About Rajyogi B K Jagdish Chander Hasijja

भ्राता जगदीश चंद्र जी का जन्म 10 दिसंबर 1929 को मुल्तान में हुआ था। उनकी आध्यात्मिकता में रुचि थी, अतः भारतीय दर्शन वैदिक संस्कृति व विश्व के विभिन्न धर्मों का गहन अध्ययन किया।

दादियों द्वारा दिल्ली में सेवा प्रारंभ हुई तो दिल्ली कमला नगर में ज्ञान प्राप्त किया। वो एक प्रबुद्ध प्राध्यापक थे। ब्रह्माकुमारी संस्थान से ज्ञान प्राप्त होते ही स्वयं को सेवा में पूर्णतया समर्पित कर दिया। बाबा आप को संजय, गणेश आदि नामों से पुकारते थे। आपकी बुद्धि के लिए कहते थे 7 फुट लंबी बुद्धि है आपने राजयोग जैसे जटिल व गहन विषय पर शोध कार्य किए तथा उसकी व्याख्या अत्यंत सरल सुबोध सुरुचिपूर्ण शब्दों में की।

आपने विद्यालय का पूरा साहित्य तैयार किया। राजयोग, मानवीय मूल्य, आध्यात्मिकता, समय, सामाजिक विषय पर 200 से भी अधिक हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू भाषा में पुस्तकें लिखी। आप ज्ञान अमृत, वर्ल्ड रिन्यूअल तथा प्यूरिटी पत्रिका के प्रधान संपादक रहें और भारतीय एडिटर्स गिल्ड के सदस्य भी रहे।

आपका यज्ञ में अग्रणी स्थान था। आप मुख्य प्रवक्ता के रूप में रहे। सेवा की अनेक नवीन योजनाएँ आरम्भ की और उन्हें वास्तविक स्वरूप दिया। आपने विभिन्न वर्गों की सेवाओं हेतु विभिन्न प्रभाग बनाए जो आज भी ज्ञान सरोवर में सुचारू रूप से चल रहे हैं। दिल्ली शक्तिनगर सेवा केंद्र पर रहकर आप विश्व सेवा के माध्यम बने। रुस में आपने सेवाओं की नींव रखी जहाँ आज हजारों बाबा के बच्चे ज्ञान योग की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। आपका व्यक्तित्व एवं कृतित्व संपूर्ण मानवता के कल्याण हेतु ही था। प्यारे बाबा ने अपने आज्ञाकारी, अनन्य बच्चे जगदीश भाई को उनकी प्रैक्टीकल में बाबा की श्रीमत की पालना व तुरन्त शिक्षाओं के आधार पर अनेक टाईटलस, गणेश, सच्चे पाण्डव, सच्चे दधीचि से जीवन में सुशोभित किया। 12 मई 2001 को अपने पार्थिव शरीर का त्याग कर परम स्थिति को प्राप्त किया।

 

01.12.1983

”... आपने ऐसे बच्चे देखे ना! अच्छा चक्कर लगाया ना। साकार बाप का दिया हुआ विशेष वरदान, साकार में लाया। सफलता का जन्मसिद्ध अधिकार अनुभव किया न। सर्व सफलता में विशेष सफलता की निशानी कौन सी है? श्रेष्ठ सफलता है कि बापदादा दिखाई दे। आप में बाप दिखाई दे - यह है श्रेष्ठ सफलता। यही प्रत्यक्षता का साधन है। जो भी चक्कर पर निकले विशेष बाप समान अनुभूति कराना, यही सफलता की निशानी है। और आगे चल कर भी ज्यादा से ज्यादा यही आवाज चारों ओर फैलता जायेगा। हिम्मते बच्चे मददे बाप है ही। करावनहार करा लेता है।...“

 

 

”... ( जगदीश भाई ने विदेश यात्रा का समाचार बापदादा को बताया और नाम सहित सभी भाई-बहनों की याद दी ) सभी के स्नेह का समाचार बापदादा के पास पहुँचता ही रहता है और अभी भी पहुँचा। बापदादा सर्व विदेश के चारों ओर रहने वाले बच्चों को विशेष एक बात की मुबारक भी देते हैं। किस बात की? संस्कार, भाषा, रहन-सहन सबका परिवर्तन करने में मैजारिटी बहुत तीव्र पुरुषार्थी निकले हैं। जैसे कोई नई दुनिया में आ जाए। ऐसे नई रीति रसम, नया सम्बन्ध फिर भी अपने को सदा कल्प पहले वाले पुराने अधिकारी आत्माएं समझते चल रहे हैं। इसलिए स्वयं को परिवर्तन करने की विशेषता पर विशेष मुबारक। बापदादा को कितना प्यार से याद करते वह बापदादा के पास सदा ही पहुँचता है। स्वयं को भूल बाप को ही सदा हर बात में याद करते यह परिवर्तन विशेष है। और इसी प्यार के आधार पर चल रहे हैं। यह प्यार ही पालना कर रहा है। सूक्ष्म प्यार की पालना ही आगे बढ़ा रही है। ...“

 

 

22.01.1984

‘‘... बापदादा के साकार पालना के पले हुए रत्नों की वैल्यु होती है। जैसे लौकिक रीति में भी पेड़ (वृक्ष) में पके हुए फलों का कितना मूल्य होता है। ऐसे साकार पालना में पले हुए अर्थात् पेड़ में पके हुए। आज ऐसी अनुभवी आत्माओं को सभी कितना प्यार से देखते हैं। पहले मिलन में ही वरदान पा लिया ना। पालना अर्थात् वृद्धि ही वरदानों से हुई ना। इसलिए सदा पालना के अनुभव का आवाज अनेक आत्माओं की पालना के लिए प्रेरित करते रहेंगे। सागर के भिन्न-भिन्न सम्बन्ध की लहरों में लहराने के अनुभवों की लहरों में लहराते रहेंगे। सेवा के निमित्त आदि में एकानामी के समय निमित्त बने। एकानामी के समय निमित्त बनने के कारण सेवा का फल सदा श्रेष्ठ है। समय प्रमाण सहयोगी बने इसलिए वरदान मिला। ...“

