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ओम् शान्ति। तुम मात-पिता हम बालक तेरे... यह तो जरूर परमपिता परमात्मा की महिमा गाई हुई है।
- यह तो क्लीयर महिमा है क्योंकि वह रचयिता है।
- लौकिक माँ-बाप भी बच्चे के रचयिता हैं।
- पारलौकिक बाप को भी रचता कहा जाता है।
- बंधू, सहायक..... बहुत महिमा गाते हैं।
- लौकिक बाप की इतनी महिमा नहीं है।
- परमपिता परमात्मा की महिमा ही अलग है।
- बच्चे भी महिमा करते हैं ज्ञान का सागर है, नॉलेजफुल है।
- उनमें सारा ज्ञान है।
- नॉलेज कोई शरीर निर्वाह की पढ़ाई का नहीं है।
- उनको ज्ञान का सागर नॉलेजफुल कहा जाता है।
- तो जरूर उनके पास ज्ञान है परन्तु कौन सा ज्ञान?
- यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, उसका ज्ञान है।
- तो वही ज्ञान सागर पतित-पावन है।
- कृष्ण को कभी पतित-पावन वा ज्ञान का सागर नहीं कहते।
- उनकी महिमा बिल्कुल न्यारी है।
- दोनों हैं भारत के निवासी।
- शिवबाबा की भी भारत में महिमा है।
- शिव जयन्ती भी यहाँ मनाते हैं।
- कृष्ण की जयन्ती भी मनाते हैं।
- गीता की भी जयन्ती मनाते हैं।
- 3 जयन्ती मुख्य हैं।
- अब प्रश्न उठता है कि पहले जयन्ती किसकी हुई होगी?
- शिव की या कृष्ण की?
- मनुष्य तो बिल्कुल ही बाप को भूले हुए हैं।
- कृष्ण की जयन्ती बड़े धूमधाम से, प्यार से मनाते हैं।
- शिव जयन्ती का इतना किसको पता नहीं है, न गायन है।
- शिव ने क्या आकर किया?
- उनकी बायोग्राफी का किसको पता नहीं है।
- कृष्ण की तो बहुत बातें लिख दी हैं।
- गोपियों को भगाया, यह किया।
- कृष्ण के चरित्रों की खास एक मैगजीन भी निकलती है।
- शिव के चरित्र आदि कुछ हैं नहीं।
- कृष्ण की जयन्ती कब हुई फिर गीता की जयन्ती कब हुई?
- कृष्ण जब बड़ा हो तब तो ज्ञान सुनावे।
- कृष्ण के बचपन को तो दिखाते हैं, टोकरी में डालकर पार ले गये।
- बड़ेपन का दिखाते हैं, रथ पर खड़ा है।
- चक्र चलाते हैं।
- 16-17 वर्ष का होगा।
- बाकी चित्र छोटेपन के दिखाये हैं।
- अब गीता कब सुनाई।
- उसी समय तो नहीं सुनाई होगी।
- जब लिखते हैं फलानी को भगाया, यह किया।
- उस समय तो ज्ञान शोभे भी नहीं।
- ज्ञान तो जब बुजुर्ग हो तब सुनाये।
- गीता भी कुछ समय बाद सुनाई होगी।
- अब शिव ने क्या किया, कुछ पता नहीं।
- अज्ञान नींद में सोये पड़े हैं।
- बाप कहते हैं मेरी बायोग्राफी का कोई को पता नहीं है।
- मैंने क्या किया?
- मुझे ही पतित-पावन कहते हैं।
- मैं आता हूँ तो साथ में गीता है।
- मैं साधारण बूढ़े अनुभवी तन में आता हूँ।
- शिव जयन्ती तुम भारत में ही मनाते हो।
- कृष्ण जयन्ती, गीता जयन्ती यह 3 मुख्य हैं।
- राम की जयन्ती तो बाद में होती है।
- इस समय जो कुछ होता है वह बाद में मनाया जाता है।
- सतयुग त्रेता में जयन्ती आदि होती नहीं।
- सूर्यवंशी से चन्द्रवंशी वर्सा लेते हैं और किसकी महिमा है नहीं।
- सिर्फ राजाओं का कारोनेशन मनाते होंगे।
- बर्थ डे तो आजकल सब मनाते हैं।
- वह तो कॉमन बात हुई।
- कृष्ण ने जन्म लिया बड़ा होकर राजधानी चलाई, उसमें महिमा की तो बात ही नहीं।
- सतयुग त्रेता में सुख का राज्य चला आया है।
- वह राज्य कब, कैसे स्थापन हुआ!
