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ओम् शान्ति। यह महिमा किसकी सुनी?
- जिसको सिवाए तुम बच्चों के दुनिया में और कोई जानते नहीं हैं।
- यह है ऊंच ते ऊंच बाप की महिमा।
- बाकी जिसकी भी महिमा करते हैं वह फालतू हो जाती है।
- ऊंच ते ऊंच एक ही बाप है।
- लेकिन बाप की पहचान कौन देवे।
- खुद आकर आत्मा की और अपनी पहचान देते हैं।
- कोई भी मनुष्य को आत्मा की भी पहचान है नहीं।
- भल कहते हैं महान आत्मा, जीव आत्मा।
- शरीर जब छूट जाता है तो कहते - आत्मा निकल जाती है।
- शरीर मुर्दा हो जाता है।
- आत्मा अविनाशी है।
- वह कभी खत्म नहीं होती।
- आत्मा जो स्टार मिसल है, वह अति सूक्ष्म है।
- इन ऑखों से देखने में नहीं आती है।
- कर्तव्य सब आत्मा करती है।
- परन्तु घड़ी-घड़ी देह-अभिमान में आ जाते हैं तो कहते हैं मैं फलाना हूँ, मैं यह करता हूँ।
- वास्तव में करती सब आत्मा है।
- शरीर तो आरगन्स हैं।
- यह साधू आदि भी जानते हैं कि आत्मा बहुत सूक्ष्म है, जो भ्रकुटी के बीच में रहती है।
- परन्तु उनको यह ज्ञान नहीं है कि आत्मा में यह पार्ट बजाने के संस्कार हैं।
- कोई कहते - आत्मा में संस्कार होते नहीं, आत्मा निर्लेप है।
- कोई कहते - संस्कारों अनुसार जन्म मिलता है।
- मतभेद बहुत है।
- यह भी किसको पता नहीं कि कौन सी आत्मायें 84 जन्म लेती हैं।
- तुम जानते हो कि सूर्यवंशियों को ही 84 का चक्र लगाना पड़ता है।
- आत्मा ही 84 का चक्र लगाए पतित बनती है।
- उनको अब पावन कौन बनाये?
- पतित-पावन ऊंच ते ऊंच एक ही बाप है, उनकी महिमा सबसे ऊंच है।
- 84 जन्म सब तो नहीं लेते।
- पीछे आने वाले तो 84 जन्म ले न सकें। सब इकट्ठे तो नहीं आते हैं।
- जो पहले-पहले सतयुग में आयेंगे, सूर्यवंशी राजे और प्रजा, उन्हों के 84 जन्म होते हैं।
- पीछे तो मनुष्यों की बहुत वृद्धि होती है ना।
- फिर कोई के 83 कोई के 80 जन्म होते हैं।
- वहाँ सतयुग में तो पूरी 150 वर्ष आयु होती है।
- कोई जल्दी मर न सके।
- यह बातें बाप ही बैठ समझाते हैं।
- अब कोई परमपिता परमात्मा को नहीं जानते हैं।
- बाप कहते हैं कि जैसे तुम्हारी आत्मा है, वैसे मेरी भी आत्मा है।
- तुम सिर्फ जन्म मरण में आते हो, मैं नहीं आता हूँ।
- मुझे बुलाते भी तब हैं जब पतित बनते हैं।
- जब बहुत दु:खी हो जाते हैं तब बुलाते हैं।
- इस समय तुम बच्चों को शिवबाबा पढ़ा रहे हैं।
- कोई पूछते कि यह कैसे मानें कि परमात्मा आते हैं!