 

 

26.08.1984

”... सेवा में शक्तियों के साथ पार्ट बजाने के निमित्त बनना यह भी विशेष पार्ट है। सेवा से जन्म हुआ, सेवा से पालना हुई और सदा सेवा में आगे बढ़ते चलो। सेवा के आदि में पहला पाण्डव ड्रामा अनुसार निमित्त बने। इसलिए यह भी विशेष सहयोग का रिटर्न है। सहयोग सदा प्राप्त है और रहेगा। हर विशेष आत्मा की विशेषता है। उसी विशेषता को सदा कार्य में लगाते विशेषता द्वारा विशेष आत्मा रहे हो। सेवा के भण्डार में जा रहे हो। विदेश में जाना अर्थात् सेवा के भण्डार में जाना। शक्तियों के साथ पाण्डवों का भी विशेष पार्ट है। सदा चान्स मिलते रहे हैं और मिलते रहेंगे। ऐसे ही सभी में विशेषता भरना।...“

 

 

19.11.1984

”... दादी जी तथा जगदीश भाई ने विदेश यात्रा का समाचार सुनाया तथा याद प्यार दी सभी को सन्देश दे अनुभव कराया। स्नेह और सम्बन्ध बढ़ाया। अभी अधिकार लेने के लिए आगे आयेंगे। हर कदम में अनेक आत्माओं के कल्याण का पार्ट नूंधा हुआ है। इसी नूंध से सभी के दिल में उमंग-उत्साह दिलाया। बहुत अच्छा - सेवा और स्नेह का पार्ट बजाया। बापदादा करावनहार भी हैं और साक्षी हो देखने वाले भी हैं। कराया भी और देखा भी। बच्चों के उमंग-उत्साह और हिम्मत पर बापदादा को नाज है। आगे भी और आवाज बुलन्द होगा। ऐसा आवाज बुलन्द होगा जो सभी कुम्भकरण आँख खोलकर देखेंगे कि यह क्या हुआ! कईयों के भाग्य परिवर्तन होंगे। धरनी बनाकर आये। बीज डालकर आये। अभी जल्दी बीज का फल भी निकलेगा। प्रत्यक्षता का फल निकलने वाला ही है। समय समीप आ रहा है। अभी तो आप लोग गये लेकिन जो सेवा करके आये - उस सेवा के फल स्वरूप वह स्वयं भागते हुए आयेंगे। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे चुम्बक दूर से खींचता है ना। ऐसे कोई खींच रहा है। जैसे आदि में अनेक आत्माओं को यह रूहानी खींच हुई कि कोई खींच रहा है, कहाँ जायें। ऐसे यह भी खींचे हुए आयेंगे। ऐसा अनुभव किया ना कि रूहानी खींच बढ़ रही है। बढ़ते-बढ़ते खींचे हुए उड़कर पहुँच जायेंगे वह भी अभी दृश्य होने वाला ही है। अभी यही रहा हुआ है। सन्देश वाहक जाते हैं लेकिन वह स्वयं सत्य तीर्थ पर पहुँचे यह है लास्ट सीन। इसके लिए अभी धरनी तैयार हो गई है, बीज भी पड़ गया है अब फिर निकला कि निकला। अच्छा - दोनों तरफ गये। बापदादा के पास सभी के हिम्मत उल्लास उमंग का पहुँचता है। ...“

 

 

27.03.1985

‘‘... जो बाप से वरदान में विशेषतायें मिली हैं, उन्हीं विशेषताओं को कार्य में लाते हुए सदा वृद्धि को प्राप्त करते रहते हो। अच्छा है! संजय ने क्या किया था? सभी को दृष्टि दी थी ना! तो यह नॉलेज की दृष्टि दे रहे हो। यही दिव्य दृष्टि है, नाॅलेज ही दिव्य है ना। नॉलेज की सृष्टि सबसे शक्तिशाली है, यह भी वरदान है। नहीं तो इतनी बड़ी विश्व विद्यालय का क्या नाॅलेज है उसका पता कैसे चलता? सुनते तो बहुत कम है ना! लिटरेचर द्वारा स्पष्ट हो जाता है। यह भी एक वरदान मिला हुआ है। यह भी एक विशेष आत्मा की विशेषता है। हर संस्था की सब साधनों से विशेषता प्रसिद्ध होती है। जैसे भाषणों से, सम्मेलनों से, ऐसे ही यह लिटरेचर, चित्र जो भी साधन हैं, यह भी संस्था या विश्व विद्यालय की एक विशेषता को प्रसिद्ध करने का साधन हैं। यह भी तीर है जैसे तीर पंछी को ले आता है ना - ऐसे यह भी एक तीर है जो आत्माओं को समीप ले आता है। यह भी ड्रामा में पार्ट मिला है। लोगों के क्वेश्चन तो बहुत उठते हैं, जो क्वेश्चन उठते हैं - उसके स्पष्टीकरण का साधन जरूरी है। जैसे सम्मुख भी सुनाते हैं लेकिन यह लिटरेचर भी अच्छा साधन है। यह भी जरूरी है। शुरू से देखो ब्रह्मा बाप ने कितनी रूचि से यह साधन बनाये। दिन रात स्वयं बैठकर लिखते थे ना। कार्ड बना बनाकर आप लोगों को देते रहे ना - आप लोग उसे रत्न जड़ित करते रहे। तो यह भी करके दिखाया ना। तो यह भी साधन अच्छे हैं। कांफ्रेंस के पीछे पीठ करने के लिए यह जो ( चार्टर आदि ) निकालते हो यह भी जरूरी है। पीठ करने का कोई साधन जरूर चाहिए। पहले का यह है, दूसरे का यह है, तीसरे का यह है। इससे वह लोग भी समझते हैं कि बहुत कायदे प्रमाण यह विश्व विद्यालय वा यूनिवर्सिटी है। तो यह अच्छे साधन हैं। मेहनत करते हो तो उसमें बल भर ही जाता है। अभी गोल्डन जुबली के प्लैन बनायेंगे फिर मनायेंगे। जितने प्लैन करेंगे उतना बल भरता जायेगा। सभी के सहयोग से सभी के उमंग-उत्साह के संकल्प से सफलता तो हुई पड़ी है। सिर्फ रिपीट करना है। अभी तो गोल्डन जुबली का बहुत सोच रहे हैं ना। पहले बड़ा लगता है फिर बहुत सहज हो जाता है। तो सहज सफलता है ही। सफलता हरेक के मस्तक पर लिखी हुई है। ...“

