04.09.2005
“शिक्षा के साथ क्षमा और रहम को अपना लो। दुआयें दो, दुआयें लो तो आपका घर आश्रम बन जायेगा” सेवा करने से, जिसकी सेवा करते हो उसकी दुआयें मिलती है, खुशी प्राप्त होती हैं। बापदादा बच्चों को बहुत एक सहज पुरुषार्थ की विधि सुनाते हैं - सहज चाहते हो ना।
मुश्किल तो नहीं चाहते हो ना। इन बच्चों को तो भाग्य की सहज विधि मिल गई है। मिली है ना?
सबसे सहज, और कुछ भी नही करना, सिर्फ एक बात करना। एक बात तो कर सकते हो ना ! हाँ करो या ना करो। कहो हाँ जो।
तो सबसे सहज विधि है - अमृतवेले से ले के सबको जो भी मिले, उससे दुआयें लो और दुआयें दो।
चाहे क्रोधी भी आवे, लेकिन आप उसको भी दुआयें दो और दुआयें लो क्योंकि दुआयें तीव्र पुरुषार्थ का बहुत सहज यन्त्र है।
जैसे साइन्स में रॉकेट है ना, तो कितना जल्दी कार्य कर लेता है। ऐसे दुआयें देना और दुआयें लेना, यह भी एक बहुत सहज साधन है आगे बढ़ने का।
अमृतवेले बाप से सहज याद से दुआयें लो और सारा दिन दुआयें दो और दुआयें लो। यह कर सकते हो? कर सकते हो तो हाथ उठाओ।
कोई बददुआ दे तो क्या करेंगे? आपको बार-बार तंग करे तो? देखो, आप परमात्मा के बच्चे दाता के बच्चे दाता हो ना ?
मास्टर दाता तो हो। तो दाता का काम क्या होता है? देना। तो सबसे अच्छी चीज़ है दुआयें देना।
कैसा भी व्यक्ति हो, लेकिन है तो आपका भाई-बहन। परमात्मा के बच्चे तो भाई-बहन हो ना।
तो परमात्मा का बच्चा है, मेरा ईश्वरीय भाई है, ईश्वरीय बहन है, उसको क्या देंगे? बददुआ देंगे क्या? बाप कभी बद्दुआ देता है? देगा? देता है? हाँ या ना? हाँ-ना करो। बहुत खुश रहेंगे। क्यों?
अगर बद्दुआ वाले को भी आप दुआ देंगे, वह दे न दे, लेकिन आप दुआ लेंगे, तो दु:ख क्यों होगा।
बापदादा आप आये हुए बच्चों को एक वरदान देता है- वरदान याद रखेंगे तो सदा खुश रहेंगे। वरदान सुनेंगे? सुनेंगे।
वरदान है- अगर आपको कोई दुख दे तो भी आप दुख लेना नहीं। वह दे लेकिन आप नही लेना। क्योंकि देनेवाले ने दे दिया, लेकिन लेनेवाले तो आप हो ना। देनेवाला, लेनेवाला नहीं है।
अगर वह बुरी चीज़ देता है, दुख देता है, अशान्ति देता है, तो बुरी चीज़ है ना।
आपको दुख पसन्द है? नहीं पसन्द है ना। तो बुरी चीज़ हो गई ना। तो बुरी चीज़ ली जाती है क्या? कोई आपको बुरी चीज़ देवे तो आप ले लेंगे? लेंगे? नही लेंगे। तो लेते क्यों हो? ले तो लेते हो ना।
अगर दुख ले लेते हो तो दुःखी कौन होता है? आप होते हो या वह होता है? लेने वाला ज्यादा दु:खी होता है।
अगर अभी से दु:ख लेंगे नहीं तो आधा दु:ख तो आपका दूर हो गया। लेंगे ही नहीं ना। और आप दु:ख के बजाए उसको सुख देंगे तो दुआयें मिलेगी ना।
तो सुखी भी रहेंगे और दुआओं का खज़ाना भी भरपूर होता जायेगा। हर आत्मा से, कैसी भी हो आप दुआयें लो।
परिवार में अगर कोई दु:ख देवे, तो भी दु:ख लेना नहीं। दुआयें देना, रहमदिल बनना।
अपने-अपने साथियों से, अपने-अपने कार्यकर्ताओं से न दुख लेना, न दु:ख देना। दुआयें देना और दुआयें लेना।
आपका घर आश्रम बन जाये। घर नहीं, आश्रम। वैसे भी आश्रम ही कहते हैं, गृहस्थ आश्रम, लेकिन आज आश्रम नहीं हैं। आश्रम अलग है, घर अलग है। तो घर को आश्रम बनाना।
दुआयें देना और लेना, यह आश्रम का कार्य है। आपका घर मन्दिर बन जायेगा। मन्दिर में मूर्ति क्या करती है? दुआयें देती है ना।
मूर्ति के आगे जाकर क्या कहते हैं? दुआ दो। मर्सी, मर्सी कहके चिल्लाते हैं। तो आपको भी क्या देना है? दुआ।
ईश्वरीय प्यार दो, आत्मिक प्यार। शरीर का प्यार नहीं, आत्मिक प्यार।
आज प्यार है तो स्वार्थ का प्यार है। सच्ची दिल का प्यार नहीं है। स्वार्थ होगा तो प्यार देंगे, स्वार्थ नहीं होगा तो डोंट-केयर। तो आप क्या करेंगे? आत्मिक प्यार देना, दुआ देना, दुख न लेना, न दु:ख देना।
कोशिश तो सब करते हैं कि घर-घर में हर आत्मा शान्त हो जाए, सुखी हो जाए। तो जब दुआ देंगे और लेंगे तो घर में सुख और शान्ति का वायब्रेशन होगा और वह आवाज वायुमण्डल में फैलेगा।
अभी रोज अमृतवेले उठकर बापदादा से मिलन मनायें शक्ति लें, दुआयें लें, अपने आपको तीन बिन्दुओं का तिलक लगाना।
बापदादा सभी बच्चों को चाहे भारत के, चाहे विदेश के रिटर्न में दुआयें और यादप्यार पदमगुणा दे रहें हैं।