- तो उन्हों को समझाना है कि सब पुकारते हैं - हे पतित-पावन आओ।
- अब वह है निराकार।
- उनको अपना शरीर नहीं है, आना भी है पतित दुनिया में।
- पावन दुनिया में तो नहीं आयेंगे।
- ऐसे समझाना चाहिए।
- यह भी समझाना है कि परमात्मा इतना छोटा है जैसे आत्मा छोटी है, परन्तु वह है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, नॉलेजफुल।
- बाप कहते हैं कि तुम मुझे परमपिता परमात्मा कहते हो।
- पुकारते हो तो जरूर आयेंगे ना।
- गायन भी है कि दूरदेश का रहने वाला आया देश पराये।
- अभी बाप द्वारा मालूम पड़ा है कि अभी हम पराये देश अर्थात् रावण के देश में हैं।
- सतयुग त्रेता में हम ईश्वरीय देश अर्थात् अपने देश में थे फिर द्वापर से लेकर हम पराये देश, पराये राज्य में आ जाते हैं।
- वाम मार्ग में आ जाते हैं।
- फिर भक्ति शुरू हो जाती है।
- पहले-पहले शिवबाबा की भक्ति करने लग जाते हैं, वे लोग शिव का इतना बड़ा लिंग बनाते हैं, परन्तु इतना बड़ा तो वह है नहीं।
- अभी तुमने समझा है कि आत्मा और परमात्मा में क्या फ़र्क है।
- वह नॉलेजफुल सदा पावन, सुख का सागर, आनंद का सागर है।
- यह परम आत्मा की महिमा है ना।
- अब बुलाते हैं कि हे पतित-पावन आओ।
- वह है परमपिता जो कल्प-कल्प आते हैं।
- दूरदेश के रहने वाले मुसाफिर को बुलाते हैं, उनकी महिमा गाते हैं।
- ब्रह्मा, सरस्वती को तो बुलाते नहीं हैं।
- पुकारते हैं निराकार परमात्मा को।
- आत्मा बुलाती है कि दूरदेश के रहने वाले अब आओ देश पराये क्योंकि सब पतित बन चुके हैं।
- मैं भी आऊंगा तब, जब रावण राज्य खत्म होना होगा।
- मैं आता भी हूँ - संगम युगे।
- यह किसको भी पता नहीं है।
- कहते भी हैं कि वह परम आत्मा, बिन्दी है।
- आजकल फिर कहते हैं आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा।
- आत्मा सो परमात्मा हो न सके।
- आत्मा परमात्मा दोनों अलग-अलग हैं।
- रूप दोनों का एक जैसा है।
- परन्तु आत्मा पतित बनती है, 84 जन्मों का पार्ट बजाना पड़ता है।
- परमात्मा जन्म मरण रहित है।
- अगर आत्मा सो परमात्मा कहते तो क्या सतोप्रधान परमात्मा, तमोप्रधान में आते हैं। नहीं, यह तो हो न सके।
- बाप कहते हैं कि मैं आता हूँ, सर्व आत्माओं की सर्विस करने।
- मेरा जन्म भी नहीं कहा जाता।
- मैं आता ही हूँ नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने।
- पराये देश में आये हैं, अपना स्वर्ग स्थापन करने।
- बाप ही आकर हमको स्वर्ग का लायक बनाते हैं।
- यह भी समझाया है कि और आत्माओं का पार्ट अपना-अपना है।
- परमात्मा जन्म-मरण रहित है।
- आते भी जरूर हैं तब तो शिवरात्रि मनाते हैं।
- लेकिन वह कब आये, यह कोई नहीं जानते।
- ऐसे ही शिवजयन्ती मनाते आये हैं।
- जरूर संगम पर आये होंगे, स्वर्ग स्थापन करने।
- पतितों को पावन बनाने जरूर संगम पर आयेंगे ना।
- पावन सृष्टि है स्वर्ग।
- कहते हैं पतित-पावन आओ।
- फिर जरूर पतित दुनिया के विनाश का समय होगा, तब ही पावन दुनिया स्थापन करेंगे। युगे-युगे तो नहीं आते।
- बाप कहते हैं - मुझे संगम पर ही आकर पतित दुनिया को पावन बनाना है।
- यह पराया देश है, रावण का देश।
- परन्तु यह कोई मनुष्य थोड़ेही जानते कि रावण का राज्य चल रहा है।
- कब से यह रावण राज्य शुरू हुआ, कुछ भी पता नहीं।
- पहली-पहली मुख्य बात आत्मा और परमात्मा का राज़ समझाना है, फिर समझाना है कि वह कल्प के संगमयुग पर आते हैं पावन बनाने।
- यह काम उनका ही है, न कि श्रीकृष्ण का।
- श्रीकृष्ण तो खुद ही 84 जन्म ले नीचे उतरते हैं।
- सूर्यवंशी सब नीचे उतरते हैं।
- झाड़ आधा ताजा, आधा पुराना थोड़ेही होगा।
- जड़जड़ीभूत अवस्था सबकी होती है।
- कल्प की आयु का भी मनुष्यों को पता नहीं है।
- शास्त्रों में लम्बी चौड़ी आयु दे दी है।
- यह बाप ही बैठ समझाते हैं।
- इसमें और प्रश्न उठ न सके।
- रचता बाप सच ही बोलते हैं।
- हम इतने बी. के. हैं, सब मानते हैं।
- तो जरूर है तब तो मानते हैं।
- आगे चल जब निश्चय होगा तो समझ में भी आ जायेगा।
- पहले-पहले मनुष्यों को यह समझाना है कि परमपिता परमात्मा निराकार दूरदेश से आये हैं।
- परन्तु किस शरीर में आये?
