"...अपना अधिकार भूलो नहीं।
जब अपना अधिकार भूल जाते हो तब कोई न कोई बात के अधीन होते हो और जो पर-अधीन होते हैं वह कभी भी सुखी नहीं रह सकते।
पर-अधीन हर बात में
मन्सा, वाचा, कर्मणा
दु:ख की प्राप्ति में रहते
और जो अधिकारी हैं वह
अधिकार के नशे और खुशी में रहते हैं।
और खुशी के कारण
सुखों की सम्पत्ति उन्हों के गले में माला के रूप में पिरोई हुए होती है।..."