24-01-21 प्रात:मुरली मधुबन

"अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 17 -10-87

ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार - ‘पवित्रता'

  • आज बापदादा अपने विश्व के चारों ओर के विशेष होवनहार पूज्य बच्चों को देख रहे हैं।
  • सारे विश्व में से कितने थोड़े अमूल्य रत्न पूजनीय बने हैं!
  • पूजनीय आत्मायें ही विश्व के लिए विशेष जहान के नूर बन जाते हैं।
  • जैसे इस शरीर में नूर नहीं तो जहान नहीं, ऐसे विश्व के अन्दर पूजनीय जहान के नूर आप श्रेष्ठ आत्मायें नहीं तो विश्व का भी महत्व नहीं।
  • स्वर्ण-युग वा आदि-युग वा सतोप्रधान युग, नया संसार आप विशेष आत्माओं से आरम्भ होता है।
  • नये विश्व के आधार-मूर्त, पूजनीय आत्मायें आप हो।
  • तो आप आत्माओं का कितना महत्व है!
  • आप पूज्य आत्मायें संसार के लिए नई रोशनी हो।
  • आपकी चढ़ती कला विश्व को श्रेष्ठ कला में लाने के निमित्त बनती है।
  • आप गिरती कला में आते हो तो संसार की भी गिरती कला होती है।
  • आप परिवर्तन होते हो तो विश्व भी परिवर्तन होता है।
  • इतने महान् और महत्व वाली आत्मायें हो!
  • आज बापदादा सर्व बच्चों को देख रहे थे।
  • ब्राह्मण बनना अर्थात् पूज्य बनना क्योंकि ब्राह्मण सो देवता बनते हैं और देवतायें अर्थात् पूजनीय।
  • सभी देवतायें पूजनीय तो हैं, फिर भी नम्बरवार जरूर हैं।
  • किन देवताओं की पूजा विधिपूर्वक और नियमित रूप से होती है और किन्हों की पूजा विधिपूर्वक नियमित रूप से नहीं होती।
  • किन्हों के हर कर्म की पूजा होती है और किन्हों के हर कर्म की पूजा नहीं होती है।
  • कोई का विधिपूर्वक हर रोज श्रृंगार होता है और कोई का श्रृंगार रोज़ नहीं होता है, ऊपर-ऊपर से थोड़ा-बहुत सजा लेते हैं लेकिन विधिपूर्वक नहीं।
  • कोई के आगे सारा समय कीर्तन होता और कोई के आगे कभी-कभी कीर्तन होता है।
  • इन सभी का कारण क्या है?
  • ब्राह्मण तो सभी कहलाते हैं, ज्ञान-योग की पढ़ाई भी सभी करते हैं, फिर भी इतना अन्तर क्यों?
  • धारणा करने में अन्तर है।
  • फिर भी विशेष कौनसी धारणाओं के आधार पर नम्बरवार होते हैं, जानते हो?
  • पूजनीय बनने का विशेष आधार पवित्रता के ऊपर है।
  • जितना सर्व प्रकार की पवित्रता को अपनाते हैं, उतना ही सर्व प्रकार के पूजनीय बनते हैं और जो निरन्तर विधिपूर्वक आदि, अनादि विशेष गुण के रूप से पवित्रता को सहज अपनाते हैं, वही विधिपूर्वक पूज्य बनते हैं। सर्व प्रकार की पवित्रता क्या है?
  • जो आत्मायें सहज, स्वत: हर संकल्प में, बोल में, कर्म में सर्व अर्थात् ज्ञानी और अज्ञानी आत्मायें, सर्व के सम्पर्क में सदा पवित्र वृत्ति, दृष्टि, वायब्रेशन से यथार्थ सम्पर्क-सम्बन्ध निभाते हैं - इसको ही सर्व प्रकार की पवित्रता कहते हैं।
  • स्वप्न में भी स्वयं के प्रति या अन्य कोई आत्मा के प्रति सर्व प्रकार की पवित्रता में से कोई कमी न हो।
  • मानो स्वप्न में भी ब्रह्मचर्य खण्डित होता है वा किसी आत्मा के प्रति किसी भी प्रकार की ईर्ष्या वा आवेश के वश कर्म होता या बोल निकलता है, क्रोध के अंश रूप में भी व्यवहार होता है तो इसको भी पवित्रता का खण्डन माना जायेगा।
  • सोचो, जब स्वप्न का भी प्रभाव पड़ता है तो साकार में किये हुए कर्म का कितना प्रभाव पड़ता होगा!
