- ओम् शान्ति। बाबा इस शरीर द्वारा समझाते हैं।
- इनको जीव कहा
जाता, इनमें आत्मा भी है और तुम बच्चे जानते हो परमपिता
परमात्मा
भी इनमें है।
- यह तो पहले-पहले पक्का होना चाहिए इसलिए
इनको दादा भी कहते हैं।
- यह तो बच्चों को निश्चय है।
- इस निश्चय में
ही रमण करना है।
- बरोबर बाबा ने जिसमें पधरामणी की है वा अवतार
लिया है उनके लिए बाप खुद कहते हैं मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त
के भी अन्त में आता हूँ।
- बच्चों को समझाया गया है यह है सर्व
शास्त्र शिरोमणी गीता का ज्ञान।
- श्रीमत अर्थात् श्रेष्ठ मत।
- श्रेष्ठ ते
श्रेष्ठ मत है ऊंच ते ऊंच भगवान की।
- जिसकी श्रीमत से तुम मनुष्य
से देवता बनते हो।
- तुम भ्रष्ट मनुष्य से श्रेष्ठ देवता बनते हो।
- तुम
आते ही इसलिए हो।
- बाप भी खुद कहते हैं मैं आता हूँ तुमको
श्रेष्ठाचारी, निर्विकारी मत वाले देवी-देवता बनाने।
- मनुष्य से देवता
बनने का अर्थ भी समझना है।
- विकारी मनुष्य से निर्विकारी देवता
बनाने आते हैं।
- सतयुग में मनुष्य रहते हैं परन्तु दैवीगुणों वाले।
- अभी
कलियुग में हैं आसुरी गुणों वाले।
- है सारी मनुष्य सृष्टि, परन्तु वह है
ईश्वरीय बुद्धि, यह है आसुरी बुद्धि।
- वहाँ ज्ञान, यहाँ भक्ति।
- ज्ञान और
भक्ति अलग-अलग है ना।
- भक्ति की पुस्तक कितनी और ज्ञान की
पुस्तक कितनी है।
- ज्ञान का सागर बाप है।
- उनका पुस्तक भी तो एक
ही होना चाहिए।
- जो भी धर्म स्थापन करते हैं, उनका पुस्तक एक होना
चाहिए।
- उनको रिलीजस बुक कहा जाता है।
- पहला रिलीजस बुक है
गीता।
- श्रीमद् भगवत गीता।
- यह भी बच्चे जानते हैं - पहला आदि
सनातन देवी-देवता धर्म है, न कि हिन्दू धर्म।
- मनुष्य समझते हैं गीता
से हिन्दू धर्म स्थापन हुआ और गीता गाई है कृष्ण ने।
- कोई से पूछो
तो कहेंगे परम्परा से यह कृष्ण ने गाई है।
- कोई शास्त्र में शिव
भगवानुवाच है नहीं।
- श्रीमद् कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है, जो गीता
पढ़े होंगे उनको सहज समझ में आयेगा।
- अभी तुम समझते हो इसी
गीता ज्ञान से मनुष्य से देवता बने हैं, जो अभी बाप तुमको दे रहे हैं।
- राजयोग सिखा रहे हैं।
- पवित्रता भी सिखा रहे हैं।
- काम महाशत्रु है, इस
द्वारा ही तुमने हार खाई है।
- अब फिर उन पर जीत पाने से तुम
जगतजीत अर्थात् विश्व का मालिक बन जाते हो।
- यह तो बहुत सहज
है।
- बेहद का बाप बैठ इनके द्वारा तुमको पढ़ाते हैं।
- वह है सभी
आत्माओं का बाप।
- यह फिर है बेहद का बाप मनुष्यों का।
- नाम ही है
प्रजापिता ब्रह्मा।
- तुम कोई से भी पूछेंगे ब्रह्मा के बाप का नाम
बताओ तो मूँझ पड़ेंगे।
- ब्रह्मा-विष्णु-शंकर है क्रियेशन।
- इन तीनों का
कोई तो बाप होगा ना।
- तुम दिखाते हो इन तीनों का बाप है निराकार
शिव।
- ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को सूक्ष्मवतन के देवतायें दिखलाते हैं।
- उनके
ऊपर है शिव।
- बच्चे जानते हैं - शिवबाबा के बच्चे जो भी आत्मायें हैं
उनको अपना शरीर तो होगा।
- वह तो सदैव निराकार परमपिता
परमात्मा है।
- बच्चों को मालूम हुआ है निराकार परमपिता परमात्मा के
हम बच्चे हैं।
- आत्मा शरीर द्वारा बोलती है - परमपिता परमात्मा।
- कितनी सहज बातें हैं।
- इसको कहा जाता है अल्फ बे।
- पढ़ाते कौन हैं?
- गीता का ज्ञान किसने सुनाया?
