    04.05.2021

    अलौकिक खेल और खिलौनों से खेलते हुए सदा शक्तिशाली बनने वाले अचल-अडोल भव

     

    अलौकिक जीवन में माया के विघ्न आना भी अलौकिक खेल है, जैसे शारीरिक शक्ति के लिए खेल कराया जाता है, ऐसे अलौकिक युग में परिस्थितियों को खिलौना समझकर यह अलौकिक खेल खेलो।

     

    इनसे डरो वा घबराओ नहीं। सर्व संकल्पों सहित स्वयं को बापदादा पर बलिहार कर दो तो माया कभी वार नहीं कर सकती।

     

    रोज़ अमृतवेले साक्षी बन स्वयं का सर्व शक्तियों से श्रंगार करो तो अचल-अडोल रहेंगे।

     

    03.05.2021

    बुद्धि रूपी पांव मर्यादा की लकीर के अन्दर रखने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न शक्तिशाली भव

     

    जो बच्चे बुद्धि रूपी पांव जरा भी मर्यादा की लकीर से बाहर नहीं निकालते वे लक्की और लवली बन जाते हैं।

    उन्हें कभी कोई भी विघ्न अथवा तूफान, परेशानी, उदासी आ नहीं सकती।

     

    यदि आती है तो समझना चाहिए कि जरूर बुद्धि रूपी पांव मर्यादा की लकीर से बाहर निकाला है।

     

    लकीर से बाहर निकलना अर्थात् फकीर बनना इसलिए कभी फकीर अर्थात् मांगने वाले नहीं, सर्व प्राप्ति सम्पन्न शक्तिशाली बनो।

     

    02.05.2021

    अपनी विजय वा सफलता को निश्चित समझकर सदा निश्चिंत रहने वाले

    निश्चयबुद्धि भव

    जो बच्चे सदा बाप में, स्वयं के पार्ट में और ड्रामा की हर सेकण्ड की एक्ट में 100 प्रतिशत निश्चयबुद्धि हैं उनकी विजय वा सफलता निश्चित है।

     

    निश्चित विजय होने के कारण वे सदा निश्चिंत रहते हैं। उनके चेहरे से चिंता की कोई भी रेखा दिखाई नहीं देगी।

     

    उन्हें सदा निश्चय रहता है कि यह कार्य वा यह संकल्प सिद्ध हुआ ही पड़ा है।

     

    उन्हें कभी किसी बात में क्वेश्चन नहीं उठ सकता।

     

    01.05.2021

    शक्ति रूप की स्मृति द्वारा पतित संस्कारों का नाश करने वाले काली रूप भव

    सदा अपना यह स्वरूप स्मृति में रहे कि मैं सर्व शस्त्रधारी शक्ति हूँ, मुझ पतित-पावनी पर कोई पतित आत्मा के नज़र की परछाई भी

    नहीं पड़ सकती।

     

    पतित आत्मा के पतित संकल्प भी न चल सकें - ऐसी अपनी ब्रेक पावरफुल चाहिए।

     

    यदि किसी पतित आत्मा का प्रभाव पड़ता है - तो इसका अर्थ है कि प्रभावशाली नहीं हो। जो स्वयं संघारी हैं वह कभी किसका शिकार नहीं बन सकते।

     

    तो ऐसा काली रूप बनो जो कोई भी आपके सामने ऐसा संकल्प भी करे तो उनका संकल्प मूर्छित हो जाए।

     

    30.04.2021

    एक लगन, एक भरोसा, एकरस अवस्था द्वारा सदा निर्विघ्न बनने वाले निवारण स्वरूप भव

     

    सदा एक बाप की लगन, बाप के कर्तव्य की लगन में ऐसे मगन रहो जो संसार में कोई भी वस्तु या व्यक्ति है भी - यह अनुभव ही न हो।

    ऐसे एक लगन, एक भरोसे में, एकरस अवस्था में रहने वाले बच्चे सदा निर्विघ्न बन चढ़ती कला का अनुभव करते हैं।

     

    वे कारण को परिवर्तन कर निवारण रूप बना देते हैं।

    कारण को देख कमजोर नहीं बनते, निवारण स्वरूप बन जाते हैं।

     

    29.04.2021

    मास्टर नॉलेजफुल बन अनजानपने को समाप्त करने वाले ज्ञान स्वरूप, योगयुक्त भव

     

    मास्टर नॉलेजफुल बनने वालों में किसी भी प्रकार का अनजानपन नहीं रहता, वह ऐसा कहकर अपने को छुड़ा नहीं सकते कि इस बात का हमें पता ही नहीं था।

     

    ज्ञान स्वरूप बच्चों में कोई भी बात का अज्ञान नहीं रह सकता और जो योगयुक्त हैं उन्हें अनुभव होता जैसेकि पहले से सब कुछ जानते हैं।

     

    वो यह जानते हैं कि माया की छम-छम, रिमझिम कम नहीं है, माया भी बड़ी रौनकदार है, इसलिए उससे बचकर रहना है।

     

    जो सभी रूपों से माया की नॉलेज को समझ गये उनके लिए हार खाना असम्भव है।

     

    28.04.2021

    पास विद आनर बनने के लिए सर्व द्वारा सन्तुष्टता का पासपोर्ट प्राप्त करने वाले सन्तुष्टमणि भव

    जो बच्चे अपने आपसे, अपने पुरुषार्थ वा सर्विस से, ब्राह्मण परिवार के सम्पर्क से सदा सन्तुष्ट रहते हैं उन्हें ही सन्तुष्टमणि कहा जाता है।

     

    सर्व आत्माओं के सम्पर्क में अपने को सन्तुष्ट रखना वा सर्व को सन्तुष्ट करना - इसमें जो विजयी बनते हैं वही विजयमाला में आते हैं।

     

    पास विद आनर बनने के लिए सर्व द्वारा सन्तुष्टता का पासपोर्ट मिलना चाहिए।

     

    यह पासपोर्ट लेने के लिए सिर्फ सहन करने वा समाने की शक्ति धारण करो।

     

    27.04.2021

    महान् और मेहमान

    - इन दो स्मृतियों द्वारा

    सर्व आकर्षणों से मुक्त बनने वाले

    उपराम व साक्षी भव

    उपराम वा साक्षीपन की अवस्था बनाने के लिए दो बातें ध्यान पर रहें - एक तो मैं आत्मा महान् आत्मा हूँ, दूसरा मैं आत्मा अब इस पुरानी सृष्टि में वा इस पुराने शरीर में मेहमान हूँ।

     

    इस स्मृति में रहने से स्वत: और सहज ही सर्व कमजोरियां वा लगाव की आकर्षण समाप्त हो जायेगी। महान् समझने से जो साधारण कर्म वा संकल्प संस्कारों के वश चलते हैं, वह परिवर्तित हो जायेंगे।

     

    महान् और मेहमान समझकर चलने से महिमा योग्य भी बन जायेंगे।

     

    26.04.2021

    नॉलेज की लाइट-माइट द्वारा अपने लक को जगाने वाले सदा सफलतामूर्त भव

    जो बच्चे नॉलेज की लाइट और माइट से आदि-मध्य-अन्त को जानकर पुरूषार्थ करते हैं, उन्हें सफलता अवश्य प्राप्त होती है।

     

    सफलता प्राप्त होना भी लक की निशानी है। नॉलेजफुल बनना ही लक को जगाने का साधन है। नॉलेज सिर्फ रचयिता और रचना की नहीं लेकिन नॉलेजफुल अर्थात् हर संकल्प, हर शब्द और हर कर्म में ज्ञान स्वरूप हो तब सफलतामूर्त बनेंगे।

     

    अगर पुरूषार्थ सही होते भी सफलता नहीं दिखाई देती है तो यही समझना चाहिए कि यह असफलता नहीं, परिपक्वता का साधन है।

     

    25.04.2021

    कदम-कदम पर सावधानी रखते हुए पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमपति भव

    बाप बच्चों को बहुत ऊंची स्टेज पर रहने की सावधानी दे रहे हैं इसलिए अभी जरा भी

    गफलत करने का समय नहीं है, अब तो कदम-कदम पर सावधानी रखते हुए, कदम में

    पदमों की कमाई करते पदमपति बनो।

     

    जैसे नाम है पदमापदम भाग्यशाली, ऐसे कर्म भी हों। एक कदम भी पदम की कमाई के बिगर न जाए।

     

    तो बहुत सोच-समझकर श्रीमत

    प्रमाण हर कदम उठाओ। श्रीमत में मनमत मिक्स नहीं करो।

     

    24.04.2021

    पुरुषार्थ शब्द को यथार्थ रीति से यूज़ कर सदा आगे बढ़ने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव

    कई बार पुरुषार्थी शब्द भी हार खाने में वा असफलता प्राप्त होने में अच्छी ढाल बन जाता है, जब कोई भी गलती होती है तो कह देते हो हम तो अभी पुरुषार्थी हैं।

     

    लेकिन यथार्थ पुरुषार्थी कभी हार नहीं खा सकते क्योंकि पुरुषार्थ शब्द का यथार्थ अर्थ है स्वयं को पुरूष अर्थात् आत्मा समझकर चलना।

     

    ऐसे आत्मिक स्थिति में रहने वाले पुरुषार्थी तो सदैव मंजिल को सामने रखते हुए चलते हैं, वे कभी रुकते नहीं, हिम्मत उल्लास छोड़ते नहीं।

     

    23.04.2021

    अपने प्रति वा सर्व आत्माओं के प्रति लॉ फुल बनने वाले लॉ मेकर सो न्यु वर्ल्ड मेकर भव

    जो स्वयं प्रति लॉ फुल बनते हैं वही दूसरों के प्रति भी लॉ फुल बन सकते हैं।

     

    जो स्वयं लॉ को ब्रेक करते हैं वह दूसरों के ऊपर लॉ नहीं चला सकते इसलिए अपने आपको देखो कि सवेरे से रात तक मन्सा संकल्प में, वाणी में, कर्म में, सम्पर्क वा एक दो को सहयोग देने में वा सेवा में कहाँ भी लॉ ब्रेक तो नहीं होता है! जो लॉ मेकर हैं वह लॉ ब्रेकर नहीं बन सकते।

     

    जो इस समय लॉ मेकर बनते हैं वही पीस मेकर, न्यु वर्ल्ड मेकर बन जाते हैं।

     

    22.04.2021

    अपने हाइएस्ट पोजीशन में स्थित रहकर हर संकल्प, बोल और कर्म करने वाले सम्पूर्ण निर्विकारी भव

    सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात् किसी भी परसेन्ट में कोई भी विकार तरफ आकर्षण न जाए, कभी उनके वशीभूत न हों।

     

    हाइएस्ट पोजीशन वाली आत्मायें कोई साधारण संकल्प भी नहीं कर सकती। तो जब कोई भी संकल्प वा कर्म करते हो तो चेक करो कि जैसा ऊंचा नाम वैसा ऊंचा काम है?

     

    अगर नाम ऊंचा, काम नीचा तो नाम बदनाम करते हो इसलिए लक्ष्य प्रमाण लक्षण धारण करो तब कहेंगे सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात् होलीएस्ट आत्मा।

     

    21.04.2021

    अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा माया को स्वयं के आगे झुकाने वाले हाइएस्ट पद के अधिकारी भव

     

    जैसे महान आत्मायें कभी किसी के आगे झुकती नहीं हैं, उनके आगे सभी झुकते हैं।

     

    ऐसे आप बाप की चुनी हुई सर्वश्रेष्ठ आत्मायें कहाँ भी, कोई भी परिस्थिति में वा माया के भिन्न-भिन्न आकर्षण करने वाले रूपों में अपने को झुका नहीं सकती।

     

    जब अभी से सदा झुकाने की स्थिति में स्थित रहेंगे तब हाइएस्ट पद का अधिकार प्राप्त होगा।

     

    ऐसी आत्माओं के आगे सतयुग में प्रजा स्वमान से झुकेगी और द्वापर में आप लोगों के यादगार के आगे भक्त झुकते रहेंगे।

     

    20.04.2021

     

    अपनी पावरफुल वृत्ति द्वारा पतित वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाले

    मास्टर पतित-पावनी भव

    कैसा भी वायुमण्डल हो लेकिन स्वयं की शक्तिशाली वृत्ति वायुमण्डल को बदल सकती है। वायुमण्डल विकारी हो लेकिन स्वयं की वृत्ति निर्विकारी हो।

     

    जो पतितों को पावन बनाने वाले हैं वो पतित वायुमण्डल के वशीभूत नहीं हो सकते। मास्टर पतित-पावनी बन स्वयं की पावरफुल वृत्ति से अपवित्र वा कमजोरी का वायुमण्डल मिटाओ,

     

    उसका वर्णन कर वायुमण्डल नहीं बनाओ। कमजोर वा पतित वायुमण्डल का वर्णन करना भी पाप है।

     

    19.04.2021

    भोलेपन के साथ ऑलमाइटी अथॉरिटी बन माया का सामना करने वाले शक्ति स्वरूप भव

    कभी-कभी भोलापन बहुत भारी नुकसान कर देता है। सरलता, भोला रूप धारण कर लेती है। लेकिन ऐसा भोला नहीं बनो जो सामना नहीं कर सको।