  • इसलिए खण्डित मूर्ति कभी पूजनीय नहीं होती।
  • खण्डित मूर्तियाँ मन्दिरों में नहीं रहती, आजकल के म्यूज़ियम में रहती हैं।
  • वहाँ भक्त नहीं आते।
  • सिर्फ यही गायन होता है कि बहुत पुरानी मूर्तियाँ हैं, बस।
  • उन्होंने स्थूल अंगों के खण्डित को खण्डित कह दिया है लेकिन वास्तव में किसी भी प्रकार की पवित्रता में खण्डन होता है तो वह पूज्य-पद से खण्डित हो जाते हैं।
  • ऐसे, चारों प्रकार की पवित्रता विधिपूर्वक है तो पूजा भी विधिपूर्वक होती है।
  • मन, वाणी, कर्म (कर्म में सम्बन्ध सम्पर्क आ जाता है) और स्वप्न में भी पवित्रता - इसको कहते हैं सम्पूर्ण पवित्रता।
  • कई बच्चे अलबेलेपन में आने के कारण, चाहे बड़ों को, चाहे छोटों को, इस बात में चलाने की कोशिश करते हैं कि मेरा भाव बहुत अच्छा है लेकिन बोल निकल गया, वा मेरी एम (लक्ष्य) ऐसे नहीं थी लेकिन हो गया, या कहते हैं कि हंसी-मजाक में कह दिया अथवा कर लिया।
  • यह भी चलाना है इसलिए पूजा भी चलाने जैसी होती है।
  • यह अलबेलापन सम्पूर्ण पूज्य स्थिति को नम्बरवार में ले आता है।
  • यह भी अपवित्रता के खाते में जमा होता है।
  • सुनाया ना - पूज्य, पवित्र आत्माओं की निशानी यही है - उन्हों की चारों प्रकार की पवित्रता स्वभाविक, सहज और सदा होगी।
  • उनको सोचना नहीं पड़ेगा लेकिन पवित्रता की धारणा स्वत: ही यथार्थ संकल्प, बोल, कर्म और स्वप्न लाती है।
  • यथार्थ अर्थात् एक तो युक्तियुक्त, दूसरा यथार्थ अर्थात् हर संकल्प में अर्थ होगा, बिना अर्थ नहीं होगा।
  • ऐसे नहीं कि ऐसे ही बोल दिया, निकल गया, कर लिया, हो गया।
  • ऐसी पवित्र आत्मा सदा हर कर्म में अर्थात् दिनचर्या में यथार्थ युक्तियुक्त रहती है।
  • इसलिए पूजा भी उनके हर कर्म की होती है अर्थात् पूरे दिनचर्या की होती है।
  • उठने से लेकर सोने तक भिन्न-भिन्न कर्म के दर्शन होते हैं।
  • अगर ब्राह्मण जीवन की बनी हुई दिनचर्या प्रमाण कोई भी कर्म यथार्थ वा निरन्तर नहीं करते तो उसके अन्तर के कारण पूजा में भी अन्तर पड़ेगा।
  • मानो कोई अमृतवेले उठने की दिनचर्या में विधिपूर्वक नहीं चलते, तो पूजा में भी उनके पुजारी भी उस विधि में नीचे-ऊपर करते अर्थात् पुजारी भी समय पर उठकर पूजा नहीं करेगा, जब आया तब कर लेगा अथवा अमृतवेले जागृत स्थिति में अनुभव नहीं करते, मजबूरी से वा कभी सुस्ती, कभी चुस्ती के रूप में बैठते तो पुजारी भी मजबूरी से या सुस्ती से पूजा करेंगे, विधिपूर्वक पूजा नहीं करेंगे।
  • ऐसे हर दिनचर्या के कर्म का प्रभाव पूजनीय बनने में पड़ता है।
  • विधिपूर्वक न चलना, कोई भी दिनचर्या में ऊपर-नीचे होना - यह भी अपवित्रता के अंश में गिनती होता है क्योंकि आलस्य और अलबेलापन भी विकार है।
  • जो यथार्थ कर्म नहीं है वह विकार है।
