17-08-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन
"मीठे बच्चे - याद के साथ-साथ पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान देना है,
याद से पावन बनेंगे
और पढ़ाई से विश्व का मलिक बनेंगे''
प्रश्नः-
स्कॉलरशिप लेने के लिए कौन-सा पुरूषार्थ ज़रूरी है?
उत्तर:-
स्कॉलरशिप लेनी है तो...
सब चीज़ों से ममत्व निकाल दो।
धन, बच्चे, घर आदि कुछ भी याद न आये।
शिवबाबा ही याद हो,
पूरा स्वाहा,
तब ऊंच पद की प्राप्ति होगी।
बुद्धि में यह नशा रहना चाहिए कि...
हम कितना बड़ा इम्तहान पास करते हैं।
हमारी कितनी बड़ी पढ़ाई है
और पढ़ाने वाला स्वयं दु:ख हर्ता सुख कर्ता बाप है,
वह मोस्ट बिलवेड बाबा हमें पढ़ा रहे हैं।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं...
पढ़ाते हैं तो बच्चों को कितना फखुर होना चाहिए।
पढ़ती तो आत्मा है ना।
आत्मा संस्कार ले जाती है,
शरीर तो राख हो जाता है।
तो बाप बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं...
आत्मायें समझती हैं हम पढ़ते हैं,
योग सीखते हैं।
बाप ने कहा है याद में रहो
तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे।
पतित-पावन तो एक ही बाप है।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को पतित-पावन थोड़ेही कहेंगे।
लक्ष्मी-नारायण को कहेंगे?
नहीं।
पतित-पावन तो है ही एक।
सारी दुनिया को पावन बनाने वाला है ही एक।
वह तुम्हारा बाप है।
बच्चे जानते हैं मोस्ट बिलवेड बेहद का बाप है...
जिसको भक्ति मार्ग में याद करते आये हैं कि
बाबा आओ, आकर हमारे दु:ख हरो, सुख दो।
सृष्टि तो वही है...
इस चक्र में तो सबको आना ही है।
84 का चक्र भी बाप ने समझाया है।
आत्मा ही संस्कार ले जाती है...
आत्मा जानती है इस मृत्युलोक से अमरलोक में
अथवा नर्क से स्वर्ग में जाने के लिए हम पढ़ते हैं।
बाप आते हैं तुम बच्चों को फिर से विश्व का मालिक बनाने...
तुम कितना बड़ा इम्तहान पास कर रहे हो।
बड़े ते बड़ा बाप पढ़ा रहे हैं।
जिस समय बाबा बैठ पढ़ाते हैं तो नशा चढ़ता है।
बाबा बहुत जोर शोर से नशा चढ़ाते हैं।
बाप आते ही हैं अमरलोक के लिए लायक बनाने।
यहाँ तो कोई लायक है नहीं।
तुम भी जानते हो हम लायक देवताओं के आगे माथा टेकते आये हैं।
अब फिर बाबा हमें सारे विश्व का मालिक बनाते हैं।
तो वह नशा चढ़ा रहना चाहिए।
ऐसे नहीं, यहाँ नशा चढ़े फिर बाहर जाने से नशा ही कम हो जाये।
बच्चे कहते हैं - बाबा, हम आपको भूल जाते हैं...
आप पतित दुनिया में,
पतित शरीर में आकर हमको पढ़ाते हैं,
विश्व का मालिक बनाते हैं।
तुम बच्चे विश्व के बादशाही की बहुत बड़ी लॉटरी लेते हो...
परन्तु तुम हो गुप्त।
तो ऐसी ऊंच पढ़ाई पर अच्छी रीति ध्यान देना चाहिए।
सिर्फ याद की यात्रा से काम नहीं चलेगा, पढ़ाई भी जरूरी है।
84 का चक्र कैसे लगाते हैं,
यह भी बुद्धि में फिरना चाहिए।
तुम समझते हो बाबा बड़े जोर से नशा चढ़ाते हैं।
तुम्हारे जितना बड़ा आदमी कोई बन न सकें...
तुम मनुष्य से देवता बन जाते हो।
विश्व का मालिक तुम्हारे सिवाए और कोई बना है क्या?
