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      ओम् शान्ति। बाप ने बच्चों को समझाया है - तुम भी कहते हो ओम् शान्ति। 
 
      - बाप भी कहते हैं ओम् शान्ति अर्थात् तुम आत्मायें शान्त स्वरूप हो। 
 
      - बाप भी शान्त स्वरूप है, आत्मा का स्वधर्म शान्त है।
 
      -  परमात्मा का भी स्वधर्म शान्त है। 
 
      - तुम भी शान्तिधाम में रहने वाले हो। 
 
      - बाप भी कहते हैं - मैं भी वहाँ का रहने वाला हूँ। 
 
      - तुम बच्चे पुनर्जन्म में आते हो, मैं नहीं आता। 
 
      - मैं इस रथ में प्रवेश करता हूँ। 
 
      - यह मेरा रथ है। 
 
      - शंकर से अगर पूछेंगे, पूछ तो नहीं सकते परन्तु समझो सूक्ष्मवतन में जाकर कोई पूछे तो कहेंगे यह सूक्ष्म शरीर हमारा है। शिवबाबा कहते हैं यह हमारा शरीर नहीं है। 
 
      - यह हमने उधार लिया है क्योंकि मुझे भी कर्मेन्द्रियों का आधार चाहिए।
 
      -  पहली-पहली मुख्य बात समझानी है कि पतित-पावन, ज्ञान का सागर श्रीकृष्ण नहीं है। 
 
      - श्रीकृष्ण सर्व आत्माओं को पतित से पावन नहीं बनाते हैं, वो तो आकर पावन दुनिया में राज्य करते हैं।
 
      -  पहले प्रिन्स बनते हैं फिर महाराजा बनते हैं। 
 
      - उनमें भी यह ज्ञान नहीं है।
 
      -  रचना का ज्ञान तो रचता में ही होगा ना। 
 
      - श्रीकृष्ण को रचना कहा जाता है।
 
      -  रचता बाप ही आकर ज्ञान देते हैं। 
 
      - अभी बाप रच रहे हैं, कहते हैं तुम हमारे बच्चे हो।
 
      -  तुम भी कहते हो बाबा हम आपके हैं। 
 
      - कहा भी जाता है ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों की स्थापना। 
 
      - नहीं तो ब्राह्मण कहाँ से आये। 
 
      - सूक्ष्मवतन वाला ब्रह्मा कोई दूसरा नहीं है।
 
      -  ऊपर वाला सो नीचे वाला सो ऊपर वाला। 
 
      - एक ही है। 
 
      - अच्छा विष्णु और लक्ष्मी-नारायण भी एक ही बात है।
 
      -  वह कहाँ के हैं? 
 
      - ब्रह्मा सो विष्णु बनते हैं।
 
      -  ब्रह्मा-सरस्वती ही सो लक्ष्मी-नारायण फिर वही सारा कल्प 84 जन्मों के बाद आकर संगम पर ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं। 
 
      - लक्ष्मी-नारायण भी मनुष्य हैं, उनका देवी देवता धर्म है। 
 
      - विष्णु को भी 4 भुजायें दी हैं। 
 
      - यह प्रवृत्ति मार्ग दिखाया है।
 
      -  भारत में शुरू से ही प्रवृत्ति मार्ग चला आता है इसलिए विष्णु को 4 भुजायें दी हैं।
 
      -  यहाँ है ब्रह्मा-सरस्वती, वह सरस्वती एडाप्टेड बच्ची है। 
 
      - इनका असुल नाम लखीराज था, फिर इनका नाम रखा ब्रह्मा।
 
      -  शिवबाबा ने इसमें प्रवेश किया और राधे को अपना बनाया, नाम रखा सरस्वती।
 
      -  सरस्वती का ब्रह्मा कोई लौकिक बाप नहीं ठहरा। 
 
      - इन दोनों के लौकिक बाप अपने-अपने थे।
 
      -  अभी वह नहीं हैं। 
 
      - यह शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट किया है।
 
      -  तुम हो एडाप्टेड चिल्ड्रेन।
 
      -  ब्रह्मा भी शिवबाबा का बच्चा है।
 
      -  ब्रह्मा के मुख कमल से रचते हैं इसलिए ब्रह्मा को भी माता कहा जाता है। 
 
      - तुम मात पिता हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे.. गाते हैं ना।
 
      -  तुम ब्राह्मण आकर बालक बने हो। 
 
      - इसमें समझने की बुद्धि बड़ी अच्छी चाहिए।
 
      -  तुम बच्चे शिवबाबा से वर्सा लेते हो। 
 
      - ब्रह्मा कोई स्वर्ग का रचयिता वा ज्ञान सागर नहीं है। 
 
      - ज्ञान का सागर एक ही बाप है।
 
      -  आत्मा का बाप ही ज्ञान का सागर है। 
 
      - आत्मा भी ज्ञान सागर बनती है परन्तु इनको ज्ञान सागर नहीं कहेंगे क्योंकि सागर एक ही है।
 
