आदि पिता प्रजापिता ब्रह्माबाबा सृष्टि के सृजनहार बारम्बार मेरा तुझे प्रमाण... |
"... आज सभी बच्चों को सूक्ष्म वतन का समाचार सुनाते हैं। आप सबकी रूचि होती है ना कि सूक्ष्म वतन की सैर करें अर्थात् एक बार वतन को जरूर देखें? पता है कि यह इच्छा व संकल्प क्यों होता है? क्योंकि बाप-दादा, सूक्ष्म वतन वासी बन, पार्ट बजाते हैं इसलिए संकल्प आता है कि हम भी एक बार बाप-दादा के साथ यह अनुभव करें।
इसलिए बाप-दादा ही अपना अनुभव सुना देते हैं। यह तो मालूम है ना कि सबसे मुख्य अनुभव करने व सुनने का दृश्य किस समय होता है?
विशेष बच्चों के प्रति अमृतवेले का समय ही निश्चित है।
फिर तो, विश्व की अन्य आत्माओं के प्रति, यथा-शक्ति भावना का फल व कोई भी रजोप्रधान कर्म, अल्पकाल के लिए जिन आत्माओं द्वारा होते रहते हैं उनको भी उनके कर्मों के अनुसार अल्पकाल के लिये फल देने के प्रति, साथ-साथ सच्चे भक्तों की पुकार सुनने और भक्तों की भिन्न-भिन्न प्रकार की भावना के अनुसार साक्षात्कार कराने और अब तक भी चारों ओर कल्प पहले वाले छुपे हुए ब्राह्मण आत्माओं को सन्देश पहुंचाने के लिए, बच्चों को निमित्त बनाने के कार्य में, पुरानी दुनिया को समाप्त कराने-अर्थ निमित्त बने हुए, वैज्ञानिकों की देख-रेख करने, ज्ञानी तू आत्मा, स्नेही व सहयोगी बच्चों को, सारे दिन के अन्दर ईश्वरीय सेवा का कार्य करने व मायाजीत बनने में ‘हिम्मते बच्चे, मददे बाप’ के नियम के अनुसार, उनको भी मदद देने के कर्त्तव्य में, ड्रामानुसार निमित्त बने हैं।
अब समझा कि बाप सारे दिन क्या करते हैं? साकार बाप भी अब अव्यक्त होने के कारण क्विक-स्पीड में निराकार बाप के साथी व सहयोगी सदाकाल के लिए बनने का पार्ट बजा सकते हैं।
ब्रह्मा बाबा, अव्यक्त शरीरधारी, शरीर के बन्धन में न होने के कारण, जैसे अब क्विक-स्पीड में बाप-समान साथी बने हैं, वैसे व्यक्त में साथी नहीं बन सकते थे,
क्यों नहीं बन सकते थे? कारण क्या है? जो व्यक्त और अव्यक्त रूप में, अन्तर पड़ जाता है कि व्यक्त शरीर में फिर भी व्यक्त शरीर के प्रति, समय देना पड़ता है और कभी-कभी कर्मभोग के प्रति भी, अपने निमित्त सर्व-शक्तियों को यूज़ करना पड़ता है।
तो व्यक्त शरीर में स्वयं के प्रति, बच्चों के प्रति और विश्व के प्रति इन तीनों में ही, समय देना पड़ता है और व्यक्त शरीरधारी होने के कारण व्यक्त साधनों के आधार पर सर्विस करनी पड़ती है।
लेकिन अव्यक्त रूप में स्वयं के प्रति भी साधनों का आधार नहीं लेना पड़ता।
इस प्रकार एक तो सम्पूर्ण होने के नाते, सम्पूर्णता की तीव्रगति है,
दूसरा स्वयं पर, समय व शक्तियाँ यूज न करने के कारण सेवा में भी तीव्र गति है।
तीसरा विनाशी साधनों का आधार न होने के कारण संकल्प की गति भी तीव्र है।
संकल्प द्वारा कहीं भी पहुंचने और विनाशी शरीर द्वारा कहाँ पहुंचने में, समय और शक्ति का कितना अन्तर पड़ जाता है!
ऐसे ही व्यक्त और अव्यक्त की गति में भी अन्तर है।
साइंस वाले, समय को और अपनी एनर्जी अर्थात् मेहनत को, साधनों के विस्तार को, सूक्ष्म और शार्ट कर रहे हैं।
कम-से-कम एक सेकेण्ड तक पहुंचने का तीव्र पुरूषार्थ कर रहे हैं और सफलता को पा रहे हैं
जैसे विनाश के अर्थ, निमित्त बनी हुई आत्माओं की गति, सूक्ष्म और तीव्र होती जा रही है तो ऐसे ही स्थापना के अर्थ निमित्त बनी हुई आत्माओं की स्थिति और गति भी सूक्ष्म और तीव्र होनी चाहिये ना?
तभी तो दोनों कार्य सम्पन्न होंगे। तो अब व्यक्त शरीर में और अव्यक्त शरीर में अन्तर समझा?
अव्यक्त होना ड्रामा अनुसार किस सेवा के निमित्त बना हुआ है, क्या इस रहस्य को समझा?
ब्रह्मा का पार्ट स्थापना के कार्य में, अन्त तक नूंधा हुआ है।
जब तक, स्थापना का कार्य सम्पन्न नहीं हुआ है, तब तक निमित्त बनी हुई आत्मा (ब्रह्मा) का पार्ट समाप्त नहीं होना है।
वह तब तक दूसरा पार्ट नहीं बजा सकते।
जगत पिता के नये जगत की रचना सम्पन्न करने का पार्ट ड्रामा में नूँधा हुआ है।
मनुष्य-सृष्टि की सर्व-वंशावली रचने का सिर्फ ब्रह्मा के लिए ही गायन है ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर (Great Great Grand Father) इसीलिये गाया हुआ है। सिर्फ स्थिति, स्थान और गति (स्पीड) का परिवर्तन हुआ है, लेकिन पार्ट ब्रह्मा का अभी तक वही है। ..."
Avyakt BaapDada - 30.06.1974 |
OmShanti |