- आज विश्व-कल्याणकारी, विश्व-सेवाधारी बाप अपने विश्व-सेवाधारी, सहयोगी सर्व बच्चों को देख रहे थे कि हर एक बच्चा निरन्तर सहजयोगी के साथ-साथ निरन्तर सेवाधारी कहाँ तक बने हैं?
- क्योंकि याद और सेवा - दोनों का बैलेन्स सदा ब्राह्मण जीवन में बापदादा और सर्व श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं द्वारा ब्लैसिंग का पात्र बनाता है।
- इस संगमयुग पर ही ब्राह्मण जीवन में परमात्म-आशीर्वादें और ब्राह्मण परिवार की आशीर्वादें प्राप्त होती हैं इसलिए इस छोटी-सी जीवन में सर्व प्राप्तियाँ और सदाकाल की प्राप्तियाँ सहज प्राप्त होती हैं।
- इस संगमयुग को विशेष ब्लैसिंग-युग कह सकते हैं, इसलिए ही इस युग को महान् युग कहते हैं।
- स्वयं बाप हर श्रेष्ठ कर्म, हर श्रेष्ठ संकल्प के आधार पर हर ब्राह्मण बच्चे को हर समय दिल से आशीर्वाद देते रहते हैं।
- यह ब्राह्मण जीवन परमात्म-आशीर्वाद की पालना से वृद्धि को प्राप्त होने वाली जीवन है।
- भोलानाथ बाप सर्व आशीर्वाद की झोलियाँ खुले दिल से बच्चों को दे रहे हैं।
- लेकिन यह सर्व आशीर्वाद लेने का आधार याद और सेवा का बैलेन्स है।
- अगर निरन्तर योगी हैं तो साथ-साथ निरन्तर सेवाधारी भी हैं।
- सेवा का महत्व सदा बुद्धि में रहता है?
- कई बच्चे समझते हैं - सेवा का जब चान्स मिलता है वा कोई साधन वा समय जब मिलता है तब ही सेवा करते हैं।
- लेकिन बापदादा जैसे याद निरन्तर, सहज अनुभव कराते हैं, वैसे सेवा भी निरन्तर और सहज हो सकती है।
- तो आज बापदादा सेवाधारी बच्चों की सेवा का चार्ट देख रहा था।
- जब तक निरन्तर सेवाधारी नहीं बने तब तक सदा की आशीर्वाद के अनुभवी नहीं बन सकते।
- जैसे समय प्रमाण, सेवा के चांस प्रमाण, प्रोग्राम प्रमाण सेवा करते हो, उस समय सेवा के फलस्वरूप बाप की, परिवार की आशीर्वाद वा सफलता प्राप्त करते हो लेकिन सदाकाल के लिए नहीं इसलिए कभी आशीर्वाद के कारण सहज स्व वा सेवा में उन्नति अनुभव करते हो और कभी मेहनत के बाद सफलता अनुभव करते हो क्योंकि निरन्तर याद और सेवा का बैलेन्स नहीं है।
- निरन्तर सेवाधारी कैसे बन सकते, आज उस सेवा का महत्व सुना रहे हैं।
- सारे दिन में भिन्न-भिन्न प्रकार से सेवा कर सकते हो।
- इसमें एक है स्व की सेवा अर्थात् स्व के ऊपर सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने का सदा अटेन्शन रखना।
- आपके इस पढ़ाई के जो मुख्य सबजेक्ट हैं, उन सबमें अपने को पास विद्-आनर बनाना है।
- इसमें ज्ञान-स्वरूप, याद-स्वरूप, धारणा-स्वरूप - सबमें सम्पन्न बनना है।
- यह स्व-सेवा सदा बुद्धि में रहे।
- यह स्व-सेवा स्वत: ही आपके सम्पन्न स्वरूप द्वारा सेवा कराती रहती है लेकिन इसकी विधि है - अटेन्शन और चेंकिग।
- स्व की चेकिंग करनी है, दूसरों की नहीं करनी।
- दूसरी है - विश्व सेवा जो भिन्न-भिन्न साधनों द्वारा, भिन्न-भिन्न विधि से, वाणी द्वारा वा सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा करते हो।
- यह तो सब अच्छी तरह से जानते हैं।
- तीसरी है - यज्ञ सेवा जो तन और धन द्वारा कर रहे हो।
- चौथी है - मन्सा सेवा।
- अपनी शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना, श्रेष्ठ वृत्ति, श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा किसी भी स्थान पर रहते हुए अनेक आत्माओं की सेवा कर सकते हो।
- इसकी विधि है - लाइट हाउस, माइट हाउस बनना।
- लाइट हाउस एक ही स्थान पर स्थित होते दूर-दूर की सेवा करते हैं।
- ऐसे आप सभी एक स्थान पर होते अनेकों की सेवा अर्थ निमित्त बन सकते हो।
- इतना शक्तियों का खजाना जमा है तो सहज कर सकते हो।
- इसमें स्थूल साधन वा चान्स वा समय की प्रॉबलम नहीं है।
- सिर्फ लाइट-माइट से सम्पन्न बनने की आवश्यकता है।
- सदा मन, बुद्धि व्यर्थ सोचने से मुक्त होना चाहिए, ‘मनमनाभव' के मन्त्र का सहज स्वरूप होना चाहिए।
- यह चारों प्रकार की सेवा क्या निरन्तर सेवाधारी नहीं बना सकती?
