1.00 | से... 1.01 खजानों से... आज की सभा में हर एक बच्चा हाइएस्ट और अविनाशी खजानों से रिचेस्ट है। हम अनेक जन्म रिचेस्ट हैं क्योंकि आप सभी अविनाशी खजानों से सम्पन्न हो।
1.02 नशे से... चाहे कितना भी रिचेस्ट इन वर्ल्ड हो परन्तु एक जन्म के लिए, और आप हो जो निश्चय और नशे से कहते हो कि हम अनेक जन्म रिचेस्ट हैं क्योंकि आप सभी अविनाशी खजानों से सम्पन्न हो।
1.03 पुरुषार्थ से... आप सभी जानते हो कि हम इस समय के पुरुषार्थ से एक दिन में भी बहुत कमाई करने वाले हैं।
1.04 बाप से... इस संगमयुग का समय कितना श्रेष्ठ है, जो प्राप्ति चाहिए वह अधिकारी बन बाप से ले रहे हो। जैसे आजकल की दुनिया में कोई वी.आई.पी. का बच्चा होगा तो वह अपने को भी वी.आई.पी. समझेगा। लेकिन बाप से ऊंचा तो कोई नहीं है। हम ऐसे ऊंचे से ऊंचे बाप की सन्तान ऊंची आत्मायें हैं - यह स्मृति शक्तिशाली बनाती है।
1.05 बड़े से बड़ा... सर्व शक्तियां बड़े से बड़ा खजाना है। एक-एक ज्ञान रत्न कितना बड़ा खजाना है। हर एक गुण कितना बड़ा खजाना है। ब्राह्मण जीवन का महत्व बहुत बड़ा है। प्राप्तियां बहुत बड़ी हैं। स्वमान बहुत बड़ा है और संगम के समय पर बाप का बनना, यह बड़े से बड़ा पदमगुणा भाग्य है इसलिए बापदादा कहते हैं कि हर खजाने का महत्व रखो।
1.06 याद से... हर एक गुण कितना बड़ा खजाना है। दुनिया वाले भी मानते हैं कि श्वांसों श्वांस याद से श्वांस सफल होते हैं। तो आप सबके श्वांस सफलता स्वरूप हैं, व्यर्थ नहीं।
1.07 बिन्दी रूप से... अगर हर खजाने को बिन्दी रूप से याद करो तो जमा होता जाता।
1.08 व्यर्थ से... बिन्दी लगाई और व्यर्थ से ( व्यर्थ जाने के बदले ) जमा होता जाता है। बिन्दी लगाने आती है?
1.09 साधारण रूप से... अगर समय का महत्व सदा याद रहे, इमर्ज रहे तो समय को और ज्यादा सफल बना सकते हो। सारे दिन में साधारण रूप से समय चला जाता है। गलत नहीं लेकिन साधारण।
1.10 अभी से... सर्व खजाने को जितना जमा कर सको उतना अभी से जमा करो। हो जायेगा, आ जायेंगे... गे गे नहीं करो।
1.11 परम आत्मा से... यह नहीं सोचो कि मालूम तो पड़ता रहेगा, समय पर ठीक हो जायेंगे। जो समय का आधार लेता है, समय ठीक कर देगा, या समय पर हो जायेगा... उनका टीचर कौन? समय या स्वयं परम आत्मा? परम आत्मा से सम्पन्न नहीं बन सके और समय सम्पन्न बनायेगा, तो इसको क्या कहेंगे? समय आपका मास्टर है या परमात्मा आपका शिक्षक है? तो ड्रामा अनुसार अगर समय आपको सिखायेगा या समय के आधार पर परिवर्तन होगा तो बापदादा जानते हैं कि प्रारब्ध भी समय पर मिलेगी क्योंकि समय टीचर है।
1.12 आदत से... 63 जन्म बोझ उठाने की आदत पड़ी हुई है ना! तो आदत से मजबूर हो जाते हैं, इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। कभी सहज, कभी मुश्किल। या तो कोई भी कार्य सहज होता है या मुश्किल होता है। कभी सहज कभी मुश्किल क्यों? कोई कारण होगा ना! कारण है - आदत से मजबूर हो जाते हैं और बापदादा को बच्चों की मेहनत करना, यही सबसे बड़ी बात लगती है।
1.13 अच्छी तरह से... बोझ उठाने का युग नहीं है। बोझ उतारने का युग है। तो चेक करो, अपने तकदीर की तस्वीर नॉलेज के आइने में अच्छी तरह से देखो। आइना तो है ना? या नहीं है? टूट तो नहीं गया है ना? सभी को आइना मिला है? मातायें, आइना मिला है या चोरी हो गया है? पाण्डव तो सम्भालने में होशियार हैं ना? आइना है? हाथ तो अच्छा उठाया। अच्छा है। तकदीर की तस्वीर देखो और सदा अपने तकदीर की तस्वीर देख वाह-वाह का गीत गाओ। वाह मेरी तकदीर! वाह मेरा बाबा! वाह मेरा परिवार!
1.14 10 मण से... अगर 10 मण से आपका 3-4 मण बोझ उतर जाए तो अच्छा है या हाय-हाय? क्या है? वाह बोझ उतरा! हाय मेरा पार्ट ही ऐसा है! हाय मेरे को व्याधि छोड़ती ही नहीं है! आप छोड़ो या व्याधि छोड़ेगी? वाह-वाह करते जाओ तो वाह-वाह करने से व्याधि भी खुश हो जायेगी।
1.15 निगेटिव से पॉजिटिव... निगेटिव से पॉजिटिव करना तो आता है ना। निगेटिव पॉजिटिव का कोर्स भी तो कराते हो ना! तो उस समय अपने आपको कोर्स कराओ तो मुश्किल सहज हो जायेगा।
1.16 आत्मा से... अच्छा - कोई भी हिसाब है, आत्मा से है, शरीर से है या प्रकृति से है; क्योंकि प्रकृति के यह 5 तत्व भी कई बार मुश्किल का अनुभव कराते हैं। कोई भी हिसाब-किताब योग अग्नि में भस्म कर लो।
1.17 दिल से... स्वराज्य अधिकारी बच्चों को, चाहे देश में हैं चाहे विदेश में हैं लेकिन दिल से दूर नहीं हैं, ऐसे चारों ओर के बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
1.18 स्मृति से... ऊंचा बाप, ऊंचे हम और ऊंचा कार्य इस स्मृति से शक्तिशाली बनने वाले बाप समान भव
1.19 ऊंचे से ऊंचे... हम ऐसे ऊंचे से ऊंचे बाप की सन्तान ऊंची आत्मायें हैं - यह स्मृति शक्तिशाली बनाती है। |