- ओम् शान्ति। बाप बैठ समझाते हैं, यह दादा भी समझते हैं क्योंकि
बाप बैठ दादा द्वारा समझाते हैं।
- तुम जैसे समझते हो वैसे दादा भी
समझते हैं।
- दादा को भगवान नहीं कहा जाता।
- यह है भगवानुवाच।
- बाप मुख्य क्या समझाते हैं कि देही-अभिमानी बनो।
- यह क्यों कहते
हैं?
- क्योंकि अपने को आत्मा समझने से हम पतित-पावन परमपिता
परमात्मा से पावन बनने वाले हैं।
- यह बुद्धि में ज्ञान है।
- सबको
समझाना है, पुकारते भी हैं कि हम पतित हैं।
- नई दुनिया पावन जरूर
ही होगी।
- नई दुनिया बनाने वाला, स्थापन करने वाला बाप है।
- उनको
ही पतित-पावन बाबा कह बुलाते हैं।
- पतित-पावन, साथ में उनको बाप
कहते हैं।
- बाप को आत्मायें बुलाती हैं।
- शरीर नहीं बुलायेगा।
- हमारी
आत्मा का बाप पारलौकिक है, वही पतित-पावन है।
- यह तो अच्छी
रीति याद रहना चाहिए।
- यह नई दुनिया है या पुरानी दुनिया है, यह
समझ तो सकते हैं ना।
- ऐसे भी बुद्धू हैं, जो समझते हैं हमको सुख
अपार हैं।
- हम तो जैसे स्वर्ग में बैठे हैं।
- परन्तु यह भी समझना चाहिए
कि कलियुग को कभी स्वर्ग कह नहीं सकते।
- नाम ही है कलियुग,
पुरानी पतित दुनिया।
- अन्तर है ना।
- मनुष्यों की बुद्धि में यह भी नहीं
बैठता है। बिल्कुल ही जड़जड़ीभूत अवस्था है।
- बच्चे नहीं पढ़ते हैं तो
कहते हैं ना कि तुम तो पत्थरबुद्धि हो।
- बाबा भी लिखते हैं तुम्हारे गांव
निवासी तो बिल्कुल पत्थरबुद्धि हैं।
- समझते नहीं हैं क्योंकि दूसरों को
समझाते नहीं हैं।
- खुद पारसबुद्धि बनते हैं तो दूसरे को भी बनाना
चाहिए।
- पुरुषार्थ करना चाहिए।
- इसमें लज्जा आदि की तो बात ही
नहीं।
- परन्तु मनुष्यों की बुद्धि में आधाकल्प उल्टे अक्षर पड़े हैं तो वह
भूलते नहीं हैं।
- कैसे भुलायें?
- भुलवाने की ताकत भी तो एक बाप के
पास ही है।
- बाप बिगर यह ज्ञान तो कोई दे नहीं सकते।
- गोया सब
अज्ञानी ठहरे।
- उनका ज्ञान फिर कहाँ से आये!
- जब तक ज्ञान सागर
बाप आकर न सुनाये।
- तमोप्रधान माना ही अज्ञानी दुनिया।
- सतोप्रधान
माना दैवी दुनिया।
- फ़र्क तो है ना।
- देवी-देवतायें ही पुनर्जन्म लेते हैं।
समय भी फिरता रहता है।
- बुद्धि भी कमजोर होती जाती है।
- बुद्धि का
योग लगाने से जो ताकत मिले वह फिर खलास हो जाती है।
- अभी तुमको बाप समझाते हैं तो तुम कितने रिफ्रेश होते हो।
- तुम
रिफ्रेश थे और विश्राम में थे।
- बाप भी लिखते हैं ना - बच्चों आकर
रिफ्रेश भी हो जाओ और विश्राम भी पाओ।
- रिफ्रेश होने बाद तुम
सतयुग में विश्रामपुरी में जाते हो।
- वहाँ तुमको बहुत विश्राम मिलता
है।
- वहाँ सुख-शान्ति-सम्पत्ति आदि सब कुछ तुमको मिलता है।
- तो
बाबा के पास आते हैं रिफ्रेश होने, विश्राम पाने।
- रिफ्रेश भी शिवबाबा
करते हैं।
- विश्राम भी बाबा के पास लेते हो।
- विश्राम माना शान्त।
- थक
कर विश्रामी होते हैं ना!
