10-03-2021 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - तुम्हें गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनना है, एक बाप की मत पर चलना है, कोई भी डिस-सर्विस नहीं करनी है।

प्रश्नः-

किन बच्चों को माया ज़ोर से अपना पंजा मारती है?

बड़ी मंजिल कौन सी है?

उत्तर:-

जो बच्चे देह-अभिमान में रहते हैं उन्हें माया जोर से पंजा मार देती है, फिर नाम-रूप में फंस पड़ते हैं।

देह-अभिमान आया और थप्पड़ लगा, इससे पद भ्रष्ट हो जाता है।

देह-अभिमान तोड़ना यही बड़ी मंजिल है।

बाबा कहते बच्चे देही-अभिमानी बनो।

जैसे बाप ओबीडियन्ट सर्वेन्ट है, कितना निरंहकारी है, ऐसे निरंहकारी बनो, कोई भी अंहकार न हो।

 

गीत:- न वह हमसे जुदा होंगे....


  • ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना।
  • बच्चे कहते हैं हम बाबा के थे और बाबा हमारा था, जब मूलवतन में थे।
  • तुम बच्चों को ज्ञान तो अच्छी रीति मिला है।
  • तुम जानते हो हमने चक्र लगाया है।
  • अब फिर हम उनके बने हैं।
  • वह आया है राजयोग सिखाकर स्वर्ग का मालिक बनाने।
  • कल्प पहले मुआफिक फिर आया है।
  • अब बाप कहते हैं हे बच्चे, तो बच्चे होकर यहाँ मधुबन में नहीं बैठ जाना है।
  • तुम अपने गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहो।
  • कमल का फूल पानी में रहता है परन्तु पानी से ऊपर रहता है।
  • उन पर पानी लगता नहीं है।
  • बाप कहते हैं तुमको रहना घर में ही है सिर्फ पवित्र बनना है।
  • यह तुम्हारा बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है।
  • जो भी मनुष्य-मात्र हैं उन सबको पावन बनाने मैं आया हूँ।
  • पतित-पावन सर्व का सद्गति दाता एक ही है।
  • उनके सिवाए पावन कोई बना नहीं सकता।
  • तुम जानते हो आधाकल्प से हम सीढ़ी उतरते आये हैं।
  • 84 जन्म तुमको जरूर पूरे करने हैं और 84 का चक्र पूरा कर जब फिर जड़जड़ीभूत अवस्था को पाते हैं तब मुझे आना पड़ता है।
  • बीच में और कोई पतित से पावन बना नहीं सकता।
  • कोई भी न बाप को, न रचना को जानते हैं।
  • ड्रामा अनुसार सबको कलियुग में पतित तमोप्रधान बनना ही है।
  • बाप आकर सबको पावन बनाए शान्तिधाम ले जाते हैं।
  • और तुम बाप से सुखधाम का वर्सा पाते हो।
  • सतयुग में कोई दु:ख होता नहीं है।
  • अभी तुम जीते जी बाप के बने हो।
  • बाप कहते हैं तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहना है।
  • बाबा कभी किसको कह नहीं सकते कि तुम घरबार छोड़ो। नहीं।
  • गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ अन्तिम जन्म पवित्र बनना है।
  • बाबा ने कभी कहा है क्या कि तुम घरबार छोड़ो। नहीं।
  • तुमने ईश्वरीय सेवा अर्थ आपेही छोड़ा है।
  • कई बच्चे हैं घर गृहस्थ में रहते भी ईश्वरीय सर्विस करते हैं।
  • छुड़ाया नहीं जाता है।
  • बाबा किसको भी छुड़ाते नहीं हैं।
  • तुम तो आपेही सर्विस पर निकले हो।
  • बाबा ने किसको छुड़ाया नहीं है।
  • तुम्हारे लौकिक बाप शादी के लिए कहते हैं।
  • तुम नहीं करते हो क्योंकि तुम जानते हो कि अब मृत्युलोक का अन्त है।
  • शादी बरबादी ही होगी फिर हम पावन कैसे बनेंगे।
  • हम क्यों न भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा में लग जाएं।
  • बच्चे चाहते हैं कि रामराज्य हो।
  • पुकारते हैं ना - हे पतित-पावन सीताराम।
  • हे राम आकर भारत को स्वर्ग बनाओ।
  • कहते भी हैं परन्तु समझते कुछ नहीं हैं।
  • सन्यासी लोग कहते हैं इस समय का सुख काग विष्टा के समान है।