क्रिश्चियन लोगों ने कोशिश की वर्ल्ड के मालिक बनें,
परन्तु लॉ नहीं कहता जो तुम्हारे सिवाए विश्व का मालिक कोई बनें।
बनाने वाला बाप ही चाहिए और कोई की ताकत नहीं।
तुम बच्चों का बहुत अच्छा दिमाग होना चाहिए।
ज्ञान अमृत का डोज़ चढ़ाते रहते हैं।
सिर्फ इस पर नहीं ठहरना है कि हम बाबा को बहुत याद करते हैं।
याद से ही पावन हो जायेंगे परन्तु पद भी पाना है।
पावन तो मोचरा खाकर भी सबको होना ही है।
परन्तु बाप आये हैं विश्व का मालिक बनाने,
जायेंगे तो सब शान्तिधाम में।
जाकर सबको सिर्फ बैठ जाना है क्या?
वह तो कोई काम के न रहे।
काम के वह हैं जो फिर आकर स्वर्ग में राज्य करते हैं।
तुम यहाँ आये ही हो स्वर्ग की बादशाही लेने...
तुमको बादशाही थी, फिर माया ने छीन ली।
अब फिर माया रावण पर जीत पानी है,
विश्व का मालिक तुमको ही बनना है।
अभी तुमको रावण पर जीत पहनाते हैं
क्योंकि तुम रावण राज्य में विकारी बन गये हो
इसलिए मनुष्य की बन्दर से भेंट की जाती है।
बन्दर जास्ती विकारी होते हैं।
देवतायें तो सम्पूर्ण निर्विकारी हैं।
यह देवतायें ही 84 जन्मों के बाद पतित बने हैं।
बाप कहते हैं कि तुम्हारे हाथ में जो धन, बच्चे, शरीर आदि है, सबसे ममत्व निकालना है...
साहूकार तो धन के पिछाड़ी मरते हैं।
मुट्ठी में पैसे हैं, वह छूटते नहीं।
रावण की जेल में पड़े रहेंगे।
कोटों में कोई निकलेंगे जो सब चीज़ों से ममत्व निकाल बन्दर से देवता बन जायेंगे।
जो भी साहूकार लोग बड़े-बड़े लखपति हैं,
मुट्ठी में पैसे पकड़े हुए हैं, उनके पिछाड़ी प्राण हैं।
सारा दिन महल, माड़ियां, बच्चे आदि ही याद आते रहेंगे।
उनकी याद में ही मर जायेंगे।
बाप कहते हैं कि पिछाड़ी में और कोई चीज़ याद न आये।
सिर्फ मामेकम् याद करो तो जन्म जन्मान्तर के पाप नाश हो जायें।
साहूकार के पैसे तो सब मिट्टी में मिल जाने हैं...
क्योंकि पाप के पैसे हैं ना।
काम में नहीं आते।
बाप कहते हैं हम गरीब निवाज़,
गरीबों को साहूकार,
साहूकारों को गरीब बना देंगे।
यह दुनिया बदलनी होती है ना।
कितना पैसे का नशा रहता है ...
हमको इतना धन माल है,
एरोप्लेन हैं, मोटरे हैं, महल हैं.......!
फिर कितना भी माथा मारें कि बाप को याद करें,
परन्तु याद ठहरेगी नहीं।
लॉ नहीं कहता है, कोटो में कोई ही निकलेंगे।
बाकी तो पैसा ही याद करते रहेंगे।
बाप कहते हैं देह सहित जो कुछ देखते हो उन सबको भूल जाओ...
इसमें ही अटक पड़े तो ऊंच पद पा नहीं सकोगे।
बाबा पुरूषार्थ तो करायेंगे ना।
तुम यहाँ आये हो नर से नारायण बनने,
तो इसमें योग भी पूरा चाहिए।
कोई भी चीज़, न धन, न बच्चे आदि कुछ भी याद न आये,
सिवाए एक शिवबाबा के,
तब तुम ऊंच ते ऊंच स्कॉलरशिप ले सकते हो,
ऊंच प्राइज़ पा सकते हो।
वो लोग विश्व में शान्ति की राय देते हैं तो पाई-पैसे का मैडल मिल जाता है...
उसमें ही खुश हो जाते हैं।
अभी तुमको क्या प्राइज़ मिलती है?
तुम विश्व के मालिक बनते हो।
ऐसे नहीं, हम 5-6 घण्टा याद में रहते हैं तो बस यह लक्ष्मी-नारायण बन जायेंगे।
नहीं, बड़ी मेहनत करनी है।
एक शिवबाबा की ही याद रहे और कुछ भी पिछाड़ी में याद न आये।
तुम बहुत-बहुत बड़े देवता बन रहे हो।
बाप ने समझाया है तुम ही पूज्य थे फिर माया ने पुजारी पतित बना दिया है।
तुमको लोग कहते हैं तुम ब्रह्मा को देवता मानते हो या भगवान् मानते हो? ...
