मीठे बच्चे - तुम सच्चे-सच्चे सत्य बाप से सत्य कथा सुनकर नर से नारायण बनते हो, तुम्हें 21 जन्म के लिए बेहद के बाप से वर्सा मिल जाता है
प्रश्नः-
बाप की किस आज्ञा को पालन करने वाले बच्चे ही पारसबुद्धि बनते हैं?
उत्तर:-
बाप की आज्ञा है - देह के सब सम्बन्धों को भूलकर बाप को और राजाई को याद करो।
यही सद्गति के लिए सतगुरू की श्रीमत है।
जो इस श्रीमत को पालन करते अर्थात् देही-अभिमानी बनते हैं वही पारसबुद्धि बनते हैं।
गीत:- आज अन्धेंरे में हम इन्सान ...
ओम् शान्ति। यह कलियुगी दुनिया है। सब अन्धेरे में हैं, यही भारत सोझरे में था।
जब यह भारत स्वर्ग था।
यही भारतवासी जो अब अपने को हिन्दू कहलाते हैं, यह असुल देवी देवतायें थे।
भारतवासी स्वर्गवासी थे।
जब कोई धर्म नहीं था, एक ही धर्म था।
स्वर्ग, बैकुण्ठ, बहिश्त, हेविन यह सब भारत के नाम थे।
भारत प्राचीन पवित्र बहुत-बहुत धनवान था।
अभी तो भारत कंगाल है क्योंकि अब कलियुगी है। वह सतयुग था।
तुम सब भारतवासी हो।
तुम जानते हो हम अन्धियारे में हैं जब स्वर्ग में थे तो सोझरे में थे।
स्वर्ग के राज राजेश्वर, राज-राजेश्वरी लक्ष्मी-नारायण थे।
उनको सुखधाम कहा जाता है।
नये-नये आते हैं तो बाप फिर समझाते हैं।
बाप से ही तुमको स्वर्ग का वर्सा लेना है, जिसको जीवनमुक्ति कहा जाता है।
अभी सब जीवनबन्ध में हैं।
खास भारत आम दुनिया, रावण की जेल शोक वाटिका में हैं।
ऐसे नहीं कि रावण सिर्फ लंका में था और राम भारत में था और उसने आकर सीता चुराई।
यह सब हैं दन्त कथायें।
गीता है मुख्य, सर्व शास्त्रों में शिरोमणी श्रीमत अर्थात् भगवान की सुनाई हुई गीता।
मनुष्य तो कोई की सद्गति कर नहीं सकते।
सतयुग में थे जीवनमुक्त देवी देवतायें, जिन्होंने यह वर्सा कलियुग अन्त में पाया था।
भारत को यह पता नहीं था, न कोई शास्त्र में है।
शास्त्र तो सब हैं भक्ति मार्ग के लिए।
वह सब भक्ति मार्ग का ज्ञान है।
सद्गति मार्ग का ज्ञान मनुष्य मात्र में है नहीं।
बाप कहते हैं कि मनुष्य, मनुष्य के गुरू बन नहीं सकते।
गुरू कोई सद्गति दे नहीं सकते।
वह गुरू कहेंगे भक्ति करो, दान पुण्य करो।
भक्ति द्वापर से चली आई है।
सतयुग त्रेता में है ज्ञान की प्रालब्ध।
ऐसे नहीं वहाँ यह ज्ञान चला आता है।
यह जो वर्सा भारत को था, यह बाप से संगम पर ही मिला था।
जो फिर अभी तुमको मिल रहा है।
भारतवासी, नर्कवासी महान दु:खी बन जाते हैं तब पुकारते हैं हे पतित-पावन दु:ख हर्ता सुख कर्ता, किसका?