- कोई कहाँ, कोई कहाँ जाते हैं विश्राम पाने।
- उसमें तो रिफ्रेशमेन्ट की बात ही नहीं।
- यहाँ तुमको बाप रोज़ समझाते
हैं तो तुम यहाँ आकर रिफ्रेश होते हो।
- याद करने से तुम तमोप्रधान से
सतोप्रधान बनते हो।
- सतोप्रधान बनने के लिए ही तुम यहाँ आते हो।
- उसके लिए क्या पुरुषार्थ है?
- मीठे-मीठे बच्चे बाप को याद करो।
- बाप
ने सारी शिक्षा तो दी है।
- यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, तुमको
विश्राम कैसे मिलता है।
- और कोई भी यह बातें नहीं जानते तो उन्हों
को भी समझाना चाहिए, ताकि वह भी तुम जैसा रिफ्रेश हो जाए।
- अपना फ़र्ज ही यह है, सबको पैगाम देना।
- अविनाशी रिफ्रेश होना है।
- अविनाशी विश्राम पाना है।
- सबको यह पैगाम दो।
- यही याद दिलाना है
कि बाप को और वर्से को याद करो।
- है तो बहुत सहज बात।
- बेहद का
बाप स्वर्ग रचते हैं।
- स्वर्ग का ही वर्सा देते हैं।
- अभी तुम हो संगमयुग
पर।
- माया के श्राप और बाप के वर्से को तुम जानते हो।
- जब माया
रावण का श्राप मिलता है तो पवित्रता भी खत्म, सुख-शान्ति भी
खत्म, तो धन भी खत्म हो जाता है।
- कैसे धीरे-धीरे खत्म होता है -
वह भी बाप ने समझाया है।
- कितने जन्म लगते हैं, दु:खधाम में कोई
विश्राम थोड़ेही होता है।
- सुखधाम में विश्राम ही विश्राम है।
- मनुष्यों को
भक्ति कितना थकाती है।
- जन्म-जन्मान्तर भक्ति थका देती है।
- कंगाल कर देती है।
- यह भी अब तुमको बाप समझाते हैं।
- नये-नये
आते हैं तो कितना समझाया जाता है।
- हर एक बात पर मनुष्य बहुत
सोच करते हैं।
- समझते हैं कहाँ जादू न हो।
- अरे तुम कहते हो जादूगर।
- तो मैं भी कहता हूँ - जादूगर हूँ।
- परन्तु जादू कोई वह नहीं है जो
भेड़-बकरी आदि बना देंगे।
- जानवर तो नहीं हैं ना।
- यह बुद्धि से समझा
जाता है।
- गायन भी है सुरमण्डल के साज से.... इस समय मनुष्य
जैसे रिढ़ मिसल है।
- यह बातें यहाँ के लिए हैं।
- सतयुग में नहीं गाते,
इस समय का ही गायन है।
- चण्डिका का कितना मेला लगता है।
- पूछो
वह कौन थी?
- कहेंगे देवी।
- अब ऐसा नाम तो वहाँ होता नहीं।
- सतयुग
में तो सदैव शुभ नाम होता है।
- श्री रामचन्द्र, श्रीकृष्ण.. श्री कहा जाता
है श्रेष्ठ को।
- सतयुगी सम्प्रदाय को श्रेष्ठ कहा जाता है।
- कलियुगी
विशश सम्प्रदाय को श्रेष्ठ कैसे कहेंगे।
- श्री माना श्रेष्ठ।
- अभी के मनुष्य
तो श्रेष्ठ है नहीं।
- गायन भी है मनुष्य से देवता......फिर देवता से
मनुष्य बनते हैं क्योंकि 5 विकारों में जाते हैं।
- रावण राज्य में सब
मनुष्य ही मनुष्य हैं।
- वहाँ हैं देवतायें।
- उनको डीटी वर्ल्ड, इसको ह्युमन
वर्ल्ड कहा जाता है।
- डीटी वर्ल्ड को दिन कहा जाता है।
- ह्युमन वर्ल्ड
को रात कहा जाता है।
- दिन सोझरे को कहा जाता है।
- रात अज्ञान
अन्धियारे को कहा जाता है।
- इस फ़र्क को तुम जानते हो।
- तुम
समझते हो हम पहले कुछ भी नहीं जानते थे।
- अभी सब बातें बुद्धि में
हैं।
- ऋषि-मुनियों से पूछते हैं रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को
जानते हो तो वह भी नेती-नेती कर गये।
