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आ जा तुझको पुकारें मेरे गीत रे... |
बाबा मेरा मीत बना... |
विशेष 4 बातों का अटेन्शन रखो – 1. कभी भी अपने आपको भुलाना होता है तो दुनिया में भी एक सच्ची प्रीत में खो जाते हैं। तो सच्ची प्रीत ही भूलने का सहज साधन है। प्रीत दुनिया को भुलाने का साधन है, देह को भुलाने का साधन है।
2. दूसरी बात सच्चा मीत भी दुनिया को भुलाने का साधन है। अगर दो मीत आपस में मिल जाएँ तो उन्हें न स्वयं की, न समय की स्मृति रहती है।
3. तीसरी बात दिल के गीत अगर दिल से कोई गीत गाते हैं तो उस समय के लिए वह स्वयं और समय को भूला हुआ होता है।
4. चौथी बात - यथार्थ रीत। अगर यथार्थ रीत है तो अशरीरी बनना बहुत सहज है। रीत नहीं आती तब मुश्किल होता है।
तो एक हुआ 1 - प्रीत 2- मीत 3- गीत 4- रीत। ...
"... ऐसे सबसे सच्चा मीत जो श्मशान के आगे भी साथ जाए। शरीरधारी मीत तो श्मशान तक ही जायेंगे तो वे दु:ख हर्ता सुख कर्ता नहीं बन सकेंगे।
थोड़ा बहुत दु:ख के समय सहयोगी बन सकते हैं। सहयोग दे सकते हैं लेकिन दु:ख हर नहीं सकते। तो सच्चा मीत मिल गया है ना? सदा इसी अविनाशी मीत के साथ रहो तो मोहब्बत में मेहनत खत्म हो जायेगी।
जब मोहब्बत करना आता है तो मेहनत क्यों करते हो? बाप-दादा को कभी-कभी हँसी आती है।
जैसे किसी को बोझ उठाने का अभ्यास होता है उसको आराम से बिठाओ तो वह बैठ नहीं सकता। बार-बार बोझ की तरफ भागता है और फिर साँस भी फूलता है, तो पुकारते हैं - `छुड़ाओ'! तो सदा प्रीत और मीत में रहो तो मेहनत समाप्त हो जायेगी। मीत से किनारा नहीं करो। सदा के साथी बन करके चलो। ..."
31.12.1982 "...एक दो को बधाई देते हो। बापदादा भी सर्व मन के मीत अलौकिक रूहानी फ्रेंड्स को बधाई देते हैं।..."
"...सच्ची दीपमाला मनाने की तैयारी करनी है। पुरानी बातें, पुराने संस्कार का दशहरा मनाओ। क्योंकि दशहरे के बाद ही दीपमाला होगी। तो आज मन के मीत आत्माओं से मन की बात कर रहे हैं। मन की बात किससे करते हैं?
फ्रेंड्स से करते हो ना। अच्छा बधाई तो मिली। बधाई के साथ-साथ नये साल की सौगात भी सदा साथ रखना।
कितनी सौगात चाहिए? एक एक में बहुत समाई हुई भी है ओर बहुत भी एक है। सबसे बढ़िया सौगात जो खजाना चाहो वह हाजिर हो जायेगा। "डायमण्ड की'' क्या है? एक तो बापदादा ने सब बच्चों को डायमण्ड की चाबी दी है जिससे एक ही बोल "बाबा''।
इससे बढ़िया चाबी कोई मिलेगी-क्या? सतयुग में भी ऐसी चाबी नहीं मिलेगी।
सब के पास यह "डायमण्ड की'' सम्भाली हुई है ना! चोरी तो नहीं हो गई है ना! चाबी को खोया तो सब खजाने खोये। इसलिए चाबी सदा साथ रखना। "की-चेन" है? वा अकेली चाबी है? "की'' की चेन है - सदा सर्व सम्बन्धों से स्मृति स्वरूप होते रहो। तो ‘की-चेन' की गिफ्ट मिली ना। सबसे बढ़िया गिफ्ट तो है यह "चाबी"। ..."
01.01.1986 सर्व स्नेही-सहयोगी और शक्तिशाली बच्चों के अमृतवेले से मीठे-मीठे, मन के श्रेष्ठ संकल्प, स्नेह के वायदे, परिवर्तन के वायदे, बाप समान बनने के उमंग उत्साह के दृढ़ संकल्प अर्थात् अनेक रूहानी साजों भरे मन के गीत, मन के मीत के पास पहुँचे।
मन के मीत, सभी के मीठे गीत सुन श्रेष्ठ संकल्प से अति हर्षित हो रहे थे। मन के मीत, अपने सर्व रूहानी मीत को, गाडली फ्रेंड्स को सभी के गीतों का रेसपाण्ड दे रहे हैं। सदा हर संकल्प में हर सेकेण्ड में, हर बोल में होली, हैप्पी, हेल्दी रहने की बधाई हो। सदा सहयोग का हाथ मन के मीत के कार्य में सहयोग के संकल्प के हाथ में हाथ हो।..."
07.11.1989 रूहानी स्नेह की सर्चलाइट द्वारा चारों ओर के ब्राह्मण बच्चों की स्नेहमयी सूरतें देख रहे हैं। चारों ओर के अनेक बच्चों के दिल के स्नेह के गीत, दिल का मीत बापदादा सुन रहे हैं।
बापदादा सर्व स्नेही बच्चों को चाहे पास हैं, चाहे दूर होते भी दिल के पास हैं, स्नेह के रिटर्न में वरदान दे रहे हैं – ‘‘सदा खुशनसीब भव! सदा खुशनुमा भव। सदा खुशी की खुराक द्वारा तन्दरूस्त भव! सदा खुशी के खज़ाने से सम्पन्न भव! ..."
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