 

02.09.1985

‘‘...चाहे रथ चले न चले फिर भी बाप को स्नेह का सबूत देना ही है। बच्चों में भी यही स्नेह का प्रत्यक्ष रूप बापदादा देखना चाहते हैं। कोई ( गुल्जार बहन, जगदीश भाई, निर्वैर भाई ) विदेश सेवा कर लौटे हैं और कोई ( दादी जी और मोहिनी बहन ) जा रहे हैं। ये भी उन आत्मा के स्नेह का फल उन्हों को मिल रहा है। ड्रामा अनुसार सोचते और हैं लेकिन होता और है। फिर भी फल मिल ही जाता है। इसलिए प्रोग्राम बन ही जाता है। सभी अपना-अपना अच्छा ही पार्ट बजा कर आये हैं। बना बनाया ड्रामा नूँधा हुआ है तो सहज ही रिटर्न मिल जाता है। विदेश भी अच्छी लगन से सेवा में आगे बढ़ रहा है। हिम्मत और उमंग उन्हीं में चारों ओर अच्छा है। सभी के दिल के शुक्रिया के संकल्प बापदादा के पास पहुँचते रहते हैं। क्योंकि वह भी समझते हैं। भारत में भी कितनी आवश्यकता है फिर भी भारत का स्नेह ही हमें सहयोग दे रहा है। इसी भारत में सेवा करने वाले सहयोगी परिवार को दिल से शुक्रिया करते हैं। जितना ही देश दूर उतना ही दिल से पालना के पात्र बनने में समीप हैं इसलिए बापदादा चारों ओर के बच्चों को शुक्रिया के रिटर्न में यादप्यार और शुक्रिया दे रहे हैं। बाप भी तो गीत गाते हैं ना। भारत में भी अच्छे उमंग उत्साह यात्रा का बहुत ही अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। चारों ओर सेवा की धूमधाम की रौनक बहुत अच्छी है। उमंग-उत्साह थकावट को भुलाय सफलता प्राप्त करा रहा है। चारों ओर की सेवा की सफलता अच्छी है। बापदादा भी सभी बच्चों के सेवा के उमंग-उत्साह का स्वरूप देख हर्षित होते हैं। ( नेरोबी में जगदीश भाई पोप से मिलकर आये हैं ) पोप को भी दृष्टि दी ना। यह भी आप के लिए विशेष वी.आई.पी. की सेवा में सफलता सहज होने का साधन है। जैसे भारत में विशेष राष्ट्रपति आये। तो अभी कह सकते हैं कि भारत में भी आये हैं। ऐसे ही विशेष विदेश में विदेश के मुख्य धर्म के प्रभाव के नाते से समीप सम्पर्क में आये तो किसी को भी सहज हिम्मत आ सकती है कि हम भी सम्पर्क में आयें। तो देश का भी अच्छा सेवा का साधन बना और विदेश सेवा का भी विशेष साधन बना। तो समय प्रमाण जो भी सेवा में समीप आने में कोई भी रूकावट आती है, वह भी सहज समाप्त हो जायेगी। प्राइम मिनिस्टर का मिलना तो हुआ ना। तो दुनिया वालों के लिए, ये एग्जाम्पिल भी मदद देते हैं। सभी के क्वेश्चन खत्म हो जाते हैं। तो ये भी ड्रामा अनुसार इसी वर्ष सेवा में सहज प्रत्यक्षता के साधन बने। अभी समीप आ रहे हैं। इन्हों का तो सिर्फ नाम ही काम करेगा। तो नाम से जो काम होना है उसकी धरनी तैयार हो गई। आवाज ये नहीं फैलायेंगे। आवाज फैलाने वाले माइक और हैं। ये माइक को लाइट देने वाले हैं। लेकिन फिर भी धरनी की तैयारी अच्छी हो गई है। जो विदेश में पहले वी.आई.पी. के लिए मुश्किल अनुभव करते थे, अभी वह चारों ओर सहज अनुभव करते हैं, ये रिजल्ट अभी अच्छी है। इन्हों के नाम से काम करने वाले तैयार हो जायेंगे। अभी देखो वह कब निमित्त बनता है। धरनी तैयार करने के लिए चारों ओर सब गये। भिन्न-भिन्न तरफ धरनी को पांव देकर तैयार तो किया है। अभी फल प्रत्यक्ष रूप में किस द्वारा होता है, उसकी तैयारी अब हो रही है। सभी की रिजल्ट अच्छी है। ...“

