25-04-21 प्रात:मुरली मधुबन

अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 18-12-87

कर्मातीत स्थिति की गुह्य परिभाषा

 

  • आज विदेही बापदादा अपने विदेही स्थिति में स्थित रहने वाले श्रेष्ठ बच्चों को देख रहे हैं।
  • हर एक ब्राह्मण आत्मा विदेही बनने के वा कर्मातीत बनने के श्रेष्ठ लक्ष्य को ले सम्पूर्ण स्टेज के समीप आ रही है।
  • तो आज बापदादा बच्चों की कर्मातीत विदेही स्थिति की समीपता को देख रहे थे कि कौन-कौन कितने समीप पहुँचे हैं, ‘फालो ब्रह्मा बाप' कहाँ तक किया है वा कर रहे हैं?
  • लक्ष्य सभी का बाप के समीप और समान बनने का ही है।
  • लेकिन प्रैक्टिकल में नम्बरवार बन जाते हैं।
  • इस देह में रहते विदेही अर्थात् कर्मातीत बनने का एग्जैम्पल (मिसाल) साकार में ब्रह्मा बाप को देखा।
  • तो कर्मातीत बनने की विशेषता क्या है?
  • जब तक यह देह है, कर्मेन्द्रियों के साथ इस कर्मक्षेत्र पर पार्ट बजा रहे हो, तब तक कर्म के बिना सेकण्ड भी रह नहीं सकते हो।
  • कर्मातीत अर्थात् कर्म करते हुए कर्म के बन्धन से परे।
  • एक है बन्धन और दूसरा है सम्बन्ध।
  • कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म के सम्बन्ध में आना अलग चीज़ है, कर्म के बन्धन में बन्धना वह अलग चीज़ है।
  • कर्मबन्धन, कर्म के हद के फल के वशीभूत बना देता है।
  • वशीभूत शब्द ही सिद्ध करता है जो किसी के भी वश में आ जाता।
  • वश में आने वाले भूत के समान भटकने वाले बन जाते हैं।
  • जैसे अशुद्ध आत्मा भूत बन जब प्रवेश होती है तो मनुष्य आत्मा की क्या हालत होती है?
  • परवश हो भटकते रहते हैं।
  • ऐसे कर्म के वशीभूत अर्थात् कर्म के विनाशी फल की इच्छा के वशीभूत हैं तो कर्म भी बन्धन में बांध बुद्धि द्वारा भटकाता रहता है।
  • इसको कहा जाता है कर्मबन्धन, जो स्वयं को भी परेशान करता है और दूसरों को भी परेशान करता है।
  • कर्मातीत अर्थात् कर्म के वश होने वाला नहीं लेकिन मालिक बन, अथॉरिटी बन कर्मेन्द्रियों के सम्बन्ध में आये, विनाशी कामना से न्यारा हो कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराये।
  • आत्मा मालिक को कर्म अपने अधीन न करे लेकिन अधिकारी बन कर्म कराता रहे।
  • कर्मेन्द्रियाँ अपने आकर्षण में आकर्षित करती हैं अर्थात् कर्म के वशीभूत बनते हैं, अधीन होते हैं, बन्धन में बंधते हैं। कर्मातीत अर्थात् इससे अतीत अर्थात् न्यारा।
  • आंख का काम है देखना लेकिन देखने का कर्म कराने वाला कौन है?
  • आंख कर्म करने वाली है और आत्मा कर्म कराने वाली है।
  • तो कराने वाली आत्मा, करने वाली कर्मेन्द्रिय के वश हो जाए - इसको कहते हैं कर्मबन्धन।
  • कराने वाले बन कर्म कराओ - इसको कहेंगे कर्म के सम्बन्ध में आना।
  • कर्मातीत आत्मा सम्बन्ध में आती है लेकिन बन्धन में नहीं रहती।
  • कभी-कभी कहते हो ना कि बोलने नहीं चाहते थे लेकिन बोल लिया, करने नहीं चाहते थे लेकिन कर लिया।
  • इसको कहा जाता है कर्म के बन्धन में वशीभूत आत्मा।
  • ऐसी आत्मा कर्मातीत स्थिति के नज़दीक कहेंगे या दूर कहेंगे?
