- आज विश्व-परिवर्तक, विश्व-कल्याणकारी बापदादा अपने स्नेही,
सहयोगी, विश्व परिवर्तक बच्चों को देख रहे हैं।
- हर एक स्व-परिवर्तन
द्वारा विश्व-परिवर्तन करने की सेवा में लगे हुए हैं।
- सभी के मन में
एक ही उमंग-उत्साह है कि इस विश्व को परिवर्तन करना ही है और
निश्चय भी है कि परिवर्तन होना ही है अथवा यह कहें कि परिवर्तन
हुआ ही पड़ा है।
- सिर्फ निमित्त बापदादा के सहयोगी, सहजयोगी बन
वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बना रहे हैं।
- आज बापदादा चारों ओर के निमित्त विश्व-परिवर्तक बच्चों को देखते
हुए एक विशेष बात देख रहे थे - हैं सभी एक ही कार्य के निमित्त,
लक्ष्य भी सभी का स्व-परिवर्तन और विश्व-परिवर्तन ही है लेकिन
स्व-परिवर्तन वा विश्व-परिवर्तन में निमित्त होते हुए भी नम्बरवार
क्यों?
- कोई बच्चे स्व-परिवर्तन बहुत सहज और शीघ्र कर लेते और
कोई अभी-अभी परिवर्तन का संकल्प करेंगे लेकिन स्वयं के संस्कार वा
माया और प्रकृति द्वारा आने वाली परिस्थितियाँ वा ब्राह्मण परिवार
द्वारा चुक्तु होने वाले हिसाब-किताब श्रेष्ठ परिवर्तन के उमंग को
कमजोर कर देते हैं और कई बच्चे परिवर्तन करने की हिम्मत में
कमजोर हैं।
- जहाँ हिम्मत नहीं, वहाँ उमंग-उत्साह नहीं।
- और
स्व-परिवर्तन के बिना विश्व-परिवर्तन के कार्य में दिल-पसन्द सफलता
नहीं होती क्योंकि यह अलौकिक ईश्वरीय सेवा एक ही समय पर तीन
प्रकार के सेवा की सिद्धि है, वह तीन प्रकार की सेवा साथ-साथ कौनसी
है?
- एक - वृत्ति, दूसरा - वायब्रेशन, तीसरा - वाणी।
- तीनों ही
शक्तिशाली निमित्त, निर्माण और नि:स्वार्थ इस आधार से हैं, तब
दिल-पसन्द सफलता होती है।
- नहीं तो सेवा होती है, अपने को वा
दूसरों को थोड़े समय के लिए सेवा की सफलता से खुश तो कर लेते
हैं लेकिन दिल-पसन्द सफलता जो बापदादा कहते हैं, वह नहीं होती
है।
- बापदादा भी बच्चों की खुशी में खुश हो जाते हैं लेकिन दिलाराम
की दिल पर यथा-शक्ति रिजल्ट नोट जरूर होती रहती।
- ‘शाबास,
शाबाश!' जरूर कहेंगे क्योंकि बाप की हर बच्चे के ऊपर सदा वरदान
की दृष्टि और वृत्ति रहती है कि यह बच्चे आज नहीं तो कल
सिद्धि-स्वरूप बनने ही हैं।
- लेकिन वरदाता के साथ-साथ शिक्षक भी है,
इसलिए आगे के लिए अटेन्शन भी दिलाते हैं।
- तो आज बापदादा विश्व-परिवर्तन के कार्य की और विश्व-परिवर्तक
बच्चों की रिजल्ट को देख रहे थे।
- वृद्धि हो रही है, आवाज़ चारों ओर
फैल रहा है, प्रत्यक्षता का पर्दा खुलने का भी आरम्भ हो गया है।
- चारों
ओर की आत्माओं में अभी इच्छा उत्पन्न हो रही है कि नजदीक
जाकर देखें।
- सुनी-सुनाई बातें अभी देखने के परिवर्तन में बदल रही हैं।
- यह सब परिवर्तन हो रहा है।
- फिर भी ड्रामा अनुसार अभी तक बाप
और कुछ निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्माओं के शक्तिशाली प्रभाव का
परिणाम यह दिखाई दे रहा है।
- अगर मैजारिटी इस विधि से सिद्धि को
प्राप्त करें तो बहुत जल्दी सर्व ब्राह्मण सिद्धि-स्वरूप में प्रत्यक्ष हो
जायेंगे।
- बापदादा देख रहे थे - दिलपसन्द, लोकपसन्द, बाप-पसन्द
सफलता का आधार ‘स्व परिवर्तन' की अभी कमी है और
‘स्व-परिवर्तन' की कमी क्यों हैं?