सेवा में कितनो की दुआये मिलती है। दुआये देकर भी आते हो और दुआये लेकर भी आते हो।
यही सभी बच्चों के प्रति बापदादा के दिल की दुआयें हैं और सभी चारों ओर के संकल्प, बोल और कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में सम्पन्न बनने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को सदा स्वदर्शन करने वाले, स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों को, सदा दृढ़संकल्प द्वारा मायाजीत बन बाप के आगे स्वयं को प्रत्यक्ष करने वाले और विश्व के आगे बाप को प्रत्यक्ष करने वाले सर्विसएबुल, नॉलेजफुल, सक्सेसफुल बच्चों को बापदादा का यादप्यार और दिल से पदमपदमगुणा दुआयें हो,
तीव्र पुरूषार्थ करो। करना ही है, होना ही है। मैजारिटी ने तो उठाया है। बापदादा को यह खुशी है और दिल की दुआयें दे रहे हैं, अब प्रैक्टिकल करके दिखाना।
सेवा का फल है खुशी। अगर सेवा करते खुशी गायब हो जाती है तो सेवा का खाता जमा नहीं होता। सेवा की, समय लगाया, मेहनत की तो थोड़ी परसेन्टेज में वह जमा होगा, फालतू नहीं जायेगा। लेकिन जितनी परसेन्टेज में जमा होना चाहिए उतना नहीं होता।
ऐसे ही सम्बन्ध-सम्पर्क की निशानी - दुआओं की प्रप्ति हो। जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उनके मन से आपके प्रति दुआयें निकलें - बहुत अच्छा। बाहर से नहीं, दिल से, दिल से दुआयें निकले और दुआयें अगर प्राप्त हैं, तो दुआयें मिलना यह बहुत सहज पुरूषार्थ का साधन है।
भाषण नहीं करो। चलो मन्सा सेवा भी इतनी पावरफुल नहीं है।
कोई नये-नये प्लैन नहीं बनाने आते हैं, कोई हर्जा नहीं। सबसे सहज पुरूषार्थ का साधन है दुआयें लो, दुआयें दो।
ऐसे कई बच्चों के बापदादा मन के संकल्प रीड करते हैं। कई बच्चे समय अनुसार, सरकामस्टॉन्स अनुसार कहते हैं कि अगर कोई खराब काम करता है तो उसको दुआयें कैसे दें? उस पर तो क्रोध आता है ना, दुआयें कैसे देंगे?
चलो क्रोध के बाल-बच्चे भी तो बहुत हैं। लेकिन उसने खराब काम किया, वह खराब है आपने ठीक समझा कि यह खराब है। यह अच्छा है निर्णय तो अच्छा किया, समझा अच्छा लेकिन एक होता है समझना, दूसरा होता है उनके खराब काम, खराब बातों को अपने दिल में समाना। समझना और समाना फर्क है।
अगर आप समझदार हो, क्या समझदार कोई खराब चीज़ अपने पास रखेगा ! लेकिन वह खराब है, आपने दिल में समाया अर्थात् आपने खराब चीज़ अपने पास रखी, सम्भाली।
समझना अलग चीज़ है, समाना अलग चीज़ है। समझदार बनना तो ठीक है, बनो लेकिन समाओ नहीं। यह तो है ही ऐसा, यह समा लिया। ऐसे समझ करके व्यवहार में आना, यह समझदारी नहीं है।
जब आपको दादियाँ उमंग-उत्साह बढ़ाती हैं तो आपको कौन याद आ जाता है? बाबा। तो योग हुआ ना। क्योंकि बाप की याद आ जाती है ना। तो कितनी आत्माओं की दुआयें मिलती हैं आप सबको। 21 जन्म की दुआयें इकट्ठी हो गई हैं। हो गई हैं ना? 63 जन्म फिर दुआयें देनी पड़ेंगी। किससे दुआ माँगेंगे? आपसे ही तो माँगेंगे।
बापदादा आज हर एक बच्चे से क्रोधमुक्त, काम विकार मुक्त इन दो की हिम्मत दिलाके स्टेज पर विश्व को दिखाने चाहते हैं।
पसन्द है? दादियों को पसन्द है? पहली लाइन वालों को पसन्द है? मधुबन वालों को पसन्द है? मधुबन वालों भी पसन्द है। फॉरेन वालों को भी पसन्द है? तो जो पसन्द चीज़ होती है उसे करने में क्या बड़ी बात है। बापदादा भी एकस्ट्रा किरणें देगा। ऐसा नक्शा दिखाई दे कि यह दुआयें देने वाला और दुआयें लेने वाला ब्राह्मण परिवार है।
दादी जी से:- मधुबन का हीरो एक्टर है, सदा जीरो याद है। शरीर भले नहीं चलता, थोड़ा धीरे-धीरे चलता लेकिन सभी का प्यार और दुआयें चला रही हैं। बाप की तो हैं ही लेकिन सभी की हैं। सभी दादी को बहुत प्यार करते हो ना!
मैं सन्तुष्ट आत्मा हूँ, सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना। यही मनाना है, यही बाप का प्यार है, यही दुआयें हैं। यही यादप्यार है।
किसी भी कार्य के लिए, ईश्वरीय कार्य में, यज्ञ सेवा में, विशेष निमित्त बनता है उसको दुआयें और प्यार दोनों की लिफ्ट मिलतीहै।
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