08.10.1975
"...अपने घर परमधाम वा शान्तिधाम में भी सर्व चमकते हुए सितारों के समान आत्माओं के बीच विशेष चमकते हुए घर के श्रृंगार, साकार सृष्टि अर्थात् विश्व के अन्दर विश्व ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी, विशेष पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हो, अर्थात् विश्व के श्रृंगार हो।..."
06.02.1969
"...अभी तक अपने स्वमान, अपनी सर्विस और अपनी श्रेष्ठतायें अपने से ही गुप्त हैं।
अपने से ही गुप्त होने कारण सृष्टि से भी गुप्त हैं।
जब अपने में प्रत्यक्षता आयेगी तब सृष्टि में भी प्रत्यक्षता होगी।..."
15.02.1969
"...अगर निश्चय है तो... फिर भी बच्चों से मिलने के लिए आना पड़ा, थोड़े समय के लिए।
स्वमान की स्मृति दिलाने के लिए आये हैं।
बच्चे, सदैव अपने को सौभाग्यशाली समझें।
सदा सौभाग्यशाली उनको कहा जाता है जिनका बाप, टीचर और सतगुरू से पूरा कनेक्शन, पूरी लगन है।..."
16.07.1969
"...जब अपनी वैल्यु का पता पड़ेगा तब वह नशा चढ़ेगा।
अभी कभी क्या वैल्यु रखते हो
कभी क्या वैल्यु रखते हो।
भाव में हेर-फेर होते हैं।
जैसे कोई चीज निकलती है तो पहले भाव थोड़ा नीचे ऊपर होता है फिर फाइनल हो जाता है।
अपनी वैल्यू का अभी फाइनल मालूम नहीं पड़ा है।
कभी समझते हो बहुत वैल्यू है, कभी कम समझते हो।
लेकिन यथार्थ हर एक की वैल्यू क्या है - वह अभी जल्दी मालूम पड़ेगा।..."
23.07.1969
"...समय प्रति समय हर एक छोटा, बड़ा अपनी शक्ति और स्वमान को रखने की कोशिश करता है।
और आगे चल कर यह कुछ समस्या ज्यादा सामने आने वाली हैं इसलिए ही जो निमित्त बने हुए हैं उनको बहुत निर्माणचित्त बनना पड़ेगा।
निर्माण अर्थात् अपने मान का भी त्याग।
त्याग से फिर और ही ज्यादा भाग्य मिलता है।
जितना आप त्याग करेंगे उतना और ही आपको स्वमान मिलेगा।
जितना अपना स्वमान खुद रखवाने की कोशिश करेंगे उतना ही स्वमान गंवाने का कारण बन जायेंगे।..."
24.07.1969
"...आत्मा के ही तो आधार से शरीर भी चलता है।
मैं आत्मा हूँ यह नशा होना चाहिये कि मैं बिन्दु-बिन्दु की ही संतान हूँ। ..."
24.07.1969
"...जैसे बीज में सारा पेड़ समाया हुआ है वैसे ही मुझ आत्मा में बाप की याद समाई हुई है?
ऐसे होकर बैठने से सब रसनायें आयेंगी।
और साथ ही यह भी नशा होगा कि हम किसके सामने बैठे हैं!
बाप हमको भी अपने साथ कहाँ ले जा रहे हैं!
बाप तुम बच्चों को अकेला नहीं छोड़ता है।
जो बाप का और तुम बच्चों का घर है, वहाँ पर साथ में ही लेकर जायेंगे। ..."
09.11.1969
"...जितना-जितना योग- युक्त होंगे उतना भविष्य भी स्पष्ट जान जायेंगे।
जैसे वर्तमान स्पष्ट है।
वर्तमान में कभी भी संकल्प नहीं उठता है कि है या नहीं है।
ना मालूम क्या है यह कभी संकल्प नहीं उठेगा।
इसी रीति से भविष्य भी स्पष्ट होगा।
ऐसा स्पष्ट नशा हर एक की बुद्धि में नम्बरवार आता जायेगा।
जैसे साकार रूप में माँ-बाप दोनों को अपना भविष्य स्पष्ट था।
नाम भी, रूप भी स्पष्ट, देश भी स्पष्ट और काल भी स्पष्ट था।
इतना स्पष्ट है कि किस सम्बन्ध में आयेंगे?
वा सम्बन्ध भी स्पष्ट किस रूप में सामने
आयेगा।
अभी दिल में थोड़ा बहुत किस-किस को आ सकता है।
लेकिन कुछ समय बाद ऐसे ही निश्चय बुद्धि होकर कहेंगे कि यह होना ही है।..."
13.11.1969
"...जो सारे विश्व में श्रेष्ठ आत्माएं है।
उन श्रेष्ठ आत्माओं से बापदादा का मिलन होता है।
इतना नशा रहता है – हम ही सारे विश्व में श्रेष्ठ आत्मायें है।
श्रेष्ठ आत्माओं को ही सर्वशक्तिमान के मिलन का सौभाग्य प्राप्त होता है। ..."
28.11.1969
"...मन्सा, वाचा, कर्मणा के लिए इन मुख्य बातों को याद रखें तो फिर सम्पूर्ण समर्पण जो हुए हो उसको अविनाशी बना सकेंगे।
ऐसे नहीं कि यहाँ सम्पूर्ण समर्पण का नशा चढ़ा है वह बाद में कम हो जाये।
अगर यह पक्का याद रखेंगे कि हम तो सम्पूर्ण समर्पण हो ही गये तो यह अविनाशी याद आपको अविनाशी बनाकर रखेगी। ..."
20.12.1969
"...जिसमें हर आत्मा प्रति स्नेह होगा वही निर्माणता में रह सकेंगे।
स्नेह नहीं है तो न रहमदिल बन सकेंगे न नम्रचित।
इसलिए निर्माणता और फिर शक्ति रूप अर्थात् जितनी निर्माणता उतना ही - फिर मालिकपना।
शक्तिरूप में है मालिकपना और नम्रता में
सेवागुण।
सेवा भी और मालिकपना भी।
सेवाधारी भी हो और विश्व के मालिकपने का नशा भी हो।
जब यह नर्माई और गर्माई दोनों रहेंगे तब हर बात में मोल्ड हो सकेंगे।..."
1970
22.01.1970
"...जब कि तीनों ही कालों को जानते हैं तो नया कैसे कहेंगे।
इसलिए सभी अति पुराने हैं।
कितना पुराने हैं वह हिसाब नहीं निकाल सकते।
तो अपने को नया नहीं समझना।
अति पुराने हैं और वही पुराने अब फिर से अपना हक़ लेने के लिए आये हैं।
यह नशा सदैव कायम रहे।
यह भी कभी नहीं बोलना कि पुरुषार्थ करेंगे, देखेंगे।
नहीं।
जो लास्ट आये हैं उनको यही सोचना है कि हम फ़ास्ट जायेंगे।
अगर फ़ास्ट का लक्ष्य रखेंगे तो पुरुषार्थ भी
ऐसे ही होगा।
इसलिए कभी भी यह नहीं सोचना कि हम लोग तो पीछे आये हैं तो प्रजा बन जायेंगे। नहीं।
पीछे आनेवालों को भी अधिकार है राज्य पद पाने का। ..."
23.01.1970
"...बापदादा और दैवी परिवार सभी के स्नेह के सूत्र में मणका बनकर पिरोना है।
स्नेह के सूत्र में पिरोया हुआ मैं मणका हूँ – यह नशा रहना चाहिए।
मणकों को कहाँ रखा जाता है?
माला में मणकों को बहुत शुद्धि से रखा जाता है।
उठाते भी बहुत शुद्धि पूर्वक हैं।
हम भी ऐसा अमूल्य मणका हैं, यह समझना है। ..."
23.01.1970
"...हम इतने बड़े परिवार के हैं – यह नशा रहता है?
जितना कोई बड़े परिवार का होता है उतनी उसको ख़ुशी रहती है।
सारी दुनिया में हम थोड़ों को इतना बड़ा परिवार मिलता है।
तो यह निश्चय और नशा होना चाहिए।
हरेक को यह नशा होना चाहिए कि कोटों में से कोई हम गायन में आनेवाली आत्माएं हैं। ..."
23.01.1970
"...ऐसी लॉटरी हम आत्माओं को मिली है।
यह नशा रहता है?
कोने-कोने से बापदादा ने देखो किन्हों को चुना है।
चुने हुए रत्नों में आप विशेष हैं।
यह याद रहता है।
बापदादा को कौन-से रत्न अच्छे लगते हैं?
साधारण।
ऐसी ख़ुशी सदैव अविनाशी रहे। ..."
24.01.1970
"...यह शुद्ध स्नेह सारे कल्प में एक ही बार मिलता है।
ऐसे स्नेह को हम पाते हैं यह सदैव याद रखना है।
जो कोई को प्राप्त नहीं हो सकता वह हमें प्राप्त हुआ है।
इसी नशे और निश्चय में रहना है।..."
24.01.1970
"...कल्प पहले भी हम ही थे अब भी हम ही हैं यह नशा और निश्चय रखना है।
हम ही हक़दार हैं, किसके?
उंच ते उंच बाप के।
यह याद रहने से फिर सदैव एकरस अवस्था रहेगी।
एक की याद में रहने से ही एकरस अवस्था होगी। ..."
23.01.1970
"...तख़्त नशीन कौन बनता है?
जो सदैव नशे में है और निशाना बिलकुल एक्यूरेट रहता है।
नशा और निशाना, योग और ज्ञान।
ऐसे बच्चे ही तीनों तख़्त के अधिकारी बनते हैं।
त्रिमूर्ति तख़्त भी है।
अगर एक तख़्त नशीन बने तो तीनों तख़्त के बनेंगे।
बाप तख़्त नशीन बच्चों को देखते हैं तो क्या होता है?
बापदादा को भी नशा होता है कि ऐसे लायक बच्चे हैं।..."
25.01.1970
"...जीवन में इतना ऊँचा लक्ष्य कोई रख नहीं सकता कि मैं देवता बन सकता हूँ।
यह कब सोचा था कि हम ही देवता थे?
सोचा क्या था और बनते क्या हो?
बिन मांगे अमूल्य रत्न मिल जाते हैं।
ऐसे पद्मापद्म भाग्यशाली अपने को समझते हो?
प्रेसिडेंट आदि भी आपके आगे क्या हैं?
इतनी ऊँची दृष्टि, इतना ऊँचा स्वमान याद रहता है कि कब भूल भी जाते हो? ..."
25.01.1970
"...सर्वशक्तिवान के बच्चे हैं, यह नशा नहीं भूलना।
भूलने से ही फिर माया वार करती है।
बेहोश नहीं होना है।
होशियार जो होते हैं, वह होश रखते हैं।..."
25.01.1970
"...प्राप्ति कितनी बड़ी है और रास्ता कितना सरल है।
जो अनेक जन्म पुरुषार्थ करने पर भी कोई नहीं पा सकते।
वह एक जन्म के भी कुछ घड़ियों में प्राप्त कर रहे हो।
इतना नशा रहता है ना!
“इच्छा मात्रं अविद्या” ऐसी अवस्था प्राप्त करने का तरीका बताया।..."
26.01.1970
"...कल्प पहले का अपना अधिकार लेने लिए फिर से पहुंच गए हो, ऐसा समझते हो?
वह स्मृति आती है कि हम ही कल्प पहले थे।
अभी भी फिर से हम ही निमित्त बनेंगे।
जिसको यह नशा रहता है उनके चेहरे में ख़ुशी और ज्योति रूप देखने में आता है।
उनके चेहरे में अलौकिक अव्यक्ति चमक रहती है।
उनके नयनों से, मुख से सदैव ख़ुशी ही ख़ुशी देखेंगे।..."
02.02.1970
"...अगर अपनी स्थिति का भी निशाना और दूसरे की सर्विस करने का भी निशाना ठीक होगा और साथ-साथ नशा भी सदैव एकरस रहता होगा तो सर्विस में सफलता ज्यादा पा सकते हो।
कभी नशा उतर जाता, कभी निशाना छुट जाता, यह दोनों बातें ठीक होनी चाहिए।
जिसमें जितना खुद नशा होगा उतना ही निशाना ठीक कर सकेंगे। ..."
05.03.1970
"...भगवान् बच्चों को कहते हैं वन्दे मातरम् कितना फर्क हो गया।
इतना नशा रहता है?
जिस बाप की अनेक भक्त वन्दना करते हैं, वह स्वयं आकर कहते हैं वन्दे मातरम् इस खुमारी की निशानी क्या होगी?
उनके नयन, उनके मुखड़े, उनकी चलन, बोल आदि से ख़ुशी झलकती रहेगी।
जिस ख़ुशी को देख कईयों के दुःख मिट जायेंगे।
ऐसी मातायें जिनको बापदादा स्वयं वन्दना करते हैं, उनकी निशानी है ख़ुशी।
चेहरा ही अनेक आत्माओं को हर्षायेगा।..."
23.03.1970
"...साक्षात् रूप बनने से साक्षात्कार होगा तो जो यह अंत का रूप सभी में साक्षात् रूप देखते हैं इसको मिक्स करके कह देते हैं – सभी परमात्मा के रूप हैं।
बाप के समान को परमात्मा का रूप कह देते।
यह सभी बातें यहाँ से ही चली हैं तो साक्षात्कार मूर्त बनने के लिए साक्षात् बापदादा समान बनना है।
अब चेकिंग क्या करनी है?
समानता की चेकिंग करनी है, वह चेकिंग नहीं।
वह तो बचपन की थी।
अब यह चेकिंग करनी है।
जितनी समानता उतना स्वमान मिलेगा।
समानता से अपने स्वमान का पता लगा सकते हैं।
समानता कहा तक आई है और कहाँ तक समानता लानी है यही चेकिंग करना और
कराना है।..."
23.03.1970
"...बाप तख़्त नशीन बच्चों को देखते हैं तो क्या होता है?
बापदादा को भी नशा होता है कि ऐसे लायक बच्चे हैं। ..."
02.04.1970
"...अब मास्टर सर्वशक्तिमान का नशा कम रहता है, इसलिए एक सेकंड में आवाज़ में आना, एक सेकंड में आवाज़ से परे हो जाना इस शक्ति की प्रैक्टिकल-झलक चेहरे पर नहीं देखते।
जब ऐसी अवस्था हो जाएगी, अभी-अभी आवाज़ में, अभी – अभी आवाज़ से परे।
यह अभ्यास सरल और सहज हो जायेगा तब समझो सम्पूर्णता आई है।
सम्पूर्ण स्टेज की निशानी यह है।
सर्व पुरुषार्थ सरल होगा। ..."
05.04.1970
"...सदा सहयोगी सदा स्नेही।
स्वमान कैसे प्राप्त होता है?
जितना निर्माण उतना स्वमान।
और जितना-जितना बापदादा के समान उतना ही स्वमान।
निर्माण भी बनना है, समान भी बनना है।
ऐसा ही पुरुषार्थ करना है।
निर्माणता में भी कमी नहीं तो समानता में भी कमी नहीं।
फिर स्वमान में भी कमी नहीं।
अपनी स्वमान की परख समानता से देखनी है। ..."
05.04.1970
"...जैसे तिलक मष्तिष्क पर ही लगाया जाता है, ऐसे ही बिन्दी स्वरुप यह भी तिलक है जो सदैव लगा ही रहे।
दूसरा भविष्य का राजतिलक यह भी तिलक ही है।
दोनों की स्मृति रहे।
उसकी निशानी यह तिलक है।
निशानी को देख नशा रहे।
यह निशानी सदा काल के लिए दी जाती है। ..."
14.05.1970
"...आप सभी लॉ-मेकर्स हो।
यह रीति रस्म का बीज डालने का दिवस है।
इतना नशा है?
इसकी सारी रस्म ब्राह्मणों द्वारा होती है।
कितना बड़ा कार्य करने के निमित्त हो (विश्व को पलटाने के) कितने समय में विश्व पलटेंगे?
अपने को कितने समय में तैयार करेंगे?
एवररेडी हो?
आज सभी अपने को किस रूप में अनुभव कर रहे हो?
किस रूप में बैठे हो?
जैसा दिन वैसा रूप होता है ना।
यह संगम की दरबार सतयुगी दरबार से भी ऊँची है। ..."
25.06.1970
"...जब है ही औरों के भी करप्शन, एडल्टरेशन चेक करनेवाले तो अपने पास फिर करप्शन, एडल्टरेशन रह सकती है?
तो यह नशा रहना चाहिए कि हम इन तीनों ही स्थितियों में कहाँ तक स्थित रह सकते हैं।
रूलर्स जो होते हैं वह किसके अधीन नहीं होते हैं।
अधिकारी होते हैं। ..."
06.08.1970
"...एक-एक आत्मा अपने को विशेष समझ औरों में भी विशेषता लानी है।
तुम विशेष आत्मायें हो, यह नशा ईश्वरीय नशा है।
देह अभिमान का नशा नहीं।
ईश्वरीय नशा सदैव नैनों से दिखाई दे। ..."
22.10.1970
"...अब मास्टर रचयितापन का नशा धारण कर रचना के सर्व आकर्षण से अपने को दूर करते जाओ।
बाप के आगे रचना हो लेकिन अब समय ऐसा आने वाला है जो मास्टर रचयिता, मास्टर नॉलेजफुल बनकर उस आकर्षक पावरफुल स्थिति में स्थित न रहे तो रचना और भी भिन्न-भिन्न रंग-ढंग, रूप और रचेगी।
इसलिए फुल बनने के लिए स्टेज पर पूरी रीति स्थित हो जाओ तो फिर कहाँ भी फेल नहीं होंगे। ..."
23.10.1970
"...बच्चे नहीं कच्चे हैं।
अभी तक भी ऐसा पुरुषार्थ करना बच्चों के स्वमान लायक नहीं दिखाई पड़ता है।
इसलिए फिर भी बापदादा कहते हैं कि बीती सो बीती करो।
अब से अपने को बदलो।
महारथी बनने लिए सिर्फ दो बातें याद रखो। कौन-सी?
एक तो अपने को सदैव साथी के साथ रखो।
साथी और सारथी, वह है महारथी।
पुरुषार्थ में कमज़ोरी के दो कारण हैं।
बाप के स्नेही बने हो लेकिन बाप को साथी नहीं बनाया है।
अगर बापदादा को सदैव साथी बनाओ तो जहाँ बापदादा साथ है वहाँ माया दूर से मूर्छित हो जाती है।
बापदादा को अल्प समय के लिए साथी बनाते हैं इसलिए शक्ति की इतनी प्राप्ति नहीं होती है।
सदैव बापदादा साथ हो तो सदैव बापदादा से मिलन मनाने में मगन हों।
और जो मगन होता है उसकी लगन और कोई तरफ लग न सकें।..."
23.10.1970
"...कभी भी नहीं सोचो कि फलाना ऐसे कहता है तब ऐसा होता है लेकिन जो करता है सो पाता है।
यह सामने रखो।
दूसरे के कमाई का आधार नहीं लेना है।
न दूसरे की कमाई में आँख जानी चाहिए।
जिस कारण ही ईर्ष्या होती है।
इसके लिए सदैव बाप का यह स्लोगन याद रखो की अपनी घोंट तो नशा चाहे।
दूसरे के नशे को निशाना नहीं बनाओ।
लेकिन बापदादा के गुण और कर्तव्य को निशाना बनाओ।
सदैव बापदादा के कर्तव्य की स्मृति रखो कि बापदादा के साथ मैं भी अधर्म के विनाश अर्थ निमित्त हैं वह स्वयं फिर अधर्म का कार्य वा दैवी मर्यादा को तोड़ने का कर्तव्य कैसे कर सकते हैं।
मैं मास्टर मर्यादा पुरुषोत्तम हूँ।
तो मर्यादाओं को तोड़ नहीं सकते हैं।
ऐसी स्मृति रखने से समान और सम्पूर्ण स्थिति हो जाएगी।..."