- निराकार बाप ने।
- उन पर कोई ताज
आदि है नहीं।
- वह ज्ञान का सागर, बीजरूप, चैतन्य है।
- तुम भी
चैतन्य आत्मायें हो ना!
- सभी झाड़ों के आदि-मध्य-अन्त को तुम
जानते हो।
- भल माली नहीं हो परन्तु समझ सकते हो कैसे बीज डालते
हैं, उनसे झाड़ निकलते हैं।
- वह तो है जड़ झाड़, यह है चैतन्य।
- तुम्हारी आत्मा में ज्ञान है, और कोई की आत्मा में ज्ञान होता नहीं।
- बाप चैतन्य मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है।
- तो झाड़ भी मनुष्यों का
होगा।
- यह है चैतन्य क्रियेशन।
- बीज और क्रियेशन में फ़र्क तो है ना!
- आम का बीज डालने से आम निकलता है, फिर झाड़ कितना बड़ा
होता है।
- वैसे मनुष्य के बीज से मनुष्य कितने फरटाइल होते हैं।
- जड़
बीज में कोई ज्ञान नहीं है।
- यह तो चैतन्य बीजरूप है।
- उनमें सारे
सृष्टि रूपी झाड़ का ज्ञान है कि कैसे उत्पत्ति, पालना फिर विनाश
होता है।
- यह बहुत बड़ा झाड़ खलास हो फिर दूसरा नया झाड़ कैसे
खड़ा होता है!
- यह है गुप्त।
- तुमको ज्ञान भी गुप्त मिलता है।
- बाप भी
गुप्त आये हैं।
- तुम जानते हो यह कलम लग रहा है।
- अभी तो सब
पतित बन गये हैं।
- अच्छा बीज से पहले-पहले नम्बर में जो पत्ता
निकला वह कौन था?
- सतयुग का पहला पत्ता तो कृष्ण को ही कहेंगे,
लक्ष्मी-नारायण को नहीं।
- नया पत्ता छोटा होता है।
- पीछे बड़ा होता है।
- तो इस बीज की कितनी महिमा है।
- यह तो चैतन्य है ना।
- फिर पत्ते
भी निकलते हैं।
- उन्हों की महिमा तो होती है।
- अभी तुम देवी-देवता
बन रहे हो।
- दैवी गुण धारण कर रहे हो।
- मूल बात ही यह है कि
हमको दैवीगुण धारण करने हैं, इन जैसा बनना है।
- चित्र भी हैं।
- यह
चित्र न होते तो बुद्धि में ज्ञान ही नहीं आता।
- यह चित्र बहुत काम में
आते हैं।
- भक्तिमार्ग में इन चित्रों की भी पूजा होती है और ज्ञान मार्ग
में इन चित्रों से तुमको ज्ञान मिलता है कि ऐसा बनना है।
- भक्तिमार्ग
में ऐसे नहीं समझते कि हमको ऐसा बनना है।
- भक्तिमार्ग में मन्दिर
कितने बनते हैं।
- सबसे जास्ती मन्दिर किसके होंगे?
- जरूर शिवबाबा
के होंगे जो बीजरूप है।
- फिर उसके बाद पहली क्रियेशन के मन्दिर
होंगे।
- पहली क्रियेशन यह लक्ष्मी-नारायण हैं।
- शिव के बाद इनकी पूजा
सबसे जास्ती होती है।
- मातायें तो ज्ञान देती हैं, उनकी पूजा नहीं होती।
- वह तो पढ़ाती हैं ना।
- बाप तुमको पढ़ाते हैं।
- तुम किसकी पूजा नहीं
करते हो।
- पढ़ाने वाले की अभी पूजा नहीं कर सकते।
- तुम जब पढ़कर
फिर अनपढ़ बनेंगे तब फिर पूजा होगी।
- तुम सो देवी-देवता बनते हो।
- तुम ही जानते हो जो हमको ऐसा बनाते हैं उनकी पूजा होगी फिर
हमारी पूजा होगी नम्बरवार।
- फिर गिरते-गिरते पांच तत्वों की भी पूजा
करने लग पड़ते हैं।
- शरीर 5 तत्वों का है ना।
- 5 तत्वों की पूजा करो
या शरीर की करो, एक हो जाती।
- यह तो ज्ञान बुद्धि में है।
- यह
लक्ष्मी-नारायण सारे विश्व के मालिक थे।
- इन देवी-देवताओं का राज्य
नई सृष्टि पर था।
- परन्तु वह कब था?
