1969/17.04.1969
"आबू 'आध्यात्मिक संग्रहालय' का उद्घाटन"
1.
"...बड़े-बड़े महारथी शेर से नहीं डरते, मगर चींटी से डर जाते हैं।
शेर से बड़ा सहज मुकाबला कर लेते, लेकिन चींटी को कुचलने का तरीका नहीं जानते। "
1969/28.09.1969
“पूरे कोर्स का सार – कथनी-करनी एक करो”
2.
"...सबसे खौफनाक मनुष्य कौनसा होता है जिनसे सब डर जाते हैं?
दुनिया की बात तो दुनिया में रही।
लेकिन इस दैवी परिवार के अन्दर सबसे खौफनाक, नुकसान कारक वो है जो अन्दर एक और बाहर से दूसरा रूप रखता है।
वो पर-निन्दक से भी जास्ती खौफनाक है।
क्योंकि वो कोई के नजदीक नहीं आ सकता।
स्नेही नहीं बन सकता।
उनसे सब दूर रहने की कोशिश करेंगे।"
1970/24.01.1970
ब्राह्मणों का मुख्य धंधा – समर्पण करना और कराना
3.
"...शक्तियों की शेर पर सवारी दिखाते हैं।
किस भी प्रकार माया शेर रूप में आये डरना नहीं है।
शिवशक्ति कभी हार नहीं खा सकती। "
1971/05.03.1971
भट्ठी की अलौकिक छाप
4.
"...थ्योरी में तो पास हो, अब प्रैक्टिकल पेपर में पास होना है।
हिम्मते शक्तियां मदद दे सर्वशक्तिमान।
यह तो सदैव याद है ना।
अब सिर्फ रिटर्न करना है।
इतनी जो मेहनत ली है उसका रिटर्न।
यह सभी शेरनियां हैं!
शेरनियां कभी किससे डरती नहीं हैं, निर्भय होती हैं।
यह भी भय नहीं कि ना मालूम क्या है।
इससे भी निर्भय होना है।
ऐसी शेरनियां बनी हो? "
1971/27.07.1971
बुद्धि रूपी नेत्र क्लीयर और पावरफुल बनाओ
5.
"... कोई चीज़ ऐसी होती है जिससे डर लगता है, तो उसको किनारे रखने की बजाय भस्म किया जाता है।
झूठी चौपड़ी बनाने वाले गवर्नमेन्ट से डरते हैं,
इसलिए वह कागज़ जला कर भस्म कर देते हैं जो किसको निशानी भी न मिले।
इस रीति पुरानी स्मृति का चौपड़ा वा रजिस्टर बिल्कुल जलाकर खत्म करके जाना।
एक होता है किनारे करना, दूसरा होता है बिल्कुल जला देना।
रावण को सिर्फ मारते नहीं लेकिन साथ-साथ जलाते भी हैं।
तो इनको भी सिर्फ अगर किनारे रखा तो वह भी निशानी रह जायेगी।
पुराने रजिस्टर की छोटी-सी टुकड़ी से भी पकड़े जायेंगे।
माया बड़ी तेज़ है।
उनकी कैचिंग पावर कोई कम नहीं है।
जैसे गवर्नमेन्ट आफिसर्स को ज़रा भी कुछ प्राप्त होता है तो उसी पर वह पकड़ लेते हैं।
ज़रा निशानी भी किनारे कर दी तो माया किस-न-किस रीति से पकड़ लेगी।
इसलिए जलाकर ही जाना।
सुनाया था ना कि कुमारों में जेब-खर्च का संस्कार होता है, वैसे प्रवृत्ति मार्ग वालों में भी विशेष संस्कार होता है कुछ- न-कुछ आईवेल के लिए किनारे रखना।
चाहे कितना भी लखपति क्यों न हो, कितना भी स्नेही क्यों न हो, लेकिन फिर भी यह संस्कार होते हैं।
अब यह संस्कार यहाँ भी पुरूषार्थ में विघ्न रूप होते हैं। "
1972/27.02.1972
"होलीहंस बनने का यादगार – होली"
7.
"...अलौकिक युग में अलौकिक बाप द्वारा यह अलौकिक खेल है, ऐसे समझकर खेलो तो फिर डरेंगे, घबरायेंगे नहीं, परेशान नहीं होंगे, हार नहीं खायेंगे।
सदा इसी शान में रहो। "
1973/16.05.1973
अन्तिम पुरूषार्थ
8.
"...क्या माया को कागज़ का शेर नहीं बनाया है?
क्या वह बेजान नहीं है?
जो स्वयं डेकोरेशन को लगाते हैं वे तो डरेंगे नहीं, लेकिन दूसरे डर सकते हैं।
अभी उसमें जान है क्या?