  • कर्मातीत अर्थात् देह, देह के सम्बन्ध, पदार्थ, लौकिक चाहे अलौकिक दोनों सम्बन्ध से, बन्धन से अतीत अर्थात् न्यारे।
  • भल सम्बन्ध शब्द कहने में आता है - देह का सम्बन्ध, देह के सम्बन्धियों का सम्बन्ध, लेकिन देह में वा सम्बन्ध में अगर अधीन हैं तो सम्बन्ध भी बन्धन बन जाता है।
  • सम्बन्ध शब्द न्यारा और प्यारा अनुभव कराने वाला है।
  • आज की सर्व आत्माओं का सम्बन्ध, बन्धन के रूप में बदल गया है।
  • जहाँ संबंध, बंधन का रूप बन जाता है तो बंधन सदा स्वयं को किसी न किसी प्रकार से परेशान करता रहेगा, दु:ख की लहर अनुभव करायेगा, उदासी का अनुभव करायेगा।
  • विनाशी प्राप्तियाँ होते भी अल्पकाल के लिए वह प्राप्तियों का सुख अनुभव करेगा।
  • सुख के साथ-साथ अभी-अभी प्राप्ति-स्वरूप का अनुभव होगा, अभी-अभी प्राप्तियाँ होते भी अप्राप्त स्थिति का अनुभव होगा।
  • भरपूर होते भी अपने को खाली-खाली अनुभव करेगा।
  • सब कुछ होते हुए भी ‘कुछ और चाहिए' - ऐसे अनुभव करता रहेगा और जहाँ ‘चाहिए-चाहिए' है वहाँ कभी भी सन्तुष्टता नहीं रहेगी।
  • मन भी राज़ी, तन भी राज़ी रहे, दूसरे भी राज़ी रहें - यह सदा हो नहीं सकता।
  • कोई न कोई बात पर स्वयं से नाराज़ या दूसरों से नाराज़ न चाहते भी होता रहेगा क्योंकि नाराज़ अर्थात् न राज़ अर्थात् राज़ को नहीं समझा।
  • अधिकारी बन कर्मेंन्द्रियों से कर्म कराने का राज़ नहीं समझा।
  • तो नाराज़ ही होगा ना।
  • कर्मातीत कभी नाराज़ नहीं होगा क्योंकि वह कर्म-सम्बन्ध और कर्म-बन्धन के राज़ को जानता है।
  • कर्म करो लेकिन वशीभूत होकर नहीं, अधिकारी मालिक होकर करो।
  • कर्मातीत अर्थात् अपने पिछले कर्मों के हिसाब-किताब के बन्धन से भी मुक्त।
  • चाहे पिछले कर्मों के हिसाब-किताब के फलस्वरूप तन का रोग हो, मन के संस्कार अन्य आत्माओं के संस्कारों से टक्कर भी खाते हों लेकिन कर्मातीत, कर्मभोग के वश न होकर मालिक बन चुक्तु करायेंगे।
  • कर्मयोगी बन कर्मभोग चुक्तु करना - यह है कर्मातीत बनने की निशानी।
  • योग से कर्मभोग को मुस्कराते हुए सूली से कांटा कर भस्म करना अर्थात् कर्मभोग को समाप्त करना है।
  • व्याधि का रूप न बने।
  • जो व्याधि का रूप बन जाता है वह स्वयं सदा व्याधि का ही वर्णन करता रहेगा।
  • मन में भी वर्णन करेगा तो मुख से भी वर्णन करेगा।
  • दूसरी बात - व्याधि का रूप होने कारण स्वयं भी परेशान होगा और दूसरों को भी परेशान करेगा।
  • वह चिल्लायेगा और कर्मातीत चला लेगा।
  • कोई को थोड़ा-सा दर्द होता है तो भी चिल्लाते बहुत हैं और कोई को ज्यादा दर्द होते भी चलाते हैं।
  • कर्मातीत स्थिति वाला देह के मालिक होने के कारण कर्मभोग होते हुए भी न्यारा बनने का अभ्यासी है।
  • बीच-बीच में अशरीरी-स्थिति का अनुभव बीमारी से परे कर देता है।
  • जैसे साइन्स के साधन द्वारा बेहोश कर देते हैं तो दर्द होते भी भूल जाते हैं, दर्द फील नहीं करते हैं क्योंकि दवाई का नशा होता है।
  • तो कर्मातीत अवस्था वाले अशरीरी बनने के अभ्यासी होने कारण बीच-बीच में यह रूहानी इन्जेक्शन लग जाता है।
  • इस कारण सूली से कांटा अनुभव होता है।
  • और बात - फालो फादर होने के कारण विशेष आज्ञाकारी बनने का प्रत्यक्ष फल बाप से विशेष दिल की दुआयें प्राप्त होती हैं।
  • एक अपना अशरीरी बनने का अभ्यास, दूसरा आज्ञाकारी बनने का प्रत्यक्षफल बाप की दुआयें, वह बीमारी अर्थात् कर्मभोग को सूली से कांटा बना देती हैं।
  • कर्मातीत श्रेष्ठ आत्मा कर्मभोग को, कर्मयोग की स्थिति में परिवर्तन कर देगी।
  • तो ऐसा अनुभव है वा बहुत बड़ी बात समझते हो?