 

01.10.1987

‘‘...सेवा की विशेषता का शृंगार पाण्डव हैं। शक्तियाँ सहयोगी हैं लेकिन निमित्त उन्नति के आधार पाण्डव हैं। इसलिए, पाण्डवों की विशेषता वर्णन करने बैठें तो पूरी मुरली चल जाए। पाण्डव सदा ही प्रसिद्ध हैं। भक्ति में भी कोई पूजा होती है तो पहले गणेश की पूजा करते हैं ना। साकार में बापदादा ने इसको (जगदीश भाई को) यह टाईटल दिया। तो यह टाईटल कम नहीं है। बिना गणेश के यानी पाण्डवों के पूजा शुरू नहीं होती। शक्तियों के सहयोग के बिना पाण्डव नहीं, पाण्डवों के सेवा की उन्नति के पुरूषार्थ के बिना शक्तियों के सेवा की विजय नहीं। दोनों ही एक दो के साथी हैं। पाण्डवों को सदैव दिल से ब्रह्मा के हमशरीक साथी कहते हैं। तो ब्रह्मा बाप के हम साथी हैं! कितनी कमाल है! शक्तियों को आगे रखना - यह भी पाण्डवों की कमाल है। अगर पाण्डव शक्तियों को आगे न रखें तो शक्तियाँ क्या करेगी? यह पाण्डवों की विशेषता है। समय प्रमाण शक्तियों को आगे रखना ही पड़ता है। पाण्डव सहयोगी बन आगे रखते हैं, तब शक्तियों की महिमा होती है! पाण्डव कोई कम नहीं हैं। सिर्फ कहीं-कहीं शक्तियों का नाम प्रत्यक्ष हो जाता है, पाण्डवों का गुप्त हो जाता है। वैसे बाप भी गुप्त है। नाम तो बच्चों का होता, बाप का कहाँ होता है। तो पाण्डव सदा विजय के तिलकधारी हो। पाण्डवों के आगे टाइटल है - ‘विजयी पाण्डव‘।...‘‘

 

07.11.1989

‘‘...डबल विदेशी बच्चों को बापदादा दिलाराम अपने दिल का स्नेह गिफ्ट में दे रहे हैं। अमेरिका निवासी बच्चे विशेष याद कर रहे हैं। बहुत अच्छे उमंग-उत्साह से विश्व में सेवा करने का साधन अच्छा बना है। यू.एन. भी सेवा की साथी बनी हुई है। भारत सेवा वा फाउण्डेशन है। इसलिए भारत का भी विशेष सर्विसएबुल साथी (जगदीश जी) गये हुए हैं। फाउण्डेशन भारत है और प्रत्यक्षता के निमित्त विदेश। प्रत्यक्षता का आवाज दूर से भारत में नगाड़ा बनकर के आयेगा।...‘‘

 

23.11.1989

‘‘... विदेश का भी चक्र लगा कर बच्चे पहुँच गये हैं। ( जानकी दादी, डाक्टर निर्मला और जगदीश भाई विदेश का चक्र लगाकर आये हैं ) अच्छी रिजल्ट है। और सदा ही सेवा की सफलता में वृद्धि होनी ही है। यू.एन. का भी विशेष सेवा के कार्य में सम्बन्ध है। नाम उन्हों का, काम तो आपका ही हो रहा है। आत्माओं को सहज सन्देश पहुँच जाए - यह काम आपका हो रहा है। तो वहाँ का भी प्रोग्राम अच्छा हुआ। रशिया भी रहा हुआ था, उनको भी आना ही था। बापदादा ने तो पहले ही सफलता का यादप्यार दे दिया था। भारत के एम्बसडर बन कर गये तो भारत का नाम बाला हुआ ना! चक्रवर्ती बन चक्र लगाने में मजा आता है ना! कितनी दुआयें जमा करके आये! ...‘‘

 

 

20.01.1990

‘‘...निमित्त बने हुए बड़े बच्चों को देख बापदादा खुश होते है। बापदादा जानते है - दोनों ही कांफ्रेंस आवाज बुलंद करने वाली रही। ( जगदीश भाई एथेनस तथा मास्को से कांफ्रेंस अटेंड करके वापस आये है ) ‘हिम्मते बच्चे, मददे बाप‘ का प्रत्यक्ष स्वरूप बच्चों ने दिखाया। इसलिए जो भी सेवा के लिए निमित्त बने उन सबको बापदादा मुबारक दे रहे है। अच्छा!...“

 

14.04.1994

‘‘...अभी दिल्ली वाले क्या कमाल करेंगे? क्योंकि दिल्ली सेवा का फाउन्डेशन है। दिल्ली से पहले गरीब निवाज की प्रथा आरम्भ हुई। दिल्ली ने समय की आवश्यकता में सहयोग दिया। दिल्ली से पहला नम्बरवन पाण्डव ( जगदीश ) निकला। इन्वेन्शन भी दिल्ली काफी नम्बरवन होकर निकालती है। अभी तो सब होशियार हो गये हैं लेकिन निमित्त तो दिल्ली बनी। तो अब ओटे सो अर्जुन में ए नम्बर। ...“

 