     

    सरलता के साथ समाने और सहन करने की शक्ति चाहिए।

    जैसे बाप भोलानाथ के साथ

    आलमाइटी अथॉर्टी है,

    ऐसे आप भी भोलेपन के साथ-साथ शक्ति स्वरूप भी बनो तो माया का गोला नहीं लगेगा,

    माया सामना करने के बजाए

    नमस्कार कर लेगी।

     

    18.04.2021

    खुशी के साथ शक्ति को धारण कर विघ्नों को पार करने वाले विघ्न जीत भव

    जो बच्चे जमा करना जानते हैं वह शक्तिशाली बनते हैं। यदि अभी-अभी कमाया, अभी-अभी बांटा, स्वयं में समाया नहीं तो शक्ति नहीं रहती।

     

    सिर्फ बांटने वा दान करने की खुशी रहती है। खुशी के साथ शक्ति हो तो सहज ही विघ्नों को पार कर विघ्न जीत बन जायेंगे।

     

    फिर कोई भी विघ्न लगन को डिस्टर्ब नहीं करेंगे इसलिए जैसे चेहरे से खुशी की झलक दिखाई देती है ऐसे शक्ति की झलक भी दिखाई दे।

     

    17.04.2021

    स्वयं के टेन्शन पर अटेन्शन देकर विश्व का टेन्शन समाप्त करने वाले

    विश्व कल्याणकारी भव

    जब दूसरों के प्रति जास्ती अटेन्शन देते हो तो अपने अन्दर टेन्शन चलता है, इसलिए विस्तार करने के बजाए सार स्वरूप में स्थित हो जाओ, क्वान्टिटी के संकल्पों को समाकर क्वालिटी वाले संकल्प करो।

     

    पहले अपने टेन्शन पर अटेन्शन दो तब विश्व में जो अनेक प्रकार के टेन्शन हैं उनको समाप्त कर विश्व कल्याणकारी बन सकेंगे।

     

    पहले अपने आपको देखो, अपनी सर्विस फर्स्ट, अपनी सर्विस की तो दूसरों की सर्विस स्वत: हो जायेगी।

     

    16.04.2021

    याद की सर्चलाइट द्वारा वायुमण्डल बनाने वाले विजयी रत्न भव

    सर्विसएबुल आत्माओं के मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ है ही लेकिन जिस स्थान की सर्विस करनी है, उस स्थान पर पहले से ही सर्च लाइट की रोशनी डालनी चाहिए।

     

    याद की सर्चलाइट से ऐसा वायुमण्डल बन जायेगा जो अनेक आत्मायें सहज समीप आ जायेंगी। फिर कम समय में सफलता हजार गुणा होगी।

     

    इसके लिए दृढ़ संकल्प करो कि हम विजयी रत्न हैं तो हर कर्म में विजय समाई हुई है।

     

    15.04.2021

    अन्य आत्माओं की सेवा के साथ-साथ स्वयं की भी सेवा करने वाले सफलतामूर्त भव

     

    सेवा में सफलतामूर्त बनना है तो दूसरों की सर्विस के साथ-साथ अपनी भी सर्विस करो।

    जब कोई भी सर्विस पर जाते हो तो ऐसे समझो कि सर्विस के साथ-साथ अपने भी पुराने संस्कारों का अन्तिम संस्कार करते हैं।

     

    जितना संस्कारों का संस्कार करेंगे उतना ही सत्कार मिलेगा। सभी आत्मायें आपके आगे मन से नमस्कार करेंगी।

     

    लेकिन बाहर से नमस्कार करने वाले नहीं बनाना, मानसिक नमस्कार करने वाले बनाना।

     

    14.04.2021

    स्नेह और शक्ति रूप के बैलेन्स द्वारा सेवा करने वाले सफलतामूर्त भव

    जैसे एक आंख में बाप का स्नेह और दूसरी आंख में बाप द्वारा मिला हुआ कर्तव्य (सेवा) सदा स्मृति में रहता है।

     

    ऐसे स्नेही-मूर्त के साथ-साथ अभी शक्ति रूप भी बनो। स्नेह के साथ-साथ शब्दों में ऐसा जौहर हो जो किसी का भी हृदय विदीरण कर दे। जैसे माँ बच्चों को कैसे भी शब्दों में शिक्षा देती है तो माँ के स्नेह कारण वह शब्द तेज वा कडुवे महसूस नहीं होते।

     

    ऐसे ही ज्ञान की जो भी सत्य बातें हैं उन्हें स्पष्ट शब्दों में दोöलेकिन शब्दों में स्नेह समाया हुआ हो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे।

     

    13.04.2021

    स्थूल कार्य करते भी मन्सा द्वारा विश्व परिवर्तन की सेवा करने वाली जिम्मेवार आत्मा भव

    कोई भी स्थूल कार्य करते सदा यह स्मृति रहे कि मैं विश्व की स्टेज पर विश्व कल्याण की सेवा अर्थ निमित्त हूँ।

     

    मुझे अपनी श्रेष्ठ मन्सा द्वारा विश्व परिवर्तन के कार्य की बहुत बड़ी जिम्मेवारी मिली हुई है। इस स्मृति से अलबेलापन समाप्त हो जायेगा और समय भी व्यर्थ जाने से बच जायेगा।

     

    एक-एक सेकण्ड अमूल्य समझते हुए विश्व कल्याण के वा जड़-चैतन्य को परिवर्तन करने के कार्य में सफल करते रहेंगे।

     

    12.04.2021

    माया के विघ्नों को खेल के समान अनुभव करने वाले मास्टर विश्व-निर्माता भव

    जैसे कोई बुजुर्ग के आगे छोटे बच्चे अपने बचपन के अलबेलेपन के कारण कुछ भी बोल दें, कोई ऐसा कर्तव्य भी कर लें तो

    बुजुर्ग लोग समझते हैं कि

    यह निर्दोष, अन्जान, छोटे बच्चे हैं।

     

    कोई असर नहीं होता है।

    ऐसे ही जब आप अपने को मास्टर विश्व-निर्माता समझेंगे तो

    यह माया के विघ्न बच्चों के

    खेल समान लगेंगे।

     

    माया किसी भी आत्मा द्वारा समस्या,

    विघ्न वा परीक्षा पेपर बनकर आ जाए तो

    उसमें घबरायेंगे नहीं लेकिन

    उन्हें निर्दोष समझेंगे।

     

    11.04.2021

    संगमयुग पर हर कर्म कला के रूप में करने वाले 16 कला सम्पन्न भव

     

    संगमयुग विशेष कर्म रूपी कला

    दिखाने का युग है।

     

    जिनका हर कर्म कला के रूप

    में होता है उनके हर कर्म का वा गुणों का गायन होता है।

     

    16 कला सम्पन्न अर्थात्

    हर चलन सम्पूर्ण कला के रूप में दिखाई देöयही सम्पूर्ण स्टेज की निशानी है।

     

    जैसे साकार के बोलने,

    चलने ...सभी में विशेषता देखी,

    तो यह कला हुई।

     

    उठने बैठने की

    कला, देखने की कला, चलने की कला थी।

     

    सभी में न्यारापन और विशेषता थी। तो

    ऐसे फालो फादर कर 16 कला सम्पन्न बनो।

     

    10.04.2021

    निर्बल आत्माओं में शक्तियों का फोर्स भरने वाले ज्ञान-दाता सो वरदाता भव

    वर्तमान समय निर्बल आत्माओं में इतनी शक्ति नहीं है जो जम्प दे सकें, उन्हें एक्स्ट्रा फोर्स चाहिए।

     

    तो आप विशेष आत्माओं को स्वयं में विशेष शक्ति भरकरके उन्हें हाई जम्प दिलाना है।

     

    इसके लिए ज्ञान दाता के साथ-साथ शक्तियों के वरदाता बनो।

     

    रचता का प्रभाव रचना पर पड़ता है इसलिए वरदानी बनकर अपनी रचना को सर्व शक्तियों का वरदान दो।

    अभी इसी सर्विस की आवश्यकता है।

     

    09.04.2021

    सच्चाई-सफाई की धारणा द्वारा समीपता का अनुभव करने वाले सम्पूर्णमूर्त भव

    सभी धारणाओं में मुख्य धारणा है सच्चाई और सफाई। एक दो के प्रति दिल में बिल्कुल सफाई हो।

     

    जैसे साफ चीज़ में सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है। वैसे एक दो की भावना, भाव-स्वभाव स्पष्ट दिखाई दे।

     

    जहाँ सच्चाई-सफाई है वहाँ समीपता है। जैसे बापदादा के समीप हो ऐसे आपस में भी दिल की समीपता हो।

     

    स्वभाव की भिन्नता समाप्त हो जाए। इसके लिए मन के भाव और स्वभाव को मिलाना है।

     

    जब स्वभाव में फ़र्क दिखाई न दे तब कहेंगे सम्पूर्णमूर्त।

     

    08.04.2021

    सदा पावरफुल वृत्ति द्वारा बेहद की सेवा में तत्पर रहने वाले हद की बातों से मुक्त भव

    जैसे साकार बाप को

    सेवा के सिवाए

    कुछ भी दिखाई नहीं देता था,

    ऐसे आप बच्चे भी

    अपने पावरफुल वृत्ति द्वारा

    बेहद की सेवा पर

    सदा तत्पर रहो तो

    हद की बातें स्वत: खत्म हो जायेंगी।

     

    हद की बातों में समय देना

    - यह भी गुडियों का खेल है

    जिसमें समय और

    एनर्जी वेस्ट जाती है,

    इसलिए

    छोटी-छोटी बातों में

    समय वा जमा की हुई शक्तियां

    व्यर्थ नहीं गंवाओ।

     

    07.04.2021

    सहजयोग को नेचर और नैचुरल बनाने वाले हर सबजेक्ट में परफेक्ट भव

    जैसे बाप के बच्चे हो - इसमें कोई परसेन्टेज़ नहीं है, ऐसे निरन्तर सहजयोगी वा योगी बनने की स्टेज में अब परसेन्टेज खत्म होनी चाहिए। नैचुरल और नेचर हो जानी चाहिए।

     

    जैसे कोई की विशेष नेचर होती है, उस नेचर के वश न चाहते भी चलते रहते हैं।

     

    ऐसे यह भी नेचर बन जाए। क्या करूं, कैसे योग लगाऊं - यह बातें खत्म हो जाएं तो हर सबजेक्ट में परफेक्ट बन जायेंगे।

     

    परफेक्ट अर्थात् इफेक्ट और डिफेक्ट से परे।

     

    06.04.2021

    सहयोग द्वारा स्वयं को सहज योगी बनाने वाले निरन्तर योगी भव

     

    संगमयुग पर बाप का सहयोगी बन जाना - यही सहजयोगी बनने की विधि है।


    जिनका हर संकल्प, शब्द और कर्म बाप की वा अपने राज्य की स्थापना के कर्तव्य में

    सहयोगी रहने का है, उसको ज्ञानी,

    योगी तू आत्मा निरन्तर

    सच्चा सेवाधारी कहा जाता है।

     

    मन से नहीं तो तन से, तन से नहीं तो धन से, धन से भी नहीं तो जिसमें

    सहयोगी बन सकते हो उसमें सहयोगी बनो तो यह भी योग है।

     

    जब हो ही बाप के, तो

    बाप और आप - तीसरा कोई न हो - इससे निरन्तर योगी बन जायेंगे।

     

    05.04.2021

    स्वमान में स्थित रह विश्व द्वारा सम्मान प्राप्त करने वाले, देह-अभिमान मुक्त भव

     

    पढ़ाई का मूल लक्ष्य है - देह-अभिमान से न्यारे हो देही-अभिमानी बनना।

     

    इस देह-अभिमान से न्यारे अथवा मुक्त होने की विधि ही है - सदा स्वमान में स्थित रहना।

     

    संगमयुग के और भविष्य के जो अनेक प्रकार के स्वमान हैं उनमें किसी एक भी स्वमान में स्थित रहने से देह-अभिमान मिटता जायेगा।

     

    जो स्वमान में स्थित रहता है उन्हें स्वत: मान प्राप्त होता है।

     

    सदा स्वमान में रहने वाले ही विश्व महाराजन बनते हैं और विश्व उन्हें सम्मान देती है।

     

    04.04.2021

    मालिकपन की स्मृति द्वारा हाइएस्ट अथॉरिटी का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड स्वरूपधारी भव

    पहले अपने शरीर और आत्मा के कम्बाइंड रूप को स्मृति में रखो। शरीर रचना है, आत्मा रचता है।

     

    इससे मालिकपन स्वत: स्मृति में रहेगा। मालिकपन की स्मृति से स्वयं को हाइएस्ट अथॉरिटी अनुभव करेंगे।

     

    शरीर को चलाने वाले होंगे।

    दूसरा - बाप और बच्चा (शिवशक्ति) के कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति से माया के विघ्नों को अथॉरिटी से पार कर लेंगे।