- सूक्ष्मवतन में आकर क्या करेंगे?
- जरूर यहाँ आना पड़े।
- प्रजापिता ब्रह्मा भी यहाँ चाहिए।
- ब्रह्मा कौन है, यह भी बाप बैठ समझाते हैं।
- जिसमें प्रवेश किया है वह अपने जन्मों को नहीं जानते थे तो बच्चे भी नहीं जानते थे।
- बच्चे भी तब बनते जब मैं एडॉप्ट करता हूँ।
- मैं इन (साकार) सहित बच्चों को समझाता हूँ कि क्या तुम अपने जन्मों को भूल गये हो।
- अभी सृष्टि का चक्र पूरा होता है फिर रिपीट होगा।
- मैं आया हूँ पावन बनाने के लिए, राजयोग सिखाने।
- पावन बनने का और कोई रास्ता नहीं है।
- अगर यह राज़ मनुष्य जानते तो गंगा आदि पर स्नान करने, मेले आदि पर जाते नहीं।
- इन पानी की नदियों में तो सदैव स्नान करते रहते हैं।
- द्वापर से लेकर करते आये हैं।
- समझते हैं कि गंगा में डुबकी मारने से पाप नाश होंगे।
- परन्तु कोई के भी पाप नाश नहीं होते हैं।
- पहले-पहले तो आत्मा और परमात्मा का ही राज़ बताओ।
- आत्मायें ही परमात्मा बाप को पुकारती हैं, वह निराकार है, आत्मा भी निराकार है।
- इन आरगन्स द्वारा आत्मा पुकारती है।
- भक्ति के बाद भगवान को आना है, यह भी ड्रामा में पार्ट है।
- बाप कहते हैं - मुझे नई दुनिया स्थापन करने आना पड़ता है।
- शास्त्रों में भी है कि भगवान को संकल्प उठा तो जरूर ड्रामा प्लैन अनुसार संकल्प उठा होगा।
- आगे इन बातों को थोड़ेही समझते थे।
- दिन-प्रतिदिन समझते जाते हैं।
- बाप कहते हैं - मैं तुमको नई-नई गुह्य ते गुह्य बातें सुनाता हूँ।
- सुनते-सुनते समझते जाते हैं।
- आगे ऐसे नहीं कहते थे कि शिवबाबा पढ़ाते हैं।
- अब तो अच्छी रीति समझ गये हैं, और भी समझने का बहुत पड़ा है।
- रोज़ समझाते रहते हैं कि कैसे किसको समझाना चाहिए।
- पहले यह निश्चय करें कि बेहद का बाप समझाते हैं तो वह जरूर सत्य बतायेंगे।
- इसमें मूँझने की भी बात नहीं।
- बच्चे कोई पक्के हैं, कोई कच्चे हैं।
- कच्चा है तो कोई को समझा नहीं सकते हैं।
- यह तो स्कूल में भी नम्बरवार होते हैं।
- बहुतों को यह संशय पड़ता है कि हम कैसे समझें कि परमपिता परमात्मा आकर पढ़ाते हैं क्योंकि उन्हों की बुद्धि में है श्रीकृष्ण ने ज्ञान सुनाया।
- अब पतित दुनिया में तो कृष्ण आ नहीं सकता।
- यह उनको सिद्ध करो कि परमात्मा को ही आना पड़ता है, पतित दुनिया और पतित शरीर में।
- बाप यह भी समझते हैं कि हर एक की अपनी-अपनी बुद्धि है।
- कोई तो झट समझ जाते हैं।
- जितना हो सके समझाना है।
- ब्राह्मण सब एक जैसे नहीं होते हैं।
- परन्तु देह-अभिमान बच्चों में बहुत है।
- यह बाबा भी जानते हैं कि नम्बरवार हैं।
- डायरेक्शन पर बच्चों को चलना पड़े।
- बड़ा बाबा जो कहे, वह मानना चाहिए।
- गुरूओं आदि की तो मानते आये हो।
- अब बाप जो स्वर्ग में ले जाने वाला है, उनकी बात तो ऑख बंद कर माननी चाहिए।
- परन्तु ऐसे निश्चयबुद्धि हैं नहीं।
- भल उसमें नुकसान हो वा फायदा हो, मान लेना चाहिए।
- भल समझो नुकसान भी हो जाए।
- फिर भी बाबा कहते हैं ना - हमेशा ऐसे समझो कि शिवबाबा ही कहते हैं, ब्रह्मा के लिए मत समझो।
- रेसपान्सिबुल शिवबाबा होगा।
- उनका यह रथ है, वह ठीक कर देंगे।
- कहेंगे कि मैं बैठा हूँ।
- हमेशा समझो कि शिवबाबा ही कहते हैं, यह कुछ नहीं जानते।
- ऐसे ही समझो।
- एक तरफ तो निश्चय रखना चाहिए, शिवबाबा कहते मेरा मानते रहो तो तुम्हारा कल्याण होता रहेगा।
- यह ब्रह्मा भी अगर कुछ कहते हैं, तो उनका भी रेसपान्सिबुल मैं हूँ।
- तुम बच्चे फिकर नहीं करो।
- शिवबाबा को याद करने से अवस्था और ही पक्की हो जायेगी।
- निश्चय में विकर्म भी विनाश होंगे, बल भी मिलेगा।
- जितना बाबा को याद करेंगे उतना बल जास्ती मिलेगा।
- जो श्रीमत पर चल सर्विस करते हैं वही ऊंच पद पायेंगे।
- बहुतों में देह-अभिमान बहुत रहता है।
- बाबा देखो सब बच्चों से कैसे प्यार से चलता है।
- सबसे बात करते रहते हैं।
- बच्चों से पूछते हैं कि ठीक बैठे हो!