09.01.1995

‘‘... अब क्या करेंगे नवीनता? ( विशाल प्रोग्राम माइक बनाने का ) एक बारी इकट्ठा सभी कोने से आवाज आये तो बुलन्द हो। हाँ जी, हाँ जी करते चलो और सबका हाँ जी हो ही जाना है। विदेश वाले देश वालों को कहे हाँ जी और देश वाले विदेश वालों को कहे हाँ जी। तो जहाँ हाँ जी होगा वहाँ हुआ ही पड़ा है। साधन बहुत अच्छा है सिर्फ बालक और मालिक बनना आ जाये। समय पर बालक, समय पर मालिक। सभी को बनना आता है? कि जिस समय बालक बनना है उस समय मालिकपन आ जाता है? तो बापदादा देखेंगे कि हाँ जी का पाठ किसने पक्का किया है? सभी करते हैं, ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन कार्य के टाइम देखेंगे। अच्छा! ...“

 

18.01.1996

‘‘... अच्छा किया दिल्ली ने। दिल्ली ने नम्बर ले लिया। अभी और भी ऐसे माइक तैयार करो जो आपके तरफ से बोलें कि ये परमात्म मार्ग है। और करने के निमित्त तो आप बने हुए हो ही। आदि से वरदान है इसलिए करते चलो। बाकी अच्छा किया दिल्ली ने, अपनी हिम्मत, युनिटी और सफलता-तीनों दिखाई। सभी को मुबारक तो है ही लेकिन ये एक कार्य की मुबारक है। अभी आगे भी करना है। ...‘‘

 

23.02.1997

‘‘... दिल्ली को वरदान है और उसमें भी आदि रत्न जगदीश को वरदान है-स्थापना के कार्य में। इस बारी बापदादा ने देखा एक भी दिल्ली का सेन्टर ऐसे नहीं रहा जिसका कोई न कोई सहयोग नहीं हो। 100 से ही ज्यादा होंगे, दूर वाले स्थान की बात छोड़ो, लेकिन जो दिल्ली में थे उनमें से हर एक ने अपने खुशी से सेवा ली और प्रैक्टिकल किया तो यही सफलता का साधन है। ऐसे था ना? जगदीश से पूछते हैं। तो कहाँ भी करो, पहले सबको मिलाओ। चाहे मीटिंग करो, चाहे फोन में बात करो, समय नहीं हो तो फोन में ही मीटिंग हो सकती है। इन्होंने भी मीटिंग की, एक ही दिल्ली है ना तो दिल्ली में मीटिंग होना सहज है। लेकिन एक बात यह समझ लो कि जहाँ संगठन की शक्ति है वहाँ विजय है। बाकी विघ्न तो आने ही हैं। नहीं तो विघ्न-विनाशक नाम क्यों रखा है! विघ्न विनाशक का अर्थ क्या है? विघ्न आवे और विनाश करो। यह तो होना ही है। विघ्नों का काम है आना और आपका काम है विनाशक बनना। इसकी परवाह नहीं करो। यह खेल है। खेल में खेल और खेल देखने में तो मजा है ना।...“

 

31.01.1998

‘‘... तबियत अच्छी है। अभी बहुत काम करना है। अभी पाण्डवों को मिलकर कोई नये प्लैन बनाने हैं। नवीनता के निमित्त बनना है। आदि से कोई न कोई कार्य के लिए निमित्त बनते आये हैं, सभी की विशेषता है इसलिए अभी भी और टचिंग होती रहेगी। अच्छा है दिल्ली में भी धूम मचानी है। दिल्ली का सेवाधारी पाण्डव पहला निमित्त बने हुए हो। दिल्ली से नाम बाला होगा ना। सभी के सकाश से दिल्ली से नाम बाला तो करना ही है। कोई ऐसे प्लैन बनाओ, बाम्बे, दिल्ली नई इन्वेन्शन्स निकालो। मधुबन में तो सेवायें ड्रामानुसार बढ़ती ही जाती हैं और बढ़ती जानी हैं। यह विंग्स का सेवा का प्लैन भी अच्छा चल रहा है और चलता रहेगा। जो निमित्त बनता है उसको सेवा की सफलता का शेयर मिल जाता है। इसलिए निमित्त बनते जाओ और शेयर्स जमा करते जाओ। अच्छा है जो भी चारों ओर निमित्त बनते हैं उन्हों को एक्स्ट्रा लिफ्ट मिल जाती है। स्व का पुरूषार्थ तो है लेकिन यह गिफ्ट में लिफ्ट मिलती है। विदेश वालों को भी सेवा की गिफ्ट मिलती रहती है। भारत वाले विदेश को भी सकाश दे रहे हैं। तो अच्छा है, अच्छे-अच्छे पाण्डव भी हैं, अच्छी-अच्छी शक्तियां भी हैं। सेना बहुत अच्छी सुन्दर है। बापदादा तो हर एक की विशेषता की दिल में महिमा करते रहते हैं। ऐसे है ना? ...‘‘

 