     

    03.04.2021

    एक बाप में सारे संसार का अनुभव करने वाले बेहद के वैरागी भव

    बेहद के वैरागी वही बन सकते जो बाप को ही अपना संसार समझते हैं।

     

    जिनका

    बाप ही संसार है वह अपने संसार में ही रहेंगे, दूसरे में जायेंगे ही नहीं तो किनारा

    स्वत: हो जायेगा।

     

    संसार में व्यक्ति और वैभव सब आ जाता है। बाप की सम्पत्ति सो अपनी सम्पत्ति - इसी स्मृति में रहने से बेहद के वैरागी हो जायेंगे।

     

    कोई को देखते हुए भी नहीं देखेंगे।

    दिखाई ही नहीं देंगे।

     

    02.04.2021

     

    ईश्वरीय भाग्य में लाइट का क्राउन प्राप्त करने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप भव

     

    दुनिया में भाग्य की निशानी राजाई होती है और राजाई की निशानी ताज होता है।


    ऐसे ईश्वरीय भाग्य की निशानी लाइट का क्राउन है। और इस क्राउन की प्राप्ति का

    आधार है प्युरिटी।

     

    सम्पूर्ण पवित्र आत्मायें लाइट के ताजधारी होने के साथ-साथ सर्व

    प्राप्तियों से भी सम्पन्न होती हैं।

     

    अगर कोई भी प्राप्ति की कमी है तो लाइट का

    क्राउन स्पष्ट दिखाई नहीं देगा।

     

    01.04.2021

    एक बाप की स्मृति से सच्चे सुहाग का अनुभव करने वाले भाग्यवान आत्मा भव

     

    जो किसी भी आत्मा के

    बोल सुनते हुए नहीं सुनते,

    किसी अन्य आत्मा की

    स्मृति संकल्प वा स्वप्न में भी

    नहीं लाते अर्थात्

     

    किसी भी देहधारी के

    झुकाव में नहीं आते,

    एक बाप दूसरा न कोई

    इस स्मृति में रहते हैं

    उन्हें अविनाशी सुहाग का

    तिलक लग जाता है।

     

    ऐसे सच्चे सुहाग वाले ही भाग्यवान हैं।

     

    31.03.2021

    अटूट कनेक्शन द्वारा

    करेन्ट का अनुभव करने वाले

    सदा मायाजीत, विजयी भव

     

    जैसे बिजली की शक्ति ऐसा करेन्ट लगाती है जो मनुष्य दूर जाकर गिरता है, शॉक आ जाता है।

     

    ऐसे ईश्वरीय शक्ति माया को दूर फेंक दे, ऐसी करेन्ट होनी चाहिए लेकिन करेन्ट का आधार कनेक्शन है।

     

    चलते फिरते हर सेकण्ड बाप के साथ कनेक्शन जुटा हुआ हो।

     

    ऐसा अटूट कनेक्शन हो तो करेन्ट आयेगी और मायाजीत, विजयी बन जायेंगे।

     

    30.03.2021

    अपने स्मृति की ज्योति से ब्राह्मण कुल का नाम रोशन करने वाले कुल दीपक भव

    यह ब्राह्मण कुल सबसे बड़े से बड़ा है, इस कुल के आप सब दीपक हो।

     

    कुल दीपक अर्थात् सदा अपनें स्मृति की ज्योति से ब्राह्मण कुल का नाम रोशन करने वाले।

     

    अखण्ड ज्योति अर्थात् सदा स्मृति स्वरूप और समर्थी स्वरूप।

     

    यदि स्मृति रहे कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ तो समर्थ स्वरूप स्वत: रहेंगे।

     

    इस अखण्ड़ ज्योति का यादगार आपके जड़ चित्रों के आगे अखण्ड ज्योति जगाते हैं।

     

    29.03.2021

    परतन्त्रता के बंधन को समाप्त कर

    सच्ची स्वतन्त्रता का अनुभव करने वाले

    मास्टर सर्वशक्तिवान भव

     

    विश्व को सर्व शक्तियों का दान देने के लिए स्वतन्त्र आत्मा बनो। सबसे पहली स्वतन्त्रता पुरानी देह के अन्दर के संबंध से हो क्योंकि देह की परतंत्रता अनेक बंधनों में न चाहते भी बांध देती है।

     

    परतंत्रता सदैव नीचे की ओर ले जाती है। परेशानी वा नीरस स्थिति का अनुभव कराती है।

     

    उन्हें कोई भी सहारा स्पष्ट दिखाई नहीं देता। न गमी का अनुभव, न खुशी का अनुभव, बीच भंवर में होते हैं।

     

    इसलिए मास्टर सर्वशक्तिवान बन सर्व बंधनों से मुक्त बनो, अपना सच्चा स्वतन्त्रता दिवस मनाओ।

     

    28.03.2021

    अपने पूजन को स्मृति में रख

    हर कर्म पूज्यनीय बनाने वाले

    परमपूज्य भव

     

    आप बच्चों की हर शक्ति का पूजन देवी- देवताओं के रूप में होता है।

     

    सूर्य देवता, वायु देवता, पृथ्वी देवी... ऐसे ही निर्भयता की शक्ति का पूजन काली देवी के रूप में है, सामना करने की शक्ति का पूजन दुर्गा के रूप में है।

     

    सन्तुष्ट रहने और करने की शक्ति का पूजन सन्तोषी माता के रूप में है।

     

    वायु समान हल्के बनने की शक्ति का पूजन पवनपुत्र के रूप में है।

     

    तो अपने इस पूजन को स्मृति में रख हर कर्म पूज्यनीय बनाओ तब परमपूज्य बनेंगे।

     

    27.03.2021

    शक्तियों की किरणों द्वारा कमी,

    कमजोरी रूपी किचड़े को

    भस्म करने वाले

    मास्टर ज्ञान सूर्य भव

    जो बच्चे ज्ञान सूर्य समान

    मास्टर सूर्य हैं वे

    अपने शक्तियों की किरणों द्वारा

    किसी भी प्रकार का किचड़ा

    अर्थात् कमी वा कमजोरी,

    सेकण्ड में भस्म कर देते हैं।

     

    सूर्य का काम है किचड़े को

    ऐसा भस्म कर देना जो

    नाम, रूप, रंग सदा के लिए

    समाप्त हो जाए।

     

    मास्टर ज्ञान सूर्य की हर शक्ति

    बहुत कमाल कर सकती है

    लेकिन समय

    पर यूज़ करना आता हो।

     

    जिस समय जिस शक्ति की

    आवश्यकता हो उस समय उसी शक्ति से

    काम लो और सर्व की कमजोरियों को भस्म करो

    तब कहेंगे मास्टर ज्ञान सूर्य।

     

    26.03.2021

    समय के श्रेष्ठ खजाने को सफल कर

    सदा और सर्व सफलतामूर्त भव

     

    जो बच्चे समय के खजाने को

    स्वयं के वा सर्व के कल्याण प्रति

    लगाते हैं उनके सर्व खजानें

    स्वत: जमा हो जाते हैं।

     

    समय के महत्व को जानकर

    उसे सफल करने वाले

    संकल्प का खजाना,

    खुशी का खजाना,

    शक्तियों का खजाना,

    ज्ञान का खजाना और

    श्वासों का खजाना...

    यह सब खजाने

    स्वत: जमा कर लेते हैं।

     

    सिर्फ अलबेले पन को छोड़

    समय के खजाने को सफल करो तो

    सदा और सर्व सफलतामूर्त बन जायेंगे।

     

    25.03.2021

    हर कर्म रूपी बीज को फलदायक बनाने वाले योग्य शिक्षक भव

    योग्य शिक्षक उसे कहा जाता है

    - जो स्वयं शिक्षा स्वरूप हो

    क्योंकि शिक्षा देने का

    सबसे सहज साधन है

    स्वरूप द्वारा शिक्षा देना।

     

    वे अपने हर कदम द्वारा

    शिक्षा देते हैं,

    उनके हर बोल वाक्य नहीं

    लेकिन महावाक्य कहे जाते हैं।

     

    उनका हर कर्म रूपी बीज

    फलदायक होता है, निष्फल नहीं।

     

    ऐसे योग्य शिक्षक का

    संकल्प आत्माओं को नई सृष्टि का अधिकारी बना देता है।

     

    24.03.2021

    एकाग्रता के अभ्यास द्वारा अनेक आत्माओं की चाहनाओं को पूर्ण करने वाले विश्व कल्याणकारी भव

     

    सर्व आत्माओं की चाहना है कि भटकती हुई बुद्धि वा मन चंचलता से एकाग्र हो जाए।

     

    तो उनकी इस चाहना को

    पूर्ण करने के लिए

    पहले आप स्वयं अपने संकल्पों को

    एकाग्र करने का अभ्यास बढ़ाओ,

    निरन्तर एकरस स्थिति में

    वा एक बाप दूसरा न कोई....

    इस स्थिति में स्थित रहो,

    व्यर्थ संकल्पों को शुद्ध संकल्पों में

    परिवर्तन करो तब

    विश्व कल्याणकारी भव का

    वरदान प्राप्त होगा।

     

    23.03.2021

    मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति द्वारा मायाजीत सो जगतजीत, विजयी भव

    जो बच्चे बहुत सोचते हैं कि

    पता नहीं माया क्यों आ गई,

    तो माया भी घबराया हुआ देख

    और वार कर लेती है

    इसलिए सोचने के बजाए

    सदा मास्टर सर्वशक्तिमान् की

    स्मृति में रहो -

    तो विजयी बन जायेंगे।

     

    विजयी रत्न बनाने के निमित्त ही

    यह माया के छोटे-छोटे रूप हैं इसलिए

    स्वयं को मायाजीत,

    जगतजीत समझ माया पर

    विजय प्राप्त करो, कमजोर मत बनो।

     

    चैलेन्ज करने वाले बनो।

     

    22.03.2021

    साधारणता को समाप्त कर

    महानता का अनुभव करने वाले

    श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव

     

    जो श्रेष्ठ पुरूषार्थी बच्चे हैं

    उनका हर संकल्प महान होगा क्योंकि

    उनके हर संकल्प,

    श्वांस में स्वत: बाप की याद होगी।

     

    जैसे भक्ति में कहते हैं

    अनहद शब्द सुनाई दे,

    अजपाजाप चलता रहे,

    ऐसा पुरूषार्थ निरन्तर हो

    इसको कहा जाता है श्रेष्ठ पुरूषार्थ।

     

    याद करना नहीं,

    स्वत: याद आता रहे

    तब साधारणता खत्म होती जायेगी

    और महानता आती जायेगी

    - यही है आगे बढ़ने की निशानी।

     

    21.03.2021

    बाप समान अपने हर बोल व कर्म का यादगार

    बनाने वाले दिलतख्तनशीन सो राज्य तख्तनशीन भव

    जैसे बाप द्वारा जो भी बोल निकलते हैं वह यादगार बन जाते हैं, ऐसे जो बाप समान हैं वो जो भी बोलते हैं वह सबके दिलों में समा जाता है अर्थात् यादगार रह जाता है।

    वो जिस आत्मा के प्रति संकल्प करते तो उनके दिल को लगता है।

    उनके दो शब्द भी दिल को राहत देने वाले होते हैं, उनसे समीपता का अनुभव होता है इसलिए उन्हें सब अपना समझते हैं।

    ऐसे समान बच्चे ही दिलतख्तनशीन सो राज्य तख्तनशीन बनते हैं।

     

     

    20.03.2021

    समर्पणता द्वारा बुद्धि को स्वच्छ बनाने वाले सर्व खजानों से सम्पन्न भव

    ज्ञान का, श्रेष्ठ समय का खजाना

    जमा करना वा स्थूल खजाने को

    एक से लाख गुणा बनाना

    अर्थात् जमा करना...