- कोई तकलीफ तो नहीं है!
- लव होता है बच्चों के लिए।
- बेहद के बाप को बच्चों के लिए बहुत-बहुत लव है।
- जो जितनी श्रीमत पर सर्विस करते हैं उस अनुसार लव रहता है।
- सर्विस में ही फायदा है।
- सर्विस में हडिड्याँ देनी हैं।
- कोई भी काम करते रहेंगे तो वह फिर दिल पर भी रहते हैं कि यह बच्चा फर्स्टक्लास है।
- परन्तु चलते-चलते किसी पर ग्रहचारी भी बैठती है।
- माया का सामना होता है ना।
- ग्रहचारी के कारण फिर ज्ञान उठा नहीं सकते।
- कई तो फिर कर्मणा सेवा अथक होकर करते हैं।
- तुम्हारा काम है सबको सुखधाम का मालिक बनाना।
- किसको दु:ख नहीं देना।
- ज्ञान नहीं है तो फिर बहुत दु:ख देते हैं।
- फिर कितना भी समझाओ तो समझते नहीं।
- पहले-पहले समझानी देनी है आत्मा और परमात्मा की।
- कैसे आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है, जो अविनाशी पार्ट है।
- कभी बदलने का नहीं है, ड्रामा में नूँधा हुआ है।
- यह निश्चय वाला कभी हिलेगा नहीं।
- बहुत हिल जाते हैं।
- पिछाड़ी में जब भंभोर को आग लगेगी तब अचल बन जायेंगे।
- अभी तो बहुत युक्ति से समझाना है।
- अच्छे-अच्छे बच्चे तो सर्विस पर रहते हैं।
- दिल पर चढ़े रहते हैं।
- बहुत तीखे जाते रहते हैं।
- बहुत मेहनत करते हैं।
- उनको सर्विस का बहुत शौक रहता है।
- जिनमें जो गुण हैं वह बाबा वर्णन करते हैं।
- अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) सर्विस में हड्डियाँ देनी हैं, किसी भी बात में संशय नहीं उठाना है।
- सबको सर्विस से सुख देना है, दु:ख नहीं।
- 2) निश्चय के बल से अपनी अवस्था को अडोल बनाना है।
- जो श्रीमत मिलती है, उसमें कल्याण समाया हुआ है, क्योंकि रेसपान्सिबुल बाप है इसलिए फिकर नहीं करना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- सहजयोग को नेचर और नैचुरल बनाने वाले हर सबजेक्ट में परफेक्ट भव
- जैसे बाप के बच्चे हो - इसमें कोई परसेन्टेज़ नहीं है, ऐसे निरन्तर सहजयोगी वा योगी बनने की स्टेज में अब परसेन्टेज खत्म होनी चाहिए।
- नैचुरल और नेचर हो जानी चाहिए।
- जैसे कोई की विशेष नेचर होती है, उस नेचर के वश न चाहते भी चलते रहते हैं।
- ऐसे यह भी नेचर बन जाए।
- क्या करूं, कैसे योग लगाऊं - यह बातें खत्म हो जाएं तो हर सबजेक्ट में परफेक्ट बन जायेंगे।
- परफेक्ट अर्थात् इफेक्ट और डिफेक्ट से परे।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- सहन करना है तो खुशी से करो, मज़बूरी से नहीं।
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