- यह तुम बच्चों की बुद्धि में है।
- बाप कहते हैं बच्चों मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ।
- कलियुग का अन्त है पतित दुनिया।
- सतयुग आदि पावन दुनिया। मैं बाप भी हूँ।
- तुम बच्चों को वर्सा भी दूँगा।
- कल्प पहले भी तुमको वर्सा दिया था इसलिए तुम मनाते आये हो।
- परन्तु नाम भूल जाने से कृष्ण का नाम डाल दिया है।
- बड़े ते बड़ा शिव है ना।
- पहले तो जब उनकी जयन्ती हो तब फिर साकार मनुष्य की हो।
- आत्मायें तो सब वास्तव में ऊपर से उतरती हैं।
- मेरा भी अवतरण है।
- कृष्ण ने माता के गर्भ से जन्म लिया, पालना ली।
- सबको पुनर्जन्म में आना ही है।
- शिवबाबा पुनर्जन्म नहीं लेते हैं।
- आते तो हैं ना।
- तो यह सब बाप बैठ समझाते हैं।
- ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की त्रिमूर्ति दिखाते हैं ना।
- ब्रह्मा द्वारा स्थापना, क्योंकि शिव को तो अपना शरीर है नहीं।
- खुद बैठ बताते हैं मैं इनके बूढ़े तन में आता हूँ।
- यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं।
- इनके बहुत जन्मों के अन्त का यह जन्म है।
- तो पहले-पहले समझाना पड़े।
- शिव जयन्ती बड़ी या श्रीकृष्ण जयन्ती बड़ी?
- अगर कृष्ण ने गीता सुनाई तो गीता जयन्ती तो श्रीकृष्ण के बहुत वर्षों के बाद हो सके, जबकि कृष्ण बड़ा हो।
- यह सब समझने की बातें हैं ना।
- लेकिन वास्तव में शिव जयन्ती के बाद हुई फट से गीता जयन्ती।
- यह भी प्वाइंट्स बुद्धि में रखनी हैं।
- प्वाइंट तो ढेर हैं।
- बिगर नोट किये याद रह न सकें।
- बाबा इतना नजदीक है, उनका रथ है, वह भी कहते हैं सब प्वाइंट्स समय पर याद आ जायें, मुश्किल है।
- बाबा ने समझाया है सबको दो बाप का राज़ समझाओ।
- शिवबाबा की जयन्ती मनाते हैं, जरूर आता होगा।
- जैसे क्राइस्ट, बुद्ध आदि आकर अपना धर्म स्थापन करते हैं।
- वह भी आत्मा आकर प्रवेश कर धर्म स्थापन करती है।
- वह है हेविनली गॉड फादर, सृष्टि के रचयिता।
- तो जरूर नई सृष्टि रचेंगे।
- पुरानी थोड़ेही रचेंगे।
- नई सृष्टि को स्वर्ग कहा जाता है, अभी है नर्क।
- बाबा कहते हैं मैं कल्प-कल्प के संगम पर आकर तुम बच्चों को राजयोग का ज्ञान देता हूँ।
- यह है भारत का प्राचीन योग।
- किसने सिखाया?
- शिवबाबा का नाम तो गुम कर दिया है।
- एक तो कहते गीता का भगवान श्रीकृष्ण और विष्णु आदि के नाम दे देते हैं।
- शिवबाबा ने राजयोग सिखाया था।
- किसको पता नहीं है।
- शिव जयन्ती निराकार की जयन्ती ही दिखाते हैं।
- वह कैसे आया, क्या आकर किया?
- वह तो सर्व का सद्गति दाता, लिबरेटर, गाइड है।
- अभी सर्व आत्माओं को गाइड चाहिए परमात्मा।
- वह भी आत्मा है।
- जैसे मनुष्यों का गाइड भी मनुष्य होता है, वैसे आत्माओं का गाइड भी आत्मा चाहिए।
- वह तो सुप्रीम आत्मा ही कहेंगे।
- मनुष्य तो सब पुनर्जन्म ले पतित बनते हैं।
- फिर पावन बनाए वापिस कौन ले जाये?