24.02.1998

‘‘...जैसे भारत में वर्गीकरण से सेवा में चांस मिला है, वैसे इन्हों की भी यह विधि बहुत अच्छी है। बापदादा को दोनों तरफ की सेवा पसन्द है, अच्छा है। जगदीश बच्चे ने इन्वेन्शन अच्छी निकाली है और विदेश में यह रिट्रीट, डायलाॅग किसने शुरू किया? ( सभी ने मिलजुलकर किया ) भारत में भी मिलजुलकर तो किया है फिर भी निमित्त बने हैं। अच्छा है हर एक को अपने हमजिन्स के संगठन में अच्छा लगता है। तो दोनों तरफ की सेवा में अनेक आत्माओं को समीप लाने का चांस मिलता है। रिजल्ट अच्छी लगती है ना? रिट्रीट की रिजल्ट अच्छी रही? और वर्गीकरण की भी रिजल्ट अच्छी है, देश-विदेश कोई न कोई नई इन्वेन्शन करते रहते हैं और करते रहेंगे। चाहे भारत में, चाहे विदेश में सेवा का उमंग अच्छा है। बापदादा देखते हैं जो सच्ची दिल से निःस्वार्थ सेवा में आगे बढ़ते जाते हैं, उन्हों के खाते में पुण्य का खाता बहुत अच्छा जमा होता जाता है। कई बच्चों का एक है अपने पुरूषार्थ के प्रालब्ध का खाता, दूसरा है सन्तुष्ट रह सन्तुष्ट करने से दुआओं का खाता और तीसरा है यथार्थ योगयुक्त, युक्तियुक्त सेवा के रिटर्न में पुण्य का खाता जमा होता है। यह तीनों खाते बापदादा हर एक का देखते रहते हैं। अगर कोई का तीनों खाते में जमा होता है तो उसकी निशानी है - वह सदा सहज पुरुषार्थी अपने को भी अनुभव करते हैं और दूसरों को भी उस आत्मा से सहज पुरूषार्थ की स्वतः ही प्रेरणा मिलती है। वह सहज पुरूषार्थ का सिम्बल है। मेहनत नहीं करनी पड़ती, बाप से, सेवा से और सर्व परिवार से मुहब्बत है तो यह तीनों प्रकार की मुहब्बत मेहनत से छुड़ा देती है। ...“

 

31.12.1998

‘‘... आदि से सेवा बहुत की है। आदि से सेवा के निमित्त बने हो और इन्वेन्शन भी अच्छी-अच्छी की है। अभी देखो वर्गीकरण की रिजल्ट कितनी अच्छी है। इसलिए अभी फिर कोई नई इन्वेन्शन करनी है। सबका आपसे प्यार है। मुरली में नाम आता है ना तो सभी का अटेन्शन जाता है। अभी शरीर को जबरदस्ती नहीं चलाओ, अभी आराम से चलाओ। अभी यह नहीं सोचो यह करना ही है। नहीं। औरों को आप समान बनाओ। मेले की शुरूआत भी दिल्ली से ही शुरू हुई है, कांफ्रेंस भी हुई अभी नई इन्वेन्शन भी दिल्ली से शुरू हो। अच्छा। ...‘‘

 

03.04.1999

‘‘... सेवा में पहला सेवा के निमित्त बनना और सेवा में सरेन्डर होना - ये आपका विशेष पार्ट है। अच्छा है चारों का अपना-अपना पार्ट है। सभी की विशेषता अपनी-अपनी है। सभी की विशेषता आवश्यक है ना। इनकी विशेषता भी आवश्यक है, आपकी भी आवश्यक है। जैसे बहुत चीजें मिला के अच्छी बन जाती हैं ना टेस्टी, तो ऐसे सभी की विशेषता मिलकर सेवा में टेस्ट आ जाती है। सभी की विशेषता चाहिए। बहुत अच्छा। दादियों ने कहा और पाण्डवों ने माना - ये बहुत अच्छी बात है, जब भी बुलायें हां-जी, हाँ-जी। आपके संगठन के आधार पर सारा दैवी परिवार चलता है। इसलिए जैसे दादियां निमित्त हैं, वैसे आप भी निमित्त हो। जिम्मेवार हो। हैं या नहीं हैं? सब बात में समझो हम सब सेवा के साथी हैं, यह 10-12 नहीं हैं लेकिन एक हैं, इसमें यज्ञ का शान है। बाप-दादा सभी को एवररेडी देखकर बहुत खुश हैं, कार्य तो बढ़ने ही हैं। कम तो होने नहीं हैं। संगठन की शक्ति बहुत वायुमण्डल को पावर देता है। राइट हैण्ड तो आप लोग हो ना! विशेष राइटहैण्ड हो। ठीक है ना? सोच में तो नहीं हो? नहीं। निमित्त हैं निमित्त बन अंगुली लास्ट तक देनी है। अच्छा। ...“

 

 

15.11.1999

‘‘... ( दादी जानकी ने जगदीश भाई की याद दी ) सब ठीक हो जायेगा। बहुतबहुत याद देना। फिर भी शुरू से सेवा की इन्वेन्शन में अच्छा पार्ट बजाया है। विशेषता दिखाने वालों को बाप की विशेष दुआयें मिलती हैं।...‘‘

 

15.02.2000

”... रथ यात्री - रथ यात्रियों की तो स्वागत बहुत हो चुकी है और अभी भी देखो रथ यात्रियों को सभी ने कितनी तालियां बजाई, और ग्रुप में नहीं बजाई। तो बहुत अच्छा, इस यात्रा को वरदान था, बापदादा ने पहले भी सुनाया कि रथ यात्रियों को विशेष बापदादा द्वारा वरदान थे - एक तो - निर्विघ्न, किसी भी प्रकार का विघ्न नहीं आया। दूसरा - सभी के सभी स्वस्थ रहे। बीमारी का विघ्न भी नहीं आया। और तीसरा - विशेष सभी में उमंग-उत्साह होने के कारण अथक रहे। तो यह वरदान प्रत्यक्ष रूप में सभी ने देखा और अनुभव किया। जहाँ उमंग-उत्साह होता है वहाँ यह सब बातें स्वतः प्राप्त होती हैं। तो सफलतापूर्वक सभी पहुँच गये और अभी भी शिवरात्रि के उत्सव में रथ तो जहाँ-तहाँ जा नहीं सकते लेकिन जो वीडियो फिल्म निकाली है तो हर स्थान पर इस वीडियो फिल्म द्वारा सेवा अच्छी होनी ही है। तो आपकी यात्रा वीडियो में आ गई अर्थात् अमर हो गई, चलती रहेगी। अच्छा है। निमित्त तो इन्वेन्शन जगदीश ने किया। ऐसे ही शुरू से वरदान है - इन्वेन्शन करने का। अभी भी इस वरदान को आगे बढ़ाते रहना। अच्छा है। एक की इन्वेन्शन से सभी तरफ उमंग-उत्साह आ गया। तो इन्वेन्शन की मुबारक हो। अच्छा। ...“