  • तो अपवित्रता का अंश हो गया ना।
  • इस कारण पूज्य पद में नम्बरवार हो जाते हैं।
  • तो फाउन्डेशन क्या रहा? पवित्रता।
  • पवित्रता की धारणा बहुत महीन है।
  • पवित्रता के आधार पर ही कर्म की विधि और गति का आधार है।
  • पवित्रता सिर्फ मोटी बात नहीं है।
  • ब्रह्मचारी रहे या निर्मोही हो गये - सिर्फ इसको ही पवित्रता नहीं कहेंगे।
  • पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है।
  • तो हर समय पवित्रता के श्रृंगार की अनुभूति चेहरे से, चलन से औरों को हो।
  • दृष्टि में, मुख में, हाथों में, पांवों में सदा पवित्रता का श्रृंगार प्रत्यक्ष हो।
  • कोई भी चेहरे तरफ देखे तो फीचर्स से उन्हें पवित्रता अनुभव हो।
  • जैसे और प्रकार के फीचर्स वर्णन करते हैं, वैसे यह वर्णन करें कि इनके फीचर्स से पवित्रता दिखाई देती है, नयनों में पवित्रता की झलक है, मुख पर पवित्रता की मुस्कराहट है।
  • और कोई बात उन्हें नज़र न आये।
  • इसको कहते हैं पवित्रता के श्रृंगार से श्रृंगारी हुई मूर्त। समझा?
  • पवित्रता की तो और भी बहुत गुह्यता है, वह फिर सुनाते रहेंगे।
  • जैसे कर्मों की गति गहन है, पवित्रता की परिभाषा भी बड़ी गुह्य है और पवित्रता ही फाउन्डेशन है।
  • अच्छा। आज गुजरात आया है।
  • गुजरात वाले सदा हल्के बन नाचते और गाते हैं।
  • चाहे शरीर में कितने भी भारी हों लेकिन हल्के बन नाचते हैं।
  • गुजरात की विशेषता है - सदा हल्का रहना, सदा खुशी में नाचते रहना और बाप के वा अपने प्राप्तियों के गीत गाते रहना।
  • बचपन से ही नाचते-गाते अच्छा हैं।
  • ब्राह्मण जीवन में क्या करते हो?
  • ब्राह्मण जीवन अर्थात् मौजों की जीवन।
  • गर्भा रास करते हो तो मौज में आ जाते हो ना।
  • अगर मौज में न आये तो ज्यादा कर नहीं सकेंगे।
  • मौज-मस्ती में थकावट नहीं होती है, अथक बन जाते हैं।
  • तो ब्राह्मण जीवन अर्थात् सदा मौज में रहने की जीवन, वह है स्थूल मौज और ब्राह्मण जीवन की है मन की मौज।
  • सदा मन मौज में नाचता और गाता रहे।
  • वह लोग हल्के बन नाचने-गाने के अभ्यासी हैं।
  • तो इन्हों को ब्राह्मण जीवन में भी डबल लाइट (हल्का) बनने में मुश्किल नहीं होती।
  • तो गुजरात अर्थात् सदा हल्के रहने के अभ्यासी कहो, वरदानी कहो।
  • तो सारे गुजरात को वरदान मिल गया - डबल लाइट।
  • मुरली द्वारा भी वरदान मिलते हैं ना।
  • सुनाया ना - आपकी इस दुनिया में यथा शक्ति, यथा समय होता है।
  • यथा और तथा।
  • और वतन में तो यथा-तथा की भाषा ही नहीं है।
  • यहाँ दिन भी तो रात भी देखना पड़ता।
  • वहाँ न दिन, न है रात; न सूर्य उदय होता, न चन्द्रमा।
  • दोनों से परे है।
  • आना तो वहाँ है ना।
  • बच्चों ने रूहरिहान में कहा ना कि कब तक?