- यह नहीं जानते, लाखों वर्ष
कह देते हैं।
- अब लाखों वर्ष की बात तो कभी किसकी बुद्धि में रह न
सके।
- अभी तुमको स्मृति है हम आज से 5000 वर्ष पहले आदि
सनातन देवी-देवता धर्म के थे।
- देवी-देवता धर्म वाले फिर और धर्मों में
कनवर्ट हुए हैं।
- हिन्दू धर्म कह नहीं सकते।
- परन्तु पतित होने कारण
अपने को देवी-देवता कहना शोभता ही नहीं।
- अपवित्र को देवी-देवता
कह न सकें।
- मनुष्य पवित्र देवियों की पूजा करते हैं तो जरूर खुद
अपवित्र हैं इसलिए पवित्र के आगे माथा झुकाना पड़ता है।
- भारत में
खास कन्याओं को नमन करते हैं।
- कुमारों को नमन नहीं करते।
- फीमेल को नमन करते हैं।
- मेल को नमन क्यों नहीं करते?
- क्योंकि
इस समय ज्ञान भी पहले माताओं को मिलता है।
- बाप इनमें प्रवेश
करते हैं।
- यह भी समझते हो बरोबर यह ज्ञान की बड़ी नदी है।
- ज्ञान
नदी भी है फिर पुरुष भी है।
- यह है सबसे बड़ी नदी।
- ब्रह्मपुत्रा नदी है
सबसे बड़ी, जो कलकत्ता तरफ सागर में जाकर मिलती है।
- मेला भी
वहाँ लगता है।
- परन्तु उनको यह पता नहीं कि यह आत्माओं और
परमात्मा का मेला है।
- वह तो पानी की नदी है, जिस पर नाम
ब्रह्मपुत्रा रखा है।
- उन्होंने तो ब्रह्म ईश्वर को कहा हुआ है इसलिए
ब्रह्मपुत्रा को बहुत पावन समझते हैं।
- बड़ी नदी है तो पवित्र भी वह
होगी।
- पतित-पावन वास्तव में गंगा को नहीं, ब्रह्मपुत्रा को कहा जाए।
- मेला भी इनका लगता है।
- यह भी सागर और ब्रह्मा नदी का मेला है।
- ब्रह्मा द्वारा एडाप्शन कैसे होती है - यह गुह्य बातें समझने की हैं,
जो प्राय: लोप हो जाती हैं।
- यह तो बिल्कुल सहज बात है ना।
- भगवानुवाच, मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ, फिर यह दुनिया ही
खलास हो जायेगी।
- शास्त्र आदि कुछ भी नहीं रहेंगे।
- फिर भक्तिमार्ग
में यह शास्त्र होते हैं।
- ज्ञान मार्ग में शास्त्र होते नहीं।
- मनुष्य समझते
हैं यह शास्त्र परम्परा से चले आते हैं।
- ज्ञान तो कुछ है नहीं।
- कल्प की
आयु ही लाखों वर्ष कह दी है इसलिए परम्परा कह देते हैं।
- इनको कहा
जाता है अज्ञान अन्धियारा।
- अभी तुम बच्चों को यह बेहद की पढ़ाई
मिलती है, जिससे तुम आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझा सकते हो।
- तुमको इन देवी-देवताओं की हिस्ट्री-जॉग्राफी का पूरा पता है।
- यह पवित्र
प्रवृत्ति मार्ग वाले पूज्य थे। अभी पुजारी पतित बने हैं।
- सतयुग में है
पवित्र प्रवृत्ति मार्ग, यहाँ कलियुग में अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग है।
- फिर
बाद में निवृत्ति मार्ग होता है।
- वह भी ड्रामा में है।
- उसको संन्यास
धर्म कहा जाता है।
- घरबार का संन्यास कर जंगल में चले जाते हैं।
- वह
है हद का संन्यास।
- रहते तो इसी पुरानी दुनिया में ही है ना।
- अभी
तुम समझते हो हम संगमयुग पर हैं फिर नई दुनिया में जायेंगे।
- तुमको तिथि, तारीख, सेकेण्ड सहित सब मालूम है।
- वह लोग तो
कल्प की आयु ही लाखों वर्ष कह देते हैं, इनका पूरा हिसाब निकाल
सकते हैं।
- लाखों वर्ष की तो बात कोई याद भी न कर सके।
- अभी तुम
समझते हो बाप क्या है, कैसे आते हैं, क्या कर्तव्य करते हैं?
- तुम
सबके आक्यूपेशन को, जन्मपत्री को जानते हो।
- बाकी झाड़ के पत्ते तो
ढेर होते हैं।
- वह गिनती थोड़ेही कर सकते हैं।
- इस बेहद सृष्टि रूपी
झाड़ के कितने पत्ते हैं?
- 5000 वर्ष में इतने करोड़ हैं।
- तो लाखों वर्ष
में कितने अनगिनत मनुष्य हो जाएं।
- भक्तिमार्ग में दिखाते हैं -
लिखा हुआ है सतयुग इतने वर्ष का है, त्रेता इतने वर्ष का है, द्वापर
इतने वर्ष का है।
- तो बाप बैठ तुम बच्चों को यह सब राज़ समझाते हैं।
- आम का बीज देखने से आम का झाड़ सामने आयेगा ना!
