1.
कभी आपस में एक-दो के मतभेद में न आये
2.
किसी भी देहधारी में बुद्धि लटकी हुई न हो
3.
यह तो बच्चों की बुद्धि में बैठ गया है कि सृष्टि चक्र हूबहू रिपीट होता है।
4.
तुम बच्चों की बुद्धि में यह चक्र चलना चाहिए। तुम्हारा नाम भी है स्वदर्शन चक्रधारी। तो बुद्धि में फिरना चाहिए।
5.
बाप द्वारा जो नॉलेज मिलती है वो ग्रहण करनी चाहिए। ऐसी ग्रहण हो जाए जो पिछाड़ी में बाप और रचना के आदि-मध्य-अन्त की याद रहे।
6.
यहाँ सारे विश्व में एक राज्य, एक धर्म, एक भाषा चाहिए। वो तो सतयुग में था।
7.
तुमको यह बताना है कि विश्व में शान्ति का राज्य यह है।
8.
जब इन्हों का राज्य होता है तो सारे विश्व में शान्ति हो जाती है।
9.
तुम्हारे में जो भूत हैं वह सब निकल जाने हैं। पहले नम्बर में भूत है देह अंहकार।
10.
रावण राज्य में भ्रष्टाचारी और राम राज्य में श्रेष्ठाचारी होते हैं।
11.
तुम्हारे में भी जो समझू होशियार हैं, वो अच्छी रीति समझ सकते हैं क्योंकि माया बिल्ली कम नहीं है।
12.
सतगुरू खुद आकर परिचय देते हैं और जो कुछ सुनाते हैं वह सब सत्य ही समझाते हैं और सच-खण्ड में ले जाते हैं।
13.
सृष्टि भी एक ही है, अनेक नहीं। यह गपोड़े लगाते कि ऊपर-नीचे दुनिया है। ऊपर तारों में दुनिया है।
14.
तुम बच्चों की बुद्धि में आ गया - यह चक्र कैसे फिरता है
15.
बाबा ने बताया है सतयुग में सिर्फ तुम्हारा ही पार्ट होता है।
16.
बड़े-बड़े सेन्टर्स खुलते रहेंगे, तो बड़े-बड़े आदमी वहाँ आयेंगे। गरीब भी आयेंगे। अक्सर करके गरीबों की बुद्धि में झट बैठता है।
17.
बहुत बच्चे हैं जो पढ़ना बन्द कर देते हैं। पढ़ाई में मिस रहे तो जरूर फेल हो पड़ेंगे।
18.
स्कूल में जो अच्छे-अच्छे बच्चे होते हैं वह कभी शादियों पर, इधर-उधर जाने की छुट्टी नहीं लेते हैं। बुद्धि में रहता है हम अच्छी रीति पढ़कर स्कॉलरशिप लेंगे इसलिए पढ़ते हैं।
19.
एक ही क्लास में कोई पढ़कर ऊंच पद पाते हैं, कोई कम।
20.
समझो कोई बाहर में सतसंग शुरू करते, कहते हैं हमें शिवबाबा की बैंक में जमा करना हैं, कैसे करेंगे?
21.
बच्चे जो आते हैं शिवबाबा की भण्डारी में डालते हैं। एक पैसा भी देते हैं तो सौगुणा होकर मिलता है।
22.
बाबा कहते हैं 7 रोज़ में तुमको लायक ब्राह्मण-ब्राह्मणी बन जाना है।बाबा कहते हैं 7 रोज़ में तुमको लायक ब्राह्मण-ब्राह्मणी बन जाना है।
23.
ब्राह्मण-ब्राह्मणी वह जिनके मुख में बाबा का गीता ज्ञान कण्ठ हो। ब्राह्मणों में भी नम्बरवार तो होते ही हैं।
24.
सर्विस का सबूत देना चाहिए, तब समझ में आयेगा कि यह ऐसा पद पायेगा।
25.
पढ़ते-पढ़ाते नहीं हैं तो अन्दर में समझना चाहिए कि मैं पूरा पढ़ा नहीं हूँ, तब पढ़ा नहीं सकता।
26.
बहुतों का आपस में मतभेद रहता है। कोई फिर एक-दो में लटक कर पढ़ाई छोड़ देते हैं।
27.
एक-दो की बातों में आकर तुम पढ़ाई क्यों छोड़ देते हो? यह भी ड्रामा। तकदीर में नहीं है।
28.
अक्सर करके देह-अभिमान में आकर बहुत लड़ते हैं।
29.
ड्रामा में माताओं के उन्नति की भी नूँध है।
30.
भक्ति मार्ग में बहुत याद करते हैं, टाइम गँवाते हैं, मिलता कुछ भी नहीं है।
31.
उल्टी-सुल्टी बातों में आकर पढ़ाई से मुख नहीं मोड़ना है। मतभेद में नहीं आना है।
32.
जैसे वृक्ष में जब सम्पूर्ण फल की अथॉरिटी आ जाती है तो वृक्ष झुक जाता है
33.
सच्चे सेवाधारी की वृत्ति में जितनी अथॉरिटी होगी उसकी वाणी में उतना ही स्नेह और नम्रता होगी।
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