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"कल्प पहले का अपना अधिकार लेने लिए फिर से पहुँच गए हो, ऐसा समझते हो ? वह स्मृति आती है कि हम ही कल्प पहले थे। अभी भी फिर से हम ही निमित्त बनेंगे। जिसको यह नशा रहता है उनके चेहरे में खुशी और ज्योति रूप देखने में आता है। उनके चेहरे में अलौकिक अव्यक्ति चमक रहती है। उनके नयनों से, मुख से सदैव खुशी ही खुशी देखेंगे। देखनेवाला भी अपना दुःख भूल जाये। " - Avyakt BaapDada - 26.01.1970 |