- उसका मूल आधार एक विशेष शक्ति
की कमी है।
- वह विशेष शक्ति है महसूसता की शक्ति।
- कोई भी परिवर्तन का सहज आधार महसूसता-शक्ति है।
- जब तक
महसूसता-शक्ति नहीं आती, तब तक अनुभूति नहीं होती और जब
तक अनुभूति नहीं तब तक ब्राह्मण जीवन की विशेषता का
फाउन्डेशन मजबूत नहीं।
- आदि से अपने ब्राह्मण जीवन को सामने
लाओ।
- पहला परिवर्तन - मैं आत्मा हूँ, बाप मेरा है - यह परिवर्तन किस
आधार से हुआ?
- जब महसूस करते हो कि ‘हाँ, मैं आत्मा हूँ, यही मेरा
बाप है।'
- तो महसूसता अनुभव कराती है, तब ही परिवर्तन होता है।
- जब तक महसूस नहीं करते, तब तक साधारण गति से चलते हैं और
जिस घड़ी महसूसता की शक्ति अनुभवी बनाती है तो तीव्र पुरूषार्थी
बन जाते हैं।
- ऐसे जो भी परिवर्तन की विशेष बातें है - चाहे रचयिता
के बारे में, चाहे रचना के बारे में, जब तक हर बात को महसूस नहीं
करते कि हाँ, यह वही समय है, वही योग है, मैं भी वही श्रेष्ठ आत्मा
हूँ - तब तक उमंग-उत्साह की चाल नहीं रहती।
- कोई के वायुमण्डल के
प्रभाव से थोड़े समय के लिए परिवर्तन होगा लेकिन सदाकाल का नही
होगा।
- महसूसता की शक्ति सदाकाल का सहज परिवर्तन कर लेगी।
- इसी प्रकार स्व-परिवर्तन में भी जब तक महसूसता की शक्ति नहीं,
तब तक सदाकाल का श्रेष्ठ परिवर्तन नहीं हो सकता है। इसमें विशेष
दो बातों की महसूसता चाहिए।
- एक - अपनी कमज़ोरी की महसूसता।
- दूसरा - जो परिस्थिति वा व्यक्ति निमित्त बनते हैं, उनकी इच्छा और
उनके मन की भावना वा व्यक्ति की कमजोरी या परवश के स्थिति
की महसूसता।
- परिस्थिति के पेपर के कारण को जान स्वयं को पास
होने के श्रेष्ठ स्वरूप की महसूसता में हो कि मैं श्रेष्ठ हूँ, स्वस्थिति
श्रेष्ठ है, परिस्थिति पेपर है।
- यह महसूसता सहज परिवर्तन करा लेगी
और पास कर लेंगे।
- दूसरे की इच्छा वा दूसरे के स्व-उन्नति की भी
महसूसता अपने स्व-उन्नति का आधार है।
- तो स्व-परिवर्तन महसूसता
की शक्ति बिना नहीं हो सकता।
- इसमें भी एक है सच्चे दिल की
महसूसता, दूसरी - चतुराई की महसूसता भी है क्योंकि नॉलेजफुल
बहुत बन गये हैं।
- तो समय देख अपना काम सिद्ध करने के लिए,
अपना नाम अच्छा करने के लिए उस समय महसूस भी कर लेंगे
लेकिन उस महसूसता में शक्ति नहीं होती जो परिवर्तन कर लेंवे।
- तो
दिल की महसूसता दिलाराम की आशीर्वाद प्राप्त कराती है और चतुराई
वाली महसूसता थोड़े समय के लिए दूसरे को भी खुश कर लेते, अपने
को भी खुश कर देते।
- तीसरे प्रकार की महसूसता - मन मानता है कि यह ठीक नहीं है,
विवेक आवाज देता है कि यह यथार्थ नहीं है लेकिन बाहर के रूप से
अपने को महारथी सिद्ध करने के लिए, अपने नाम को किसी भी
प्रकार से परिवार के बीच कमजोर या कम न करने के कारण विवेक
का खून करते रहते हैं।
- यह विवेक का खून करना भी पाप है।
- जैसे
आपघात महापाप है, वैसे यह भी पाप के खाते में जमा होता है
इसलिए बापदादा मुस्कराते रहते हैं और उनके मन के डॉयलाग भी
सुनते रहते हैं।
- बहुत सुन्दर डॉयलाग होते हैं।
- मूल बात - ऐसी
महसूसता वाले यह समझते हैं कि किसको क्या पता पड़ता है, ऐसे ही
चलता है... लेकिन बाप को पता हर पत्ते का है।
- सिर्फ मुख से सुनने
से पता नहीं पड़ता, लेकिन पता होते भी बाप अन्जान बन भोलेपन में
भोलानाथ के रूप से बच्चों को चलाते हैं।
- जबकि जानते हैं, फिर भोला
क्यों बनते?
- क्योंकि रहमदिल बाप है और पाप में पाप न बढ़ते जायें,
यह रहम करता है। समझा?
