19-04-2021 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - जब भी समय मिले तो एकान्त में बैठ सच्चे माशूक को याद करो क्योंकि याद से ही स्वर्ग की बादशाही मिलेगी

प्रश्नः-

बाप मिला है तो कौन सा अलबेलापन समाप्त हो जाना चाहिए?

उत्तर:-

कई बच्चे अलबेले हो कहते हैं हम तो बाबा के हैं ही।

याद की मेहनत नहीं करते।

घड़ी-घड़ी याद भूल जाती है।

यही है अलबेलापन।

बाबा कहते बच्चे, अगर याद में रहो तो अन्दर स्थाई खुशी रहेगी।

किसी भी प्रकार का घुटका नहीं आयेगा। जैसे बांधेलियाँ याद में तड़फती हैं, दिन-रात याद करती हैं, ऐसे तुम्हें भी निरन्तर याद रहनी चाहिए।

गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ.....

 

गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ...


  • ओम् शान्ति। बाप ने बच्चों को समझाया है - तुम भी कहते हो ओम् शान्ति।
  • बाप भी कहते हैं ओम् शान्ति अर्थात् तुम आत्मायें शान्त स्वरूप हो।
  • बाप भी शान्त स्वरूप है, आत्मा का स्वधर्म शान्त है।
  • परमात्मा का भी स्वधर्म शान्त है।
  • तुम भी शान्तिधाम में रहने वाले हो।
  • बाप भी कहते हैं - मैं भी वहाँ का रहने वाला हूँ।
  • तुम बच्चे पुनर्जन्म में आते हो, मैं नहीं आता।
  • मैं इस रथ में प्रवेश करता हूँ।
  • यह मेरा रथ है।
  • शंकर से अगर पूछेंगे, पूछ तो नहीं सकते परन्तु समझो सूक्ष्मवतन में जाकर कोई पूछे तो कहेंगे यह सूक्ष्म शरीर हमारा है। शिवबाबा कहते हैं यह हमारा शरीर नहीं है।
  • यह हमने उधार लिया है क्योंकि मुझे भी कर्मेन्द्रियों का आधार चाहिए।
  • पहली-पहली मुख्य बात समझानी है कि पतित-पावन, ज्ञान का सागर श्रीकृष्ण नहीं है।
  • श्रीकृष्ण सर्व आत्माओं को पतित से पावन नहीं बनाते हैं, वो तो आकर पावन दुनिया में राज्य करते हैं।
  • पहले प्रिन्स बनते हैं फिर महाराजा बनते हैं।
  • उनमें भी यह ज्ञान नहीं है।
  • रचना का ज्ञान तो रचता में ही होगा ना।
  • श्रीकृष्ण को रचना कहा जाता है।
  • रचता बाप ही आकर ज्ञान देते हैं।
  • अभी बाप रच रहे हैं, कहते हैं तुम हमारे बच्चे हो।
  • तुम भी कहते हो बाबा हम आपके हैं।
  • कहा भी जाता है ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों की स्थापना।
  • नहीं तो ब्राह्मण कहाँ से आये।
  • सूक्ष्मवतन वाला ब्रह्मा कोई दूसरा नहीं है।
  • ऊपर वाला सो नीचे वाला सो ऊपर वाला।
  • एक ही है।
  • अच्छा विष्णु और लक्ष्मी-नारायण भी एक ही बात है।
  • वह कहाँ के हैं?
  • ब्रह्मा सो विष्णु बनते हैं।
  • ब्रह्मा-सरस्वती ही सो लक्ष्मी-नारायण फिर वही सारा कल्प 84 जन्मों के बाद आकर संगम पर ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं।
  • लक्ष्मी-नारायण भी मनुष्य हैं, उनका देवी देवता धर्म है।
  • विष्णु को भी 4 भुजायें दी हैं।
  • यह प्रवृत्ति मार्ग दिखाया है।
  • भारत में शुरू से ही प्रवृत्ति मार्ग चला आता है इसलिए विष्णु को 4 भुजायें दी हैं।
  • यहाँ है ब्रह्मा-सरस्वती, वह सरस्वती एडाप्टेड बच्ची है।
  • इनका असुल नाम लखीराज था, फिर इनका नाम रखा ब्रह्मा।
  • शिवबाबा ने इसमें प्रवेश किया और राधे को अपना बनाया, नाम रखा सरस्वती।
  • सरस्वती का ब्रह्मा कोई लौकिक बाप नहीं ठहरा।