- चारों ही सेवाओं में से हर समय कोई न कोई सेवा करते रहो तो सहज निरन्तर सेवाधारी बन जायेंगे और निरन्तर सेवाओं पर उपस्थित होने के कारण, सदा बिजी रहने के कारण सहज मायाजीत बन जायेंगे।
- चारों ही सेवाओं में से जिस समय जो सेवा कर सकते हो वह करो लेकिन सेवा से एक सेकेण्ड भी वंचित नहीं रहो।
- 24 घण्टा सेवाधारी बनना है।
- 8 घण्टे के योगी वा सेवाधारी नहीं लेकिन निरन्तर सेवाधारी। सहज है ना?
- और नहीं तो स्व की सेवा तो अच्छी है।
- जिस समय जो चांस मिले, वह सेवा कर सकते हो।
- कई बच्चे शरीर के कारण वा समय न मिलने कारण समझते हैं हम तो सेवा कर नहीं सकते हैं।
- लेकिन अगर चार ही सेवाओं में से कोई भी सेवा में विधिपूर्वक बिजी रहते हो तो सेवा की सबजेक्टस में मार्क्स जमा होती जाती हैं और यह मिले हुए नम्बर (अंक) फाइनल रिजल्ट में जमा हो जायेंगे।
- जैसे वाणी द्वारा सेवा करने वालों के मार्क्स जमा होते हैं, वैसे यज्ञ-सेवा वा स्व की सेवा वा मन्सा सेवा - इनका भी इतना ही महत्व है, इसके भी इतने नम्बर जमा होंगे।
- हर प्रकार की सेवा के नम्बर इतने ही हैं।
- लेकिन जो चारों ही प्रकार की सेवा करते उसके उतने नम्बर जमा होते; जो एक वा दो प्रकार की सेवा करते, उसके नम्बर उस अनुसार जमा होते।
- फिर भी, अगर चार प्रकार की नहीं कर सकते, दो प्रकार की कर सकते हैं तो भी निरन्तर सेवाधारी हैं।
- तो निरन्तर के कारण नम्बर बढ़ जाते हैं इसलिए ब्राह्मण जीवन अर्थात् निरन्तर सेवाधारी सहजयोगी।
- जैसे याद का अटेन्शन रखते हो कि निरन्तर रहे, सदा याद का लिंक जुटा रहे; वैसे सेवा में भी सदा लिंक जुटा रहे।
- जैसे याद में भी भिन्न-भिन्न स्थिति का अनुभव करते हो - कभी बीजरूप का, कभी फरिश्तारूप का, कभी मनन का, कभी रूहरिहान का लेकिन स्थिति भिन्न-भिन्न होते भी याद की सबजेक्ट में निरन्तर याद में गिनते हो।
- ऐसे यह भिन्न-भिन्न सेवा का रूप हो।
- लेकिन सेवा के बिना जीवन नहीं।
- श्वाँसो श्वाँस याद और श्वाँसों श्वाँस सेवा हो - इसको कहते हैं बैलेन्स।
- तब ही हर समय ब्लैसिंग प्राप्त होने का अनुभव सदा करते रहेंगे और दिल से सदा स्वत: ही यह आवाज निकलेगा कि आशीर्वादों से पल रहे हैं, आशीर्वाद से, उड़ती कला के अनुभव से उड़ रहे हैं।
- मेहनत से, युद्ध से छूट जायेंगे।
- ‘क्या', ‘क्यों', ‘कैसे' - इन प्रश्नों से मुक्त हो सदा प्रसन्न रहेंगे।
- सफलता सदा जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप में अनुभव करते रहेंगे।
- पता नहीं क्या होगा।
- सफलता होगी वा नहीं होगी, पता नहीं हम आगे चल सकेंगे वा नहीं चल सकेंगे - यह पता नहीं का संकल्प परिवर्तन हो तब मास्टर त्रिकालदर्शी स्थिति का अनुभव करेंगे।
- ‘विजय हुई पड़ी है' - यह निश्चय और नशा सदा अनुभव होगा।
- यही ब्लैसिंग की निशानियाँ हैं। समझा?
