18.12.1991
- "...ड्रामा का ज्ञान और ड्रामा में भी समय का ज्ञान इसकी कमी है तो क्यों और क्या का क्वेश्चन उठता है।
- तो कभी उठता है कि क्या...
- यह मेरा ही हिसाब है.. मेरा ही कड़ा हिसाब है दूसरे का नहीं... कितना भी कड़ा हो लेकिन योग की अग्नि के आगे कितना भी कड़ा हिसाब क्या है! कितना भी लोहा कड़ा हो लेकिन तेज आग के आगे मोम बन जाता है। कितनी भी कड़ी परीक्षा हो, हिसाब किताब हो, कड़ा बन्धन हो लेकिन योग अग्नि के आगे कोई बात कड़ी नहीं, सब सहज है।
- कई आत्मायें कहती हैं -
- मेरे ही शरीर का हिसाब है और किसका नहीं...
- मेरे को ही ऐसा परिवार मिला है...
- मेरे को ही ऐसा काम मिला है...
- ऐसे साथी मिले हैं...
- लेकिन जो हो रहा है वह बहुत अच्छा।
- यह कड़ा हिसाब शक्तिशाली बना देता है।
- सहन शक्ति को बढ़ा देता है।
- तेज आग के आगे कोई भी चीज परिवर्तन न हो - यह हो ही नहीं सकता।
- तो यह कभी नहीं कहना - कड़ा हिसाब है।
- कमज़ोरी ही सहज को मुश्किल बना देती है।
- ईश्वरीय शक्ति का बहुत बड़ा महत्व है।
- तो सदा स्व को देखो, स्वदर्शन चक्रधारी बनो।
- और बातों में जाना, औरों को देखना माना गिरना और बाप को देखना, बाप का सुनना अर्थात् उड़ना।
- स्वदर्शन चक्रधारी हो या परदर्शन चक्रधारी हो?
- यह प्रकृति भी पर है, स्व नहीं है।
- अगर प्रकृति की तरफ भी देखते हैं तो परदर्शनधारी हो गये।
- बॉडी कॉन्शसनेस होना माना परदर्शन और आत्म अभिमानी होना माना स्वदर्शन।
- परदर्शन के चक्र में आधाकल्प भटकते रहे ना।
- संगमयुग है स्वदर्शन करने का युग।
- सदा स्व के तरफ देखने वाले सहज आगे बढ़ते हैं। ..."
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