कहानी: "रूहानी सफ़र: एक नई दुनिया की ओर"

संगम युग का वह अनोखा समय था, जब आत्माएँ एक अद्भुत परिवर्तन की ओर बढ़ रही थीं। दुनिया भर में अज्ञानता और दुख का अंधकार छाया हुआ था। इसी अंधेरे में एक पुकार गूँजती थी—परमपिता शिव की, जो आत्माओं से कह रहे थे, “यह समय अपने रूहानी सफ़र की ओर बढ़ने का है। अपनी सच्ची पहचान को जानो और उस दिव्य स्थिति को प्राप्त करो, जहाँ से संसार को नई दिशा दी जा सके।”

आरंभिक जागृति

मिश्रिख तीर्थ के एक छोटे से गाँव में रहने वाले ब्र.कु. निर्विकार श्रीवास्तव ने भी यह पुकार सुनी। वह एक साधारण व्यक्ति था, लेकिन उसके भीतर कुछ असाधारण करने की चाह हमेशा रही। जीवन की कठिन परिस्थितियाँ उसे झुका नहीं सकीं; बल्कि उसने हर कठिनाई से कुछ न कुछ सीखा। जब उसने शिव बाबा के ज्ञान और रूहानी यात्रा के बारे में सुना, तो उसका हृदय प्रेरणा से भर गया। उसने ठान लिया कि वह भी उस मार्ग पर चलेगा, जो आत्मा को अपने वास्तविक स्वरूप तक ले जाता है।

उसने स्वयं से कहा,
"हम आत्मा हैं, यह यात्रा रूह की है। हमें मंज़िल तक पहुँचना है।"
उसका जीवन अब साधना, सेवा, और सत्य के मार्ग पर चल पड़ा।

साधना की कठिन राह

यह मार्ग आसान नहीं था। माया बार-बार अपने जाल बिछाती। पाँच विकार—काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार, उसकी साधना में बाधा डालते। कई बार उसका मन विचलित हो उठता, लेकिन हर बार वह दृढ़ निश्चय के साथ स्वयं को संभालता। उसकी आत्मा की पुकार यही होती,
"हर बाधा के पार हमें वह ऊँचाई प्राप्त करनी है, जहाँ आत्मा अपनी पूर्ण स्थिति में चमके।"

परमपिता का आशीर्वाद

एक दिन गहन साधना के क्षणों में निर्विकार को ऐसा अनुभव हुआ, जैसे वह स्वयं प्रकाश में विलीन हो गया हो। शिव बाबा की उपस्थिति का अनुभव करते हुए उसने एक दिव्य संदेश सुना, “बेटा, यह यात्रा तुम्हें स्वर्णिम भविष्य की ओर ले जाएगी। अपने पुरुषार्थ को तेज़ करो और अन्य आत्माओं को भी इस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करो।”

उस दिन से निर्विकार की साधना में एक नई ऊर्जा आ गई। वह सत्संग में जाता, आत्माओं को प्रेरणा देता और बताता कि यह यात्रा केवल शरीर से परे जाने की नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धता को प्राप्त करने की है।

नई दुनिया का निर्माण

समय बीतता गया, और संगम युग का वह समय करीब आने लगा, जब आत्माओं को उनके पुरुषार्थ के अनुसार नई दुनिया में स्थान मिलने वाला था। जो आत्माएँ सच्चे मन से साधना कर रही थीं, वे अब एक नई चेतना की ओर बढ़ रहीं थीं। निर्विकार ने भी अब अपने भीतर वह दिव्य स्थिति प्राप्त कर ली थी, जहाँ से वह आत्माओं को नई राह दिखाने में सक्षम हो गया।

अनंत उड़ान

एक दिन उसने अपने चारों ओर देखा। उसकी आत्मा शांत थी, जैसे किसी ने उसे स्वर्णिम भविष्य की झलक दिखा दी हो। अब वह तैयार था उस रूहानी सफ़र को पूरी करने के लिए। उसने अपने कर्मों के माध्यम से फर्श की दुनिया में अपना कर्तव्य पूरा किया और अर्श की ओर उड़ चला।

उसके मन में बस एक ही गान था,
"यह सफ़र रूहानी है, मंज़िल वह ऊँचाई है, जहाँ आत्मा अपनी पूर्ण स्थिति में पहुँच कर चमकती है।"


अंत