- ओम् शान्ति। अब यह तो बच्चे जानते हैं कि हम बाबा के सामने बैठे हैं।
- बाबा भी जानते हैं - बच्चे हमारे सामने बैठे हैं।
- यह भी तुम जानते हो - बाप हमको शिक्षा देते हैं, जो फिर औरों को देनी है।
- पहले-पहले तो बाप का ही परिचय देना है क्योंकि सब बाप को और बाप की शिक्षा को भूले हुए हैं।
- अभी जो बाप पढ़ाते हैं, यह पढ़ाई फिर 5 हज़ार वर्ष बाद मिलेगी।
- यह ज्ञान और कोई को है नहीं।
- मुख्य हुआ बाप का परिचय।
- फिर यह भी समझाना है हम सब भाई-भाई हैं।
- सारी दुनिया की जो सब आत्मायें हैं, सब आपस में भाई-भाई हैं।
- सब अपना मिला हुआ पार्ट इस शरीर द्वारा बजाते हैं।
- अब तो बाप आये हैं नई दुनिया में ले जाने के लिए, जिसको स्वर्ग कहा जाता है।
- परन्तु हम सब भाई पतित हैं, एक भी पावन नहीं।
- सभी पतितों को पावन बनाने वाला है ही एक बाप।
- यह है ही पतित, विकारी, भ्रष्टाचारी रावण की दुनिया।
- रावण का अर्थ ही है 5 विकार स्त्री में, 5 विकार पुरुष में।
- बाबा बहुत सिम्पल रीति समझाते हैं।
- तुम भी ऐसे समझा सकते हो।
- तो पहले-पहले यह समझाओ हम आत्माओं का वह बाप है।
- हम सब ब्रदर्स हैं।
- पूछो यह ठीक है?
- लिखो - हम सब भाई-भाई हैं।
- हमारा बाप भी एक है, हम सब सोल्स का वह है सुप्रीम सोल, उनको फादर कहा जाता है।
- यह पक्का-पक्का बुद्धि में बिठाओ तो सर्वव्यापी आदि पहले निकल जाए।
- अल्फ पहले पढ़ना है।
- बोलो, यह अच्छी रीति बैठ लिखो।
- आगे सर्वव्यापी कहता था, अब समझता हूँ कि सर्वव्यापी नहीं है।
- हम सब भाई-भाई हैं, सब आत्मायें कहती हैं - गॉड फादर, परमपिता।
- पहले तो यह निश्चय बिठाना है कि हम आत्मा हैं, परमात्मा नहीं हैं।
- न हमारे में परमात्मा व्यापक है। सबमें आत्मा व्यापक है।
- आत्मा शरीर के आधार से पार्ट बजाती है, यह पक्का कराओ।
- अच्छा, फिर वह बाप सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान भी सुनाते हैं, और तो कोई भी जानते नहीं कि इस सृष्टि चक्र की एज कितनी है।
- बाप ही टीचर के रूप में बैठ समझाते हैं।
- लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं।
- यह चक्र अनादि, एक्यूरेट बना-बनाया है, इसको जानना पड़े।
- सतयुग-त्रेता पास्ट हुए, नोट करो।
- उसको कहा जाता है स्वर्ग और सेमी स्वर्ग।
- जहाँ देवी-देवताओं का राज्य चलता है, वह 16 कला, वह 14 कला।
- धीरे-धीरे कलायें कम होती जाती हैं।
- दुनिया पुरानी तो जरूर होगी ना।
- सतयुग का प्रभाव बहुत भारी है।
- नाम ही है स्वर्ग, हेविन, नई दुनिया.... उसकी ही महिमा करनी है।
- नई दुनिया में है ही एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म।
- पहले बाप का परिचय फिर चक्र का परिचय दिया जाता है।
- चित्र भी तुम्हारे पास हैं - निश्चय कराने के लिए।
- यह सृष्टि का चक्र फिरता रहता है।
- सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, त्रेता में राम-सीता का।