  • बरोबर है भी ऐसे।
  • यहाँ सुख तो है ही नहीं।
  • कहते रहते हैं परन्तु किसकी बुद्धि में नहीं है।
  • बाप कोई दु:ख के लिए यह सृष्टि थोड़ेही रचते हैं।
  • बाप कहते हैं क्या तुम भूल गये हो - स्वर्ग में दु:ख का नाम निशान नहीं रहता है।
  • वहाँ कंस आदि कहाँ से आये।
  • अब बेहद का बाप जो सुनाते हैं उनकी मत पर चलना है।
  • अपनी मनमत पर चलने से बरबादी कर देते हैं। आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती या ट्रेटर बनन्ती।
  • कितनी जाकर डिससर्विस करते हैं।
  • उनका फिर क्या होगा?
  • हीरे जैसा जीवन बनाने बदले कौड़ी मिसल बना देते हैं।
  • पिछाड़ी में तुमको सब अपना साक्षात्कार होगा।
  • ऐसी चलन के कारण यह पद पाया।
  • यहाँ तो तुमको कोई भी पाप नहीं करना है क्योंकि तुम पुण्य आत्मा बनते हो।
  • पाप का फिर सौगुणा दण्ड हो जायेगा।
  • भल स्वर्ग में तो आयेंगे परन्तु बिल्कुल ही कम पद।
  • यहाँ तुम राजयोग सीखने आये हो फिर प्रजा बन जाते हैं।
  • मर्तबे में तो बहुत फर्क है ना।
  • यह भी समझाया है - यज्ञ में कुछ देते हैं फिर वापिस ले जाते हैं तो चण्डाल का जन्म मिलता है।
  • कई बच्चे फिर चलन भी ऐसी चलते हैं, जो पद कम हो जाता है।
  • बाबा समझाते हैं ऐसे कर्म नहीं करो जो राजा रानी के बदले प्रजा में भी कम पद मिले।
  • यज्ञ में स्वाहा होकर भागन्ती होते तो क्या जाकर बनेंगे।
  • यह भी बाप समझाते हैं बच्चे, कोई भी विकर्म नहीं करो, नहीं तो सौगुणा सजायें मिलेंगी।
  • फिर क्यों नुकसान करना चाहिए।
  • यहाँ रहने वालों से भी जो घर गृहस्थ में रहते हैं, सर्विस में रहते हैं वे बहुत ऊंच पद पाते हैं।
  • ऐसे बहुत गरीब हैं, 8 आना वा रूपया भेज देते हैं और जो भल यहाँ हजार भी देवें तो भी गरीब का ऊंच पद हो जाता है क्योंकि वह कोई पाप कर्म नहीं करते हैं।
  • पाप करने से सौगुणा बन जायेगा।
  • तुमको पुण्य आत्मा बन सबको सुख देना है।
  • दु:ख दिया तो फिर ट्रिब्युनल बैठती है।
  • साक्षात्कार होता है कि तुमने यह-यह किया, अब खाओ सजा।
  • पद भी भ्रष्ट हो जायेगा।
  • सुनते भी रहते हैं फिर भी कई बच्चे उल्टी चलन चलते रहते हैं।
  • बाप कहते हैं हमेशा क्षीरखण्ड होकर रहो।
  • अगर लूनपानी होकर रहते हैं तो बहुत डिससर्विस करते हैं।
  • कोई के नाम रूप में फंस पड़ते हैं तो यह भी बहुत पाप हो जाता है।
  • माया जैसे एक चूहा है, फूंक भी देती, काटती भी रहती, खून भी निकल आता, पता भी नहीं पड़ता।
  • माया भी ब्लड निकाल देती है।
  • ऐसे कर्म करवा देती जो पता भी नहीं पड़ता।
  • 5 विकार एकदम सिर मूड़ लेते हैं।
  • बाबा सावधानी तो देंगे ना।
  • ऐसा न हो जो फिर ट्रिब्युनल के सामने कहें कि हमको सावधान थोड़ेही किया।
  • तुम जानते हो ईश्वर पढ़ाते हैं।
  • खुद कितना निरहंकारी है।
  • कहते हैं हम ओबीडियन्ट सर्वेन्ट हैं।
  • कोई-कोई बच्चों में कितना अहंकार रहता है।
  • बाबा का बनकर फिर ऐसे-ऐसे कर्म करते हैं जो बात मत पूछो।
  • इससे तो जो बाहर गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं वह बहुत ऊंच चले जाते हैं।
  • देह-अभिमान आते ही माया जोर से पंजा मार देती है।
  • देह-अभिमान तोड़ना बड़ी मंजिल है।
  • देह-अभिमान आया और थप्पड़ लगा।
  • तो देह-अभिमान में आना ही क्यों चाहिए जो पद भ्रष्ट हो जाए।
  • ऐसा न हो वहाँ जाकर झाड़ू लगाना पड़े।
  • अब अगर बाबा से कोई पूछे तो बाबा बता सकते हैं।
  • खुद भी समझ सकते हैं कि मैं कितनी सेवा करता हूँ।