कभी-कभी जानवाली बन जाती है क्या?
अभी उनको मूर्छित नहीं किया है?
मूर्छित हो गई है कि अभी वह जिन्दा है।
मूर्छित किया है?
आप के लिये मर चुकी है?
किस स्टेज तक है?
मर चुकी है, जल गई है या मूर्छित है?
तीन स्टेजिस हैं।
कोई के लिए मूर्छित रूप में है
, कोई के लिए मर चुकी है
और कोई के लिए जल भी गई है अर्थात् नाम निशान नहीं रहा है।
तो हर एक अपने को देखे कि किस स्टेज तक पहुँचे हैं?
मूर्छित करने के बजाय स्वयं तो मूर्छित नहीं हो जाते हैं?
सदा संजीवनी बूटी साथ है तो कभी भी मूर्छित नहीं हो सकते।
मूर्छित करने वाले कभी मूर्छित नहीं होते।"
1975/19.10.1975
“माया को ललकारने वाला लश्कर ही अपना झण्डा बुलन्द कर सकेगा”
9.
"...जुआ में हार तो उन्हों की है ही - कल्प पहले ही यादगार में भी जुआ दिखाया है लेकिन यथार्थ रूप नहीं दिखाया है।
कौरव अपनी जुआ में लगे हुए हैं
और धर्म सत्ता वाले अपनी जुआ में लगे हुए हैं
, जुआ में हो उन्हों की हार होनी है
और पाण्डवों का झण्डा बुलन्द होना है
ऐसी ललकार करने वाले निर्भय, माया के तूफानों से भी नहीं डरने वाले, निरन्तर विजय का चैलेन्ज करने वाली इस सेना की इन्चार्ज बने तब और भी फॉलो करेंगे।"
1975/24.10.1975
“शक्तियों का विशेष गुण - निर्भयता”
10.
"...जो माया से घबराने वाली नहीं, उसको शक्ति कहा जाता है।
माया से डरती तो नहीं हो?
जो डरता है वह हार खाता है।
जो निर्भय होता है उससे माया खुद भयभीत होती है, क्योंकि भय के कारण शक्ति खो जाती है और समझ भी खो जाती है।
वैसे भी जब किसी से भय होता है तो होश-हवास गुम हो जाते हैं, जो समझ होती है वह भी गुम हो जाती है।
तो यहाँ भी जो माया से घबराते हैं उनकी माया से समझ खो जाती, इसलिए वे माया को जीत नहीं सकते।
तो जैसा नाम है - शक्ति सेना।
तो जब शक्तिपन की विशेषता - निर्भयता प्रैक्टिकल में दिखाई दे, तब कहेंगे शक्तियाँ।
...खुद ही आह्वान करते और खुद ही डरते, तो फिर आह्वान करते ही क्यों हो?
यह नशा रखो कि - ‘‘हम हैं ही ‘शिव-शक्ति सेना’।
...जो अनेक बार का विजयी है वह कितना निर्भय होगा?
क्या वह डरेंगे?
शक्तियों ने बाप को प्रत्यक्ष करने का नगाड़ा कौन-सा बजाया है?
कुम्भकरण को जगाने के लिये बड़ा नगाड़ा बजाओ।"
1975/28.10.1975
“सौ ब्राह्मणों से उत्तम कन्या बनने के लिये धारणायें”
11.
"...कुमारी निर्बन्धन तो हैं लेकिन डर रहता है कि कहीं कुमारी होते माया के वश नहीं हो जायें।
अगर इस कारण को कुमारी मिटा देवें तो देखने की ट्रॉयल करने की ज़रूरत नहीं।
दूसरे - परिवर्तन करने की शक्ति चाहिए।
कोई भी आत्मा हो, कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन स्वयं को परिवर्तन करने की शक्ति हो, तब ही सफल टीचर और सेवाधारी बन सकेंगी।"
1976/07.02.1976
“अव्यक्त फरिश्तों की सभा”
12.
"... होशियार स्टूडेण्ट पेपर का आह्वान करते हैं और कमजोर डरते हैं।
तो आप कौन हो?
निश्चयबुद्धि की निशानी यह है कि वह हर बात व हर दृश्य को निश्चित जानकर सदा निश्चिन्त होगा,
‘‘क्यों, क्या और कैसे’’ की चिन्ता नहीं होगी। "
1977/18.01.1977
“18 जनवरी का विशेष महत्व”
13.