  • इन दोनों के लौकिक बाप अपने-अपने थे।
  • अभी वह नहीं हैं।
  • यह शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट किया है।
  • तुम हो एडाप्टेड चिल्ड्रेन।
  • ब्रह्मा भी शिवबाबा का बच्चा है।
  • ब्रह्मा के मुख कमल से रचते हैं इसलिए ब्रह्मा को भी माता कहा जाता है।
  • तुम मात पिता हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे.. गाते हैं ना।
  • तुम ब्राह्मण आकर बालक बने हो।
  • इसमें समझने की बुद्धि बड़ी अच्छी चाहिए।
  • तुम बच्चे शिवबाबा से वर्सा लेते हो।
  • ब्रह्मा कोई स्वर्ग का रचयिता वा ज्ञान सागर नहीं है।
  • ज्ञान का सागर एक ही बाप है।
  • आत्मा का बाप ही ज्ञान का सागर है।
  • आत्मा भी ज्ञान सागर बनती है परन्तु इनको ज्ञान सागर नहीं कहेंगे क्योंकि सागर एक ही है।
  • तुम सब नदियाँ हो।
  • सागर को अपना शरीर नहीं है।
  • नदियों को है।
  • तुम हो ज्ञान नदियाँ।
  • कलकत्ता में ब्रह्मपुत्रा नदी बहुत बड़ी है क्योंकि उनका सागर से कनेक्शन है।
  • उनका मेला बहुत बड़ा लगता है।
  • यहाँ भी मेला लगता है।
  • सागर और ब्रह्मपुत्रा दोनों कम्बाइन्ड हैं।
  • यह है चैतन्य, वह है जड़।
  • यह बातें बाप समझाते हैं।
  • शास्त्रों में नहीं हैं।
  • शास्त्र हैं भक्ति मार्ग की डिपार्टमेन्ट।
  • यह है ज्ञान मार्ग, वह है भक्ति मार्ग।
  • आधाकल्प भक्ति मार्ग की डिपार्टमेन्ट चली है।
  • उसमें ज्ञान सागर है नहीं।
  • परमपिता परमात्मा, ज्ञान का सागर बाप संगम पर आकर ज्ञान स्नान से सबकी सद्गति करते हैं।
  • तुम जानते हो कि हम बेहद के बाप से स्वर्ग के सुखों की तकदीर बना रहे हैं।
  • बरोबर हम सतयुग, त्रेता में पूज्य देवी देवता थे।
  • अभी हम पुजारी मनुष्य हैं।
  • फिर मनुष्य से तुम देवता बनते हो।
  • ब्राह्मण सो देवता धर्म में आये फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें।
  • 84 जन्म लेते-लेते नीचे उतरना पड़ा है।
  • यह भी तुमको बाप ने बताया है।
  • तुम अपने जन्मों को नहीं जानते थे।
  • 84 जन्म भी तुम ही लेते हो।
  • जो पहले-पहले आते हैं, वही पूरे 84 जन्म लेते हैं।
  • योग से ही खाद निकलती है, योग में ही मेहनत है।
  • भल कई बच्चे ज्ञान में तीखे हैं परन्तु योग में कच्चे हैं।
  • बांधेलियाँ योग में छुटेलियों से भी अच्छी हैं।
  • वह तो शिवबाबा से मिलने के लिए रात-दिन तड़फती हैं।
  • तुम मिले हो।
  • तुमको कहा जाता है याद करो तो तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो।
  • तुमको तूफान बहुत आते हैं।
  • वह याद में तड़फती हैं। तुम तड़फते नहीं हो।
  • उन्हों का घर बैठे भी ऊंच पद हो जाता है।
  • तुम बच्चे जानते हो - बाबा की याद में रहने से हमको स्वर्ग की बादशाही मिलेगी।
  • जैसे बच्चा गर्भ से निकलने के लिए तड़फता है।
  • वैसे बांधेलियाँ तडपते-तड़पते पुकारती हैं, शिवबाबा इस बन्धन से निकालो।
  • दिन-रात याद करती हैं।
  • तुमको बाप मिला है तो तुम अलबेले बन पड़े हो।
  • हम बाबा के बच्चे हैं।
  • हम यह शरीर छोड़ जाए प्रिन्स बनेंगे, यह अन्दर स्थाई खुशी रहनी चाहिए।
  • परन्तु माया याद रखने नहीं देती।
  • याद से खुशी में बहुत रहेंगे।
  • याद नहीं करेंगे तो घुटका खाते रहेंगे।