- यह हुआ आधाकल्प, दो युग पास्ट हुए फिर आता है द्वापर-कलियुग।
- द्वापर में रावण राज्य।
- देवता वाम मार्ग में चले जाते हैं तो विकार की सिस्टम बन जाती है।
- सतयुग-त्रेता में सब निर्विकारी रहते हैं।
- एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म रहता है।
- चित्र भी दिखाना है, ओरली भी समझाना है।
- बाप हमको टीचर बन ऐसे पढ़ाते हैं।
- बाप अपना परिचय खुद ही आकर देते हैं।
- खुद कहते हैं मैं आता हूँ पतितों को पावन बनाने तो मुझे शरीर जरूर चाहिए।
- नहीं तो बात कैसे करूँ।
- मैं चैतन्य हूँ, सत हूँ और अमर हूँ।
- आत्मा सतो, रजो, तमो में आती है।
- आत्मा ही पावन और पतित बनती है इसलिए कहा जाता है पतित आत्मा, पावन आत्मा।
- आत्मा में ही सब संस्कार हैं।
- पास्ट के कर्म वा विकर्म का संस्कार आत्मा ले आती है।
- सतयुग में विकर्म होता ही नहीं।
- कर्म करते हैं, पार्ट बजाते हैं परन्तु वह कर्म अकर्म हो जाता है।
- गीता में भी अक्षर हैं, अभी तुम प्रैक्टिकल में समझ रहे हो।
- जानते हो बाबा आया हुआ है पुरानी दुनिया को बदलने, नई दुनिया बनाने।
- जहाँ कर्म अकर्म हो जाते हैं उसको ही सतयुग कहा जाता है और फिर जहाँ सब कर्म, विकर्म होते हैं उसको कलियुग कहा जाता है।
- तुम अभी हो संगम पर।
- बाबा दोनों तरफ की बात समझाते हैं।
- सतयुग-त्रेता तो है पवित्र दुनिया, वहाँ कोई पाप होता नहीं।
- जब रावण राज्य शुरू होता है तब ही पाप होते हैं।
- वहाँ विकार का नाम नहीं होता।
- चित्र तो सामने हैं राम राज्य और रावण राज्य।
- बाप समझाते हैं यह पढ़ाई है।
- बाप के सिवाए और कोई नहीं जानता।
- यह पढ़ाई तो तुम्हारी बुद्धि में रहनी चाहिए, बाप भी याद आता है, चक्र भी बुद्धि में आ जाता है।
- सेकेण्ड में सब याद आ जाता है।
- वर्णन करने में देरी लगती है।
- इनके 3 फाउन्टेन हैं।
- झाड़ ऐसा होता है, बीज और झाड़ सेकेण्ड में याद आ जायेंगे।
- यह बीज फलाने झाड़ का है, ऐसे इनसे फल निकलता है।
- यह बेहद का मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ कैसे है, इनका राज़ तुम समझाते हो।
- बच्चों को सारा समझाया है - आधाकल्प डिनायस्टी कैसे चलती है फिर रावण राज्य होता है तो जो सतयुग-त्रेतावासी हैं, वही द्वापरवासी बनते हैं।
- झाड़ वृद्धि को पाता रहता है।
- आधाकल्प के बाद रावण राज्य होता है, विकारी बन जाते हैं।
- बाप से जो वर्सा मिला वह आधाकल्प चला।
- नॉलेज सुनाकर वर्सा दिया, वह प्रालब्ध भोगी अर्थात् सतयुग-त्रेता में सुख पाया।
- उसको सुखधाम, सतयुग कहा जाता है। वहाँ दु:ख होता ही नहीं।
- कितना सिम्पल समझाते हैं।
- एक को समझाते हो या बहुतों को समझाते हो - तो ऐसे अटेन्शन देना है, समझता है, हाँ-हाँ करता है?
- बोलो नोट करते जाओ।
- कोई शंका हो तो पूछना।
- जो बात कोई नहीं जानता वह हम समझाते हैं।
- तुम कुछ भी जानते नहीं हो, पूछेंगे फिर क्या?