"...फलक से कहो कि कल्याणकारी बाबा के इस बोल में भी कल्याण समया हुआ है।
उसको हम जानते हैं, आप भी आगे चलकर जानेंगे।
डरो मत। ‘क्या कहेंगे, कैसे कहेंगे’
ऐसे सोचकर किनारा न करो।
जिन लोगों को कहा है, उनसे डर के मारे किनारा न करो।
क्या करेंगे? अगर उल्टा प्रोपगण्डा (Propaganda) करेंगे तो वो उल्टा बोल अनेकों को सुल्टा बना देगा।
प्रत्यक्षता का साधन बन जायेगा। "
14.
"...आप निश्चय बुद्धि से संकल्प रूप में भी संशय-बुद्धि न बनो।
रॉयल रूप का संशय है कि ‘ऐसा होना तो चाहिए था’, पता नहीं बाबा ने क्यों ऐसा कहा था।
पहले से ही बाप-दादा बता देते थे।
अब सामने कैसे जायेंगे?
यह रॉयल रूप का संशय, दुनिया वालों को भी संशय-बुद्धि बनाने के निमित्त बनेगा।
‘‘हाँ! कहा है, अभी भी कहेंगे’’
इसी निश्चय और नशे में रहो तो वो नमस्कार करने आयेंगे कि धन्य है आपका निश्चय।
समझा? घबराओ नहीं, क्या जेल में जाने से डरते हो?
डरते नहीं, घबराते हैं।
सामना करने की शक्ति नहीं है।
यही कहो कि जो कुछ कहा था उसमें कल्याण था।
अब भी है। हम अभी भी कहते हैं।
उनको अगर ईश्वरीय नशे और रमणीकता से सुनाओ तो वो और ही हंसेंगे।
लेकिन पहले स्वयं मजबूत हो।
समझा?"
1977/14.04.1977
“श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर”
15.
"...घबराते बहुत हो और घबराते किससे हो?
माया के बुदबुदों से।
जो अभी-अभी हैं, अभी-अभी नहीं होंगे।
छोटे बच्चे भी बुदबुदों से नहीं डरते हैं।
खेलते हैं न कि डरते हैं।
मास्टर सर्वशक्तिवान बुदबुदों से खेलने वाले हैं न कि डरने वाले। "
1977/30.04.1977
“हाईएस्ट अथॉरिटी की स्थिति का आधार - कम्बाइन्ड रूप की स्मृति है”
16.
"...माया, बाप से अलग कराने लिए भिन्न-भिन्न रूप से आती हैं।
मैं नहीं कर सकता? मैं कमजोर हूँ - कैसे करूँ?
यह कमजोरी के संकल्प माया रावण की सेना के अकासुर-बकासुर हैं।
उनसे डरना नहीं हैं सदैव सोचो
‘मैं हँ ही विजयी-पहले भी रहा हूँ और अब भी हूँ।’"
1977/03.05.1977
“कर्मों की अति गुह्य गति”
17.
"...योद्धा अर्थात् मरना और मारना।
तो आप भी रूहानी योद्धे हो।
रूहानी सेना में हो।
तो रूहानी योद्धे भी डरते नहीं, पीछे नहीं हटते, लेकिन आगे बढ़ते सदा विजयी बनते हैं।
तो विजयी बनने वाले हो या घबराने वाले हो?
कभी-कभी बहुत युद्ध करके थक जाते हो या रोज-रोज युद्ध करके अलबेले हो जाते हो।
वैसे भी रोज-रोज एक ही कार्य करना होता है तो कई बार ऐसे भी होता है - सोचते हैं यह तो चलता ही रहेगा, कहां तय करें, यह तो सारी जिन्दगी की बात है।
एक वर्ष की तो नहीं।
लेकिन सारी जिन्दगी को अगर 5000 वर्ष की प्रालब्ध के हिसाब से देखो तो सेकेण्ड की बात है वा सारी जिन्दगी है?
बेहद के हिसाब से देखो तो सेकेण्ड की बात है।
विशाल बुद्धि बेहद के हिसाब से देखेंगे।
वह कब थकेंगे नहीं।"
1977/11.05.1977
“सम्पन्न स्वरूप की निशानी - शुभ चिन्तन और शुभ चिन्तक”
18.
"...जैसे पहरे वाला चौकीदार अगर शस्त्रधारी होता है और उसको निश्चय है कि - मेरा शस्त्र दुश्मन को भगाने वाला है, हार खिलाने वाला है तो वह कितना निर्भय हो करके चलता रहता है।
तो यहाँ भी माया कितना भी सामना करे लेकिन शस्त्रधारी हैं तो माया से कभी घबड़ायेंगे नहीं, डरेंगे नहीं, हार नहीं खायेंगे, अर्थात् सदा विजयी होंगे।
तो सर्व शस्त्र सदा कायम रहते हैं?
