सारे दिन में ऐसे व्यर्थ बोल या मज़ाक के बोल बहुत बोलते हैं,
अच्छे शब्द नहीं बोलेंगे, लेकिन कहेंगे मेरा भाव नहीं था, यह तो मज़ाक में कह दिया।
तो ऐसा मज़ाक क्या ब्राह्मण जीवन में आपके नियमों में है? लिखा हुआ तो नहीं है?
कभी पढ़ा है कि मज़ाक कर सकते हैं!
मज़ाक करो लेकिन ज्ञानयुक्त, योगयुक्त।
बाकी व्यर्थ मज़ाक जिसको आप मज़ाक समझते हो लेकिन दूसरे की स्थिति डगमग हो जाती है, तो वह मज़ाक हुआ या दु:ख देना हुआ?
जो ब्राह्मण यहाँ भी योग में बैठते हैं लेकिन काम चलाऊ, कुछ नींद किया, कुछ योग किया, कुछ व्यर्थ सोचा और कुछ शुभ सोचा।
तो यह काम चलाऊ हुआ ना!
सफेद बत्ती जल गई, काम पूरा हो गया।
ऐसे धारणा में भी काम चलाऊ बहुत होते हैं।
कोई भी सरकमस्टांश आयेगा तो कहेंगे अभी तो ऐसे करके चलाओ, पीछे देखा जायेगा।
तो ऐसों की पूजा काम चलाऊ होती है।
देखो लाखों सालिग्राम बनाते हैं लेकिन क्या होता है?
विधिपूर्वक पूजा होती है?
काम चलाऊ होती है ना!
पाइप से नहला दिया और तिलक भी कटोरी भरके पण्डित लोग ऐसे-ऐसे कर देते हैं। (छिड़क देते हैं) तिलक लग गया। तो ये क्या हुआ?
काम चलाऊ हुआ ना।
पूज्य सभी बनते हो लेकिन कैसे पूज्य बनते हो वो नम्बरवार है।
किसकी हर कर्म की पूजा होती है।
दातुन (दतून) का भी दर्शन होता है, दातुन हो रहा है।
मथुरा में जाओ तो दातुन का भी दर्शन कराते हैं, इस समय दातुन का समय है।
तो काम चलाऊ नहीं बनना।
नहीं तो पूजा भी ऐसी होगी।
बापदादा विशेष इस पर अटेन्शन दिला रहे हैं कि व्यर्थ बोल जो किसको भी अच्छे नहीं लगते, आपको अच्छा लगता है लेकिन दूसरे को अच्छा नहीं लगता, तो सदा के लिए उस शब्द को समाप्त कर दो।
यह अपशब्द, व्यर्थ शब्द, ज़ोर से बोलना... ये ज़ोर से बोलना भी वास्तव में अनेकों को डिस्टर्ब करना है।
ये नहीं बोलो - मेरा तो आवाज़ ही बड़ा है।
मायाजीत बन सकते हो और आवाज़ जीत नहीं बन सकते!
तो ऐसे किसी को भी डिस्टर्ब करने वाले बोल और व्यर्थ बोल नहीं बोलो।
बात होती है दो शब्दों की लेकिन आधा घण्टा उस बात को बोलते रहेंगे, बोलते रहेंगे।
तो ये जो लम्बा बोल बोलते हो, जो चार शब्दों में काम हो सकता है वो 12-15 शब्द में नहीं बोलो।
आप लोगों का स्लोगन है
“कम बोलो, धीरे बोलो''।
"...अपनी वाचा भी ऐसी रखनी है जो मुख से कोई ऐसा बोल न निकले । वाणी में भी कन्ट्रोल, मन्सा में भी कन्ट्रोल । वाचा ऐसी रखनी है जैसे साकार में बापदादा की थी ।..."
आज का पाठ दे रहे हैं - व्यर्थ बोल या किसी को भी डिस्टर्ब करने वाले बोल से अपने को मुक्त करो।
व्यर्थ बोल मुक्त। फिर देखो अव्यक्त फरिश्ता बनने में आपको बहुत मदद मिलेगी।
युक्तियुक्त बोल बोलो और काम का बोलो, व्यर्थ नहीं बोलो।
तो जब बोलना शुरू करते हो तो एक घण्टे में चेक करो कि कितने बोल व्यर्थ हुए और कितने सत वचन हुए?
आपको अपने बोल की वैल्यु का पता नहीं, तो बोल की वैल्यु समझो।
अपशब्द नहीं बोलो, शुभ शब्द बोलो
अच्छा, सभी मुक्त बनेंगे ना?