    इन सब खजानों में

    सम्पन्न बनने का आधार है

    स्वच्छ बुद्धि और सच्ची दिल।

     

    लेकिन बुद्धि स्वच्छ तब बनती है जब

    बुद्धि द्वारा बाप को जानकर,

    उसे बाप के आगे समर्पण कर दो।

     

    शूद्र बुद्धि को समर्पण करना अर्थात्

    देना ही दिव्य बुद्धि लेना है।

     

    19.03.2021

    ब्राह्मण जीवन की नीति

    और रीति प्रमाण

    सदा चलने वाले

    व्यर्थ संकल्प मुक्त भव

     

    जो ब्राह्मण जीवन की नीति,

    रीति प्रमाण चलते हुए सदा श्रीमत की आज्ञायें स्मृति में रखते हैं और

    सारा दिन शुद्ध प्रवृत्ति में

    बिजी रहते हैं उन पर

    व्यर्थ संकल्प रूपी रावण वार

    नहीं कर सकता।

     

    बुद्धि की प्रवृत्ति है शुद्ध संकल्प करना,

    वाणी की प्रवृत्ति है बाप द्वारा

    जो सुना वह सुनाना,

     

    कर्म की प्रवृत्ति है कर्मयोगी बन

    हर कर्म करना - इसी प्रवृत्ति में

    बिजी रहने वाले व्यर्थ संकल्पों से

    निवृत्ति प्राप्त कर लेते हैं।

     

    18.03.2021

    याद और सेवा के डबल लॉक द्वारा सदा सेफ, सदा खुश और सदा सन्तुष्ट भव

     

    सारा दिन संकल्प, बोल और

    कर्म बाप की याद और सेवा में लगा रहे।

     

    हर संकल्प में बाप की याद हो,

    बोल द्वारा बाप का दिया हुआ

    खजाना दूसरों को दो,

    कर्म द्वारा बाप के चरित्रों को सिद्ध करो।

     

    अगर ऐसे याद और सेवा में

    सदा बिजी रहो तो

    डबल लॉक लग जायेगा फिर

    माया कभी आ नहीं सकती।

     

    जो इस स्मृति से

    पक्का लॉक लगाते हैं वो

    सदा सेफ, सदा खुश और

    सदा सन्तुष्ट रहते हैं।

     

    17.03.2021

    श्रीमत द्वारा

    सदा खुशी वा हल्केपन का

    अनुभव करने वाले

    मनमत और परमत से मुक्त भव

     

    जिन बच्चों का हर कदम

    श्रीमत प्रमाण है

    उनका मन सदा सन्तुष्ट होगा,

     

    मन में किसी भी प्रकार की

    हलचल नहीं होगी,

     

    श्रीमत पर चलने से

    नैचुरल खुशी रहेगी,

     

    हल्केपन का अनुभव होगा,

     

    इसलिए जब भी मन में हलचल हो,

    जरा सी खुशी की

    परसेन्टेज कम हो तो

    चेक करो - जरूर श्रीमत की

    अवज्ञा होगी इसलिए

    सूक्ष्म चेकिंग कर

    मनमत वा परमत से

    स्वयं को मुक्त कर लो।

     

    16.03.2021

    कारण को

    निवारण में परिवर्तन कर

    सदा आगे बढ़ने वाले

    समर्थी स्वरूप भव

     

    ज्ञान मार्ग में जितना आगे बढ़ेंगे

    उतना माया भिन्न-भिन्न रूप से

    परीक्षा लेने आयेगी क्योंकि

    यह परीक्षायें ही आगे बढ़ाने का

    साधन है न कि गिराने का।

     

    लेकिन निवारण के बजाए

    कारण सोचते हो तो

    समय और शक्ति व्यर्थ जाती है।

     

    कारण के बजाए निवारण सोचो

    और एक बाप के याद की

    लगन में मगन रहो तो

    समर्थी स्वरूप बन निर्विघ्न हो जायेंगे।

     

    15.03.2021

    अपने सहयोग से

    निर्बल आत्माओं को

    वर्से का अधिकारी बनाने वाले

    वरदानी मूर्त भव

     

    अब वरदानी मूर्त द्वारा

    संकल्प शक्ति की सेवा कर

    निर्बल आत्माओं को

    बाप के समीप लाओ।

     

    मैजारिटी आत्माओं में

    शुभ इच्छा उत्पन्न हो रही है कि

    आध्यात्मिक शक्ति

    जो कुछ कर सकती है

    वह और कोई नहीं कर सकता।

     

    लेकिन आध्यात्मिकता की ओर

    चलने के लिए

    अपने को हिम्मतहीन समझते हैं।

     

    उन्हें अपने शक्ति से

    हिम्मत की टांग दो

    तब बाप के समीप चलकर आयेंगे।

     

    अब वरदानी मूर्त बन

    अपने सहयोग से

    उन्हें वर्से के अधिकारी बनाओ।

     

    14.03.2021

    पावरफुल ब्रेक द्वारा

    वरदानी रूप से सेवा करने वाले

    लाइट माइट हाउस भव

    वरदानी रूप से सेवा करने के लिए पहले स्वयं में शुद्ध संकल्प चाहिए तथा अन्य संकल्पों को सेकण्ड में कन्ट्रोल करने का विशेष अभ्यास चाहिए।

     

    सारा दिन शुद्ध संकल्पों के

    सागर में लहराते रहो और

    जिस समय चाहे शुद्ध संकल्पों के

    सागर के तले में जाकर

    साइलेन्स स्वरूप हो जाओ,

     

    इसके लिए ब्रेक पावरफुल हो,

    संकल्पों पर पूरा कन्ट्रोल हो

    और बुद्धि व संस्कार पर

    पूरा अधिकार हो तब

    लाइट माइट हाउस बन

    वरदानी रूप से सेवा कर सकेंगे।

     

    13.03.2021

    इस हीरे तुल्य युग में हीरा देखने और हीरो पार्ट बजाने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव

    जैसे जौहरी की नज़र

    सदा हीरे पर रहती है,

    आप सब भी ज्वेलर्स हो,

    आपकी नज़र पत्थर की तरफ न जाये,

    हीरे को देखो।

     

    हर एक की विशेषता पर ही नज़र जाये।

     

    संगमयुग है भी हीरे तुल्य युग।

     

    पार्ट भी हीरो, युग भी हीरे तुल्य,

    तो हीरा ही देखो

    तब अपने शुभ भावना की किरणें

    सब तरफ फैला सकेंगे।

    वर्तमान समय इसी बात का

    विशेष अटेन्शन चाहिए।

     

    ऐसे पुरूषार्थी को ही तीव्र पुरूषार्थी कहा जाता है।

     

    12.03.2021

    निश्चय के आधार पर

    सदा एकरस

    अचल स्थिति में स्थित रहने वाले

    निश्चिंत भव

     

    निश्चयबुद्धि की निशानी है ही सदा निश्चिंत।

     

    वह किसी भी बात में

    डगमग नहीं हो सकते,

    सदा अचल रहेंगे

    इसलिए कुछ भी हो सोचो नहीं,

    क्या क्यों में कभी नहीं जाओ,

     

    त्रिकालदर्शी बन

    निश्चिंत रहो

    क्योंकि हर कदम में कल्याण है।

     

    जब कल्याणकारी बाप का

    हाथ पकड़ा है तो

    वह अकल्याण को भी

    कल्याण में बदल देगा

    इसलिए सदा निश्चिंत रहो।

     

    11.03.2021

    हर संकल्प

    बाप के आगे अर्पण कर

    कमजोरियों को दूर करने वाले

    सदा स्वतन्त्र भव

     

    कमजोरियों को दूर करने का

    सहज साधन है -

    जो भी कुछ संकल्प में आता है

    वह बाप को अर्पण कर दो।

     

    सब जिम्मेवारी

    बाप को दे दो तो

    स्वयं स्वतंत्र हो जायेंगे।

     

    सिर्फ एक दृढ़ संकल्प रखो कि

    मैं बाप का और बाप मेरा।

     

    जब इस अधिकारी स्वरूप में

    स्थित होंगे तो

    अधीनता आटोमेटिक निकल जायेगी।

     

    हर सेकेण्ड यह चेक करो कि

    मैं बाप समान सर्व शक्तियों का

    अधिकारी मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ!

     

    10.03.2021

    दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा

    विश्व की देख-रेख करने वाले

    मास्टर रचयिता भव

     

    जिसकी बुद्धि जितनी दिव्य है,

    दिव्यता के आधार पर

    उतनी स्पीड तेज है।

     

    तो दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा

    एक सेकेण्ड में स्पष्ट रूप से

    विश्व परिक्रमा कर

    सर्व आत्माओं की देख रेख करो।

     

    उन्हें सन्तुष्ट करो।

     

    जितना आप चक्रवर्ती बनकर

    चक्र लगायेंगे

    उतना चारों ओर का आवाज

    निकलेगा कि हम लोगों ने

    ज्योति देखी,

    चलते हुए फरिश्ते देखे।

     

    इसके लिए स्वयं कल्याणी के साथ

    विश्व कल्याणी

    मास्टर रचता बनो।

     

    09.03.2021

    अपने स्व-स्वरूप और स्वदेश के

    स्वमान में स्थित रहने वाले

    मास्टर लिबरेटर भव

    आजकल के वातावरण में

    हर आत्मा किसी न किसी बात के

    बंधन वश है।

     

    कोई तन के दु:ख के वशीभूत है,

    कोई सम्बन्ध के,

    कोई इच्छाओं के,

    कोई अपने दुखदाई संस्कार-स्वभाव के,

    कोई प्रभू प्राप्ति न मिलने के कारण,

    पुकारने चिल्लाने के दु:ख के

    वशीभूत...ऐसी दुख-अशान्ति के वश

    आत्मायें अपने को लिबरेट करना चाहती हैं

    तो उन्हें दु:खमय जीवन से

    लिबरेट करने के लिए

    अपने स्व-स्वरूप और

    स्वदेश के स्वमान में स्थित रह,

    रहमदिल बन मास्टर लिबरेटर बनो।

     

    08.03.2021

    सदा उमंग, उत्साह में रह

    चढ़ती कला का अनुभव करने वाले

    महावीर भव

     

    महावीर बच्चे हर सेकेण्ड,

    हर संकल्प में चढ़ती कला का

    अनुभव करते हैं।

     

    उनकी चढ़ती कला सर्व के प्रति

    भला अर्थात् कल्याण करने के

    निमित्त बना देती है।

     

    उन्हें रूकने वा थकने की

    अनुभूति नहीं होती,

    वे सदा अथक, सदा उमंग-उत्साह में

    रहने वाले होते हैं।

     

    रूकने वाले को घोड़ेसवार,

    थकने वाले को प्यादा और

    जो सदा चलने वाले हैं

    उनको महावीर कहा जाता है।

     

    उनकी माया के किसी भी

    रूप में आंख नहीं डूबेगी।

     

     

    07.03.2021

    युद्ध में डरने वा

    पीछे हटने के बजाए

    बाप के साथ द्वारा

    सदा विजयी भव

    सेना में युद्ध करने वाले

    जो योद्धे होते हैं उन्हों का

    स्लोगन होता कि

    हारना वा पीछे लौटना

    कमजोरों का काम है,

    योद्धा अर्थात् मरना और मारना।

     

    आप भी रूहानी योद्धे डरने वा

    पीछे हटने वाले नहीं,

    सदा आगे बढ़ते विजयी

    बनने वाले हो।

     

    ऐसे कभी नहीं सोचना कि

    कहाँ तक युद्ध करें,

    यह तो सारे जिंदगी की बात है

    लेकिन 5000 वर्ष की

    प्रारब्ध के हिसाब से

    यह सेकेण्ड की बात है,

    सिर्फ विशाल बुद्धि बनकर

    बेहद के हिसाब से देखो और

    बाप की याद वा साथ की

    अनुभूति द्वारा विजयी बनो।

     

    06.03.2021

    आश्चर्यजनक दृश्य देखते हुए

    पहाड़ को राई बनाने वाले

    साक्षीदृष्टा भव

    सम्पन्न बनने में

    अनेक नये-नये वा

    आश्चर्यजनक दृश्य सामने आयेंगे,

    लेकिन वह दृश्य साक्षीदृष्टा बनावें,

    हिलायें नहीं।

     

    साक्षी दृष्टा के स्थिति की

    सीट पर बैठकर देखने वा

    निर्णय करने से बहुत मजा आता है।

    भय नहीं लगता।

     

    जैसेकि अनेक बार देखी हुई सीन

    फिर से देख रहे हैं।

     

    वह राजयुक्त, योगयुक्त बन

    वायुमण्डल को डबल लाइट बनायेंगे।

     

    उन्हें पहाड़ समान पेपर भी

    राई के समान अनुभव होगा।

     

    05.03.2021

    सदा पश्चाताप से परे,

    प्राप्ति स्वरूप स्थिति का

    अनुभव करने वाले

    सद्-बुद्धिवान भव

     

    जो बच्चे बाप को

    अपने जीवन की नैया देकर

    मैं पन को मिटा देते हैं।

     

    श्रीमत में मनमत मिक्स नहीं करते

    वह सदा पश्चाताप से परे

    प्राप्ति स्वरूप स्थिति का

    अनुभव करते हैं।

     

    उन्हें ही सद्-बुद्धिवान कहा जाता है।

     

    ऐसे सद्-बुद्धि वाले

    तूफानों को तोफा समझ,

    स्वभाव-संस्कार की टक्कर को

    आगे बढ़ने का आधार समझ,

    सदा बाप को साथी बनाते हुए,

    साक्षी हो हर पार्ट देखते

    सदा हर्षित होकर चलते हैं।

     

    04.03.2021

    सेकण्ड में संकल्पों को स्टॉप कर

    अपने फाउन्डेशन को

    मजबूत बनाने वाले

    पास विद आनर भव

     

    कोई भी पेपर

    परिपक्व बनाने के लिए,

    फाउण्डेशन को

    मजबूत करने के लिए आते हैं,

    उसमें घबराओ नहीं।

     

    बाहर की हलचल में

    एक सेकेण्ड में

    स्टॉप करने का अभ्यास करो,

    कितना भी विस्तार हो

    एक सकेण्ड में समेट लो।

     

    भूख प्यास, सर्दी गर्मी

    सब कुछ होते हुए

    संस्कार प्रकट न हों,

    समेटने की शक्ति द्वारा

    स्टॉप लगा दो।

     