- बाबा तो इस बेहद झाड़ का राज़ समझाते हैं।
- यह नॉलेज अभी तुम समझते हो।
- बाप ने समझाया है तुम 84 के चक्र में कैसे आते हो।
- यह अच्छी रीति नोट करो फिर इस पर विचार करना है।
- जैसे टीचर एसे (निबन्ध) देते हैं फिर घर में जाकर रिवाइज़ कर आते हैं ना।
- तुम भी यह नॉलेज देते हो फिर देखो क्या होता है।
- पूछते रहो।
- एक-एक बात अच्छी रीति समझाओ।
- बाप-टीचर का कर्तव्य समझाकर फिर गुरू का समझाओ।
- उनको बुलाया ही है कि आकर हम पतितों को पावन बनाओ।
- आत्मा पावन बनती है तो फिर शरीर भी पावन मिलता है।
- जैसा सोना वैसा जेवर बनता है।
- 24 कैरेट का सोना उठायेंगे, खाद नहीं डालेंगे तो जेवर भी ऐसे सतोप्रधान बनेंगे।
- अलाए डालने से तमोप्रधान बन पड़े हैं।
- पहले-पहले भारत 24 कैरेट पक्के सोने की चिड़िया था अर्थात् सतोप्रधान नई दुनिया थी फिर तमोप्रधान बनी है।
- यह बाप ही समझाते हैं, और कोई मनुष्य गुरू लोग नहीं जानते।
- बुलाते हैं आकर पावन बनाओ।
- सो तो गुरू का काम है।
- वानप्रस्थ अवस्था में मनुष्य गुरू करते हैं।
- वाणी से परे स्थान तो है इनकारपोरियल वर्ल्ड, जहाँ आत्मायें रहती हैं।
- यह है कारपोरियल वर्ल्ड।
- दोनों का यह मेल है।
- वहाँ तो शरीर है नहीं।
- वहाँ कोई कर्म नहीं होता है।
- बाप में तो सारी नॉलेज है।
- ड्रामा प्लैन अनुसार उनको कहा ही जाता है नॉलेजफुल।
- वह चैतन्य सत-चित-आनंद स्वरूप होने के कारण उनको नॉलेजफुल कहा जाता है।
- बुलाते भी हैं हे पतित-पावन, नॉलेजफुल शिवबाबा, उनका नाम सदैव शिव ही है।
- बाकी आत्मायें सब आती हैं पार्ट बजाने।
- तो भिन्न-भिन्न नाम धारण करती हैं।
- बाप को बुलाते हैं परन्तु उनको कुछ भी समझ नहीं रहती।
- जरूर भाग्यशाली रथ भी होगा, जिसमें बाप प्रवेश कर तुमको पावन दुनिया में ले जाये।
- तो बाप समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, मैं उनके तन में आता हूँ जो बहुत जन्मों के अन्त में है, पूरा 84 जन्म लेते हैं।
- भाग्यशाली रथ पर आना पड़ता है।
- पहले नम्बर में तो है श्रीकृष्ण।
- वह है नई दुनिया का मालिक।
- फिर वही नीचे उतरते हैं।
- गोल्डन से सिल्वर, कॉपर, आइरन एज में आकर पड़ते हैं।
- अभी फिर तुम आइरन से गोल्डन बन रहे हो।
- बाप कहते हैं सिर्फ मुझ अपने बाप को याद करो।
- जिसमें प्रवेश किया है उनकी आत्मा में तो ज़रा भी नॉलेज नहीं थी।
- इनमें मैं प्रवेश करता हूँ इसलिए इनको भाग्यशाली रथ कहा जाता है।
- नहीं तो सबसे ऊंच तो यह लक्ष्मी-नारायण हैं, इनमें प्रवेश करना चाहिए।
- परन्तु उनमें परमात्मा प्रवेश नहीं करते इसलिए उनको भाग्यशाली रथ नहीं कहा जाता है।
- रथ में आकर पतितों को पावन बनाना है, तो जरूर कलियुगी तमोप्रधान होगा ना।
- खुद कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ।
- गीता में भी अक्षर एक्यूरेट हैं।
- गीता को ही सर्व शास्त्रमई शिरोमणी कहा जाता है।
- इस संगमयुग पर ही बाप आकर ब्राह्मण कुल और देवता कुल स्थापन करते हैं।
- बहुत जन्मों के अन्त में अर्थात् संगमयुग पर ही बाप आते हैं।
- बाप कहते हैं मैं बीजरूप हूँ।
- कृष्ण तो है सतयुग का रहवासी।
- उनको दूसरी जगह तो कोई देख न सके।
- पुनर्जन्म में तो नाम, रूप, देश, काल सब बदल जाता है।
- फीचर्स ही बदल जाते हैं।