  • आधाकल्प तुमने रावण राज्य में दु:ख देखा है।
  • अकाले मृत्यु होता आया है।
  • दु:ख तो है ही है।
  • भल कितना भी साहूकार हो, दु:ख तो होता है।
  • अकाले मृत्यु हो जाती है।
  • सतयुग में ऐसे अकाले नहीं मरते, कभी बीमार नहीं होंगे।
  • समय पर बैठे-बैठे आपेही एक शरीर छोड़ दूसरा ले लेते हैं।
  • उसका नाम ही है-सुखधाम।
  • मनुष्य तो स्वर्ग की बातों को कल्पना समझते हैं।
  • कहेंगे, स्वर्ग कहाँ से आया।
  • तुम जानते हो हम तो स्वर्ग में रहने वाले हैं फिर 84 जन्म लेते हैं।
  • यह सारा खेल भारत पर ही बना हुआ है।
  • तुम जानते हो हम 21 जन्म पावन देवता थे फिर हम क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बने।
  • अब फिर ब्राह्मण बने हैं।
  • यह स्वदर्शन चक्र बहुत सहज है।
  • यह शिवबाबा बैठ समझाते हैं।
  • तुम जानते हो शिवबाबा ब्रह्मा के रथ में आया है, जो ब्रह्मा है वही सतयुग आदि में श्रीकृष्ण था।
  • 84 जन्म ले पतित बने हैं फिर इनमें बाप ने प्रवेश कर एडाप्ट किया है।
  • खुद कहते हैं मैंने इस तन का आधार ले तुमको अपना बनाया है।
  • फिर तुमको स्वर्ग की राजधानी का लायक बनाता हूँ, जो लायक बनेंगे वही राजाई में आयेंगे।
  • इसमें मैनर्स अच्छे चाहिए।
  • मुख्य है ही पवित्रता।
  • इस पर अबलाओं पर अत्याचार होते हैं।
  • कहाँ-कहाँ पुरूषों पर भी अत्याचार होते हैं।
  • विकार के लिए एक दो को तंग करते हैं।
  • यहाँ मातायें बहुत होने के कारण शक्ति सेना नाम गाया हुआ है, वन्दे मातरम्।
  • अभी तुम ज्ञान-चिता पर बैठे हो काम-चिता से उतर गोरे बनने के लिए।
  • द्वापर से लेकर काम-चिता पर बैठे हो।
  • एक दो को विकार देने का हथियाला विकारी ब्राह्मण बांधते हैं।
  • तुम हो निर्विकारी ब्राह्मण।
  • तुम वह कैंसिल कराए ज्ञान-चिता पर बिठाते हो।
  • काम-चिता से काले बने हैं, ज्ञान-चिता से गोरे बन जायेंगे।
  • बाप कहते हैं भल इकट्ठे रहो परन्तु प्रतिज्ञा करनी है हम विकार में नहीं जायेंगे, इसलिए बाबा अंगूठी भी पहनाते हैं।
  • शिवबाबा, बाबा भी है, साजन भी है।
  • सभी सीताओं का राम है।
  • वही पतित-पावन है।
  • बाकी रघुपति राघव राजाराम की बात नहीं है।
  • उसने संगम पर ही यह प्रालब्ध पाई थी।
  • उनको हिंसक बाण दिखाना रांग है।
  • चित्र में भी नहीं देना चाहिए।
  • सिर्फ लिखना है चन्द्रवंशी।
  • बच्चों को समझाना चाहिए शिवबाबा इस द्वारा हमको यह चक्र का राज़ समझा रहे हैं।
  • सत्य-नारायण की कथा होती है ना।
  • वह है मनुष्यों की बनाई हुई कथा।
  • नर से नारायण तो कोई बनते नहीं।
  • सत्य नारायण की कथा का अर्थ ही है नर से नारायण बनना।
  • अमरकथा भी सुनाते हैं परन्तु अमरपुरी में तो कोई जाते नहीं।
  • मृत्युलोक 2500 वर्ष चलता है।
  • तीजरी की कथा मातायें सुनती हैं।
  • वास्तव में यह है तीसरा ज्ञान का नेत्र देने की कथा।
  • अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र आत्मा को मिला है तो आत्म-अभिमानी बनना है।
  • मैं इस शरीर द्वारा अब देवता बनती हूँ।
  • मेरे में ही संस्कार हैं।
  • मनुष्य सब देह-अभिमानी हैं।
  • बाप आकर देही-अभिमानी बनाते हैं।
  • लोग फिर कह देते हैं आत्मा परमात्मा एक है।
  • परमात्मा ने यह सब रूप धारण किये हैं।