    यही बहुत समय का

    अभ्यास पास विद आनर बना देगा।

     

    03.03.2021

    कम्पन्नी और कम्पैनियन को

    समझकर साथ निभाने वाले

    श्रेष्ठ भाग्यवान भव

     

    ड्रामा के भाग्य प्रमाण आप

    थोड़ी सी आत्मायें हो जिन्हें

    सर्व प्राप्ति कराने वाली

    श्रेष्ठ ब्राह्मणों की कम्पनी मिली है।

     

    सच्चे ब्राह्मणों की कम्पनी

    चढ़ती कला वाली होती है,

    वे कभी ऐसी कम्पनी (संग)

    नहीं करेंगे जो

    हरती कला में ले जाए।

     

    जो सदा श्रेष्ठ कम्पन्नी में

    रहते और एक बाप को

    अपना कम्पैनियन बनाकर

    उनसे ही प्रीति की रीति

    निभाते हैं

    वही श्रेष्ठ भाग्यवान हैं।

     

    02.03.2021

     

    अपने दिव्य, अलौकिक जन्म की

    स्मृति द्वारा

    मर्यादा की लकीर के अन्दर

    रहने वाले

    मर्यादा पुरूषोत्तम भव

    जैसे हर कुल के मर्यादा की

    लकीर होती है ऐसे

    ब्राह्मण कुल के

    मर्यादाओं की लकीर है,

    ब्राह्मण अर्थात् दिव्य

    और अलौकिक जन्म वाले

    मर्यादा पुरूषोत्तम।

     

    वे संकल्प में भी किसी

    आकर्षण वश मर्यादाओं का

    उल्लंघन नहीं कर सकते।

     

    जो मर्यादा की लकीर का

    संकल्प में भी

    उल्लंघन करते हैं वो

    बाप के सहारे का

    अनुभव नहीं कर पाते।

     

    बच्चे के बजाए मांगने वाले

    भक्त बन जाते हैं।

     

    ब्राह्मण अर्थात् पुकारना,

    मांगना बंद, कभी भी

    प्रकृति वा माया के मोहताज नहीं,

    वे सदा बाप के सिरताज रहते हैं।

     

    01.03.2021

    सदा साथ के अनुभव द्वारा

    मेहनत की अविद्या करने वाले

    अतीन्द्रिय सुख वा आनंद स्वरूप भव

     

    जैसे बच्चा अगर बाप की गोदी में है

    तो उसे थकावट नहीं होती।

     

    अपने पांव से चले तो

    थकेगा भी, रोयेगा भी।

     

    यहाँ भी आप बच्चे

    बाप की गोदी में बैठे हुए

    चल रहे हो।

     

    जरा भी मेहनत वा

    मुश्किल का अनुभव नहीं।

     

    संगमयुग पर जो ऐसे

    सदा साथ रहने वाली आत्मायें हैं

    उनके लिए मेहनत

    अविद्या मात्रम् होती है।

     

    पुरूषार्थ भी एक नेचरल

    कर्म हो जाता है,

    इसलिए सदा अतीन्द्रिय सुख

    वा आनंद स्वरूप

    स्वत: बन जाते हैं।

     

    28.02.2021

    सर्व आत्माओं को

    शक्तियों का दान देने वाले

    मास्टर बीजरूप भव

     

    अनेक भक्त आत्मा रूपी पत्ते

    जो सूख गये हैं,

    मुरझा गये हैं उनको

    फिर से अपने बीजरूप स्थिति द्वारा

    शक्तियों का दान दो।

     

    उन्हें सर्व प्राप्ति कराने का

    आधार है आपकी

    "इच्छा मात्रम् अविद्या'' स्थिति।

     

    जब स्वयं

    इच्छा मात्रम् अविद्या होंगे तब

    अन्य आत्माओं की

    सर्व इच्छायें पूर्ण कर सकेंगे।

     

    इच्छा मात्रम् अविद्या अर्थात्

    सम्पूर्ण शक्तिशाली बीजरूप स्थिति।

     

    तो मास्टर बीजरूप बन

    भक्तों की पुकार सुनो, प्राप्ति कराओ।

     

    27.02.2021

    सदा अपने रॉयल कुल

    की स्मृति द्वारा

    ऊंची स्टेज पर रहने वाले

    गुणमूर्त भव

     

    जो रॉयल कुल वाले होते हैं

    वह कभी धरती पर,

    मिट्टी पर पांव नहीं रखते।

     

    यहाँ देह-अभिमान मिट्टी है,

    इसमें नीचे नहीं आओ,

    इस मिट्टी से सदा दूर रहो।

     

    सदा स्मृति रहे कि ऊंचे से ऊंचे

    बाप के रॉयल फैमिली के,

    ऊंची स्टेज वाले बच्चे हैं तो

    नीचे नज़र नहीं आयेगी।

     

    सदैव अपने को गुणमूर्त देखते हुए

    ऊंची स्टेज पर स्थित रहो।

     

    कमी को देखते खत्म करते जाओ।

    उसे बार-बार सोचेंगे तो

    कमी रह जायेगी।

     

    26.02.2021

    सदा देह-अभिमान व

    देह की बदबू से दूर रहने वाले

    इन्द्रप्रस्थ निवासी भव

     

    कहते हैं इन्द्रप्रस्थ में सिवाए

    परियों के और कोई भी

    मनुष्य निवास नहीं कर सकते।

     

    मनुष्य अर्थात् जो अपने को

    आत्मा न समझ देह समझते हैं।

     

    तो देह-अभिमान और देह की

    पुरानी दुनिया, पुराने संबंधों से

    सदा ऊपर उड़ते रहते।

     

    जरा भी मनुष्य-पन की

    बदबू न हो।

     

    देही-अभिमानी स्थिति में रहो,

    ज्ञान और योग के पंख

    मजबूत हों तब कहेंगे

    इन्द्रप्रस्थ निवासी।

     

    25.02.2021

    सर्व जिम्मेवारियों के

    बोझ बाप को देकर

    सदा अपनी उन्नति करने वाले

    सहजयोगी भव

     

    जो बच्चे बाप के कार्य को

    सम्पन्न करने की जिम्मेवारी का

    संकल्प लेते हैं उन्हें

    बाप भी इतना ही सहयोग देते हैं।

     

    सिर्फ जो भी व्यर्थ का बोझ है

    वह बाप के ऊपर छोड़ दो।

     

    बाप का बनकर बाप के ऊपर

    जिम्मेवारियों का बोझ

    छोड़ने से सफलता भी

    ज्यादा और उन्नति भी

    सहज होगी।

     

    क्यों और क्या के क्वेश्चन से

    मुक्त रहो, विशेष फुल-स्टॉप की

    स्थिति रहे तो

    सहजयोगी बन अतीन्द्रिय सुख का

    अनुभव करते रहेंगे।

     

    24.02.2021

    सोचने और करने के अन्तर को

    मिटाने वाले

    स्व-परिवर्तक सो

    विश्व परिवर्तक भव

     

    कोई भी संस्कार, स्वभाव,

    बोल व सम्पर्क जो यथार्थ

    नहीं व्यर्थ है,

     

    उस व्यर्थ को परिवर्तन करने की

    मशीनरी फास्ट करो।

     

    सोचा और किया.. तब

    विश्व परिवर्तन की मशीनरी तेज होगी।

     

    अभी स्थापना के निमित्त बनी हुई

    आत्माओं के सोचने और

    करने में अन्तर दिखाई देता है,

    इस अन्तर को मिटाओ।

     

    तब स्व परिवर्तक सो

    विश्व परिवर्तक बन सकेंगे।

     

    23.02.2021

    "निराकार सो साकार''

    - इस मन्त्र की स्मृति से

    सेवा का पार्ट बजाने वाले

    रूहानी सेवाधारी भव

     

    जैसे बाप निराकार सो साकार बन

    सेवा का पार्ट बजाते हैं

    ऐसे बच्चों को भी

    इस मन्त्र का यन्त्र स्मृति में

    रख सेवा का पार्ट बजाना है।

     

    यह साकार सृष्टि,

    साकार शरीर स्टेज है।

     

    स्टेज आधार है,

    पार्टधारी आधारमूर्त हैं,

    मालिक हैं।

     

    इस स्मृति से न्यारे बनकर

    पार्ट बजाओ तो

    सेन्स के साथ इसेंसफुल,

    रूहानी सेवाधारी बन जायेंगे।

     

    22.02.2021

    एक साथ तीन रूपों से सेवा करने वाले मास्टर त्रिमूर्ति भव

    जैसे बाप

    सदा तीन स्वरूपों से

    सेवा पर उपस्थित हैं

    बाप, शिक्षक और सतगुरू,

    ऐसे आप बच्चे भी

    हर सेकण्ड मन, वाणी और कर्म

    तीनों द्वारा साथ-साथ सर्विस करो

    तब कहेंगे मास्टर त्रिमूर्ति।

     

    मास्टर त्रिमूर्ति बन

    जो हर सेकण्ड

    तीनों रूपों से सेवा पर

    उपस्थित रहते हैं

    वही विश्व कल्याण कर सकेंगे

     

    क्योंकि

     

    इतने बड़े विश्व का कल्याण

    करने के लिए

    जब एक ही समय पर

    तीनों रूप से सेवा हो तब यह

    सेवा का कार्य समाप्त हो।

     

    21.02.2021

    सन्तुष्टता की विशेषता वा

    श्रेष्ठता द्वारा

    सर्व के इष्ट बनने वाले

    वरदानी मूर्त भव

     

    जो सदा स्वयं से और सर्व से

    सन्तुष्ट रहते हैं वही

    अनेक आत्माओं के इष्ट व

    अष्ट देवता बन सकते हैं।

     

    सबसे बड़े से बड़ा गुण कहो,

    दान कहो या विशेषता वा

    श्रेष्ठता कहो - वह सन्तुष्टता ही है।

     

    सन्तुष्ट आत्मा ही प्रभूप्रिय,

    लोकप्रिय और स्वयं प्रिय होती है।

     

    ऐसी सन्तुष्ट आत्मा ही

    वरदानी रूप में प्रसिद्ध होगी।

     

    अभी अन्त के समय में

    महादानी से भी ज्यादा

    वरदानी रूप द्वारा सेवा होगी।

     

    20.02.2021

    अपनी श्रेष्ठ धारणाओं प्रति

    त्याग में भाग्य का अनुभव करने वाले

    सच्चे त्यागी भव

     

    ब्राह्मणों की श्रेष्ठ धारणा है

    सम्पूर्ण पवित्रता।

     

    इसी धारणा के लिए गायन है

    "प्राण जाएं पर धर्म न जाये।''

     

    किसी भी प्रकार की

    परिस्थिति में अपनी इस धारणा के प्रति

    कुछ भी त्याग करना पड़े,

    सहन करना पड़े, सामना करना पड़े, साहस रखना पड़े तो खुशी-खुशी

    से करो - इसमें त्याग को

    त्याग न समझ भाग्य का

    अनुभव करो तब

    कहेंगे सच्चे त्यागी।

     

    ऐसी धारणा वाले ही

    सच्चे ब्राह्मण कहे जाते हैं।

     

    19.02.2021

    संगमयुग के श्रेष्ठ चित्र को

    सामने रख भविष्य का

    दर्शन करने वाले

    त्रिकालदर्शी भव

    भविष्य के पहले

    सर्व प्राप्तियों का अनुभव

    आप संगमयुगी ब्राह्मण करते हो।

     

    अभी डबल ताज, तख्त, तिलकधारी,

    सर्व अधिकारी मूर्त बनते हो।

     

    भविष्य में तो गोल्डन स्पून होगा

    लेकिन अभी हीरे तुल्य बन जाते हो।

     

    जीवन ही हीरा बन जाता है।

     

    वहाँ सोने, हीरे के झूले में

    झूलेंगे यहाँ बापदादा की गोदी में,

    अतीन्द्रिय सुख के झूले में

    झूलते हो।

     

    तो त्रिकालदर्शी बन

    वर्तमान और भविष्य के श्रेष्ठ चित्र को

    देखते हुए सर्व प्राप्तियों का

    अनुभव करो।

     

     

    18.02.2021

    ज्ञानी तू आत्मा बन

    ज्ञान सागर और ज्ञान में समाने वाले

    सर्व प्राप्ति स्वरूप भव

     

    जो ज्ञानी तू आत्मायें हैं

    वह सदा ज्ञान सागर और

    ज्ञान में समाई रहती हैं,

     

    सर्व प्राप्ति स्वरूप होने के कारण

    इच्छा मात्रम् अविद्या की

    स्टेज स्वत: रहती है।

     

    जो अंश मात्र भी

    किसी स्वभाव-संस्कार के अधीन हैं,

    नाम-मान-शान के मंगता हैं।

     

    क्या, क्यों के क्वेश्चन में

    चिल्लाने वाले,

    पुकारने वाले,

    अन्दर एक बाहर दूसरा रूप है - उन्हें

    ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहा जा सकता।

     

     