- हम नहीं जानते।
- अभी तुम
समझते हो हम भी पहले नास्तिक थे।
- बेहद के बाप को नहीं जानते
थे।
- वह है असुल अविनाशी बाबा, आत्माओं का बाबा।
- तुम बच्चे
जानते हो हम उस बेहद के बाप के बने हैं, जो कभी जलते नहीं हैं।
- यहाँ तो सब जलते हैं, रावण को भी जलाते हैं।
- शरीर है ना।
- फिर भी
आत्मा को तो कभी कोई जला नहीं सकते।
- तो बच्चों को बाप यह
गुप्त ज्ञान सुनाते हैं, जो बाप के पास ही है।
- यह आत्मा में गुप्त ज्ञान
है।
- आत्मा भी गुप्त है।
- आत्मा इस मुख द्वारा बोलती है इसलिए बाप
कहते हैं - बच्चे, देह-अभिमानी मत बनो।
- आत्म-अभिमानी बनो।
- नहीं
तो जैसे उल्टे बन जाते हो।
- अपने को आत्मा भूल जाते हो।
- ड्रामा के
राज़ को भी अच्छी रीति समझना है।
- ड्रामा में जो नूँध है वह हूबहू
रिपीट होता है।
- यह किसको पता नहीं है।
- ड्रामा अनुसार सेकेण्ड बाई
सेकेण्ड कैसे चलता रहता है, यह भी नॉलेज बुद्धि में है।
- आसमान का
कोई भी पार नहीं पा सकते हैं।
- धरती का पा सकते हैं।
- आकाश सूक्ष्म
है, धरती तो स्थूल है।
- कई चीजों का पार पा नहीं सकते।
- जबकि
कहते भी हैं आकाश ही आकाश, पाताल ही पाताल है।
- शास्त्रों में सुना
है ना, तो ऊपर में भी जाकर देखते हैं।
- वहाँ भी दुनिया बसाने की
कोशिश करते हैं।
- दुनिया बसाई तो बहुत है ना।
- भारत में सिर्फ एक ही
देवी-देवता धर्म था और खण्ड आदि नहीं था फिर कितना बसाया है।
- तुम विचार करो।
- भारत के भी कितने थोड़े टुकड़े में देवतायें होते हैं।
- जमुना का कण्ठा होता है।
- देहली परिस्तान थी, इसको कब्रिस्तान कहा
जाता है, जहाँ अकाले मृत्यु होती रहती है।
- अमरलोक को परिस्तान
कहा जाता है।
- वहाँ बहुत नैचुरल ब्युटी होती है।
- भारत को वास्तव में
परिस्तान कहते थे।
- यह लक्ष्मी-नारायण परिस्तान के मालिक हैं ना।
- कितने शोभावान हैं।
- सतोप्रधान हैं ना।
- नेचुरल ब्युटी थी।
- आत्मा भी
चमकती रहती है।
- बच्चों को दिखाया था कृष्ण का जन्म कैसे होता
है।
- सारे कमरे में ही जैसे चमत्कार हो जाता है।
- तो बाप बच्चों को बैठ
समझाते हैं।
- अभी तुम परिस्तान में जाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो।
- नम्बरवार तो जरूर चाहिए।
- एक जैसे सब हो न सके।
- विचार किया
जाता है, इतनी छोटी आत्मा कितना बड़ा पार्ट बजाती है।
- शरीर से
आत्मा निकल जाती है तो शरीर का क्या हाल हो जाता है।
- सारी
दुनिया के एक्टर्स वही पार्ट बजाते हैं जो अनादि बना हुआ है।
- यह
सृष्टि भी अनादि है।
- उसमें हर एक का पार्ट भी अनादि है।
- उनको
तुम वन्डरफुल तब कहते हो जबकि जानते हो यह सृष्टि रूपी झाड़ है।
- बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं।
- ड्रामा में फिर भी जिसके लिए
जितना समय है उतना समझने में समय लेते हैं।
- बुद्धि में फ़र्क है ना।
- आत्मा मन-बुद्धि सहित है ना तो कितना फ़र्क रहता है।
- बच्चों को
मालूम पड़ता है हमको स्कालरशिप लेने की है।
- तो दिल अन्दर खुशी
होती है ना।
- यहाँ भी अन्दर आने से ही एम ऑब्जेक्ट सामने देखने में
आती है तो जरूर खुशी होगी ना!