      -  तुम सब नदियाँ हो। 
 
      - सागर को अपना शरीर नहीं है।
 
      -  नदियों को है। 
 
      - तुम हो ज्ञान नदियाँ। 
 
      - कलकत्ता में ब्रह्मपुत्रा नदी बहुत बड़ी है क्योंकि उनका सागर से कनेक्शन है।
 
      -  उनका मेला बहुत बड़ा लगता है। 
 
      - यहाँ भी मेला लगता है। 
 
      - सागर और ब्रह्मपुत्रा दोनों कम्बाइन्ड हैं। 
 
      - यह है चैतन्य, वह है जड़।
 
      -  यह बातें बाप समझाते हैं।
 
      -  शास्त्रों में नहीं हैं। 
 
      - शास्त्र हैं भक्ति मार्ग की डिपार्टमेन्ट।
 
      -  यह है ज्ञान मार्ग, वह है भक्ति मार्ग। 
 
      - आधाकल्प भक्ति मार्ग की डिपार्टमेन्ट चली है।
 
      -  उसमें ज्ञान सागर है नहीं।
 
      -  परमपिता परमात्मा, ज्ञान का सागर बाप संगम पर आकर ज्ञान स्नान से सबकी सद्गति करते हैं।
 
      -  तुम जानते हो कि हम बेहद के बाप से स्वर्ग के सुखों की तकदीर बना रहे हैं। 
 
      - बरोबर हम सतयुग, त्रेता में पूज्य देवी देवता थे।
 
      -  अभी हम पुजारी मनुष्य हैं।
 
      -  फिर मनुष्य से तुम देवता बनते हो।
 
      -  ब्राह्मण सो देवता धर्म में आये फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें। 
 
      - 84 जन्म लेते-लेते नीचे उतरना पड़ा है।
 
      -  यह भी तुमको बाप ने बताया है।
 
      -  तुम अपने जन्मों को नहीं जानते थे।
 
      -  84 जन्म भी तुम ही लेते हो।
 
      -  जो पहले-पहले आते हैं, वही पूरे 84 जन्म लेते हैं। 
 
      - योग से ही खाद निकलती है, योग में ही मेहनत है।
 
      -  भल कई बच्चे ज्ञान में तीखे हैं परन्तु योग में कच्चे हैं।
 
      -  बांधेलियाँ योग में छुटेलियों से भी अच्छी हैं।
 
      -  वह तो शिवबाबा से मिलने के लिए रात-दिन तड़फती हैं।
 
      -  तुम मिले हो।
 
      -  तुमको कहा जाता है याद करो तो तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। 
 
      - तुमको तूफान बहुत आते हैं।
 
      -  वह याद में तड़फती हैं। तुम तड़फते नहीं हो। 
 
      - उन्हों का घर बैठे भी ऊंच पद हो जाता है। 
 
      - तुम बच्चे जानते हो - बाबा की याद में रहने से हमको स्वर्ग की बादशाही मिलेगी।
 
      -  जैसे बच्चा गर्भ से निकलने के लिए तड़फता है।
 
      -  वैसे बांधेलियाँ तडपते-तड़पते पुकारती हैं, शिवबाबा इस बन्धन से निकालो।
 
      -  दिन-रात याद करती हैं।
 
      -  तुमको बाप मिला है तो तुम अलबेले बन पड़े हो।
 
      -  हम बाबा के बच्चे हैं। 
 
      - हम यह शरीर छोड़ जाए प्रिन्स बनेंगे, यह अन्दर स्थाई खुशी रहनी चाहिए। 
 
      - परन्तु माया याद रखने नहीं देती।
 
      -  याद से खुशी में बहुत रहेंगे। 
 
      - याद नहीं करेंगे तो घुटका खाते रहेंगे।
 
      -  आधाकल्प तुमने रावण राज्य में दु:ख देखा है।
 
      -  अकाले मृत्यु होता आया है। 
 
      - दु:ख तो है ही है। 
 
      - भल कितना भी साहूकार हो, दु:ख तो होता है।
 
      -  अकाले मृत्यु हो जाती है। 
 
      - सतयुग में ऐसे अकाले नहीं मरते, कभी बीमार नहीं होंगे।
 
      -  समय पर बैठे-बैठे आपेही एक शरीर छोड़ दूसरा ले लेते हैं।
 
      -  उसका नाम ही है-सुखधाम। 
 
      - मनुष्य तो स्वर्ग की बातों को कल्पना समझते हैं।
 
      -  कहेंगे, स्वर्ग कहाँ से आया।
 
      -  तुम जानते हो हम तो स्वर्ग में रहने वाले हैं फिर 84 जन्म लेते हैं। 
 
      - यह सारा खेल भारत पर ही बना हुआ है।
 
      -  तुम जानते हो हम 21 जन्म पावन देवता थे फिर हम क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बने।
 