  • बाप कहते हैं यह सब रांग है, इसको मिथ्या अभिमान, मिथ्या ज्ञान कहा जाता है।
  • बाप बतलाते हैं मैं बिन्दी मिसल हूँ।
  • तुम भी नहीं जानते थे, यह भी नहीं जानते थे।
  • अभी बाप समझाते हैं - इसमें संशय नहीं आना चाहिए।
  • निश्चय होना चाहिए।
  • बाबा जरूर सत्य ही बोलते हैं, संशयबुद्धि विनश्यन्ती।
  • वह पूरा वर्सा नहीं पायेंगे।
  • आत्म-अभिमानी बनने में ही मेहनत है।
  • खाना पकाते बुद्धि बाप की तरफ लगी रहे।
  • हर बात में यह प्रैक्टिस करनी चाहिए।
  • रोटी बेलते, अपने माशूक को याद करते रहना - यह अभ्यास हर बात में चाहिए।
  • जितना समय फुर्सत मिले याद करना है।
  • याद से ही तुम सतोप्रधान बनेंगे।
  • 8 घण्टा कर्म के लिए छुट्टी है।
  • बीच में भी एकान्त में जाकर बैठना चाहिए, तुम्हें सबको बाप का परिचय भी सुनाना है।
  • आज नहीं सुनेंगे तो कल सुनेंगे।
  • बाप स्वर्ग स्थापन करते हैं, हम स्वर्ग में थे अभी फिर नर्कवासी हुए हैं।
  • अब फिर बाप से वर्सा मिलना चाहिए।
  • भारतवासियों को ही समझाते हैं।
  • बाप आते भी भारत में ही हैं।
  • देखो, तुम्हारे पास मुसलमान लोग भी आते हैं, वो भी सेन्टर सम्भालते हैं।
  • कहते हैं शिवबाबा को याद करो।
  • सिक्ख भी आते हैं, क्रिश्चियन भी आते हैं, आगे चलकर बहुत आयेंगे।
  • यह ज्ञान सबके लिए है क्योंकि यह है ही सहज याद और सहज वर्सा बाप का।
  • परन्तु पवित्र तो जरूर बनना पड़ेगा।
  • दे दान तो छूटे ग्रहण।
  • अभी भारत पर राहू का ग्रहण है फिर ब्रहस्पति की दशा शुरू होगी 21 जन्मों के लिए।
  • पहले होती है ब्रहस्पति की दशा।
  • फिर चक्र की दशा।
  • सूर्यवंशियों पर ब्रहस्पति की दशा, चन्द्रवंशियों पर चक्र की दशा कहेंगे।
  • फिर दशा कमती होती जाती है।
  • सबसे खराब है राहू की दशा।
  • ब्रहस्पति कोई गुरू नहीं होता है।
  • यह दशा है वृक्षपति की।
  • वृक्षपति बाप आते हैं तो ब्रहस्पति और चक्र की दशा होती है।
  • रावण आते हैं तो राहू की दशा हो जाती है।
  • तुम बच्चों पर अभी ब्रहस्पति की दशा बैठती है।
  • सिर्फ वृक्षपति को याद करो, पवित्र बनो, बस।
  • अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) हर कार्य करते हुए आत्म-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करनी है।
    • देह का अहंकार समाप्त हो जाए, इसके लिए ही मेहनत करनी है।
  • 2) सतयुगी राजाई के लायक बनने के लिए अपने मैनर्स रॉयल बनाने हैं।
    • पवित्रता ही सबसे ऊंची चलन है।
    • पवित्र बनने से ही पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • भोलेपन के साथ ऑलमाइटी अथॉरिटी बन माया का सामना करने वाले शक्ति स्वरूप भव
  • कभी-कभी भोलापन बहुत भारी नुकसान कर देता है।
  • सरलता, भोला रूप धारण कर लेती है। लेकिन ऐसा भोला नहीं बनो जो सामना नहीं कर सको।
  • सरलता के साथ समाने और सहन करने की शक्ति चाहिए।
  • जैसे बाप भोलानाथ के साथ आलमाइटी अथॉर्टी है, ऐसे आप भी भोलेपन के साथ-साथ शक्ति स्वरूप भी बनो तो माया का गोला नहीं लगेगा, माया सामना करने के बजाए नमस्कार कर लेगी।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • अपने दिल में याद का झण्डा लहराओ तो प्रत्यक्षता का झण्डा लहरा जायेगा।