- बाप कहते हैं मैं ही आकर पावन होने की युक्ति बताता हूँ।
- तुम मुझे याद करो।
- कृष्ण तो कह न सके कि देह का संबंध छोड़ो।
- वह तो 84 जन्म लेते हैं।
- सब सम्बन्धों में आते हैं।
- बाप को अपना शरीर नहीं है।
- तुमको यह रूहानी यात्रा बाप सिखलाते हैं।
- यह है रूहानी बाप की रूहानी बच्चों प्रति रूहानी नॉलेज।
- कृष्ण कोई का रूहानी बाप थोड़ेही हैं।
- सबका रूहानी बाप मैं हूँ।
- मैं ही गाइड बन सकता हूँ।
- लिबरेटर, गाइड, ब्लिसफुल, पीसफुल, एवरप्योर सब मेरे लिए कहते हैं।
- अभी तुम आत्माओं को नॉलेज दे रहे हैं।
- बाप कहते हैं मैं इस शरीर द्वारा तुमको दे रहा हूँ।
- तुम भी शरीर द्वारा नॉलेज ले रहे हो।
- वह है गॉड फादर।
- उनका रूप भी बताया है।
- जैसे आत्मा बिन्दी है, वैसे परमात्मा भी बिन्दी है।
- यह कुदरत है ना।
- वास्तव में बड़ी कुदरत तो यह है।
- इतने छोटे स्टार में 84 जन्मों का पार्ट है।
- यह है कुदरत।
- बाप का भी ड्रामा में पार्ट है।
- भक्ति मार्ग में भी तुम्हारी सर्विस करते हैं।
- तुम्हारी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट अविनाशी है, इसको कहा जाता है कुदरत, इसका वर्णन कैसे करें।
- इतनी छोटी सी आत्मा है।
- यह बातें सुनकर वन्डर खाते हैं।
- आत्मा है भी स्टार मुआफिक।
- 84 जन्म एक्यूरेट भोगती है।
- सुख भी वह एक्यूरेट भोगेगी।
- यह है कुदरत।
- बाप भी है आत्मा, परम आत्मा।
- उनमें सारी नॉलेज भरी हुई है, जो बच्चों को समझाते हैं।
- यह हैं नई बातें, नये मनुष्य सुनकर कहेंगे इनका ज्ञान तो कोई शास्त्र आदि में भी नहीं है।
- फिर भी जिन्होंने कल्प पहले सुना है, वर्सा लिया है वही वृद्धि को पाते रहते हैं।
- टाइम लगता है।
- प्रजा ढेर बनती है।
- वह तो सहज है।
- राजा बनने में मेहनत है।
- मनुष्य जो बहुत धन दान करते हैं तो राजाई घर में जन्म लेते हैं।
- गरीब भी अपनी हिम्मत अनुसार जो कुछ दान करते होंगे तो वह भी राजा बनते हैं।
- जो पूरे भगत होते हैं वह दान पुण्य भी करते हैं।
- साहूकारों से पाप जास्ती होते होंगे।
- गरीबों में श्रद्धा बहुत रहती है।
- वह बहुत प्यार से थोड़ा भी दान करते हैं तो बहुत मिलता है।
- गरीब भक्ति भी बहुत करते हैं।
- दर्शन दो नहीं तो हम गला काट देते हैं।
- साहूकार ऐसे नहीं करेंगे।
- साक्षात्कार भी गरीबों को होते हैं।
- वही दान पुण्य करते हैं, राजायें भी वह बनते हैं।
- पैसे वालों को अहंकार रहता है।
- यहाँ भी गरीबों को 21 जन्म का सुख मिलता है।
- गरीब जास्ती हैं।
- साहूकार पिछाड़ी में आयेंगे।
- तो भारत जो इतना ऊंच था सो फिर इतना गरीब कैसे हुआ, तुम समझते हो।
- अर्थक्वेक आदि में सब महल आदि चले जायेंगे तो गरीब हो जायेगा।
- रावण राज्य होने से हाहाकार हो जाता है तो फिर ऐसी चीज़ें रह न सकें।
- हर चीज़ की आयु तो होती है ना।
- वहाँ जैसे मनुष्यों की आयु बड़ी होती है वैसे मकान की भी आयु बड़ी होती है।
- सोने के, मार्बल के बड़े-बड़े मकान बनते जायेंगे।
- सोने के तो और ही मजबूत होंगे।
- नाटक में भी दिखाते हैं ना - लड़ाई होती है, मकान टूट फूट जाते हैं।
- फिर बन जाते हैं।
- उन्हों की बनावट ऐसी होती है।
- यह जो स्वर्ग के महल आदि बनायेंगे, ऐसे तो नहीं दिखायेंगे मिस्त्री लोग कैसे मकान बनाते हैं।
- हाँ समझते हैं वही मकान होंगे।
- आगे चल तुमको साक्षात्कार होगा।
- ऐसा विवेक कहता है।
- इन बातों से बच्चों का तैलुक नहीं है।
- बच्चों को तो पढ़ाई पढ़नी है।