      -  अब फिर ब्राह्मण बने हैं। 
 
      - यह स्वदर्शन चक्र बहुत सहज है। 
 
      - यह शिवबाबा बैठ समझाते हैं।
 
      - तुम जानते हो शिवबाबा ब्रह्मा के रथ में आया है, जो ब्रह्मा है वही सतयुग आदि में श्रीकृष्ण था।
 
      -  84 जन्म ले पतित बने हैं फिर इनमें बाप ने प्रवेश कर एडाप्ट किया है।
 
      -  खुद कहते हैं मैंने इस तन का आधार ले तुमको अपना बनाया है। 
 
      - फिर तुमको स्वर्ग की राजधानी का लायक बनाता हूँ, जो लायक बनेंगे वही राजाई में आयेंगे।
 
      -  इसमें मैनर्स अच्छे चाहिए।
 
      -  मुख्य है ही पवित्रता। 
 
      - इस पर अबलाओं पर अत्याचार होते हैं।
 
      -  कहाँ-कहाँ पुरूषों पर भी अत्याचार होते हैं।
 
      -  विकार के लिए एक दो को तंग करते हैं।
 
      -  यहाँ मातायें बहुत होने के कारण शक्ति सेना नाम गाया हुआ है, वन्दे मातरम्। 
 
      - अभी तुम ज्ञान-चिता पर बैठे हो काम-चिता से उतर गोरे बनने के लिए।
 
      -  द्वापर से लेकर काम-चिता पर बैठे हो।
 
      -  एक दो को विकार देने का हथियाला विकारी ब्राह्मण बांधते हैं।
 
      -  तुम हो निर्विकारी ब्राह्मण। 
 
      - तुम वह कैंसिल कराए ज्ञान-चिता पर बिठाते हो। 
 
      - काम-चिता से काले बने हैं, ज्ञान-चिता से गोरे बन जायेंगे।
 
      -  बाप कहते हैं भल इकट्ठे रहो परन्तु प्रतिज्ञा करनी है हम विकार में नहीं जायेंगे, इसलिए बाबा अंगूठी भी पहनाते हैं।
 
      -  शिवबाबा, बाबा भी है, साजन भी है।
 
      -  सभी सीताओं का राम है।
 
      -  वही पतित-पावन है।
 
      -  बाकी रघुपति राघव राजाराम की बात नहीं है। 
 
      - उसने संगम पर ही यह प्रालब्ध पाई थी।
 
      -  उनको हिंसक बाण दिखाना रांग है।
 
      -  चित्र में भी नहीं देना चाहिए। 
 
      - सिर्फ लिखना है चन्द्रवंशी।
 
      -  बच्चों को समझाना चाहिए शिवबाबा इस द्वारा हमको यह चक्र का राज़ समझा रहे हैं। 
 
      - सत्य-नारायण की कथा होती है ना। 
 
      - वह है मनुष्यों की बनाई हुई कथा।
 
      -  नर से नारायण तो कोई बनते नहीं।
 
      -  सत्य नारायण की कथा का अर्थ ही है नर से नारायण बनना।
 
      -  अमरकथा भी सुनाते हैं परन्तु अमरपुरी में तो कोई जाते नहीं। 
 
      - मृत्युलोक 2500 वर्ष चलता है।
 
      -  तीजरी की कथा मातायें सुनती हैं। 
 
      - वास्तव में यह है तीसरा ज्ञान का नेत्र देने की कथा।
 
      -  अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र आत्मा को मिला है तो आत्म-अभिमानी बनना है। 
 