 

 

16.12.2000

‘‘... ठीक है ना! ( ज्यादा तो आप जानते हैं ) अच्छा है। अभी नेचरल साधन से ही ठीक है। सेवा तो आपने आदि से बहुत की है, ;फर्ज अदा किया है अपना भाग्य बनाया हैद्ध अभी भी चाहे शरीर द्वारा ज्यादा नहीं कर सकते, लेकिन जिन आत्माओं ने जिस सेवा के निमित्त बन सेवा की इन्वेन्शन के निमित्त बने हैं, उन्हों को उस सेवा की सफलता के शेयर जमा होते हैं। जैसे प्रदर्शनी की इन्वेन्शन हुई, तो उस द्वारा क्वान्टिटी को सन्देश मिल रहा है, मेला हुआ यह भी क्वान्टिटी की सेवा, वी.आई.पी आता है तो कोई कोई, लेकिन कांफ्रेंस हुई तो कांफ्रेंस की सेवा से स्पीच की आकर्षण से वी.आई.पी. आते हैं उन्हों की सेवा होती है, लेकिन उसमें भी कोई- कोई। अभी जो वर्गाकरण की सेवा हो रही है, इसमें भिन्न-भिन्न वर्ग के वी.आई.पी. का आना हो रहा है और वर्गाकरण की सेवा से नजदीक सहयोग में भी आते हैं, क्यों? एक तो 15 वर्ग हैं, विस्तार है। तो 15 वर्ग ही अलग-अलग सेवा कर रहे हैं, अलग- अलग वी.आई.पी. को इन्वाइट करते हैं और दूसरा 2-3 दिन रहने का साधन मिलता है। कांफ्रेंस में आते हैं लेकिन वी.आई.पी. जो हैं वह भाषण करके मैजारिटी चले जाते हैं फिर भी साधन है, आकर्षण है, वी.आई.पी को स्पीच करने की। तो जिन्होंने भी जो भी इन्वेन्शन की है, निमित्त बने हैं उनको उनकी सेवा का शेयर मिलता है। इसलिए आप फिकर नहीं करो कि मैं सेवा नहीं कर सकता, नहीं, सेवा हो रही है। भिन्न-भिन्न सेवा के निमित्त बने ना। यह ( रमेश भाई ) प्रदर्शनी के बने, वह ( निर्वैर भाई ) सीढ़ी के बने, कोई न कोई सेवा के निमित्त बने, कोई कांफ्रेंस के निमित्त बनते हैं और दादियाँ तो सभी में हैं। आप विंग्स के निमित्त हैं। दादियों की भी छत्रछाया है। हाँ विदेश में भी सेवा की। तो फाउण्डेशन डालने में मेहनत होती है। इसलिए फिकर नहीं करो आपका शेयर इकठ्ठा हो रहा है। थोड़ा फिकर है। ( बाबा को प्रत्यक्ष नहीं किया है, यह फिकर है ) यह वायुमण्डल से हो जायेगा। समय इन्तजार कर रहा है, पर्दा खुलने के लिए। अभी इस वर्ष में फरिश्ता रूप बन जाएँ, चारों ओर साक्षात्कार शुरू हो जायेंगे। देखेंगे यह कौन आया, यह ब्रह्मा बाबा को जैसे पहले-पहले देखा, ऐसे ब्रह्मा बाप के साथ-साथ आप पाण्डव शक्तियों को देखेंगे। ढ़ूँढ़ेंगे यह कौन हैं, कहाँ हैं। पहली-पहली आत्मा निकली हो दिल्ली सेवा में। और आते ही सेवा शुरू कर दी, पहला-पहला किताब याद है कौन-सा लिखा था? कुम्भ के मेले के लिए लिखा था। तो आते ही सेवा की है ना! इसलिए आपको फल मिलेगा। तो करो डांस। गणपति डांस, करो। ( जगदीश भाई ने गणपति डांस की ) अच्छा है, निमित्त सेवा है लेकिन भाग्य की लकीर लम्बी खींच रही है। ( तनजानिया से जगदीश भाई के लिए नेचरोपैथी की डाक्टर आई है ) अच्छा है निमित्त बनने का गोल्डन चांस मिला है। ऐसे अनुभव करती हो? अच्छा है, सहयोग देना, सहयोगी बनना अर्थात् स्वयं का खाता बढ़ाना। अच्छा- ओम् शान्ति।...‘‘

 

