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24-08-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन
"मीठे बच्चे - बाप, टीचर और सतगुरू यह तीन अक्षर याद करो तो
अनेक शिफ्तें (विशेषतायें) आ जायेंगी''
प्रश्नः-
किन बच्चों के हर कदम में पद्मों की कमाई जमा होती रहती है?
उत्तर:-
जो अपना हर कदम सर्विस में बढ़ाते रहते हैं,
वही पद्मों की कमाई जमा करते हैं।
अगर बाबा की सर्विस में कदम नहीं उठायेंगे तो पद्म कैसे पायेंगे।
सर्विस ही कदम में पद्म देती है, इसी से पद्मापद्मपति बनते हो।
प्रश्नः-
किस राज़ को जानने के कारण तुम बच्चे सभी के कल्याणकारी बनते हो?
उत्तर:-
बाबा ने हम बच्चों को यह राज़ समझाया है कि सभी की यह एक ही हट्टी है,
यहाँ सबको आना ही है।
यह बहुत गुह्य राज़ है।
इस राज़ को जानने वाले बच्चे ही सबके कल्याणकारी बनते हैं।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप के रूहानी बच्चे यह तो हर एक जानते होंगे कि बाबा हमारा बाप भी है, टीचर भी है और सतगुरू भी है...
बच्चे जानते हैं, जानते हुए भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं।
यहाँ जो बैठे हैं, वह जानते तो होंगे ना परन्तु भूल जाते हैं।
दुनिया वाले तो बिल्कुल नहीं जानते।
बाप कहते हैं सिर्फ यह तीन अक्षर भी याद रहे तो बहुत सर्विस कर सकते हैं।
प्रदर्शनी अथवा म्युजियम में तुम्हारे पास बहुत आते हैं, घर में भी मित्र-सम्बन्धी आदि बहुत आते हैं।
कोई भी आये तो समझाना चाहिए कि जिसको भगवान कहा जाता है वह बाबा भी है, टीचर भी है और सतगुरू भी है।
यह याद हो तो भी ठीक, और कोई की याद न आये।
और कोई को तो ऐसे कह न सकें।
तुम बच्चे जानते हो हमारा बाबा बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है।
कितना सहज है।
परन्तु कोई-कोई की तो ऐसी पत्थरबुद्धि है जो यह 3 अक्षर भी बुद्धि में धारण नहीं कर सकते, भूल जाते हैं।
बाबा हमको मनुष्य से देवता बनाते हैं क्योंकि बेहद का बाप है ना...
बेहद का बाप है तो जरूर बेहद का वर्सा ही देंगे।
बेहद का वर्सा है देवताओं के पास।
इतना सिर्फ याद करें तो घर में भी बहुत सर्विस कर सकते हैं।
परन्तु यह भी भूल जाने के कारण किसको बता नहीं सकते।
घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं क्योंकि सारे कल्प के भूले हुए हैं। अब बाप बैठ समझाते हैं।
वास्तव में यह ज्ञान बहुत सिम्पल है, बाकी याद की यात्रा से सम्पूर्ण बनना, इसमें मेहनत है।
बाबा हमारा बाप भी है, शिक्षा भी देते हैं, वर्सा भी देते हैं, पवित्र भी बनाते हैं क्योंकि पतित-पावन बाप है, सिर्फ कहते हैं कि सबको यही कहो कि मुझे याद करो।
बाबा की सर्विस में ज़रा भी कदम नहीं उठा तो वह फिर पद्म कैसे पायेंगे!
पद्मपति तो सर्विस से ही बन सकते हैं।
सर्विस ही कदम में पद्म ले आती है।
सर्विस के लिए बच्चे कहाँ-कहाँ से भागते रहते हैं।
कितने कदम उठाये जाते हैं।
पद्म तो उन्हों को मिलेगा ना।
यह भी बुद्धि कहती है पहले शूद्र को ब्राह्मण बनाना पड़े।
ब्राह्मण ही नहीं बनायेंगे तो क्या बनेंगे!
सर्विस तो चाहिए ना।
बच्चों को सर्विस का समाचार भी इसलिए सुनाया जाता है कि टैम्पटेशन हो।
सर्विस से ही पद्म मिले हैं।
सिर्फ एक बात ही सुनाओ जो दुनिया में और कोई नहीं जानते।
बेहद का बाप, बाप है।
परन्तु बाप का कोई को पता नहीं है।
सिर्फ ऐसे ही गॉड फादर कहते रहते हैं।
वह टीचर है - यह तो कोई की बुद्धि में नहीं होगा।
स्टूडेन्ट की बुद्धि में हमेशा टीचर याद रहता है, जो पूरी रीति नहीं पढ़ते हैं उनको अनपढ़ा कहा जाता है।
बाबा कहते हैं हर्जा नहीं है।
तुम कुछ भी न पढ़े हुए यह तो समझ सकते हो ना कि हम भाई-भाई हैं।
हमारा बाप बेहद का है।
बाप आते ही हैं एक धर्म की स्थापना करने, ब्रह्मा द्वारा करते हैं...