  • बापदादा कहते हैं कि आप सभी कहो कि हम तैयार हैं तो ‘अभी' कर लेंगे।
  • फिर ‘कब' का तो सवाल ही नहीं है।
  • ‘कब' तब तक है जब तक सारी माला तैयार नहीं हुई है।
  • अभी नाम निकालने बैठते हो तो 108 में भी सोचते हो कि यह नाम डालें वा नहीं?
  • अभी 108 की माला में भी सभी वही 108 नाम बोलें।
  • नहीं, फर्क हो जायेगा।
  • बापदादा तो अभी घड़ी ताली बजावे और ठकाठक शुरू हो जायेगी - एक तरफ प्रकृति, एक तरफ व्यक्तियाँ।
  • क्या देरी लगती।
  • लेकिन बाप का सभी बच्चों में स्नेह है।
  • हाथ पकड़ेंगे, तब तो साथ चलेंगे।
  • हाथ में हाथ मिलाना अर्थात् समान बनना।
  • आप कहेंगे - सभी समान अथवा सभी तो नम्बरवन बनेंगे नहीं।
  • लेकिन नम्बरवन के पीछे नम्बर टू होगा।
  • अच्छा, बाप समान नहीं बनें लेकिन नम्बरवन दाना जो होगा वह समान होगा।
  • तीसरा दो के समान बने।
  • चौथा तीन के समान बने।
  • ऐसे तो समान बनें, तो एक दो के समीप होते-होते माला तैयार हो।
  • ऐसी स्टेज तक पहुँचना अर्थात् समान बनना।
  • 108 दाना 107 से तो मिलेगा ना।
  • उन जैसी विशेषता भी आ जाए तो भी माला तैयार हो जायेगी।
  • नम्बरवार तो होना ही है। समझा?
  • बाप तो कहते - अभी कोई है गैरन्टी करने वाला कि हाँ, सब तैयार हैं?
  • बापदादा को तो सेकेण्ड लगता।
  • दृश्य दिखाते थे ना - ताली बजाई और परियाँ आ गई।
  • अच्छा। चारों ओर के परम पूज्य श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व सम्पूर्ण पवित्रता के लक्ष्य तक पहुँचने वाले तीव्र पुरूषार्थी आत्माओं को, सदा हर कर्म में विधिपूर्वक कर्म करने वाले सिद्धि-स्वरूप आत्माओं को, सदा हर समय पवित्रता के श्रृंगार में सजी हुई विशेष आत्माओं को बापदादा का स्नेह सम्पन्न यादप्यार स्वीकार हो।
  • पार्टियों से मुलाकात
  • 1. विश्व में सबसे ज्यादा श्रेष्ठ भाग्यवान अपने को समझते हो?
  • सारा विश्व जिस श्रेष्ठ भाग्य के लिए पुकार रहा है कि हमारा भाग्य खुल जाए... आपका भाग्य तो खुल गया।
  • इससे बड़ी खुशी की बात और क्या होगी!
  • भाग्यविधाता ही हमारा बाप है - ऐसा नशा है ना!
  • जिसका नाम ही भाग्यविधाता है उसका भाग्य क्या होगा!
  • इससे बड़ा भाग्य कोई हो सकता है?
  • तो सदा यह खुशी रहे कि भाग्य तो हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार हो गया।
  • बाप के पास जो भी प्रापर्टी होती है, बच्चे उसके अधिकारी होते हैं।
  • तो भाग्यविधाता के पास क्या है?
  • भाग्य का खज़ाना।
  • उस खज़ाने पर आपका अधिकार हो गया।
  • तो सदैव ‘वाह मेरा भाग्य और भाग्य-विधाता बाप'!
  • - यही गीत गाते खुशी में उड़ते रहो।
  • जिसका इतना श्रेष्ठ भाग्य हो गया उसको और क्या चाहिए?
  • भाग्य में सब कुछ आ गया।
  • भाग्यवान के पास तन-मन-धन-जन सब कुछ होता है।
  • श्रेष्ठ भाग्य अर्थात् अप्राप्त कोई वस्तु नहीं।
  • कोई अप्राप्ति है?