      - मैं इस शरीर द्वारा अब देवता बनती हूँ।
 
      -  मेरे में ही संस्कार हैं।
 
      -  मनुष्य सब देह-अभिमानी हैं।
 
      - बाप आकर देही-अभिमानी बनाते हैं।
 
      -  लोग फिर कह देते हैं आत्मा परमात्मा एक है। 
 
      - परमात्मा ने यह सब रूप धारण किये हैं।
 
      -  बाप कहते हैं यह सब रांग है, इसको मिथ्या अभिमान, मिथ्या ज्ञान कहा जाता है।
 
      -  बाप बतलाते हैं मैं बिन्दी मिसल हूँ। 
 
      - तुम भी नहीं जानते थे, यह भी नहीं जानते थे। 
 
      - अभी बाप समझाते हैं - इसमें संशय नहीं आना चाहिए।
 
      -  निश्चय होना चाहिए। 
 
      - बाबा जरूर सत्य ही बोलते हैं, संशयबुद्धि विनश्यन्ती।
 
      -  वह पूरा वर्सा नहीं पायेंगे। 
 
      - आत्म-अभिमानी बनने में ही मेहनत है। 
 
      - खाना पकाते बुद्धि बाप की तरफ लगी रहे। 
 
      - हर बात में यह प्रैक्टिस करनी चाहिए।
 
      -  रोटी बेलते, अपने माशूक को याद करते रहना - यह अभ्यास हर बात में चाहिए।
 
      -  जितना समय फुर्सत मिले याद करना है। 
 
      - याद से ही तुम सतोप्रधान बनेंगे। 
 
      - 8 घण्टा कर्म के लिए छुट्टी है।
 
      -  बीच में भी एकान्त में जाकर बैठना चाहिए, तुम्हें सबको बाप का परिचय भी सुनाना है।
 
      -  आज नहीं सुनेंगे तो कल सुनेंगे। 
 
      - बाप स्वर्ग स्थापन करते हैं, हम स्वर्ग में थे अभी फिर नर्कवासी हुए हैं।
 
      -  अब फिर बाप से वर्सा मिलना चाहिए। 
 
      - भारतवासियों को ही समझाते हैं।
 
      -  बाप आते भी भारत में ही हैं।
 
      -  देखो, तुम्हारे पास मुसलमान लोग भी आते हैं, वो भी सेन्टर सम्भालते हैं। 
 
      - कहते हैं शिवबाबा को याद करो।
 
      -  सिक्ख भी आते हैं, क्रिश्चियन भी आते हैं, आगे चलकर बहुत आयेंगे। 
 
      - यह ज्ञान सबके लिए है क्योंकि यह है ही सहज याद और सहज वर्सा बाप का। 
 
      - परन्तु पवित्र तो जरूर बनना पड़ेगा। 
 
      - दे दान तो छूटे ग्रहण।
 
      -  अभी भारत पर राहू का ग्रहण है फिर ब्रहस्पति की दशा शुरू होगी 21 जन्मों के लिए। 
 
      - पहले होती है ब्रहस्पति की दशा।
 
      -  फिर चक्र की दशा।
 
      -  सूर्यवंशियों पर ब्रहस्पति की दशा, चन्द्रवंशियों पर चक्र की दशा कहेंगे।
 
      -  फिर दशा कमती होती जाती है। 
 
      - सबसे खराब है राहू की दशा। 
 
      - ब्रहस्पति कोई गुरू नहीं होता है।
 
      -  यह दशा है वृक्षपति की। 
 
      - वृक्षपति बाप आते हैं तो ब्रहस्पति और चक्र की दशा होती है।
 
      -  रावण आते हैं तो राहू की दशा हो जाती है। 
 
      - तुम बच्चों पर अभी ब्रहस्पति की दशा बैठती है।
 
      -  सिर्फ वृक्षपति को याद करो, पवित्र बनो, बस। 
 
      - अच्छा।
        
        मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
      - धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
      - 1) हर कार्य करते हुए आत्म-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करनी है।
        
          -  देह का अहंकार समाप्त हो जाए, इसके लिए ही मेहनत करनी है।
 
         
       
      - 2) सतयुगी राजाई के लायक बनने के लिए अपने मैनर्स रॉयल बनाने हैं।
        
          -  पवित्रता ही सबसे ऊंची चलन है। 
 
          - पवित्र बनने से ही पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।
 
           
       
      - वरदान:-
 
      - ( All Blessings of 2021)
 
      -  भोलेपन के साथ ऑलमाइटी अथॉरिटी बन माया का सामना करने वाले शक्ति स्वरूप भव
 
      - कभी-कभी भोलापन बहुत भारी नुकसान कर देता है। 
 
      - सरलता, भोला रूप धारण कर लेती है। लेकिन ऐसा भोला नहीं बनो जो सामना नहीं कर सको। 
 
      - सरलता के साथ समाने और सहन करने की शक्ति चाहिए। 
 
      - जैसे बाप भोलानाथ के साथ आलमाइटी अथॉर्टी है, ऐसे आप भी भोलेपन के साथ-साथ शक्ति स्वरूप भी बनो तो माया का गोला नहीं लगेगा, माया सामना करने के बजाए नमस्कार कर लेगी।
 
      -  स्लोगन:-
 
      - (All Slogans of 2021)
 
      - अपने दिल में याद का झण्डा लहराओ तो प्रत्यक्षता का झण्डा लहरा जायेगा।
 
      
         
     
   
    
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