मरजीवा जन्म
यह है मरजीवापने का जन्म।
मनुष्य जब शरीर छोड़ते हैं तो दुनिया मिट जाती है, आत्मा अलग हो जाती है तो न मामा, न चाचा कुछ भी नहीं रहते।
कहा जाता है - यह मर गया अर्थात् आत्मा जाकर परमात्मा से मिली।
वास्तव में कोई जाते नहीं हैं।
परन्तु मनुष्य समझते हैं आत्मा वापिस गई या ज्योति ज्योत में समाई।
पुनर्जन्म - जन्म-मरण
अब बाप बैठ समझाते हैं - यह तो बच्चे जानते हैं आत्मा को पुनर्जन्म लेना ही होता है।
पुनर्जन्म को ही जन्म-मरण कहा जाता है।
पिछाड़ी में जो आत्मायें आती हैं, हो सकता है एक जन्म लेना पड़े।
बस, वह छोड़ फिर वापस चली जायेगी।
पुनर्जन्म लेने का भी बड़ा भारी हिसाब-किताब है।
कई पुनर्जन्म को भी मानते हैं क्योंकि मिसाल देखते हैं।
कोई बहुत वेद-शास्त्र पढ़ते-पढ़ते शरीर छोड़ते हैं तो उन संस्कारों अनुसार फिर जन्म लेते हैं, तो छोटेपन में ही शास्त्र अध्ययन हो जाते हैं।
देही-अभिमानी
अब तुम बच्चों को देही-अभिमानी जरूर बनना है।
जन्म-जन्मान्तर तुम देह-अभिमानी रहे हो।
कोई भी मनुष्य ऐसे नहीं कहेगा कि मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान हूँ।
सन्तान हैं तो उनकी पूरी बायोग्राफी मालूम होनी चाहिए।
पारलौकिक बाप की बायोग्राफी बड़ी जबरदस्त है।
विकारी तो सभी हैं, भले संन्यासी घरबार छोड़ निर्विकारी बनते हैं फिर भी जन्म विकार से लेकर फिर निर्विकारी बनने लिए संन्यास करते हैं।
कई पुनर्जन्म को भी मानते हैं क्योंकि मिसाल देखते हैं।
कोई बहुत वेद-शास्त्र पढ़ते-पढ़ते शरीर छोड़ते हैं तो उन संस्कारों अनुसार फिर जन्म लेते हैं, तो छोटेपन में ही शास्त्र अध्ययन हो जाते हैं।
जन्म ले अपने को अपवित्र समझ फिर पवित्र बनने के लिए संन्यास करते हैं।
अन्तिम जन्म
यहाँ तो बाप जायेंगे तो सभी को जाना है।
यह मृत्युलोक का अन्तिम जन्म है।
बाबा हमको अमरलोक में ले जाते हैं, वाया मुक्ति-धाम जाना है।
84 जन्म
स्वदर्शन चक्र का राज़ भी बाबा ने कितना साफ बताया है।
84 जन्मों के चक्र को ब्राह्मण ही याद कर सकते हैं।
यह है बुद्धि का योग लगाकर चक्र को याद करना।
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