01 - "...इस सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल में आपकी यह जीवन बहुत अमूल्य है,
इसलिए शरीर की सम्भाल जरूर करनी है।
ऐसे नहीं यह तो मिट्टी का पुतला है, कहाँ यह खलास हो जाये! नहीं।
इनको जीते रखना है।
02 - कोई बीमार होते हैं तो उनसे तंग नहीं होना चाहिए।
03 - बाप का फरमान है, अपने को आत्मा समझ भाई-भाई देखो।
इस शरीर को भूल जाओ।
बाबा भी शरीर को नहीं देखते हैं।
बाप कहते हैं मैं आत्माओं को देखता हूँ।
बाकी यह तो ज्ञान है कि आत्मा शरीर बिगर बोल नहीं सकती।
04 - मैं भी इस शरीर में आया हूँ, लोन लिया हुआ है।
शरीर साथ ही आत्मा पढ़ सकती है।
बाबा की बैठक यहाँ (भ्रकुटी में) है।
यह है अकाल तख्त।
आत्मा अकालमूर्त है।
05 - आत्मा कब छोटी बड़ी नहीं होती है।
शरीर छोटा बड़ा होता है।
06 - जो भी आत्मायें हैं उन सभी का तख्त यह भृकुटी है।
शरीर तो सभी के भिन्न-भिन्न होते हैं।
07 - तुम नंगे आये थे फिर यहाँ शरीर धारण कर तुमने 84 जन्म पार्ट बजाया है।
अब फिर वापिस चलना है इसलिए अपने को आत्मा समझ भाई-भाई की दृष्टि से देखना है।
यह मेहनत करनी है।
08 - तुम आत्मा से बात करते हो तो आत्मा को ही देखना है।
भल शरीर द्वारा ज्ञान देते हो परन्तु इसमें शरीर का भान तोड़ना होता है।
09 - आत्मा में ही ज्ञान है।
आत्मा को ही ज्ञान देना है।
यह जैसे जौहर है।
तुम्हारे ज्ञान में यह जौहर भर जायेगा।
तो किसको भी समझाने से झट तीर लग जायेगा।
बाप कहते हैं प्रैक्टिस करके देखो, तीर लगता है ना।
यह नई टेव डालनी है तो फिर शरीर का भान निकल जायेगा।
10 - इस समय तुम्हारा जीवन अमूल्य है इसलिए इस शरीर की भी सम्भाल करनी है।
11 - तमोप्रधान होने कारण शरीर की आयु भी कम होती गई है।
अब तुम जितना योग में रहेंगे, उतना आयु बढ़ेगी।
इसलिए शरीर की भी सम्भाल करनी है।..."