परन्तु लोग कुछ भी समझते नहीं हैं।
ईश्वर अगर कभी न आया हुआ होता तो उनको बुलाते ही क्यों कि हे लिबरेटर आओ, हे पतित-पावन आओ।
जबकि पतित-पावन को याद करते हैं फिर शास्त्र क्यों पढ़ते?
तीर्थों पर क्यों जाते?
वहाँ बैठा है क्या?
कोई जानते ही नहीं जबकि पतित-पावन ईश्वर है तो गंगा स्नान आदि से कोई पावन हो कैसे सकते।
स्वर्ग में कोई जा कैसे सकते, जन्म तो यहाँ ही लेना है।
नई दुनिया और पुरानी दुनिया में फर्क तो है ना...
इसको सतयुग थोड़ेही कहेंगे।
अब तो कलियुग है ना।
मनुष्यों की तो बिल्कुल पत्थरबुद्धि है।
जहाँ थोड़ा सुख देखते हैं तो स्वर्ग समझ लेते हैं।
यह बाप ही समझाते हैं, बाप कोई गाली नहीं देते हैं।
बाप शिक्षा भी देते हैं, सबको सद्गति भी देते हैं।
भगवान बाप है तो बाप से जरूर कुछ मिलना चाहिए...
बाबा अक्षर भी ऐसा है जो उनसे वर्से की खुशबू जरूर आती है।
और भल कितना भी काका, मामा आदि हैं परन्तु उनसे वर्से की खुशबू नहीं आती।
अन्तर्मुख हो विचार करना है कि बाप ठीक कहते हैं।
गुरू के पास कोई जायदाद होती नहीं।
वह तो खुद ही घरबार छोड़ते हैं।
तुमने सन्यास किया है विकारों का।
वह तो कह देते हैं हमने घरबार छोड़ा, तुम कहते हो हम सारी दुनिया के विकारों का सन्यास करते हैं।
नई दुनिया में जाना कितना सहज है...
हम सन्यास करते हैं सारी पुरानी सृष्टि, तमोप्रधान दुनिया का।
सतयुग है नई दुनिया।
यह भी जानते हो नई दुनिया थी जरूर।
सब गाते हैं।
स्वर्ग कहा ही जाता है नई दुनिया को।
परन्तु वो लोग सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं, समझ कुछ नहीं।
तो बाप बच्चों को कहते हैं सिर्फ यह विचार करो - बाबा, हमारा बाप भी है, शिक्षक और सतगुरू भी है...
सबको ले जायेंगे।
अक्षर ही दो हैं - मनमनाभव, इसमें सब आ जाता है, परन्तु यह भी भूल जाते हैं।
पता नहीं बुद्धि में क्या-क्या याद रहता है।
नहीं तो रोज़ लिखकर दो कि इतना समय हम किस अवस्था में बैठे थे?
तुम बैठे हो बाप, टीचर, सतगुरू के सामने तो वही याद आना चाहिए ना।
स्टूडेन्ट को टीचर ही याद आयेगा ना परन्तु यहाँ माया है ना।
एकदम माथा ही मूड देती है।
सारा राज्य-भाग्य ही ले लेती है।
तुमको पता नहीं पड़ता है।
आये तो थे वर्सा लेने परन्तु मिलता कुछ भी नहीं।
ऐसे ही कहेंगे ना।
भल स्वर्ग में तो चलेंगे, परन्तु वह कोई बड़ी बात थोड़ेही है...
यहाँ आये भल परन्तु पढ़े नहीं, फिर स्वर्ग में तो जायेंगे ना।
यहाँ तो बैठे है ना।
समझते हैं स्वर्ग में जाना है, फिर क्या भी बनें।
वह तो पढ़ाई नहीं हुई ना।
थोड़ा भी सुना तो उसका फल मिल जाता है।
पढ़ाई से तो बड़ी स्कॉलरशिप मिलती है।
बाप से ऊंच ते ऊंच पद पाना है तो पुरूषार्थ करना पड़े।
पढ़ाई याद होगी तो 84 का चक्र भी याद आ जायेगा।
यहाँ बैठने से सब याद आना चाहिए।
परन्तु यह भी याद आता नहीं है।
अगर याद आये तो किसको सुनायें भी।
चित्र तो सबके पास हैं।
शिव के चित्र पर तुम कोई को सुनायेंगे तो कभी गुस्सा नहीं करेंगे...