बोलो, हम तो कहते नहीं हैं कि ब्रह्मा भगवान् है।
तुम आकर समझो।
तुम्हारे पास अच्छे ते अच्छे चित्र हैं...
त्रिमूर्ति, गोला और झाड़ का चित्र सबसे नम्बरवन है।
शुरूआत के यही दो चित्र हैं, यही तुम्हारे बहुत काम में आने के हैं।
लक्ष्मी-नारायण का चित्र तुम विलायत में ले जाओ,
उनसे तो ज्ञान उठा नहीं सकेंगे।
सबसे मुख्य चित्र है - त्रिमूर्ति, गोला और झाड़ का।
इसमें दिखाया गया है - कौन-कौन कब आते हैं,
आदि सनातन देवी-देवता धर्म कब खत्म होता है,
फिर एक धर्म की स्थापना कौन करते हैं?
और सब धर्म खलास हो जाते हैं।
सबसे ऊपर में है शिवबाबा फिर
ब्रह्मा सो विष्णु,
विष्णु सो ब्रह्मा।
यह समझानी है ना।
उसके लिए ही चित्र बनाये हैं,
बाकी सूक्ष्मवतन तो सिर्फ साक्षात्कार के लिए माना जाता है...
बाप रचयिता है,
पहले सूक्ष्मवतन का फिर स्थूल वतन का।
ब्रह्मा देवता थोड़ेही है,
विष्णु देवता है।
तुमको साक्षात्कार होता है समझाने के लिए।
प्रजापिता ब्रह्मा तो यहाँ है ना।
ब्रह्मा के साथ हैं ब्राह्मण सो फिर देवता बनने वाले हैं।
देवतायें तो सजे हुए रहते हैं,
इनको फरिश्ता कहा जाता है।
फरिश्ता बनकर फिर आकर देवता पद पायेंगे।
गर्भ महल में जन्म लेंगे।
दुनिया बदलती रहती है।
आगे चलकर तुम सब देखते रहेंगे।
अच्छे मजबूत हो जायेंगे।
बाकी थोड़ा समय है।
तुम आये हो नर से नारायण बनने के लिए...
फेल होते हैं तो प्रजा बन जाते हैं।
सन्यासी आदि यह बातें समझा न सकें।
राम की तो आबरू ही चट कर दी है।
जबकि गाते हैं राम राजा.......।
फिर वहाँ ऐसे अधर्म की बात हो कैसे सकती।
यह सब भक्ति मार्ग की बातें है
इसलिए गाया जाता है झूठी माया, झूठी काया.......
माया 5 विकारों को कहा जाता है,
न कि धन को।
धन को सम्पत्ति कहा जाता है।
मनुष्यों को यह भी पता नहीं है कि माया किसको कहा जाता है।
यह बाप मीठे-मीठे बच्चों को समझाते हैं।
बाप कहते हैं मैं परम आत्मा तुमको अपने से भी ऊंच विश्व का मालिक बनाता हूँ...
तुम पढ़ रहे हो।
कितनी ऊंची पढ़ाई है।
मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार।
देवतायें होते हैं सतयुग में,
मनुष्य होते हैं कलियुग में।
तुम अभी संगम पर बैठ मनुष्य से देवता बन रहे हो।
कितना सहज बताते हैं।
पवित्र जरूर बनना है, तो प्रजा भी बहुत बनानी है...
कल्प-कल्प तुम इतनी प्रजा बनाते हो, जितनी सतयुग में थी।
सतयुग था, अब नहीं है फिर होगा।
यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक होंगे।
चित्र तो हैं ना।
बाप कहते हैं - यह ज्ञान तुमको अभी देता हूँ...
फिर प्राय: लोप हो जाता फिर द्वापर से भक्ति शुरू होती है,
रावण राज्य आ जाता है।
तुम विलायत में भी यह समझा सकते हो कि सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है...
लक्ष्मी-नारायण के चित्र से और धर्म वालों का तो कनेक्शन है नहीं
इसलिए बाबा कहते हैं यह त्रिमूर्ति और झाड़ हैं मुख्य चित्र।
यह बहुत फर्स्ट क्लास हैं।
झाड़ और गोले से समझ जायेंगे यह-यह धर्म कब आयेंगे,
क्राइस्ट कब आयेगा।
आधा में हैं वह सब धर्म,
बाकी आधा में हो तुम सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी।
5 हजार वर्ष का खेल है।
ज्ञान, भक्ति, वैराग्य...