- ऐसे बच्चे चतुरसुजान बाप से भी अथवा
निमित्त आत्माओं से भी बहुत चतुर बन सामने आते हैं इसलिए बाप
रहमदिल, भोलानाथ बन जाते हैं।
- बापदादा के पास हर बच्चे के कर्म का, मन के संकल्पों का खाता हर
समय का स्पष्ट रहता है।
- दिलों को जानने की आवश्यकता नहीं है
लेकिन हर बच्चे के दिल की हर धड़कन का चित्र स्पष्ट ही है इसलिए
कहते हैं कि मैं हर एक के दिल को नहीं जानता क्योंकि जानने की
आवश्यकता ही नहीं, स्पष्ट है ही।
- हर घड़ी के दिल की धड़कन वा मन
के संकल्प का चार्ट बापदादा के सामने है।
- बता भी सकते हैं, ऐसे नहीं
कि नहीं बता सकते हैं।
- तिथि, स्थान, समय और क्या-क्या किया -
सब बता सकते हैं।
- लेकिन जानते हुए भी अन्जान रहते हैं
- । तो आज
सारा चार्ट देखा।
- स्व-परिवर्तन तीव्रगति से न होने के कारण ‘सच्ची दिल के महसूसता'
की कमी है।
- महसूसता की शक्ति बहुत मीठे अनुभव करा सकती है।
यह तो समझते हो ना।
- कभी अपने को बाप के नूरे रत्न आत्मा
अर्थात् नयनों में समाई हुई श्रेष्ठ बिन्दु महसूस करो।
- नयनों में तो
बिन्दु ही समा सकता है, शरीर तो नहीं समा सकेगा।
- कभी अपने को
मस्तक पर चमकने वाली मस्तकमणि, चमकता हुआ सितारा महसूस
करो, कभी अपने को ब्रह्मा बाप के सहयोगी, राइट हैण्ड साकार
ब्राह्मण रूप में ब्रह्मा की भुजायें अनुभव करो, महसूस करो।
- कभी
अव्यक्त फरिश्ता स्वरूप महसूस करो।
- ऐसे महसूसता शक्ति से बहुत
अनोखे, अलौकिक अनुभव करो।
- सिर्फ नॉलेज की रीति वर्णन नही
करो, महसूस करो।
- इस महसूसता-शक्ति को बढ़ाओ तो दूसरे तरफ की
कमजोरी की महसूसता स्वत: ही स्पष्ट होगी।
- शक्तिशाली दर्पण के
बीच छोटा-सा दाग भी स्पष्ट दिखाई देगा और परिवर्तन कर लेंगे।
- तो
समझा, स्व परिवर्तन का आधार महसूसता शक्ति है। शक्ति को कार्य
में लगाओ, सिर्फ गिनती करके खुश न हो - हाँ, यह भी शक्ति है,
यह भी शक्ति है।
- लेकिन स्व प्रति, सर्व प्रति, सेवा प्रति सदा हर कार्य
में लगाओ। समझा?
- कई बच्चे कहते कि बाप यही काम करते रहते हैं
क्या?
- लेकिन बाप क्या करे, साथ तो ले ही जाना है।
- जब साथ ले
जाना है तो साथी भी ऐसे ही चाहिए ना इसलिए देखते रहते हैं और
समाचार सुनाते रहते कि साथी समान बन जाएं।
- पीछे-पीछे आने वालों
की तो बात ही नहीं है, वह तो ढेर के ढेर होंगे।
- लेकिन साथी तो
समान चाहिए ना।
- आप साथी हो या बाराती हो?
- बारात तो बहुत बड़ी
होगी, इसलिए शिव की बारात मशहूर है।
- बारात तो वैराइटी होगी
लेकिन साथी तो ऐसे चाहिए ना। अच्छा।
- यह ईस्टर्न ज़ोन है।
- ईस्टर्न ज़ोन क्या कर रहा है?
- प्रत्यक्षता का सूर्य
कहाँ से उदय करेंगे?
- बाप में प्रत्यक्षता हुई, वह बात तो अब पुरानी हो
गई।
- लेकिन अब क्या करेंगे?
- पुरानी गद्दी है - यह तो नशा अच्छा है
लेकिन अब क्या करेंगे?
- अभी कोई नवीनता का सूर्य उदय करो जो
सब के मुख से निकले कि यह ईस्टर्न ज़ोन से नवीनता का सूर्य प्रकट
हुआ!