  • सहज है वा मुश्किल है?
  • छोटी को बड़ी बात बनाना या बड़ी को छोटी बात बनाना - यह अपनी स्थिति के ऊपर है।
  • परेशान होना वा अपने अधिकारीपन की शान में रहना - अपने ऊपर है।
  • क्या हो गया वा जो हुआ वह अच्छा हुआ - यह अपने ऊपर है।
  • यह निश्चय बुरे को भी अच्छे में बदल सकता है क्योंकि हिसाब-किताब चुक्तु होने के कारण वा समय प्रति समय प्रैक्टिकल पेपर ड्रामा अनुसार होने के कारण कोई बातें अच्छे रूप में सामने आयेंगी और कई बार अच्छा रूप होते हुए भी बाहर का रूप नुकसान वाला होगा वा जिसको आप कहते हो यह इस रूप से अच्छा नहीं हुआ।
  • बातें आयेंगी, अभी तक भी ऐसे रूप की बातें आती रही हैं और आती भी रहेंगी।
  • लेकिन नुकसान के पर्दे के अन्दर फायदा छिपा हुआ होता है।
  • बाहर का पर्दा नुकसान का दिखाई देता है, अगर थोड़ा-सा समय धैर्यवत अवस्था, सहनशील स्थिति से अन्तर्मुखी हो देखो तो बाहर के पर्दे के अन्दर जो छिपा हुआ है, आपको वही दिखाई देगा, ऊपर का देखते भी नहीं देखेंगे।
  • होलीहंस हो ना?
  • जब वह हंस कंकड़ और रत्न को अलग कर सकता है तो होलीहंस अपने छिपे हुए फायदे को ले लेगा, नुकसान के बीच फायदे को ढूँढ लेगा। समझा?
  • जल्दी घबरा जाते हैं ना।
  • इससे क्या होता?
  • जो अच्छा सोचा जाता वह भी घबराने के कारण बदल जाता है।
  • तो घबराओ नहीं।
  • कर्म को देख कर्म के बन्धन में नहीं फँसो।
  • क्या हो गया, कैसे हो गया, ऐसा तो होना नहीं चाहिए, मेरे से ही क्यों होता, मेरा ही भाग्य शायद ऐसा है - यह रस्सियाँ बांधते जाते हो।
  • यह संकल्प ही रस्सियां हैं।
  • इसलिए कर्म के बन्धन में आ जाते हो।
  • व्यर्थ संकल्प ही कर्मबन्धन की सूक्ष्म रस्सियां हैं।
  • कर्मातीत आत्मा कहेगी - जो होता है वह अच्छा है, मैं भी अच्छा, बाप भी अच्छा, ड्रामा भी अच्छा।
  • यह बन्धन को काटने की कैंची का काम करती है।
  • बन्धन कट गये तो कर्मातीत हो गये ना।
  • कल्याणकारी बाप के बच्चे होने के कारण संगमयुग का हर सेकण्ड कल्याणकारी है।
  • हर सेकण्ड का आपका धन्धा ही कल्याण करना है, सेवा ही कल्याण करना है।
  • ब्राह्मणों का आक्यूपेशन ही है विश्व-परिवर्तक, विश्व-कल्याणी।
  • ऐसे निश्चयबुद्धि आत्मा के लिए हर घड़ी निश्चित कल्याणकारी है। समझा?