- अभी मनुष्य
सृष्टि का बीजरूप तुम्हारे सामने है।
- तुमको बैठ झाड़ का राज़
समझाते हैं क्योंकि चैतन्य है।
- बताते हैं हमारा यह उल्टा झाड़ है।
- तुम
समझा सकते हो जो भी इस दुनिया में हैं, जड़ वा चैतन्य, हूबहू
रिपीट करेंगे।
- अभी कितना वृद्धि को पाते रहते हैं।
- सतयुग में इतना हो
नहीं सकता।
- कहते हैं फलानी चीज़ आस्ट्रेलिया से, जापान से आई।
- सतयुग में आस्ट्रेलिया, जापान आदि थोड़ेही थे।
- ड्रामा अनुसार वहाँ की
चीज़ यहाँ आती है।
- पहले अमेरिका से गेहूँ आदि आते थे। सतयुग में
कहाँ से आयेंगे थोड़ेही।
- वहाँ तो है ही एक धर्म, सब चीज़ें भरपूर रहती
हैं।
- यहाँ धर्म वृद्धि को पाते रहते हैं, तो उनके साथ सब चीजें कम
होती जाती हैं।
- सतयुग में कहाँ से मंगाते नहीं हैं।
- अभी तो देखो
कहाँ-कहाँ से मंगाते हैं!
- मनुष्य पीछे वृद्धि को पाते गये हैं, सतयुग में
तो अप्राप्त कोई वस्तु होती नहीं।
- वहाँ की हर चीज़ सतोप्रधान बहुत
अच्छी होती है।
- मनुष्य ही सतोप्रधान हैं।
- मनुष्य अच्छे हैं तो सामग्री
भी अच्छी है।
- मनुष्य बुरे हैं तो सामग्री भी नुकसानकारक है।
- साइन्स की मुख्य चीज़ है एटॉमिक बॉम्ब्स, जिससे इतना सारा
विनाश होता है।
- कैसे बनाते होंगे!
- बनाने वाली आत्मा में पहले से ही
ड्रामा अनुसार ज्ञान होगा।
- जब समय आता है तब उनमें वह ज्ञान
आता है, जिसमें सेन्स होगी वही काम करेंगे और दूसरे को सिखायेंगे।
- कल्प-कल्प जो पार्ट बजाया है वही बजता रहता है।
- अभी तुम कितने
नॉलेजफुल बनते हो, इनसे जास्ती नॉलेज होती नहीं।
- तुम इस नॉलेज
से देवता बन जाते हो। इससे ऊंच कोई नॉलेज है नहीं।
- वह है माया
की नॉलेज, जिससे विनाश होता है।
- वह लोग (साइन्टिस्ट) मून में
जाते हैं, खोजते हैं।
- तुम्हारे लिए कोई नई बात नहीं।
- यह सब माया का
पॉम्प है।
- बहुत शो करते हैं, अति डीपनेस में जाते हैं। बहुत बुद्धि को
लड़ाते हैं।
- कुछ कमाल कर दिखावें।
- बहुत कमाल करने से फिर
नुकसान हो जाता है।
- क्या-क्या बनाते रहते हैं।
- बनाने वाले जानते हैं
इनसे यह विनाश होगा।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) गुप्त ज्ञान का सिमरण कर हर्षित रहना है।
- देवताओं के चित्रों को
सामने देखते, उन्हें नमन वन्दन करने के बजाए उन जैसा बनने के
लिए दैवीगुण धारण करने हैं।
- 2) सृष्टि के बीजरूप बाप और उनकी चैतन्य क्रियेशन को समझ
नॉलेजफुल बनना है, इस नॉलेज से बढ़कर और कोई नॉलेज नहीं हो
सकती, इसी नशे में रहना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- जिम्मेवारी सम्भालते हुए आकारी और निराकारी स्थिति के अभ्यास
द्वारा साक्षात्कारमूर्त भव
- जैसे साकार रूप में इतनी बड़ी जिम्मेवारी होते हुए भी आकारी और
निराकारी स्थिति का अनुभव कराते रहे ऐसे फालो फादर करो।
- साकार
रूप में फरिश्ते पन की अनुभूति कराओ।
- कोई कितना भी अशान्त वा
बेचैन घबराया हुआ आपके सामने आये लेकिन आपकी एक दृष्टि,
वृत्ति और स्मृति की शक्ति उनको बिल्कुल शान्त कर दे।
- व्यक्त
भाव में आये और अव्यक्त स्थिति का अनुभव करे तब कहेंगे
साक्षात्कारमूर्त।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- जो सच्चे रहमदिल हैं उन्हें देह वा देह-अभिमान की आकर्षण नहीं हो
सकती।
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