- पहले छोटा बच्चा सुन्दर होता है फिर बड़ा होता है वह फिर शरीर छोड़ दूसरा छोटा लेता है।
- यह बना-बनाया खेल ड्रामा के अन्दर फिक्स है।
- दूसरा शरीर लिया तो उनको कृष्ण नहीं कहेंगे।
- उस दूसरे शरीर पर नाम आदि फिर दूसरा पड़ेगा।
- समय, फीचर्स, तिथि-तारीख आदि सब बदल जाता है।
- वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी हूबहू रिपीट कहा जाता है।
- तो यह ड्रामा रिपीट होता रहता है।
- सतो, रजो, तमो में आना ही है।
- सृष्टि का नाम, युग का नाम सब बदलते रहते हैं।
- अभी यह है संगमयुग।
- मैं आता ही हूँ संगम पर।
- मैं तुमको सारी दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी सत्य बताता हूँ।
- आदि से लेकर अन्त तक और कोई भी जानता ही नहीं।
- सतयुग की आयु कितनी थी, यह पता न होने कारण लाखों वर्ष कह देते हैं।
- अभी तुम्हारी बुद्धि में सब बातें हैं।
- तुम्हें अन्दर में यह पक्का करना है कि बाप, बाप-टीचर-सतगुरू है, जो फिर से सतोप्रधान बनने के लिए बहुत अच्छी युक्ति बताते हैं।
- गीता में भी है देह सहित देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझो।
- वापिस अपने घर जरूर जाना है।
- भक्ति मार्ग में कितनी मेहनत करते हैं, भगवान पास जाने के लिए।
- वह है मुक्तिधाम, कर्म से मुक्त।
- हम इनकारपोरियल दुनिया में जाकर बैठते हैं।
- पार्टधारी घर गया तो पार्ट से मुक्त हुआ।
- सब चाहते हैं हम मुक्ति पायें।
- मोक्ष तो किसको मिल न सके।
- यह ड्रामा अनादि-अविनाशी है।
- कोई कहे यह पार्ट आने-जाने का हमको पसन्द नहीं, परन्तु इसमें कुछ कर न सकें।
- यह अनादि ड्रामा बना हुआ है।
- एक भी मोक्ष पा नहीं सकते।
- वह सब है अनेक प्रकार की मनुष्य मत।
- यह है श्रीमत, श्रेष्ठ बनाने के लिए।
- मनुष्य को श्रेष्ठ नहीं कहेंगे।
- देवताओं को श्रेष्ठ कहा जाता है।
- उन्हों के आगे सब नमन करते हैं।
- तो वह श्रेष्ठ ठहरे ना।
- कृष्ण देवता है बैकुण्ठ का प्रिन्स।
- वह यहाँ कैसे आयेगा।
- न उसने गीता सुनाई।
- शिव के आगे जाकर कहते हैं हमको मुक्ति दो।
- वह तो कभी जीवनमुक्त, जीवनबंध में आते ही नहीं इसलिए उनको पुकारते हैं मुक्ति दो।
- जीवनमुक्ति भी वह देते हैं।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) हम सब आत्मा रूप में भाई-भाई हैं, यह पाठ पक्का करना और कराना है।
- अपने संस्कारों को याद से सम्पूर्ण पावन बनाना है।
- 2) 24 कैरेट सच्चा सोना (सतोप्रधान) बनने के लिए कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति को बुद्धि में रख अब कोई भी विकर्म नहीं करना है।
- वरदान:-
- All Blessings of 2021
- समय पर हर गुण वा शक्ति को यूज़ करने वाले अनुभवी मूर्त भव
- ब्राह्मण जीवन की विशेषता है अनुभव।
- अगर एक भी गुण वा शक्ति की अनुभूति नहीं तो कभी न कभी विघ्न के वश हो जायेंगे।
- अभी अनुभूति का कोर्स शुरू करो।
- हर गुण वा शक्ति रूपी खजाने को यूज करो।
- जिस समय जिस गुण की आवश्यकता है उस समय उसका स्वरूप बन जाओ।
- नॉलेज की रीति से बुद्धि के लाकर में खजाने को रख नहीं दो, यूज़ करो तब विजयी बन सकेंगे और वाह रे मैं का गीत सदा गाते रहेंगे।
- स्लोगन:-
- All Slogans of 2021
- नाज़ुकपन के संकल्पों को समाप्त कर शक्तिशाली संकल्प रचने वाले ही डबल लाइट रहते हैं।
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