- ब्राह्मण जीवन में, महान् युग में बापदादा के अधिकारी बन फिर भी मेहनत करनी पड़े, सदा युद्ध की स्थिति में ही जीवन बितायें - यह बच्चों के मेहनत की जीवन बापदादा से देखी नहीं जाती इसलिए निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी बनो। समझा? अच्छा।
- पुराने बच्चों की आशा पूरी हो गई ना।
- पानी की सेवा करने वाले सेवाधारी बच्चों को आफरीन (शाबाश) है जो अनेक बच्चों की आशाओं को पूर्ण करने में रात-दिन सहयोगी हैं।
- निद्राजीत भी बन गये तो प्रकृतिजीत भी बन गये।
- तो मधुबन के सेवाधारियों को, चाहे प्लैन बनाने वाले, चाहे पानी लाने वाले, चाहे आराम से रिसीव करने वाले, रहाने वाले, भोजन समय पर तैयार करने वाले - जो भी भिन्न-भिन्न सेवा के निमित्त हैं, उन सबको थैंक्स देना।
- बापदादा तो दे ही रहे हैं।
- दुनिया पानी-पानी करके चिल्ला रही है और बाप के बच्चे कितना सहज कार्य चला रहे हैं!
- बापदादा सभी सेवाधारी बच्चों की सेवा देखते रहते हैं।
- कितना आराम से आप लोगों को मधुबन निवासी निमित्त बन चान्स दिला रहे हैं!
- आप भी सहयोगी बने हो ना?
- जैसे वह सहयोगी बने हैं तो आपको उसका फल मिल रहा है, वैसे आप सभी भी हर कार्य में जैसा समय उसी प्रमाण चलते रहेंगे तो आपके सहयोग का फल और ब्राह्मणों को भी मिलता रहेगा।
- बापदादा मुस्करा रहे थे - सतयुग में दूध की नदियाँ बहेंगी लेकिन संगम पर पानी, घी तो बन गया ना।
- घी की नदी नलके में आ रही है।
- पानी घी बन गया तो अमूल्य हो गया ना।
- इसी विधि से अनेकों को चांस देते रहेंगे।
- फिर भी देखो, दुनिया में और आप ब्राह्मणों में अन्तर है ना।
- कई स्थानों से फिर भी आप लोगों को बहुत आराम है और अभ्यास भी हो रहा है इसलिए राज़युक्त बन हर परिस्थिति में राज़ी रहने का अभ्यास बढ़ाते चलो।
- अच्छा।
सर्व निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा त्रिकालदर्शी बन सफलता के अधिकार को अनुभव करने वाले, सदा प्रसन्नचित्त, सन्तुष्ट, श्रेष्ठ आत्माओं को, हर सेकेण्ड ब्लैसिंग के अनुभव करने वाले बच्चों को विधाता, वरदाता बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
- दादी जी से :-
- संकल्प किया और सर्व को श्रेष्ठ संकल्प का फल मिल गया।
- कितने आशीर्वादों की मालायें पड़ती हैं!
- जो निमित्त बनते हैं उन्हों के भी, बाप के साथ-साथ गुण तो गाते हैं ना इसलिए तो बाप के साथ बच्चों की भी पूजा होती है, अकेले बाप की नहीं होती।
- सभी को कितनी खुशी प्राप्त हो रही है!
- यह आशीर्वादों की मालायें भक्ति में मालाओं के अधिकारी बनाती हैं!
- पार्टियों से अव्यक्त - बापदादा की मुलाकात
- 1) आप सभी श्रेष्ठ आत्मायें सबकी प्यास बुझाने वाले हो ना?
- वह है स्थूल जल और आपके पास है - ‘ज्ञान अमृत'।
- जल अल्पकाल की प्यास बुझाए तृप्त आत्मा बना देता है।
- तो सर्व आत्माओं को अमृत द्वारा तृप्त करने के निमित्त बने हुए हो ना।
- यह उमंग सदा रहता है?
- क्योंकि प्यास बुझाना - यह महान पुण्य है।
- प्यासे की प्यास बुझाने वाले को पुण्य आत्मा कहते हैं।
- आप भी महान पुण्य आत्मा बन सभी की प्यास बुझाने वाले हो।
- जैसे प्यास से मनुष्य तड़फते हैं, अगर पानी न मिले तो प्यास से तड़फेंगे ना!
- ऐसे, ज्ञान-अमृत न मिलने से आत्मायें दु:ख अशान्ति में तड़फ रही हैं।
- तो उनको ज्ञान अमृत देकर प्यास बुझाने वाली पुण्य आत्मायें हो।
- तो पुण्य का खाता अनेक जन्मों के लिए जमा कर रहे हो ना?