सर्व का क्योंकि खास भारत दुनिया आम में 5 विकार हैं ही हैं।
बाप है पतित-पावन।
बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगम पर आता हूँ और सर्व का सद्गति दाता बनता हूँ।
अबलाओं, अहिल्याओं, गणिकाओं और गुरू लोग जो हैं उनका भी उद्धार मुझे करना है क्योंकि यह तो है ही पतित दुनिया।
पावन दुनिया सतयुग को कहा जाता है।
भारत में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
यह भारतवासी नहीं जानते कि यह स्वर्ग के मालिक थे।
पतित खण्ड माना झूठ खण्ड, पावन खण्ड माना सचखण्ड।
भारत पावन खण्ड था।
इन लक्ष्मी-नारायण की सूर्यवंशी डिनायस्टी थी।
यह भारत है अविनाशी खण्ड, जो कभी विनाश नहीं होता।
जब इनका राज्य था तो और कोई खण्ड था नहीं।
वह सब बाद में आते हैं।
शास्त्रों में सबसे बड़ी भूल तो यह की है जो कल्प लाखों वर्ष का लिख दिया है।
बाप कहते हैं कि न तो कल्प लाखों वर्ष का होता, न सतयुग लाखों वर्ष का होता।
कल्प की आयु 5 हजार वर्ष है।
यह फिर कह देते कि मनुष्य 84 लाख जन्म लेते।
मनुष्य को कुत्ता-बिल्ली आदि बना दिया है।
परन्तु उनका जन्म अलग है।
84 लाख वैराइटी है।
मनुष्यों की वैराइटी एक है, उनके ही 84 जन्म हैं।
बाप कहते हैं बच्चे तुम आदि सनातन देवी देवता धर्म के थे।
भारतवासी अपने धर्म को ड्रामा प्लैन अनुसार भूल गये हैं।
कलियुग अन्त में बिल्कुल पतित बन पड़े हैं।
फिर बाप आकर संगम पर पावन बनाते हैं, इनको कहा जाता है दु:खधाम।
फिर पार्ट सुखधाम में होगा।
बाप कहते हैं - हे बच्चों तुम भारतवासी ही स्वर्गवासी थे।
फिर तुम 84 जन्मों की सीढ़ी उतरते हो।
सतो से रजो, तमो में जरूर आना है।
तुम देवताओं जितना धनवान एवरहैपी, एवरहेल्दी कोई नहीं होता।
भारत कितना साहूकार था।
हीरे जवाहरात तो बड़े-बड़े पत्थरों मिसल थे, कितने तो टूट गये हैं।
बाप तुम बच्चों को स्मृति दिलाते हैं कि तुमको कितना साहूकार बनाया था।
तुम सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण थे।
यथा राजा रानी..... इन्हों को भगवान भगवती भी कह सकते हैं।
परन्तु बाप ने समझाया है कि भगवान एक है, वह बाप है।
सिर्फ ईश्वर वा प्रभू कहने से भी याद नहीं आता कि वो सभी आत्माओं का बाप है।
यह तो है बेहद का बाप। वह समझाते हैं कि भारतवासी तुम जयन्ती मनाते हो परन्तु असुल में बाप कब आये थे, वह कोई भी नहीं जानते हैं।
हैं ही आइरन एजेड, पत्थरबुद्धि।
पारसनाथ थे, इस समय पत्थरनाथ हैं।
नाथ भी नहीं कहेंगे क्योंकि राजा रानी तो हैं नहीं।
पहले यहाँ दैवी राजस्थान था फिर आसुरी राज्य बन जाता है।
यह खेल है।
वह है हद का ड्रामा।
यह है बेहद का ड्रामा।
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी आदि से अन्त तक तुम अभी जानते हो और कोई भी नहीं जानते।
भारत में जब देवी देवता थे तो सारी सृष्टि के मालिक थे और भारत में ही थे।
बाप भारतवासियों को स्मृति दिलाते हैं।
सतयुग में आदि सनातन देवी देवता, इन्हों का श्रेष्ठ धर्म, श्रेष्ठ कर्म था फिर 84 जन्मों में उतरना पड़े।
यह बाप बैठ कहानी सुनाते हैं कि अब तुम्हारे बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है।
एक की बात नहीं।
न युद्ध का मैदान आदि ही है।
भारतवासी यह भी भूल गये हैं कि इन्हों का (लक्ष्मी-नारायण का) राज्य था।
सतयुग की आयु लम्बी करने से बहुत दूर ले गये हैं।
बाप समझाते हैं कि मनुष्य को भगवान नहीं कह सकते।
मनुष्य, मनुष्य की सद्गति नहीं कर सकते।
कहावत है कि सर्व का सद्गति दाता पतितों को पावन कर्ता एक है।
यह है झूठ खण्ड।
सच्चा बाबा सचखण्ड स्थापन करने वाला है।
भक्त पूजा करते हैं परन्तु भक्ति मार्ग में जिसकी भी पूजा करते आये हैं, एक की भी बायोग्राफी नहीं जानते हैं।
शिव जयन्ती तो मनाते हैं।
बाप है नई दुनिया का रचयिता।
हेविनली गाड फादर।
बेहद सुख देने वाला।
सतयुग में सुख था।
वह कैसे और किसने स्थापन किया?
नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाया।
भ्रष्टाचारियों को श्रेष्ठाचारी देवता बनाया।
यह तो बाप का ही काम है।
तुम बच्चों को पावन बनाता हूँ।
तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो।
फिर तुमको पतित कौन बनाते हैं? यह रावण।
मनुष्य कह देते हैं - सुख दु:ख ईश्वर देते हैं।
बाप कहते हैं मैं तो सबको सुख देता हूँ।
आधाकल्प फिर तुम बाप का सिमरण नहीं करेंगे फिर जब रावण राज्य होता है तो सबकी पूजा करने लग पड़ते हैं।
यह तुम्हारा बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है।
कहते हैं बाबा हमने कितने जन्म लिए हैं?
बाप कहते बच्चे, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो।
तुमने पूरे 84 जन्म लिए हैं।
तुम 21 जन्म लिए बेहद के बाप से वर्सा लेने आये हो अर्थात् सच्चे-सच्चे सत्य बाबा से सत्य कथा, नर से नारायण बनने का ज्ञान सुनते हो।
यह है ज्ञान, वह है भक्ति।
यह स्प्रीचुअल नॉलेज सुप्रीम रूह आकर देते हैं।
बच्चों को देही-अभिमानी बनना पड़े।
अपने को आत्मा निश्चय कर मामेकम् याद करो।
शिवबाबा तो सभी आत्माओं का बाप है।
आत्मायें सब परमधाम से पार्ट बजाने आती हैं, शरीर में।
इसको कर्मक्षेत्र कहा जाता है।
बड़ा भारी खेल है।
आत्मा में बुरे वा अच्छे संस्कार रहते हैं।
जिस अनुसार ही मनुष्य को जन्म मिलता है अच्छा वा बुरा।
यह जो पावन था, अभी पतित है, ततत्वम्।
मुझ बाप को इस पराये रावण की दुनिया, पतित शरीर में आना पड़ता है।
आना भी उसमें है जो पहले नम्बर में जाना है।
सूर्यवंशी ही पूरे 84 जन्म लेते हैं।
यह है ब्रह्मा और ब्राह्मण।
बाप समझाते हैं रोज़, लेकिन पत्थरबुद्धि को पारसबुद्धि बनाना मासी का घर नहीं हैं।
हे आत्मायें अब देही-अभिमानी बनो, हे आत्मायें एक बाप को याद करो और राजाई को याद करो।
देह के संबंधों को छोड़ो तो पारसबुद्धि बन जायेंगी।
मरना तो सबको है।
सबकी अब वानप्रस्थ अवस्था है।
एक सतगुरू बिगर सर्व का सद्गति दाता कोई हो नहीं सकता।
बाप कहते हैं हे भारतवासी बच्चों तुम पहले पारसबुद्धि थे।
गाया हुआ है कि आत्मा परमात्मा अलग रहे... तो पहले-पहले तुम भारतवासी देवी-देवता धर्म वाले आये हो और धर्म वाले पीछे आये हैं तो उन्हों के जन्म भी थोड़े होते हैं।
सारा सृष्टि का झाड़ कैसे फिरता है वह बाप बैठ समझाते हैं।
जो धारणा कर सकते हैं, उनके लिए बहुत सहज है।
आत्मा धारण करती है।
पुण्य आत्मा और पाप आत्मा तो आत्मा बनती है।
तुम्हारा अन्तिम 84 वाँ जन्म है।
तुम वानप्रस्थ अवस्था में हो।
वानप्रस्थ अवस्था वाले गुरू करते हैं - मन्त्र लेने लिए।
तुमको अब बाहर का मनुष्य गुरू करना नहीं है।
तुम सभी का मैं बाप टीचर सतगुरू हूँ।
मुझे कहते ही हैं - हे पतित-पावन शिवबाबा।
