"...द्वापर से लेकर आज तक अपनी और अपने दैवी परिवार की आत्माओं की महिमा करते आये हो, कीर्तन करते आये हो। अब फिर चैतन्य परिचित हुई आत्माओं के अवगुणों को वा कमियों को क्यों देखते हो वा बुद्धि में धारण क्यों करते हो? अभी भी सारे विश्व से चुनी हुई श्रेष्ठ आत्माओं के गुण-गान करो। बुद्धि द्वारा ग्रहण करो और मुख द्वारा एक-दो के गुणगान करो।..."
----------- Avyakt BaapDada -25.08.1971 ----------- |