  • अभी तो कर्मातीत की परिभाषा बहुत है। जैसे कर्मों की गति गहन है, कर्मातीत स्थिति की परिभाषा भी बड़ी महान है, और कर्मातीत बनना जरूरी है।
  • बिना कर्मातीत बनने के साथ नहीं चलेंगे।
  • साथ कौन जायेंगे?
  • जो समान होंगे।
  • ब्रह्मा बाप को देखा - कर्मातीत स्थिति को कैसे प्राप्त किया?
  • कर्मातीत बनने का फालो करना अर्थात् साथ चलने योग्य बनना।
  • आज इतना ही सुनाते हैं, इतनी चेकिंग करना, फिर और सुनायेंगे।
  • अच्छा! सर्व अधिकारी स्थिति में स्थित रहने वाले, कर्मबन्धन को कर्म के सम्बन्ध में बदलने वाले, कर्मभोग को कर्मयोग की स्थिति में सूली से कांटा बनाने वाले, हर सेकण्ड कल्याण करने वाले, सदा ब्रह्मा बाप समान कर्मातीत स्थिति के समीप अनुभव करने वाले - ऐसे विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
  • अव्यक्त बापदादा की पार्टियों से मुलाकात
  • 1. सदा अपने को समर्थ बाप के समर्थ बच्चे अनुभव करते हो?
  • कभी समर्थ, कभी कमजोर - ऐसे तो नहीं?
  • समर्थ अर्थात् सदा विजयी।
  • समर्थ की कभी हार नहीं हो सकती।
  • स्वप्न में भी हार नहीं हो सकती।
  • स्वप्न, संकल्प और कर्म सबमें सदा विजयी - इसको कहते हैं समर्थ।
  • ऐसे समर्थ हो?
  • क्योंकि जो अब के विजयी हैं, बहुतकाल से वही विजय माला में गायन-पूजन योग्य बनते हैं।
  • अगर बहुतकाल के विजयी नहीं, समर्थ नहीं तो बहुतकाल के गायन-पूजन योग्य नहीं बनते हैं।
  • जो सदा और बहुतकाल के विजयी हैं, वहीं बहुत समय विजय माला में गायन-पूजन में आते हैं और जो कभी-कभी के विजयी हैं, वह कभी-कभी की अर्थात् 16 हजार की माला में आयेंगे।
  • तो बहुत-काल का हिसाब है और सदा का हिसाब है।
  • 16 हजार की माला सभी मन्दिरों में नहीं होती, कहाँ-कहाँ होती है।
  • 2.
  • सभी अपने को इस विशाल ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी आत्मायें अनुभव करते हो?
  • आप सबका हीरो पार्ट है।
  • हीरो पार्टधारी क्यों बने?
  • क्योंकि जो ऊंचे ते ऊंचा बाप जीरो है - उसके साथ पार्ट बजाने वाले हो।
  • आप भी जीरो अर्थात् बिन्दी हो।
  • लेकिन आप शरीरधारी बनते हो और बाप सदा जीरो हैं।
  • तो जीरो के साथ पार्ट बजाने वाले हीरो एक्टर हैं - यह स्मृति रहे तो सदा ही यथार्थ पार्ट बजायेंगे, स्वत: ही अटेन्शन जायेगा।
  • जैसे हद के ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी को कितना अटेन्शन रहता है!
  • सबसे बड़े ते बड़ा हीरो पार्ट आप सबका है।
  • सदा इस नशे और खुशी में रहो - वाह, मेरा हीरो पार्ट जो सारे विश्व की आत्मायें बार-बार हेयर-हेयर करती हैं?
  • यह द्वापर से जो कीर्तन करते हैं यह आपके इस समय के हीरो पार्ट का ही यादगार है।
  • कितना अच्छा यादगार बना हुआ है!
  • आप स्वयं हीरो बने हो तब आपके पीछे अब तक भी आपका गायन चलता रहता है।
  • अन्तिम जन्म में भी अपना गायन सुन रहे हैं।
  • गोपीवल्लभ का भी गायन है तो ग्वाल-बाल का भी गायन है, गोपिकाओं का भी गायन है।
  • बाप का शिव के रूप में गायन है तो बच्चों का शक्तियों के रूप में गायन है।
  • तो सदा हीरो पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं - इसी स्मृति में खुशी में आगे बढ़ते चलो।
  • कुमारों से :-
  • 1. सहजयोगी कुमार हो ना?