    17.02.2021

    अमृतवेले के महत्व को समझकर

    यथार्थ रीति यूज़ करने वाले

    सदा शक्ति सम्पन्न भव

     

    स्वयं को शक्ति सम्पन्न

    बनाने के लिए

    रोज़ अमृतवेले तन की

    और मन की सैर करो।

     

    जैसे अमृतवेले समय का भी

    सहयोग है,

    बुद्धि सतोप्रधान स्टेज का भी

    सहयोग है,

     

    तो ऐसे वरदानी समय पर

    मन की स्थिति भी

    सबसे पावरफुल स्टेज की चाहिए।

     

    पावरफुल स्टेज अर्थात्

    बाप समान बीजरूप स्थिति।

     

    साधारण स्थिति में तो

    कर्म करते भी रह

    सकते हो लेकिन

    वरदान के समय को

    यथार्थ रीति यूज़ करो तो

    कमजोरी समाप्त हो जायेगी।

     

     

    16.02.2021

    सर्व खजानों को

    विश्व कल्याण प्रति

    यूज़ करने वाले

    सिद्धि स्वरूप भव

     

    जैसे अपने हद की प्रवृत्ति में,

    अपने हद के स्वभाव-संस्कारों की

    प्रवृत्ति में बहुत समय लगा देते हो,

    लेकिन अपनी-अपनी प्रवृत्ति से

    परे अर्थात् उपराम रहो

    और हर संकल्प, बोल,

    कर्म और

    सम्बन्ध-सम्पर्क में

    बैलेन्स रखो तो

    सर्व खजानों की इकॉनामी द्वारा

    कम खर्च बाला नशीन बन जायेंगे।

     

    अभी समय रूपी खजाना, एनर्जी

    का खजाना और स्थूल खजाने में कम खर्च बाला नशीन बनो,

    इन्हें स्वयं के बजाए

    विश्व कल्याण प्रति

    यूज़ करो तो

    सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे।

     

    15.02.2021

    अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा

    अनेक आत्माओं का

    आह्वान करने वाले

    विश्व कल्याणकारी भव

     

    जितना लास्ट कर्मातीत स्टेज

    समीप आती जायेगी

    उतना आवाज से परे

    शान्त स्वरूप की स्थिति

    अधिक प्रिय लगेगी -

     

    इस स्थिति में

    सदा अतीन्द्रिय सुख की

    अनुभूति होगी और

    इसी अतीन्द्रिय सुखमय

    स्थिति द्वारा

    अनेक आत्माओं का

    सहज आह्वान कर सकेंगे।

     

    यह पावरफुल स्थिति ही

    विश्व कल्याणकारी स्थिति है।

     

    इस स्थिति द्वारा

    कितनी भी दूर रहने वाली आत्मा को

    सन्देश पहुंचा सकते हो।

     

     

    14.02.2021

    सेवा की स्टेज पर समाने की शक्ति द्वारा सफलता मूर्त बनने वाले

    मास्टर सागर भव

    जब सेवा की स्टेज पर आते हो

    तो अनेक प्रकार की बातें

    सामने आती हैं,

    उन बातों को स्वयं में

    समा लो तो

    सफलतामूर्त बन जायेंगे।


    समाना अर्थात् संकल्प रूप में भी

    किसी की व्यक्त बातों

    और भाव का आंशिक रूप

    समाया हुआ न हो।

     

    अकल्याणकारी बोल

    कल्याण की भावना में

    ऐसे बदल दो

    जैसे अकल्याण का बोल

    था ही नहीं।

     

    अवगुण को गुण में,

    निंदा को स्तुति में

    बदल दो - तब कहेंगे

    मास्टर सागर।

     

     

    13.02.2021

    सदा स्वमान में स्थित रह

    निर्मान स्थिति द्वारा

    सर्व को सम्मान देने वाले

    माननीय, पूज्यनीय भव

     

    जो बाप की महिमा है वही

    आपका स्वमान है,

    स्वमान में स्थित रहो

    तो निर्मान बन जायेंगे,

     

    फिर सर्व द्वारा स्वत: ही

    मान मिलता रहेगा।


    मान मांगने से नहीं मिलता

    लेकिन सम्मान देने से,

    स्वमान में स्थित होने से,

    मान का त्याग करने से

    सर्व के माननीय वा

    पूज्यनीय बनने

    का भाग्य प्राप्त हो जाता है

    क्योंकि सम्मान देना, देना नहीं लेना है।

     

     

    12.02.2021

    हर कदम फरमान पर चलकर

    माया को कुर्बान कराने वाले

    सहजयोगी भव

     

    जो बच्चे हर कदम फरमान पर

    चलते हैं उनके आगे

    सारी विश्व कुर्बान जाती है,

     

    साथ-साथ माया भी

    अपने वंश सहित

    कुर्बान हो जाती है।

     

    पहले आप बाप पर

    कुर्बान हो जाओ तो

    माया आप पर कुर्बान

    जायेगी और अपने

    श्रेष्ठ स्वमान में रहते हुए

    हर फरमान पर चलते रहो

    तो जन्म-जन्मान्तर की

    मुश्किल से छूट जायेंगे।

     

    अभी सहजयोगी और

    भविष्य में सहज जीवन होगी।

     

    तो ऐसी सहज जीवन बनाओ।

     

     

    11.02.2021

    अपने भाग्य और

    भाग्य विधाता की स्मृति द्वारा

    सर्व उलझनों से मुक्त रहने वाले

    मा. रचयिता भव

     

    सदा वाह मेरा भाग्य और

    वाह भाग्य विधाता!

    इस मन के सूक्ष्म आवाज को

    सुनते रहो और खुशी में

    नाचते रहो।

     

    जानना था वो जान लिया,

    पाना था वो पा लिया -

    इसी अनुभवों में रहो तो

    सर्व उलझनों से

    मुक्त हो जायेंगे।

     

    अब उलझी हुई आत्माओं को

    निकालने का समय है

    इसलिए

    मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ,

    मास्टर रचयिता हूँ -

    इस स्मृति से

    बचपन की छोटी-छोटी बातों में

    समय नहीं गंवाओ।

     

     

    10.02.2021

    बर्थ राईट के नशे द्वारा

    लक्ष्य और लक्षण को

    समान बनाने वाले

    श्रेष्ठ तकदीरवान भव

     

    जैसे लौकिक जन्म में

    स्थूल सम्पत्ति बर्थ राईट होती है,

    वैसे ब्राह्मण जन्म में

    दिव्यगुण रूपी सम्पत्ति,

    ईश्वरीय सुख और

    शक्ति बर्थ राईट है।

     

    बर्थ राईट का नशा

    नेचुरल रूप में रहे तो

    मेहनत करने की

    आवश्यकता नहीं।

     

    इस नशे में रहने से

    लक्ष्य और लक्षण

    समान हो जायेंगे।

     

    स्वयं को जो हूँ, जैसा हूँ,

    जिस श्रेष्ठ बाप और

    परिवार का हूँ

    वैसा जानते और मानते हुए

    श्रेष्ठ तकदीरवान बनो।

     

     

    09.02.2021

     

    त्याग और तपस्या द्वारा

    सेवा में

    सफलता प्राप्त करने वाले

    सच्चे सेवाधारी भव

     

    सेवा में सफलता का

    मुख्य साधन है त्याग और तपस्या।

    त्याग अर्थात्
    मन्सा संकल्प से भी त्याग,

    किसी परिस्थिति के कारण, मर्यादा के

    कारण, मजबूरी से त्याग करना

    यह त्याग नहीं है लेकिन

    ज्ञान स्वरूप

    से, संकल्प से भी त्यागी बनो

     

    और

    तपस्वी अर्थात् सदा

    बाप की लगन में लवलीन,

    ज्ञान, प्रेम, आनंद, सुख,

    शान्ति के सागर में समाये हुए।


    ऐसे त्यागी, तपस्वी ही

    सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले

    सच्चे सेवाधारी हैं।

     

     

    08.02.2021

    फुलस्टॉप द्वारा

    श्रेष्ठ स्थिति रूपी मैडल

    प्राप्त करने वाले

    महावीर भव

     

    इस अनादि ड्रामा में

    रूहानी सेना के सेनानियों को

    कोई मैडल देता नहीं है

    लेकिन ड्रामानुसार उन्हें

    श्रेष्ठ स्थिति रूपी मैडल

    स्वत: प्राप्त हो जाता है।

     

    यह मैडल उन्हें ही प्राप्त होता है

    जो हर आत्मा का पार्ट

    साक्षी होकर देखते हुए

    फुलस्टाप की मात्रा

    सहज लगा देते हैं।

     

    ऐसी आत्माओं का

    फाउण्डेशन अनुभव के आधार पर

    होता है इसलिए

    कोई भी समस्या रूपी दीवार

    उन्हें रोक नहीं सकती।

     

     

    07.02.2021

    स्वयं के आराम का भी त्याग कर

    सेवा करने वाले

    सदा सन्तुष्ट, सदा हर्षित भव

     

    सेवाधारी स्वयं के रात-दिन के

    आराम को भी त्यागकर

    सेवा में ही आराम महसूस करते हैं,

     

    उनके सम्पर्क में रहने वाले

    वा सम्बन्ध में आने वाले

    समीपता का ऐसे अनुभव करते हैं

    जैसे शीतलता वा शक्ति,

    शान्ति के झरने के नीचे बैठे हैं।

     

    श्रेष्ठ चरित्रवान सेवाधारी कामधेनु बन

    सदाकाल के लिए सर्व की

    मनोकामनायें पूर्ण कर देते हैं।

     

    ऐसे सेवाधारी को सदा हर्षित

    और सदा सन्तुष्ट रहने का

    वरदान स्वत: प्राप्त हो जाता है।

     

    06.02.2021

     

    सदा रहम और कल्याण की दृष्टि से

    विश्व की सेवा करने वाले

    विश्व परिवर्तक भव

     

    विश्व परिवर्तक वा

    विश्व सेवाधारी आत्माओं का

    मुख्य लक्षण है

    अपने रहम और कल्याण की

    दृष्टि द्वारा विश्व को

    सम्पन्न व सुखी बनाना।

     

    जो अप्राप्त वस्तु है, ईश्वरीय सुख,

    शान्ति और ज्ञान के धन से,

    सर्व शक्तियों से सर्व आत्माओं को

    भिखारी से अधिकारी बनाना।

     

    ऐसे सेवाधारी अपना हर सेकण्ड,

    बोल और कर्म, सम्बन्ध,

    सम्पर्क सेवा में ही लगाते हैं।

     

    उनके देखने, चलने,

    खाने सबमें सेवा समाई हुई रहती है।

     

     

    05.02.2021

    त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा

    माया के वार से सेफ रहने वाले

    अतीन्द्रिय सुख के अधिकारी भव

     

    संगमयुग का विशेष वरदान

    वा ब्राह्मण जीवन की विशेषता है

    - अतीन्द्रिय सुख।

     

    यह अनुभव और किसी भी युग में

    नहीं होता।

     

    लेकिन इस सुख की अनुभूति के लिए त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा

    माया के वार से सेफ रहो।

     

    अगर बार-बार माया का वार

    होता रहेगा तो

    चाहते हुए भी अतीन्द्रिय सुख का

    अनुभव कर नहीं पायेंगे।

     

    जो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर

    लेते हैं उन्हें इन्द्रियों का

    सुख आकर्षित कर नहीं सकता,

     

    नॉलेजफुल होने के कारण

    उनके सामने वह तुच्छ दिखाई देगा।

     

    04.02.2021

    ड्रामा की ढाल को

    सामने रख खुशी की खुराक

    खाने वाले सदा शक्तिशाली भव

     

    खुशी रूपी भोजन आत्मा को

    शक्तिशाली बना देता है,

    कहते भी हैं - खुशी जैसी खुराक नहीं।

     

    इसके लिए ड्रामा की ढाल को

    अच्छी तरह से कार्य में लगाओ।

     

    यदि सदा ड्रामा की स्मृति रहे तो

    कभी भी मुरझा नहीं सकते,

    खुशी गायब हो नहीं सकती क्योंकि

    यह ड्रामा कल्याणकारी है

    इसलिए

    अकल्याणकारी दृश्य में भी

    कल्याण समाया हुआ है,

    ऐसा समझ सदा खुश रहेंगे।

     

    03.02.2021

    सदा कल्याणकारी भावना द्वारा

    गुणग्राही बनने वाले

    अचल अडोल भव

     

    अपनी स्थिति अचल अडोल बनाने के लिए

    सदा गुणग्राही बनो।

     

    अगर हर बात में गुणग्राही होंगे तो

    हलचल में नहीं आयेंगे।

     

    गुणग्राही अर्थात् कल्याण की भावना।

     

    अवगुण में गुण देखना इसको कहते हैं गुणग्राही,

    इसलिए अवगुण वाले से भी गुण उठाओ।

     

    जैसे वह अवगुण में दृढ़ है ऐसे

    आप गुण में दृढ़ रहो।

     

    गुण का ग्राहक बनो, अवगुण का नहीं।

     

    02.02.2021

    अधिकारी पन की स्थिति द्वारा

    बाप को अपना साथी बनाने वाले

    सदा विजयी भव

     