अभी स्मृति आई है, सभी आत्माओं का यह बाप है।
आत्मा सत्य है, चैतन्य है क्योंकि अमर है।
सभी आत्माओं में पार्ट भरा हुआ है।
बाप भी सत्य चैतन्य है।
वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप होने कारण कहते हैं कि मैं सारे झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को जानता हूँ, इसलिए मुझे नॉलेजफुल कहा जाता है।
तुमको भी सारी नॉलेज है कि बीज से झाड़ कैसे निकलता है।
झाड़ बढ़ने में तो टाइम लगता है।
बाप कहते हैं कि मैं बीजरूप हूँ।
अन्त में सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाता है।
अभी देखो देवी देवता धर्म का फाउण्डेशन है नहीं।
प्राय:लोप है। जब देवी-देवता धर्म गुम हो जाता है तब बाप को आना पड़े।
एक धर्म की स्थापना कर बाकी सबका विनाश करा देते हैं।
प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा बाप स्थापना करा रहे हैं आदि सनातन देवी देवता धर्म की।
तुम आये हो भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी देवता बनने।
यह ड्रामा बना हुआ है, इनकी एन्ड नहीं होती। बाप आते हैं।
आत्मायें सब ब्रदर्स हैं, मूलवतन में रहने वाली।
जो उस एक बाप को सब याद करते हैं।
दु:ख में सिमरण सब करें ... रावण राज्य में दु:ख है।
यहाँ सिमरण करते हैं तो बाप सर्व का सद्गति दाता एक है।
उनकी महिमा है।
बाप न आये तो पावन कौन बनाये।
क्रिश्चियन, इस्लामी आदि जो भी मनुष्य हैं इस समय सब तमोप्रधान हैं।
सभी को पुनर्जन्म जरूर लेना है।
अभी पुनर्जन्म मिलता है नर्क में।
ऐसे नहीं कि सुख में चले जाते हैं।
जैसे हिन्दू धर्म वाले कहते हैं कि स्वर्गवासी हुआ तो जरूर नर्क में था ना।
अभी स्वर्ग में गया, तुम्हारे मुख में गुलाब।
जब स्वर्गवासी हुआ फिर उसको नर्क के आसुरी वैभव क्यों खिलाते हो!
पित्र खिलाते हैं ना।
बंगाल में मछली, अण्डे आदि खिलाते हैं।
अरे, उनको यह सब खाने की दरकार क्या है!
वापिस कोई जा नहीं सकता।
जबकि पहले नम्बर वालों को 84 जन्म लेना पड़ता है।
इस ज्ञान में कोई तकलीफ नहीं है।
भक्ति मार्ग में कितनी मेहनत है।
राम-राम जपते रोमांच खड़े हो जाते हैं।
यह सब है भक्ति मार्ग।
यह सूर्य चाँद आदि रोशनी करने वाले हैं, यह देवता थोड़ेही हैं।
वास्तव में ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा और ज्ञान सितारे यहाँ की महिमा है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस अन्तिम 84 वें जन्म में कोई भी पाप कर्म (विकर्म) नहीं करना है।
पुण्य आत्मा बनने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है।
सम्पूर्ण पावन बनना है।
2) अपनी बुद्धि को पारसबुद्धि बनाने के लिए देह के सब सम्बन्धों को भूल देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करना है।