1.00 | में...

बाप का परिचय देकर आत्मा को खुशी में लाओ

रूहानी बच्चे यहाँ बैठे हैं, बुद्धि में यह ज्ञान है, कैसे शुरू में हम ऊपर से आते हैं।

अभी तुम समझते हो - हम आत्मायें असुल में कहाँ के रहने वाले हैं यह तो जरूर तुम स्टूडेन्ट्स की बुद्धि में होना चाहिए, 84 का चक्र हम कैसे लगाते हैं? यह स्मृति में रहना चाहिए।

जो भी और धर्म हैं वह कैसे स्थापन होते हैं, यह भी तुम्हारी बुद्धि में है। पुनर्जन्म लेते-लेते, पार्ट बजाते-बजाते अभी अन्त में आकर पहुँचे हैं।

दुनिया में और कोई भी यह नॉलेज नहीं जानते हैं।

बच्चों को अन्दर में कितना गद्गद् होना चाहिए। जब धारणा हो तब ही अन्दर में वह खुशी आये।

हम शुरू-शुरू में कैसे आये फिर कैसे शूद्र कुल से ब्राह्मण कुल में ट्रांसफर हुए।

यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, सो तुम्हारे सिवाए दुनिया में कोई भी जानता नहीं है।

अन्दर में यह ज्ञान डांस होना चाहिए। तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। परन्तु कुछ समझ में नहीं आता था। अभी बुद्धि में सारा राज़ आ गया है। हम शूद्र से अब सो ब्राह्मण बनते हैं। यह मंत्र भी बुद्धि में है।

यह नॉलेज बुद्धि में रहने कारण खुशी भी रहनी चाहिए।

जिनको सर्विस का शौक रहता है उन्हों को अन्दर में आना चाहिए, बहुत खुशी होनी चाहिए। कितने ऊंच बनते हैं फिर कैसे नीचे आते हैं फिर रावण राज्य कब शुरू होता है? यह अभी बुद्धि में आया है।

भक्ति और ज्ञान में रात-दिन का फ़र्क है। पूज्य और पुजारी में कितना रात-दिन का फ़र्क है।

इतनी छोटी-सी बात भी किसके ध्यान में नहीं आती है। लाखों वर्ष की भेंट में तो यह एक-दो रोज़ के बराबर हो जाता है।

अच्छे-अच्छे बच्चों की बुद्धि में यह चक्र फिरता रहता है, तब ही कहा जाता है स्वदर्शन चक्रधारी।

सतयुग में यह नॉलेज होती नहीं। जो था वह फिर बनना ही है।

बाहर से तो देखने में कुछ नहीं आता है। साक्षात्कार होता है।

यह पुरानी दुनिया अब ख़त्म होनी है फिर नम्बरवार हम नई दुनिया में आयेंगे। आत्मायें ऐसे कोई ऊपर से उतरती नहीं हैं, जैसे नाटक में दिखाते हैं। आत्मा कैसे आती है, छोटे शरीर में कैसे प्रवेश करती है, बड़ा ही वन्डरफुल खेल है।

आत्मा में ही सारा ज्ञान ठहरता है। बाप आकर देवता बनाते हैं। अन्दर में कितनी खुशी होनी चाहिए। यह दिन-रात अन्दर में सिमरण चलना चाहिए।

बाप कहते हैं मैं सतयुग-त्रेता में तो नहीं आता हूँ परन्तु नॉलेज सारी सुनाता हूँ। न मैं सतयुग-त्रेता में आता हूँ परन्तु मेरे में नॉलेज कितनी अच्छी है जो मैं एक ही बार आकर तुमको सुनाता हूँ।

हम जो पार्टधारी हैं, हम कुछ नहीं जानते और बाप में कितनी सारी नॉलेज है। बाप कहते हैं मैं थोड़ेही सतयुग-त्रेता में आता हूँ जो तुमको अनुभव सुनाऊं। देवी-देवता बनेंगे। फिर अन्त में चक्र लगाए मनुष्य बनेंगे। वन्डर खाना चाहिए ना।

बाबा में यह नॉलेज कहाँ से आई? उनका तो कोई गुरू भी नहीं।

हम कैसे 84 जन्मों में आते हैं। हम सो देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य फिर शूद्र। यह सिमरण करने में क्या कोई तकल़ीफ है? भक्ति मार्ग में कोई किसको, कोई किसको मीठा समझेंगे।

भक्ति मार्ग में तो कुछ भी तुम नहीं जानते थे।

सभी 5 विकारों रूपी रावण के पंजे में फँसे हुए हैं। बच्चों को अन्दर में यह आना चाहिए - कैसे औरों को भी रावण से छुड़ायें।

बाबा कहते हैं ऐसे बच्चों की हुण्डी मैं सकारता (भरता) हूँ। ड्रामा में नूँध है।

 

2.00 | आत्मा

विश्व की सभी आत्मायें अन्जान और दु:खी हैं, आप उन पर उपकार करो

हम आत्मायें असुल में कहाँ के रहने वाले हैं, कैसे ऊपर से फिर यहाँ आते हैं, कैसे 84 जन्मों का पार्ट बजाते पतित बनते हैं? अभी फिर बाप पवित्र बनाते हैं। यह तो जरूर तुम स्टूडेन्ट्स की बुद्धि में होना चाहिए, 84 का चक्र हम कैसे लगाते हैं? यह स्मृति में रहना चाहिए।

हम आत्मायें कहाँ की रहने वाली हैं, फिर कैसे आती हैं पार्ट बजाने? कितने ऊंच बनते हैं फिर कैसे नीचे आते हैं फिर रावण राज्य कब शुरू होता है? यह अभी बुद्धि में आया है।

आत्मायें कैसे आती हैं पार्ट बजाने, वह भी तुम समझ गये हो। आत्मायें ऐसे कोई ऊपर से उतरती नहीं हैं, जैसे नाटक में दिखाते हैं।

आत्मा को तो इन आंखों से कोई देख भी न सके। आत्मा कैसे आती है, छोटे शरीर में कैसे प्रवेश करती है, बड़ा ही वन्डरफुल खेल है।

आत्मा में ही सारा ज्ञान ठहरता है। आत्मा ही ज्ञान सागर है। भल कहते हैं परमात्मा ज्ञान का सागर है, परन्तु वह कौन है, कैसे वह जादूगर है, यह किसको भी पता नहीं है। आगे तुम भी नहीं समझते थे।

मीठे-मीठे बच्चों अपनी उन्नति करनी है तो अपने को आत्मा समझो

बाबा बैठ सब राज़ समझाते हैं। आत्मा ही आनन्द स्वरूप है, फिर आत्मा ही दु:ख रूप छी-छी बन जाती है।