- जो कार्य अभी तक किसी ने न किया हो, वह अब करके
दिखाओ।
- फंक्शन, सेमीनार किये, आई. पी. (विशिष्ट व्यक्ति) की सेवा
की, अखबारों में डाला - यह तो सभी करते लेकिन नवीनता की कुछ
झलक दिखाओ समझा।
- बाप का घर सो अपना घर है।
- आराम से सब पहुँच गये हैं
- । दिल का
आराम स्थूल आराम भी दिला देता है।
- दिल का आराम नहीं तो
आराम के साधन होते भी बेआराम होते।
- दिल का आराम है अर्थात्
दिल में सदा राम साथ में है, इसलिए कोई भी परिस्थिति में आराम
अनुभव करते हो। आराम है ना, कि आना-जाना बेआराम लगता है?
फिर भी मीठे ड्रामा की भावी समझो। मेला तो मना रहे हो ना। बाप
से मिलना, परिवार से मिलना - यह मेला मनाने की भी मीठी भावी
है।
- अच्छा।
सर्वशक्तिशाली श्रेष्ठ आत्माओं को, हर शक्ति को समय पर कार्य में
लाने वाले सर्व तीव्र पुरूषार्थी बच्चों को, सदा स्व-परिवर्तन द्वारा सेवा
में दिलपसन्द सफलता पाने वाले दिलखुश बच्चों को, सदा दिलाराम
बाप के आगे सच्ची दिल से स्पष्ट रहने वाले सफलता-स्वरूप श्रेष्ठ
आत्माओं को दिलाराम बापदादा का दिल से यादप्यार और नमस्ते।
- पार्टियों के साथ अव्यक्त-बापदादा की मुलाकात
- सदा अपने को बाप की छत्रछाया में रहने वाली विशेष आत्मायें
अनुभव करते हो?
- जहाँ बाप की छत्रछाया है, वहाँ सदा माया से सेफ
रहेंगे।
- छत्रछाया के अन्दर माया आ नहीं सकती।
- मेहनत से स्वत: ही
दूर हो जायेंगे।
- सदा मौज में रहेंगे क्योंकि जब मेहनत होती है, तो
मेहनत मौज अनुभव नहीं कराती।
- जैसे, बच्चों की पढ़ाई जब होती है
तो पढ़ाई में मेहनत होती है ना।
- जब इम्तिहान के दिन होते हैं तो
बहुत मेहनत करते हैं, मौज से खेलते नहीं है।
- और जब मेहनत खत्म
हो जाती है, इम्तिहान खत्म हो जाते हैं तो मौज करते हैं।
- तो जहाँ
मेहनत है, वहाँ मौज नहीं। जहाँ मौज है, वहाँ मेहनत नहीं।
- छत्रछाया
में रहने वाले अर्थात् सदा मौज में रहने वाले क्योंकि यहाँ पढ़ाई ऊंची
पढ़ते हो लेकिन ऊंची पढ़ाई होते हुए भी निश्चय है कि हम विजयी हैं
ही, पास हुए ही पड़े हैं इसलिए मौज में रहते हैं।
- कल्प-कल्प की पढ़ाई
है, नयी बात नहीं है।
- तो सदा मौज में रहो और दूसरों को भी मौज में
रहने का सन्देश देते रहो, सेवा करते रहो क्योंकि सेवा का फल इस
समय भी और भविष्य में भी खाते रहेंगे।
- सेवा करेंगे तब तो फल
मिलेगा।
- विदाई के समय - मुख्य भाई-बहिनों के साथ
बापदादा सभी बच्चों को समान बनाने की शुभ भावना से उड़ाने चाहते
हैं।
- निमित्त बने हुए सेवाधारी बाप-समान बनने ही हैं, कैसे भी बाप
को बनाना ही है क्योंकि ऐसे-वैसे को तो साथ ले ही नहीं जायेंगे।
- बाप
का भी तो शान है ना।
- बाप सम्पन्न हो और साथी लंगड़ा या लूला हो
तो सजेगा नहीं।
- लूले-लंगड़े बाराती होंगे, साथी नहीं, इसलिए शिव की
बरात सदा लूली-लंगड़ी दिखाई गई है क्योंकि कुछ कमजोर आत्मायें
धर्मराजपुरी में पास होते लायक बनेंगी। अच्छा।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- सेवा की स्टेज पर समाने की शक्ति द्वारा सफलता मूर्त बनने वाले
मास्टर सागर भव
- जब सेवा की स्टेज पर आते हो तो अनेक प्रकार की बातें सामने आती
हैं, उन बातों को स्वयं में समा लो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे।
- समाना अर्थात् संकल्प रूप में भी किसी की व्यक्त बातों और भाव का
आंशिक रूप समाया हुआ न हो।
- अकल्याणकारी बोल कल्याण की
भावना में ऐसे बदल दो जैसे अकल्याण का बोल था ही नहीं।
- अवगुण
को गुण में, निंदा को स्तुति में बदल दो - तब कहेंगे मास्टर सागर।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- विस्तार को न देख सार को देखने वा स्वयं में समाने वाले ही तीव्र
पुरुषार्थी हैं।
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