     

     

    बाप को साथी बनाने का सहज तरीका है - अधिकारी पन की स्थिति।

     

    जब अधिकारी पन की स्थिति में

    स्थित रहते हो तब

    व्यर्थ संकल्प वा अशुद्ध संकल्पों की

    हलचल में वा अनेक रसों में

    बुद्धि डगमग नहीं होती।

     

    बुद्धि की एकाग्रता द्वारा

    सामना करने, परखने व निर्णय करने की

    शक्ति आ जाती है,

    जो सहज ही माया के

    अनेक प्रकार के वार से

    विजयी बना देती है।

     

    01.02.2021

    स्वयं पर बापदादा को

    कुर्बान कराने वाले त्यागमूर्त,

    निश्चयबुद्धि भव

     

    "बाप मिला सब कुछ मिला''

    इस खुमारी वा नशे में

    सब कुछ त्याग करने वाले

    ज्ञान स्वरूप, निश्चयबुद्धि बच्चे

    बाप द्वारा जब खुशी, शान्ति,

    शक्ति वा सुख की अनुभूति करते हैं तो

    लोकलाज की भी परवाह न कर,

    सदा कदम आगे बढ़ाते रहते हैं।

     

    उन्हें दुनिया का सब कुछ तुच्छ,

    असार अनुभव होता है।

     

    ऐसे त्याग मूर्त, निश्चयबुद्धि बच्चों पर

    बापदादा अपनी सर्व सम्पत्ति सहित

    कुर्बान जाते हैं।

     

    जैसे बच्चे संकल्प करते

    बाबा हम आपके हैं तो

    बाबा भी कहते कि

    जो बाप का सो आपका।

     

     

    28.01.2021

    सदा अपने

    श्रेष्ठ भाग्य के नशे

    और खुशी में रहने वाले

    पदमापदम भाग्यशाली भव

     

    सारे विश्व में

    जो भी धर्म पितायें वा

    जगद्गुरू कहलाने वाले बने हैं

    किसी को भी

    मात-पिता के सम्बन्ध से

    अलौकिक जन्म और पालना

    प्राप्त नहीं होती है।

     

    वे अलौकिक मात-पिता का अनुभव

    स्वप्न में भी नहीं कर सकते

    और आप पदमापदमपति

    श्रेष्ठ आत्मायें हर रोज़

    मात-पिता की वा

    सर्व सम्बन्धों की यादप्यार

    लेने के पात्र हो।

     

    स्वयं सर्वशक्तिमान बाप

    आप बच्चों का

    सेवक बन हर कदम में

    साथ निभाता है -

    तो इसी श्रेष्ठ भाग्य के

    नशे और खुशी में रहो।

     

     

    27.01.2021

    देह-अभिमान के मैं पन की

    सम्पूर्ण आहुति डालने वाले

    धारणा स्वरूप भव

     

    जब संकल्प और स्वप्न में भी

    देह-अभिमान का मैं पन न हो,

    अनादि आत्मिक स्वरूप की स्मृति हो।

     

    बाबा-बाबा का अनहद शब्द

    निकलता रहे तब कहेंगे

    धारणा स्वरूप, सच्चे ब्राह्मण।

     

    मैं पन अर्थात् पुराने स्वभाव,

    संस्कार रूपी सृष्टि को

    जब आप ब्राह्मण

    इस महायज्ञ में स्वाहा करेंगे

    तब इस पुरानी सृष्टि की

    आहुति पड़ेगी।

     

    तो जैसे यज्ञ रचने के निमित्त बने हो,

    ऐसे अब अन्तिम आहुति डाल

    समाप्ति के भी निमित्त बनो।

     

     

     

    26.01.2021

    मेहनत और महानता के साथ

    रूहानियत का अनुभव कराने वाले

    शक्तिशाली सेवाधारी भव

     

    जो भी आत्मायें

    आपके सम्पर्क में आती हैं

    उन्हें रूहानी शक्ति का

    अनुभव कराओ।

     

    ऐसी स्थूल और सूक्ष्म स्टेज बनाओ

    जिससे आने वाली आत्मायें

    अपने स्वरूप का

    और रूहानियत का अनुभव करें।

     

    ऐसी शक्तिशाली सेवा करने के लिए

    सेवाधारी बच्चों को

    व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल,

    व्यर्थ कर्म की हलचल से परे

    एकाग्रता अर्थात्

    रूहानियत में रहने

    का व्रत लेना पड़े।

     

    इसी व्रत से

    ज्ञान सूर्य का चमत्कार

    दिखला सकेंगे।

     

    25.01.2021

    जिम्मेवारी सम्भालते हुए

    आकारी और निराकारी स्थिति के

    अभ्यास द्वारा

    साक्षात्कारमूर्त भव

     

    जैसे साकार रूप में

    इतनी बड़ी जिम्मेवारी होते हुए भी

    आकारी और निराकारी स्थिति का

    अनुभव कराते रहे

     

    ऐसे फालो फादर करो।

     

    साकार रूप में फरिश्ते पन की

    अनुभूति कराओ।

     

    कोई कितना भी अशान्त

    वा बेचैन घबराया हुआ

    आपके सामने आये लेकिन

    आपकी एक दृष्टि,

    वृत्ति और स्मृति की शक्ति

    उनको बिल्कुल शान्त कर दे।

     

    व्यक्त भाव में आये और

    अव्यक्त स्थिति का

    अनुभव करे

    तब कहेंगे साक्षात्कारमूर्त।

     

    24.01.2021

    कर्म द्वारा

    गुणों का दान करने वाले

    डबल लाइट फरिश्ता भव

     

    जो बच्चे कर्मणा द्वारा

    गुणों का दान करते हैं

    उनकी चलन और चेहरा

    दोनों ही फरिश्ते की तरह

    दिखाई देते हैं।

     

    वे डबल लाइट अर्थात्

    प्रकाशमय और हल्केपन की

    अनुभूति करते हैं।

     

    उन्हें कोई भी बोझ

    महसूस नहीं होता है।

     

    हर कर्म में मदद की

    महसूसता होती है।

     

    जैसे कोई शक्ति

    चला रही है।

     

    हर कर्म द्वारा

    महादानी बनने के कारण

    उन्हें सर्व की आशीर्वाद वा

    सर्व के वरदानों की प्राप्ति का

    अनुभव होता है।

     

     

    23.01.2021

    अपने प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा

    बाप को प्रत्यक्ष करने वाले

    श्रेष्ठ तकदीरवान भव

     

    कोई भी बात को स्पष्ट करने के लिए अनेक प्रकार के प्रमाण दिये जाते हैं।

     

    लेकिन सबसे श्रेष्ठ प्रमाण प्रत्यक्ष प्रमाण है।

    प्रत्यक्ष प्रमाण अर्थात् जो हो,

    जिसके हो उसकी स्मृति में रहना।

     

    जो बच्चे अपने

    यथार्थ वा अनादि स्वरूप में

    स्थित रहते हैं वही

    बाप को प्रत्यक्ष करने

    के निमित्त हैं।

     

    उनके भाग्य को देखकर

    भाग्य बनाने वाले की याद

    स्वत: आती है।

     

     

    22.01.2021

    सदा बाप के सम्मुख रह

    खुशी का अनुभव करने वाले

    अथक और आलस्य रहित भव

     

    कोई भी प्रकार के संस्कार या

    स्वभाव को परिवर्तन करने में

    दिलशिकस्त होना या

    अलबेलापन आना भी थकना है,

    इससे अथक बनो।

     

    अथक का अर्थ है

    जिसमें आलस्य न हो।

     

    जो बच्चे ऐसे आलस्य

    रहित हैं वे सदा बाप के सम्मुख रहते

    और खुशी का अनुभव करते हैं।


    उनके मन में कभी दु:ख की लहर

    नहीं आ सकती इसलिए सदा

    सम्मुख रहो और खुशी का अनुभव करो।

     

     

    21.01.2021

    श्रीमत के आधार पर खुशी, शक्ति और सफलता का अनुभव करने वाले

    सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव

    जो बच्चे स्वयं को ट्रस्टी समझकर

    श्रीमत प्रमाण चलते हैं,

    श्रीमत में

    जरा भी मनमत या परमत मिक्स नहीं करते उन्हें निरन्तर खुशी,

    शक्ति और सफलता की

    अनुभूति होती है।

    पुरूषार्थ वा मेहनत कम

    होते भी प्राप्ति ज्यादा हो तब कहेंगे

    यथार्थ श्रीमत पर चलने वाले।

    परन्तु माया,

    ईश्वरीय मत में मनमत वा

    परमत को रायॅल रूप से

    मिक्स कर देती है इसलिए सर्व प्राप्तियों का अनुभव नहीं होता।

    इसके लिए परखने और

    निर्णय करने की शक्ति धारण करो तो

    धोखा नहीं खायेंगे।

     

     

    20.01.2021

    देही-अभिमानी स्थिति में स्थित हो

    सदा विशेष पार्ट बजाने वाले

    सन्तुष्टमणि भव

     

    जो बच्चे विशेष पार्टधारी हैं

    उनकी हर एक्ट विशेष होती,

    कोई भी कर्म

    साधारण नहीं होता।

     

    साधारण आत्मा कोई भी कर्म

    देह-अभिमानी

    होकर करेगी और

    विशेष आत्मा देही-अभिमानी

    बनकर करेगी।

     

    जो देही-अभिमानी स्थिति में

    स्थित रहकर कर्म करते हैं वे

    स्वयं भी सदा सन्तुष्ट रहते हैं

    और दूसरों को भी सन्तुष्ट करते हैं

    इसलिए उन्हें सन्तुष्टमणि का

    वरदान स्वत: प्राप्त हो जाता है।

     

    19.01.2021

    एक बल एक भरोसे के आधार पर

    मंजिल को समीप

    अनुभव करने वाले

    हिम्मतवान भव

     

    ऊंची मंजिल पर पहुंचने से पहले

    आंधी तूफान लगते ही हैं,

    स्टीमर को पार जाने के लिए

    बीच भंवर से

    क्रास करना ही पड़ता है

    इसलिए

    जल्दी में घबराओ मत,

    थको वा रूको मत।

     

    साथी को साथ रखो तो

    हर मुश्किल सहज हो जायेगी,

    हिम्मतवान बन

    बाप की मदद के पात्र बनो।

     

    एक बल एक भरोसा -

    इस पाठ को सदा पक्का रखो तो

    बीच भंवर से सहज निकल आयेंगे

    और मंजिल समीप अनुभव होगी।

     

     

     

    18.01.2021

    स्नेह के पीछे

    सर्व कमजोरियों को कुर्बान करने वाले

    समर्थी स्वरूप भव

     

    स्नेह की निशानी है कुर्बानी।

    स्नेह के पीछे कुर्बान करने में

    कोई मुश्किल वा असम्भव बात भी

    सम्भव और सहज अनुभव होती है।

     

    तो समर्थी स्वरूप के वरदान द्वारा

    सर्व कमजोरियों को

    मजबूरी से नहीं

    दिल से कुर्बान करो

    क्योंकि सत्य बाप के पास

    सत्य ही स्वीकार होता है।

     

    तो सिर्फ बाप के स्नेह के गीत

    नहीं गाओ लेकिन

    स्वयं बाप समान

    अव्यक्त स्थिति स्वरूप बनो

    जो सब आपके गीत गायें।

     

     

    17.01.2021

    संगमयुग पर

    एक का सौगुणा

    प्रत्यक्षफल प्राप्त करने वाले

    पदमापदम भाग्यशाली भव

     

    संगमयुग ही

    एक का सौगुणा

    प्रत्यक्षफल देने वाला है,

     

    सिर्फ एक बार संकल्प किया कि

    मैं बाप का हूँ,

    मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ तो

    मायाजीत बनने का,

    विजयी बनने के नशे का अनुभव होता है।

     

    श्रेष्ठ संकल्प करना -

    यही है बीज और

    उसका सबसे बड़ा फल है जो

    स्वयं परमात्मा बाप भी

    साकार मनुष्य रूप में मिलने आता,

    इस फल में सब फल आ जाते हैं।

     

     

    16.01.2021

    स्वमान की सीट पर

    स्थित रह माया को

    सरेण्डर कराने वाले

    श्रेष्ठ स्वमानधारी भव

     

    संगमयुग का सबसे श्रेष्ठ स्वमान है

    मास्टर सर्वशक्तिमान

    की स्मृति में रहना।

     

    जैसे कोई बड़ा आफीसर वा

    राजा जब स्वमान की सीट पर

    स्थित होता है तो

    दूसरे भी उसे सम्मान देते हैं,

     

    अगर स्वयं सीट पर नहीं तो

    उसका आर्डर कोई नहीं मानेंगे,

     

    ऐसे आप भी स्वमानधारी बन

    अपने श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर

    सेट रहो तो माया आपके आगे

    सरेण्डर हो जायेगी।

     

     

     

    15.01.2021

    साइलेन्स की शक्ति द्वारा

    सेकण्ड में

    हर समस्या का हल करने वाले

    एकान्तवासी भव

     

