"...एक-एक आत्मा के पास यह ईश्वरीय स्नेह और सहयोग का यादगार छोड़ना है।
जितना एक दो के स्नेही सहयोगी बनते हैं उतना ही माया के विघ्न हटाने में सहयोग मिलता है।
सहयोग देना अर्थात् सहयोग लेना।
परिवार में आत्मिक स्नेह देना है और माया पर विजय पाने का सहयोग लेना है।
यह लेन-देन का हिसाब ठीक रहता है।
इस संगम समय पर ही अनेक जन्मों का सम्बन्ध जोड़ना है।
स्नेह है सम्बन्ध जोड़ने का साधन।
जैसे कपडे सिलाई करने का साधन धागा होता है वैसे ही भविष्य सम्बन्ध जोड़ने का साधन है स्नेह रूपी धागा।
जैसे यहाँ जोड़ेंगे वैसे वहां जुड़ा हुआ मिलेगा।
जोड़ने का समय और स्थान यह है।
ईश्वरीय स्नेह भी तब जुड़ सकता है जब अनेक के साथ स्नेह समाप्त हो जाता है।
तो अब अनेक स्नेह समाप्त कर एक से स्नेह जोड़ना है।
वह अनेक स्नेह भी परेशान करने वाले हैं।
और यह एक स्नेह सदैव के लिए परिपक्व बनाने वाला है।
अनेक तरफ से तोडना और एक तरफ जोड़ना है। ..."