ज्ञान है दिन, भक्ति है रात।
फिर बेहद का वैराग्य होता है।
तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया खलास हो जानी है।
तो इनको भूल जाना है।
पतित-पावन कौन है, यह भी सिद्ध करना है...
दिन-रात गाते रहते हैं - पतित-पावन सीता राम।
गांधी भी गीता पढ़ते थे,
वह भी ऐसे गाते थे - हे पतित-पावन, सीताओं के राम क्योंकि तुम सब सीतायें ब्राइड्स हो ना।
बाप है ब्राइडग्रूम।
फिर कह देते रघुपति राघव राजा राम।
अब वह त्रेता का राजा है।
सारी बात ही मुंझा दी है।
सब ताली बजाते गाते रहते हैं।
हम भी गाते थे, एक वर्ष खादी का कपड़ा आदि पहना।
बाप बैठ समझाते हैं कि यह भी गांधी का फालोअर बना था, इसने तो सब कुछ अनुभव किया है।
फर्स्ट सो लास्ट बन गया है।
अब फिर फर्स्ट बनेगा।
तुमको कहते हैं जहाँ-तहाँ ब्रह्मा को बिठाया है...
यह भी समझाना चाहिए - अरे, झाड़ के ऊपर खड़ा है।
कितना क्लीयर है, यह तो पतित दुनिया के अन्त में खड़ा है।
श्रीकृष्ण को भी ऊपर में दिखाया है।
दो बिल्ले लड़ते हैं, मक्खन श्रीकृष्ण खा लेते हैं।
माताओं को साक्षात्कार होता है,
वह समझती हैं उनके मुख में माखन है अथवा चन्द्रमा है।
वास्तव में है विश्व की बादशाही मुख में।
दो बिल्ले आपस में लड़ते हैं, माखन तुम देवताओं को मिल जाता है।
यह है विश्व की बादशाही रूपी माखन।
बाम्ब्स आदि बनाने की भी बहुत इप्रूवमेंट कर रहे हैं...
ऐसी चीज़ डालते हैं जो फट से मनुष्य मर जायें।
ऐसा न हो चिल्लाते रहें।
जैसे हिरोशिमा का है, अभी तक मरीज पड़े हैं।
तो बाप समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चों,
आधाकल्प तक तुम सुखी रहते हो।
कोई भी प्रकार की लड़ाई आदि का नाम नहीं रहता,
यह सब पीछे शुरू हुई हैं।
यह सब नहीं थे, न रहेंगे।
चक्र रिपीट होता है ना।
बाप सब अच्छी रीति समझाते हैं...
जो बच्चों को पूरी रीति धारण करना है
और ईश्वरीय सेवा में लग जाना है।
यह तो छी-छी दुनिया है...
इनको विषय वैतरणी नदी कहा जाता है।
तो बच्चों को बाप बैठ समझाते हैं -
तुम अपने को इतना ऊंच नहीं समझते हो,
जितना बाप तुमको ऊंच समझते हैं।
तुम बच्चों को बहुत नशा रहना चाहिए क्योंकि तुम बहुत ऊंच कुल के हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने दिमाग को अच्छा बनाने के लिए रोज़ ज्ञान अमृत का डोज़ चढ़ाना है।
याद के साथ-साथ पढ़ाई पर भी पूरा-पूरा ध्यान अवश्य देना है
क्योंकि पढ़ाई से ही ऊंच पद मिलता है।
2) हम ऊंचे ते ऊंचे कुल के हैं,
स्वयं भगवान् हमें पढ़ाता है,
इसी नशे में रहना है।
ज्ञान धारण कर ईश्वरीय सेवा में लग जाना है।
वरदान:-
सेवा के साथ-साथ
बेहद के वैराग्य वृत्ति की साधना को इमर्ज करने वाले
सफलता मूर्त भव
सेवा से खुशी वा शक्ति मिलती है
लेकिन सेवा में ही वैराग्य वृत्ति भी खत्म हो जाती है
इसलिए अपने अन्दर वैराग्य वृत्ति को जगाओ।
जैसे सेवा के प्लैन को प्रैक्टिकल में इमर्ज करते हो
तब सफलता मिलती है।
ऐसे अभी बेहद के वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो।
चाहे कितने भी साधन प्राप्त हों लेकिन बेहद के वैराग्य वृत्ति की साधना मर्ज नहीं हो।
साधन और साधना का बैलेन्स हो तब सफलता मूर्त बनेंगे।
स्लोगन:-
असम्भव को सम्भव बनाना ही
परमात्म प्यार की निशानी है।