  • हमने कितनों को सुख दिया है।
  • बाबा, मम्मा सबको सुख देते हैं।
  • कितना खुश होते हैं।
  • बाबा बॉम्बे में कितनी ज्ञान की डांस करते थे, चात्रक बहुत थे ना।
  • बाप कहते हैं बहुत चात्रक के सामने ज्ञान की डांस करता हूँ तो अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स निकलती हैं।
  • चात्रक खींचते हैं।
  • तुमको भी ऐसा बनना है तब तो फालो करेंगे।
  • श्रीमत पर चलना है।
  • अपनी मत पर चलकर बदनामी कर देते हैं तो बहुत नुकसान हो पड़ता है।
  • अभी बाप तुमको समझदार बनाते हैं।
  • भारत स्वर्ग था ना।
  • अब ऐसा कोई थोड़ेही समझता है।
  • भारत जैसा पावन कोई देश नहीं।
  • कहते हैं लेकिन समझते नहीं हैं कि हम भारतवासी स्वर्गवासी थे, वहाँ अथाह सुख था।
  • गुरूनानक ने भगवान की महिमा गाई है कि वह आकर मूत पलीती कपड़े धोते हैं।
  • जिसकी ही महिमा है एकोअंकार.... शिवलिंग के बदले अकालतख्त नाम रख दिया है।
  • अब बाप तुमको सारी सृष्टि का राज़ समझाते हैं।
  • बच्चे एक भी पाप नहीं करना, नहीं तो सौगुणा हो जायेगा।
  • मेरी निंदा करवाई तो पद भ्रष्ट हो जायेगा।
  • बहुत सम्भाल करनी है।
  • अपना जीवन हीरे जैसा बनाओ।
  • नहीं तो बहुत पछतायेंगे।
  • जो कुछ उल्टा किया है वह अन्दर में खाता रहेगा।
  • क्या कल्प-कल्प हम ऐसे करेंगे जिससे नींच पद पायेंगे।
  • बाप कहते हैं मात-पिता को फालो करना चाहते हो तो सच्चाई से सर्विस करो।
  • माया तो कहाँ न कहाँ से घुसकर आयेगी।
  • सेन्टर्स की हेड्स को बिल्कुल निरहंकारी होकर रहना है।
  • बाप देखो कितना निरहंकारी है।
  • कई बच्चे दूसरों से सर्विस लेते हैं।
  • बाप कितना निरहंकारी है।
  • कभी किसी पर गुस्सा नहीं करते।
  • बच्चे अगर नाफरमानबरदार हों तो बाप उनको समझा तो सकते हैं।
  • तुम क्या करते हो, बेहद का बाप ही जानते हैं।
  • सब बच्चे एक समान सपूत नहीं होते, कपूत भी होते हैं।
  • बाबा समझानी देते हैं।
  • ढेर बच्चे हैं।
  • यह तो वृद्धि को पाते हजारों की अन्दाज में हो जायेंगे।
  • तो बाप बच्चों को सावधानी भी देते हैं, कोई गफलत नहीं करो।
  • यहाँ पतित से पावन बनने आये हो तो कोई भी पतित काम नहीं करो।
  • न नाम रूप में फंसना है, न देह-अभिमान में आना है।
  • देही-अभिमानी हो बाप को याद करते रहो।
  • श्रीमत पर चलते रहो।
  • माया बड़ी प्रबल है।
  • बाबा सब कुछ समझा देते हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) बाप समान निरहंकारी बनना है।
  • किसी से सेवा नहीं लेनी है।
  • किसी को दु:ख नहीं देना है।
  • ऐसा कोई पाप कर्म न हो, जिसकी सजा खानी पड़े।
  • आपस में क्षीरखण्ड होकर रहना है।
  • 2) एक बाप की श्रीमत पर चलना है, अपनी मत पर नहीं।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा विश्व की देख-रेख करने वाले मास्टर रचयिता भव
  • जिसकी बुद्धि जितनी दिव्य है, दिव्यता के आधार पर उतनी स्पीड तेज है।
  • तो दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा एक सेकेण्ड में स्पष्ट रूप से विश्व परिक्रमा कर सर्व आत्माओं की देख रेख करो।
  • उन्हें सन्तुष्ट करो।
  • जितना आप चक्रवर्ती बनकर चक्र लगायेंगे उतना चारों ओर का आवाज निकलेगा कि हम लोगों ने ज्योति देखी, चलते हुए फरिश्ते देखे।
  • इसके लिए स्वयं कल्याणी के साथ विश्व कल्याणी मास्टर रचता बनो।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • मास्टर दाता बन अनेक आत्माओं को प्राप्तियों का अनुभव कराना ही ब्रह्मा बाप समान बनना है।
  • मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
  • 1) ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है, उसका प्रमाण क्या है?
  • शिरोमणी गीता में जो भगवानुवाच है बच्चे, जहाँ जीत है वहाँ मैं हूँ, यह भी परमात्मा के महावाक्य हैं।
  • पहाड़ों में जो हिमालय पहाड़ है उसमें मैं हूँ और सांपों में काली नाग मैं हूँ इसलिए पर्वत में ऊंचा पर्वत कैलाश पर्वत दिखाते हैं और सांपों में काली नाग, तो इससे सिद्ध है कि परमात्मा अगर सर्व सांपों में केवल काले नाग में है, तो सर्व सांपों में उसका वास नहीं हुआ ना।
  • अगर परमात्मा ऊंचे ते ऊंचे पहाड़ में है गोया नीचे पहाड़ों में नहीं है और फिर कहते हैं जहाँ जीत वहाँ मेरा जन्म, गोया हार में नहीं हूँ।
  • अब यह बातें सिद्ध करती हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है।
  • एक तरफ ऐसे भी कहते हैं और दूसरे तरफ ऐसे भी कहते हैं कि परमात्मा अनेक रूप में आते हैं, जैसे परमात्मा को 24 अवतारों में दिखाया है, कहते हैं कच्छ मच्छ आदि सब रूप परमात्मा के हैं।
  • अब यह है उन्हों का मिथ्या ज्ञान, ऐसे ही परमात्मा को सर्वत्र समझ बैठे हैं जबकि इस समय कलियुग में सर्वत्र माया ही व्यापक है तो फिर परमात्मा व्यापक कैसे ठहरा?
  • गीता में भी कहते हैं कि मैं फिर माया में व्यापक नहीं हूँ, इससे सिद्ध है कि परमात्मा सर्वत्र नहीं है।
  • 2) निराकारी दुनिया - आत्मा और परमात्मा के रहने का स्थान:-
  • अब यह तो हम जानते हैं कि जब हम निराकारी दुनिया कहते हैं तो निराकार का अर्थ यह नहीं कि उनका कोई आकार नहीं है, जैसे हम निराकारी दुनिया कहते हैं तो इसका मतलब है जरुर कोई दुनिया है, परन्तु उसका स्थूल सृष्टि मुआफिक आकार नहीं है, ऐसे परमात्मा निराकार है लेकिन उनका अपना सूक्ष्म रूप अवश्य है।
  • तो हम आत्मा और परमात्मा का धाम निराकारी दुनिया है।
  • तो जब हम दुनिया अक्षर कहते हैं, तो इससे सिद्ध है वो दुनिया है और वहाँ रहता है तभी तो दुनिया नाम पड़ा, अब दुनियावी लोग तो समझते हैं परमात्मा का रूप भी अखण्ड ज्योति तत्व है, वो हुआ परमात्मा के रहने का ठिकाना, जिसको रिटायर्ड होम कहते हैं।
  • तो हम परमात्मा के घर को परमात्मा नहीं कह सकते हैं।
  • अब दूसरी है आकारी दुनिया, जहाँ ब्रह्मा विष्णु शंकर देवतायें आकारी रूप में रहते हैं और यह है साकारी दुनिया, जिनके दो भाग है - एक है निर्विकारी स्वर्ग की दुनिया जहाँ आधाकल्प सर्वदा सुख है, पवित्रता और शान्ति है।
  • दूसरी है विकारी कलियुगी दु:ख और अशान्ति की दुनिया।
  • अब वो दो दुनियायें क्यों कहते हैं?
  • क्योंकि यह जो मनुष्य कहते हैं स्वर्ग और नर्क दोनों परमात्मा की रची हुई दुनिया है, इस पर परमात्मा के महावाक्य है बच्चे, मैंने कोई दु:ख की दुनिया नहीं रची जो मैंने दुनिया रची है वो सुख की रची है।
  • अब यह जो दु:ख और अशान्ति की दुनिया है वो मनुष्य आत्मायें अपने आपको और मुझ परमात्मा को भूलने के कारण यह हिसाब किताब भोग रहे हैं।
  • बाकी ऐसे नहीं जिस समय सुख और पुण्य की दुनिया है वहाँ कोई सृष्टि नहीं चलती।
  • हाँ, अवश्य जब हम कहते हैं कि वहाँ देवताओं का निवास स्थान था, तो वहाँ सब प्रवृत्ति चलती थी परन्तु इतना जरुर था वहाँ विकारी पैदाइस नहीं थी जिस कारण इतना कर्मबन्धन नहीं था।
  • उस दुनिया को कर्मबन्धन रहित स्वर्ग की दुनिया कहते हैं।
  • तो एक है निराकारी दुनिया, दूसरी है आकारी दुनिया, तीसरी है साकारी दुनिया। अच्छा - ओम् शान्ति।