  • मकान अच्छा चाहिए, कार अच्छी चाहिए... नहीं।
  • जिसको मन की खुशी मिल गई, उसे सर्व प्राप्तियाँ हो गई!
  • कार तो क्या लेकिन कारून का खजाना मिल गया!
  • कोई अप्राप्त वस्तु है ही नहीं।
  • ऐसे भाग्यवान हो!
  • विनाशी इच्छा क्या करेंगे।
  • जो आज है, कल है ही नहीं - उसकी इच्छा क्या रखेंगे इसलिए, सदा अविनाशी खज़ाने की खुशियों में रहो जो अब भी है और साथ में भी चलेगा।
  • यह मकान, कार वा पैसे साथ नहीं चलेंगे लेकिन यह अविनाशी खज़ाना अनेक जन्म साथ रहेगा।
  • कोई छीन नहीं सकता, कोई लूट नहीं सकता।
  • स्वयं भी अमर बन गये और खज़ाने भी अविनाशी मिल गये!
  • जन्म-जन्म यह श्रेष्ठ प्रालब्ध साथ रहेगी।
  • कितना बड़ा भाग्य है!
  • जहाँ कोई इच्छा नहीं, इच्छा मात्रम् अविद्या है - ऐसा श्रेष्ठ भाग्य भाग्यविधाता बाप द्वारा प्राप्त हो गया।
  • 2. अपने को बाप के समीप रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो?
  • बाप के बन गये - यह खुशी सदा रहती है?
  • दु:ख की दुनिया से निकल सुख के संसार में आ गये।
  • दुनिया दु:ख में चिल्ला रही है और आप सुख के संसार में, सुख के झूले में झूल रहे हो।
  • कितना अन्तर है!
  • दुनिया ढूंढ रही है और आप मिलन मना रहे हो।
  • तो सदा अपनी सर्व प्राप्तियों को देख हर्षित रहो।
  • क्या-क्या मिला है, उसकी लिस्ट निकालो तो बहुत लम्बी लिस्ट हो जायेगी।
  • क्या-क्या मिला?
  • तन में खुशी मिली, तो तन की तन्दरुस्ती है; मन में शान्ति मिली, तो शान्ति मन की विशेषता है और धन में इतनी शक्ति आई जो दाल-रोटी 36 प्रकार के समान अनुभव हो।
  • ईश्वरीय याद में दाल-रोटी भी कितनी श्रेष्ठ लगती है!
  • दुनिया के 36 प्रकार हों और आप की दाल-रोटी हो तो श्रेष्ठ क्या लगेगा?
  • दाल-रोटी अच्छी है ना क्योंकि प्रसाद है ना।
  • जब भोजन बनाते हो तो याद में बनाते हो, याद में खाते हो तो प्रसाद हो गया।
  • प्रसाद का महत्व होता है।
  • आप सभी रोज़ प्रसाद खाते हो।
  • प्रसाद में कितनी शक्ति होती है!
  • तो तन-मन-धन सभी में शक्ति आ गई इसलिए कहते हैं - अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खजाने में।
  • तो सदा इन प्राप्तियों को सामने रख खुश रहो, हर्षित रहो, अच्छा।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • कर्म द्वारा गुणों का दान करने वाले डबल लाइट फरिश्ता भव
  • जो बच्चे कर्मणा द्वारा गुणों का दान करते हैं उनकी चलन और चेहरा दोनों ही फरिश्ते की तरह दिखाई देते हैं।
  • वे डबल लाइट अर्थात् प्रकाशमय और हल्केपन की अनुभूति करते हैं।
  • उन्हें कोई भी बोझ महसूस नहीं होता है।
  • हर कर्म में मदद की महसूसता होती है।
  • जैसे कोई शक्ति चला रही है।
  • हर कर्म द्वारा महादानी बनने के कारण उन्हें सर्व की आशीर्वाद वा सर्व के वरदानों की प्राप्ति का अनुभव होता है।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • सेवा में सफलता का सितारा बनो, कमजोर नहीं।