एक भी कम हुआ तो हार हो सकती है।
शस्त्र है शक्तियाँ, तो सर्व शक्तियाँ रूपी शस्त्र सदा कायम रहते हैं?
संभालने आते हैं?
पाण्डवों की बहादुरी को बहुत लम्बे चौड़े रूप में दिखा दिया है - शक्तियों की बहादुरी शस्त्र दिखाये हैं।
पाण्डव सदा प्रभु के साथी थे और साथ के कारण विजयी हुए।"
1977/10.06.1977
“मंत्र और यंत्र के निरन्तर प्रयोग से अन्तर समाप्त”
19.
"...भक्ति मार्ग में भी मंत्र को कभी नहीं भूलते।
मंत्र भूलना अर्थात् गुरू से किनारे होना, यह डर रहता है।
लेकिन बच्चे बनने के बाद क्या कर लिया?
भक्तों माफक डर तो निकल गया और ही पुरूषार्थ में अधिकारी समझने का एडवांटेज ले बाप के दिए हुए मंत्र को वा ‘श्रीमत’ को पूर्ण रीति से प्रैक्टिकल में नहीं लाते।
एक तो मंत्र को भूल जाते,
दूसरा मायाजीत बनने के जो अनेक प्रकार के मंत्र देते हैं उन मंत्रों को समय पर कार्य में नहीं लाते।
अगर ये दोनों बातें - ‘मंत्र और यंत्र’ प्रेक्टिकल जीवन के लिए यंत्र और बुद्धियोग लगाने के लिए वा बुद्धि को एकाग्र करने के लिए मंत्र को स्मृति में रखो तो ‘अन्तर’समाप्त हो जाएगा।
रोज सुनते और सुनाते हो - मन्मनाभव
लेकिन स्मृति स्वरूप कहाँ तक बने हो?
पहला पाठ महामंत्र है।
इसी मंत्र की प्रैक्टिकल धारणा से पहला नम्बर आ सकते हो।"
1978/07.01.1978
“विदेशी बाप की विदेशी बच्चों से मुलाकात”
20.
"...जैसे यहाँ भी भयानक चेहरे लगाकर डराते हैं लेकिन अन्दर तो मनुष्य ही होते हैं।
बाहर का कवर उतार दो तो कोई डर नहीं।
लेकिन अगर बाहर के रूप को देख घबरायेंगे तो फेल हो जायेंगे।
माया से हार ज्यादा होती है या विजय ज्यादा होती है?
...निश्चय की विजय तो हो ही जाती है।
कभी भी लक्ष्य कमज़ोर नहीं रखना।
सदा श्रेष्ठ लक्ष्य रखना कि हम ही कल्प पहले वाले विजयी थे और सदा रहेंगे।
तो सदा अपने को विजयी रतन ही अनुभव करेंगे।"
1978/01.12.1978
“सर्व खज़ानों की चाबी - एकनामी बनना”
21.
"...आर्डर नहीं करते हो लेकिन क्या करते हो - जानते हो।
आर्डर के बजाए डरते हो
कैसे सहन होगा कैसे सामना कर सकेंगे।
कर सकेंगे वा नहीं कर सकेंगे।
इस प्रकार का डर आर्डर नहीं कर सकता है।
अब क्या करेंगे - डरेंगे वा आर्डर करेंगे।
महाकाल के बच्चे भी डरें तो और कौन निर्भय होंगे।
हर बात में निर्भय बनो।
अलबेले और आलस्यपन में निर्भय नहीं बनना मायाजीत बनने में निर्भय बनो।"
1978/19.12.1978
“रीयल्टी ही सबसे बड़ी रॉयल्टी है”
22.
"...शेर की विशेषता है अकेले होते हुए भी अपने को बादशाह समझते हैं अर्थात् निर्भय होते हैं।
तो पंजाब के निवासी ऐसे निर्भय हैं ना।
किसी भी प्रकार के माया के रूप से डरने वाले नहीं।
ऐसा है ना पंजाब!
पंजाब की धरनी का विशेष मह्त्व क्या है
जानते हो?
पंजाब ने स्थापना के आदि में अपना विशेष शक्ति रूप का दृश्य अच्छा दिखलाया।
अनेक प्रकार की हलचल में भी अचल रहे हैं।
क्योंकि पंजाब की धरनी विशेष धर्म की धरनी है, ऐसे धर्म की धरनी में आदि सनातन धर्म की स्थापना करना इसमें सामना करके विजयी बने हैं।
पंजाब की धरनी की विशेषता चरित्र में है कि चारों ओर हंगामे की आग के बीच थोड़े से बच्चे विजयी बनकर पंजाब में भी विजय का झण्डा लहराया।
हिंसक धरनी के ऊपर अहिंसक की विजय हुई। "
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