बोलो, आओ तो हम आपको बतायें कि यह शिव बेहद का बाप है ना।
इनके साथ आपका क्या सम्बन्ध है?
ऐसे फालतू चित्र तो नहीं होगा।
शिव के लिए जरूर कहेंगे यह भगवान है, भगवान तो निराकार ही होता है।
उनको बाप कहा जाता है।
वह शिक्षा भी देते हैं...
तुम्हारी आत्मा शिक्षा लेती है।
आत्मा ही सब कुछ करती है।
टीचर भी आत्मा बनती है।
बाप भी इस रथ पर आकर पढ़ाते हैं।
सतयुग की स्थापना करते हैं।
वहाँ कलियुग का नाम निशान ही नहीं।
मनुष्य कहाँ से आयेंगे।
सर्विसएबुल बच्चों को सारा दिन ख्याल चलते रहते हैं।
सर्विस नहीं करते तो समझा जाता है बुद्धि ही नहीं चलती।
जैसे बुद्धू बैठे हैं।
बाप को समझ नहीं सकते...
पतित-पावन बाप को याद करने से ही वर्सा मिलेगा।
याद करते-करते मरेंगे तो बाप की सब मिलकियत मिलेगी।
बेहद के बाप की मिलकियत है स्वर्ग।
बच्चों के पास बैज भी है, घर में मित्र-सम्बन्धी आदि तो बहुत आते हैं।
कोई मरता है तो भी बहुत आते हैं।
उन्हों की भी तुम बहुत अच्छी सर्विस कर सकते हो।
शिवबाबा का चित्र तो बहुत अच्छा है।
भल बड़ा ही रख दो, इसमें कोई कुछ कहेंगे नहीं।
ऐसे नहीं कहेंगे कि यह ब्रह्मा है।
यह है गुप्त।
तुम गुप्त भी समझा सकते हो।
सिर्फ शिव का चित्र रखो और सब चित्र उठा दो।
यह शिवबाबा बाप, टीचर, सतगुरू है।
यह आते हैं नई दुनिया की स्थापना करने और संगम पर ही आते हैं।
यह ज्ञान तो बुद्धि में है ना।
बोलो, शिवबाबा को याद करो और किसी को याद नहीं करो।
शिवबाबा पतित-पावन है, वह कहते हैं मुझे याद करो तो तुम मेरे साथ आकर मिलेंगे।
तुम गुप्त सर्विस कर सकते हो।
यह लक्ष्मी-नारायण इस नॉलेज से ही बने हैं।
कहेंगे शिवबाबा निराकार है, वह कैसे आते हैं?
अरे, तुम्हारी आत्मा भी तो निराकार है, वह कैसे आती है?
वह भी ऊपर से आती है ना, पार्ट बजाने।
यह भी बाप आकर समझाते हैं।
बैल पर तो आ न सके। बोलेगा कैसे? साधारण बूढ़े तन में आते हैं। समझाने की भी बड़ी युक्ति चाहिए। कोई कहते तुम भक्ति नहीं करते हो? बोलो, हम तो सब कुछ करते हैं। युक्ति से चलना होता है। किसको उठाने लिए सोचना चाहिए - क्या युक्ति रचें? कोई को नाराज़ भी नहीं करना है। गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ पवित्र रहना है।
तुम कहते हो - बाबा, सर्विस नहीं मिलती है...
अरे, सर्विस तो बहुत कर सकते हो।
गंगा जी पर जाकर बैठ जाओ।
बोलो, यह पानी में स्नान करने से क्या होगा?
क्या पावन बन जायेंगे?
तुम तो भगवान को कहते हो हे पतित-पावन आओ, आकर पावन बनाओ।
फिर वह पतित-पावन है या यह?
ऐसी नदियां तो ढेर हैं।
बाप पतित-पावन तो एक ही है।
यह पानी की नदियां तो सदैव हैं ही।
बाप को तो पावन बनाने के लिए आना पड़ता है।
आते भी हैं पुरूषोत्तम संगमयुग पर, आकर पावन बनाते हैं।
वहाँ कोई पतित होता नहीं।
नाम ही है स्वर्ग, नई दुनिया।
अभी तो है पुरानी दुनिया।
इस संगमयुग का तुमको ही पता है और कोई समझ न सके।
बाप तो अनेक प्रकार की सर्विस की युक्तियां समझाते हैं।
बुद्धू भी न बनो...
