1.01

बाप की श्रीमत है तुम्हें नर्क और नर्कवासियों से बुद्धियोग हटाकर स्वर्ग को याद करना है। गृहस्थ व्यवहार में रहते नर्क को बुद्धि से त्याग दो। नर्क है पुरानी दुनिया। तुम्हें बुद्धि से पुरानी दुनिया को भूलना है।

 

1.02

जो रचता और रचना का ज्ञान भी नहीं समझा सकते हैं। तो सतोप्रधान बुद्धि थोड़ेही कहेंगे।

 

1.03

सतोप्रधान बुद्धि, फिर रजो बुद्धि, तमो बुद्धि भी हैं। जैसा-जैसा जो समझते हैं, वैसा टाइटिल मिलता है। यह सतोप्रधान बुद्धि, यह रजो बुद्धि हैं। परन्तु कहते नहीं हैं। कहाँ फंक न हो जाएं। नम्बरवार तो होते हैं।

 

1.04

सारा मदार बुद्धि पर है। इस समय कोई भी मनुष्यमात्र रचता और रचना की नॉलेज को नहीं जानते हैं। बुद्धि पर एकदम गॉडरेज का ताला लगा हुआ है।

 

1.05

बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते नर्क का बुद्धि से त्याग करो। नर्क को भूल स्वर्ग को बुद्धि से याद करना है। नर्क और नर्कवासियों से बुद्धियोग हटाए स्वर्गवासी देवताओं से बुद्धि योग लगाना है।

 

1.06

जो पढ़ते हैं, उनकी बुद्धि में तो रहता है ना कि हम पास करेंगे फिर यह बनेंगे।

 

1.07

सतगुरू बाप की याद से बुद्धि को सतोप्रधान बनाना है।

 

1.08

बेहद का संन्यासी बनकर, सबसे बुद्धियोग हटा देना है।