- स्वर्ग का मालिक बनना है।
- स्वर्ग और नर्क अनेक बार पास हुआ है।
- अभी दोनों पास हुए हैं।
- अभी है संगम।
- सतयुग में यह नॉलेज नहीं होगी।
- इस समय तुम बच्चों को पूरी नॉलेज है।
- लक्ष्मी-नारायण को यह राज्य किसने दिया था।
- अभी तुम बच्चों को मालूम है।
- इन्होंने यह वर्सा किससे पाया।
- यहाँ पढ़ाई पढ़कर स्वर्ग के मालिक बनते हैं।
- फिर वहाँ जाकर महल आदि बनाते हैं।
- सर्जन भी बड़े-बड़े हॉस्पिटल बनाते है ना।
- बाप तुम बच्चों को दिन प्रतिदिन अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स सुना रहे हैं।
- तुम्हारा धन्धा ही है - मनुष्यों को सुजाग करना, रास्ता बताना।
- जैसे बाप कितना प्यार से बैठ समझाते हैं।
- देह-अभिमान की दरकार नहीं।
- बाप को कभी देह-अभिमान नहीं हो सकता।
- तुमको मेहनत सारी देही-अभिमानी होने में लगती है।
- जो देही-अभिमानी बन बाप का बैठ परिचय देते हैं, गोया बहुतों का कल्याण करते हैं।
- पहले देह-अभिमान आने से फिर और विकार आते हैं।
- लड़ना, झगड़ना, नवाबी से चलना, देह-अभिमान है।
- भल अपना राजयोग है, तो भी बहुत साधारण रहना है।
- थोड़ी चीज़ में अहंकार आ जाता है।
- घड़ी फैशनबुल देखी तो दिल होगी यह पहनें।
- ख्याल चलता रहेगा।
- इसको भी देह-अभिमान कहा जाता है।
- अच्छी ऊंची चीज़ होगी तो सम्भालना पड़ेगा।
- गुम होगी तो ख्याल होगा।
- अन्त समय कुछ भी याद आया तो पद भ्रष्ट हो जायेगा।
- यह देह-अभिमान की आदतें हैं।
- फिर सर्विस बदले डिससर्विस भी जरूर करेंगे।
- रावण ने तुमको देह-अभिमानी बनाया है।
- देखते हो बाबा कितना साधारण चलते हैं।
- हर एक की सर्विस देखी जाती है।
- महारथी बच्चों को अपना शो करना है।
- महारथियों को ही लिखा जाता है तुम फलानी जगह जाकर भाषण करो।
- एक दो को बुलाते हैं।
- लेकिन बच्चों में देह-अभिमान बहुत रहता है।
- भाषण में भल अच्छे हैं परन्तु आपस में रूहानी स्नेह नहीं है।
- देह-अभिमान लून पानी बना देता है।
- कोई बात में झट बिगड़ पड़ना यह भी नहीं होना चाहिए इसलिए बाबा कहते हैं कोई को भी पूछना है तो बाबा से आकर पूछे।
- कोई कहे बाबा आपको कितने बच्चे हैं?
- कहूँगा बच्चे तो अनगिनत हैं परन्तु कोई कपूत, कोई सपूत अच्छे-अच्छे हैं।
- ऐसे बाप का तो फरमानबरदार, वफादार बनना चाहिए ना।
- अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) देह-अभिमान में आकर किसी भी प्रकार का फैशन नहीं करना है।
- जास्ती शौक नहीं रखने हैं।
- बहुत-बहुत साधारण होकर चलना है।
- 2) आपस में बहुत-बहुत रूहानी स्नेह से चलना है, कभी भी लूनपानी नहीं होना है।
- बाबा का सपूत बच्चा बनना है।
- अहंकार में कभी नहीं आना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- समर्पणता द्वारा बुद्धि को स्वच्छ बनाने वाले सर्व खजानों से सम्पन्न भव
- ज्ञान का, श्रेष्ठ समय का खजाना जमा करना वा स्थूल खजाने को एक से लाख गुणा बनाना अर्थात् जमा करना... इन सब खजानों में सम्पन्न बनने का आधार है स्वच्छ बुद्धि और सच्ची दिल।
- लेकिन बुद्धि स्वच्छ तब बनती है जब बुद्धि द्वारा बाप को जानकर, उसे बाप के आगे समर्पण कर दो।
- शूद्र बुद्धि को समर्पण करना अर्थात् देना ही दिव्य बुद्धि लेना है।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- "एक बाप दूसरा न कोई'' इस विधि द्वारा सदा वृद्धि को प्राप्त करते रहो।
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