    जब कोई भी नई वा

    शक्तिशाली इन्वेन्शन करते हैं तो

    अन्डरग्राउण्ड करते हैं।

     

    यहाँ एकान्तवासी बनना ही

    अन्डरग्राउण्ड है।

     

    जो भी समय मिले,

    कारोबार करते भी,

    सुनते-सुनाते,

    डायरेक्शन देते भी

    इस देह की दुनिया

    और देह के भान से परे

    साइलेन्स में चले जाओ।

     

    यह अभ्यास वा अनुभव

    करने कराने की स्टेज

    हर समस्या का हल कर देगी,

    इससे एक सेकण्ड में

    किसी को भी

    शान्ति वा शक्ति की अनुभूति करा देंगे।

     

    जो भी सामने आयेगा

    वह इसी स्टेज में

    साक्षात्कार का अनुभव करेगा।

     


    14.01.2021

    समय पर

    हर गुण वा शक्ति को

    यूज़ करने वाले

    अनुभवी मूर्त भव

     

    ब्राह्मण जीवन की विशेषता है अनुभव।

     

    अगर एक भी गुण वा शक्ति की

    अनुभूति नहीं तो

    कभी न कभी विघ्न के वश हो जायेंगे।

     

    अभी अनुभूति का कोर्स शुरू करो।

     

    हर गुण वा शक्ति रूपी खजाने को

    यूज करो।

     

    जिस समय जिस गुण की

    आवश्यकता है उस समय

    उसका स्वरूप बन जाओ।

     

    नॉलेज की रीति से

    बुद्धि के लाकर में

    खजाने को रख नहीं दो,

    यूज़ करो तब

    विजयी बन सकेंगे

    और वाह रे मैं का गीत

     

    सदा गाते रहेंगे।

     


    13.01.2021

     

    स्नेह के रिटर्न में

    समानता का अनुभव करने वाले

    सर्वशक्ति सम्पन्न भव

    जो बच्चे बाप के स्नेह में

    सदा समाये हुए रहते हैं

    उन्हें स्नेह के रेसपॉन्स में

    बाप समान बनने का

    वरदान प्राप्त हो जाता है।

     

    जो सदा स्नेहयुक्त और योगयुक्त हैं

    वह सर्व शक्तियों से

    सम्पन्न स्वत: बन जाते हैं।

     

    सर्व शक्तियां सदा साथ हैं

    तो विजय हुई पड़ी है।

     

    जिन्हें स्मृति रहती कि

    सर्वशक्तिमान् बाप

    हमारा साथी है,

    वह कभी किसी भी बात से

    विचलित नहीं हो सकते।


     

    12.01.2021

  •  

    अपने अव्यक्त शान्त स्वरूप द्वारा वातावरण को अव्यक्त बनाने वाले साक्षात मूर्त भव

    जैसे सेवाओं के और प्रोग्राम बनाते हो

    ऐसे सवेरे से रात तक

    याद की यात्रा में कैसे और

    कब रहेंगे यह भी प्रोग्राम बनाओ

    और बीच-बीच में

    दो तीन मिनट के लिए

    संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप कर लो,

     

    जब कोई

    व्यक्त भाव में ज्यादा दिखाई दे तो

    उनको बिना कहे

    अपना अव्यक्ति शान्त रूप

    ऐसा धारण करो जो

    वह भी इशारे से समझ जाये,

     

    इससे वातावरण अव्यक्त रहेगा।

    अनोखापन दिखाई देगा और

    आप साक्षात्कार कराने वाले

    साक्षात मूर्त बन जायेंगे।

     


    11.01.2021


    इस लोक के लगाव से मुक्त बन

    अव्यक्त वतन का सैर

    करने वाले

    उड़ता पंछी भव


    बुद्धि रूपी विमान से

    अव्यक्त वतन व मूलवतन का सैर

    करने के लिए उड़ता पंछी बनो।


    बुद्धि द्वारा जब चाहो,

    जहाँ चाहो पहुंच जाओ।
    यह तब होगा जब

    बिल्कुल इस लोक के लगाव से

    परे रहेंगे।
    यह असार संसार है,

    इस असार संसार से जब

    कोई काम नहीं,

    कोई प्राप्ति नहीं तो

    बुद्धि द्वारा भी जाना बन्द करो।


    यह रौरव नर्क है

    इसमें जाने का संकल्प और

    स्वप्न भी न आये।



    10.01.2021


    रहमदिल की भावना द्वारा अपकारी पर भी उपकार करने

    वाले शुभचिंतक भव


    कैसी भी कोई आत्मा,

    चाहे सतोगुणी, चाहे तमोगुणी

    सम्पर्क में आये लेकिन सभी के प्रति शुभचिंतक अर्थात्

    अपकारी पर भी उपकार करने वाले।
    कभी किसी आत्मा के प्रति घृणा दृष्टि न हो क्योंकि

    जानते हो यह अज्ञान के वशीभूत है, बेसमझ है।
    उनके ऊपर रहम वा स्नेह आये, घृणा नहीं।
    शुभचिंतक आत्मा ऐसा नहीं सोचेगी कि इसने ऐसा क्यों

    किया लेकिन इस आत्मा का कल्याण कैसे हो - यही है

    शुभचिंतक स्टेज।


    09.01.2021


    सर्व खाते और रिश्ते

    एक बाप से रखने वाले

    डबल लाइट फरिश्ता भव


    डबल लाइट फरिश्ता बनने के लिए

    देह के भान से भी परे रहो

    क्योंकि देह भान मिट्टी है,

    यदि इसका भी बोझ है तो

    भारीपन है।


    फरिश्ता अर्थात्

    अपनी देह के साथ भी रिश्ता नहीं।


    बाप का दिया हुआ तन भी

    बाप को दे दिया।
    अपनी वस्तु दूसरे को दे दी तो

    अपना रिश्ता खत्म हुआ।


    सब हिसाब-किताब,

    सब लेन-देन बाप से

    बाकी सब पिछले

    खाते और रिश्ते खत्म -

    ऐसे सम्पूर्ण बेगर ही

    डबल लाइट फरिश्ते हैं।



    08.01.2021

     

    रूहानी एक्सरसाइज और

    सेल्फ कन्ट्रोल द्वारा

    महीनता का अनुभव करने वाले

    फरिश्ता भव


    बुद्धि की महीनता व

    हल्कापन ब्राह्मण जीवन की

    पर्सनेलिटी है।


    महीनता ही महानता है।


    लेकिन इसके लिए

    रोज़ अमृतवेले अशरीरीपन की

    रूहानी एक्सरसाइज करो

    और व्यर्थ संकल्पों के

    भोजन की परहेज रखो।


    परहेज के लिए सेल्फ कन्ट्रोल हो।
    जिस समय जो संकल्प रूपी भोजन

    स्वीकार करना हो

    उस समय वही करो।


    व्यर्थ संकल्प का

    एकस्ट्रा भोजन नहीं करो

    तब महीन बुद्धि बन

    फरिश्ता स्वरूप के

    लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।

     


    07.01.2021


    विश्व परिवर्तन के

    श्रेष्ठ कार्य की जिम्मेवारी निभाते हुए

    डबल लाइट रहने वाले

    आधारमूर्त भव


    जो आधारमूर्त होते हैं

    उनके ऊपर ही

    सारी जिम्मेवारी रहती है।


    अभी आप जिस रूप से,

    जहाँ भी कदम उठायेंगे वैसे

    अनेक आत्मायें

    आपको फालो करेंगी,

    यह जिम्मेवारी है।


    लेकिन यह जिम्मेवारी

    अवस्था को बनाने में

    बहुत मदद करती है क्योंकि

    इससे अनेक आत्माओं की

    आशीर्वाद मिलती है,

     

    जिस कारण जिम्मेवारी

    हल्की हो जाती है,

    यह जिम्मेवारी

    थकावट मिटाने वाली है।

     


    06.01.2021


    सतसंग द्वारा

    रूहानी रंग लगाने वाले

    सदा हर्षित और

    डबल लाइट भव


    जो बच्चे बाप को

    दिल का सच्चा साथी बना लेते हैं

    उन्हें संग का रूहानी रंग

    सदा लगा रहता है।


    बुद्धि द्वारा सत् बाप,

    सत शिक्षक और

    सतगुरू का संग करना -

    यही सतसंग है।


    जो इस सतसंग में रहते हैं

    वो सदा हर्षित और

    डबल लाइट रहते हैं।


    उन्हें किसी भी प्रकार का

    बोझ अनुभव नहीं होता।


    वे ऐसा अनुभव करते जैसे

    भरपूर हैं,

    खुशियों की खान मेरे साथ है,

    जो भी बाप का है

    वह सब अपना हो गया।

     


    05.01.2021


    कमजोरियों को

    फुलस्टाप देकर

    अपने सम्पन्न स्वरूप को

    प्रख्यात करने वाले

    साक्षात्कारमूर्त भव


    विश्व आपके कल्प पहले वाले

    सम्पन्न स्वरूप,

    पूज्य स्वरूप का सिमरण

    कर रही है

    इसलिए

    अब अपने सम्पन्न स्वरूप को

    प्रैक्टिकल में प्रख्यात करो।

     

    बीती हुई कमजोरियों को

    फुलस्टाप लगाओ,

    दृढ़ संकल्प द्वारा

    पुराने

    संस्कार-स्वभाव को

    समाप्त करो,

     

    दूसरों की कमजोरी की

    नकल मत करो,

    अवगुण धारण करने वाली

    बुद्धि का नाश करो,

    दिव्य गुण धारण करने वाली

    सतोप्रधान बुद्धि धारण करो

    तब साक्षात्कार मूर्त बनेंगे।

     


    04.01.2021


    अपने स्वरूप द्वारा

    भक्तों को

    लाइट के क्राउन का

    साक्षात्कार कराने वाले

    इष्ट देव भव


    जबसे आप बाप के बच्चे बने,

    पवित्रता की प्रतिज्ञा की तो

    रिटर्न में लाइट का ताज

    प्राप्त हो गया।


    इस लाइट के ताज के आगे

    रत्न जड़ित ताज

    कुछ भी नहीं है।


    जितना-जितना संकल्प,

    बोल और कर्म में प्योरिटी को

    धारण करते जायेंगे

     

    उतना यह लाइट का क्राउन

    स्पष्ट होता जायेगा

    और इष्ट देव के रूप में

    भक्तों के आगे

    प्रत्यक्ष होते जायेंगे।

     


    03.01.2021


    बुद्धि रूपी पांव द्वारा

    इस पांच तत्वों की

    आकर्षण से परे रहने वाले

    फरिश्ता स्वरूप भव


    फरिश्तों को सदा

    प्रकाश की काया दिखाते हैं।
    प्रकाश की काया वाले

    इस देह की स्मृति से भी

    परे रहते हैं।


    उनके बुद्धि रूपी पांव

    इस पांच तत्व की

    आकर्षण से ऊंचे

    अर्थात् परे होते हैं।


    ऐसे फरिश्तों को

    माया व कोई भी मायावी

    टच नहीं कर सकते।


    लेकिन यह तब होगा

    जब कभी किसी के अधीन

    नहीं होंगे।


    शरीर के भी अधिकारी बनकर चलना,

    माया के भी अधिकारी बनना,

    लौकिक वा अलौकिक

    संबंध की भी

    अधीनता में नहीं आना।

     


    02.01.2021


    कनेक्शन और रिलेशन द्वारा

    मन्सा शक्ति के

    प्रत्यक्ष प्रमाण देखने वाले

    सूक्ष्म सेवाधारी भव


    जैसे वाणी की शक्ति

    वा कर्म की शक्ति का

    प्रत्यक्ष

    प्रमाण दिखाई देता है

    वैसे सबसे पावरफुल

    साइलेन्स शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण

    देखने के लिए

    बापदादा के साथ

    निरन्तर क्लीयर कनेक्शन

    और रिलेशन हो,

    इसे ही योगबल कहा जाता है।


    ऐसी योगबल वाली आत्मायें

    स्थूल में दूर रहने वाली

    आत्मा को

    सम्मुख का अनुभव करा सकती हैं।


    आत्माओं का आह्वान कर

    उन्हें परिवर्तन कर सकती हैं।


    यही सूक्ष्म सेवा है,

    इसके लिए

    एकाग्रता की

    शक्ति को बढ़ाओ।

     


    01.01.2021


    अपने एकाग्र स्वरूप द्वारा

    सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का

    अनुभव करने वाले

    अन्तर्मुखी भव


    एकाग्रता का आधार

    अन्तर्मुखता है।


    जो अन्तर्मुखी हैं

    वे अन्दर ही अन्दर

    सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का

    अनुभव करते हैं।


    आत्माओं का आह्वान करना,

    आत्माओं से रूहरिहान करना,

    आत्माओं के संस्कार

    स्वभाव को परिवर्तन करना,
    बाप से कनेक्शन जुड़वाना

     

    ऐसे रूहों की दुनिया में

    रूहानी सेवा करने के लिए

    एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ,


    इससे सर्व प्रकार के

    विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे।