17.04.1969 "...मैजारटी बच्चे यही कहते रहते हैं - बाबा इस बात को ठीक करो तो हम ऐसे बने। इस बात की रुकावट है। ऐसे कोई विरले हैं जो अपनी हिम्मत दिखाते हैं, कि इस परिस्थिति को पार करके ही दिखायेंगे। ..." 26.06.1969 "...जो भी रास्ता तय करते विघ्न आते हैं उन विघ्नों को पार करने के लिये मुख्य कौन सी शक्ति चाहिए? (सहनशक्ति) सहनशक्ति से पहले कौन सी शक्ति चाहिए? विघ्न डालने वाली कौन सी चीज है? (माया) सुनाया था कि विघ्नों का सामना करने के लिये पहले चाहिए परखने की शक्ति। फिर चाहिए निर्णय करने की शक्ति। जब निर्णय करेंगे यह माया है वा अयथार्थ है। फायदा है वा नुकसान? अल्पकाल की प्राप्ति है वा सदाकाल की प्राप्ति है। जब निर्णय करेंगे तो निर्णय के बाद ही सहनशक्ति को धारण कर सकेंगे। पहले परखना और निर्णय करना है। जिसकी निर्णयशक्ति तेज होती है वह कब हार नहीं खा सकता। हार से बचने के लिये अपने निर्णयशक्ति और परखने की शक्ति को बढ़ाना है। निर्णयशक्ति बढ़ाने के लिये पुरुषार्थ कौन सा करना है? याद की यात्रा तो आप झट कह देते हो - लेकिन याद की यात्रा को भी बल देने वाला कौन सा ज्ञान अर्थात् समझ है? वह भी स्पष्ट बुद्धि में होना चाहिए। टोटल तो रखा है लेकिन टोटल में कहाँ-कहाँ फिर टोटा(विघ्न) पड़ जाता है। स्कूल में कई बच्चे एक दो को देख - टोटल तो निकाल देते हैं लेकिन जब मास्टर पूछता टोटल कैसे किया है? तो मूंझ जाते हैं। तो आप टोटल याद की यात्रा कह देते हो लेकिन वह टोटल किस तरीके से होगा वह भी जानना है। तो निर्णयशक्ति को बढ़ाने लिये मुख्य किस बात की आवश्यकता है (विचार सागर मंथन) विचार सागर मंथन करते-करते सागर में ही डूब जायें तो? कई ऐसे बैठते हैं विचार सागर मंथन करने लेकिन कोई-कोई लहर ऐसी आती है जो साथ ले जाती है। जैसे कोई भी स्थूल शारीरिक ताकत कम होती है तो ताकत की खुराक दी जाती है। वैसे ही निर्णयशक्ति को बढ़ाने लिये मुख्य खुराक यही है जो पहले भी सुनाया। अशरीरी, निराकारी और कर्म में न्यारे। निराकारी वा अशरीरी अवस्था तो हुई बुद्धि तक लेकिन कर्म से न्यारा भी रहे और निराले भी रहे जो हर कर्म को देखकर के लोग भी समझें कि यह तो निराला है। यह लौकिक नहीं अलौकिक है। तो निर्णयशक्ति को बढ़ाने के लिये यह बहुत आवश्यक है। जितना बातों को धारण करेंगे उतना ही अपने विघ्नों को भी मिटा सकेंगे। और जो सृष्टि पर आने वाले विघ्न हैं, उन्हों से बच सकेंगे। शिक्षा तो बहुत मिलती है लेकिन अब क्या करना है? शिक्षा स्वरूप बनना है। शिक्षा और आपका स्वधर्म अलग नहीं होना चाहिए। आपका स्वरूप ही शिक्षा होना चाहिए। स्वरूप से शिक्षा दी जाती है। कई बातों में वाणी से नहीं शिक्षा दी जाती है। लेकिन अपने स्वरूप से शिक्षा दी जाती हे। तो अब शिक्षा स्वरूप बनकर के अपने स्वरूप से शिक्षा देनी है।..." 06.07.1969 "...अन्तर्मुख होकर अपने को सजाना है। लोकपसन्द भाषण किया। खुश किया परन्तु भाषा का जो रहस्य, तन्त है वह एक-एक अपनी कर्मेन्द्रियों में बस जाए, तब ही शोभा हो। कर्तव्य से दैवी गुणों का शो हो। दैवी गुणों का क्लास होता है -सजने के लिए। ऐसे ही सज-सज कर संगम से पार होना है। फिर अपने घर जाना है।..." 18.01.1970 "...अनेक प्रकार की समस्याओं को परिवर्तन के लिए ऊँगली देनी है। कलियुगी पहाड़ तो पार होना ही है। ..." "...कमाल इसको कहा जाता ही जो मुश्किल बात को सहज करें। सहज बातों को पार करना कोई कमाल नहीं है। मुश्किलातों को पार करना वह है कमाल। ..." 25.01.1970 "...शूरवीर की निशानी क्या होती है? उनकों कोई भी बात को पार करना मुश्किल नहीं लगता है और समय भी नहीं लगता है। उनका समय सिवाए सर्विस के अपने विघ्नों आदि को हटाने में नहीं जाता है। इसको कहा जाता है शूरवीर। ..." 26.03.1970 "...बच्चों को मुख से यह शब्द भी नहीं बोलना चाहिए कि अटेंशन है, प्रैक्टिस करेंगे। अभी वह स्थिति भी पार हो गई। अभी तो जो संकल्प हो वह कर्म हो। संकल्प और कर्म में अन्तर नहीं होना चाहिए।..." 28.05.1970 "...एक तरफ़ विनाश के नगाड़े सामने रखो और दूसरे तरफ़ अपने राज्य के नज़ारे सामने रखो, दोनों ही साथ में बुद्धि में रखो। विनाश भी, स्थापना भी। नगाड़े भी नज़ारे भी। तब कोई भी विघ्न को सहज पार कर सकेंगी।..." "...जो प्रतिज्ञा करते हैं फिर इसको जल कौन सा देना है? प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के लिए संग भी चाहिए और साथ-साथ अपनी हिम्मत भी। संग और हिम्मत दोनों के आधार से पार हो जायेंगे। ऐसा पक्का ठप्पा लगाना जो सिवाए वाया परमधाम, बैकुण्ठ और कहाँ न चली जाएँ। जैसे गवर्नमेन्ट सील लगाती है तो उसको कोई खोल नहीं सकता वैसे आलमाइटी गवर्नमेन्ट की सील हरेक को लगाना है।..." 03.12.1970 "...स्वस्थिति को मास्टर सर्वशक्तिमान कहा जाता है। तो मास्टर सर्वशक्तिमान बने हो ना। इस स्थिति में सर्व परिस्थितयों से पार हो जाते हैं। इस स्थिति में स्वभाव अर्थात् सर्व में स्व का भाव अनुभव होता है। और अनेक पुराने स्वभाव समाप्त हो जाते हैं। स्वभाव अर्थात् स्व में आत्मा का भाव देखो फिर यह भाव-स्वभाव की बातें समाप्त हो जाएगी। ..." ...this link will be updated with more points on this topic
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