- एक जन्म में ही अनेक जन्मों का खाता, अनेक जन्मों के लिए जमा कर रहे हो ना?
- एक जन्म में ही अनेक जन्मों का खाता जमा होता है।
- तो आपने इतना जमा कर लिया है ना?
- इतने मालामाल बन गये जो औरों को भी बांट सकते हो!
- अपने लिए भी जमा किया और दूसरों को भी देने वाले दाता बने।
- तो सदा यह चेक करो कि सारे दिन में पुण्यात्मा बने, पुण्य का कार्य किया या सिर्फ अपने लिए ही खाया-पिया मौज किया?
- जमा करने वाले को समझदार कहा जाता है, जो कमाये और खाये उसको समझदार नहीं कहेंगे।
- जैसे भोजन खाने के लिए फुर्सत निकालते हो क्योंकि आवश्यक है, ऐसे यह पुण्य का कार्य करना भी आवश्यक है।
- तो सदा ही पुण्य आत्मा हो, कभी-कभी की नहीं।
- चांस मिले तो करें, नहीं।
- चांस लेना है।
- समय मिलेगा नहीं, समय निकालना है, तब जमा कर सकेंगे।
- इस समय जितना भी भाग्य की लकीर खींचने चाहो, उतना खींच सकते हो क्योंकि बाप भाग्य-विधाता और वरदाता है।
- श्रेष्ठ नॉलेज की कलम बाप ने अपने बच्चों को दे दी है।
- इस कलम से जितनी लम्बी लकीर खींचनी चाहो, खींच सकते हो। अच्छा।
- 2) सभी राजऋषि हो ना?
- राज़ अर्थात् अधिकारी और ऋषि अर्थात् तपस्वी।
- तपस्या का बल सहज परिवर्तन कराने का आधार है।
- परमात्म-लगन से स्वयं को और विश्व को सदा के लिए निर्विघ्न बना सकते हैं।
- निर्विघ्न बनना और निर्विघ्न बनाना - यही सेवा करते हो ना।
- अनेक प्रकार के विघ्नों से सर्व आत्माओं को मुक्त करने वाले हो।
- तो जीवनमुक्त का वरदान बाप से लेकर औरों को दिलाने वाले हो ना।
- निर्बन्धन अर्थात् जीवनमुक्त।
- 3) हिम्मते बच्चे मदद बाप।
- बच्चों की हिम्मत पर सदा बाप की मदद पद्मगुणा प्राप्त होती है।
- बोझ तो बाप के ऊपर है।
- लेकिन ट्रस्टी बन सदा बाप की याद से आगे बढ़ते रहो।
- बाप की याद ही छत्रछाया है।
- पिछला हिसाब सूली है लेकिन बाप की मदद से कांटा बन जाता है।
- परिस्थितियां आनी जरूर हैं क्योंकि सब कुछ यहाँ ही चुक्तू करना है।
- लेकिन बाप की मदद कांटा बना देती है, बड़ी बात को छोटा बना देती है क्योंकि बड़ा बाप साथ है।
- सदा निश्चय से आगे बढ़ते रहो।
- हर कदम में ट्रस्टी, ट्रस्टी अर्थात् सब कुछ तेरा, मेरा-पन समाप्त।
- गृहस्थी अर्थात् मेरा।
- तेरा होगा तो बड़ी बात छोटी हो जायेगी और मेरा होगा तो छोटी बात बड़ी हो जायेगी।
- तेरा-पन हल्का बनाता है और मेरा-पन भारी बनाता है।
- तो जब भी भारी अनुभव करो तो चेक करो कि कहाँ मेरा-पन तो नहीं।
- मेरे को तेरे में बदली कर दो तो उसी घड़ी हल्के हो जायेंगे, सारा बोझ एक सेकेण्ड में समाप्त हो जायगा। अच्छा।
- वरदान :-
- ( All Blessings of 2021)
- सन्तुष्टता की विशेषता वा श्रेष्ठता द्वारा सर्व के इष्ट बनने वाले वरदानी मूर्त भव
- जो सदा स्वयं से और सर्व से सन्तुष्ट रहते हैं वही अनेक आत्माओं के इष्ट व अष्ट देवता बन सकते हैं।
- सबसे बड़े से बड़ा गुण कहो, दान कहो या विशेषता वा श्रेष्ठता कहो - वह सन्तुष्टता ही है।
- सन्तुष्ट आत्मा ही प्रभूप्रिय, लोकप्रिय और स्वयं प्रिय होती है।
- ऐसी सन्तुष्ट आत्मा ही वरदानी रूप में प्रसिद्ध होगी।
- अभी अन्त के समय में महादानी से भी ज्यादा वरदानी रूप द्वारा सेवा होगी।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- विजयी रत्न वह है जिसके मस्तक पर सदा विजय का तिलक चमकता हो।
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