  • निरन्तर योगी कुमार, कर्मयोगी कुमार क्योंकि कुमार जितना अपने को आगे बढ़ाने चाहें उतना बढ़ा सकते हैं।
  • क्यों?
  • निर्बन्धन हैं, बोझ नहीं हैं और जिम्मेवारी नहीं है इसलिए हल्के हैं।
  • हल्के होने के कारण जितना ऊंचा जाना चाहे जा सकते हैं।
  • निरन्तर योगी, सहज योगी - यह है ऊंची स्थिति, यह है ऊंचा जाना।
  • ऐसे ऊंच स्थिति वाले को कहते - ‘विजयी कुमार'।
  • विजयी हो या कभी हार, कभी जीत - यह खेल तो नहीं खेलते हो?
  • अगर कभी हार कभी जीत के संस्कार होंगे तो एकरस स्थिति का अनुभव नहीं होगा।
  • एक की लगन में मगन रहने का अनुभव नहीं करेंगे।
  • 2.
  • सदा हर कर्म में कमाल करने वाले कुमार हो ना?
  • कोई भी कर्म साधारण नहीं हो, कमाल का हो।
  • जैसे बाप की महिमा करते हो, बाप की कमाल गाते हो।
  • ऐसे कुमार अर्थात् हर कर्म में कमाल दिखाने वाले।
  • कभी कैसे, कभी कैसे वाले नहीं।
  • ऐसे नहीं - जहाँ कोई खींचे वहाँ खिंच जाओ।
  • लुढ़कने वाले लोटे नहीं।
  • कभी कहाँ लुढ़क जाओ, कभी कहाँ।
  • ऐसे नहीं।
  • कमाल करने वाले बनो।
  • अविनाशी, अविनाशी बनाने वाले हैं - ऐसे चैलेन्ज करने वाले बनो।
  • ऐसी कमाल करके दिखाओ जो हरेक कुमार चलता-फिरता फरिश्ता हो, दूर से ही फरिश्तेपन की झलक अनुभव हो।
  • वाणी से सेवा के प्रोग्राम तो बहुत बना लिए, वह तो करेंगे ही लेकिन आजकल प्रत्यक्ष प्रुफ चाहते हैं।
  • प्रत्यक्ष प्रमाण, सबसे श्रेष्ठ प्रमाण है।
  • प्रत्यक्ष प्रमाण इतने हो जायें तो सहज सेवा हो जायेगी।
  • फरिश्तेपन की सेवा करो तो मेहनत कम सफलता ज्यादा होगी।
  • सिर्फ वाणी से सेवा नहीं करो लेकिन मन वाणी और कर्म तीनों से साथ-साथ सेवा हो - इसको कहते हैं ‘कमाल'। अच्छा!
  • विदाई के समय:-
  • चारों ओर के तीव्र पुरुषार्थी, सदा सेवाधारी, सदा डबल लाइट बन औरों को भी डबल लाइट बनाने वाले, सफलता को अधिकार से प्राप्त करने वाले, सदा बाप समान आगे बढ़ने वाले और औरों को भी आगे बढ़ाने वाले, ऐसे सदा उमंग-उत्साह में रहने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, स्नेही बच्चों को बापदादा का बहुत-बहुत सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडमॉर्निग।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • कदम-कदम पर सावधानी रखते हुए पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमपति भव
  • बाप बच्चों को बहुत ऊंची स्टेज पर रहने की सावधानी दे रहे हैं इसलिए अभी जरा भी गफलत करने का समय नहीं है, अब तो कदम-कदम पर सावधानी रखते हुए, कदम में पदमों की कमाई करते पदमपति बनो।
  • जैसे नाम है पदमापदम भाग्यशाली, ऐसे कर्म भी हों।
  • एक कदम भी पदम की कमाई के बिगर न जाए।
  • तो बहुत सोच-समझकर श्रीमत प्रमाण हर कदम उठाओ।
  • श्रीमत में मनमत मिक्स नहीं करो।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • मन को आर्डर प्रमाण चलाओ तो मन्मनाभव की स्थिति स्वत: रहेगी।