- अभी तुम जानते हो यह बनने के
लिए यहाँ पढ़ने आये हैं।
- नहीं तो कभी कोई आ न सके।
- यह है एम
ऑब्जेक्ट।
- ऐसा कोई स्कूल कहाँ भी नहीं होगा जहाँ दूसरे जन्म की
एम ऑब्जेक्ट को देख सके।
- तुम देख रहे हो यह स्वर्ग के मालिक हैं,
हम ही यह बनने वाले हैं।
- हम अभी संगमयुग पर हैं।
- न उस राजाई
के हैं, न इस राजाई के हैं।
- हम बीच में हैं, जा रहे हैं।
- खिवैया (बाप)
भी है निराकार।
- बोट (आत्मा) भी है निराकार।
- बोट को खींचकर
परमधाम में ले जाते हैं।
- इनकारपोरियल बाप इनकारपोरियल बच्चों को
ले जाते हैं।
- बाप ही बच्चों को साथ में ले जायेंगे।
- यह चक्र पूरा होता
है फिर हूबहू रिपीट करना है।
- एक शरीर छोड़ दूसरा लेंगे।
- छोटा बनकर
फिर बड़ा बनेंगे।
- जैसे आम की गुठली को जमीन में डाल देते हैं तो
उनसे फिर आम निकल आयेंगे।
- वह है हद का झाड़।
- यह मनुष्य
सृष्टि रूपी झाड़ है, इनको वैरायटी झाड़ कहा जाता है।
- सतयुग से
लेकर कलियुग तक सब पार्ट बजाते रहते हैं।
- अविनाशी आत्मा 84 के
चक्र का पार्ट बजाती है।
- लक्ष्मी-नारायण थे जो अब नहीं हैं।
- चक्र
लगाए अब फिर यह बनते हैं।
- कहेंगे पहले यह लक्ष्मी-नारायण थे फिर
उन्हों का यह है लास्ट जन्म ब्रह्मा-सरस्वती।
- अभी सबको वापिस
जरूर जाना है।
- स्वर्ग में तो इतने आदमी थे नहीं।
- न इस्लामी, न
बौद्धी.... कोई भी धर्म वाले एक्टर्स नहीं थे, सिवाए देवी-देवताओं के।
- यह समझ भी कोई में नहीं है।
- समझदार को टाइटल मिलना चाहिए
ना।
- जितना जो पढ़ता है नम्बरवार पुरुषार्थ से पद पाता है।
- तो तुम
बच्चों को यहाँ आने से ही यह एम ऑब्जेक्ट देख खुशी होनी चाहिए।
- खुशी का तो पारावार नहीं।
- पाठशाला वा स्कूल हो तो ऐसा।
- है कितनी
गुप्त, परन्तु जबरदस्त पाठशाला है।
- जितनी बड़ी पढ़ाई, उतना बड़ा
कॉलेज।
- वहाँ सब फैसिलिटीज़ मिलती हैं।
- आत्मा को पढ़ना है फिर
चाहे सोने के तख्त पर, चाहे लकड़ी के तख्त पर चढ़े।
- बच्चों को
कितनी खुशी होनी चाहिए क्योंकि शिव भगवानुवाच है ना।
- पहले
नम्बर में है यह विश्व का प्रिन्स।
- बच्चों को अब पता पड़ा है।
- कल्प-कल्प बाप ही आकर अपना परिचय देते हैं।
- मैं इनमें प्रवेश कर
तुम बच्चों को पढ़ा रहा हूँ।
- देवताओं में यह ज्ञान थोड़ेही होगा।
- ज्ञान से
देवता बन गये फिर पढ़ाई की दरकार नहीं, इसमें बड़ी विशालबुद्धि
चाहिए समझने की।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) इस पतित दुनिया का बुद्धि से संन्यास कर पुरानी देह और देह के
सम्बन्धियों को भूल अपनी बुद्धि बाप और स्वर्ग तरफ लगानी है।
- 2) अविनाशी विश्राम का अनुभव करने के लिए बाप और वर्से की
स्मृति में रहना है।
- सबको बाप का पैगाम दे रिफ्रेश करना है।
- रूहानी
सर्विस में लज्जा नहीं करनी है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- सदा बाप के सम्मुख रह खुशी का अनुभव करने वाले अथक और
आलस्य रहित भव
- कोई भी प्रकार के संस्कार या स्वभाव को परिवर्तन करने में
दिलशिकस्त होना या अलबेलापन आना भी थकना है, इससे अथक
बनो।
- अथक का अर्थ है जिसमें आलस्य न हो।
- जो बच्चे ऐसे आलस्य
रहित हैं वे सदा बाप के सम्मुख रहते और खुशी का अनुभव करते हैं।
- उनके मन में कभी दु:ख की लहर नहीं आ सकती इसलिए सदा
सम्मुख रहो और खुशी का अनुभव करो।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- सिद्धि स्वरूप बनने के लिए हर संकल्प में पुण्य और बोल में दुआयें
जमा करते चलो।
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