31.12.2000

‘‘... ठीक है। ( चलती का नाम गाड़ी है ) जीवन को बाप हवाले तो आदि से कर ही लिया है। जीवन में जब तक भी है तक तक सेवा तो कर रहे हो और करते ही रहेंगे। जमा हो रहा है। अभी बापदादा जो भी महारथी हैं, सभी महारथी बैठे हैं ना, उन महारथियों को कौन सी सेवा करनी है, वह बताते हैं। सेवायें तो सब कर रहे हैं और आप सबने तो अभी तक जो दूसरे सेवायें कर रहे हैं, वह बहुत कर ली है, अभी तो दूसरे भी आप लोगों द्वारा बहुत होशियार हो गये हैं, अभी महारथियों को और नई सेवा करनी चाहिए। ठीक है ना! अभी आप लोगों को जो सेवा करनी है उनमें इनकी ( कानों की ) जरूरत नहीं है। ( कम सुन रहा है ) अब आप लोगों की सेवा है, वायब्रेशन्स द्वारा आत्माओं को समीप लाना। आपस में तो होना ही है। आपसी स्नेह औरों को वायब्रेशन द्वारा खींचेगा। अभी आप लोगों को यह साधारण सेवा करने की आवश्यकता नहीं है। भाषण करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन आप लोग हर एक आत्मा को ऐसी भासना दो जो वह समझें कि हमको कुछ मिला। ब्राह्मण परिवार में भी आपके संगठन के वायब्रेशन द्वारा निर्विघ्न बनाना है। मन्सा सेवा की विधि को और तीव्र करो। वाचा वाले बहुत हैं। मन्सा द्वारा कोई न कोई शक्ति का अनुभव हो। वह समझें कि इन आत्माओं द्वारा यह यह शक्ति का अनुभव हुआ। चाहे शान्ति का हो, चाहे खुशी का हो, चाहे सुख का हो, चाहे अपने-पन का। तो जो भी अपने को महारथी समझते हैं उन्हों को अभी यह सेवा करनी है। सभी अपने को महारथी समझते हो? महारथी हैं? अच्छा है। ( जगदीश भाई ने एक गीत गाया ) अभी औरों को भी आप द्वारा ऐसा अनुभव हो। बढ़ता जायेगा। इससे ही अभी ऐसी अनुभूति शुरू करेंगे तब साक्षात्कार शुरू हो जायेगा। ...‘‘

 

 

‘‘... शरीर को चला रहे हैं ना, चलाते चलो। अच्छा। लाइट रहना ही अच्छा है। सभी पाण्डव भी मददगार हैं। पाण्डवों का भी प्यार है, दादियों का भी प्यार है। ( पाण्डवों से भी ज्यादा दादियों का है ) कोई ऐसी घड़ी आ जायेगी जो असम्भव से सम्भव हो जायेगा। अच्छा। सभी ने सुना ना! ( जगदीश भाई की सेवा में दिल्ली की साधना बहन हैं, उनसे बापदादा मिल रहे हैं ) ः- सेवा का भाग्य मिलना भी बहुत बड़ी बात है, दिल से सेवा करते चलो। कर रही हो, करते चलो। ...‘‘

 

18.01.2001

‘‘... जगदीश भाई से - जगदम्बा माँ का स्लोगन याद है ना - हुक्मी हुक्म चलाए रहा। तो आपका भी अभी यही अनुभव है ना। करावनहार कराए रहा है। चलाने वाला चला रहा है, बाकी अच्छा है यह सभी आदि रत्नों ने, आप हो सेवा के आदि रत्न, यह ( दादियाँ ) हैं स्थापना के आदि रत्न। यह पाण्डव भी सेवा के आदि रत्न हैं। ( आज बाबा के कमरे में गया तो वह यादें आ गई, यहाँ होते भी नहीं था, आँसू भर आये ) इस याद से और ही प्रत्यक्ष रूप में एक तो प्यार बढ़ता है, दिल का प्यार बाहर निकलता है और दूसरा याद में बाप के समानता की हिम्मत भी आती है। अच्छा हुआ। लेकिन बापदादा कह रहे थे कि जो भी सेवा में आदि रत्न हैं वा स्थापना के आदि रत्न हैं दोनों ने सेवा बहुत अच्छी की है, निमित्त बने हैं। सहन भी किया और प्यार भी मिला। अच्छा किया क्योंकि उस समय हिम्मत रखने वाले थोड़े थे लेकिन हिम्मत रखके सहयोगी बनें, वह सहयोग की जो मार्क्स हैं वह जमा हैं। जमा खाता अच्छा है। एक का पद्मगुणा जमा होता है ना। तो जिन्होंने भी जो कुछ दिल से और शक्तिशाली होके किया है, उन्हों का एक का लाख गुणा नहीं लेकिन पद्मगुणा जमा है। आप सबका भी जमा है, इन्हों का भी जमा है। ..“

 

04.02.2001

‘‘... अच्छा - सभी ठीक है। सबसे अच्छी बात है अपने को शरीर सहित बाप के हवाले कर लिया। वैसे तो बाप को अपना सब दे दिया है। दे दिया है ना कि देना है? आप लोगों ने, निमित्त आत्माओं ने तो दिया है, तब आपको साकार रूप में फालो कर रहे हैं। साकार रूप में महारथियों को देख सबको शक्ति मिलती है। तो यह सारा ग्रुप क्या है? शक्ति का स्त्रोत्र है। है ना! ( दादी जानकी कह रही हैं चलाने वाला बहुत रमजबाज है ) रमजबाज नहीं होता तो इतनी वृद्धि कैसे होती। बाप कहते हैं चलने वाले भी बाप से ज्यादा चतुरसुजान हैं। अच्छा - सभी सदा एक शब्द दिल से गाते रहते - ‘‘मेरा बाबा’’। यह गीत गाना सबको आता है ना! मेरा बाबा, यह गीत गाना आता है? सहज है ना! मेरा कहा और अपना बना लिया। बाप कहते हैं, बच्चे बाप से भी होशियार हैं। क्यों? भगवान को बाँध लिया है। ( दादी जानकी से ) बाँधा है ना! तो बाँधने वाले शक्तिशाली हुए या बँधने वाला? कौन शक्तिशाली हुए? बाँधने वाले ने सिर्फ तरीका आपको सुना दिया कि ऐसे बाँधो तो बँध जाऊँगा।...“