कहते हैं अमरनाथ पर भी कबूतर होते हैं।
पिज़न पैगाम पहुँचाते हैं।
ऐसे नहीं, परमात्मा का पैगाम ऊपर से कबूतर लायेंगे।
यह भी सिखलाते हैं।
उनके पांव में लिखकर बांधेंगे तो ले जायेगा।
उनको सहज रीति दाना मिलता है तो और कहाँ भटकने की दरकार नहीं।
तुमको भी यहाँ दाना मिलता है, तुम्हारी बुद्धि में है विश्व की बादशाही, जो यहाँ से मिलती है।
वह फिर समझते हैं दाना यहाँ मिलता है तो फिर हिर जाते हैं।
तुम तो चैतन्य हो, तुमको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दाना मिलता है।
शास्त्रों में भी है चिड़ियाओं ने सागर को सुखाया...
बहुत कथायें लिख दी हैं।
मनुष्य कहेंगे सत।
फिर कहते हैं सागर से देवता निकले।
रत्नों की थालियां भरकर ले आये।
कहेगे सत।
अब समुद्र से देवता कैसे निकलेंगे?
समुद्र में मनुष्य वा देवता रहते हैं क्या!
कुछ भी समझते नहीं।
जन्म जन्मान्तर झूठ ही पढ़ते-सुनते रहते हैं इसलिए कहते हैं झूठी माया.......।
सच्चे और झूठे संसार में कितना रात-दिन का फर्क है!
झूठ बोलते-बोलते इनसालवेन्ट बन पड़े हैं।
तुम कितना युक्ति से समझाते हो, फिर भी कोटों में कोई को ही बुद्धि में बैठता है।
यह है बहुत सहज ज्ञान और सहज योग।
बाप, टीचर, सतगुरू को याद करने से उनकी शिफ्तें भी बुद्धि में आ जायेंगी।
अपनी जांच करनी चाहिए।
हम सब बाबा को याद करते हैं वा और तरफ बुद्धि जाती है?
तुम्हारी बुद्धि को अभी समझ मिलती है।
कितनी मीठी-मीठी बातें बाप समझाते हैं।
युक्तियाँ बताते हैं।
तुम कोई को बैठकर समझायेंगे फिर तुम्हारे दुश्मन भी नहीं बनेंगे...
शिवबाबा ही तुम्हारा बाप, टीचर, सतगुरू है, उनको याद करो।
समझाने की युक्ति रचनी चाहिए।
ब्रह्मा के चित्र पर बहुत पीछे पड़ते हैं।
शिव का चित्र देख कभी उड़ायेंगे नहीं।
अरे, यह तो आत्माओं का बाप है ना।
तो बाप को याद करो, इनसे बहुतों को फायदा हो सकता है।
इनको याद करने से तुम पतित से पावन बन जायेंगे।
वह सबका बाप है।
एक बाप के सिवाए कोई की याद नहीं आनी चाहिए और संग तोड़ एक संग जोड़ना है।
यह है किसके कल्याण करने की युक्तियां।
बाप को याद ही नहीं कर सकेंगे तो पावन कैसे बनेंगे।
घर में भी तुम बहुत सर्विस कर सकते हो...
बहुत मित्र-सम्बन्धी आदि तुमको मिलेंगे।
भिन्न-भिन्न युक्तियां रचो।
बहुतों का कल्याण कर सकते हो।
हट्टी तो एक ही है।
और कोई हट्टी है नहीं, तो जायेंगे कहाँ? अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉनिंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) गृहस्थ व्यवहार में बहुत युक्ति से चलना है,
कोई को नाराज़ भी नहीं करना है, पवित्र भी जरूर बनना है।
2) एक बाप से अविनाशी ज्ञान रत्नों का दाना ले अपनी बुद्धि रूपी झोली भरपूर रखनी है,
बुद्धि को भटकाना नहीं है, पैगम्बर बन सबको बाप का पैगाम देना है।
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन में वैरायटी अनुभूतियों द्वारा
रमणीकता का अनुभव करने वाले
सम्पन्न आत्मा भव
जीवन में हर मनुष्य आत्मा की पसन्दी वैराइटी है।
तो सारे दिन में भिन्न-भिन्न संबंध, भिन्न-भिन्न स्वरूप की वैराइटी अनुभव करो, तो बहुत रमणीक जीवन का अनुभव करेंगे।
ब्राह्मण जीवन भगवान से सर्व संबंध अनुभव करने वाली सम्पन्न जीवन है इसलिए एक भी संबंध की कमी नहीं करना।
अगर कोई छोटा या हल्का आत्मा का संबंध मिक्स हो गया तो सर्व शब्द समाप्त हो जायेगा।
जहाँ सर्व है वहाँ ही सम्पन्नता है इसलिए सर्व संबंधों से स्मृति स्वरूप बनो।
स्लोगन:-
बाप समान अव्यक्त रूपधारी बन
प्रकृति के हर दृश्य को देखो
तो हलचल में नहीं आयेंगे।
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